डेली न्यूज़ (27 Aug, 2024)



तिब्बत के सेडोंगपु घाटी में बृहत् क्षरण

प्रिलिम्स के लिये:

बृहत् क्षरण, हिमस्खलन, ग्लेशियर, गॉर्ज, नाला, सेडोंगपु नाला, भूकंप, कटाव

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन, महत्त्वपूर्ण भूभौतिकीय घटनाएँ, जलवायु परिवर्तन 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों

जर्नल ऑफ रॉक मैकेनिक्स एंड जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में वर्ष 2017 से तिब्बत के सेडोंगपु घाटी (Sedongpu Gully) में बृहत् क्षरण की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के संबंध में चिंता जताई गई है, जिसका प्रभाव क्षेत्र की निकटता और नदी प्रणालियों के कारण भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर भी पड़ सकता है।

अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?

  • बृहत् क्षरण की आवृत्ति में वृद्धि: अध्ययन में वर्ष 2017 के बाद से सेडोंगपु घाटी में बृहत् क्षरण की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
    • वर्ष 1969 से 2023 तक के सैटेलाइट डेटा का उपयोग करते हुए, अध्ययन ने 19 प्रमुख बृहत् क्षरण की घटनाओं की पहचान की, जिन्हें बर्फ-चट्टान हिमस्खलन, बर्फ-मोराइन हिमस्खलन और ग्लेशियर मलबे के प्रवाह में वर्गीकृत किया गया। उल्लेखनीय रूप से इनमें से 68.4% घटनाएँ वर्ष 2017 के बाद हुईं।
    • वर्ष 2017 से सेडोंगपु घाटी के जलग्रहण क्षेत्र में 700 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक मलबा जमा हो चुका है। मलबे की इतनी बड़ी मात्रा का निचले नदी तंत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: सेडोंगपु घाटी में सबसे पहले दर्ज की गई बृहत् क्षरण की घटना वर्ष 1974 और 1975 के बीच हुई थी तथा वर्ष 1987 में फिर से उल्लेखनीय गतिविधि शुरू हुई।
  • बढ़ी हुई गतिविधि के कारण: बृहत् क्षरण की घटनाओं में वृद्धि का कारण क्षेत्र का दीर्घकालिक तापमान बढ़ना और भूकंपीय घटनाओं में वृद्धि है।
    • सेडोंगपु बेसिन में अधिकांशतः प्रोटेरोज़ोइक (2.5 बिलियन से 541 मिलियन वर्ष पूर्व) संगमरमर मौजूद है तथा स्थितियाँ दर्शाती हैं कि इसकी भूमि की सतह का तापमान -5º से -15º सेल्सियस के बीच रहता है, जो वर्ष 2012 से पहले शायद ही कभी 0º सेल्सियस से अधिक रहा हो।
    • निकटवर्ती मौसम केंद्रों से प्राप्त हालिया आँकड़ों से पता चला है कि इस क्षेत्र में वार्षिक तापमान वर्ष 1981-2018 के दौरान 0.34º से 0.36º सेल्सियस की दर से बढ़ा है, जो वैश्विक औसत (1970 से वैश्विक औसत तापमान प्रति शताब्दी 1.7°C की दर से बढ़ रहा है) से अधिक है।
  • त्सांगपो नदी पर प्रभाव: बृहत् क्षरण की घटनाओं से उत्पन्न मलबे ने त्सांगपो नदी और उसकी सहायक नदियों को अस्थायी रूप से अवरुद्ध कर दिया है, जिससे निचले इलाकों में, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और असम में, संभावित बाढ़ की चिंता पैदा हो गई है।
    • उल्लेखनीय है कि ऐसी अवरोधों के कारण वर्ष 2000 में अरुणाचल प्रदेश और असम में विनाशकारी बाढ़ आई थी।

सेडोंगपु 

  • सेडोंगपु घाटी तिब्बत में सेडोंगपु ग्लेशियर के जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है।
    • घाटी एक भू-आकृति है, जो बहते पानी, बृहत् गति या दोनों के कारण कटाव के कारण निर्मित होती है।
  • यह यारलुंग ज़ंगबो या त्सांगपो नदी में मिल जाती है, जहाँ यह ग्रेट बेंड नामक एक तीव्र मोड़ लेती है, जबकि माउंट नामचा बरवा (ऊँचाई 7,782 मीटर) और माउंट ग्याला पेरी (7,294 मीटर) के आसपास बहती है और 505 किलोमीटर लंबी और 6,009 मीटर गहरी गॉर्ज बनाती है। यह धरती की सबसे गहरी गॉर्ज में से एक है।
  • माउंट नामचा बरवा (7,782 मीटर ऊँचाई) और माउंट ग्याला पेरी (7,294 मीटर ऊँचाई) के समीप बहते हुए यह यारलुंग ज़ंगबो या त्सांगपो नदी में गिरती है, जहाँ यह तीव्र मोड़ लेती है, जिसे ग्रेट कैनियन के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप एक घाटी निर्मित हुई जो 505 किलोमीटर लंबी और 6,009 मीटर गहरी है। यह पृथ्वी की सबसे गहरी घाटियों में से एक है।
  • त्सांगपो नदी, जिसे सियांग नदी के नाम से भी जाना जाता है, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर ग्रेट कैनियन से मिलती है।
    • असम में आगे की ओर सियांग नदी दिबांग और लोहित नदियों से मिलकर ब्रह्मपुत्र नदी का निर्माण करती है, जो बांग्लादेश में यमुना के नाम से जानी जाती है।

बृहत् क्षरण क्या है?

