अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तीसरा FIPIC शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोऑपरेशन (FIPIC), पैसिफिक आइलैंड कंट्रीज़, ग्लोबल साउथ, रेडियो एक्सेस नेटवर्क्स (RAN), इंडियाज़ एक्ट ईस्ट पॉलिसी, संयुक्त राष्ट्र, मिशन सागर पहल मेन्स के लिये:प्रशांत द्वीप देशों का महत्त्व, प्रशांत द्वीप देशों के साथ भारत का संबंध |
चर्चा में क्यों?
तीसरा भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच (FIPIC) शिखर सम्मेलन 22 मई, 2023 को पोर्ट मोरेस्बी, पापुआ न्यू गिनी में आयोजित किया गया। भारत के प्रधानमंत्री ने पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री के साथ इसकी सह-अध्यक्षता की और इसमें 14 प्रशांत द्वीपीय देशों (PIC) ने भाग लिया।
- भारत के प्रधानमंत्री को पापुआ न्यू गिनी के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- ग्रैंड कम्पैनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ लोगोहू (GCL) से सम्मानित किया गया।
तीसरे FIPIC शिखर सम्मेलन की प्रमुख विशेषताएँ:
- प्रशांत द्वीपीय देशों (PICs) को भारत का समर्थन:
- भारत सभी देशों की संप्रभुता और अखंडता का समर्थन करता है और ग्लोबल साउथ के स्तर को विस्तृत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की साझा प्राथमिकता पर ज़ोर देता है।
- प्रधानमंत्री ने भारत-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए G7 शिखर सम्मेलन के दौरान क्वाड के हिस्से के रूप में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ चर्चा का उल्लेख किया।
- इसी के साथ क्वाड राष्ट्रों के नेताओं ने प्रशांत क्षेत्र में पलाऊ से शुरू होने वाले ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN) को लागू करने की योजना की घोषणा की है।
- पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री ने भारत से G-7 और G-20 शिखर सम्मेलन में PIC का समर्थन करने का आग्रह किया।
- भारत सभी देशों की संप्रभुता और अखंडता का समर्थन करता है और ग्लोबल साउथ के स्तर को विस्तृत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की साझा प्राथमिकता पर ज़ोर देता है।
- 12-पॉइंट फॉर्मूला:
- भारत ने PIC में स्वास्थ्य सेवा, साइबर स्पेस, स्वच्छ ऊर्जा, जल और छोटे एवं मध्यम उद्यमों के क्षेत्रों में 12-पॉइंट विकास कार्यक्रम का भी अनावरण किया, जिसके अनुसार:
- भारत, फिजी में एक सुपर-स्पेशियलिटी कार्डियोलॉजी अस्पताल स्थापित करेगा। सभी 14 PIC में डायलिसिस यूनिट एवं समुद्री एम्बुलेंस शुरू करेगा और सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराने हेतु जन औषधि केंद्र भी स्थापित करेगा।
- भारत प्रत्येक प्रशांत द्वीपीय देश में छोटे और मध्यम स्तर के उद्यम क्षेत्र के विकास का समर्थन करेगा।
- भारत ने जल की कमी के मुद्दों को दूर करने हेतु अलवणीकरण इकाइयाँ प्रदान करने का भी संकल्प लिया है।
- 'थिरुक्कुरल पुस्तक:
- इसके अतिरिक्त भारतीय प्रधानमंत्री ने पापुआ न्यू गिनी के अपने समकक्ष के साथ टोक पिसिन (पापुआ न्यू गिनी की आधिकारिक भाषा) में तमिल क्लासिक 'थिरुक्कुरल' भी जारी किया ताकि भारतीय विचार एवं संस्कृति को दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत राष्ट्र के लोगों के निकट लाया जा सके।
फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोऑपरेशन (FIPIC):
- परिचय:
- PIC के साथ भारत का जुड़ाव 'इंडिया एक्ट ईस्ट पॉलिसी' का हिस्सा है।
- ‘फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन (FIPIC)’ PIC के लिये एक्ट ईस्ट पॉलिसी शीर्षक के अंतर्गत शुरू की गई एक प्रमुख पहल है।
- FIPIC भारत और 14 PIC अर्थात् कुक-आइलैंड्स, फिजी, किरिबाती, मार्शल-आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नाउरू, निउ, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु और वानुअतु के मध्य सहयोग के लिये विकसित एक बहुराष्ट्रीय समूह है।
- इसकी स्थापना नवंबर 2014 में की गई थी तथा प्रथम FIPIC शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में सुवा, फिजी में और द्वितीय वर्ष 2015 में जयपुर, भारत में आयोजित किया गया था।
- PIC के साथ भारत का जुड़ाव 'इंडिया एक्ट ईस्ट पॉलिसी' का हिस्सा है।
- उद्देश्य:
- व्यापार, निवेश, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, अक्षय ऊर्जा, आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में PICs के साथ भारत के संबंधों को मज़बूत करना।
- FIPIC पारस्परिक हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर संवाद एवं परामर्श के लिये मंच भी प्रदान करता है।
प्रशांत द्वीपीय देशों का महत्त्व:
- भू-राजनीतिक महत्त्व: प्रशांत द्वीपीय राष्ट्र रणनीतिक रूप से प्रशांत महासागर के विस्तृत क्षेत्र में स्थित हैं, जिसने व्यापार, सैन्य उपस्थिति और गठबंधनों की अपनी क्षमता के कारण अमेरिका, रूस एवं चीन जैसी प्रमुख शक्तियों का ध्यान आकर्षित किया है।
- आर्थिक क्षमता: इन राष्ट्रों के पास बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं, जिसमें मत्स्य पालन, खनिज, लकड़ी और पर्यटन संपत्ति शामिल है।
