डेली न्यूज़ (28 Nov, 2024)



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सर्वोच्च न्यायालय ने EVM और VVPAT प्रणाली को बरकरार रखा

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM), वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT), आम चुनाव, संसद, राज्य विधानमंडल, पंचायतें, नगर पालिकाएँ, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL), मानकीकरण परीक्षण और गुणवत्ता प्रमाणन (STQC), EVM प्रबंधन प्रणाली, निर्वाचन आयोग

मेन्स के लिये:

भारत में चुनाव सुधार, चुनावों में पारदर्शिता। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) के स्थान पर मतपत्रों को पुनः लागू करने की मांग की गई थी।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि EVM पर प्रायः चुनावी हार के मद्देनजर ही सवाल उठाए जाते हैं, जिससे उनके तंत्र और सुरक्षा उपायों पर विश्वास दोहराया जाता है।

EVM को लेकर विवाद क्या है?

  • विवाद: कुछ राजनीतिक दलों ने चुनाव से पहले, विशेषकर हारने के बाद, EVM से हेरफेर का दावा किया है, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा हो गया है।
    • वर्ष 2009 के आम चुनाव में हारने वाली पार्टी ने EVM की विश्वसनीयता पर चिंता जताई थी।
    • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान समाप्त होने के बाद विपक्षी दलों ने फिर से EVM की  विश्वसनीयता का मुद्दा उठाया है।
    • वर्ष 2020 में पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों के बाद यह विवाद फिर से उभर आया।
  • निर्वाचन आयोग का जवाब: निर्वाचन आयोग ने तकनीकी विशेषज्ञों के अध्ययन का हवाला देते हुए लगातार EVM की विश्वसनीयता का बचाव किया है और कहा है कि मशीनों को हैक या हेरफेर नहीं किया जा सकता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का जवाब: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि EVM में हेरफेर को रोकने के लिये कई तकनीकी सुरक्षा उपाय और कड़ी जाँच के साथ प्रशासनिक प्रोटोकॉल लागू किये गए हैं तथा मतपत्रों की वापसी की याचिका को अनुचित मानते हुए खारिज कर दिया।

EVM और VVPAT क्या हैं? 

  • EVM के बारे में: EVM संसद, राज्य विधानमंडल और पंचायतों एवं नगर पालिकाओं जैसे स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के उद्देश्य से पोर्टेबल उपकरण हैं।
    • यह एक माइक्रोकंट्रोलर-आधारित उपकरण है और इसे एकल पोस्ट और एकल वोट के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • EVM के घटक: एक EVM को दो इकाइयों यानी कंट्रोल यूनिट और बैलट यूनिट के साथ डिज़ाइन किया गया है। ये इकाइयाँ एक केबल द्वारा आपस में जुड़ी होती हैं। यह सुनिश्चित करता है कि मतदान अधिकारी आपकी पहचान सत्यापित करे।
    • नियंत्रण इकाई: EVM की नियंत्रण इकाई पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है।
    • मतपत्र इकाई: मतपत्र इकाई मतदाताओं द्वारा वोट डालने के लिये मतदान कक्ष के भीतर रखी जाती है। 

भारत में EVM का विकास:

वर्ष

आयोजन

1977

EVM की संकल्पना पर विचार किया गया।

1979

प्रोटोटाइप ECIL, हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया।

1980

अनुच्छेद 324 के तहत जारी निर्देशानुसार अगस्त में निर्वाचन आयोग द्वारा EVM प्रमाणित की गई।

1982

केरल के परुर उप-चुनाव में EVM का इस्तेमाल; वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।

1988

ECI को EVM के उपयोग के अधिकार को प्रदान करने हेतु जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (धारा 61A) में संशोधन किया गया।

1990

दिनेश गोस्वामी समिति ने EVM को तकनीकी रूप से सुदृढ़ और सुरक्षित बताया।

1998

16 विधानसभा चुनावों में EVM का प्रयोग किया गया।

1999-2000

46 संसदीय सीटों (1999) और हरियाणा विधानसभा चुनावों (2000) में विस्तार रूप से इसका उपयोग किया गया।

2001

तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में इसका उपयोग पूर्ण किया गया।

2004

लोकसभा चुनावों में देश भर में EVM का प्रयोग किया गया।

2013

VVPAT को चुनाव संचालन नियमों में संशोधन के माध्यम से पेश किया गया था; इसका उपयोग पहली बार नगालैंड उप-चुनाव में किया गया।