  • परिभाषा: बृहत् क्षरण (Mass Wasting) का तात्पर्य  गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के तहत शैल, मृदा और मलबे का ढाल के अनुरूप संचलन से है। इसमें ढाल पर विभिन्न प्रकार के संचलन शामिल हैं जैसे शैल पात (Rock Fall), अवसर्पण (Slump) और मलबे का प्रवाह।
  • बृहत् क्षरण के प्रमुख कारक: अतिवृष्टि मृदा को संतृप्त कर सकती है, जिससे उसका भार बढ़ सकता है और यह संचलन प्रवण हो सकता है।
    • बर्फ के तेज़ी से पिघलने से मृदा में जल की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
    • भूकंप (भूकंपीय सक्रियता) सतह में कंपन उत्पन्न कर सकता है और भूस्खलन को उत्प्रेरित कर सकता है।
    • ज्वालामुखी उद्गार और उससे संबंधित भूकंपीय घटनाओं के माध्यम से ढलानों में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
    • जल निकायों द्वारा कटाव से ढलानों का क्षरण हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर अपरदन हो सकता है।
  • बृहत् क्षरण की घटनाओं के प्रकार:
    • शैल पात अथवा टॉपल: इसमें शैल के मलबे का ढाल के अनुरूप पात, उच्छलन और झुलाव शामिल है। यह आकस्मिक हो सकता है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
    • भूस्खलन और शैल स्खलन: इन घटनाओं में मृदा और शैल का ढाल के अनुरूप बृहत् फिसलन होता है।
    • मलबे का प्रवाह: मलबे के प्रवाह का तात्पर्य जल से संतृप्त शैल के मलबे और मृदा का ढाल के अनुरूप तीव्र संचलन से है, जो आद्र सीमेंट जैसा प्रतीत होता है। यह तेज़ी से आगे बढ़ता है और अत्यंत विध्वंशकारी हो सकता है।
    • हिमस्खलन: हिमस्खलन गुरुत्वाकर्षण के तहत शैल या हिम का आकस्मिक बृहत् संचलन है। यह पर्वतीय और हिमनद दोनों क्षेत्रों में हो सकता है।
    • ढाल का मंद विरूपण (Creep): यह ढाल से मृदा और शैल का एक क्रमिक, मंद संचलन है, जो अक्सर अल्प अवधि के लिये अगोचर होता है किंतु इसके परिणाम दीर्घकालिक होते हैं।

तिब्बत में बृहत् क्षरण की घटनाएँ भारत और बांग्लादेश को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

  • डाउनस्ट्रीम प्रभाव: इन घटनाओं से उत्पन्न तलछट त्सांगपो नदी और उसकी सहायक नदियों को प्रभावित कर सकती है।
    • यह नदी भारत में प्रवाहित होती है और ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है, जो विश्व की सबसे अधिक तलछट वाली नदियों में से एक है।
    • चीन की त्सांगपो पर 60 गीगावाट की परियोजना स्थापित करने की योजना है, जिसकी क्षमता यांग्त्ज़ी पर चीन की तीन घाटियों की परियोजना की क्षमता से तीन गुना अधिक होगी, जो विश्व का सबसे बड़ा जलविद्युत संयंत्र है।
      • यह भूकंपीय रूप से अस्थिर क्षेत्र, जो वर्ष 1950 में 8.6 तीव्रता के असम-तिब्बत भूकंप और वर्ष 2017 में 6.4 तीव्रता के न्यिंगची भूकंप से प्रभावित हुआ था, में त्सांगपो-सियांग-ब्रह्मपुत्र-जमुना नदी प्रणाली में अवसादन बढ़ सकता है, जिसके भारत और बांग्लादेश के लिये विनाशकारी परिणाम होंगे।
  • बाढ़ और नौवहन संबंधी मुद्दे: ब्रह्मपुत्र नदी गुवाहाटी के पांडु में 800 टन से अधिक तलछट लाती है, जो बांग्लादेश के बहादुराबाद में बढ़कर एक अरब टन से अधिक हो जाती है।
    • बढ़ते अवसादन के कारण असम के मैदानों में नदी का प्रवाह अधिक तीव्र हो सकता है, जिससे तटों का अधिक अपरदन हो सकता है।
    • अवसादन के कारण नदी तल ऊपर उठ सकता है, जिससे बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो सकता है तथा वर्षा ऋतु में चैनल रेत और गाद से अवरुद्ध हो सकते हैं, जिससे नौवहन कठिन हो सकता है तथा मत्स्यन से संबंधित आजीविका प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह

  • अध्ययन में अवसादन के प्रबंधन तथा ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर उनके प्रभाव का आकलन करने के लिये भूभौतिकीय घटनाओं की निरंतर निगरानी की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
    • इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में बृहत् क्षरण की प्रवृत्तियों एवं प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
  • ढलानों को स्थिर करने और अपरदन को कम करने हेतु वनीकरण प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिये। उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के विकास (निर्माण आदि) से बचने के लिये सतत् भूमि उपयोग योजना को लागू करना चाहिये
  • मृदा अपरदन को रोकने और बृहत् क्षरण के जोखिम को कम करने के लिये सीढ़ीदार कृषि, बाँधों की जाँच तथा गैबियन जैसे अपरदन नियंत्रण उपायों को अपनाना चाहिये
  • संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने और शमन उपायों को प्राथमिकता देने के लिये नियमित रूप से आपदा जोखिम आकलन करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सेडोंगपु घाटी में बृहत् क्षरण की घटनाओं में वृद्धि का भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में नदी तंत्रों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी/नदियाँ है/हैं? (2016

  1. दिबांग 
  2. कामेंग 
  3. लोहित

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी घाट में भूस्खलन के कारणों के बीच अंतरों को बताइये। (2021)


सीमा-पार भुगतान

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता बोर्ड, UPI-पेनाउ, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी, अनिवासी भारतीय, नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर, भारतीय रिज़र्व बैंक, भुगतान एग्रीगेटर्स, प्रोजेक्ट नेक्सस

मेन्स के लिये:

वैश्विक व्यापार में सीमा-पार भुगतान और चुनौतियाँ, वैश्विक सीमा-पार भुगतान प्रणालियों में भारत की भूमिका

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों

हाल ही में वित्तीय स्थिरता बोर्ड (Financial Stability Board- FSB) ने सीमा-पार भुगतान (Cross-Border Payments- CBP) प्रणालियों में अकुशलताओं को दूर करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। वैश्विक सीमा-पार भुगतान बाज़ार वर्ष 2032 तक लगभग दोगुना होने वाला है, इसलिये इन प्रणालियों में सुधार करना एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गया है।

सीमा-पार भुगतान क्या हैं?

  • परिचय: CBP ऐसे लेनदेन हैं जिनमें भुगतानकर्त्ता और प्राप्तकर्त्ता अलग-अलग देशों में स्थित होते हैं। ये लेनदेन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, निवेश और व्यक्तिगत हस्तांतरण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • प्रकार
    • थोक सीमा-पार भुगतान: यह आमतौर पर वित्तीय संस्थानों के बीच, उधार लेने, देने और विदेशी मुद्रा, इक्विटी और वस्तुओं में व्यापार जैसी गतिविधियों के लिये उपयोग किया जाता है।
    • इसका उपयोग सरकारों और बड़ी कंपनियों द्वारा आयात, निर्यात और वित्तीय बाज़ारों से संबंधित महत्त्वपूर्ण लेनदेन के लिये भी किया जाता है।
    • खुदरा सीमा-पार भुगतान: इसमें आमतौर पर व्यक्ति और व्यवसाय शामिल होते हैं, जिसमें व्यक्ति-से-व्यक्ति (P2P), व्यक्ति-से-व्यवसाय (P2B) और व्यवसाय-से-व्यवसाय (B2B) लेनदेन शामिल हैं।
    • इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण धनप्रेषण है, जिसमें प्रवासी अपने देश को धन भेजते हैं।
  • महत्त्व: वैश्विक CBP बाज़ार, जिसका मूल्य वर्ष 2022 में 181.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, वर्ष 2032 तक 356.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो वार्षिक 7.3% की वृद्धि दर को दर्शाता है। यह वृद्धि वैश्विक आर्थिक गतिविधियों और वित्तीय अंतःक्रियाओं के विस्तार को दर्शाती है।
    • आपूर्ति शृंखला, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और ई-कॉमर्स के वैश्वीकरण के कारण आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने के लिये कुशल सीमा-पार भुगतान आवश्यक हो गया है।
  • कार्य पद्धति:
    • CBP के पारंपरिक मॉडल::
      • प्रत्यक्ष बैंक हस्तांतरण: अंतर्राष्ट्रीय हस्तांतरण की सुविधा के लिये बैंक अन्य देशों में अपने समकक्षों के साथ खाते रखते हैं।
        • भौतिक रूप से धन हस्तांतरित करने के बजाय, विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में खातों के बीच धनराशि जमा और  निकाली की जाती है।
      • संवाददाता बैंकिंग: जब दो बैंकों के बीच सीधा संबंध नहीं होता है, तो वे लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिये एक संवाददाता बैंक का उपयोग करते हैं, जिसके खाते दोनों बैंकों के पास होते हैं। इससे लेनदेन शृंखला में कई परतें जुड़ जाती हैं। किंतु  उच्च लागत और विनियामक बोझ के कारण इसमें गिरावट आ रही है।
      • एकल प्रणाली मॉडल: यह मॉडल एकल भुगतान सेवा प्रदाता पर निर्भर करता है, लेकिन इसमें अंतर-संचालन संबंधी समस्याएँ होती हैं।
      • भुगतान अवसंरचनाओं को आपस में जोड़ना: निर्बाध लेनदेन के लिये राष्ट्रीय प्रणालियों को जोड़ता है, लेकिन इसमें तकनीकी और नियामक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • पीयर-टू-पीयर प्रणालियाँ: प्रत्यक्ष भुगतान के लिये वितरित खाता बही जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती हैं, जो पारंपरिक अकुशलताओं के लिये एक संभावित समाधान प्रदान करती हैं।
    • नये युग के मॉडल:
      • तीव्र भुगतान प्रणालियों (FPS) को जोड़ना: सिंगापुर और थाईलैंड के बीच पेनाउ-प्रॉम्प्टपे लिंकेज तथा भारत एवं सिंगापुर के बीच UPI-PayNow लिंकेज जैसी पहल वास्तविक समय में सीमा-पार निधि हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती हैं।
      • सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (Central Bank Digital Currencies- CBDC): अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन को सुव्यवस्थित करने की क्षमता के लिये CBDC की खोज की जा रही है।
      • वितरित खाता प्रौद्योगिकी (DLT): DLT परियोजनाएँ, जिन्हें अक्सर CBDC के साथ जोड़ा जाता है, का उद्देश्य लेनदेन की गति, सुरक्षा और लागत प्रभावशीलता को बढ़ाना होता है।
        • DLT एक नेटवर्क डेटाबेस में एक साथ पहुँच, सत्यापन और रिकॉर्ड अद्यतन करने की अनुमति देता है, जिससे उपयोगकर्त्ता परिवर्तन देख सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि परिवर्तन किसने किये हैं, डेटा का ऑडिट करने की आवश्यकता कम हो जाती है, डेटा की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है और केवल उन लोगों को पहुँच प्रदान की जाती है, जिन्हें इसकी आवश्यकता होती है।