- इसके अतिरिक्त उनके विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zones- EEZs) समुद्री संसाधनों से समृद्ध हैं। वे प्रशांत के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये पारगमन बिंदुओं के रूप में भी कार्य करते हैं।
- विश्व के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से 9 इसी क्षेत्र में स्थित हैं।
- इसके अतिरिक्त उनके विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zones- EEZs) समुद्री संसाधनों से समृद्ध हैं। वे प्रशांत के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये पारगमन बिंदुओं के रूप में भी कार्य करते हैं।
- सांस्कृतिक और जैविक विविधता: प्रशांत द्वीपीय देशों में विविध स्वदेशी संस्कृतियाँ, भाषाएँ और परंपराएँ पाई जाती हैं जो मानवता के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
- उनकी अनूठी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और संवर्द्धन वैश्विक विविधता में योगदान देता है।
- संभावित वोट बैंक: 14 PIC की साझा आर्थिक एवं सुरक्षा चिंताएँ हैं तथा संयुक्त राष्ट्र में अधिक-से-अधिक वोटों के लिये ज़िम्मेदार हैं और अंतर्राष्ट्रीय जनमत हेतु प्रमुख शक्तियों के लिये संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं।
प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत के संबंध
- परिचय:
- भारत और PIC ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को साझा करते हैं तथा विभिन्न द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय मंचों, जैसे- गुटनिरपेक्ष आंदोलन, संयुक्त राष्ट्र तथा FIPIC के माध्यम से PIC के साथ जुड़ रहे हैं।
- PIC के साथ भारत की सहभागिता एक मुक्त, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ-साथ PIC के विकास आकांक्षाओं तथा जलवायु लचीलेपन का समर्थन करने की अपनी प्रतिबद्धता से प्रेरित है।
- माना जाता है कि "एक मुक्त, पारदर्शी और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का दृष्टिकोण" इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते विस्तार को संबोधित करता है।
- सहायता:
- भारत कोविड-19 महामारी के दौरान प्रशांत द्वीपीय देशों के लिये एक विश्वसनीय भागीदार रहा था।
- भारत ने अपनी मानवीय सहायता और आपदा राहत प्रयासों के अंतर्गत प्रशांत द्वीपीय देशों को महत्त्वपूर्ण आवश्यक दवाओं, टीकों एवं खाद्य सामाग्रियों की आपूर्ति की थी। कोविड-19 महामारी के दौरान प्रशांत द्वीपीय देशों को दी गई भारतीय सहायता के कुछ उदाहरण हैं:
- भारत ने फिजी को अपनी वैक्सीन मैत्री पहल के अंतर्गत कोविशील्ड टीकों की 1.2 मिलियन खुराक दान के रूप में प्रदान की थी।
- जबकि पापुआ न्यू गिनी को 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की आवश्यक दवाएँ और चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराए एवं मिशन सागर पहल के तहत नाउरू को 100 मीट्रिक टन चावल प्रदान किये थे तथा सह-उत्पादन बिजली संयंत्र परियोजना के लिये फिजी को 75 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता प्रदान की थी।
- भारत ने सौर ऊर्जा परियोजना के लिये समोआ को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया था।
- आर्थिक संबंध:
- वर्ष 2021-22 के आँकड़ों के आधार पर प्लास्टिक, फार्मास्यूटिकल्स, चीनी, खनिज ईंधन और अयस्क जैसी वस्तुओं में भारत एवं प्रशांत द्वीपीय देशों के मध्य कुल वार्षिक व्यापार 570 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
- उनमें से मूल्य के मामले में पापुआ न्यू गिनी सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
- भविष्य की संभावनाएँ: भारत और PIC में ब्लू इकॉनमी, समुद्री सुरक्षा, डिजिटल कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं कौशल विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की अपार क्षमता है।
- PIC द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों के अभिनव समाधान के लिये भारत सूचना प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्र की क्षमता का लाभ उठा सकता है।
- भारत भी PIC के साथ आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन में अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं एवं अनुभवों को साझा कर सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
UNSC और ब्रेटन वुड्स में सुधार
प्रिलिम्स के लिये:UNSC, ब्रेटन वुड्स, संयुक्त राष्ट्र, द्वितीय विश्व युद्ध, IMF, विश्व बैंक, SDR, WTO, IGN मेन्स के लिये:UNSC और ब्रेटन वुड्स में सुधार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जापान के हिरोशिमा में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) और ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधारों का आह्वान किया है जिसमें कहा गया है कि वर्तमान आदेश पुराना, बेकार और अनुचित है।
- कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से आर्थिक अस्थिरता के कारण उक्त संस्थान वैश्विक सुरक्षा तंत्र के रूप में अपने मूल कार्य को पूरा करने में विफल रहे हैं।
ब्रेटन वुड्स प्रणाली:
- परिचय:
- ब्रेटन वुड्स प्रणाली वर्ष 1944 में न्यू हैम्पशायर, संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में 44 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा बनाया गया एक मौद्रिक ढाँचा था। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा में स्थिरता और सहयोग स्थापित करना था।
