जैव विविधता और पर्यावरण
UNCCD का COP16
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय, ग्रेट ग्रीन वॉल (GGW) पहल, रियाद वैश्विक सूखा प्रतिरोध भागीदारी, अनुकूलित फसलों और मृदा हेतु विज़न, पवित्र भूमि, मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा (DLDD), रियो सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), जैवविविधता अभिसमय, ग्रहीय सीमाएँ, ग्रीनहाउस गैस, कार्बन भंडार, शुष्क अरल सागर, साहेल, सहारा, आर्द्रभूमि। मेन्स के लिये:मरुस्थलीकरण का बढ़ता खतरा एवं उससे निपटने के उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) के पक्षकारों का 16वाँ सम्मेलन (COP16) सऊदी अरब के रियाद में आयोजित हुआ, जिसमें लगभग 200 देशों ने भूमि पुनरुद्धार तथा सूखा प्रतिरोधक क्षमता को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- पहली बार UNCCD COP का आयोजन मध्य पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका (MENA) क्षेत्र में हुआ।
UNCCD COP16 के प्रमुख परिणाम क्या थे?
- वैश्विक सूखा फ्रेमवर्क: इसमें वैश्विक सूखा फ्रेमवर्क की दिशा में राष्ट्रों के प्रयासों पर प्रकाश डाला गया तथा मंगोलिया में वर्ष 2026 में होने वाले COP17 तक इन्हें पूरा करने का लक्ष्य रखा गया।
- वित्तीय प्रतिज्ञाएँ: मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण एवं सूखे से निपटने के क्रम में 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की धनराशि देने का संकल्प लिया गया।
- रियाद ग्लोबल ड्राॅट रेज़िलियेंस पार्टनरशिप: इसमें 80 कमज़ोर देशों को सहायता देने के क्रम में 12.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई, जिसमें अरब समन्वय समूह के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं।
- ग्रेट ग्रीन वॉल (GGW) पहल: अफ्रीका के नेतृत्व वाली GGW पहल के तहत साहेल परिदृश्य के पुनरुद्धार हेतु इटली से 11 मिलियन यूरो तथा 22 अफ्रीकी देशों के बीच समन्वय बढ़ाने के लिये ऑस्ट्रिया से 3.6 मिलियन यूरो प्राप्त करने पर प्रकाश डाला गया।
- अनुकूलित फसलों और मृदाओं के लिये विज़न (VACS): VACS पहल के लिये लगभग 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर की घोषणा की गई।
- VACS का लक्ष्य स्वस्थ मृदा में विविध, पौष्टिक तथा जलवायु-अनुकूलित फसलों के साथ अनुकूल खाद्य प्रणालियों का विकास करना है।
- स्थानीय लोग और स्थानीय समुदाय: स्थानीय लोगों एवं स्थानीय समुदायों के लिये कॉकस का गठन किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके दृष्टिकोण तथा चुनौतियों का प्रतिनिधित्व किया जा सके।
- स्थानीय लोगों के फोरम में प्रस्तुत पवित्र भूमि घोषणा, वैश्विक भूमि एवं सूखा प्रबंधन में अधिक भागीदारी पर केंद्रित है।
- Business4Land पहल: यह मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण एवं सूखे (DLDD) संबंधी चुनौतियों से निपटने के क्रम में निजी क्षेत्र के प्रयास, पर्यावरण, सामाजिक तथा शासन (ESG) रणनीतियों सहित धारणीय वित्त की भूमिका पर प्रकाश डालने पर केंद्रित है।
- भूमि पुनर्स्थापन तथा सूखा रोकथाम हेतु वर्तमान में निजी क्षेत्र की वित्तपोषण में केवल 6% की भागीदारी है।
- UNCCD का विज्ञान-नीति इंटरफेस (SPI): सभी पक्षों ने UNCCD के SPI को जारी रखने पर सहमति (जिसकी स्थापना वर्ष 2013 में COP11 (विंडहोक, नामीबिया) में की गई थी) व्यक्त की ताकि वैज्ञानिक निष्कर्षों को निर्णयकर्त्ताओं हेतु सिफारिशों के रूप में उपयोग किया जा सके।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय
- परिचय: UNCCD तीन रियो सम्मेलनों में से एक है, जिसमें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) और जैवविविधता पर अभिसमय शामिल हैं।
- उद्देश्य और महत्त्व: UNCCD की स्थापना वर्ष 1994 में भूमि की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिये की गई थी, जिसका उद्देश्य एक स्थायी भविष्य बनाना था।
- इसमें फसल की क्षति, पलायन और संघर्ष सहित भूमि क्षरण तथा सूखे के परिणामों पर चर्चा की गई है।
- उद्देश्य: इसका मुख्य लक्ष्य भूमि क्षरण को कम करना और भूमि की रक्षा करना है ताकि सभी लोगों के लिये भोजन, जल, आश्रय तथा आर्थिक अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
- कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचा: यह मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिये एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- सदस्यता: इस सम्मेलन में 197 पक्षकार हैं, जिनमें 196 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
- सिद्धांत: यह भागीदारी, साझेदारी और विकेंद्रीकरण के सिद्धांतों पर काम करता है।
इंटरनेशनल ड्रॉट रेज़िलियेंस ऑब्जर्वेटरी
- इंटरनेशनल ड्रॉट रेज़िलियेंस ऑब्जर्वेटरी (IRDO) पहला वैश्विक AI-संचालित मंच है जो देशों को गंभीर सूखे से निपटने के लिये उनकी क्षमता का आकलन करने और उसे बढ़ाने में मदद करता है।
- यह नवोन्मेषी उपकरण इंटरनेशनल ड्रॉट रेज़िलियेंस एलायंस (IDRA) की एक पहल है।
- IDRA एक वैश्विक गठबंधन है जो देशों, शहरों और समुदायों में सूखे से निपटने की क्षमता बढ़ाने के लिये राजनीतिक, तकनीकी एवं वित्तीय पूंजी जुटाने में मदद करता है।
- इसे स्पेन और सेनेगल द्वारा शर्म अल-शेख में UNFCCC के 27 वें सम्मेलन (COP27) में लॉन्च किया गया था।
मरुस्थलीकरण क्या है और इसकी वर्तमान स्थिति क्या है?
- मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण भूमि क्षरण का एक प्रकार है, जिसमें पहले से ही अपेक्षाकृत शुष्क भूमि क्षेत्र और अधिक शुष्क हो जाता है, जिससे उत्पादक मृदा क्षीण हो जाती है तथा जल निकायों, जैवविविधता एवं वनस्पति आवरण नष्ट हो जाता है।
- यह जलवायु परिवर्तन, वनोन्मूलन, अत्यधिक चारण और असंवहनीय कृषि पद्धतियों सहित कई कारकों के संयोजन से प्रेरित है।
- वर्तमान स्थिति:
- शुष्क भूमि का विस्तार: UNCCD की रिपोर्ट ' द ग्लोबल थ्रेट ऑफ ड्राईंग लैंड्स' के अनुसार, 1990 के दशक से पृथ्वी की 77.6% भूमि शुष्कता का अनुभव कर रही है।
- पृथ्वी की स्थलीय सतह (अंटार्कटिका को छोड़कर) का 40.6% भाग शुष्क भूमि है, जो उत्पादक भूमि में तेज़ी से हो रही कमी को दर्शाता है।
- प्रभावित प्रमुख क्षेत्र: यूरोप (इसकी 95.9% भूमि), ब्राज़ील के कुछ भाग, पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका, एशिया और मध्य अफ्रीका में महत्त्वपूर्ण रूप से सूखे की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
- अफ्रीका और एशिया के कुछ भागों में पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण तथा मरुस्थलीकरण हो रहा है, जिससे जैवविविधता को खतरा है।
- अनुमानित भविष्य का प्रभाव: अनुमानों से पता चलता है कि, सबसे खराब स्थिति में, सदी के अंत तक 5 अरब लोग शुष्क भूमि पर रह सकते हैं और उन्हें मृदा के क्षरण, जल की कमी तथा पारिस्थितिकी तंत्र के पतन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- शुष्क भूमि का विस्तार: UNCCD की रिपोर्ट ' द ग्लोबल थ्रेट ऑफ ड्राईंग लैंड्स' के अनुसार, 1990 के दशक से पृथ्वी की 77.6% भूमि शुष्कता का अनुभव कर रही है।
भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण के निहितार्थ क्या हैं?