2019

पहला लोकसभा चुनाव जो पूर्णतः VVPAT द्वारा समर्थित था।

  • VVPAT के बारे में: VVPAT मतदाताओं को यह पुष्टि करने में सक्षम बनाता है कि उनके मत अपेक्षित रूप से दर्ज किये गए हैं।
    • मतदान के समय एक पर्ची मुद्रित होती है जिस पर क्रम संख्या, उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न अंकित होता है। 
    • यह 7 सेकंड तक दिखाई देती है, इसके बाद मुद्रित पर्ची अपने आप कटकर VVPAT के सीलबंद ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है।

EVM की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने से संबंधित सुरक्षा उपाय क्या हैं?

  • तकनीकी सुरक्षा:
    • कार्यक्षमता: EVM में एक कंट्रोल यूनिट (CU), बैलट यूनिट (BU) और VVPAT शामिल होते हैं।
      • VVPAT उम्मीदवार के नाम, चुनाव चिन्ह और क्रम संख्या के साथ एक पर्ची मुद्रित करके दृश्य सत्यापन की सुविधा प्रदान करता है।
    • माइक्रोकंट्रोलर: माइक्रोकंट्रोलर वन-टाइम प्रोग्रामेबल (OTP) होते हैं तथा निर्माण के बाद उनमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
      • माइक्रोकंट्रोलर तक पहुँचने का कोई भी भौतिक प्रयास मशीन को स्थायी रूप से निष्क्रिय कर देता है।
    • विनिर्माण: केवल भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) जैसे विश्वसनीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) के द्वारा ही  EVM का विनिर्माण किया जाता हैं।
    • स्टैंडअलोन ऑपरेशन: EVM बिना वायर्ड या वायरलेस कनेक्टिविटी के संचालित होते हैं, जिससे हस्‍तकौशल का जोखिम समाप्त हो जाता है।
    • उन्नत M3 EVM (2013 के बाद): इसमें किसी भी तरह के बदलाव का पता लगाने की सुविधा है, जिससे अनाधिकृत रूप से प्रवेश करने पर मशीन को निष्क्रिय किया जा सकता है, साथ ही इसमें अनाधिकृत उपकरणों को ब्लॉक करने के लिये पारस्परिक प्रमाणीकरण की सुविधा है।
    • EVM प्रबंधन प्रणाली (EMS 2.0): यह EVM की गतिविधियों पर निगरानी रखती है तथा उनका प्रबंधन, और परिवहन एवं भंडारण के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
  • प्रशासनिक प्रोटोकॉल:
    • प्रथम-स्तरीय जाँच (FLC): निरीक्षण, सफाई और कार्यक्षमता का परीक्षण BEL/ECIL के इंजीनियरों द्वारा किया जाता हैं। 
      • नकली मतदान हेतु डमी प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है।
    • यादृच्छिक EVM आवंटन: पूर्व निर्धारित आवंटन से बचने के लिये EVM को विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों और मतदान केंद्रों में यादृच्छिक रूप से आवंटित किया जाता है।
      • निर्वाचन आयोग के पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में EMS 2.0 प्रणाली का उपयोग करके यादृच्छिकीकरण किया जाता है।
    • उम्मीदवार सेटिंग: EVM में उम्मीदवार का विवरण (जिसे 'कमीशनिंग' कहा जाता है) अंतिम उम्मीदवार सूची उपलब्ध होने के बाद ही लोड किया जाता है।
      • सटीकता सुनिश्चित करने के लिये मतदान दिवस से पहले कई चरणों में मॉक पोल आयोजित किये जाते हैं।
    • मतगणना दिवस की प्रक्रिया: EVM को CCTV निगरानी में मतगणना टेबल तक लाया जाता है।
      • प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के 5 मतदान केंद्रों से VVPAT पर्चियों का यादृच्छिक क्रॉस-सत्यापन किया जाता है।
    • EVM भंडारण प्रोटोकॉल: इन्हें CCTV और सशस्त्र पुलिस निगरानी के तहत एकल प्रवेश/निकास बिंदु वाले स्ट्रांगरूम में संग्रहीत किया जाता है।
      • इसमें डबल-लॉक प्रणाली का उपयोग किया जाता है जिसकी चाबियाँ अलग-अलग अधिकारियों के पास होती हैं तथा मतदान के बाद EVM को ले जाने के लिये GPS-ट्रैक वाले वाहनों का उपयोग किया जाता है।
    • आवधिक निरीक्षण: ज़िला निर्वाचन अधिकारी सुरक्षित भंडारण की स्थिति सुनिश्चित करने के लिये EVM गोदामों का मासिक निरीक्षण करते हैं।

मतपत्रों की तुलना में EVM-VVPAT के क्या लाभ हैं?