- ब्रेटन वुड्स समझौते ने दो महत्त्वपूर्ण संगठन बनाए- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक।
- वर्ष 1970 के दशक में ब्रेटन वुड्स प्रणाली को भंग कर दिया गया था। इसके बाद IMF और विश्व बैंक (ब्रेटन वुड्स संस्थान) दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के आदान-प्रदान के लिये सुदृढ़ स्तंभ बने हुए हैं।
- ब्रेटन-वुड्स संस्थानों में सुधार की आवश्यकता:
- इन संस्थानों ने अपने पहले 50 वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि हाल के दिनों में वे बढ़ती समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं
- असमानता, वित्तीय अस्थिरता और संरक्षणवाद के मामले फिर से उभर कर सामने आए हैं।
- जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक तनाव, बढ़ती आपदाएँ और साइबर सुरक्षा तथा महामारी जैसे नए खतरों के बीच विश्व को एक नए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे की आवश्यकता है।
- निधि आवंटन और अनियमित विशेष आहरण अधिकार (SDR) में पक्षपात किया गया, IMF ने महामारी के दौरान SDR में 650 बिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किये।
- 77.2 करोड़ लोगों की आबादी वाले G-7 देशों को 280 अरब डॉलर, जबकि 1.3 अरब लोगों की आबादी वाले अफ्रीकी महाद्वीप को केवल 34 अरब डॉलर दिये गए।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC):
- परिचय:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी और यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है।
- UNSC में 15 सदस्य हैं: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 गैर-स्थायी सदस्य 2 वर्ष के लिये चुने जाते हैं।
- 5 स्थायी सदस्य (P5) हैं: अमेरिका, रूस, फ्राँस, चीन और यूके।
- भारत जो कि वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 की अवधि में परिषद का गैर-स्थायी सदस्य रहा ने 8वीं बार वर्ष 2021 में UNSC में प्रवेश किया तथा वर्ष 2021-22 की अवधि के लिये परिषद में गैर-स्थायी सदस्य बना।
- UNSC से संबद्ध मुद्दे:
- विकासशील देशों के लिये समस्याएँ उत्पन्न करना:
- विकासशील देश नैतिक, शक्ति संबंधी और व्यावहारिक जैसे तीन आयामों में समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
- अमीर देशों के पक्ष में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय ढाँचे में एक प्रणालीगत और अनुचित पूर्वाग्रह "विकासशील विश्व के देशों में निराशा" का भाव उत्पन्न कर रहा है।
- प्रतिनिधित्व को सीमित करना:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से अफ्रीका, साथ ही भारत, जर्मनी, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की अनुपस्थिति को एक महत्त्वपूर्ण कमी के रूप में देखा जाता है।
- यह महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों के प्रतिनिधित्व और वैश्विक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को सीमित करता है तथा जटिल एवं परस्पर संबंधित समस्याओं पर प्रभावी निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करता है।
- वीटो पावर का दुरुपयोग:
- P5 के पास UNSC में कालानुक्रमिक वीटो पावर है, जिसे अलोकतांत्रिक होने और P5 में से किसी के असहमत होने पर महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की परिषद की क्षमता को सीमित करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- कई लोगों का तर्क है कि इस तरह के कुलीन निर्णय लेने वाले ढाँचे मौजूदा वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
- विकासशील देशों के लिये समस्याएँ उत्पन्न करना:
इन मुद्दों के समाधान के उपाय:
- ब्रेटन वुड्स:
- तीन वैश्विक संस्थानों- IMF, WBG और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) को फिर से आकार देने एवं पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जहाँ:
- IMF उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की सख्त निगरानी और वैश्विक संकटों पर उनके प्रभाव के साथ व्यापक आर्थिक नीति और वित्तीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- पुनर्गठित विश्व बैंक समूह स्थिरता, साझा समृद्धि और प्रभावी रूप से निजी पूंजी से लाभ की प्राप्ति को प्राथमिकता देगा। वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने एवं वित्त के वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता के रूप में कार्य करने के लिये इसे मिलकर कार्य करने की आवश्यकता।
- निष्पक्ष व्यापार, त्वरित विवाद समाधान और आपात स्थिति में तीव्र प्रतिक्रिया क्षमता के लिये एक सशक्त WTO की आवश्यकता है।
- व्यवधानों और राजनीतिक प्रभावों से बचने के लिये प्रणाली में अधिक स्वचालित और नियम-आधारित वित्तपोषण तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
- SDR, वैश्विक प्रदूषण करों और वित्तीय लेन-देन आधारित करों से संबंधित मुद्दों का नियमित आकलन करने की आवश्यकता है।
- यह उचित रूप से संरचित G-20 ब्रेटन वुड्स प्रणाली और अन्य संस्थानों के साथ इसके संबंधों को व्यापक मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।
