जलवायु परिवर्तन से उभयचरों को ख़तरा | 11 Oct 2023
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
नेचर जर्नल में प्रकाशित 'ऑनगोइंग डिकलाइंस फॉर द वर्ल्डस एम्फीबियंस इन द फेस ऑफ इमर्जिंग थ्रेट्स' (Ongoing declines for the world’s amphibians in the face of emerging threats) शीर्षक वाले अध्ययन से विश्व भर के उभयचरों के लिये विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से प्रमुख खतरों का पता चला है।
- यह अध्ययन एम्फिबियन रेड लिस्ट अथॉरिटी द्वारा समन्वित द्वितीय वैश्विक उभयचर मूल्यांकन पर आधारित है, जो अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) प्रजाति उत्तरजीविता आयोग (Species Survival Commission) के उभयचर विशेषज्ञ समूह की एक शाखा है।
- इस मूल्यांकन में विश्व भर से 8,000 से अधिक उभयचर प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का मूल्यांकन किया गया, जिसमें 2,286 प्रजातियों का मूल्यांकन प्रथम बार किया गया।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:
- विलुप्त होने का जोखिम:
- विशव में प्रत्येक पाँच उभयचर प्रजातियों में से दो प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
- विश्व स्तर पर लगभग 40.7% प्रजातियाँ खतरे में हैं जो किसी भी प्रकार की प्रजाति के लिये सबसे बड़ा प्रतिशत है। इसके विपरीत 12.9% पक्षियों, 21.4% सरीसृपों और 26.5% स्तनधारियों को भी इसका खतरा है।
- वर्ष 2004 और 2022 के बीच 300 से अधिक उभयचर प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं, इनमें से 39% प्रजातियों के लिये जलवायु परिवर्तन को प्राथमिक खतरे के रूप में देखा जाता है।
- उभयचर पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, जिससे वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- विलुप्त उभयचर:
- वर्ष 2004 के बाद से चार उभयचर प्रजातियों को विलुप्त प्रजातियों के रूप में उल्लेखित किया गया था, जिसमे कोस्टा रिका (देश) की चिरिकि हार्लेक्विन मेंढक (एटलोपस चिरिकिनेसिस), ऑस्ट्रेलिया की शार्प स्नाउट डे फ्रॉग (टौडैक्टाइलस एक्यूटिरोस्ट्रिस) और ग्वाटेमाला की क्राउगैस्टोर माइलोमिलॉन एवं जालपा फाल्स ब्रुक सैलामैंडर (स्यूडोयूरीसिया एक्सस्पेक्टाटा) प्रजातियाँ शामिल है।
- संकटग्रस्त उभयचरों का सबसे बड़ी संक्रेंद्रण:
- संकटग्रस्त उभयचरों का सबसे व्यापक संक्रेंद्रण कैरेबियाई द्वीपों, मैक्सिको और मध्य अमेरिका, उष्णकटिबंधीय एंडीज़ क्षेत्र, भारत के पश्चिमी घाट, श्रीलंका, कैमरून, नाइजीरिया और मेडागास्कर में पाया गया।
- मानवीय प्रभाव:
- कृषि, बुनियादी ढाँचे के विकास और अन्य उद्योगों जैसी गतिविधियों के कारण आवास का विनाश तथा क्षरण उभयचरों के लिये प्रमुख संकट बना हुआ है, जो सभी संकटग्रस्त प्रजातियों में से 93% प्रभावित कर रहा है।
- रोग और अत्यधिक शोषण:
- चिट्रिड कवक के कारण होने वाली बीमारी और अत्यधिक दोहन उभयचरों की कमी में योगदान दे रहा है।
- वर्ष 1980 और 2004 के बीच बीमारी और निवास स्थान के नुकसान के कारण स्थिति में 91% गिरावट आई।
- अविरत और अनुमानित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब बढ़ती चिंता का कारण बन रहे हैं, वर्ष 2004 के बाद से 39% स्थिति में गिरावट आई है, इसके बाद निवास स्थान का नुकसान हुआ है।
- सैलामैंडर संकट:
- सैलामैंडर की हर पाँच में से तीन प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं, जिसका मुख्य कारण आवास विखंडन और जलवायु परिवर्तन है।