- ग्रहीय सीमाओं को खतरा: नौ में से सात ग्रहीय सीमाओं पर असंवहनीय भूमि उपयोग के कारण नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जैसा कि UNCCD की रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है।
- विश्व में स्वच्छ जल के उपयोग का 70%, वनों की कटाई का 80% तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 23% कृषि के कारण होता है।
- आर्थिक लागत: सूखे से विश्वभर में 1.8 बिलियन लोग प्रभावित होते हैं और सूखे से होने वाला आर्थिक नुकसान प्रतिवर्ष 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जिससे कृषि, ऊर्जा और जल उपलब्धता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- सामाजिक लागत: जल की कमी और कृषि की बर्बादी के कारण मध्य पूर्व, अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
- खाद्य सुरक्षा: भूमि क्षरण से वैश्विक खाद्य आपूर्ति का छठा हिस्सा खतरे में पड़ सकता है, जिससे पृथ्वी के कार्बन भंडार का एक तिहाई हिस्सा समाप्त हो सकता है।
- प्राकृतिक आपदाओं से संबंध: शुष्कता के कारण, विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में, शुष्क जैव ईंधन में वृद्धि के कारण, बड़े पैमाने पर वनाग्नि जैसी घटनाएँ देखने को मिल रही हैं।
- रेत और धूल के तूफान विशेष रूप से मध्य पूर्व में सामान्य होते जा रहे हैं।
नोट: नौ ग्रहीय सीमाएँ:
भारत में मरुस्थलीकरण की वर्तमान स्थिति:
- UNCCD के आँकड़ों अनुसार, वर्ष 2015-2019 तक भारत की कुल 30.51 मिलियन हेक्टेयर भूमि का क्षरण हुआ है।
- इसका तात्पर्य यह है कि वर्ष 2019 तक देश के 9.45% भू-भाग का क्षरण हो चुका था। जो वर्ष 2015 में 4.42% था।
- भारत की कुल बंजर भूमि 43 मिलियन फुटबॉल के मैदानों के आकार के बराबर है।
- उस दौरान भूमि क्षरण से 251.71 मिलियन भारतीय, या देश की कुल जनसंख्या का 18.39% प्रभावित हुआ।
- वर्ष 2015 से 2018 तक देश में 854.4 मिलियन लोग सूखे के खतरे में थे।
आगे की राह:
- पुनर्वनीकरण एवं वनरोपण:
- पुनर्वनरोपण: उज़्बेकिस्तान के पुनर्वनरोपण कार्यक्रम के तहत अराल रेगिस्तान के दस लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्ष और झाड़ियाँ लगाई गई हैं तथा मिट्टी को स्थिर करने एवं रेत के तूफानों को रोकने के लिये सूखा प्रतिरोधी ब्लैक सैक्सुअल श्रब्स/झाड़ियों (हेलोक्सीलोन एफिलम) का उपयोग किया गया है।
- वनरोपण: "ग्रेट ग्रीन वॉल" का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 100 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पुनर्स्थापित करना है, जिसमें साहेल और सहारा क्षेत्र के 22 अफ्रीकी देश शामिल होंगे।
- कृषि वानिकी: वृक्षों को कृषि फसलों के साथ एकीकृत करने से मिट्टी की उर्वरता में सुधार हो सकता है, जल संरक्षण तथा मिट्टी का कटाव कम हो सकता है।
- जल प्रबंधन तकनीकें: वर्षा जल संचयन और ड्रिप सिंचाई से पौधों की जड़ों तक कुशलतापूर्वक पानी पहुँचाया जा सकता है, जिससे जल की कमी वाले क्षेत्रों में वाष्पीकरण तथा अपवाह को कम किया जा सकता है।
- सूखा प्रतिरोधी फसलें लगाने से जल की कमी वाले क्षेत्रों में भी कृषि की जा सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।
- आवास पुनर्स्थापन: आर्द्रभूमि और नदी-तल जैसे प्राकृतिक आवासों का संरक्षण तथा पुनर्वास, जैवविविधता को पुनर्स्थापित करता है, मिट्टी की नमी में सुधार करता है एवं मरुस्थलीकरण के विरुद्ध पारिस्थितिकी तंत्र की सहिष्णुता को बढ़ाता है।
- मूल कारणों पर ध्यान देना: वनों की कटाई, खराब भूमि प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसे मरुस्थलीकरण के कारणों पर ध्यान देना, साथ ही स्थिरता को बढ़ावा देने वाली नीतियों का भी ध्यान रखना आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: मरुस्थलीकरण क्या है? शुष्क क्षेत्रों में भूमि क्षरण को कम करने के लिये कौन-सी प्रमुख रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. 'मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention to Combat Desertification)' का/के क्या महत्त्व है/हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त में से किसका/किनका जैवविविधता पर प्रभाव पड़ता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020) प्रश्न. पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना की परिभाषा दीजिये। स्पष्ट कीजिये कि किसी प्रदेश के दीर्घोपयोगी विकास (सस्टेनेबल डेवेलप्मेंट) की योजना बनाते समय इस संकल्पना को समझना किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है। (2019) |
जैव विविधता और पर्यावरण
आर्द्रभूमि संरक्षण को सुदृढ़ बनाना
प्रिलिम्स के लिये:आर्द्रभूमि, आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), कार्बन पृथक्करण, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय योजना (NPCA) मेन्स के लिये:राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और मूल्यांकन, आर्द्रभूमि का महत्त्व, आर्द्रभूमि संरक्षण में चुनौतियाँ |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यकर्त्ताओं द्वारा दायर एक जनहित याचिका में, लगभग 30,000 अतिरिक्त आर्द्रभूमियों के संरक्षण का आदेश दिया, जो एम.के. बालाकृष्णन बनाम भारत संघ मामले में वर्ष 2017 के निर्णय के अनुसार 201,503 आर्द्रभूमियों के पूर्व संरक्षण पर आधारित है।
- न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को तीन महीने के भीतर इन आर्द्रभूमियों की ज़मीनी जाँच और सीमांकन का काम पूरा करने का आदेश दिया।
आर्द्रभूमियाँ क्या हैं?
