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जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रहीय सीमाएँ

  • 20 Sep 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रहीय सीमाएँ, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

पृथ्वी की स्थिरता और जैवविविधता को बनाए रखने में ग्रहीय सीमाओं का महत्त्व

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

साइंस एडवांसेज़ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, विश्व ने पृथ्वी की स्थिरता और लचीलेपन को बनाए रखने के लिये आवश्यक नौ ग्रहीय सीमाओं में से छह का उल्लंघन किया है।

  • वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत उन प्रक्रियाओं की जाँच की है जिन्होंने पिछले 12,000 वर्षों में मानव अस्तित्व के लिये अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

ग्रहीय सीमाएँ:

  • परिचय:
    • ग्रहीय सीमाओं की रूपरेखा सबसे पहले वर्ष 2009 में जोहान रॉकस्ट्रॉम और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध 28 वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा प्रस्तावित की गई थी ताकि उन पर्यावरणीय सीमाओं को परिभाषित किया जा सके जिनके भीतर मानवता, पृथ्वी की स्थिरता एवं जैवविविधता को बनाए रखने के लिये सुरक्षित रूप से कार्य किया जा सके।
  • नौ ग्रहीय सीमाएँ:
    • जलवायु परिवर्तन।
    • जीवमंडल अखंडता में परिवर्तन (जैवविविधता हानि और प्रजातियों का विलुप्त होना)।
    • समतापमंडलीय ओज़ोन क्षरण।
    • महासागर अम्लीकरण।
    • जैव-भू-रासायनिक प्रवाह (फास्फोरस और नाइट्रोजन चक्र)।
    • भूमि-प्रणाली परिवर्तन (उदाहरण के लिये वनों की कटाई)।
    • स्वच्छ जल का उपयोग (भूमि पर संपूर्ण जल चक्र में परिवर्तन)।
    • वायुमंडलीय एरोसोल लोडिंग (वायुमंडल में सूक्ष्म कण जो जलवायु और जीवित जीवों को प्रभावित करते हैं)।
    • नई संस्थाओं का परिचय (माइक्रोप्लास्टिक्स, अंतःस्रावी अवरोधक और कार्बनिक प्रदूषकों से युक्त)।
  • ग्रहीय सीमाओं का उल्लंघन:
    • इन सीमाओं का उल्लंघन किसी तात्कालिक तबाही का संकेत नहीं देता है बल्कि अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय परिवर्तनों का खतरा उत्पन्न करता है।
      • इससे पृथ्वी पर ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं जो हमारी वर्तमान जीवनशैली का समर्थन नहीं करेंगी।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

  • प्रभावित सीमाएँ:
    • जलवायु परिवर्तन:
      • शोधकर्त्ताओं ने वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता और विकिरण बल (वायुमंडल में ऊर्जा असंतुलन के आकार का प्रतिनिधित्व) के लिये 350 भाग प्रति मिलियन (ppm) तथा 1 वाट प्रति वर्गमीटर (Wm2) पर जलवायु परिवर्तन में योगदान हेतु ग्रहीय सीमा निर्धारित की है। वर्तमान में यह 417 ppm और 2.91 Wm2 तक पहुँच गया है।
    • जीवमंडल अखंडता:
      • जहाँ तक जीवमंडल की अखंडता का सवाल है, शोधकर्त्ताओं ने प्रति दस लाख प्रजाति-वर्षों में 10 से कम प्रजातियों के विलुप्त होने की सीमा का अनुमान लगाया था, किंतु मानवीय कारकों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर तय सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक हो गई है।
      • अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि विलुप्त होने की दर प्रति मिलियन प्रजाति-वर्ष (एक प्रजाति का अपनी उत्पत्ति से लेकर विलुप्त होने तक बने रहने का औसतन समय) 100 से अधिक थी
        • अनुमान है कि 80 लाख पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से लगभग 10 लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
      • पिछले 150 वर्षों में पौधों और जानवरों की 10% से अधिक आनुवंशिक विविधता नष्ट हो गई है।
      • भूमि व्यवस्था परिवर्तन:
      • वैश्विक वन भूमि क्षेत्र 75% की सुरक्षित सीमा से नीचे गिरकर वर्तमान में केवल 60% रह गया है।
    • स्वच्छ जल में परिवर्तन:
      • ब्लू वाटर (सतही और भूजल) एवं ग्रीन वाटर (पौधों के लिये उपलब्ध जल) दोनों ने वर्ष 1905 तथा वर्ष 1929 में क्रमशः 10.2% और 11.1% की अपनी सुरक्षित सीमा से परे प्रभाव का अनुभव किया है, वर्तमान में यह क्रमशः 18.2% एवं 15.8% है।
    • जैव-भू-रासायनिक प्रवाह:
      • पर्यावरण में फॉस्फोरस और नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्त्वों का प्रवाह सुरक्षित सीमा से अधिक बढ़ गया है।
        • फॉस्फोरस के लिये सीमा 11 टेराग्राम (Tg) और नाइट्रोजन के लिये 62 Tg तय की गई थी। यह अब क्रमशः 22.6 Tg तथा 190 Tg है।
    • नवीन तत्त्व:
      • नवीन तत्त्वों की ग्रहीय सीमा की गणना शून्य थी।
      • माइक्रोप्लास्टिक्स, अंतःस्रावी अवरोधक और कार्बनिक प्रदूषकों सहित नवीन तत्त्वों पर मानव प्रभाव ने शून्य सीमा का उल्लंघन किया है। इसका तात्पर्य है कि इंसानों ने इस सीमा का भी उल्लंघन किया है।
  • सुरक्षित सीमाएँ:
    • स्ट्रैटोस्फेरिक ओज़ोन क्षरण, एयरोसोल लोडिंग और महासागरीय अम्लीकरण पृथ्वी की ग्रहीय सीमा के अंदर पाए गए।

आगे की राह

  • जैवविविधता संरक्षण, पारिस्थितिक तंत्र की बहाली और लुप्तप्राय प्रजातियों एवं आनुवंशिक विविधता की सुरक्षा को लक्षित करने वाले संरक्षण कार्यक्रम लागू करना।
  • पुनर्चक्रण /रिसाइक्लिंग को अपनाने से संसाधन पुनर्जनन को बढ़ावा मिलता है, अपशिष्ट कम होता है और यह सुनिश्चित होता है कि मूल्यवान सामग्रियों को त्यागने के बदले लगातार इनका पुन: उपयोग किया जाए।
    • अपशिष्ट निपटान पर सख्त नियम लागू करना, रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करना और माइक्रोप्लास्टिक जैसे नविन तत्त्वों के प्रदूषण को कम करना।
  • पर्यावरणीय प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदारी की सामूहिक भावना जागृत करते हुए समुदायों को संधारणीय प्रथाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बनाना।
  • तापमान वृद्धि को सीमित करने और जलवायु परिवर्तन से संबंधित पृथ्वी की ग्रहीय सीमा के उल्लंघन को रोकने के लिये जलवायु शमन रणनीतियों को प्राथमिकता देना। तापमान वृद्धि पर अंकुश लगाने तथा जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी की सीमा के होने वाले उल्लंघन को रोकने के लिये जलवायु शमन तकनीकों को पहली प्राथमिकता देना।
  • स्वच्छ ऊर्जा अपनाने और सतत् परिवहन के लिये प्रोत्साहन के माध्यम से शून्य-उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)

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