- सैलामैंडर को विश्व के उभयचरों के सबसे संकटग्रस्त समूह के रूप में पहचाना जाता है।
- उभयचर को पहली बार 300 मिलियन वर्ष से भी पहले पहचाना गया था। उभयचरों के तीन वर्ग आज भी मौजूद हैं:
- सैलामैंडर और न्यूट्स (60% विलुप्त होने का खतरा), मेंढक व टोड (39%), तथा अंगहीन एवं सर्पीन सीसिलियन (16%)।
- उभयचर को पहली बार 300 मिलियन वर्ष से भी पहले पहचाना गया था। उभयचरों के तीन वर्ग आज भी मौजूद हैं:
- संरक्षण कार्रवाई:
- संरक्षणवादियों ने वैश्विक संरक्षण कार्य योजना विकसित करने, संरक्षण के प्रयासों को प्राथमिकता देने, अतिरिक्त संसाधनों को सुरक्षित करने और उभयचरों के प्रति नकारात्मक प्रवृत्ति में बदलाव लाने के लिये नीतियों को प्रभावित वाले अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग करने की योजना बनाई है।
उभयचर:
- परिचय:
- वे एनिमेलिया जीव जगत के कॉर्डेटा संघ के अंतर्गत आते हैं, उदाहरण के लिये, मेंढक, टोड, सैलामैंडर, न्यूट्स, सीसिलियन आदि।
- ये बहुकोशिकीय कशेरुक हैं जो स्थल और जल दोनों पर निवास करते हैं।
- ये भूमि पर विचरण करने वाले पहले समतापी जीव हैं।
- समतापी जीवों को उन जीवों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो पर्यावरण में परिवर्तन के साथ अपने आंतरिक शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
- ये फुफ्फुस और त्वचा के माध्यम से श्वसन क्रिया करते हैं।
- उनके हृदय तीन प्रकोष्ठ के बने होते हैं।
- महत्त्व:
- पारिस्थितिक दृष्टिकोण से उभयचरों को महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संकेतक माना जाता है। उच्च स्तर की संवेदनशीलता के कारण उनका अध्ययन किया जाता है, जिससे उनके निवास स्थान के विखंडन, पारिस्थितिकी तंत्र के तनाव, कीटनाशकों के प्रभाव और विभिन्न मानवजनित गतिविधियों का संकेत मिलता है।
- ये महत्त्वपूर्ण जैविक संकेतक हैं और पारिस्थितिक तंत्र के व्यापक स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- ये उपभोक्ता (शिकारी) और उत्पादक (शिकार) दोनों के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उभयचर कीट खाते हैं, जो कृषि के लिये फायदेमंद है और मलेरिया जैसी बीमारियों को नियंत्रित करने में भी सहायता करते हैं।
- उभयचर प्राणी चिकित्सीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। उभयचरों की त्वचा में विभिन्न प्रकार के पेप्टाइड्स होते हैं और ये कई मानव रोगों के लिये चिकित्सा उपचार की संभावना प्रदान करते हैं।
- वर्तमान समय में इनका उपयोग कुछ दर्द निवारक के रूप में भी किया जाता है।
- पारिस्थितिक दृष्टिकोण से उभयचरों को महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संकेतक माना जाता है। उच्च स्तर की संवेदनशीलता के कारण उनका अध्ययन किया जाता है, जिससे उनके निवास स्थान के विखंडन, पारिस्थितिकी तंत्र के तनाव, कीटनाशकों के प्रभाव और विभिन्न मानवजनित गतिविधियों का संकेत मिलता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की जैवविविधता के संदर्भ में सीलोन फ्रॉगमाउथ, कॉपरस्मिथ बार्बेट, ग्रे-चिन्ड मिनिवेट और ह्वाइट-थ्रोटेड रेडस्टार्ट क्या है? (2020) (a) पक्षी उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। प्रश्न. सजीवों के विकास के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा क्रम सही है? (2009) (a) ऑक्टोपस - डॉल्फिन - शार्क उत्तर: (c)
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