डेली न्यूज़ (18 Dec, 2024)



माओवादी उग्रवाद का उन्मूलन

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल, कमांडो बटालियन फॉर रेज़ोल्यूट एक्शन, ऑपरेशन समाधान, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, नागरिक कार्यवाही कार्यक्रम, वन अधिकार अधिनियम, 2006, विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, पाँचवीं और नौवीं अनुसूची, जनजातीय सलाहकार परिषद

मेन्स के लिये:

भारत में वामपंथी उग्रवाद से जुड़े मुद्दे और चुनौतियाँ।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर स्थित अमर शहीद स्मारक पर माओवादी उग्रवाद ( नक्सलवाद) से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • उन्होंने यह भी कहा कि त्रि-आयामी रणनीति का उपयोग करके मार्च 2026 तक भारत माओवादी उग्रवाद (नक्सलवाद) से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा।
    • त्रि-आयामी लालच-और-दंड रणनीति (Three-Pronged Carrot-And-Stick Strategy) में माओवादी उग्रवाद से निपटने के लिये सुरक्षा उपाय, विकास और सशक्तिकरण शामिल हैं।

माओवादी उग्रवाद को खत्म करने की त्रि-आयामी रणनीति क्या है?

  • सुरक्षा उपाय (बल): 
    • सुरक्षा बलों की तैनाती: वामपंथी उग्रवाद (LWE) प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय और राज्य पुलिस बलों की उपस्थिति को मज़बूत करना।
    • संयुक्त अभियान: राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र बलों जैसे CRPF (केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल) तथा COBRA (कमांडो बटालियन फॉर रेज़ोल्यूट एक्शन) के बीच समन्वित कार्यवाही।
    • क्षमता निर्माण: सैन्य बलों के लिये हथियारों, संचार प्रणालियों और बुनियादी ढाँचे को उन्नत करना। उदाहरण के लिये, CAPF बटालियनों के लिये मिनी UAV, सौर लाइट, मोबाइल टावर आदि  का उपयोग।
    • ऑपरेशन समाधान: खुफिया जानकारी जुटाने, परिचालन रणनीति और विकास पर केंद्रित एक दृष्टिकोण।
  • विकास पहल:
    • विकास केंद्रित योजनाएँ: प्रमुख कार्यक्रमों का कार्यान्वयन जैसे:
      • PMGSY (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना): ग्रामीण सड़क कनेक्टिविटी के लिये।
      • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 15,000 घरों के निर्माण को मंज़ूरी दी है। 
        • प्रत्येक गाँव में सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ पहुँचाने के प्रयास चल रहे हैं।
      • वामपंथी उग्रवाद प्रभावित 47 ज़िलों में कौशल विकास योजना: वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिये विशेष रूप से तैयार की गई।
      • नागरिक कार्यवाही कार्यक्रम (CAP): वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न कल्याणकारी गतिविधियों को करने के लिये CAPFs को वित्तीय अनुदान प्रदान करना
      • विशेष अवसंरचना योजना: सुदूरवर्ती क्षेत्रों में सड़क, पुल और स्कूल जैसी बुनियादी अवसंरचना का सृजन।
      • बेहतर शासन: स्थानीय कार्मिकों की भर्ती के माध्यम से इन क्षेत्रों में प्रशासनिक दक्षता बढ़ाना।
  • सशक्तीकरण (दिल और दिमाग जीतने का दृष्टिकोण):
    • सार्वजनिक सहभागिता: सरकार और जनजातीय समुदायों के बीच विश्वास और संचार को बढ़ावा देना, अलगाव को कम करना।
    • पुनर्वास नीतियाँ: माओवादी कार्यकर्त्ताओं के लिये आत्मसमर्पण और पुनर्वास योजनाएँ, जिनमें शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा वित्तीय सहायता जैसे प्रोत्साहन दिये जाते हैं।
    • शिकायतों का समाधान: निष्पक्ष भूमि अधिग्रहण नीतियों को सुनिश्चित करना, वन अधिकार अधिनियम, 2006 का कार्यान्वयन और सामाजिक-आर्थिक अंतर को कम करने के लिये जनजातीय अधिकारों का संरक्षण।

नोट: समाधान का अर्थ है S- Smart leadership (कुशल नेतृत्व), A- Aggressive strategy (आक्रामक रणनीति), M- Motivation and training (अभिप्रेरणा एवं प्रशिक्षण), A- Actionable intelligence (अभियोज्य गुप्तचर व्यवस्था), D- Dashbord based key performance indicators and key result area (कार्ययोजना आधारित प्रदर्शन सूचकांक एवं परिणामोन्मुखी क्षेत्र), H- Harnessing technology (कारगर प्रौद्यौगिकी), A- Action plan for each threat (प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना) और N- No access to financing (नक्सलियों के वित्त-पोषण को विफल करने की रणनीति)। 

माओवाद क्या है?

