कृषि
पुनर्योजी कृषि
- 27 Dec 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:पुनर्योजी कृषि, मृदा क्षरण, शून्य-बजट प्राकृतिक खेती, जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना। मेन्स के लिये:पुनर्योजी कृषि और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
पुनर्योजी खेती के तरीकों का पालन करने वाले मध्य प्रदेश के किसानों का मानना है कि इससे उनकी लगातार सिंचाई की आवश्यकता कम होती जा रही है तथा पानी और ऊर्जा का संरक्षण हो रहा है।
पुनर्योजी कृषि:
- पृष्ठभूमि:
- 1960 के दशक की हरित क्रांति ने भारत को भुखमरी के कगार से उबार लिया लेकिन इस क्रांति ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा भूजल का उपयोग करने वाला देश बना दिया।
- संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल विकास रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत हर साल 251 क्यूबिक किमी. या दुनिया की भूजल निकासी का एक-चौथाई से अधिक जल निकालता है, इसके 90% का उपयोग कृषि के लिये किया जाता है।
- वर्तमान में भारतीय मृदा में जैविक कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की गंभीर और व्यापक कमी है।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति , 2022 के अनुसार, यदि कृषि से देश की 224.5 मिलियन कुपोषित आबादी के लिये खाद्यान उपलब्ध कराना है व देश की अर्थव्यवस्था को चलाना है, तो उसे प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है, न कि इसके विरुद्ध जाने की ।
- दुनिया भर के किसान कार्यकर्त्ता और कृषि अनुसंधान संगठन इस प्रकार के रसायन रहित खेती के तरीके विकसित कर रहे हैं जिसमें प्राकृतिक पद्धति एवं खेती के नए तरीकों जैसे कि फसल रोटेशन व विविधीकरण का उपयोग किया जा सकता है, यह सब पुनर्योजी कृषि के ही तरीके हैं।
- 1960 के दशक की हरित क्रांति ने भारत को भुखमरी के कगार से उबार लिया लेकिन इस क्रांति ने भारत को दुनिया का सबसे बड़ा भूजल का उपयोग करने वाला देश बना दिया।
- पुनर्योजी कृषि के बारे में:
- पुनर्योजी कृषि एक समग्र कृषि प्रणाली है जो रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग को कम करने, खेतों की जुताई में कमी, पशुधन को एकीकृत करने तथा कवर की गई फसलों का उपयोग करने जैसे तरीकों के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य, भोजन की गुणवत्ता, जैवविविधता में सुधार व जल और वायु गुणवत्ता पर केंद्रित है।
- यह निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करती है:
- संरक्षण कृषि के माध्यम से मृदा क्षरण को कम-से-कम करना।
- पोषक तत्त्वों को फिर से बेहतर करने और कीटों के जीवन चक्र को बाधित करने के लिये फसलों में विविधता लाना।
- कवर की गई फसलों का उपयोग कर मिट्टी के आवरण को बनाए रखना।
- पशुधन को एकीकृत करना जो मृदा में उर्वरता को बढ़ाता है और कार्बन सिंक के स्रोत के रूप में कार्य करता है।
पुनर्योजी कृषि के लाभ:
- मृदा स्वास्थ्य में सुधार:
- यह स्थायी कृषि से एक कदम आगे है, यह न केवल मिट्टी और पानी जैसे संसाधनों को बनाए रखता है बल्कि उन्हें बेहतर बनाए रखने का प्रयास करता है।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, स्वस्थ मिट्टी बेहतर जल भंडारण, संचरण, फिल्टरिंग एवं कृषि अपवाह को कम करने में मदद करती है।
- यह स्थायी कृषि से एक कदम आगे है, यह न केवल मिट्टी और पानी जैसे संसाधनों को बनाए रखता है बल्कि उन्हें बेहतर बनाए रखने का प्रयास करता है।
- जल संरक्षण:
- स्वस्थ मिट्टी बेहतर जल भंडारण संचरण फिल्टरिंग द्वारा जल-उपयोग दक्षता में सुधार करने में मदद करती है और कृषि अपवाह को कम करती है।
- अध्ययनों से पता चला है कि प्रति 0.4 हेक्टेयर मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ में 1% की वृद्धि से जल भंडारण क्षमता 75,000 लीटर से अधिक बढ़ जाती है।
- स्वस्थ मिट्टी बेहतर जल भंडारण संचरण फिल्टरिंग द्वारा जल-उपयोग दक्षता में सुधार करने में मदद करती है और कृषि अपवाह को कम करती है।
- उर्जा संरक्षण:
- पुनर्योजी कृषि पद्धतियाँ पंपों जैसे सिंचाई सहायकों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऊर्जा का संरक्षण करती हैं।
पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा देने के भारतीय प्रयास:
- जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना:
- जैविक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना 2004 से चल रही प्रणाली देश का सबसे बड़ा प्रयोग है यह ICAR-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मिंग सिस्टम रिसर्च मेरठ द्वारा संचालित है।
- धान गहनता प्रणाली:
- एक विधि जिसमें बीजों को व्यापक दूरी पर रखा जाता है और पैदावार में सुधार के लिये जैविक खाद का उपयोग किया जाता है।
- शून्य बजट प्राकृतिक खेती:
- इसे सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के नाम से भी जाना जाता है इसमें फसल को गाय के गोबर, मूत्र, फलों सहित अन्य चीज़ों से बने खाद का उपयोग कर उगाने पर ज़ोर दिया जाता है।
- समाज प्रगति सहयोग:
- यह एक ज़मीनी स्तर का संगठन है जो कृषि कीटों को नियंत्रित करने के लिये प्राकृतिक तरीकों को बढ़ावा देता है जैसे- फसल अवशेषों की खाद और पुनर्चक्रण, खेत की खाद का उपयोग, मवेशियों के मूत्र और टैंक की गाद का उपयोग ने भी इस दिशा में प्रयास किये हैं।
- समाज प्रगति सहयोग ने बचाए गए जल को मापने के लिये वर्ष 2016-18 में मध्य प्रदेश के चार ज़िलों और महाराष्ट्र के एक ज़िले में 2,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर 1,000 किसानों के साथ फील्ड परीक्षण किया है।
- यह एक ज़मीनी स्तर का संगठन है जो कृषि कीटों को नियंत्रित करने के लिये प्राकृतिक तरीकों को बढ़ावा देता है जैसे- फसल अवशेषों की खाद और पुनर्चक्रण, खेत की खाद का उपयोग, मवेशियों के मूत्र और टैंक की गाद का उपयोग ने भी इस दिशा में प्रयास किये हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? ( 2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्रश्न. कृषि उत्पादन को बनाए रखने में एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कहाँ तक सहायक है? (मुख्य परीक्षा, 2019) प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली क्या है? यह भारत में छोटे और सीमांत किसानों के लिये किस प्रकार सहायक है? (मुख्य परीक्षा, 2022) |