  • कोई बाहरी इनपुट नहीं: EVM बैटरी या पावर पैक पर चलती हैं, जिससे ये दूरदराज़ के क्षेत्रों में भी कार्य कर सकती हैं जबकि कागज के मतपत्रों के लिये मैन्युअल गिनती हेतु प्रकाश एवं अन्य सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
  • अवैध मतों का उन्मूलन: EVM पर मतदान एक बटन दबाकर किया जाता है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी अवैध मत (यह समस्या अक्सर गलत तरीके से चिह्नित या फटे हुए मतपत्रों से जुड़ी होती है) न हो
  • बूथ कैप्चरिंग की रोकथाम: EVM को प्रति मिनट केवल चार वोट की अनुमति देने के लिये प्रोग्राम किया गया है जिससे बूथ कैप्चरिंग की स्थिति में धोखाधड़ी वाले मतदान की संभावना बहुत कम हो जाती है।
    • एक बार कंट्रोल यूनिट पर 'क्लोज़' बटन दबा दिया जाए तो फिर कोई वोट नहीं डाला जा सकता है।
  • सटीक गणना और मतदाता सत्यापन: EVM से वोटों की तीव्र और त्रुटिरहित गणना संभव होती है तथा मैनुअल त्रुटियों एवं देरी की समस्या समाप्त हो जाती है।
    • मतदाताओं को बीप के माध्यम से तत्काल फीडबैक मिलता है और वे VVPAT पर्ची के माध्यम से अपने वोट की पुष्टि कर सकते हैं।
  • मतगणना में पारदर्शिता: कंट्रोल यूनिट का 'टोटल' बटन उम्मीदवार-अनुसार परिणाम बताए बिना डाले गए मतों की संख्या प्रदर्शित होती है जिससे मतों की गोपनीयता बनाए रखते हुए पारदर्शिता सुनिश्चित होती है।
  • पूर्व-प्रोग्रामिंग हेरफेर की रोकथाम: EVM का मूलभूत प्रोग्राम (जो राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों से तटस्थ होता है) चुनाव से बहुत पहले इसके निर्माण के दौरान माइक्रोकंट्रोलर में सन्निहित कर दिया जाता है।
    • उम्मीदवारों की क्रम संख्या पहले से जानने में असमर्थता के कारण EVM को फर्जी उद्देश्यों हेतु पूर्व-प्रोग्राम करना असंभव हो जाता है।

निष्कर्ष

VVPAT युक्त EVM से भारतीय निर्वाचन प्रणाली में क्रांति आने के साथ पारंपरिक मतपत्रों की तुलना में दक्षता, सटीकता और पारदर्शिता मिली है। संदेह के बावजूद, कड़े तकनीकी सुरक्षा उपाय एवं प्रशासनिक प्रोटोकॉल इसकी अखंडता सुनिश्चित करते हैं। इससे संबंधित चिंताएँ होने के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय एवं निर्वाचन आयोग द्वारा EVM को सुरक्षित माना गया है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इसमें हेरफेर को रोकने के लिये मौजूद तकनीकी एवं प्रशासनिक सुरक्षा उपायों पर प्रकाश डालिये। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
  2.  संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न.1 भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिये भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017)


भारत और हाई सी ट्रीटी

प्रिलिम्स के लिये:

हाई सी ट्रीटी, सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, विशेष आर्थिक क्षेत्र, सतत् विकास लक्ष्य, महासागर अम्लीकरण, ब्लू इकॉनमी, मिशन LiFE, जैवविविधता पर अभिसमय

मेन्स के लिये:

हाई सी ट्रीटी, भारत के लिये महत्व, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून और महासागर अभिशासन, पर्यावरण संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत ने सितंबर 2024 में हाई सी ट्रीटी पर हस्ताक्षर किया, जिसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता (BBNJ) समझौते के रूप में जाना जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय महासागर अभिशासन में एक प्रमुख मील का पत्थर है।

हालाँकि, कार्यान्वयन और भू-राजनीतिक चुनौतियाँ इसकी प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ पैदा करती हैं।

हाई सी ट्रीटी क्या है?