सीमा-पार भुगतान प्रणालियों के संबंध में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कानूनी और विनियामक अनुपालन: भुगतान को विभिन्न न्यायक्षेत्रों में अलग-अलग घरेलू कानूनों का पालन करना होता है, जिसमें धन शोधन निवारण (Anti-Money Laundering- AML), ग्राहक की उचित तत्परता, डेटा साझाकरण तथा निपटान प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
    • AML और आतंकवाद-रोधी वित्तपोषण (Counter-Terrorist Financing- CFT) ढाँचे के खंडित कार्यान्वयन से तंत्र  डिज़ाइन और कार्यक्षमता में संघर्ष पैदा होता है।
    • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) की 2023 रिपोर्ट में असंगत वायर ट्रांसफर रिकॉर्डकीपिंग के मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है, जो ग्राहक पहचान और प्रतिबंध स्क्रीनिंग को प्रभावित करता है।
  • उच्च लागत: सीमा-पार लेनदेन में कई शुल्क शामिल हो सकते हैं, जिनमें मध्यस्थ बैंकों के शुल्क और मुद्रा रूपांतरण लागत शामिल हैं।
    • लेनदेन को सुविधाजनक बनाने के लिये बैंकों को विभिन्न मुद्राओं में पूंजी रखने की आवश्यकता होती है, जिससे संसाधन बाधित होते हैं और लागत बढ़ जाती है।
    • प्रच्छन्न शुल्क और अस्पष्ट लागत विवरण के कारण उपयोगकर्त्ताओं के लिये सीमा-पार लेनदेन की सटीक लागत का निर्धारण करना कठिन हो सकता है।
  • कम गति: कई मध्यस्थों की भागीदारी और टाइम ज़ोन के अंतर के कारण लेनदेन पूरा होने में कई दिन लग सकते हैं।भुगतान प्रणालियाँ विशेषकर स्थानीय व्यावसायिक घंटों (व्यावसाय के लिये निर्धारित अवधि) के दौरान संचालित होती हैं, जिससे विभिन्न समय क्षेत्रों में सीमा-पार भुगतान के प्रसंस्करण में देरी होती है।
    • भुगतान प्रणालियाँ विशेषकर स्थानीय व्यावसायिक घंटों (व्यावसाय के लिये निर्धारित अवधि) के दौरान संचालित होती हैं, जिससे विभिन्न समय क्षेत्रों में सीमा-पार भुगतान के प्रसंस्करण में देरी होती है।
  • सीमित पहुँच: सभी देशों या क्षेत्रों की कुशल सीमा-पार भुगतान प्रणालियों तक पहुँच नहीं है, विशेष रूप से अल्प विकसित या अल्पसेवित क्षेत्रों में।
    • बैंकिंग सेवाओं या आधुनिक वित्तीय प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुँच व्यक्तियों और व्यवसायों की सीमा-पार भुगतान करने या प्राप्त करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
  • कम गति: कई मध्यस्थों की भागीदारी और टाइम ज़ोन के अंतर के कारण लेनदेन पूरा होने में कई दिन लग सकते हैं।

  • खंडित डेटा प्रारूप: विभिन्न देशों व प्रणालियों के बीच डेटा प्रारूपों एवं मानकों में भिन्नता के कारण भुगतान प्रक्रिया में देरी और त्रुटियाँ हो सकती हैं।

    • विभिन्न अधिकार क्षेत्रों में डेटा की गुणवत्ता और आवश्यकताओं में अंतर लेनदेन की सटीकता एवं दक्षता को प्रभावित कर सकता है।

  • प्रौद्योगिकी प्लेटफॉर्म: कई सीमा-पार भुगतान प्रणालियाँ पुरानी प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं, जो वास्तविक समय प्रसंस्करण या आधुनिक प्रणालियों के साथ एकीकरण हेतु अनुकूलित नहीं है।

    • पुराने प्लेटफार्मों में स्वचालन और वास्तविक समय निगरानी के लिये उन्नत सुविधाओं का अभाव हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अकुशलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