- तीन वैश्विक संस्थानों- IMF, WBG और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) को फिर से आकार देने एवं पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जहाँ:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC):
- शक्ति और अधिकार के विकेंद्रीकरण के साथ-साथ अफ्रीका सहित सभी क्षेत्रों के लिये समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है,यह सभी राष्ट्रों को अपने देशों में शांति एवं लोकतंत्र से संबंधित मुद्दों को उठाने की अनुमति देगा जो कि निर्णयन को अधिक भागीदारीपूर्ण और लोकतांत्रिक बनाएगा।
- P5 देशों के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने के बजाय वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये UNSC के अधिक लोकतांत्रिक एवं वैध शासन को सुनिश्चित करने हेतु P5 तथा शेष विश्व के मध्य शक्ति को संतुलित करने के लिये तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
- अंतर-सरकारी वार्ता (Intergovernmental Negotiation- IGN) प्रक्रिया, जो UNSC में सुधार पर चर्चा करती है, को संशोधित किया जाना चाहिये और प्रगति में बाधा डालने वाली प्रक्रियात्मक रणनीति से बचना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक और वित्तीय सम्मेलन जिसमें IBRD, GATT और IMF की स्थापना के लिये समझौते किये गए थे, को किस रूप में जाना जाता है? (2008) (a) बांडुंग सम्मेलन उत्तर: (b) प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति (International Monetary and Financial Committee- IMFC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. "स्वर्ण ट्रांश" (रिज़र्व ट्रांश) निर्दिष्ट करता है: (2020) (a) विश्व बैंक की ऋण व्यवस्था उत्तर: (d) प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य हैं और बाकी 10 सदस्य महासभा द्वारा निम्नलिखित में से किस अवधि के लिये चुने जाते हैं। (2009) (a) 1 वर्ष उत्तर: (b) प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की खोज में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015) प्रश्न. विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, सयुंक्त रूप से ब्रेटन वुड्स के नाम से जानी जाने वाली संस्थाएँ, विश्व की आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था की संरचना का संभरण करने वाले दो अंत: सरकारी स्तंभ हैं। पृष्ठीय रूप में विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों की अनेक समान विशिष्टताएँ हैं, तथापि उनकी भूमिका, कार्य तथा अधिशेष स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
खाद्य तेल की कीमतें एवं भारत के लिये महत्त्व
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य तेल, कोविड-19, काला सागर, ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव, खाद्य तेलों पर मिशन- पाम ऑयल। मेन्स के लिये:खाद्य तेल की कीमतें और भारत हेतु महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
खाद्य तेलों के संदर्भ में पिछले 2-3 वर्षों में गंभीर मूल्य अस्थिरता का अनुभव किया गया है।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (UN Food and Agriculture Organization) के वैश्विक वनस्पति तेल मूल्य सूचकांक ने मई 2020 में वैश्विक कोविड लॉकडाउन के चरम के दौरान 77.8 अंक (वर्ष 2014-16 आधार अवधि मूल्य = 100) की गंभीर गिरावट का अनुभव किया। हालाँकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद मार्च 2022 में यह 251.8 अंकों के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है।
खाद्य तेल की कीमत में अस्थिरता के कारक:
- यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष के दौरान काला सागर बंदरगाह के बंद होने के कारण विश्व भर में इस तिलहन की आपूर्ति बाधित हुई थी।
- वर्ष 2021-22 में यूक्रेन और रूस का वैश्विक उत्पादन में लगभग 58% हिस्सा था, अतः संघर्ष के परिणामस्वरूप कीमतों में व्यापक वृद्धि देखी गई।
- संयुक्त राष्ट्र और तुर्किये की मध्यस्थता से रूस एवं यूक्रेन के बीच ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव समझौते के साथ स्थिति में बदलाव आया। इस समझौते ने यूक्रेनी बंदरगाहों से अनाज एवं खाद्य पदार्थों को ले जाने वाले जहाज़ों के सुरक्षित नेविगेशन की सुविधा प्रदान की।
- इससे यूक्रेन से संचित सूरजमुखी तेल, भोजन और बीज का निर्यात किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अंतर्राष्ट्रीय वनस्पति तेल की कीमतें युद्ध-पूर्व स्तरों से नीचे गिर गईं।
भारत के संदर्भ में इसका प्रभाव:
- लागत में कमी:
- भारत में सूरजमुखी के तेल के आयात से देश में खाद्य तेलों की कीमतों में काफी कमी आने की संभावना है। सूरजमुखी के तेल का आयात, जिसकी आयातित लागत लगभग 950 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है, कर भारत में खाद्य तेलों की कुल लागत को कम किया जा सकता है।
- उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
- जब कीमतें बढ़ गईं तो कई घरों और संस्थागत उपभोक्ताओं जैसे- रेस्तराँ एवं कैंटीन में सूरजमुखी के तेल से सोयाबीन तेल या स्थानीय तेलों जैसे अपेक्षाकृत सस्ते विकल्पों की ओर संक्रमण किया।
- हालाँकि आयात प्रवाह और मूल्य समानता पूर्व की स्थिति में बहाल हो गई है, जिससे उपभोक्ता सूरजमुखी तेल के उपयोग पर ज़ोर दे रहे हैं।
- बाज़ार विस्तार:
- सूरजमुखी परंपरागत रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में उगाया जाता है।
- देश के सूरजमुखी तेल की कुल खपत का लगभग 70% की आपूर्ति दक्षिण भारत की जाती है, शेष खपत महाराष्ट्र (10-15%) और अन्य राज्यों में होती है।
- यह क्षेत्रीय संकेद्रता सूरजमुखी तेल के उत्पादों हेतु पर्याप्त बाज़ार प्रस्तुत करती है।
- सूरजमुखी परंपरागत रूप से कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में उगाया जाता है।
- मांग को पूरा करना:
- पिछले एक दशक में सूरजमुखी के तेल का घरेलू उत्पादन स्तर बहुत अधिक गिर गया है। यह गिरावट देश में सूरजमुखी तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये आयात के अवसर प्रदान करती है।
- घरेलू उत्पादन में गिरावट और कुछ क्षेत्रों में सूरजमुखी तेल को प्राथमिकता देना सूरजमुखी तेल के आयात की संभावना को बढ़ाती है। ब्रांडेड सूरजमुखी तेल के लिये बाज़ार की मांग को पूरा करने में आयातक और विक्रेता महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
भारत में खाद्य तेल की खपत का परिदृश्य:
- भारत सालाना 23.5-24 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत करता है, जिसमें से 13.5-14 मिलियन टन आयात किया जाता है और शेष 9.5-10 मिलियन टन का घरेलू उत्पादन करता है।
- सरसों का तेल (3-3.5 मिलियन टन), सोयाबीन तेल (4.5-5 मिलियन टन) और ताड़ का तेल (8-8.5 मिलियन टन) के बाद सूरजमुखी तेल (2-2.5 मिलियन टन) चौथा सबसे बड़ा खपत वाला खाद्य तेल है।
- सूरजमुखी और ताड़ के तेल दोनों का लगभग पूर्ण रूप से आयात किया जाता है, जिनका घरेलू उत्पादन मुश्किल से क्रमशः 50,000 टन और 0.3 मिलियन टन है।
- यह सरसों और सोयाबीन के विपरीत है, जहाँ घरेलू उत्पादन का हिस्सा क्रमशः 100% और 30-32% के करीब है।
भारत में कुकिंग ऑयल से संबंधित पहल:
- सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में खाद्य तेलों-ऑयल पाम पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया, जिसे पूर्वोत्तर क्षेत्र और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में विशेष ध्यान देने के साथ केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जा रहा है।
- वर्ष 2025-26 तक ताड़ के तेल के लिये अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर का प्रस्ताव है।
- वनस्पति तेल क्षेत्र में डेटा प्रबंधन प्रणाली को बेहतर बनाने और व्यवस्थित करने के लिये खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत चीनी तथा वनस्पति तेल निदेशालय ने मासिक आधार पर वनस्पति तेल उत्पादकों द्वारा ऑनलाइन इनपुट जमा करने हेतु एक वेब-आधारित प्लेटफॉर्म (evegoils.nic.in) विकसित किया है।
- पोर्टल ऑनलाइन पंजीकरण और मासिक उत्पादन रिटर्न जमा करने के लिये एक विंडो भी प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
फोरम शॉपिंग
प्रिलिम्स के लिये:फोरम शॉपिंग, भारत का मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, फोरम शॉपिंग का सिद्धांत मेन्स के लिये:फोरम शॉपिंग, इसके नुकसान और बचाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने फोरम शॉपिंग की प्रथा की निंदा की। उल्लेखनीय है कि एक वकील द्वारा मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उसी मामले का उल्लेख किया गया जिसका उल्लेख उसने एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष भी किया था।
फोरम शॉपिंग का अभ्यास:
- परिचय:
- फोरम शॉपिंग अनुकूल परिणाम प्राप्त करने की आशा में एक कानूनी मामले के लिये जान-बूझकर एक विशेष अदालत का चयन करने के अभ्यास को संदर्भित करता है।
- वादी और वकील प्राय: इस रणनीति को अपनी मुकदमेबाज़ी योजना का हिस्सा मानते हैं।
- उदाहरण के लिये वे अपने मामले पर अधिक ध्यान आकर्षित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय (SC) जैसे उच्चतम न्यायालय का विकल्प चुन सकते हैं। हालाँकि अगर कोई स्पष्ट रूप से व्यवस्था में हेर-फेर करने या किसी विशेष न्यायाधीश से बचने की कोशिश कर रहा है, तो इसे अनुचित माना जाता है।
- इसी तरह "बेंच हंटिंग" एक अनुकूल आदेश सुनिश्चित करने के लिये किसी विशेष न्यायाधीश या बेंच द्वारा अपने मामलों की सुनवाई हेतु प्रबंधन करने वाले याचिकाकर्त्ताओं को संदर्भित करता है।
- लाभ:
- यह वादी को न्यायालय में न्याय और मुआवज़े की मांग करने की अनुमति दे सकता है जो कि उसके दावों या हितों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण है।
- यह न्यायालयों और न्यायाधीशों के बीच उनकी दक्षता और सेवा की गुणवत्ता में सुधार के लिये प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है।
- हानि:
- फोरम शॉपिंग की न्यायाधीशों द्वारा आलोचना की गई है क्योंकि इससे प्रतिवादी पक्ष के साथ अन्याय हो सकता है और विभिन्न न्यायालयों के कार्यभार में असंतुलन पैदा हो सकता है।
- न्यायाधीशों ने कुछ न्यायालयों पर अत्यधिक बोझ और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप का हवाला दिया है।
- यह पूर्वाग्रह या पक्षपात की धारणा बनाकर न्यायालयों और न्यायाधीशों के अधिकार एवं वैधता को कमज़ोर कर सकता है।
- यह कानूनों के टकराव और कई कार्यवाहियों में वृद्धि कर मुकदमेबाज़ी की लागत एवं जटिलता को बढ़ा सकता है।