  • परिचय: माओ से-तुंग द्वारा विकसित साम्यवाद का एक रूप है। यह सशस्त्र विद्रोह, जन-आंदोलन और रणनीतिक गठबंधनों के संयोजन के माध्यम से राज्य की सत्ता पर अधिकार करने का सिद्धांत है।
    • माओ ने इस प्रक्रिया को 'दीर्घकालिक जनयुद्ध' कहा, जिसमें सत्ता पर अधिकार करने के लिये ‘मिलिट्री लाइन' पर ज़ोर दिया जाता है ।
  • माओवादी विचारधारा: माओवादी विचारधारा का केंद्रीय विषय राज्य सत्ता पर कब्ज़ा  करने के साधन के रूप में  हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का प्रयोग करना है।
    • माओवादी उग्रवाद सिद्धांत के अनुसार, 'हथियार रखना अस्वीकार्य है'।
  • भारतीय माओवादी: भारत में सबसे बड़ा और सबसे हिंसक माओवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) है जिसका गठन वर्ष 2004 में हुआ था।
    • फ्रंट ऑर्गनाइज़ेशन मूल माओवादी पार्टी की शाखाएँ हैं, जो कानूनी उत्तरदायित्व से बचने के लिये अलग अस्तित्व का दावा करती हैं।
  • CPI (माओवादी) और उसके अग्रणी संगठनों को गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है

Left_Wing_Extremism_in_India

माओवादी उग्रवाद को समाप्त करने में हाल की उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • 'माओवाद-मुक्त' गाँव: वर्ष 2023 में छत्तीसगढ़ में 287 नक्सलियों को मार गिराया गया, लगभग 1,000 को गिरफ्तार किया गया और 837 ने आत्मसमर्पण कर दिया।
    • दंतेवाड़ा के गाँवों को क्रमिक रूप से 'माओवादी मुक्त' घोषित किया गया है, वर्ष 2021 तक 15 से अधिक गाँवों को यह दर्जा प्राप्त हो जाएगा। 
    • रिकॉर्ड संख्या में नक्सलवादियों को मारा गया, गिरफ्तार किया गया या उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। यह इतिहास में पहली बार है कि एक ही वर्ष में इतना बड़ा क्षेत्र नक्सल प्रभाव से मुक्त हो गया है।

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  • सुरक्षा बलों की मृत्यु में कमी: वर्ष 2024 में, सुरक्षा बलों की केवल 14 मृत्यु दर्ज की गईं, जो वर्ष 2007 में अधिकतम 198 मृत्यु की तुलना में काफी कम है।
  • समर्थन हासिल करना: माओवादियों की असफलता का कारण जनजातीय समुदायों से मिल रही समर्थन में कमी है, जो वर्षों तक नुकसान पहुँचाने के बाद अलगाव महसूस कर रहे हैं।
  • उन्नत सुरक्षा उपाय: सैन्य सहायता और परिचालन दक्षता के लिये अब 12 हेलीकॉप्टर तैनात किये गए हैं, जबकि पहले केवल दो हेलीकॉप्टर तैनात थे, जिसके बाद से सरकारी सैन्य हताहतों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • बुनियादी ढाँचा और रसद: वर्ष 2014 और 2024 के बीच 544 किलेबंद पुलिस स्टेशन बनाए गए, जबकि वर्ष 2004 और 2014 के बीच केवल 66 ही बनाए गए थे।
    • सुरक्षा संबंधी रिक्तियों को भरने के लिये 45 पुलिस स्टेशनों को भरने का निर्णय लिया गया है।
  • विशेष केंद्रीय सहायता: अब तक कुल 14,367 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए हैं, जिनमें से 12,000 करोड़ रुपए प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे में सुधार पर खर्च किये गए हैं।

माओवादी उग्रवाद को समाप्त करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • शोषण और दमन: सामंती व्यवस्था, जाति पदानुक्रम और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 जैसे कानून ने आदिवासियों को और अधिक अलग-थलग कर दिया, जबकि माओवादियों के मूल आधार जनजातियों तथा दलितों को ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रहने के लिये मजबूर किया गया।
  • विकास का अभाव: आंतरिक क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का अभाव है, महत्त्वपूर्ण आवंटन के बावजूद शासन और कार्यान्वयन विफलताओं के कारण विकास अवरुद्ध है।
  • केंद्रीकृत माओवादी कमान: CPI (माओवादियों) के पास केंद्रीकृत कमान है, जो सरकार की विभाजित प्रतिक्रिया के कारण अभुजमाध जैसे क्षेत्रों को सैन्य ठिकानों के रूप उपयोग करने को सक्षम बनाती है।
  • समृद्ध संसाधनों तक पहुँच: 80% कोयला भंडार और लगभग 19% अन्य समृद्ध खनिज संसाधन नक्सल प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में स्थित हैं, जिससे उन्हें अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिये एक अतिरिक्त प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • विश्वास की कमी: अप्रभावी शासन, संवैधानिक प्रावधानों (जैसे- पाँचवीं एवं नौवीं अनुसूची) के गैर-कार्यान्वयन तथा उचित पुनर्वास के बिना विस्थापन से स्थानीय अलगाव की स्थिति और खराब हो जाती है।

आगे की राह:

  • शासन में सुधार: पाँचवीं अनुसूची के अनुसार जनजातीय सलाहकार परिषदों का गठन करना ताकि आदिवासियों को अपने संसाधनों के प्रबंधन में सशक्त बनाया जा सके।
    • भूमिहीनों को भूमि पुनर्वितरित करने के लिये नौवीं अनुसूची के अंतर्गत भूमि हदबंदी अधिनियम लागू करने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक विकास: बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आक्रामक और समावेशी विकासात्मक पहलों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • अफीम की खेती जैसी अवैध गतिविधियों पर निर्भरता को कम करने के लिये वैकल्पिक आजीविका प्रदान करना।
  • सुरक्षा उपाय: स्थानीय शासन संरचनाओं को सशक्त बनाते हुए जनजातीय क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिये अर्द्ध-सैनिक बलों की विशेष इकाई तैनात करना।
  • संसाधन प्रबंधन: इस प्रक्रिया में हितधारकों के रूप में आदिवासियों के साथ प्राकृतिक संसाधनों का सतत् और न्यायसंगत दोहन सुनिश्चित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: माओवादी उग्रवाद को खत्म करने के लिये भारत सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली त्रि-आयामी रणनीति का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