- जलीय व स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों के बीच का संक्रमण क्षेत्र जो दीर्घावधि में प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से, खारे या ताजे जल से भरा हुआ अथवा जल से संतृप्त हो, आर्द्र भूमि कहा जाता है जिसमें समुद्रतटीय भाग भी शामिल है जहाँ लघु ज्वार की स्थिति में जल की गहराई 6 मीटर से अधिक न हो।
- आर्द्रभूमियाँ इकोटोन होती हैं, जिनमें स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि होती है।
आर्द्रभूमि के प्रकार:
- तटीय आर्द्रभूमि: यह नदियों से अप्रभावित होकर भूमि और खुले समुद्र के बीच पाई जाती हैं।
- उदाहरणों में तटरेखाएँ, समुद्र तट, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियाँ शामिल हैं, जैसे कि संरक्षित उष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव दलदल इसका एक अच्छा उदहारण है।
- उथली झीलें और तालाब: कम प्रवाह वाले स्थायी या अर्द्ध-स्थायी जल के क्षेत्र, जिनमें लवणीय झीलें और ज्वालामुखी क्रेटर झीलें शामिल हैं।
- दलदल: ये जल से संतृप्त क्षेत्र या जल से भरे क्षेत्र होते हैं और आर्द्र मृदा की स्थिति के अनुकूल जड़ी-बूटियों वाली वनस्पतियाँ इनकी विशेषता होती है।
- वे ज्वारीय या गैर-ज्वारीय हो सकते हैं।
- स्वैंप्स: ये मुख्य रूप से सतही जल द्वारा पोषित होते हैं तथा यहाँ वृक्ष व झाड़ियाँ पाई जाती हैं। ये मीठे जल से खारे जल के बाढ़ के मैदानों में पाए जाते हैं।
- बॉग्स: बॉग्स दलदल पुरानी झील घाटियाँ अथवा भूमि में जलभराव वाले गड्ढे हैं। इनमें लगभग सारा पानी वर्षा के दौरान जमा होता है।
- ज्वारनदमुख (Estuaries): वे क्षेत्र जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं, मीठे जल से खारे जल में परिवर्तित होती हैं, जैवविविधता से समृद्ध हैं।
- उदाहरणों में डेल्टा, ज्वारीय पंक और लवणीय दलदल शामिल हैं।
आर्द्रभूमि का महत्त्व:
- प्राकृतिक जल शोधक: तलछट को रोककर, प्रदूषकों को विघटित करके तथा अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करके, आर्द्रभूमि प्राकृतिक जल शोधक के रूप में कार्य करती हैं।
- इस प्रक्रिया से जल की गुणवत्ता में सुधार होता है, यह सुनिश्चित होता है कि यह मानव उपभोग के लिये स्वच्छ और सुरक्षित है तथा समग्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।
- बाढ़ की रोकथाम: वे अतिरिक्त जल को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा कम होता है जिससे घरों और बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा होती है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) इस बात पर ज़ोर देता है कि आर्द्रभूमि आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे को 60% तक कम कर सकती है।
- वन्यजीवों के लिये आवास: आर्द्रभूमि पक्षियों, मछलियों और अन्य वन्यजीवों की कई प्रजातियों के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करती है, जिनमें सारस क्रेन जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (SAC) द्वारा तैयार राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची एवं मूल्यांकन के अनुसार, आर्द्रभूमियाँ पृथ्वी की सतह के केवल 6% भाग को कवर करने के बावजूद, विश्व की 40% से अधिक प्रजातियों का आवास स्थल हैं।
- कार्बन पृथक्करण: आर्द्रभूमियाँ मिट्टी और वनस्पति में बड़ी मात्रा में कार्बन संग्रहित करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।
- भारतीय जलवायु परिवर्तन आकलन नेटवर्क (INCCA) इस बात पर ज़ोर देता है कि आर्द्रभूमियों को बहाल करने से कार्बन अवशोषण को बढ़ाकर, जल गुणवत्ता में सुधार करके तथा बाढ़ के खतरों को कम करके भारत के जलवायु लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है।
- आजीविका: कई समुदाय मछली संग्रहण, कृषि और पर्यटन के माध्यम से अपनी आजीविका के लिये आर्द्रभूमि पर निर्भर हैं।
- एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में लगभग एक अरब परिवार अपनी आजीविका के लिये चावल की खेती पर निर्भर हैं। वेटलैंड धान चावल 3.5 अरब लोगों के लिये मुख्य भोजन है, जो वैश्विक कैलोरी सेवन का 20% प्रदान करता है।
भारत में आर्द्रभूमियों की स्थिति क्या है?
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC) द्वारा उपग्रह आधारित अवलोकन के अनुसार, भारत में लगभग 231,195 आर्द्रभूमियाँ हैं। हालाँकि आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम 2017 के तहत केवल 92 आर्द्रभूमियों को आधिकारिक तौर पर संरक्षण हेतु अधिसूचित किया गया है।
आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये उठाए गए कदम:
- रामसर अभिसमय: भारत 1 फरवरी, 1982 को रामसर अभिसमय में शामिल हुआ और तब से 1,367,749 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली 85 आर्द्रभूमियों को अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया है।
- नंजरायन पक्षी अभयारण्य, काज़ुवेली पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु) और मध्य प्रदेश का तवा जलाशय को हाल ही में आर्द्रभूमियों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
- मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड: मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची पर रामसर अभिसमय के अंतर्गत आर्द्रभूमि स्थलों का एक रजिस्टर है।
आर्द्रभूमि संरक्षण में चुनौतियाँ क्या हैं?
- अपर्याप्त कानूनी ढाँचा:
- विनियामक चुनौतियाँ: हालाँकि आद्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रभावी रूप से नहीं किया जाता है। कई आद्रभूमियाँ असुरक्षित हैं या उनका प्रबंधन ठीक से नहीं किया जाता।
- वर्ष 2022-23 की जल निकाय जनगणना से पता चलता है कि भारत में 24,24,540 जल निकाय हैं, जिनमें से 55% निजी स्वामित्त्व वाले हैं, जिससे संरक्षण के प्रयास जटिल हो जाते हैं ।
- विकेंद्रीकरण के मुद्दे: आर्द्रभूमि प्रबंधन के लिये राज्य सरकारों को शक्तियाँ सौंपे जाने से विभिन्न क्षेत्रों में कार्यान्वयन और संरक्षण में असंगतियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
- विनियामक चुनौतियाँ: हालाँकि आद्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रभावी रूप से नहीं किया जाता है। कई आद्रभूमियाँ असुरक्षित हैं या उनका प्रबंधन ठीक से नहीं किया जाता।
- शहरीकरण और भूमि उपयोग परिवर्तन:
- अतिक्रमण: तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से आर्द्रभूमियों का विनाश हुआ है, जिससे उनके आकार और पारिस्थितिक कार्य में कमी आई है। चेन्नई और मुंबई जैसे शहरों में महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई है।
- पिछले 30 वर्षों में, शहरीकरण, प्रदूषण और कृषि के कारण भारत की 30% आर्द्रभूमि नष्ट हो गई हैं।
