सुक्ष्मजीवीयों का उपयोग कर दवाओं का निर्माण

संदर्भ
चंडीगढ़ स्थित सीएसआईआर-‘इंस्टिट्यूट ऑफ़ माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी’(IM tech) एक प्रोग्राम पर कार्य कर रहा है। इस प्रोग्राम में सूक्ष्मजीवों के नमूनों को एकत्रित कर चिकित्सकीय उत्पाद अथवा दवाओं का विकास किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • जहाँ मानव शरीर में सूक्ष्मजीवियों की लगभग 3000 से 4000 प्रजातियाँ (अधिकांश प्रजातियाँ जठरांत्र में उपस्थित रहती हैं) पाई जाती हैं। जीवाणुओं की इन प्रजातियों में से कुछ प्रजातियाँ ही हानिकारक हैं। 
  • वैश्विक प्रोबायोटिक्स उद्योग ने पहले से ही चिकित्सा और उपचारात्मक उद्देश्यों में जीवाणुओं की कुछ प्रजातियों का उपयोग करना आरंभ कर दिया है। 
  • भारत में प्रोबायोटिक्स खाद्य और पेय पदार्थों के सबसे बड़े उत्पादक मदर डेरी, अमूल, डैनॉन याकुल्ट और नेस्ले इंडिया हैं।
  • दही और कई आहार पूरक बनाने के लिये वे लेक्टोबेसिलस और बायफिडोबेक्टेरियम नामक जीवाणु का उपयोग करते हैं।

क्या है प्रोबायोटिक्स?

  • प्रोबायोटिक ऐसे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं, जो प्राकृतिक तौर पर हमारी आँतों में पाए जाते हैं। साथ ही ये कुछ खाद्य पदार्थों में भी या तो प्राकृतिक रूप से उपस्थित होते हैं या फिर इन्हें उन खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है।
  • ये हमारे शरीर में हानिकारक बैक्टेरिया को बढ़ने से रोकते हैं। डेयरी उत्पाद जैसे दूध, दही व कुछ पौधों में प्रोबायोटिक बैक्टेरिया होते हैं। इनका सेवन स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभकारी है।

क्यों ज़रूरी हैं प्रोबायोटिक?

  • उल्लेखनीय है कि यदि किसी बीमारी अथवा किसी दवाई के असर की वज़ह से हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद प्रोबायोटिक्स में कमी आ जाती है तो डायरिया तथा मूत्र नली संबंधी इंफेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • ऐसे में इनकी प्राप्ति के लिये प्रोबायोटिक संपन्न पदार्थों का सेवन लाभकारी होता है।   हमारी बड़ी आँत असंख्य जीवाणुओं से भरी हुई होती है। इनमें से कुछ हमारे शरीर के लिये रोग का कारण भी हो सकते हैं।
  • लेकिन जो अच्छे जीवाणु होते हैं, वे भोजन को पचाने का काम करते हैं तथा पाचन तंत्र को संतुलित रखते हैं।
  • प्रोबायोटिक भोज्य पदार्थों के सेवन से आँतों की कार्यप्रणाली को सशक्त बनाया जा सकता है, संक्रमण से बचाव किया जा सकता है।

निष्कर्ष

  • शोधों से ज्ञात हुआ है कि प्रोबायोटिक उत्पादों का सेवन करने से बड़ी आँत (कोलेन) का कैंसर के होने की संभावना बेहद कम हो जाती है।
  • इसका सेवन मधुमेह, लोअर रेस्पेरिटी इंफेक्शन, इरीटेबल बॉवेल सिंड्रोम आदि के बचाव में बहुत कारगर सिद्ध हुआ है।
  • इसके नियमित सेवन से कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप की वृद्धि भी रुकती है।
  • प्रोबायोटिक का इस्तेमाल मुख्यत: डेयरी प्रोडक्ट में ही होता है, जैसे दूध व दही में। लेकिन इस रिसर्च से सुक्ष्मजीवियों के चिकित्सीय उपयोग की सम्भावनाएँ बढ़ गई हैं।