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जैव विविधता और पर्यावरण

आर्द्रभूमियों का संरक्षण

  • 20 Jun 2022
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 15/06/2022 को ‘द हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “Many Virtues of Wetlands” लेख पर आधारित है। इसमें आर्द्रभूमि से प्राप्त विभिन्न लाभों एवं उनके क्षरण से उत्पन्न खतरों के बारे में चर्चा की गई है, साथ ही उनके संरक्षण के लिये किये जा सकने वाले उपायों पर विचार किया गया है।

भारत के लिये जलवायु परिवर्तन के आकलन बढ़ते तापमान, समुद्र स्तर में वृद्धि, तीव्र वर्षा और अधिक विनाशकारी घटनाओं के उभार के संकेत देते हैं। इस परिदृश्य में आंतरिक एवं तटीय आर्द्रभूमियों की व्यापक विविधता का संरक्षण और विवेकपूर्ण उपयोग एक प्रभावशाली जलवायु परिवर्तन शमन प्रतिक्रिया सिद्ध हो सकती है। 

हालाँकि रामसर कन्वेंशन के ‘ग्लोबल वेटलैंड आउटलुक’ के अनुसार आर्द्रभूमियाँ (जो विश्व में आर्थिक रूप से सबसे अधिक मूल्यवान पारितंत्रों में से एक हैं और वैश्विक जलवायु के नियामक की भूमिका निभाती हैं) वन क्षेत्रों की तुलना में तीन गुना अधिक तेज़ी से लुप्त हो रही हैं। दुर्भाग्यजनक है कि विभिन्न संदर्भों में उनके महत्त्व को तो स्वीकार किया जाता है, लेकिन उनकी उपयोगिता को पूरी तरह से नहीं समझा गया है। 

आर्द्रभूमि 

  • आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जल पर्यावरण और संबंधित वनस्पति एवं जंतु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक उपस्थित होता है। वे वहाँ उपस्थित होते हैं जहाँ जल स्तर भूमि की सतह पर या उसके निकट होता है अथवा जहाँ भूमि जल से आप्लावित होती है। 
    • वे स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच की संक्रमणकालीन भूमि हैं जहाँ जल स्तर आमतौर पर भूमि सतह पर या उसके निकट होती है अथवा भूमि उथले जल से ढकी होती है। 
  • हाल के आकलनों के अनुसार, कम-से-कम 2.25 हेक्टेयर आकार की आर्द्रभूमियों से देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र (15.98 मिलियन-हेक्टेयर) के 4.86% भाग का निर्माण होता है।  

आर्द्रभूमियों का महत्त्व:  

  • जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में सहायक: आर्द्रभूमियाँ जलवायु एवं भूमि-उपयोग-मध्यस्थ GHG उत्सर्जन को न्यूनतम कर और वातावरण से CO2 को सक्रियता से एकत्र करने तथा कार्बन को जब्त करने की क्षमता को बढ़ाकर CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड), CH4 (मीथेन), N2O (नाइट्रस ऑक्साइड) और ग्रीनहाउस गैस (GHG) की सांद्रता के स्थिरीकरण में सहायता करती हैं। 
    • आर्द्रभूमियाँ समुद्र तटों की रक्षा कर बाढ़ जैसी आपदाओं के जोखिम को कम करने में भी मदद करती हैं। 
  • कार्बन प्रच्छादक (Sequester Carbon): आर्द्रभूमि के सूक्ष्मजीव, पादप एवं वन्यजीव जल, नाइट्रोजन और सल्फर के वैश्विक चक्रों का अंग हैं। आर्द्रभूमि कार्बन को कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में छोड़ने के बजाय अपने पादप समुदायों एवं मृदा के भीतर संग्रहीत करती है। 
    • लवण कच्छ और मैंग्रोव दलदल मृदा को लंबवत रूप से संचय करने के लिय जाने जाते हैं। 
  • पीटलैंड का महत्त्व: ‘पीटलैंड’ शब्द का तात्पर्य पीट मृदा और सतह पर उभरने वाले आर्द्रभूमि पर्यावासों से है। 
    • वे विश्व की कुल भूमि सतह का मात्र 3% हैं, लेकिन वनों की तुलना में दोगुना कार्बन संग्रह करते हैं; इस प्रकार जलवायु संकट, सतत् विकास और जैव विविधता पर वैश्विक प्रतिबद्धताओं की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • पीटलैंड—जो विश्व के सबसे बड़े कार्बन भंडार होने की स्थिति रखते हैं, भारत में विरल हैं और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 
  • प्रवासी पक्षियों के लिये स्वर्ग: हर साल लाखों प्रवासी पक्षियों का भारत में आगमन होता है और आर्द्रभूमियाँ इस वार्षिक परिघटना में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका रखती हैं। पारिस्थितिक रूप से आर्द्रभूमि पर निर्भर ये प्रवासी जलपक्षी अपनी मौसमी गमन के माध्यम से महाद्वीपों, गोलार्द्धों, संस्कृतियों और समाजों को संयुक्त करते हैं। 
    • आर्द्रभूमि समुदायों की विविधता पक्षियों के लिये आवश्यक ठहराव/विश्राम-स्थल प्रदान करती है। 
  • सांस्कृतिक और पर्यटन-संबंधी महत्त्व: आर्द्रभूमियों का भारतीय संस्कृति और परंपराओं से भी गहरा संबंध है। 
    • मणिपुर में लोकतक झील स्थानीय लोगों द्वारा ‘इमा’ (माँ) के रूप में पूजनीय है, जबकि सिक्किम की खेचेओपलरी झील (Khecheopalri Lake) ‘इच्छापूर्णा झील’ के रूप में लोकप्रिय है। 
    • पूर्वी भारत का छठ पर्व लोक, संस्कृति, जल और आर्द्रभूमि की संबद्धता की सबसे अनूठी अभिव्यक्तियों में से एक है। 
    • कश्मीर में डल झील, हिमाचल प्रदेश में खज्जियार झील, उत्तराखंड में नैनीताल झील और तमिलनाडु में कोडैकनाल झील लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में शामिल हैं। 

आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिये पहल 

  • वैश्विक स्तर पर: 
    • रामसर कन्वेंशन: यह कन्वेंशन विश्व भर में सतत् विकास की प्राप्ति की दिशा में एक योगदान के रूप में स्थानीय एवं राष्ट्रीय कार्रवाइयों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से सभी आर्द्रभूमियों के संरक्षण एवं विवेकपूर्ण उपयोग की परिकल्पना करता  है। यह 1975 में लागू हुआ। 
    • मोंट्रेक्स रेकॉर्ड: यह अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों की सूची में उन आर्द्रभूमि स्थलों का एक रजिस्टर है जहाँ प्रौद्योगिकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक चरित्र में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं या होने की संभावना है। 
      • रामसर सूची के एक भाग के रूप में इसका रख-रखाव किया जाता है। 
    • विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day): यह प्रत्येक वर्ष 2 फ़रवरी को विश्व भर में मनाया जाता है। 
      • यह दिवस ईरान के रामसर शहर में 2 फ़रवरी 1971 को आर्द्रभूमि कन्वेंशन को अंगीकृत किये जाने की तिथि को चिह्नित करता है । 
      • विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022 के अवसर पर भारत के दो स्थलों—गुजरात के खिजड़िया वन्यजीव अभयारण्य और उत्तर प्रदेश के बखिरा वन्यजीव अभयारण्य को नए रामसर स्थलों के रूप में शामिल करने की घोषणा की गई। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर: 
    • वैधानिक संरक्षण: भारत में आर्द्रभूमि को आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 [Wetlands (Conservation and Management) Rules, 2017] के तहत विनियमित किया जाता है। 
      • इन नियमों के वर्ष 2010 के संस्करण के अनुसार एक केंद्रीय आर्द्रभूमि नियामक प्राधिकरण का प्रावधान किया गया था, लेकिन वर्ष 2017 के नए नियमों ने इसे राज्य-स्तरीय निकायों से प्रतिस्थापित कर दिया और एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति (National Wetland Committee) का सृजन किया जो सलाहकारी भूमिका में कार्य करती है। 
    • MoEFCC की कार्य योजना: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)जलीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजन’, ‘मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों का संरक्षण एवं प्रबधन और ‘वन्यजीव पर्यावास का एकीकृत विकास’ जैसी योजनाओं के तहत 250 से अधिक आर्द्रभूमियों के लिये प्रबंधन कार्ययोजनाओं के कार्यान्वयन का समर्थन करता है।  
      • रामसर कन्वेंशन के तहत अपनी प्रतिबद्धता की पूर्ति की दिशा में भारत ने 49 रामसर स्थलों को नामित किया है और इस सूची को 75 आर्द्रभूमियों तक विस्तारित किया जाना संभावित है 