मेन्स:

Q. भारत के पूर्वी हिस्से में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरे का मुकाबला करने के लिये भारत सरकार, नागरिक प्रशासन और सुरक्षा बलों को क्या रणनीति अपनानी चाहिये? (2020)

Q. पिछड़े क्षेत्रों में बड़े उद्योगों का विकास करने के सरकार के लगातार अभियानों का परिणाम जनजातीय जनता और किसानों, जिनको अनेक विस्थापनों का सामना करना पड़ता है, का विलगन (अलग करना) है। मल्कानगिरि एवं नक्सलबाड़ी पर ध्यान केंद्रित करते हुए वामपंथी उग्रवादी विचारधारा से प्रभावित नागरिकों को सामाजिक तथा आर्थिक संवृद्धि की मुख्यधारा में फिर से लाने की सुधारक रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2015)


स्विटज़रलैंड द्वारा भारत का MFN दर्जा रद्द किया जाना

प्रिलिम्स के लिये:

मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज़, दोहरा कराधान बचाव समझौता, कर छूट, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठनआयकर अधिनियम, 1961, व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौता, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, कर चोरी, विश्व व्यापार संगठन, मुक्त व्यापार समझौता

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय कराधान में मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज़ और दोहरे कराधान से बचाव समझौतों का महत्त्व।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों? 

स्विट्ज़रलैंड ने दोहरे कराधान बचाव समझौते (DTAA) के अंतर्गत शामिल मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लॉज़ के तहत भारत का दर्जा रद्द करने का निर्णय लिया है। 

  • स्विट्ज़रलैंड द्वारा 1 जनवरी 2025 से भारतीय संस्थाओं पर 10% की पूर्व कर दर लागू की जाएगी।

DTAA के MFN क्लॉज़ के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच DTAA: भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच आय पर दोहरे कराधान से बचाव हेतु 2 नवंबर 1994 को DTC IN-CH (भारत-स्विट्ज़रलैंड प्रत्यक्ष कर संधि) पर हस्ताक्षर किये गए थे। इसे वर्ष 2000 और वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था।
    • वर्ष 2010 के प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 11 में MFN क्लॉज़ शामिल है, जो DTAA के तहत स्विट्ज़रलैंड द्वारा MFN का दर्जा वापस लेने का आधार है। 

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  • प्रोटोकॉल में MFN क्लॉज़: MFN क्लॉज़ से यह सुनिश्चित होता है कि भारत द्वारा आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के किसी तीसरे सदस्य देश को दी जाने वाली कम कर दरों की सुविधा वर्ष 2010 के प्रोटोकॉल के बाद हुई सहमति के अनुसार, स्विट्ज़रलैंड पर भी स्वचालित रूप से लागू होगी।
    • MFN क्लॉज़ का उद्देश्य कराधान दरों में समानता बनाए रखना था।
  • स्विट्ज़रलैंड द्वारा MFN का दर्जा वापस लेने का कारण: वर्ष 2010 के प्रोटोकॉल के बाद भारत ने दो OECD सदस्यों अर्थात लिथुआनिया (लाभांश पर 5% कर दर) और कोलंबिया (लाभांश पर 5% सामान्य कर दर) के साथ DTAA पर हस्ताक्षर किये।
    • हालाँकि भारत ने यही रियायती कर दर स्विट्ज़रलैंड को प्रदान नहीं की।
    • वर्ष 2023 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के बाद स्विट्ज़रलैंड ने अपने MFN क्लॉज़ की व्याख्या में पारस्परिकता की कमी का हवाला देते हुए 1 जनवरी 2025 से पूर्व लागू 10% कर कटौती दर को वापस लेने का फैसला किया।
  • भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने दावा किया कि MFN क्लॉज़ तब तक स्वतः लागू नहीं होता जब तक कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 90 के तहत आधिकारिक रूप से अधिसूचित न कर दिया जाए।
    • इसने आगे तर्क दिया कि यह क्लॉज़ केवल उन देशों पर लागू होता है जो 2010 प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करते समय OECD के सदस्य थे।
    • अक्तूबर 2023 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि लिथुआनिया और कोलंबिया के वर्ष 2010 के बाद OECD में शामिल होने से MFN क्लॉज़ लागू नहीं होगा, इसलिये भारत को अपने लाभांश कर की दर को घटाकर 5% करने की आवश्यकता नहीं है।
      • लिथुआनिया और कोलंबिया क्रमशः वर्ष 2018 और 2020 में OECD में शामिल हुए।
  • DTAA के तहत भविष्य का कराधान: 1 जनवरी 2025 से कर की दर 10% होगी क्योंकि MFN क्लॉज़ अब लागू नहीं होगा। वर्ष 2018-2024 की अवधि की कर दर 5% है।
  • निवेश और व्यापार पर प्रभाव: स्विट्ज़रलैंड ने स्पष्ट किया कि इस निर्णय से भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच मुक्त व्यापार समझौते या भारत में स्विस निवेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

भारत-स्विट्ज़रलैंड निवेश परिदृश्य

  • वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2000 से वर्ष 2023 के बीच भारत में स्विट्ज़रलैंड का निवेश प्रवाह 9.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे वह भारत में 12 वाँ सबसे बड़ा निवेशक बन गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, वर्ष 2021 में भारत में स्विस निवेश 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • IMF के अनुसार, स्विट्ज़रलैंड भारतीय FDI शेयरों का 8 वाँ सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है, जिसकी राशि 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर है।
  • नेस्ले, ABB, नोवार्टिस, रोश, UBS और क्रेडिट सुइस सहित 330 से अधिक स्विस कंपनियों ने मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स, वित्त, निर्माण, सतत् प्रौद्योगिकियों और ICT सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भारत में निवेश किया है।
  • TCS, इंफोसिस, HCL टेक और विप्रो सहित लगभग 140 भारतीय कंपनियों ने स्विट्ज़रलैंड में लगभग 180 संस्थाओं में निवेश किया है, जो मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी (32%) और लाइफ साइंस (21%) के क्षेत्र में हैं।

स्विट्ज़रलैंड

  • स्विट्ज़रलैंड, आधिकारिक तौर पर स्विस परिसंघ, मध्य यूरोप में एक छोटा पर्वतीय देश है, जो आल्प्स पर्वतों, झीलों और घाटियों के लिये जाना जाता है।
  • यह एक स्थलरुद्ध देश है जिसकी सीमा फ्राँस, इटली, ऑस्ट्रिया, जर्मनी और लिकटेंस्टीन से लगती है। 
  • यह सदियों से अपनी तटस्थता  के लिये प्रसिद्ध है।
    • परिणामस्वरूप, स्विट्ज़रलैंड, विशेष रूप से जिनेवा, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, जैसे कि रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति और संयुक्त राष्ट्र के लिये एक लोकप्रिय मुख्यालय स्थान है।
    • यह यूरोपीय संघ और नाटो का सदस्य नहीं है।
  • यह अपने गोपनीय बैंकिंग क्षेत्र (Secretive Banking Sector) के लिये भी जाना जाता है।

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भारत के साथ MFN दर्जे के निलंबन का क्या प्रभाव हो सकता है?

  • बढ़ी हुई कर देयताएँ: स्विट्ज़रलैंड में परिचालन करने वाले भारतीय व्यवसायों को उच्च कर देयताओं का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि स्विट्ज़रलैंड से प्राप्त लाभांश पर रोक कर 5% से बढ़कर 10% हो जाएगा।
    • कर कटौती (प्रतिधारण कर) किसी व्यक्ति (निवासी या अनिवासी) पर लाभांश, ब्याज और रॉयल्टी के रूप में भुगतान करते समय कर रोकने या कटौती करने का दायित्व है।
  • सीमा पार कर विवाद: इस निलंबन से संधि के प्रावधानों की व्याख्या के संबंध में भारत और स्विट्ज़रलैंड के बीच विवाद उत्पन्न हो सकता है।
  • कराधान में संरक्षणवाद: स्विट्ज़रलैंड का कदम भारत सहित देशों की व्यापक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जो घरेलू राजस्व की रक्षा के लिये सख्त कर संधि व्याख्याओं को अपना रहे हैं।
    • इस निर्णय को वैश्विक बदलाव के एक भाग के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ देश अपने कर आधार की सुरक्षा के लिये अधिक संरक्षणवादी नीतियाँ अपना रहे हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय कर मानदंडों का विकास: यह निर्णय अन्य देशों को कर संधि वार्ता में एकरूपता अपनाने के लिये प्रेरित कर सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी पक्ष MFN जैसे आवश्यक खंडों पर एकमत हों।

दोहरा कर बचाव समझौता (DTAA) क्या है?

  • परिचय: DTAA दो या दो से अधिक देशों के बीच एक द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौता है जिसका उद्देश्य समान आय पर दोहरे कराधान से बचना है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि आय घरेलू और विदेशी दोनों करों के अधीन नहीं होगी।
  • DTAA के उद्देश्य: 
    • दोहरे कराधान से बचाव: एक ही आय पर दो बार कर का भुगतान करने से रोकता है।
    • वित्तीय अपवंचन की रोकथाम: कर अपवंचन से निपटने के लिये सूचना साझा करने में सक्षम बनाता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रोत्साहन: स्पष्ट कर नियमों और कम देयताओं के साथ सीमा पार व्यापार को बढ़ावा देता है।
  • DTAA की कार्यप्रणाली: 
    • निवास और स्रोत-आधारित कराधान: DTAA निवास और स्रोत दोनों देशों के लिये कर अधिकारों को परिभाषित करता है।
    • क्रेडिट विधि: निवास देश को स्रोत देश में भुगतान किये गये करों पर क्रेडिट प्राप्त होता है।
    • छूट पद्धति: एक देश में आय पर कर लगाया जा सकता तथा दूसरे देश में छूट प्रदान की जा सकती है।
    • भारत का DATT: 94 से अधिक व्यापक DTAA और आठ प्रतिबंधित DTAA के साथ, भारत सबसे बड़े DTAA नेटवर्कों में से एक है।

MFN की स्थिति क्या है?

