बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश से संबंधित नए नियम

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण

मेन्स के लिये

भारतीय बीमा क्षेत्र और उसे संबंधित चुनौतियाँ, इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने भारतीय बीमा कंपनी (विदेशी निवेश) नियम, 2015 में संशोधन करते हुए बीमा क्षेत्र में अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये अंतिम नियमों पर स्पष्टीकरण दिया है।

  • संसद ने बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने के लिये बीमा संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया था।
  • वित्त मंत्रालय ने 'भारतीय बीमा कंपनी (विदेशी निवेश) संशोधन नियम, 2021' को अधिसूचित किया है।

प्रमुख बिंदु

नए नियमों संबंधी मुख्य प्रावधान

  • प्रबंधन का निवासी भारतीय होना अनिवार्य
    • विदेशी निवेश प्राप्त करने वाली भारतीय बीमा कंपनी के लिये यह अनिवार्य है कि उसके अधिकांश निदेशक, प्रमुख प्रबंधन, बोर्ड के अध्यक्ष में से कम-से-कम एक, प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी- निवासी भारतीय नागरिक हों।
  • विदेशी निवेश का अर्थ
    • विदेशी निवेश का अर्थ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरह के विदेशी निवेश से होगा।
      • किसी विदेशी द्वारा किये गए प्रत्यक्ष निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता है, जबकि एक भारतीय कंपनी (जो किसी विदेशी व्यक्ति के स्वामित्व अथवा नियंत्रण में है) द्वारा किसी अन्य भारतीय इकाई में निवेश को अप्रत्यक्ष विदेशी निवेश माना जाता है।

महत्त्व

  • विदेशी स्वामित्व की सीमा को 74 प्रतिशत तक बढ़ाने से भारत में बीमा उत्पादों के संदर्भ में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल करने में मदद मिलेगी। साथ ही यह भारत में बीमा उत्पादों की लागत को कम करने में भी मददगार साबित होगा। 
  • यह भारतीय प्रमोटरों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, जो उन्हें प्रबंधन और बोर्ड पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करेगा, साथ ही अतिरिक्त पूंजी प्रवाह से उन्हें अपने उत्पाद को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
  • यह छोटी बीमा कंपनियों या उन लोगों को भी लाभांवित करेगा, हाँ प्रमोटरों के पास अधिक पूंजी लगाने की क्षमता नहीं है, इस तरह ये नियम उन कंपनियों को उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाएंगे। 
  • इससे स्थानीय निजी बीमा कंपनियों को तेज़ी से बढ़ने और पूरे भारत में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने में मदद मिलने की संभावना है।

भारत में बीमा उत्पादों की उपस्थिति

  • भारत में बीमा उत्पादों की उपस्थिति वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का तकरीबन 3.7 प्रतिशत है, जबकि विश्व औसत लगभग 6.31 प्रतिशत है।
  • वर्तमान में जीवन बीमा क्षेत्र में वृद्धि 11-12 प्रतिशत तक सीमित हो गई है, जो कि विकास वित्त वर्ष 2020 तक 15-20 प्रतिशत पर था, क्योंकि महामारी ने ग्राहकों को स्टॉक या जीवन बीमा पॉलिसियों पर खर्च करने के बजाय नकदी बचाने के लिये मजबूर किया है।
  • 31 मार्च, 2021 तक भारत में केवल 24 जीवन बीमाकर्त्ता और 34 गैर-जीवन प्रत्यक्ष बीमाकर्ता मौजूद थे, जबकि राष्ट्रीयकरण के समय देश में 243 जीवन बीमा कंपनियाँ (1956) और 107 गैर-जीवन बीमा कंपनियाँ (1973) मौजूद थीं।

अन्य संबंधित प्रयास (मॉडल इंश्योरेंस विलेज) 

  • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा संबंधी सेवाओं की उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिये ‘मॉडल इंश्योरेंस विलेज’ (MIV) की अवधारणा को प्रस्तुत किया है।
  • इस अवधारणा के तहत ग्रामीणों के समक्ष आने वाले सभी बीमा योग्य जोखिमों के लिये व्यापक बीमा सुरक्षा प्रदान करने तथा रियायती अथवा सस्ती दरों पर बीमा कवर उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा।

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI)

  • मल्होत्रा ​​समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के बाद, वर्ष 1999 में बीमा उद्योग को विनियमित करने और उसका विकास सुनिश्चित करने के लिये एक स्वायत्त निकाय के रूप में ‘बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण’ (IRDA) का गठन किया गया था।
  • अप्रैल 2000 में IRDA को एक सांविधिक निकाय के रूप में निगमित किया गया।
  • IRDA के प्रमुख उद्देश्यों में बीमा बाज़ार की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उपभोक्ता की पसंद और कम प्रीमियम के माध्यम से ग्राहकों की संतुष्टि को बढ़ाने के साथ ही प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना भी शामिल है।
  • इसका मुख्यालय हैदराबाद में स्थित है।

आगे की राह

  • सॉवरेन वेल्थ फंड, ग्लोबल पेंशन फंड और बीमा फर्मों सहित लंबी अवधि के निवेशकों से निवेश के लिये भारत में बीमा की आवश्यक मांग होनी अनिवार्य है, अतः देश में बीमा उत्पादों की आवश्यकता को लेकर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। 
  • भारत में वैश्विक उत्पादों के विकास और उपलब्धता एवं बेहतर उपस्थिति के लिये बीमा क्षेत्र को पूंजी एवं अंतर्राष्ट्रीय साझेदार की बड़ी भागीदारी की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस