अटलांटिक महासागर में प्लास्टिक प्रदूषण
प्रिलिम्स के लिये:माइक्रोप्लास्टिक, माइक्रोबीड्स, प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव मेन्स के लिये:प्लास्टिक प्रदूषण |
चर्चा में क्यों?
बहु-विषयक वैज्ञानिक शोध पत्रिका 'नेचर कम्युनिकेशन' (Nature Communication) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, अटलांटिक महासागर में 11.6-21.1 मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषक होने का अनुमान है।
प्रमुख बिंदु:
- अटलांटिक महासागर में 200 मीटर की गहराई तक किये गए मापन में 11.6 - 21.1 मिलियन टन माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, अटलांटिक महासागर में 17-47 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट हो सकता है।
प्लास्टिक प्रदूषण का अनुमान:
- वैज्ञानिकों ने तीन प्रकार के प्लास्टिक - पॉलीइथाइलीन, पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीस्टाइनिन को अध्ययन का आधार बनाया।
- इन तीन प्रकार के प्लास्टिक का ही पैकेजिंग के लिये सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
- इन तीन प्रदूषकों की समुद्र में 200 मीटर की गहराई तक निलंबित मात्रा के आधार पर अटलांटिक महासागर में प्लास्टिक प्रदूषण का अनुमान लगाया गया है।
- अटलांटिक महासागर को प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा का अनुमान दो आधारों पर लगाया गया है:
- प्रथम, वर्ष 1950-2015 से प्लास्टिक कचरे के उत्पादन के रुझान;
- दूसरा, ऐसा माना गया कि विगत 65 वर्षों में वैश्विक प्लास्टिक कचरे का 0.3-0.8% अटलांटिक महासागर ने प्राप्त किया है।
माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic):
- माइक्रोप्लास्टिक्स पाँच मिलीमीटर से भी छोटे (तिल के बीज के आकार के) आकार के प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं।
- ये विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होते हैं, अत: इनके प्राप्ति स्रोत का निर्धारण करना बहुत कठिन होता है।
- प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में उच्च स्तर के माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं।
माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण:
- सूर्य से प्राप्त पराबैंगनी विकिरणों, वायु-धाराओं, जल-धाराओं और अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव में प्लास्टिक के टुकड़े छोटे कणों, जिसे माइक्रोप्लास्टिक (5 मिमी से छोटे कण) या नैनोप्लास्टिक (100 नैनो मीटर से छोटे कण) कहा जाता है, में टूट जाते हैं।
- माइक्रोबीड्स भी एक प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स होते हैं जिनका आकार एक मिलीमीटर से कम होता हैं, जो सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, औद्योगिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न हो सकते हैं।
- ये छोटे कण आसानी से जल निस्पंदन प्रणालियों से गुजरते हैं और समुद्र और झीलों में पहुँच जाते हैं।
प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोत:
- स्थल आधारित:
- समुद्री प्लास्टिक के मुख्य स्रोत मुख्यत: स्थल आधारित होते हैं जिसमे नगरीय अपशिष्ट, नदी अपवाह, समुद्र तट पर पर्यटन, अपर्याप्त अपशिष्ट निपटान और प्रबंधन, औद्योगिक गतिविधियों, निर्माण और अवैध डंपिंग आदि शामिल हैं।
- महासागर आधारित:
- महासागर आधारित प्लास्टिक मुख्य रूप से मछली पकड़ने के उद्योग, समुद्री गतिविधियों और जलीय कृषि से उत्पन्न होता है।
प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव:
- प्लास्टिक को विघटित होने में सैकड़ों से हज़ारों वर्ष लग सकते हैं, यह प्लास्टिक के प्रकार और स्थान जहाँ इसे डंप किया गया है, पर निर्भर करता है।
- समुद्री जीवन (Marine Life):
- पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न समाचार रिपोर्टों से पता चला है कि समुद्री जानवर जैसे व्हेल, समुद्री पक्षी और कछुए द्वारा अनजाने में प्लास्टिक को निगलने से उनकी मृत्यु का कारण बनी है।
- तटीय पर्यटन (Coastal Tourism):
- प्लास्टिक कचरा पर्यटन स्थलों के सौंदर्य मूल्य को कम करता है, जिससे पर्यटन से संबंधित आय में कमी होती है।
- मानव स्वास्थ्य (Human Health):
- समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के हानिकारक होता है यदि यह खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है।
- उदाहरणत: माइक्रोप्लास्टिक्स नल के पानी, बीयर और यहाँ तक कि नमक में भी हो सकते हैं।
अध्ययन का महत्त्व:
- प्लास्टिक के छोटे कण आसानी से अधिक गहराई तक समुद्र में पहुँच सकते हैं तथा समुद्री प्रजातियों यथा ज़ूप्लैंकटन के माध्यम से खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर सकते है।
- ज़ूप्लैंकटन, फाइटोप्लैंकटन का सेवन करते हैं जबकि बड़े जानवर, जैसे- मछली, व्हेल, स्क्विड, शेलफिश आदि द्वारा जूप्लैंकटन सेवन किया जाता है
- माइक्रोप्लास्टिक्स के अलावा अन्य प्रकार की प्लास्टिक गहरे समुद्र में और तलछट में हो सकते हैं अत: अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि समुद्र के प्लास्टिक के स्रोत और भंडार (Inputs and Stocks) दोनों ही अनुमानित मात्रा की तुलना में बहुत अधिक हैं।
- सभी आकार के प्लास्टिक संदूषकों तथा बहुलक समूहों की महासागरों में उपस्थिति का निर्धारण और उनसे उत्पन्न संभावित जोखिम का आकलन करना पर्यावरण स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
- माइक्रोप्लास्टिक अध्ययन का एक उभरता हुआ क्षेत्र है, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इसके सटीक जोखिम स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं हैं। अत: इस दिशा में व्यापक शोध तथा समस्या समाधान की दिशा में कार्य किया जाना चाहिये।