  • लंबी लेनदेन शृंखला: भुगतान शृंखला में कई संवाददाता बैंकों की भागीदारी से लागत, देरी और डेटा से छेड़छाड़ का जोखिम बढ़ सकता है।

    • लंबी लेनदेन शृंखलाएँ भुगतान प्रक्रिया को जटिल बना देती हैं और प्रबंधन हेतु अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।

  • कमज़ोर प्रतिस्पर्द्धा: नए प्रदाताओं के लिये प्रवेश में उच्च बाधाएँ सीमा-पार भुगतान बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा और नवाचार को सीमित कर सकती हैं।

    • लागतों का आकलन और तुलना करने में कठिनाई से प्रतिस्पर्धी प्रभाव कम हो सकता है तथा अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के लिये कीमतें बढ़ सकती हैं।

भारत में सीमा-पार भुगतान

  • भारत वैश्विक धन प्रेषण का एक प्रमुख केंद्र है, जो पर्याप्त सीमा-पार भुगतान प्रवाह को संभालता है, जिसमें लगभग 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आवक धन प्रेषण और 19 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बाह्य धन प्रेषण शामिल है।
  •  सीमा-पार प्रेषण में विकास:
    • प्रौद्योगिकी-पूर्व युग: प्रौद्योगिकीय प्रगति से पहले, अनिवासी भारतीय (NRI) फेडरल बैंक द्वारा ज़ारी डिमांड ड्राफ्ट का उपयोग करते थे, जिसे भुनाने/नकदीकरण के लिये कूरियर के माध्यम से भेजा जाता था।
    • ऑनलाइन प्रेषण: 2000 के दशक के मध्य में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) शुरू किया गया तथा भारत में खातों में सीधे और सुरक्षित स्थानान्तरण की अनुमति दी गई।
      • NEFT एक राष्ट्रव्यापी केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली है, जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास है।
    • IMPS एकीकरण: NPCI द्वारा तत्काल भुगतान सेवा (IMPS) के शुरू होने से 3 मिनट से कम समय में क्रेडिट पूरा किया जा सकेगा, जिससे दक्षता में और वृद्धि होगी
    • विदेशी आवक धन-प्रेषण के लिये UPI: विदेशी आवक धन-प्रेषण (FIR) के लिये एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के एकीकरण से धन प्रेषण प्रक्रिया सरल और नवीन हो गई है।
  • नियामक परिवर्तन: RBI ने आयात और निर्यात लेनदेन सहित सीमा-पार भुगतान को सुव्यवस्थित और विनियमित करने के लिये सीमा-पार लेनदेन के भुगतान एग्रीगेटर्स (PA-CB विनियमन) की शुरुआत की।
  • यह नया फ्रेमवर्क पिछले दिशानिर्देशों का स्थान लेता है और सीमा-पार भुगतान में शामिल सभी संस्थाओं को RBI की प्रत्यक्ष निगरानी के अधीन करता है

सीमा-पार भुगतान में सुधार हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या किया जा रहा है?

  • G-20: G-20 ने लागत कम करने, गति और पारदर्शिता बढ़ाने और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये सीमा-पार भुगतान में सुधार को प्राथमिकता दी है।
    • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) द्वारा निर्धारित 11 मात्रात्मक लक्ष्यों द्वारा समर्थित सीमा-पार भुगतान को बढ़ाने के लिये वर्ष 2020 रोडमैप का लक्ष्य वर्ष 2027 के अंत तक वैश्विक स्तर पर इन चुनौतियों का समाधान करना है।
    • इन लक्ष्यों में थोक भुगतान, खुदरा भुगतान तथा धनप्रेषण में लेनदेन की गति, लागत, पहुँच और पारदर्शिता शामिल हैं।
  • SWIFT GPI: सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) ने सीमा-पार भुगतान की गति और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये ग्लोबल पेमेंट्स इनोवेशन (GPI) की शुरुआत की।
    • यह भुगतानों की वास्तविक समय पर ट्रैकिंग की अनुमति देता है और यह सुनिश्चित करता है कि धनराशि एक दिन के भीतर स्थानांतरित हो जाए।
  • प्रोजेक्ट नेक्सस: इसकी संकल्पना बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) के इनोवेशन हब द्वारा की गई है। प्रोजेक्ट नेक्सस एक वैश्विक पहल है, जिसे कई घरेलू स्तर की त्वरित भुगतान प्रणालियों (IPS) को एकीकृत करके सीमा-पार भुगतान को सुगम बनाने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य एक ऐसा मानकीकृत प्लेटफॉर्म विकसित करना है, जो घरेलू फास्ट पेमेंट सिस्टम (FPS) को विश्व की अन्य भुगतान प्रणालियों से जोड़े, जिससे सीमा-पार तत्काल भुगतान संभव हो सके।
    • प्रोजेक्ट नेक्सस के संस्थापक सदस्यों में भारत और दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के चार देश- मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड शामिल हैं।
  • वैश्विक भुगतान सेवा प्रदाता: वीज़ा और मास्टरकार्ड नवीन प्रौद्योगिकियों की सहायता से सीमा-पार भुगतान को उन्नत बना रहे हैं।
    • वीज़ा का B2B कनेक्ट, बैंकों के बीच बड़ी राशि के लेनदेन का उसी दिन या अगले दिन निपटान करने हतु एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) और DLT का उपयोग करता है तथा भुगतान संदेश को सुरक्षा सुविधाओं के साथ एकीकृत करता है।