- फोरम शॉपिंग की न्यायाधीशों द्वारा आलोचना की गई है क्योंकि इससे प्रतिवादी पक्ष के साथ अन्याय हो सकता है और विभिन्न न्यायालयों के कार्यभार में असंतुलन पैदा हो सकता है।
- फोरम शॉपिंग को हतोत्साहित करना:
- यहाँ तक कि अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के न्यायालय भी फोरम शॉपिंग को हतोत्साहित/निषेध करते हैं। कॉमन लॉ/सामान कानून वाले देशों में फोरम शॉपिंग के अभ्यास को रोकने हेतु "फोरम गैर-सुविधा" के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और राष्ट्रमंडल सभी की कॉमन लॉ के साथ ब्रिटिश पृष्ठभूमि जुड़ी हुई है तथा इन राष्ट्रों की कानूनी प्रणालियाँ बड़े पैमाने पर कॉमन लॉ सिद्धांत पर आधारित हैं।
- यह सिद्धांत एक न्यायालय को किसी मामले के अधिकार क्षेत्र को अस्वीकार करने की अनुमति देता है, यदि कोई अन्य न्यायालय इसे सुनने हेतु अधिक उपयुक्त हो। यह निष्पक्षता की गारंटी देता है एवं उपयुक्त न्यायिक अधिकारियों को मामले सौंपता है।
- यहाँ तक कि अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के न्यायालय भी फोरम शॉपिंग को हतोत्साहित/निषेध करते हैं। कॉमन लॉ/सामान कानून वाले देशों में फोरम शॉपिंग के अभ्यास को रोकने हेतु "फोरम गैर-सुविधा" के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
फोरम शॉपिंग न्याय और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव:
- यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत से समझौता कर सकता है, जिसके लिये आवश्यक है कि निष्पक्ष न्यायाधिकरण के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति की निष्पक्ष सुनवाई होनी चाहिये।
- यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन कर सकता है, जिसके लिये यह आवश्यक है कि न्यायालयों को सामान्य हित के मामलों पर एक-दूसरे के निर्णयों का सम्मान करना चाहिये और उन्हें टालना चाहिये।
- यह अंतिमता के सिद्धांत को बाधित कर सकता है, जिसके लिये आवश्यक है कि मुकदमेबाज़ी किसी बिंदु पर समाप्त होनी चाहिये और अनिश्चित काल तक लंबी नहीं चलनी चाहिये।
फोरम शॉपिंग पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:
- डॉ. खैर-उन-निसा और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश एवं अन्य 2023:
- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक ही कारण होने के बावजूद अदालत की विभिन्न शाखाओं के समक्ष कई याचिकाएँ दायर करके फोरम शॉपिंग में शामिल होने हेतु याचिकाकर्त्ताओं पर एक लाख रुपए का ज़ुर्माना लगाया।
- विजय कुमार घई बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 2022:
- सर्वोच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग को "अदालतों द्वारा एक विवादित प्रथा" करार दिया, जिसे "कानून में कोई मंज़ूरी और सर्वोच्चता नहीं है"।
- धनवंतरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बनाम राजस्थान राज्य 2022:
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग में शामिल होने के लिये एक पार्टी पर 10 लाख रुपए का ज़ुर्माना लगाने के आदेश को बरकरार रखा।
- भारत संघ और अन्य बनाम सिप्ला लिमिटेड 2017:
- सर्वोच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग के लिये अपनाए जाने वाले "कार्यात्मक परीक्षण" को निर्धारित किया।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित "कार्यात्मक परीक्षण" यह निर्धारित करने के लिये था कि क्या एक वादी वास्तव में न्याय की मांग कर रहा है या फोरम शॉपिंग के माध्यम से चालाकी की रणनीति में संलग्न है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग के लिये अपनाए जाने वाले "कार्यात्मक परीक्षण" को निर्धारित किया।
- रोस्मेर्टा HSRP वेंचर्स प्रा. लिमिटेड बनाम दिल्ली सरकार और अन्य 2017:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक निजी कंपनी पर ज़ुर्माना लगाया जिसमें पाया गया कि वह मध्यस्थता के मामले में “फोरम हंटिंग” में लिप्त थी।
- कामिनी जायसवाल बनाम भारत संघ 2017:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "बेईमान तत्त्व" हमेशा अपनी पसंद की अदालत या मंच खोजने के लिये तत्पर रहते हैं लेकिन कानून द्वारा उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं है।
- चेतक कंस्ट्रक्शन लिमिटेड बनाम ओम प्रकाश 1988:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि वादियों को अपनी सुविधा के लिये न्यायालय चुनने की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिये। कोर्ट ने कहा कि “फोरम शॉपिंग” के किसी भी प्रयास को दृढ़ता से हतोत्साहित किया जाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में जलवायु परिवर्तन का अर्थशास्त्र
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021, जलवायु जोखिम घटनाएँ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), हीट स्ट्रेस, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), पंचामृत, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार योजना (PAT), प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना मेन्स के लिये:भारत की समष्टि अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये भारत की पहल |
चर्चा में क्यों?