  • परिचय: सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS) के ढाँचे के तहत विकसित BBNJ समझौता राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों में समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और स्थायी उपयोग पर केंद्रित है, जो विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) के 200 समुद्री मील (370 किमी) से परे हैं।
    • BBNJ समझौता लागू होने के बाद UNCLOS के तहत तीसरा कार्यान्वयन समझौता बन जाएगा, जो निम्नलिखित का पूरक है:
      • 1994 भाग XI कार्यान्वयन समझौता (अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल में खनिज संसाधन अन्वेषण पर केंद्रित)।
      • 1995 संयुक्त राष्ट्र मत्स्य स्टॉक समझौता (स्ट्रेडलिंग और प्रवासी मछली भंडार के संरक्षण और प्रबंधन पर केंद्रित)।
    • यह समझौता सतत् विकास लक्ष्यों (SDG), विशेष रूप से SDG 14 (जल के नीचे जीवन) को प्राप्त करने में योगदान देता है।
  • आवश्यकता: समुद्र की सतह का 64% और पृथ्वी के क्षेत्रफल का 43% हिस्सा समुद्र में फैला हुआ है। वे लगभग 2.2 मिलियन समुद्री प्रजातियों और एक ट्रिलियन सूक्ष्मजीवों का आवास हैं।
  • ये क्षेत्र किसी भी राष्ट्र के स्वामित्व में नहीं हैं, जिससे नौवहन, आर्थिक गतिविधियों और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये समान अधिकार प्राप्त हैं।
    • वर्ष 2021 में, अनुमानतः 17 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्रों में फेंका गया, और यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है। जवाबदेही की कमी से अतिदोहन, जैवविविधता की हानि, प्रदूषण और महासागरों का अम्लीकरण होता है।
    • यह संधि संसाधनों के सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने, जैवविविधता की रक्षा करने तथा प्रदूषण फैलाने वालों को जवाबदेह बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • संधि के उद्देश्य:
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA): उन क्षेत्रों की स्थापना और विनियमन पर ध्यान केंद्रित करता है जहाँ जैवविविधता सहित समुद्री प्रणालियाँ मानवीय गतिविधियों या जलवायु परिवर्तन के कारण तनाव में हैं, जैसे भूमि पर राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव रिज़र्व
      • इन क्षेत्रों का उद्देश्य समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है।
    • समुद्री आनुवंशिक संसाधन: औषधि विकास सहित समुद्री आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों का न्यायसंगत बंटवारा सुनिश्चित करना तथा इन संसाधनों से उत्पन्न ज्ञान तक खुली पहुँच को बढ़ावा देना।
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये संभावित रूप से हानिकारक गतिविधियों के लिये पूर्व EIA को अनिवार्य बनाना, जिसमें राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर की गतिविधियाँ भी शामिल हैं जो हाई सी को प्रभावित कर सकती हैं, तथा आकलन का सार्वजनिक प्रकटीकरण करना।
    • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: संरक्षण प्रयासों में छोटे द्वीप राज्यों और स्थलबद्ध राष्ट्रों को समर्थन देने और क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से उन्हें धारणीय समुद्री संसाधन उपयोग से लाभान्वित करने में सक्षम बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • हस्ताक्षर और अनुसमर्थन: कम-से-कम 60 देशों द्वारा अपने औपचारिक अनुसमर्थन दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के 120 दिन बाद यह संधि अंतर्राष्ट्रीय कानून बन जाएगी। हाई सीज़ एलायंस के अनुसार, नवंबर 2024 तक 105 देशों द्वारा संधि पर हस्ताक्षर किये गए हैं, लेकिन उनमें से केवल 15 ने ही इसे अनुसमर्थित और प्रस्तुत किया है।

High_Seas_Treaty_Status

नोट: अनुसमर्थन (रटिफिकेशन) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई देश कानूनी रूप से किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है, जो हस्ताक्षर करने से भिन्न है।

  • हस्ताक्षर करने से यह संकेत मिलता है कि कोई देश संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से सहमत है, और उसका पालन करने के लिये तैयार है। जब तक इसकी पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक कोई देश कानून का पालन करने के लिये कानूनी रूप से बाध्य नहीं होता है।

High_Seas_Treaty

भारत के लिये हाई सी ट्रीटी का क्या महत्त्व है?

