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कृषि वानिकी का स्थानिक मेंढकों पर प्रभाव

  • 09 Dec 2024
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में नेचर कंज़र्वेशन फाउंडेशन (NCF-इंडिया) और बॉम्बे एनवायरनमेंटल एक्शन ग्रुप (BEAG) द्वारा  किये गए एक अध्ययन में उत्तरी पश्चिमी घाट में स्थानीय मेंढकों की प्रजातियों पर कृषि वानिकी के प्रभाव का आकलन किया गया। 

  • अध्ययन के निष्कर्ष: धान के खेतों में उभयचरों की विविधता में अधिक कमी पाई गई; हालाँकि अप्रभावित पठारों में यह अधिक थी जबकि बागों में यह सबसे कम थी।
    • CEPF स्थानीय मेंढक की बिल खोदने वाली प्रजाति (Frog burrowing species) (मिनरवेरा सेप्फी ) और गोवा फेजेरवेरा (मिनरवेरा गोमांतकी ) जैसी स्थानीय प्रजातियाँ  संशोधित आवासों में कम प्रचुर मात्रा में थीं।
    • मिनर्वरिया सिहाद्रेंसिस जैसी सामान्य प्रजातियाँ धान के खेतों में अधिक पाई गईं, जो आवास-प्रेरित बदलावों का संकेत है।
  • पश्चिमी घाट: लैटेराइट पठारों (लौह और एल्युमीनियम से समृद्ध समतल शीर्ष वाले भूदृश्य) से निर्मित पश्चिमी घाट का निर्माण लाखों वर्ष पूर्व ज्वालामुखी संचलन के माध्यम से हुआ था।
    • यह एक जैवविविधता वाला हॉटस्पॉट है, यहाँ 226 मेंढकों समेत लगभग 252 उभयचर प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • हालाँकि वैश्विक स्तर पर, 40.7% उभयचर प्रजातियाँ (8,011 प्रजातियाँ) निवास स्थान के विनाश, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और चिट्रिडिओमाइकोसिस जैसी बीमारियों के कारण संकट में हैं

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