विगत महीनों में इस बारे में कई मामले सामने आए जिन्होंने यह दर्शाया कि कैसे चरम मौसमीय घटनाओं ने भारत में सामान्य जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 ने जलवायु जोखिम की घटनाओं के जोखिम और भेद्यता के मामले में सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में भारत को 7वाँ स्थान दिया था।
- जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है, जो न केवल पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिये बल्कि आर्थिक विकास के लिये भी जोखिम उत्पन्न करता है।
जलवायु परिवर्तन भारत की समष्टि अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकता है?
- परिचय:
- जलवायु परिवर्तन अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष (उत्पादक क्षमता) और मांग पक्ष (उपभोग और निवेश) दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- इसका विविध स्थानों एवं आर्थिक क्षेत्रों में स्पिलओवर प्रभाव अर्थात् (विविध क्षेत्रों की आपसी संबद्धता के कारण प्रभाव) पड़ सकते है, साथ ही सीमा पार तथा वैश्विक रूप से विस्तृत प्रभाव के जोखिम हो सकते हैं।
- प्रभाव:
- कृषि उत्पादन में कमी: जलवायु परिवर्तन फसल चक्र को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है और तापमान में बदलाव, वर्षा के प्रारूप, कीट संक्रमण,मृदा कटाव, जल की कमी व बाढ़ तथा सूखे जैसी चरम मौसमीय घटनाओं के कारण कम कृषि उपज का कारण बन सकता है।
- कृषि अपने संबद्ध क्षेत्रों के साथ भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है और अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। कम पैदावार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है एवं शहरी क्षेत्रों में भी मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है।
- मत्स्य पालन क्षेत्र में व्यवधान: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह का बढ़ता तापमान मत्स्य प्रजातियों के वितरण और व्यवहार को बाधित कर सकता है।
- कुछ प्रजातियाँ ठंडे जल में प्रवास कर सकती हैं या अपने प्रवासी प्रतिरूप को बदल सकती हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में मत्स्य उपलब्धता प्रभावित हो सकती है। इससे मत्स्यन संरचना (अल्प या व्यापक उपलब्धता) में परिवर्तन हो सकता है, जिससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
- स्वास्थ्य लागत में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन से मलेरिया, डेंगू, हैज़ा, हीट स्ट्रोक, श्वसन संक्रमण और मानसिक तनाव जैसी बीमारियों की घटनाओं एवं गंभीरता में वृद्धि हो सकती है।
- यह बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और गरीबों जैसे कमज़ोर समूहों के पोषण एवं कल्याण को भी प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य लागत प्रयोज्य आय को कम कर सकती है, श्रम उत्पादकता को कम कर सकती है, साथ ही सार्वजनिक व्यय को बढ़ा सकती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2030 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिवर्ष लगभग 2,50,000 अतिरिक्त मौतें कुपोषण, मलेरिया, डायरिया एवं गर्मी व तनाव के कारण होने की आशंका है।
- क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचा: जलवायु परिवर्तन से समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय क्षरण, भूस्खलन, तूफान, बाढ़ और हीट वेव के कारण भौतिक बुनियादी ढाँचे जैसे सड़कें, पुल, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे, विद्युत संयंत्र, जल आपूर्ति प्रणाली एवं इमारतें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
- क्षतिग्रस्त अवसंरचना आर्थिक गतिविधि, व्यापार और कनेक्टिविटी को बाधित कर सकती है तथा रख-रखाव एवं प्रतिस्थापन लागत में वृद्धि कर सकती है।
- उदाहरण के लिये भारत को पिछले दशक में बाढ़ के कारण 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई जो वैश्विक आर्थिक नुकसान का 10% है।
- औद्योगिक उत्पादन में कमी: जलवायु परिवर्तन नए जलवायु-अनुकूल नियमों, पुराने स्टॉक के कम उपयोग, उत्पादन प्रक्रियाओं के स्थानांतरण तथा जलवायु संबंधी नुकसान के कारण गतिविधियाँ बाधित जैसे कारकों के कारण औद्योगिक क्षेत्र में परिचालन लागत बढ़ा सकता है और मुनाफा कम कर सकता है।
- वर्ष 2030 तक गर्मी के तनाव से जुड़ी उत्पादकता में गिरावट के कारण 80 मिलियन वैश्विक नौकरी के नुकसान में से 34 मिलियन का नुकसान भारत में होने का अनुमान है।