  • ब्लू इकॉनमी से आर्थिक लाभ: भारत की ब्लू इकॉनमी उसके सकल घरेलू उत्पाद में 4% का योगदान प्रदान करती है, जिसमें इको-पर्यटन, मत्स्य पालन और जलीय कृषि (विशेष रूप से केरल जैसे तटीय क्षेत्रों में) में लाखों रोज़गारों का सृजन शामिल है। 
    • चूँकि अधिकांश बेड़े अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) में ही कार्य करते हैं, इसलिये अफ्रीका और भारत जैसे देशों को अंतर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र में विदेशी बेड़े द्वारा शोषण का खतरा बना रहता है।
      • यह संधि इन क्षेत्रों में मत्स्य ग्रहण को विनियमित करने में मदद कर सकती है, ताकि सतत् उपयोग सुनिश्चित हो सके।
  • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) का उद्देश्य मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देना है। हाई सी ट्रीटी पर हस्ताक्षर करने से मत्स्य पालन के संरक्षण और स्थायी समुद्री उद्योगों से राजस्व प्राप्ति में मदद मिलेगी।
  • जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देना: संधि में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर कार्बन सिंक के रूप में ध्यान केंद्रित करना जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • भारत के लिये, स्वस्थ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तटीय क्षरण, चरम मौसम और बढ़ते समुद्री स्तर के  विरुद्ध प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है।
  • यह संधि प्रकृति आधारित समाधानों (NBS) को बढ़ावा देती है, जैसे समुद्री परिदृश्य की बहाली और MPA, जो प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण ढहने के खतरे में हैं।
  • प्रवाल भित्तियों के संरक्षण हेतु, जो वैश्विक तापमान वृद्धि के परिणामस्वरूप खतरे में हैं, यह समझौता प्रकृति-आधारित समाधानों (NBS) जैसे MPA और समुद्री परिदृश्य बहाली को प्रोत्साहित करता है।
  • इस संधि के लिये भारत का समर्थन प्रवाल भित्तियों की गिरावट को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों और वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ संरेखण: हाई सी ट्रीटी के अनुसमर्थन से भारत सतत् विकास लक्ष्यों 13 (जलवायु कार्रवाई) और 14 के साथ संरेखित हो जाएगा, पेरिस समझौते, 2015 के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को सुदृढ़ करेगा तथा मिशन LIFE (पर्यावरण के लिये जीवन शैली) और सागर (SAGAR) पहल का समर्थन करेगा।
  • यह भारत को सतत् विकास और समुद्री जैव विविधता संरक्षण में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करेगा।

हाई सी ट्रीटी के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • अनुसमर्थन का अभाव: हाई सी ट्रीटी को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें अनुसमर्थन की धीमी प्रक्रिया भी शामिल है, भू-राजनीतिक चिंताओं के कारण 105 हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से केवल 15 ने ही इसे मंजूरी दी है। 
    • दक्षिण चीन सागर जैसे समुद्री क्षेत्रों पर विवाद MPA के निर्माण में बाधा डालते हैं। 
    • दक्षिण-पूर्व एशिया और बंगाल की खाड़ी से सटे देशों को डर है कि MPA संप्रभुता और राष्ट्रीय आर्थिक हितों को कमज़ोर कर सकता है, जिससे संरक्षण एवं राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बीच संतुलन जटिल हो सकता है।
  • समुद्री आनुवंशिक संसाधन: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ साझा करने के संधि के प्रावधान जवाबदेही संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करते हैं, जिसमें यह जोखिम है कि धनी राष्ट्र लाभ पर एकाधिकार कर सकते हैं, जिससे कम विकसित देश हाशिये पर चले जाएंगे तथा मौजूदा असमानताएँ और बढ़ जाएंगी।
  • मौजूदा ढाँचे के साथ अतिव्यापन (ओवरलैप): समुद्री आनुवंशिक संसाधनों, क्षेत्र-आधारित प्रबंधन विधियों और EIA के संबंध में समान प्रावधानों के कारण, हाई सी ट्रीटी और जैव विविधता पर अभिसमय (CBD) के मध्य मतभेद उत्पन्न हो सकता है।
    • मौजूदा ढाँचे के साथ अतिव्यापन से महासागरीय प्रशासन प्रभावित हो सकता है, प्रवर्तन जटिल हो सकता है तथा छोटे देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का अनुपालन बाधित हो सकता है।
  • कार्यान्वयन में स्पष्टता का अभाव:  संधि में व्यापक उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं, लेकिन कार्यान्वयन संबंधी स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है, जिसके कारण इसका अनुप्रयोग असंगत है। 
    • यद्यपि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य है, लेकिन संधि में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) के संचालन और क्रियान्वयन के लिये निर्दिष्ट प्रक्रियाओं का अभाव है, जिससे इसकी प्रभावशीलता, विशेष रूप से सीमित क्षमता वाले क्षेत्रों में सीमित हो सकती है। 
      • इसमें तेल और गैस अन्वेषण जैसी गतिविधियों से हो रही पर्यावरणीय क्षति की भी उपेक्षा की जाती है और यह समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों की अंतर्संबंधता (विशेष रूप से EEZ गतिविधियों- जैसे कि मत्स्यन और प्रदूषण के कारण गहन समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों पर पड़ने वाले प्रभाव को संबोधित करने में विफल है।
  • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: इस संधि में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये प्रवर्तनीय तंत्र का अभाव है जिससे निम्न एवं मध्यम आय वाले देश इसके लाभों से वंचित रह सकते हैं तथा इससे असमानताएँ बनी रह सकती हैं। 
    • इसके अतिरिक्त कई क्षेत्रों में इस संधि के प्रावधानों की निगरानी करने एवं उन्हें लागू करने के लिये मज़बूत संस्थाओं का अभाव बना हुआ है। इसके साथ ही घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मानकों के टकराव से इसकी प्रभावशीलता और कम हो जाती है।

