दोहरा कराधान अपवंचन समझौता
प्रीलिम्स के लिये:
दोहरा कराधान अपवंचन समझौता, आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण
मेन्स के लिये:
भारत-ब्राज़ील के बीच दोहरे कराधान अपवंचन समझौते से संबंधित विभिन्न मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आय पर लगने वाले कर के संदर्भ में दोहरे कराधान (Double Taxation) को समाप्त करने तथा वित्तीय चोरी रोकने के लिये भारत और ब्राज़ील के बीच दोहरे कराधान अपवंचन समझौते में संशोधन को मंज़ूरी दी है।
मुख्य बिंदु:
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में भारतीय गणराज्य और ब्राज़ील गणराज्य संघ के मध्य दोहरे कराधान को समाप्त करने तथा वित्तीय एवं राजकोषीय चोरी रोकने के लिये समझौते में संशोधन पर हस्ताक्षर किये हैं।
कार्यान्वयन:
- मंत्रिमंडल की मंज़ूरी के बाद प्रोटोकॉल को प्रभाव में लाने के लिये आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी की जाएंगी।
- इस समझौते के कार्यान्वयन की मंत्रालय द्वारा निगरानी की जाएगी तथा बाद में मंत्रालय इसकी रिपोर्ट करेगा।
क्या है दोहरा कराधान?
दोहरे कराधान से आशय ऐसी स्थिति से है जिसमें एक ही कंपनी या व्यक्ति (करदाता) की एकल आय एक से अधिक देशों में कर-योग्य हो जाती है। ऐसी स्थिति विभिन्न देशों में कराधान के भिन्न नियमों के कारण उत्पन्न होती है।
दोहरा कराधान अपवंचन समझौता :
(Double Taxation Avoidance Convention- DTAC)
- दोहरे कराधान से मुक्ति के लिये दो देशों की सरकारें ‘दोहरा कराधान अपवंचन समझौता’ निष्पादित करती हैं जिसका उद्देश्य दोहरे कराधान की समस्या से परस्पर राहत प्रदान करना है।
- भारत में आयकर अधिनियम की धारा 90 द्विपक्षीय कर राहत से संबंधित है।
- इस धारा के अंतर्गत भारत सरकार दूसरे देशों की सरकारों के साथ दोहरे कराधान की समस्या से निपटने के लिये समझौते करती है।
भारत-ब्राज़ील के बीच दोहरे कराधान अपवंचन समझौते के प्रमुख प्रभाव:
- इस समझौते में संशोधन से भारत तथा ब्राज़ील के बीच दोहरा कराधान समाप्त होगा।
- भारत और ब्राज़ील के बीच कर-अधिकारों के स्पष्ट निर्धारण से दोंनों देशों के निवेशकों तथा व्यापारियों की कर अदायगी में निश्चितता आएगी।
- इस संशोधित प्रोटोकॉल के माध्यम से आय के स्रोत देश में रॉयल्टी, ब्याज, तकनीकी सेवा शुल्क पर कर दरों में कमी होने के कारण निवेश में वृद्धि होगी।
- संशोधित प्रोटोकॉल, दोंनों देशों के मध्य G-20/OECD की ‘आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण’ (Base Erosion and Profit Shifting-BEPS) संधि के न्यूनतम मानकों और अन्य अनुशंसाओं को लागू करेगा।
- BEPS के अनुरूप नियमों का सरलीकरण कर निर्धारण प्रक्रिया के बेमेल और गलत नियमों को समाप्त करने में सहायता मिलेगी।
इतिहास:
- भारत और ब्राज़ील के बीच वर्तमान दोहरा कराधान अपवंचन समझौता 26 अप्रैल 1988 को हस्ताक्षरित हुआ था।
- 15 अक्तूबर, 2013 को सूचना आदान-प्रदान करने के संबंध में एक प्रोटोकॉल द्वारा इसे संशोधित किया गया था।
आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण
(Base Erosion and Profit Shifting-BEPS):
- BEPS का तात्पर्य ऐसी टैक्स रणनीतियों से है जिनके तहत टैक्स नियमों में अंतर और विसंगतियों का लाभ उठाकर कंपनियाँ अपने लाभ को किसी ऐसे स्थान या क्षेत्र में स्थानांतरित कर देती हैं, जहाँ या तो टैक्स नाममात्र होता है या होता ही नहीं है क्योंकि इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ नगण्य होती हैं।
- जून 2017 में भारत ने पेरिस स्थित OECD के मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में BEPS संधि पर हस्ताक्षर किये थे। वर्तमान में इस संधि पर 135 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं।
- BEPS संधि का उद्देश्य कृत्रिम ढंग से कर अदायगी से बचने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना तथा संधि के दुरुपयोग को रोकना है।
भारत और ब्राज़ील के मध्य वर्तमान दोहरा कराधान अपवंचन समझौता बहुत पुराना है। इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार करने तथा G-20/OECD की BEPS संधि की अनुशंसाओं को लागू करने के लिये संशोधित किए जाने की आवश्यकता थी।