- अतिक्रमण: तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण से आर्द्रभूमियों का विनाश हुआ है, जिससे उनके आकार और पारिस्थितिक कार्य में कमी आई है। चेन्नई और मुंबई जैसे शहरों में महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गई है।
- प्रदूषण और जल गुणवत्ता में गिरावट:
- औद्योगिक उत्सर्जन: पूर्वी कोलकाता सहित कई आर्द्रभूमियों का स्वास्थ्य और जैवविविधता पर अनुपचारित सीवेज़, कृषि अपवाह और औद्योगिक अपशिष्टों से होने वाले प्रदूषण का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक पौधों की प्रजातियों के प्रवेश से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बाधित होने से स्थानीय वनस्पतियों एवं जीवों को खतरा हो सकता है।
- उदाहरण के लिये, जलकुंभी (Eichhornia crassipes) एक आक्रामक पौधे की प्रजाति है जो भारत के जल निकायों में मिलती है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव:
- परिवर्तित जल विज्ञान: जलवायु परिवर्तन से वर्षा का पैटर्न प्रभावित होने से जल स्तर में परिवर्तन होने के साथ आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र बाधित (जैसा कि सुंदरवन में देखा गया है) हो सकता है।
- आर्द्रभूमियाँ बाढ़ एवं सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती जा रही हैं, जिससे उनका पारिस्थितिक संतुलन बाधित हो सकता है।
- परिवर्तित जल विज्ञान: जलवायु परिवर्तन से वर्षा का पैटर्न प्रभावित होने से जल स्तर में परिवर्तन होने के साथ आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र बाधित (जैसा कि सुंदरवन में देखा गया है) हो सकता है।
- जागरूकता की कमी:
- शैक्षिक अंतराल: कई समुदाय आर्द्रभूमि से मिलने वाले लाभों (जैसे- बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन, और जीवों के लिये आवास) को नहीं समझते हैं।
- आर्द्रभूमि के पारिस्थितिकी महत्त्व के बारे में आम लोगों तथा नीति निर्माताओं में जागरूकता का अभाव है, जिसके कारण संरक्षण के प्रयास अपर्याप्त बने हुए हैं।
- शैक्षिक अंतराल: कई समुदाय आर्द्रभूमि से मिलने वाले लाभों (जैसे- बाढ़ नियंत्रण, जल शोधन, और जीवों के लिये आवास) को नहीं समझते हैं।
आगे की राह
- नीतियों में आर्द्रभूमियों को महत्त्व देना:
- उत्सर्जन लक्ष्य: आर्द्रभूमि के ब्लू कार्बन को शामिल करने से संरक्षण लक्ष्यों (भारत का वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य) को समर्थन मिल सकता है लेकिन वर्तमान में व्यवस्थित सूची की कमी के कारण इसे अनदेखा किया जाता है।
- आर्द्रभूमि के कार्बन भंडारण और GHG उत्सर्जन को राष्ट्रीय कार्बन स्टॉक एवं प्रवाह आकलन में शामिल करना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त पीटलैंड की कार्बन गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने एवं प्रबंधित करने के लिये उनकी विस्तृत सूची बनानी चाहिये।
- उत्सर्जन लक्ष्य: आर्द्रभूमि के ब्लू कार्बन को शामिल करने से संरक्षण लक्ष्यों (भारत का वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य) को समर्थन मिल सकता है लेकिन वर्तमान में व्यवस्थित सूची की कमी के कारण इसे अनदेखा किया जाता है।
- आर्द्रभूमि का प्रभावी प्रबंधन:
- एकीकृत दृष्टिकोण: एकीकृत योजना, कार्यान्वयन एवं निगरानी के साथ आर्द्रभूमि के निकटवर्ती क्षेत्र में अनियोजित शहरीकरण की समस्या का समाधान करना चाहिये।
- पारिस्थितिकीविदों, जलग्रहण प्रबंधन विशेषज्ञों, योजनाकारों एवं निर्णयकर्त्ताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये।
- एकीकृत दृष्टिकोण: एकीकृत योजना, कार्यान्वयन एवं निगरानी के साथ आर्द्रभूमि के निकटवर्ती क्षेत्र में अनियोजित शहरीकरण की समस्या का समाधान करना चाहिये।
- मेगा शहरी योजनाओं के साथ समन्वय विकसित करना:
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को महत्त्व देना: विकास नीतियों, शहरी नियोजन एवं जलवायु परिवर्तन शमन में आर्द्रभूमि की भूमिका पर बल देना चाहिये।
- स्मार्ट सिटी मिशन और अटल कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन मिशन जैसी पहलों के साथ धारणीय आर्द्रभूमि प्रबंधन को एकीकृत करना चाहिये।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को महत्त्व देना: विकास नीतियों, शहरी नियोजन एवं जलवायु परिवर्तन शमन में आर्द्रभूमि की भूमिका पर बल देना चाहिये।
- जन भागीदारी को बढ़ावा देना:
- सार्वजनिक भागीदारी: दिल्ली विकास प्राधिकरण के मास्टर प्लान, दिल्ली 2041 में 'ग्रीन और ब्लू परिसंपत्तियों' के एकीकृत नेटवर्क के संरक्षण एवं विकास हेतु सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित किया गया।
- महाराष्ट्र के मांडवी क्रीक में स्वामिनी स्वयं सहायता समूह की मैंग्रोव सफारी, पारिस्थितिकी पर्यटन के तहत समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण का एक मॉडल है।
- सार्वजनिक भागीदारी: दिल्ली विकास प्राधिकरण के मास्टर प्लान, दिल्ली 2041 में 'ग्रीन और ब्लू परिसंपत्तियों' के एकीकृत नेटवर्क के संरक्षण एवं विकास हेतु सार्वजनिक टिप्पणियों को आमंत्रित किया गया।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में अतिरिक्त आर्द्रभूमियों को संरक्षित करने के क्रम में हाल ही के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. यदि अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के एक आर्द्रभूमि को 'मोंट्रेक्स रिकॉर्ड' के अंतर्गत लाया जाता है, तो इसका क्या अर्थ है? (2014) (A) मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, हो रहा है या होने की संभावना है। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिये। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिये। (2018) |
सामाजिक न्याय
महिलाओं द्वारा भारतीय कानून लैंगिक आधार पर दुरुपयोग
प्रिलिम्स के लिये:जनहित याचिका, सर्वोच्च न्यायालय, दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961, धारा 498A, भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005, विधि आयोग। मेन्स के लिये:दहेज़ और घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग और संबंधित मुद्दे, लिंग तटस्थ कानून की आवश्यकता |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, बंगलूरू में एक तकनीकी विशेषज्ञ के आत्महत्या करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है, जिसमें दहेज़ और घरेलू हिंसा से जुड़े मौजूदा कानूनों की समीक्षा और सुधार का अनुरोध किया गया है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।
- याचिका में कहा गया है कि दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 और भारतीय दंड संहिता (अब भारतीय न्याय संहिता) की धारा 498A का दुरुपयोग असंबंधित विवादों को निपटाने और पति के परिवार को परेशान करने के लिये किया गया है।
भारतीय कानून किस प्रकार लिंग-पक्षपाती हैं?