- ऊर्जा संकट: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, भारत की प्राथमिक ऊर्जा मांग वर्ष 2030 तक दोगुनी हो जाएगी।
- ऊर्जा और जलवायु एक विशिष्ट संबंध साझा करते हैं जैसे बढ़ते तापमान गर्मी के प्रभाव को कम करने की प्रक्रिया में सहायता के लिये ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि की मांग करते हैं।
- वित्तीय सेवाओं पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये बढ़ते क्रेडिट जोखिम के कारण वित्तीय सेवाओं पर दबाव डाल सकता है। यह जलवायु से संबंधित घटनाओं जैसे बाढ़, तूफान या सूखे के कारण ऋण चुकाने की उधारकर्त्ताओं की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- ये घटनाएँ संपत्तियों को नुकसान पहुँचा सकती हैं, आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं और व्यवसायों की लाभप्रदता को प्रभावित कर सकती हैं, संभावित रूप से ऋण चूक तथा ऋण हानि हो सकती है।
- यह कम मांग, रद्दीकरण और सुरक्षा चिंताओं के कारण बीमा दावों को भी बढ़ा सकता है तथा यात्रा एवं आतिथ्य सेवाओं को बाधित कर सकता है।
- कृषि उत्पादन में कमी: जलवायु परिवर्तन फसल चक्र को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है और तापमान में बदलाव, वर्षा के प्रारूप, कीट संक्रमण,मृदा कटाव, जल की कमी व बाढ़ तथा सूखे जैसी चरम मौसमीय घटनाओं के कारण कम कृषि उपज का कारण बन सकता है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु भारत की पहलें:
- पंचामृत: भारत ने भारत की जलवायु के निम्नलिखित पाँच अमृत तत्वों (पंचामृत) को प्रस्तुत किया है:
- वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तक पहुँचना।
- वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करना।
- वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी।
- वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक कार्बन अर्थव्यवस्था में 45% की तीव्र कमी।
- वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना:
- इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इसका मुकाबला करने के चरणों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने हेतु भारत की तैयारियाँ:
- कार्बन पृथक्करण को बढ़ाना: भारत अपने वन और वृक्षों के आवरण के विस्तार, खराब भूमि को बहाल कर, कृषिवानिकी को बढ़ावा देकर और कम कार्बन वाली खेती के तरीकों को अपनाकर अपनी कार्बन पृथक्करण क्षमता को बढ़ा सकता है।
- कार्बन पृथक्करण न केवल उत्सर्जन को कम कर सकता है बल्कि जैवविविधता संरक्षण, भूमि की उर्वरता में सुधार, जल सुरक्षा, आजीविका समर्थन और आपदा जोखिम में कमी जैसे कई सह-लाभ भी प्रदान करता है।
- जलवायु लचीलापन का निर्माण: भारत अपनी आपदा प्रबंधन प्रणालियों को सुदृढ़ कर, अपनी पूर्व चेतावनी और पूर्वानुमान क्षमताओं में सुधार, जलवायु बुनियादी ढाँचे में निवेश, जलवायु-स्मार्ट कृषि विकसित कर, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को बढ़ाकर और स्थानीय समुदायों एवं संस्थानों को सशक्त बनाकर अपनी जलवायु कार्यक्रम में लचीलापन ला सकता है।
- भारत की हरित परिवहन क्रांति को बढ़ाना: एक सुदृढ़ चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क स्थापित करके और EV अपनाने के लिये प्रोत्साहन की पेशकश कर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- इलेक्ट्रिक बसों, साझा गतिशील सेवाओं और स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन प्रणालियों जैसे नवीन सार्वजनिक परिवहन समाधानों का परिचय भीड़भाड़ और उत्सर्जन को कम कर सकता है।
- क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर: जैविक खेती, कृषि वानिकी और सटीक कृषि को बढ़ावा देकर टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- रिमोट सेंसिंग, IoT डिवाइस और AI-आधारित एनालिटिक्स जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों को एकीकृत करने से संसाधन उपयोग को अनुकूलित किया जा सकता है तथा जल की खपत को कम किया जा सकता है और फसल उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रारंभिक:प्रश्न. जलवायु-अनुकूलन कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये, भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि' (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज एलाएन्स के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के कारण भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017) |