  • परिचय: वह व्यापारिक दर्जा जो दो देशों के बीच गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार की गारंटी देता है, MFN के रूप में जाना जाता है।
    • इसका अर्थ अधिमान्य व्यवहार नहीं है, बल्कि यह गारंटी है कि प्राप्तकर्त्ता देश को अनुदान देने वाले देश के अन्य व्यापार साझेदारों की तुलना में नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • MFN और WTO: MFN विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का एक प्रमुख सिद्धांत है।
    • विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत, यदि कोई देश किसी एक व्यापार साझेदार को विशेष दर्जा देता है, तो यह दर्जा सभी विश्व व्यापार संगठन सदस्यों को दिया जाना चाहिये।
  • गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार: समान व्यापार शर्तें प्रदान करके, MFN यह गारंटी देता है कि राष्ट्र एक दूसरे के साथ निष्पक्ष व्यवहार करें। इन शर्तों में शामिल हैं:
    • न्यूनतम सम्भव व्यापार शुल्क और व्यापार बाधाएँ।
    • उच्च आयात कोटा
    • बाजार तक पहुँच में वृद्धि
    • वस्तु के प्रवाह के लिये बेहतर स्थितियाँ
  • MFN के अपवाद: 
    • मुक्त व्यापार समझौते (FTA): FTA में शामिल देश गैर-सदस्यों को छोड़कर एक-दूसरे को विशेष रियायतें प्रदान करते हैं।
    • क्षेत्रीय व्यापार समझौते (RTA): सदस्य देश आपस में  बेहतर शर्तों पर संवाद करते हैं, जिसमे अक्सर गैर-सदस्यों को शामिल नहीं किया जाता है।

निष्कर्ष:

भारत के साथ अपने DTAA में MFN खंड को निलंबित करने का स्विट्ज़रलैंड का निर्णय अंतर्राष्ट्रीय कराधान में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, जो कर संधियों में विकसित हो रहे वैश्विक मानदंडों को उजागर करता है। यह परिवर्तन स्विट्ज़रलैंड में परिचालन करने वाली भारतीय संस्थाओं के लिये कर देनदारियों को बढ़ा सकता है और सीमा पार निवेश प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, जबकि स्पष्ट संधि व्याख्याओं की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: दोहरे कराधान और राजकोषीय अपवंचन को रोकने में दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAA) की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अप्रवासी सत्त्वों द्वारा दी जा रही ऑनलाइन विज्ञापन सेवाओं पर भारत द्वारा 6% समकरण कर लगाए जाने के निर्णय के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2018)

  1. यह आय कर अधिनियम के भाग के रूप में लागू किया गया है। 
  2. भारत में विज्ञापन सेवाएँ देने वाले अप्रवासी सत्त्व अपने गृह देश में "दोहरे कराधान से बचाव समझौते" के अंतर्गत टैक्स क्रेडिट का दावा कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


Q. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन और फ्राँस जैसी कई प्रमुख और परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में मॉरीशस से आता है। क्यों? (2010)

(a) FDI प्राप्त करने के संबंध में कुछ देशों के लिये भारत की प्राथमिकता है
(b) भारत का मॉरीशस के साथ दोहरा कराधान अपवंचन समझौता है
(c) मॉरीशस के अधिकांश नागरिकों की भारत के साथ जातीय पहचान है और इसलिये वे भारत में निवेश करने में सुरक्षित महसूस करते हैं
(d) वैश्विक जलवायु परिवर्तन के आसन्न खतरों के कारण मॉरीशस को भारत में भारी निवेश करने के लिये प्रेरित करते है। 

उत्तर: (B) 


मेन्स: 

प्रश्न: केंद्रीय बजट, 2018-2019 में दीर्घकालिक पूँजी अभिलाभ कर (एल० सी० जी० टी०) तथा लाभांश वितरण कर (डी० डी० टी०) के संबंध में प्रारंभ किये गए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों पर टिप्पणी कीजिये। (2018)


उपराष्ट्रपति को पद से हटाना

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के उपराष्ट्रपति, संबंधित संवैधानिक प्रावधान

मेन्स के लिये:

भारत के उपराष्ट्रपति की चुनाव प्रक्रिया और संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति, जो राज्य सभा के सभापति के रूप में भी कार्य करते हैं, के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिये (अनुच्छेद 67 (b) के तहत) नोटिस प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया है।

  • राज्य सभा के संबंध में अविश्वास प्रस्ताव एक अनौपचारिक शब्द है जिसका उल्लेख संविधान में नहीं है।

अविश्वास प्रस्ताव

  • सरकार के समर्थन का आकलन करने के लिये अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में (राज्यसभा में नहीं) पेश किया जाता है।
  • इस पर विचार करने के लिये 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है और यदि यह पारित हो जाता है तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
  • ये प्रस्ताव आमतौर पर तब लाया जाता है, जब ऐसा लगता है कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है।

