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डांसिंग फ्रॉग

  • 12 Oct 2023
  • 4 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ

हाल ही में भारतीय वन्यजीव न्यास द्वारा IUCN प्रजाति उत्तरजीविता आयोग (Species Survival Commission) के उभयचर विशेषज्ञ समूह द्वारा समन्वित वैश्विक उभयचर मूल्यांकन के द्वितीय संस्करण का आकलन किया गया, जिससे इस बात पुष्टि होती है कि भारत की उभयचर प्रजातियों में डांसिंग फ्रॉग सर्वाधिक खतरे में है। ये पश्चिमी घाट के स्थानिक जीव हैं।

  • माइक्रिक्सलस जीनस से संबंधित मेंढकों की 24 प्रजातियों में से दो को गंभीर रूप से लुप्तप्राय पाया गया और 15 को लुप्तप्राय पाया गया। परिणामस्वरूप, वे इंडो-मलायन प्रजातियों में सबसे संकटग्रस्त हैं।
  • यह विश्व का पाँचवाँ सबसे असुरक्षित जीनस है और इसकी 92% प्रजातियाँ खतरे में हैं।

डांसिंग फ्रॉग:

  • परिचय:
    • डांसिंग फ्रॉग माइक्रिक्सलस जीनस से संबंधित मेंढकों का एक समूह है।

  • व्यवहार और संसर्ग प्रदर्शन:
    • डांसिंग फ्रॉग में एक विशिष्ट संसर्ग प्रक्रिया होती है जिसमें पैर हिलाने की विशेषता होती है, जहाँ नर अपने पश्च पादों को फैलाते और अपने जालदार पंजों को हिलाते हैं।
    • यह दृश्य प्रदर्शन मादा फ्रॉग को आकर्षित करने और प्रतिद्वंद्वी नर फ्रॉग को संकेत देने में सहायता करता है।
  • पर्यावास प्राथमिकता:
    • ये सघन छत्र वाले आवरण में निवास करना पसंद करते हैं, ये आमतौर पर (लगभग 70-80%) पश्चिमी घाट में धीमे प्रवाह वाली बारहमासी नदियों के पास पाए जाते हैं।
  • जोखिम:
    • डांसिंग फ्रॉग की संख्या विभिन्न मानवजनित कारकों के कारण खतरे में है जिनमें मच्छर, मछली जैसी आक्रामक प्रजातियाँ, भूमि उपयोग में परिवर्तन, तापमान और आर्द्रता भिन्नताएँ, विषम मौसम की घटनाएँ, संक्रामक रोग, जल प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण एवं बाँध जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • इन प्रजातियों के अस्तित्व के लिये इनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा और इष्टतम स्थिति बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि विश्व स्तर पर उभयचरों की संख्या घट रही है जिनमें एक बहुत बड़ी आबादी पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
  • संरक्षण के प्रयास:
    • भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट की ‘उभयचर पुनर्प्राप्ति परियोजना’ जैसी संरक्षण पहलें सक्रिय रूप से उन चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम हैं जो उभयचर प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न करती हैं।
    • इन प्रयासों में खतरे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना, संरक्षण कार्य योजना, क्षमता विकास, प्रशिक्षण, समर्थन और आवश्यक सूचना साझा करना शामिल है।
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