- IPC की धारा 304B (दहेज़ मृत्यु): समय के साथ लोगों को यह विश्वास दिलाया गया कि विवाहित भारतीय महिला की हर अप्राकृतिक या असामयिक रूप से हुई मृत्यु दहेज़ मृत्यु है।
- ऐसे मामलों में पति या रिश्तेदार को कम-से-कम सात वर्ष के कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है।
- IPC की धारा 498A (महिलाओं के प्रति क्रूरता): धारा 498A के तहत विवाहित महिला के प्रति क्रूरता या उत्पीड़न का दोषी पाए जाने पर पति या उसके रिश्तेदारों को तीन साल तक की कैद और ज़ुर्माने का प्रावधान है।
- धारा 304B एक गैर-ज़मानती, गैर-समझौता योग्य और संज्ञेय अपराध है, जिसका अर्थ है कि यदि आरोप झूठा भी हो तब भी मुकदमा चलेगा और पति को निर्दोष साबित होने तक दोषी माना जाएगा।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 में लगभग 200,000 लोगों को अप्रमाणित दहेज़ के आरोपों में गिरफ्तार किया गया, जिनमें से केवल 15% अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया।
- IPC की धारा 375 (बलात्कार): IPC की धारा 375 के तहत केवल पुरुष ही अपराधी हो सकते हैं और महिलाएँ ही बलात्कार की शिकार हो सकती हैं। यह धारा पुरुषों और ट्रांसजेंडरों को बलात्कार पीड़ित के रूप में मान्यता नहीं देती है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 377 पुरुष पीड़ितों के लिये एकमात्र विकल्प है, लेकिन इसमें कई चुनौतियाँ हैं तथा यह पुरुषों द्वारा पुरुषों पर किये जाने वाले यौन शोषण को बलात्कार के रूप में वर्गीकृत नहीं करती है।
- BNS की धारा 69: यह "धोखे से यौन संबंध बनाने" को अपराध मानती है, जिसमें "बिना इरादे के किसी महिला से शादी करने का वादा करना" भी शामिल है, जिसके लिये 10 साल तक की कैद और ज़ुर्माना हो सकता है।
- शादी के वादे पर सहमति से बनाया गया यौन संबंध तभी अपराध माना जाएगा जब पुरुष इससे मुकर जाए, महिला नहीं।
- "शादी का वादा" करना गैरकानूनी है, जिससे किसी व्यक्ति की निजता और स्वायत्तता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है, जबकि इस तथ्य की अनदेखी की जा सकती है कि महिला ने स्वेच्छा से इस रिश्ते में प्रवेश किया है।
- IPC की धारा 354: यह महिला की मर्यादा और मान सम्मान को क्षति पहुँचाने के लिये उस पर किया गया हमला या उसके साथ गलत मंशा के साथ ज़ोर जबरदस्ती है। हालाँकि पुरुष और ट्रांसजेंडर की मर्यादा और मान सम्मान की रक्षा के लिये ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया है।
- ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं जिनमें महिलाएँ पुरुषों को धमकाती हैं तथा इसके लिये उन पर कोई मुकदमा नहीं चलता (क्योंकि देश के कानून में ऐसे अपराधों से पुरुषों की रक्षा नहीं की गई है) है।
- CrPC अधिनियम, 1973 की धारा 125: भारत में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत न केवल पत्नी बल्कि उसके माता-पिता एवं बच्चों के लिये भी भरण-पोषण की अवधारणा को निर्धारित किया गया है।
- भरण-पोषण कानून का उद्देश्य पुरुषों को अपने आश्रितों के भरण-पोषण के लिये पूरी तरह ज़िम्मेदार बनाना (बिना इस बात पर विचार किए कि महिलाओं को वास्तव में वित्तीय सहायता की आवश्यकता है या नहीं) है।
- घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005: इसमें पुरुषों तथा ट्रांसजेंडर को घरेलू दुर्व्यवहार के संभावित शिकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
- अपने जीवनसाथियों से उत्पीड़न या दुर्व्यवहार का सामना करने वाले पुरुषों को इस अधिनियम के तहत कोई विधिक संरक्षण प्राप्त नहीं है और ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने पर उन्हें अक्सर संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
- हिरासत और तलाक की कार्यवाही: हिरासत विवादों में न्यायालय अक्सर प्राथमिक देखभालकर्त्ता के रूप में महिलाओं का पक्ष लेते हैं और इसमें पुरुषों को अक्सर हाशिये पर रखा जाता है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012: एकल महिला किसी भी बच्चे को गोद ले सकती है लेकिन एकल पुरुष बालिका को गोद नहीं ले सकता है।
- विवाहित संबंध होने की स्थिति में पति-पत्नी दोनों को गोद लेने के लिये सहमत होना आवश्यक है।
नोट: प्रवीण कुमार जैन-अंजू जैन तलाक मामला, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने पत्नी के लिये गुजारा भत्ता निर्धारित करने हेतु आठ कारक निर्धारित किये। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- पक्षों की सामाजिक और वित्तीय स्थिति
- पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित आवश्यकताएँ
- पक्षों की व्यक्तिगत योग्यताएँ एवं रोज़गार की स्थिति
- आवेदक के स्वामित्व वाली स्वतंत्र आय या संपत्ति
- वैवाहिक घर में पत्नी का जीवन स्तर
- पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के लिये किये गए रोज़गार का त्याग
- गैर-कामकाजी पत्नी के लिये उचित मुकदमेबाज़ी लागत
- पति की वित्तीय क्षमता, उसकी आय, भरण-पोषण दायित्व एवं देयताएँ
झूठे आरोपों तथा विधिक रूप से उत्पीड़न के क्या प्रभाव होते हैं?
- अवसाद और चिंता: झूठे आरोप या विधिक रूप से उत्पीड़न द्वारा गंभीर मनोवैज्ञानिक संकट उत्पन्न हो सकता है जिससे विश्वासघात, असहायता और दीर्घकालिक चिंता की भावना उत्पन्न हो सकती है।
- सामाजिक कलंक: विधिक उत्पीड़न या झूठे आरोपों का सामना करने वाले पुरुषों को दोषी या अविश्वसनीय के रूप में संदर्भित किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप ये परिवार एवं दोस्तों के साथ सामाजिक नेटवर्क से अलग-थलग हो सकते हैं।
- दमित भावनाएँ: पुरुषों से दृढ़ एवं लचीला होने की सामाजिक अपेक्षाएँ उन्हें अपनी कमज़ोरी व्यक्त करने या सहायता मांगने से हतोत्साहित करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप आंतरिक संकट एवं अनुचित मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- वैवाहिक आत्महत्या दर: NCRB के आँकड़े दर्शाते हैं कि विवाहित पुरुषों में महिलाओं की तुलना में आत्महत्या की दर काफी अधिक है, जिसका आंशिक कारण विधिक एवं सामाजिक चुनौतियाँ हैं।
- वित्तीय भार: कई पुरुषों के लिये कानूनी प्रक्रियाओं की फीस का भार तथा रोज़गार की संभावित हानि, वित्तीय रूप से विनाशकारी हो सकती है।
झूठे आरोपों के मामले में निवारण
- भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत पति, मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता है।
- CrPC की धारा 9 के तहत पति उस क्षतिपूर्ति की वसूली के लिये दावा दायर कर सकता है, जो उसे और उसके परिवार को क्रूरता एवं दुर्व्यवहार के झूठे आरोपों के कारण हुई है।
- IPC की धारा 182 के तहत 498A से संबंधित झूठे मामलों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की गई है। झूठे बयान देने पर न्यायपालिका को गुमराह करने के आरोप में व्यक्ति को 6 महीने की कैद, ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
भारतीय कानून में लैंगिक पूर्वाग्रह से संबंधित न्यायिक दृष्टिकोण क्या है?
- साक्षी बनाम भारत संघ मामला, 1999: सर्वोच्च न्यायालय ने विधि आयोग को लिंग-तटस्थ बलात्कार कानून के मुद्दे से निपटने का निर्देश दिया।
- परिणामस्वरूप, विधि आयोग की वर्ष 2000 की 172वीं रिपोर्ट में बलात्कार के अपराध के स्थान पर "यौन हमले" के रूप में लिंग-तटस्थ अपराध को शामिल करने की सिफारिश की गई।
- प्रिया पटेल बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामला, 2006: इस मामले में, अपराधी की पत्नी ने बलात्कार को देखा, पीड़िता को थप्पड़ मारा, दरवाज़ा बंद किया और आपराधिक मंशा में संलिप्तता को प्रदर्शित किया।
- हालाँकि न्यायालय ने फैसला दिया कि उसे बलात्कार का दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह एक महिला थी।
- सुशील कुमार शर्मा केस, 2005: याचिकाकर्त्ता ने समानता का उल्लंघन करने के लिये IPC की धारा 498A को चुनौती दी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इस प्रावधान के दुरुपयोग से विधिक अतिवाद को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य दहेज़ हत्याओं को रोकना है।
- चंद्रभान केस, 1954: चंद्रभान केस, 1954 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पति-पत्नी के बीच मतभेद और शत्रुता के दौरान सबसे अधिक नुकसान बच्चों को होता है, क्योंकि पति-पत्नी के खिलाफ अधिकांश शिकायतें क्षणिक आवेश में आकर व्यर्थ बहस के कारण की जाती हैं।
- अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 498A के तहत अभियुक्त की गिरफ्तारी के समय सावधानी बरतने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, क्योंकि यह एक गैर-ज़मानती और संज्ञेय अपराध है।
भारतीय कानूनों में लैंगिक तटस्थता कैसे प्राप्त की जाए?