वित्तीय स्थिरता बोर्ड

  • FSB एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी और संबंधित अनुशंसाएँ करता है। इसकी स्थापना वर्ष 2009 में G20 पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन में वित्तीय स्थिरता मंच (Financial Stability Forum- FSF) के परवर्ती के रूप में की गई थी।
  • FSB की सदस्यता में FSF सदस्यों के साथ-साथ G20 देश, स्पेन और यूरोपीय आयोग भी शामिल हैं।
  • FSB वैश्विक वित्तीय प्रणाली में प्रणालीगत भेद्यताओं की पहचान और उनका आकलन करता है।
    • इससे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ करने हेतु ज़ारी प्रयासों को बल मिलेगा।
  • भारत FSB का सक्रिय सदस्य है, जिसकी पूर्ण सत्र में तीन सीटें हैं, जिनकी अध्यक्षता सचिव (आर्थिक कार्य), डिप्टी गवर्नर-RBI और चेयरमैन-भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) करते हैं।
  • आर्थिक कार्य के विभाग में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद सचिवालय, FSB के समक्ष भारत के मतों को प्रस्तुत करने के लिये वित्तीय क्षेत्र के विनियामकों एवं अभिकरणों के साथ समन्वय करता है।

आगे की राह 

  • वित्तीय अखंडता और गोपनीयता का संतुलन: ऐसे विधिक ढाँचे स्थापित करने की आवश्यकता है, जो AML और CFT आवश्यकताओं के साथ प्रयोगकर्त्ता की गोपनीयता को सुसंगत बनाते हों।
    • व्यवधानों और अक्षमताओं की रोकथाम करने हेतु सभी स्तरों पर विनियामक स्थिरता लाने की आवश्यकता है।
    • अनुपालन को सुव्यवस्थित करने के लिये सीमा-पार भुगतान में सभी हितधारकों की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये। लघु स्तर के लेनदेन के लिये अनुपालन आवश्यकताओं को कम करने हेतु सीमाएँ स्थापित करना चाहिये जिससे व्यवसायों पर बोझ कम हो।
    • गोपनीयता संबंधी चिंताओं का समाधान करने और उनकी सुरक्षा के लिये गोपनीयता आधारित सिद्धांतों को  क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
  • KYC की उपयोगिताओं का अन्वेषण: पहचान सत्यापन को मानकीकृत और सुव्यवस्थित करने के लिये अपने ग्राहक को जानें (Know Your Customer- KYC) सुविधाओं को विकसित एवं एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • विभिन्न भुगतान प्रणालियों के बीच तकनीकी एकीकरण और अंतर-संचालन को बढ़ावा देना चाहिये। शुल्क, शर्तों और शिकायत निवारण तंत्र के बारे में पारदर्शिता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • विवाद समाधान ढाँचे का विकास: प्रयोगकर्त्ता की शिकायतों और अंतर-प्रदाता विवादों का प्रबंधन करने के लिये एक केंद्रीकृत प्रणाली विकसित करना आवश्यक है। भुगतान सेवा प्रदाताओं (PSP) के बीच संघर्षों को हल करने के लिये स्पष्ट प्रक्रियाएँ स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • केंद्रीय बैंक के साथ सहयोग: केंद्रीय बैंकों को अंतर-संचालनीय भुगतान प्रणालियों के विकास पर सहयोग करने और सीमा-पार भुगतान के लिये CBDC की क्षमताओं का अन्वेषण करने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ।
  • प्रतिस्पर्द्धा: लागत कम करने और गुणवत्ता में सुधार करने के लिये निजी क्षेत्र को शामिल करके भुगतान सेवा प्रदाताओं के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वैश्विक व्यापार को सुकर बनाने में सीमा-पार भुगतान के महत्त्व की विवेचना कीजिये। वर्तमान सीमा-पार भुगतान प्रणालियों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. ‘वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद’ (Financial Stability and Development Council) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. यह नीति आयोग का एक अंग है।
  2. संघ का वित्त मंत्री इसका प्रमुख होता है।
  3. यह अर्थव्यवस्था के समष्टि सविवेक (मेक्रो-प्रूडेंशियल) पर्यवेक्षण का अनुवीक्षण (मॉनिटरिंग) करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


एकीकृत पेंशन योजना

प्रिलिम्स के लिये:

एकीकृत पेंशन योजना (UPS), मुद्रास्फीति सूचकांक, औद्योगिक श्रमिकों के लिये अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, पुरानी पेंशन योजना (OPS), राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS), आयकर अधिनियम, 1961, पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA), ऋण-GDP अनुपात

मेन्स के लिये:

भारत के पेंशन फ्रेमवर्क में परिवर्तन तथा अर्थव्यवस्था और समाज पर इसका प्रभाव।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एकीकृत पेंशन योजना (UPS) को मंज़ूरी दे दी है, जो सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद सुनिश्चित पेंशन प्रदान करेगी।

  • यह योजना 1 अप्रैल, 2025 से प्रभावी होगी, जब केंद्र सरकार के कर्मचारी वर्तमान राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) से UPS में स्थानांतरित हो जाएंगे।
  • राज्य सरकारों के पास एकीकृत पेंशन योजना अपनाने का विकल्प भी होगा।

एकीकृत पेंशन योजना के प्रावधान क्या हैं?