उपराष्ट्रपति के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • उपाध्यक्ष:
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में कहा गया है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।
    • अनुच्छेद 64 में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति राज्य सभा के पदेन सभापति के रूप में भी कार्य करता है तथा वह कोई अन्य लाभ का पद नहीं धारण कर सकता है।
    • जब उपराष्ट्रपति भारत के संविधान के अनुच्छेद 65 के तहत राष्ट्रपति की भूमिका या कर्त्तव्यों को ग्रहण करता है, तो वह राज्य सभा के सभापति के दायित्वों का निर्वहन और अनुच्छेद 97 के तहत सभापति के लिये निर्दिष्ट वेतन या भत्ते प्राप्त नहीं करेगा।
      • पद से त्यागपत्र देने के लिये भारत के राष्ट्रपति को एक पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक है, जो स्वीकृति के पश्चात प्रभावी होगा।
  • पद हेतु योग्यता: अनुच्छेद 66 में उपराष्ट्रपति के पद के लिये आवश्यक योग्यताएँ निर्दिष्ट की गई हैं। जो निम्नलिखित हैं-
    • भारतीय नागरिक होना चाहिये।
    • आयु कम-से-कम 35 वर्ष होनी चाहिये।
    • राज्य सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिये पात्र होना चाहिये।
    • संघ या राज्य सरकारों, स्थानीय प्राधिकरणों या किसी अन्य सार्वजनिक प्राधिकरण के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिये।
  • चुनाव:
    • रिक्ति: संविधान के अनुच्छेद 68 में यह प्रावधान है कि कार्यकाल समाप्ति के कारण उपराष्ट्रपति के रिक्त पद को भरने के लिये चुनाव वर्तमान कार्यकाल समाप्त होने से पहले पूरा किया जाना चाहिये।
      • संविधान का अनुच्छेद 324 भारत के चुनाव आयोग को उपराष्ट्रपति के चुनाव प्रक्रिया की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार प्रदान करता है।
  • प्रतिभागी: अनुच्छेद 66 में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाना चाहिये, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य शामिल होते हैं।  
    • चुनाव एकल संक्रमणीय मत का उपयोग करते हुए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का अनुसरण करता है, तथा मतदान गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है।
  • शपथ:
    • अनुच्छेद 69 के अनुसार, उपराष्ट्रपति को पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके नियुक्त प्रतिनिधि के समक्ष शपथ लेनी होगी या प्रतिज्ञान करना होगा।
  • कार्यकाल:
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 के अनुसार उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से पाँच वर्षों का होता है।
    • उपराष्ट्रपति का पद दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है और वह अपने उत्तराधिकारी के पदभार ग्रहण करने तक अपने पद पर बना रहता है।
  •  पद से हटाना:
    • अनुच्छेद 67(b) के अनुसार उपराष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है यदि "राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्य" प्रभावी बहुमत से प्रस्ताव पारित करते हैं, जिस पर लोकसभा को "सहमति" देनी होगी तथा प्रस्ताव लाने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना होगा। 
      • 14 दिन की अवधि समाप्त होने पर राज्यसभा अनुच्छेद 67(b) में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन करते हुए प्रस्ताव पर चर्चा करेगी।
    • इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अगले सत्र में इस प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है या नहीं।
    • संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत स्पष्ट रूप से अध्यक्ष या उपसभापति को सदन की अध्यक्षता करने से रोका गया है, जब तक कि उन्हें हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो।
  • शक्ति एवं कार्य:
    • यदि कोरम पूरा न हो तो राज्यसभा का सभापति सदन की कार्यवाही स्थगित कर सकता है या उसकी बैठक स्थगित कर सकता है।
    • संविधान की 10वीं अनुसूची सभापति को दल-बदल के संबंध में किसी राज्यसभा सदस्य की अयोग्यता पर निर्णय लेने का अधिकार देती है।
    • सदन में विशेषाधिकार हनन का प्रश्न उठाने के लिये सभापति की स्वीकृति आवश्यक होती है।
    • संसदीय समितियाँ (चाहे वे सभापति द्वारा या सदन द्वारा गठित हों) सभापति के मार्गदर्शन में कार्य करती हैं।
    • सभापति विभिन्न स्थायी समितियों एवं विभागीय संसदीय समितियों के सदस्यों की नियुक्ति करता है। वह कार्य मंत्रणा समिति, नियम समिति तथा सामान्य प्रयोजन समिति की अध्यक्षता भी करता है।
    • सभापति संविधान और सदन से संबंधित नियमों की व्याख्या करने के लिये ज़िम्मेदार होता है और कोई भी सभापति की व्याख्या पर विवाद नहीं कर सकता है।

नोट: मूल संविधान में यह प्रावधान था कि उपराष्ट्रपति का चयन संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा किया जाएगा। 

  • इस जटिल प्रक्रिया को 11वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1961 द्वारा समाप्त कर दिया गया।

भारत और अमेरिका के उपराष्ट्रपतियों के बीच अंतर

भारत

अमेरिका 

पाँच वर्ष का कार्यकाल होता है एवं पुनः निर्वाचन का पात्र होता है।

चार वर्ष का कार्यकाल होता है तथा पुनः निर्वाचन का पात्र होता है।

राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में कार्य करता है।

सीनेट के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है, लेकिन केवल मत बराबर होने की स्थिति में ही मतदान करता है।

  • राष्ट्रपति के त्यागपत्र, महाभियोग या मृत्यु के कारण रिक्त पद की स्थिति में राष्ट्रपति का पद ग्रहण करता है। 
  • नए राष्ट्रपति के कार्यभार संभालने तक  कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है।

राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर वह राष्ट्रपति का पद ग्रहण करता है तथा उनके शेष कार्यकाल तक राष्ट्रपति बना रहता है।

Vice_President

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत में उपराष्ट्रपति से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को बताते हुए संसदीय लोकतंत्र में इसकी भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. राज्यसभा का सभापति तथा उपसभापति उस सदन के सदस्य नहीं होते हैं
  2.  जबकि राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्यों को मतदान का कोई अधिकार नहीं होता, उनको उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान का अधिकार होता है

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, जनहित याचिका, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, विशाखा दिशा-निर्देश 

मेन्स के लिये:

राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम का अनुप्रयोग, राजनीतिक दलों में POSH लागू करने की आवश्यकता, निहितार्थ और चुनौतियाँ, भारत में महिला सुरक्षा से संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजनीतिक दलों में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) की प्रयोज्यता के संबंध में एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की गई।

  • यह मुद्दा विशेषकर भारत में राजनीतिक संगठनों की विशिष्ट संरचना को देखते हुए, अस्पष्टता का क्षेत्र बना हुआ है। 

राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम के अंतर्गत लाने की आवश्यकता क्यों है?