- लैंगिक पूर्वाग्रह को स्वीकार करना: यह पुराना दृष्टिकोण कि पुरुष अपराधी होते हैं और महिलाएँ पीड़ित होती हैं, इस तथ्य की अनदेखी करता है कि पुरुष भी घरेलू हिंसा, उत्पीड़न तथा झूठे आरोपों के शिकार हो सकते हैं।
- विधिक सुधारों को इन वास्तविकताओं को स्वीकार करना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कानून पुरुषों, महिलाओं तथा अन्य लिंगों को समान रूप से संरक्षण प्रदान करें।
- आपराधिक न्याय प्रणाली को संवेदनशील बनाना: न्यायाधीशों, विधिक पेशेवरों और पुलिस को लैंगिक रूढ़िवादिता पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों तथा कार्यशालाओं के माध्यम से अपने स्वयं के अचेतन पूर्वाग्रहों को पहचानने एवं चुनौती देने के लिये संवेदनशील बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- मौजूदा कानूनों में संशोधन: लैंगिक रूप से तटस्थ भाषा को अपनाना आवश्यक है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पुरुष और महिला (यहाँ तक कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी) समान रूप से संरक्षित हों।
- उदाहरण के लिये, "पति" या "पत्नी" के स्थान पर "जीवनसाथी" जैसे शब्दों का प्रयोग यह सुनिश्चित करता है कि कानून लैंगिक दृष्टिकोण से एक को दूसरे पर वरीयता नहीं देता है।
- पुरुषों कल्याण के लिये संस्थाएँ: संस्थाओं को लैंगिक रूप से तटस्थ होना चाहिये। महिला मंत्रालय का नाम बदलकर मानव विकास कल्याण मंत्रालय करने की ज़रूरत है ताकि हर व्यक्ति की सुरक्षा हो सके।
- समाज को संवेदनशील बनाना: लैंगिक तटस्थता प्राप्त करने के लिये उन रूढ़िवादिताओं को चुनौती देने की आवश्यकता है जो पुरुषों को मज़बूत और भावनाहीन तथा महिलाओं को कमज़ोर और पोषण करने वाली के रूप में देखती हैं।
- पुरुष और महिला दोनों ही पीड़ित या अपराधी हो सकते हैं तथा उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. लैंगिक समानता के संदर्भ में, भारतीय कानूनों में पूर्वाग्रहों की जाँच कीजिये। भारत में लैंगिक-तटस्थ कानून बनाने के लिये कौन से सुधार आवश्यक हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न 1 ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न 2. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न 3. महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (2013) |
जैव विविधता और पर्यावरण
कृषि विस्तार से जैवविविधता को खतरा
प्रिलिम्स के लिये:जैवविविधता, चिट्रिडिओमाइकोसिस, पश्चिमी घाट, जैवविविधता हॉटस्पॉट, आर्द्रभूमि, नादुकनी-मूलमट्टोम-कुलमावु जनजाति, पारिस्थितिकी तंत्र, मोनोकल्चर, IUCN, परिशुद्ध कृषि, इंटरक्रॉपिंग। मेन्स के लिये:कृषि विस्तार से जैवविविधता को खतरा, कृषि के साथ-साथ जैवविविधता को बनाए रखना। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि कृषि विस्तार के कारण पश्चिमी घाट में मेंढकों की आबादी खतरे में पड़ रही है।
- यह कृषि विस्तार के व्यापक विमर्श का हिस्सा है, जो जैवविविधता को खतरे में डाल रहा है तथा आवास को क्षति पहुँचा रहा है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- कृषि विस्तार का प्रभाव: बागानों और चावल के खेतों की वृद्धि से मेंढकों की आबादी के लिये खतरा पैदा हो गया है; काजू और आम के बागानों में मेंढकों की संख्या सबसे कम है, जबकि धान के खेतों में विविधता न्यून है।
- दुर्लभ मेंढक प्रजातियों में कमी: CEPF बुरोइंग मेंढक (मिनरवेरा सेप्फी) और गोवा फेजेरवेरा (मिनरवेरा गोमांतकी) जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ, परिवर्तित कृषि आवासों में दुर्लभ थीं।
- वैश्विक और स्थानीय उभयचरों में गिरावट: विश्व भर में लगभग 40.7% (8,011 प्रजातियाँ) उभयचरों को आवास क्षति, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और चिट्रिडिओमाइकोसिस जैसी बीमारियों के कारण संकटग्रस्त माना गया है।
- पश्चिमी घाट, जो 252 उभयचर प्रजातियों (226 मेंढक) के साथ एक जैवविविधता हॉटस्पॉट है, आवास क्षति और मेंढक आबादी में गिरावट का सामना कर रहा है।
- गिरावट के कारण:
- माइक्रो हैबिटेट की क्षति: रॉक पूल जैसे महत्त्वपूर्ण माइक्रो हैबिटेट आवास, जो सूखे के दौरान मेंढक के अंडों और टैडपोल की रक्षा करते हैं, कृषि पद्धतियों के कारण खतरे में पड़ रहे हैं।
- आर्द्रभूमि का विनाश: कृषि और शहरी विस्तार मेंढक प्रजनन के लिये महत्त्वपूर्ण आर्द्रभूमियों को नुकसान पहुँचा रहा है।
- कृषि अपवाह: कीटनाशकों और उर्वरकों के साथ कृषि अपवाह जल की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाता है, जिससे संवेदनशील मेंढक आबादी खतरे में पड़ जाती है।
- जलवायु परिवर्तन: मेंढकों की सूक्ष्म पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति संवेदनशीलता उन्हें जलवायु परिवर्तन और मानवीय व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
नोट: भारतीय समुदायों में मेंढकों का सांस्कृतिक महत्त्व है, जो वर्षा और उर्वरता का प्रतीक है। उदाहरण,
- असम में भेकुली बिया (मेंढक विवाह) की प्रथा वर्षा को आमंत्रित करने के साधन के रूप में प्रचलित है।
- दक्षिण भारत में, मेंढक विवाह को मण्डूक परिणय के नाम से जाना जाता है, जिसमें वर्षा के लिये प्रार्थना की जाती है।
- उत्तर प्रदेश में सोनभद्र, गोरखपुर और वाराणसी जैसी जगहों पर मेंढक विवाह की प्रथा है।
- केरल की नादुकानी-मूलमट्टम-कुलमावु जनजातियाँ मानसून के दौरान भोजन के लिये पिगनोज़ पर्पल फ्रॉग का पालन करती हैं।
कृषि विस्तार जैवविविधता को कैसे नुकसान पहुँचाता है?
- वनों की कटाई: वनों को कृषि भूमि में परिवर्तित करना आवासीय क्षति का प्रमुख कारण है।
- वर्ष 1990 के बाद से विश्व भर में प्राथमिक वन के क्षेत्रफल में 80 मिलियन हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है, जिसके परिणामस्वरूप आवास विनाश, विखंडन और अंततः विलुप्ति हुई है।
- आवास विनाश: वर्ष 1962 और वर्ष 2017 के बीच, वैश्विक स्तर पर लगभग 340 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि और 470 मिलियन हेक्टेयर प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को चारागाह में परिवर्तित कर दिया गया, जिससे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों का विनाश हुआ।
- मोनोकल्चर: पशुपालन, सोया और ताड़ के तेल की कृषि जैसी बड़े पैमाने की कृषि पद्धतियों वाले विविध पारिस्थितिक तंत्रों की जगह मोनोकल्चर को महत्त्व दिया गया है।
- रसायनों का अत्यधिक उपयोग: औद्योगिक कृषि पद्धतियाँ, विशेषकर कीटनाशकों, उर्वरकों और रसायनों का अत्यधिक उपयोग भूजल और जल प्रणालियों को प्रदूषित करता है, जिससे जलीय एवं स्थलीय दोनों प्रजातियाँ प्रभावित होती हैं।
- निम्न कार्बन भंडारण: कृषि भूमि में मूल वनों या वनस्पतियों की तुलना में निम्न कार्बन का भंडारण है।
- भूमि-उपयोग में परिवर्तन से दीर्घावधि में 17 गीगाटन CO2 उत्सर्जित हो सकती है, जिससे जलवायु संकट और अधिक गंभीर हो सकता है तथा पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न होने से जैवविविधता को खतरा हो सकता है।
- विलुप्त होने का खतरा: IUCN द्वारा संकटग्रस्त के रूप में पहचानी गई 25,000 प्रजातियों में से लगभग 13,382 प्रजातियाँ मुख्य रूप से कृषि भूमि के क्षरण के कारण खतरे में हैं।
- इसके अतिरिक्त, लगभग 3,019 प्रजातियाँ शिकार और मत्स्य संग्रहण तथा 3,020 प्रजातियाँ खाद्य प्रणाली से होने वाले प्रदूषण से प्रभावित होती हैं।
- प्रजातियों का पृथक्करण: अंतःप्रजनन, संसाधनों की कमी और सीमित गतिशीलता के परिणामस्वरूप, कृषि विस्तार से आवास खंडित हो जाते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं, साथ ही प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
कृषि विस्तार और जैवविविधता संरक्षण को कैसे संतुलित किया जा सकता है?