हाई सी ट्रीटी के कार्यान्वयन अंतराल को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?

  • तटीय एवं गहन-समुद्री गतिविधियों का एकीकरण: इस क्रम में तटीय राज्यों को बेहतर तालमेल के क्रम में घरेलू कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के साथ संरेखित करना चाहिये।
  • अनुपालन को प्रोत्साहित करना: क्षमता निर्माण हेतु ग्लोबल साउथ देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये।
    • धनी देशों को संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना चाहिये तथा विकास प्रयासों हेतु धन उपलब्ध कराना चाहिये।
  • प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत बनाना: मज़बूत निगरानी एवं जवाबदेही ढाँचे की स्थापना करनी चाहिये। EIA और लाभ-साझाकरण तंत्र की अंतर्राष्ट्रीय निगरानी के माध्यम से पारदर्शिता को बढ़ावा देना चाहिये।
  • राजनीतिक सहमति बनाना: भू-राजनीतिक तनावों को हल करना (विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर जैसे विवादित क्षेत्रों में) चाहिये। इस संधि की सफलता सुनिश्चित करने हेतु बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।

सामुद्रिक कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS)

  • UNCLOS (जिसे अक्सर "महासागरों का संविधान" कहा जाता है) समुद्रों एवं महासागरों के उपयोग के संबंध में राष्ट्रों के अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को परिभाषित करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय कानून है जिसमें संप्रभुता, समुद्री मार्ग अधिकार एवं आर्थिक उपयोग शामिल है।
  • इसके तहत समुद्री क्षेत्रों को पाँच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है- आंतरिक जल, प्रादेशिक समुद्र, सन्निहित क्षेत्र, अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) एवं गहन समुद्र।

Maritime_zones UNCLOS 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: हाई सी ट्रीटी सतत् विकास लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के साथ किस प्रकार संरेखित है तथा इसका भारत की ब्लू इकॉनमी पर क्या प्रभाव हो सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में समुद्री भू-भागीय विवाद और बढ़ता तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014)


भारत में बीमा क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

बीमा, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI), GDP, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, GST, वित्तीय साक्षरता, वर्ष 2047 तक सभी के लिये बीमा, वैधानिक निकाय, बीमा सुगम, बीमा वाहक, बीमा विस्तार, माइक्रोफाइनेंस, प्रधानमंत्री जन धन योजना, अटल पेंशन योजना, सुरक्षा बीमा योजना, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDC) अधिनियम, 2023

मेन्स के लिये:

बीमा क्षेत्र, भारत में बीमा क्षेत्र की चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, भारत में कई सामान्य बीमा कंपनियों के प्रमुखों ने देश में बीमा क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के लिये बैठक कर उद्योग के भविष्य के बारे में अपने विचार साझा किये।