  • सुनिश्चित पेंशन: यह 25 वर्ष की न्यूनतम अर्हक सेवा के लिये सेवानिवृत्ति से पहले अंतिम 12 महीनों में कर्मचारी के औसत मूल वेतन का 50% होगा।
    • यह राशि न्यूनतम 10 वर्ष तक की छोटी सेवा अवधि के लिये आनुपातिक रूप से कम हो जाएगी।
  • सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन: न्यूनतम 10 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्ति की स्थिति में UPS 10,000 रुपए प्रति माह की सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन प्रदान करता है।
  • सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन: सेवानिवृत्त व्यक्ति की मृत्यु पर उसका निकटतम परिवार सेवानिवृत्त व्यक्ति द्वारा अंतिम बार प्राप्त पेंशन का 60% पाने का पात्र होगा।
  • मुद्रास्फीति सूचकांकीकरण: उपर्युक्त तीनों प्रकार की पेंशनों पर महँगाई राहत उपलब्ध होगी।
  • सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान: ग्रेच्युटी के अतिरिक्त कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान प्राप्त होगा, जो सेवा के प्रत्येक छह माह पूरे होने पर सेवानिवृत्ति तिथि के अनुसार उनके मासिक वेतन (वेतन+DA) के 1/10वें भाग के बराबर होगा।
    • इस भुगतान से सुनिश्चित पेंशन की राशि पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
    • ग्रेच्युटी एक ऐसी राशि है, जो नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को उनकी सेवाएँ प्रदान करने के लिये दी जाती है।
  • कर्मचारियों के लिये विकल्प: कर्मचारी अभी भी NPS के अंतर्गत बने रहने का विकल्प चुन सकते हैं। हालाँकि कोई भी कर्मचारी केवल एक बार ही विकल्प चुन सकता है। एक बार विकल्प चुनने के बाद विकल्प को बदला नहीं जा सकता।

UPS, पुरानी पेंशन योजना (OPS) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) के बीच मुख्य अंतर क्या हैं?

  • पेंशन गणना विधि: OPS में पेंशन अंतिम मूल वेतन तथा महंगाई भत्ते (DA) के 50% के बराबर तय की गई थी।
    • UPS में पेंशन की गणना रिटायरमेंट से पहले आखिरी वर्ष में लिये गए मूल वेतन और DA के औसत के 50% के रूप में की जाती है। इस समायोजन का अर्थ है कि अगर किसी कर्मचारी को रिटायरमेंट से कुछ समय पहले पदोन्नति मिलती है तो उसे थोड़ी कम पेंशन मिलेगी।
  •  कर्मचारी अंशदान: OPS में किसी कर्मचारी अंशदान की आवश्यकता नहीं थी।
    • UPS में कर्मचारी का अंशदान मूल वेतन और DA का 10% है तथा सरकार भी 18.5% का योगदान करेगी।
    • NPS में केंद्रीय सरकारी कर्मचारी के मूल वेतन से 10% तथा सरकार से 14% अंशदान की आवश्यकता होती है।
  • कर लाभ: केंद्र सरकार के कर्मचारी NPS योजना में सरकार के योगदान के लिये कर लाभ के पात्र हैं। वे आयकर अधिनियम, 1961 के तहत पुरानी और नई दोनों कर व्यवस्थाओं से 14% की कटौती कर सकते हैं।
    • चूँकि OPS में कर्मचारियों का कोई योगदान नहीं था, इसलिये वे कर लाभ नहीं उठा सकते।
    • सरकार ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि UPS के अंतर्गत कर्मचारी और सरकारी अंशदान पर कोई कर लाभ मिलेगा या नहीं।
  • UPS में उच्च न्यूनतम पेंशन: UPS योजना के तहत 10 वर्ष की न्यूनतम सेवा के बाद सेवानिवृत्ति के समय प्रति माह न्यूनतम पेंशन 10,000 रुपए है।
    • दस वर्ष की न्यूनतम सेवा अवधि के बाद वर्तमान न्यूनतम राशि 9,000 रुपए है।
  • एकमुश्त भुगतान: OPS ने पेंशन के 40% तक के एकमुश्त भुगतान की अनुमति दी, जिससे मासिक पेंशन राशि कम हो गई।
    • UPS सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान प्रदान करता है, जिसकी गणना मासिक वेतन के दसवें हिस्से के साथ-साथ प्रत्येक छह महीने की सेवा के लिये महंगाई भत्ते के रूप में की जाती है तथा पेंशन राशि पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) क्या है?