  • महिला सांसदों का उत्पीड़न: वर्ष 2016 के अंतर-संसदीय संघ (IPU) सर्वेक्षण में पाया गया कि विश्व स्तर पर 82% महिला सांसदों को मनोवैज्ञानिक हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिसमें लैंगिक भेदभावपूर्ण टिप्पणियाँ और धमकियाँ शामिल हैं। 
    • अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में 40% सांसद यौन उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
  • सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना: बढ़ती भागीदारी के बावजूद, महिलाओं की लोकसभा सीटों में केवल 14.4% और राज्य विधानसभाओं में 10% से भी कम हिस्सेदारी है, जो प्रणालीगत बाधाओं को दर्शाता है। 
    • राजनीतिक दलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने से महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व और नेतृत्व की भूमिका को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कानूनी और संवैधानिक अधिदेश: POSH अधिनियम की "कार्यस्थल" और "कर्मचारी" की विस्तृत परिभाषाओं में स्वयंसेवक, पार्टी कार्यकर्त्ता तथा क्षेत्र के कार्यकर्त्ता शामिल हो सकते हैं, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा की गारंटी मिलती है। इसके अतिरिक्त, संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 समानता एवं गैर-भेदभाव की गारंटी प्रदान करते हैं।
  • आंतरिक तंत्र का अभाव: राजनीतिक दलों में अक्सर उचित शिकायत निवारण प्रणालियों का अभाव होता है।
    • आंतरिक समितियों में बाह्य सदस्यों को शामिल करना या POSH अधिनियम के तहत अपेक्षित निष्पक्षता मानकों को पूरा करना अनिवार्य नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्टिंग में कमी आती है।
  • चुनावी और संस्थागत सुधार: POSH अधिनियम के अंतर्गत राजनीतिक दलों को शामिल करना, चुनाव आयोग द्वारा पार्टी संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही पर ज़ोर देने, प्रभावशाली संस्थाओं में आंतरिक लोकतंत्र तथा लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने के अनुरूप है।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ: भारत को स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों से सीख लेनी चाहिये, जिन्होंने लिंग-संवेदनशील राजनीतिक संगठन प्रथाओं को औपचारिकता बना दिया है।
    • वर्ष 2017 में स्थापित यूके संसद की स्वतंत्र शिकायत और शिकायत नीति (Independent Complaints and Grievance Policy- (ICGP)) का उद्देश्य यूके संसद में यौन उत्पीड़न से निपटना है। 

POSH अधिनियम क्या है?

परिचय:

  • इसे भारत सरकार द्वारा कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को हल करने और महिलाओं के लिये सुरक्षित एवं अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।

पृष्ठभूमि:

यौन उत्पीड़न:

  • अधिनियम में यौन उत्पीड़न को व्यापक रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह के लिये अनुरोध, यौन रूप से रंजित टिप्पणियाँ, पोर्नोग्राफी दिखाना तथा यौन प्रकृति का कोई भी अन्य अवांछित आचरण, चाहे वह शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक हो, शामिल है।

कार्यस्थल की परिभाषा:

  • POSH अधिनियम की धारा 3(1) में कहा गया है कि “किसी भी महिला को किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ेगा।” “कार्यस्थल” की परिभाषा व्यापक है और इसमें शामिल हैं:
    • सरकार द्वारा स्थापित या वित्तपोषित सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन।
    • निजी क्षेत्र के संगठन।
    • रोज़गार के दौरान कर्मचारियों द्वारा दौरा किये गए स्थान।

प्रमुख प्रावधान:

  • रोकथाम और निषेध: यह अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने और निषिद्ध करने के लिये नियोक्ताओं पर कानूनी दायित्व डालता है।
  • आंतरिक शिकायत समिति (ICC): नियोक्ताओं को यौन उत्पीड़न की शिकायतों को प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिये 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक ICC का गठन करना आवश्यक है।
    • शिकायत समितियों को साक्ष्य एकत्र करने के लिये सिविल न्यायालयों के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं।
      • ICC के विरुद्ध अपील औद्योगिक न्यायाधिकरण या श्रम न्यायालय में दायर की जा सकती है।
    • जिन संगठनों में 10 से कम कर्मचारी हों या विशिष्ट परिस्थितियों में आंतरिक समिति (IC) न हो, वहाँ शिकायतें प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिये ज़िलाधिकारी द्वारा स्थानीय समिति (LC) गठित की जाती है।
  • नियोक्ताओं के कर्त्तव्य: नियोक्ताओं को जागरूकता कार्यक्रम चलाने चाहिये, सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिये और कार्यस्थल पर POSH अधिनियम के बारे में जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिये।
  • शिकायत तंत्र: अधिनियम में शिकायत दर्ज करने, जाँच करने तथा संबंधित पक्षों को उचित अवसर प्रदान करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
  • दंड: अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन न करने पर ज़ुर्माना और व्यवसाय लाइसेंस रद्द करने सहित दंड आरोपित किया जा सकता है।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिशें:

न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन वर्ष 2012 के दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा के लिये किया गया था। इसने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के संबंध में कई प्रमुख सिफारिशें कीं, जैसे:

  • घरेलू कामगारों को शामिल करना: समिति ने सिफारिश की कि घरेलू कामगारों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये POSH अधिनियम के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये।
  • नियोक्ता द्वारा मुआवज़ा: समिति ने सुझाव दिया कि नियोक्ता को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अन्य कानूनी उपायों के साथ-साथ मुआवज़ा देने के लिये उत्तरदायी होना चाहिये।
  • रोज़गार न्यायाधिकरण: केवल आंतरिक शिकायत समिति (ICC) पर निर्भर रहने के बजाय, समिति ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिये एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव रखा, जिससे अधिक निष्पक्ष और व्यापक निर्णय सुनिश्चित हो सके।

राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम के अनुप्रयोग में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • पारंपरिक संरचना का अभाव:
    • राजनीतिक दल प्रायः अस्थायी कार्यकर्त्ताओं को नियुक्त करते हैं, जिनका कोई पारिभाषिक कार्यस्थल या उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ सीधा संबंध नहीं होता। 
      • इससे ICC की स्थापना के लिये ज़िम्मेदार कार्यस्थल की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव:
    • राजनीतिक दल आमतौर पर अपनी स्वयं की समितियों के माध्यम से आंतरिक अनुशासन (यौन उत्पीड़न के मामलों सहित) का प्रबंधन करते हैं, क्योंकि दलों से संबंधित POSH के आवेदन के लिये स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है।
  • भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका:
    • संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मामले में निर्वाचन आयोग को स्पष्ट अधिकार प्राप्त है, लेकिन POSH जैसे अन्य कानूनों के मामले में इसका अभाव है।
    • ECI ने उम्मीदवारों के लिये अनिवार्य विवरण और राजनीतिक वित्तपोषण जवाबदेही जैसे उपायों के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ाई है।
      • हालाँकि कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों, जैसे कि POSH अधिनियम, को लागू करने में इसकी भूमिका अभी भी अस्पष्ट है। 
  • विधिक उदाहरण:
    • केरल उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकार अनुसंधान एवं वकालत केंद्र बनाम केरल राज्य (2022) मामले में फैसला सुनाया कि राजनीतिक दलों का अपने सदस्यों के साथ नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता है और इसलिये वे ICC के लिये बाध्य नहीं हैं। 
    • यह निर्णय कार्यस्थल संबंधी कानूनों को राजनीतिक क्षेत्र में लागू करने की जटिलता को रेखांकित करता है।

राजनीतिक दलों से संबंधित समान मुद्दे

  • राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाना: वर्ष 2013 में CIC द्वारा इन्हें सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किये जाने के बावजूद, अधिकांश राजनीतिक दलों ने RTI अधिनियम के दायरे में आने का विरोध किया।
    • इनकी कार्यप्रणाली और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता की कमी से लोगों के बीच इसमें विश्वास के साथ लोकतांत्रिक जवाबदेही कमज़ोर होती है।
  • कोई अनिवार्य आयकर अनुपालन नहीं: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A के तहत राजनीतिक दलों को करों से छूट प्राप्त है यदि वे उचित खाते बनाए रखते हैं और ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। 
    • हालाँकि कई दलों द्वारा अपने वित्तीय विवरणों को पूरी तरह से पारदर्शी न करने के कारण, दुरुपयोग के आरोप लगे हैं। अधिक जवाबदेहिता तथा कराधान अनुपालन को अनिवार्य बनाने के क्रम में किये जाने वाले सुधार वित्तीय अस्पष्टता को रोकने में मदद कर सकते हैं।

आगे की राह

  • विधायी संशोधन: राजनीतिक दलों को इसमें स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिये POSH अधिनियम में संशोधन करने के साथ पार्टी संरचनाओं के संदर्भ में "कार्यस्थल" तथा "नियोक्ता" संबंधी अस्पष्टताओं को दूर करना चाहिये।
    • राजनीतिक दलों द्वारा कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों जैसे POSH अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये भारत निर्वाचन आयोग या सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।
    • यदि 10 या अधिक सदस्यों वाली छोटी संस्थाओं को आंतरिक समितियाँ गठित करने का आदेश दिया जाता है तो राजनीतिक दलों को छूट देने का कोई औचित्य नहीं है।
  • ICC की स्थापना: राजनीतिक दलों के तहत आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना को अनिवार्य बनाना चाहिये ताकि POSH अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके एवं एक मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराया जा सके।
  • क्षमता निर्माण एवं जागरूकता: यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों एवं ICC की कार्यप्रणाली के संदर्भ में सदस्यों को शिक्षित करने के लिये राजनीतिक दलों के तहत नियमित रूप से संवेदनशीलता तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये।
  • महिलाओं के लिये समर्पित न्यायाधिकरण: वर्मा समिति की सिफारिश के अनुसार, राजनीतिक दलों से संबंधित उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिये एक समर्पित न्यायाधिकरण की स्थापना एक स्वतंत्र और विशिष्ट तंत्र के रूप में की जा सकती है। 
    • इससे जवाबदेही बढ़ने, समय पर निवारण सुनिश्चित होने तथा महिला राजनेताओं के लिये अधिक सुरक्षित एवं समावेशी राजनीतिक वातावरण का सृजन होगा।
  • ECI की निगरानी को मज़बूत करना: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को कार्यस्थल सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की निगरानी एवं इन्हें लागू करने के लिये सशक्त बनाने के साथ राजनीतिक दलों के तहत जवाबदेहिता तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये।

निष्कर्ष

राजनीतिक दलों पर POSH अधिनियम की प्रयोज्यता के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के विचार-विमर्श से कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के क्रम में मज़बूत विधिक ढाँचे की तत्काल आवश्यकता को बल  मिला है। शासन एवं सामाजिक मानदंडों को आकार देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, राजनीतिक दलों को महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने को प्राथमिकता देनी चाहिये। इसको लागू करने से न केवल राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली प्रभावित होगी बल्कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यस्थल सुरक्षा मानक भी प्रभावित होंगे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में POSH अधिनियम की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। क्या राजनीतिक दलों को इसके दायरे में लाया जाना चाहिये? तर्कों एवं उदाहरणों के साथ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)