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भारत में बीमा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • वैश्विक बाज़ार स्थिति: विश्व में 10वें सबसे बड़े बीमा बाज़ार तथा उभरते बाज़ारों में दूसरा सबसे बड़ा स्थान भारत का है, जिसका बाज़ार में अनुमानित 1.9% का योगदान है।
  • संभावना: भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के अनुसार, भारत एक दशक के भीतर जर्मनी, कनाडा, इटली और दक्षिण कोरिया को पीछे छोड़ते हुए छठा सबसे बड़ा बीमा बाज़ार बन जाएगा।
    • भारत में बीमा बाज़ार वर्ष 2026 तक 222 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • बीमा घनत्व: यह वर्ष 2001 में 11.1 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022 में 92 अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • इस वर्गीकरण में 70 अमेरिकी डॉलर का जीवन बीमा घनत्व तथा 22 अमेरिकी डॉलर का गैर-जीवन बीमा घनत्व शामिल है।
      • बीमा घनत्व प्रति व्यक्ति औसत बीमा प्रीमियम को मापता है।
  • बीमा प्रवेश: यह वर्ष 2000 में 2.7% से बढ़कर वर्ष 2022 में 4% हो गया है।
    • बीमा प्रवेश को सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में प्रीमियम के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): वर्ष 2014-23 के बीच बीमा क्षेत्र को लगभग 54,000 करोड़ रुपए (6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का FDI प्राप्त हुआ है।
    • वर्तमान में बीमा क्षेत्र में  74% FDI की अनुमति है।
  • बाज़ार संरचना: भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) एकमात्र सार्वजनिक क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनी है, जिसके पास वित्त वर्ष 2023 के लिये नए व्यवसाय प्रीमियम में 62.58% बाज़ार हिस्सेदारी है।
    • सामान्य और स्वास्थ्य बीमा में निजी क्षेत्र की बाज़ार हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2020 में 48.03% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 62.5 % हो गई है।

भारत के बीमा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • बीमा तक सीमित पहुँच: वैश्विक मानकों की तुलना में भारत में बीमा पहुँच काफी सीमित बनी हुई है।
    • वर्ष 2022 में भारत में बीमा पहुँच 4% थी जबकि वैश्विक स्तर पर यह 6.5% थी।
  • सामर्थ्य संबंधी चिंताएँ: उच्च लागत की धारणा (विशेष रूप से 18% GST दर के कारण) संभावित खरीदारों को हतोत्साहित कर रही है।
  • वितरण अकुशलताएँ: दूरदराज़ के क्षेत्रों (विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों ) तक इसकी पहुँच सीमित है। 
    • भारत की 65% जनसंख्या (अर्थात 90 करोड़ से अधिक लोग) ग्रामीण क्षेत्रों में है फिर भी इनमें से केवल 8%-10% लोगों के पास जीवन बीमा कवरेज है।
  • अनुकूलन का अभाव: विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलन विकल्पों का अभाव, संभावित पॉलिसीधारकों के लिये स्वास्थ्य बीमा को कम आकर्षक बनाता है।
  • धोखाधड़ी एवं जोखिम मूल्यांकन चुनौतियाँ: धोखाधड़ी वाले दावे एवं अकुशल जोखिम मूल्यांकन से लागत में वृद्धि होती है।
  • डिजिटल परिवर्तन की बाधाएँ: बीमा प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण से साइबर सुरक्षा जोखिम बढ़ जाता है जिससे यह क्षेत्र संवेदनशील डेटा की तलाश करने वाले दुर्भावनापूर्ण अभिकर्त्ताओं हेतु एक लक्ष्य बन जाता है।
  • सीमित वित्तीय साक्षरता: आम लोगों की सीमित वित्तीय साक्षरता से बीमा उत्पादों के संबंध में सूचित निर्णय लेने की क्षमता में बाधा आती है। 
    • भारत में 5 में से 1 स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी धारक, स्वयं पॉलिसी खरीदने के बावजूद भी पॉलिसी की मूल शर्तों से अनभिज्ञ है।

IRDAI क्या है?

  • वर्ष 1999 में स्थापित IRDAI एक नियामक संस्था है जिसका उद्देश्य बीमा ग्राहकों के हितों की रक्षा करना है।
    • यह IRDAI अधिनियम, 1999 के तहत एक वैधानिक निकाय है और यह वित्त मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में है।
  • यह बीमा-संबंधी गतिविधियों की निगरानी करते हुए बीमा उद्योग के विकास को विनियमित करता है।
  • प्राधिकरण की शक्तियाँ और कार्य IRDAI अधिनियम, 1999 एवं बीमा अधिनियम, 1938 में निर्धारित हैं।