आर्द्रभूमि के लिये खतरे 

  • मानव गतिविधियाँ: जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान नीति मंच (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) के वैश्विक आकलन के अनुसार, मानव गतिविधियों और ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्द्रभूमि सबसे अधिक संकटग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र हैं। 
    • ‘स्पेस एप्लीकेशन सेंटर’ द्वारा हाल ही में प्रकाशित ‘राष्ट्रीय आर्द्रभूमि दशकीय परिवर्तन एटलस’  प्राकृतिक तटीय आर्द्रभूमि में क्षरण का संकेत देता है (पिछले दशक में 3.69 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 3.62 मिलियन हेक्टेयर)। 
  • शहरीकरण: शहरी केंद्रों के पास स्थित आर्द्रभूमियाँ आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं हेतु विकासात्मक दबाव में वृद्धि महसूस कर रही हैं 
    • शहरीकृत आर्द्रभूमियों से घिरे क्षेत्र समुद्र स्तर में वृद्धि के साथ तटीय ह्रास (coastal squeeze) का शिकार होंगे और अंततः आर्द्रभूमि क्षरण की स्थिति बनेगी 
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन और इससे संबद्ध कारकों एवं दबावों से आर्द्रभूमि की भेद्यता/संवेदनशीलता में वृद्धि की प्रबल संभावना है। 
    • हवा के तापमान में वृद्धि, वर्षा में परिवर्तन, तूफान, सूखा एवं बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, वायुमंडलीय CO2 सांद्रता में वृद्धि और समुद्र के स्तर में वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है। 
  • दुरनुकूलन (Maladaptation): आर्द्रभूमि दुरनुकूलनयानीन्य क्षेत्रों में अनुकूलन कार्रवाइयों की अनुक्रिया में इन पारिस्थितिक तंत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव की संभावना, का भी जोखिम रखती है 
    • उदाहरण के लिये, नदी के ऊपरी या ऊर्ध्वप्रवाही हिस्सों में मीठे जल के भंडारण में वृद्धि हेतु हाइड्रोलिक संरचनाओं का निर्माण अनुप्रवाही तटीय आर्द्रभूमि में लवणीकरण के जोखिम को और बढ़ा सकता है। 

आर्द्रभूमि क्षरण के प्रभाव/परिणाम  

  • आर्द्रभूमि के क्षरण से भू-दृश्यों द्वारा बाढ़, सूखा और तूफानी लहरों को सह सकने और उनकी त्वरा/गति को कम कर सकने की क्षमता कम हो जाती है। 
    • सितंबर 2014 में कश्मीर घाटी में और दिसंबर 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ से पुष्टि होती है कि आर्द्रभूमि का क्षरण जान-माल के लिये भारी खतरे का कारण बन सकता है। 
  • यूनेस्को के अनुसार, आर्द्रभूमि पर खतरे का विश्व के 40% वनस्पतियों और जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो आर्द्रभूमि में संपोषण पाते हैं 