- उपज अंतराल (Closing Yeild Gap) को कम करना: कई निम्न आय वाले देशों में, बढ़ती खाद्य मांग के बावजूद उपज स्थिर रही है, जिसके कारण भूमि क्षरण में वृद्धि हुई है।
- उच्च जैवविविधता वाले उष्णकटिबंधीय देशों में उपज अंतराल को कम करना, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर और अधिक अतिक्रमण किये बिना खाद्यान्न की मांग को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उपज अंतर वर्तमान और संभावित उपज के बीच का अंतर है।
- सतत् गहनता: परिशुद्ध कृषि उर्वरक उपयोग को अनुकूलित करके प्रदूषण, उत्सर्जन और भूमि उपयोग को कम करती है, जिससे किसानों को कम पर्यावरणीय लागत के साथ उच्च पैदावार बनाए रखने में मदद मिलती है।
- विविधीकृत कृषि प्रणालियाँ: अंतर-फसल (एक साथ कई फसलें उगाना) या आवरण फसलों का उपयोग करने जैसी पद्धतियाँ अतिरिक्त रासायनिक इनपुट के बिना उत्पादकता तथा मिट्टी की उर्वरता एवं कीट नियंत्रण को बढ़ा सकती हैं।
- भूमि-उपयोग नियोजन: मज़बूत भूमि-उपयोग नियोजन और क्षेत्रीकरण नीतियाँ, जो उच्च पारिस्थितिक मूल्य वाले क्षेत्रों की रक्षा करती हैं, संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करते हुए कृषि विकास को निर्देशित कर सकती हैं।
- स्वस्थ आहार: ऐसे आहार जो अधिक पौधे-आधारित होते हैं तथा संसाधन-गहन मांस उत्पादन पर कम निर्भर होते हैं, उन्हें कम फसल भूमि की आवश्यकता होती है तथा उनका पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिये समुद्री भोजन लाल मांस का एक स्वस्थ विकल्प है।
- खाद्यान्न की बर्बादी को कम करना: खाद्यान्न की हानि और बर्बादी को आधे में कम करने से विश्व में खाद्यान्न की खपत में 15% की कमी आ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप 230 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त कृषि भूमि की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष:
कृषि विस्तार जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण खतरे उत्पन्न करता है, जिसका उदाहरण पश्चिमी घाट में मेंढकों की आबादी में गिरावट है। हालाँकि उपज अंतराल को कम करने, परिशुद्ध कृषि, विविध खेती और उचित भूमि-उपयोग योजना जैसी सतत् विधियाँ जैवविविधता संरक्षण के साथ खाद्य उत्पादन को संतुलित करने में मदद कर सकती हैं, जिससे पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा दोनों सुनिश्चित हो सकती हैं।
प्रश्न: कृषि विस्तार जैवविविधता हानि में किस प्रकार योगदान देता है तथा इस प्रभाव को कम करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय कृषि परिस्थितियों के संदर्भ में, “संरक्षण कृषि” की संकल्पना का महत्त्व बढ़ जाता है। निम्नलिखित में से कौन-कौन से संरक्षण कृषि के अंतर्गत आते हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1, 3 और 4 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भौगोलिक क्षेत्र की जैवविविधता के लिये खतरा हो सकता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करे सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्सQ. भारत में जैवविविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैवविविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018) Q. भूमि और जल संसाधन का प्रभावी प्रबंधन मानव विपत्तियों को कम कर देगा। स्पष्ट कीजिये। (2016) |
भारतीय इतिहास
विजय दिवस की 53वीं वर्षगाँठ
प्रिलिम्स के लिये:भारत-बांग्लादेश संबंध, बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) मेन्स के लिये:भारत-बांग्लादेश संबंध, द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय समूह और भारत से संबंधित और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह एवं समझौते। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत द्वारा 16 दिसंबर को मनाया गया विजय दिवस वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम में जीत तथा बांग्लादेश के गठन की 53वीं वर्षगाँठ का प्रतीक है।
- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित राष्ट्रीय नेताओं ने दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
53वाँ विजय दिवस समारोह
- कोलकाता के फोर्ट विलियम में आयोजित 53वें विजय दिवस समारोह में मुक्ति योद्धाओं (जो पूर्वी पाकिस्तान में गुरिल्ला प्रतिरोध बल का हिस्सा थे) सहित बांग्लादेशी प्रतिनिधिमंडल के वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम का स्मरण किया गया।
- इसमें युद्ध के दौरान प्रशिक्षण, आपूर्ति एवं नैतिक समर्थन में भारत के प्रमुख सहयोग पर प्रकाश डाला गया। इस दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तानी सेना द्वारा किये गए अत्याचारों पर भी विचार व्यक्त किये।
- इस कार्यक्रम में पुष्पांजलि अर्पित करना, सलामी देना तथा सैन्य टैटू बनाना शामिल था, जिसमें भारत एवं बांग्लादेश के बीच स्थायी मित्रता पर ज़ोर दिया गया।
नोट:
- हाल ही में विजय दिवस के अवसर पर ढाका में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण को दर्शाने वाली वर्ष 1971 की प्रतिष्ठित पेंटिंग को सेना प्रमुख के लाउंज से मानेकशॉ सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया।
- इस पेंटिंग के स्थान पर लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब द्वारा चित्रित 'कर्म क्षेत्र-कर्मों का क्षेत्र' पेंटिंग लगाई गई।
- इसमें बर्फ से ढके पहाड़, पैंगोंग त्सो, गरुड़, भगवान कृष्ण का रथ, चाणक्य एवं आधुनिक सैन्य उपकरण (जैसे- टैंक, हेलीकॉप्टर तथा गश्ती नौकाएँ) शामिल हैं जो भारत की सामरिक तथा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं।
वर्ष 1971 का बांग्लादेश मुक्ति युद्ध क्या था?
