फसल विविधीकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक विख्यात कृषि अर्थशास्त्री ने सुझाव दिया है कि पशु कृषि/पशुपालन का उपयोग फसल विविधीकरण को बेहतर अवसर प्रदान करते है।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- फसल विविधीकरण से तात्पर्य नई फसलों या फसल प्रणालियों से कृषि उत्पादन को जोड़ने से है, जिसमें एक विशेष कृषि क्षेत्र पर कृषि उत्पादन के पूरक विपणन अवसरों के साथ मूल्यवर्द्धित फसलों से विभिन्न तरीकों से लाभ मिल रहा है।
- फसल प्रणाली: यह फसलों, उनके अनुक्रम और प्रबंधन तकनीकों को संदर्भित करता है जिसका उपयोग किसी विशेष कृषि क्षेत्र में वर्षों से किया जाता है।
- प्रकार: भारत में प्रमुख फसल प्रणाली इस प्रकार है- क्रमिक फसल, एकल फसली व्यवस्था (Mono-Cropping), अंतर फसली (Intercropping), रिले क्रॉपिंग (Relay cropping), मिश्रित अंतर फसली (Mixed intercropping), अवनालिका फसल (Alley cropping)।
- अधिकतर किसान आजीविका और आय के मानकों को बढ़ाने के लिये मिश्रित फसल-पशुधन प्रणाली का भी उपयोग करते हैं।
- पशुपालन या पशुकृषि विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं (जैसे-गाय-भैस, कुत्ते, भेड़ और घोड़ा) के विभिन्न पक्षों जैसे भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि का अध्ययन किया जाता है।
- पशुपालन से तात्पर्य पशुधन को बढ़ाने और इनके चयनात्मक प्रजनन से है। यह एक प्रकार का पशु प्रबंधन तथा देखभाल है, जिसमें लाभ के लिये पशुओं के आनुवंशिक गुणों एवं व्यवहारों को विकसित किया जाता है। यह कृषि की एक शाखा है।
प्रकार:
लाभ:
- छोटी भूमि पर आय में वृद्धि:
- वर्तमान में 70-80% किसानों के पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इसे दूर करने के लिये मौजूदा फसल के पैटर्न को उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे कि मक्का, दाल, इत्यादि का विविधीकरण किया जाना चाहिये।
- हरियाणा राज्य सरकार द्वारा जल संरक्षण के उद्देश्य से ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ (Mera Pani Meri Virasat) योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के माध्यम से राज्य सरकार पानी की अधिक खपत वाले धान के स्थान पर ऐसी फसलों को प्रोत्साहित करेगी जिनके लिये कम पानी की आवश्यकता होती है। योजना के तहत, आगामी खरीफ सीज़न के दौरान धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसलों की बुवाई करने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रति एकड़ 7,000 रुपए भी प्रदान किये जाएंगे।
- आर्थिक स्थिरता:
- फसल विविधीकरण विभिन्न कृषि उत्पादों की कीमत में उतार-चढ़ाव को बेहतर ढंग से वहन कर सकता है और यह कृषि उत्पादों की आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकता है।
- प्राकृतिक आपदाओं को कम करना:
- जैविक (रोग, कीट तथा निमेटोड) तथा अजैविक (सूखा, क्षारीयता, जलाक्रांति, गरमी, ठंड तथा पाला) पारिस्थितियों के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है। इस परिस्थिति में मिश्रित फसल के माध्यम से फसल विविधीकरण उपयोगी हो सकता है।
- संतुलित भोजन की मांग:
- अधिकांश भारतीय आबादी कुपोषण से पीड़ित है। ज़्यादातर महिलाओं में एनीमिया होता है। खाद्य टोकरी में (दलहन, तिलहन, बागवानी और सब्जी) गुणवत्ता बढ़ाकर सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं और खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के उद्देश्य से मृदा स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं।
- भारत सरकार ने अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के माध्यम से दलहन और तिलहन के क्षेत्र में वृद्धि करने का लक्ष्य रखा है।
- संरक्षण:
- फसल विविधीकरण को अपनाने से प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद मिलती है, जैसे कि चावल-गेहूँ की फसल प्रणाली में फलियाँ लगाना, जो मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करने के लिये वायुमंडलीय नाइट्रोजन को ठीक करने की क्षमता रखती है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) की सहायता से किसान अपने खेतों की मृदा के बेहतर स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार के लिये पोषक तत्त्वों का उचित मात्रा में उपयोग करने के साथ ही मृदा की पोषक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।
चुनौतियाँ:
- देश में बहुतायत फसल क्षेत्र पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर है।
- भूमि और जल संसाधनों जैसे संसाधनों का दोहन और अधिकतम उपयोग, पर्यावरण और कृषि की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- जीवाश्म ईंधन के बाद मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में पशु कृषि का दूसरा सबसे बड़ा योगदान है और यह वनों की कटाई, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और जैव विविधता के नुकसान का एक प्रमुख कारण है।
- उन्नत खेती द्वारा बीज और पौधों की अपर्याप्त आपूर्ति में सुधार करना।
- कृषि के आधुनिकीकरण और मशीनीकरण के पक्ष में भूमि का विखंडन।
- ग्रामीण सड़क, बिजली, परिवहन, संचार आदि कमज़ोर बुनियादी ढाँचे।
- फसल कटाई के पश्चात् अपर्याप्त प्रौद्योगिकियों और ख़राब होने वाले बागवानी उत्पादों के कटाई के पश्चात् उनका प्रबंधन करने के लिये अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे।
- कमज़ोर कृषि आधारित उद्योग।
- कमज़ोर अनुसंधान- उनका विस्तार - किसान संबंध।
- किसानों के बड़े पैमाने पर निरक्षरता के साथ अपर्याप्त प्रशिक्षित मानव संसाधन।
- अधिकांश फसल और पौधों को प्रभावित करने वाले रोगों और कीटों की अधिकता।
- बागवानी फसलों के लिये खराब डेटाबेस।
- कई वर्षों से कृषि के क्षेत्र में निवेश में कमी देखी गई है।
अन्य संबंधित पहल:
- रेफ्रिजरेशन सिस्टम पूसा- FSF
- कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- मेगा फ़ूड पार्क
- बीज-हब केंद्र
आगे की राह:
- हालाँकि ऐसी चुनौतियाँ हैं जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन फसल विविधीकरण किसानों की आय दोगुनी और राष्ट्र को खाद्य सुरक्षा संपन्न बनाने का एक अवसर प्रदान करता है।
- इसलिये, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूँ और चावल के अलावा उत्पादित फसलों को खरीदकर फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिये। इससे घटते भूमिगत जलस्तर आपूर्ति के संरक्षण में भी मदद मिल सकती है।
- कृषि उत्सर्जन को स्मार्ट पशुधन प्रबंधन, उर्वरक अनुप्रयोग में प्रौद्योगिकी-सक्षम निगरानी तंत्र, क्षेत्रीय ढाँचे में सरल परिवर्तन और अन्य अधिक कुशल कृषि तकनीकों के माध्यम से भी सीमित किया जा सकता है ।