आगे की राह  

  • नीतियों में आर्द्रभूमि का एकीकरण: ग्लासगो शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा घोषित उत्सर्जन प्रतिज्ञाओं में वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन, कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी लाना और अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करना शामिल हैं 
    • वेटलैंड्स ब्लू कार्बन’ (अर्थात् आर्द्रभूमि द्वारा अवशोषित कार्बन) को शामिल करना इस लक्ष्य की पूर्ति की दिशा में सहायता कर सकता है, जिसकी वर्तमान में किसी व्यवस्थित वेटलैंड कार्बन इन्वेंट्री के अभाव में अनदेखी की जाती है। 
    • आर्द्रभूमि संरक्षण एवं विवेकपूर्ण उपयोग को आपदा जोखिम न्यूनीकरण नीतियों एवं कार्यक्रमों में एकीकृत करना ‘लागत प्रभावी’ (cost-effective) और ‘पछतावा-रहित’ (no-regrets) विकल्प प्रदान करता है। 
    • यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि संरक्षण कार्रवाई केवल कार्बन चक्रों में आर्द्रभूमि की भूमिका से प्रेरित नहीं हो, बल्कि इन पारिस्थितिक तंत्रों की पारितंत्र सेवाओं और जैव विविधता मूल्यों की पूरी शृंखला को ध्यान में रखता हो 
  • आर्द्रभूमि से GHG उत्सर्जन की समस्या से निपटना: आर्द्रभूमि से GHG उत्सर्जन में वृद्धि को रोकने के लिये एक प्रभावी प्रबंधन रणनीति का होना आवश्यक है। 
    • इस दिशा में पहला कदम यह होगा कि आर्द्रभूमि से कार्बन भंडारण और GHG उत्सर्जन को राष्ट्रीय कार्बन स्टॉक एवं फ्लक्स आकलनों में शामिल किया जाए। एक विस्तृत पीटलैंड इन्वेंट्री की भी अत्यंत आवश्यकता है। 
    • दूसरा, आर्द्रभूमि प्रबंधन में जलवायु जोखिमों को शामिल करने की आवश्यकता है। ऐसा जलवायु जोखिम संकेतकों और उके रुझानों की पहचान की दिशा में लक्षित सुदृढ़ आर्द्रभूमि निगरानी प्रणालियों द्वारा किया जा सकता है। 
  • आर्द्रभूमि का प्रभावी प्रबंधन: अनियोजित शहरीकरण और बढ़ती आबादी का मुक़ाबला करने के लिये आर्द्रभूमि के प्रबंधन में योजना निर्माण, निष्पादन और निगरानी के संदर्भ में एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना होगा 
    • आर्द्रभूमि के समग्र प्रबंधन के लिये शिक्षाविदों और पेशेवरों (पारिस्थितिकीविदों, वाटरशेड प्रबंधन विशेषज्ञों, योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं सहित) के बीच प्रभावी सहयोग की आवश्यकता है 
    • आर्द्रभूमियों के महत्त्व के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू कर जागरूकता के प्रसार और जल की गुणवत्ता की जाँच के लिये आर्द्रभूमियों की निरंतर निगरानी से उनके क्षरण पर रोक के लिये  महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त हो सकेंगी 

अभ्यास प्रश्न: आर्थिक, पर्यावरणीय एवं सांस्कृतिक महत्त्व के बावजूद भारत और विश्व भर में आर्द्रभूमियाँ वनों की तुलना में अधिक तेज़ी से लुप्त हो रही हैं। आर्द्रभूमियों के समक्ष विद्यमान प्रमुख खतरों पर चर्चा कीजिये और उनके संरक्षण के लिये किये जा सकने वाले उपायों के सुझाव दीजिये 

यू.पी.एस.सी. सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs) 

प्र. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये : (2014) 

 

आर्द्रभूमि    

नदियों का संगम 

1. 

हरिके आर्द्रभूमि    

ब्यास और सतलज का संगम 

2. 

केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान 

बनास और चंबल का संगम 

3. 

कोलेरु झील   

मुसी और कृष्णा का संगम 

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3   
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 


प्रश्न. वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2ºC से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये। यदि विश्व तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3ºC से अधिक बढ़ जाता है, तो विश्व पर उसका संभावित प्रभाव क्या होगा? (2014) 

  1. स्थलीय जीवमंडल एक नेट कार्बन स्रोत की ओर प्रवृत्त होगा।   
  2. विस्तृत प्रवाल मर्त्यता घटित होगी।  सभी भूमंडलीय आर्द्रभूमि स्थायी रूप से लुप्त हो जाएंगी।   
  3. अनाज़ों की खेती विश्व में कहीं भी संभव नहीं होगी।  

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:  

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2 
(c) केवल 2, 3 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4  

उत्तर: (b) 

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