- परिचय:
- बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, 1971 तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) एवं पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) के बीच एक सशस्त्र संघर्ष था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश पाकिस्तान से स्वतंत्र हुआ।
- उत्पत्ति:
- वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की जड़ें वर्ष 1947 के भारत विभाजन से संबंधित हैं, जिससे उपमहाद्वीप धार्मिक आधार पर विभाजित हुआ था।
- जिन्ना की मांग को पूरा करने के लिये पाकिस्तान को मुस्लिम बाहुल्य राज्य के रूप में गठित किया गया था।
- धर्म के आधार पर एकजुट होने के बावजूद, पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा भाषायी मतभेदों से मतभेद को जन्म मिला।
- वर्ष 1971 के युद्ध के कारण:
- सामाजिक शोषण: स्वतंत्रता के बाद, पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान को सांस्कृतिक रूप से हीन माना गया, क्योंकि विभाजन से पूर्व हिंदू-प्रभुत्व वाले अभिजात वर्ग के साथ इसके ऐतिहासिक संबंध थे। इस धारणा से बंगाली लोगों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा मिला।
- भाषाई प्रभुत्व: पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा के रूप में उर्दू को थोपने से पूर्वी पाकिस्तान की प्रमुख भाषा (बंगाली) की उपेक्षा हुई, जिसके कारण व्यापक अशांति के साथ विरोध प्रदर्शन हुए।
- राजनीतिक भेदभाव: पश्चिमी पाकिस्तान का केंद्रीय सरकार पर प्रभुत्व था तथा सत्ता पंजाबी अभिजात वर्ग के पास केंद्रित थी। पूर्वी पाकिस्तान में, अपनी बड़ी आबादी के बावजूद, निर्णय लेने का न्यूनतम प्रतिनिधित्त्व था।
- वर्ष 1970 के चुनाव, जिनमें अवामी लीग के शेख मुजीबुर रहमान ने निर्णायक जीत हासिल की, पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्तता की मांग का प्रतीक थे, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तानी नेताओं के प्रतिरोध के कारण अशांति फैल गई।
- आर्थिक शोषण: पूर्वी पाकिस्तान को गंभीर आर्थिक उपेक्षा और शोषण का सामना करना पड़ा।
- पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान के राजस्व का 62% उत्पन्न करने के बावजूद, अपने विकास के लिये राष्ट्रीय बजट का केवल 25% ही प्राप्त कर पाया।
- रोज़गार असमानताएँ: पश्चिमी पाकिस्तानियों ने अधिकांश प्रशासनिक और उच्च पदों पर कब्ज़ा कर लिया, जबकि बंगालियों का नागरिक तथा सैन्य सेवाओं में प्रतिनिधित्व कम था, जिससे असमानताएँ और अधिक बढ़ गईं।
- युद्ध की प्रमुख घटनाएँ:
- ऑपरेशन सर्चलाइट (25 मार्च, 1971):
- पाकिस्तानी सेना ने बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलनों को दबाने के लिये ढाका और पूर्वी पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों पर क्रूर कार्रवाई शुरू की।
- इस अभियान में छात्रों, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाया गया, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर हत्याएँ एवं विनाश हुआ।
- स्वतंत्रता और अनंतिम सरकार:
- शेख मुजीबुर रहमान द्वारा बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा ने मुक्ति संग्राम की औपचारिक शुरुआत को चिह्नित किया।
- मुक्ति वाहिनी (स्वतंत्रता सेनानी) का गठन पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध आयोजित करने के लिये किया गया था।
- बाद में, मुजीबनगर में बांग्लादेश की अनंतिम सरकार की स्थापना की गई और शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपति बनाया गया।
- मुक्ति वाहिनी द्वारा सैन्य अभियान (अप्रैल-दिसंबर 1971):
- मुक्ति वाहिनी ने पूर्वी पाकिस्तान में छापामार अभियान चलाए, पाकिस्तानी सेना को निशाना बनाया और आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित किया।
- भारत में शरणार्थी संकट (मध्य 1971):
- पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के कारण 10 मिलियन से अधिक शरणार्थी भारत आ गए।
- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने मुक्ति वाहिनी को मानवीय सहायता प्रदान की तथा बाद में सैन्य और कूटनीतिक समर्थन भी प्रदान किया।
- ऑपरेशन सर्चलाइट (25 मार्च, 1971):
शिमला समझौता, 1972
- वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद 2 जुलाई, 1972 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
- संबंधों को सामान्य बनाने और शांति स्थापित करने के लिये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के मध्य इस पर वार्तालाप हुई थी।
- उद्देश्य:
- कश्मीर मुद्दे का द्विपक्षीय समाधान किया जाए तथा इसका अंतर्राष्ट्रीयकरण रोका जाए।
- नए क्षेत्रीय शक्ति संतुलन के आधार पर भारत-पाक संबंधों में सुधार लाना।
- पाकिस्तान में और अधिक आक्रोश को रोकने के लिये भारत ने युद्धविराम रेखा को स्थायी सीमा बनाने का विरोध किया।
- प्रमुख प्रावधान:
- संघर्ष समाधान: मुद्दों का द्विपक्षीय एवं शांतिपूर्ण ढंग से समाधान किया जाना।
- नियंत्रण रेखा (LOC): दोनों पक्ष वर्ष 1971 के युद्ध के बाद कश्मीर में स्थापित नियंत्रण रेखा का सम्मान करने तथा इसकी स्थिति में एकतरफा परिवर्तन न करने पर सहमत हुए।
- सैन्य वापसी: अंतर्राष्ट्रीय सीमा के अपने-अपने पक्षों की ओर सैनिकों की वापसी।
- भावी कूटनीति: निरंतर वार्ता और युद्धबंदियों के प्रत्यावर्तन के प्रावधान।
वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध पर भारत की प्रतिक्रिया क्या थी?
- प्रारंभिक सावधानी और मानवीय संकट:
- भारत ने शुरू में सतर्कतापूर्ण रुख अपनाया, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान द्वारा की गई सैन्य कार्यवाही के कारण बड़े पैमाने पर शरणार्थियों का पलायन हुआ- लगभग 8-10 मिलियन लोग, जिनमें अधिकांशतः हिंदू थे, भारत की ओर पलायन कर गए।
- भारत ने पूर्वी राज्यों, मुख्यतः पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, त्रिपुरा और मेघालय में शरणार्थी शिविर स्थापित किये।
- कूटनीतिक प्रयास:
- भारत ने पाकिस्तान के अत्याचारों की ओर ध्यान आकर्षित करने और अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने के लिये वैश्विक समर्थन मांगा।
- सैन्य हस्तक्षेप और परिणाम:
- युद्ध 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हुआ जब पाकिस्तान ने पश्चिमी मोर्चों पर भारतीय सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किये, जिसके जवाब में भारत ने भी हवाई हमले किये तथा पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर समन्वित अभियान शुरू हुआ।
- भारत ने मुक्ति वाहिनी, जो बांग्लादेशी लड़ाकों की 20,000 सदस्यीय गुरिल्ला सेना थी, को प्रशिक्षण देकर तथा पूर्वी पाकिस्तान के भूगोल के बारे में उनके ज्ञान का लाभ उठाकर महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की।
- यह संघर्ष 13 दिनों तक चला, जिसमें नौसेना और वायु सेना सहित भारत के सैन्य बलों ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की।
- 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ने ढाका में आत्मसमर्पण समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पणों में से एक था और जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
- युद्ध के परिणाम:
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप जिन्ना के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया गया, जिससे कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा कमज़ोर हो गया और दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति काफी नाजुक हो गयी।
- जिन्ना के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक मतभेद होने से उनके हितों की रक्षा के लिये अलग-अलग राष्ट्र आवश्यक हैं।
- भारत ने पाकिस्तान के दमन के पीड़ितों को मानवीय सहायता और समर्थन प्रदान करके अपनी अंतर्राष्ट्रीय छवि को मज़बूत किया तथा मानवाधिकारों और करुणा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की।
- इस युद्ध के परिणामस्वरूप जिन्ना के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया गया, जिससे कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा कमज़ोर हो गया और दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति काफी नाजुक हो गयी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत-बांग्लादेश संबंधों में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। द्विपक्षीय सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता बढ़ाने के लिये इन मुद्दों के समाधान के उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: तीस्ता नदी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न: आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (2020) |