  • परिचय: NPS की शुरुआत बाज़ार से संबद्ध एक अंशदान योजना थी, जिसकी शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा व्यक्तियों को उनकी सेवानिवृत्ति आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पेंशन के रूप में आय उपलब्ध कराने में मदद करने हेतु की गई थी
    • भारत के पेंशन विनियमों को आधुनिक बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता के तहत 1 जनवरी 2004 को NPS ने OPS का स्थान ले लिया।
    • पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA), PFRDA अधिनियम, 2013 के तहत NPS को विनियमित व प्रशासित करता है।
  • NPS की आवश्यकता: OPS के साथ एक बुनियादी समस्या थी अर्थात् यह वित्तपोषित नहीं थी और पेंशन हेतु कोई विशेष कोष नहीं था।
    •  समय के साथ इसके कारण सरकार की पेंशन देयता वित्तीय दृष्टि से असह्य स्तर तक बढ़ गई।
    • केंद्र की पेंशन देनदारियाँ वर्ष 1990-91 में 3,272 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 1,90,886 करोड़ रुपए हो गईं।
  • NPS की कार्यप्रणाली: NPS दो मूलभूत तरीकों से OPS से भिन्न थी।
    • सबसे पहले इसने सुनिश्चित पेंशन की व्यवस्था को समाप्त कर दिया।
    • दूसरा इसका वित्तपोषण कर्मचारी द्वारा स्वयं किया जाएगा तथा सरकार भी इसमें उतना ही योगदान देगी।
      • परिभाषित अंशदान में कर्मचारी द्वारा मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10% तथा सरकार का 14% अंशदान शामिल था।
    • NPS के अंतर्गत व्यक्ति NPS में जमा अपने धन को निवेश करने के लिये अनेक योजनाओं और पेंशन फंड प्रबंधकों के साथ-साथ निजी कंपनियों में से भी चुन सकते हैं।
  • NPS का विरोध: NPS के तहत सरकारी कर्मचारियों को कम गारंटीकृत रिटर्न मिलता था और उन्हें अपनी पेंशन में योगदान देना पड़ता था, जबकि OPS में कर्मचारियों का कोई योगदान नहीं था तथा गारंटीकृत रिटर्न अधिक था।
    • पुरानी पेंशन योजना को पुनः लागू करने के लिये चल रही मांगों के बीच, केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 में टी. वी.  सोमनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। समिति की सिफारिशों के आधार पर नई एकीकृत पेंशन योजना (UPS) की शुरुआत की गई है

UPSके राजकोषीय निहितार्थ क्या हो सकते हैं?

  • अधिक ऋण-GDP अनुपात: एकीकृत पेंशन योजना (UPS) का उच्च ऋण और अधिक ऋण-GDP अनुपात वाली सरकार पर व्यापक राजकोषीय प्रभाव पड़ेगा।
    • इस योजना की लागत से सरकारी वित्त पर और अधिक दबाव पड़ सकता है।
  • उच्च राजकोषीय बोझ: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किये गए एक अध्ययन (सितंबर 2023) में चेतावनी दी गई है कि यदि सभी राज्य OPS को लागू कर देते हैं तो राजकोषीय बोझ राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के 4.5 गुना तक हो सकता है, जो संभवतः वर्ष 2060 तक सकल घरेलू उत्पाद का 0.9% वार्षिक तक पहुँच सकता है।
    • इस बात को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई है कि UPS संघीय वित्त पर किस प्रकार प्रभाव डालेगा, क्योंकि यह मोटे तौर पर OPS जैसा ही है।

निष्कर्ष

UPS का लक्ष्य कर्मचारियों की आकांक्षाओं के साथ राजकोषीय लागत को संतुलित करना है। यह राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) की अनिश्चितता तथा पुरानी पेंशन योजना (OPS) को पुनः लागू करने के परिणामस्वरूप पड़ने वाले अतरिक्त राजकोषीय दबाव की समस्या को संबोधित करता है। UPS पुरानी पेंशन योजना (परिभाषित लाभ) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (अंशदायी) दोनों के तत्त्वों को समाहित करता है, पेंशन पूल पर एक परिभाषित रिटर्न/लाभांश प्रदान करता है तथा बाज़ार जोखिम को कम करता है। सुनिश्चित रिटर्न और मुद्रास्फीति संरक्षण के साथ UPS से समग्र पेंशन फंड में वृद्धि होने की आशा है, जिससे ऋण बोझ से जुड़े कुछ जोखिम कम हो जाएंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. एकीकृत पेंशन योजना (UPS), पुरानी पेंशन योजना (OPS) और राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) के बीच प्रमुख अंतरों की व्याख्या कीजिये। UPS किस प्रकार NPS से जुड़े जोखिमों को कम करने का प्रयास करता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) में शामिल हो सकता है? (2017)

(a) केवल निवासी भारतीय नागरिक
(b) केवल 21 से 55 वर्ष की आयु के व्यक्ति
(c) अधिसूचना की तारीख के बाद सेवाओं में शामिल होने वाले सभी राज्य सरकार के कर्मचारी तथा संबंधित राज्य की सरकारों द्वारा अधिसूचना किये जाने की तारीख के पश्चात सेवा में आये हैं
(d) सशस्त्र बलों सहित केंद्र सरकार के सभी कर्मचारी, जो 1 अप्रैल, 2004 या उसके बाद सेवाओं में शामिल हुए हैं

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'अटल पेंशन योजना' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. यह मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर लक्षित एक न्यूनतम गारंटीकृत पेंशन योजना है
  2. एक परिवार का एक ही सदस्य इस योजना में शामिल हो सकता है
  3. यह ग्राहक की मृत्यु के बाद जीवनभर के लिये पति या पत्नी हेतु समान राशि की पेंशन गारंटी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)