वर्ष 2047 तक सभी के लिये बीमा

  • IRDAI का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 'सभी के लिये बीमा' सुनिश्चित करने के साथ यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक नागरिक के पास व्यापक जीवन, स्वास्थ्य एवं संपत्ति बीमा कवरेज हो तथा उद्यमों को उचित बीमा समाधानों के साथ समर्थन दिया जाए।
  • 3 स्तंभ: बीमा ग्राहक (पॉलिसीधारक), बीमा प्रदाता (बीमाकर्ता) और बीमा वितरक (मध्यस्थ) 
  • फोकस क्षेत्र: 
    • सही ग्राहकों को सही उत्पाद उपलब्ध कराना
    • मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना
    • बीमा क्षेत्र में कारोबार को सुलभ बनाना
    • यह सुनिश्चित करना कि विनियामक संरचना बाज़ार की गतिशीलता के अनुरूप हो
    • नवाचार को बढ़ावा देना
    • प्रौद्योगिकी को मुख्यधारा में लाते हुए तथा सिद्धांत आधारित नियामक व्यवस्था की ओर बढ़ते हुए प्रतिस्पर्द्धा और वितरण दक्षता को बढ़ावा देना।

बीमा कवरेज बढ़ाने के लिये सरकार की क्या पहल हैं? 

आगे की राह

  • उत्पाद सरलीकरण: व्यापक दर्शकों को आकर्षित करने के लिये सरल, समझने में आसान उत्पाद विकसित करना, विशेष रूप से ग्रामीण और कम पहुँच वाले क्षेत्रों के लिये सामर्थ्य और वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करना।
  • पहुँच में वृद्धि: वितरण चैनलों को बेहतर बनाने के लिये बीमा सुगम, बीमा वाहक और बीमा विस्तार जैसे कार्यक्रमों का विस्तार करना, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में।
    • वे बीमा ट्रिनिटी का हिस्सा हैं, जो बीमा उत्पादों को जनता के लिये अधिक सुलभ बनाने हेतु IRDAI की एक परियोजना है।
  • बैंकएश्योरेंस विस्तार: कॉर्पोरेट एजेंटों को बैंकों और माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के साथ सहयोग करके बीमाकर्त्ता साझेदारी का विस्तार करने की अनुमति देना।
  • सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना: प्रधानमंत्री जन धन योजना, अटल पेंशन योजना और सुरक्षा बीमा योजना जैसे मौजूदा कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना ताकि सुभेद्द आबादी को बीमा के दायरे में लाया जा सके।
  • प्रौद्योगिकी अपनाना: हाइपर-वैयक्तिकृत पेशकशों, दावों के प्रसंस्करण और धोखाधड़ी का पता लगाने के लिये AI-संचालित उपकरणों का उपयोग करना, जिससे तेज़ और अधिक कुशल सेवा वितरण सुनिश्चित हो सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में बीमा क्षेत्र के सामने आने वाली मुख्य चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये क्या रणनीति अपनाई जा सकती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भारत में, किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)

  1. यदि कोई किसी मैलवेयर कंप्यूटर तक उसकी पहुँच को बाधित कर देता है तो कंप्यूटर प्रणाली को पुनः प्रचालित करने में लगने वाली लागत
  2. यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी शरारती तत्त्व द्वारा जानबूझ कर कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाया गया है तो एक नए कंप्यूटर की लागत
  3. यदि साइबर बलात्-ग्रहण होता है तो इस हानि को न्यूनतम करने के लिये विशेष परामर्शदाता की की सेवाएँ पर लगने वाली लागत
  4. यदि कोई तीसरा पक्ष मुकदमा दायर करता है तो न्यायालय में बचाव करने में लगने वाली लागत

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: B


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020) 

  1. आधार मेटाडेटा को तीन महीने से अधिक समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता है। 
  2. आधार के डेटा को साझा करने के लिये राज्य निजी निगमों के साथ कोई अनुबंध नहीं कर सकता है। 
  3. बीमा उत्पाद प्राप्त करने के लिये आधार अनिवार्य है। 
  4. भारत की संचित निधि से लाभ प्राप्त करने के लिये आधार अनिवार्य है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 3

उत्तर: B 


मेन्स

प्रश्न: सार्विक स्वास्थ्य सरंक्षण प्रदान करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी परिसीमाएँ हैं। क्या आपके विचार में खाई को  पाटने में निजी क्षेत्र सहायक हो सकता है? आप अन्य कौन से व्यवहार्य विकल्प सुझाएँगे? (2015)

प्रश्न: वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इरडा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013)