क्लाइमेट फाइनेंस रोड से COP29 तक

प्रिलिम्स के लिये:

लॉस एंड डैमेज फंड, पार्टियों का सम्मेलन (COP 28), नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य, जीवाश्म ईंधन

मेन्स के लिये:

जलवायु वित्त और इसका महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा के क्यों?

शर्म अल-शेख, मिस्र में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ने विकासशील देशों में जलवायु आपदा क्षतिपूर्ति के लिये एक लॉस एंड डैमेज फंड की स्थापना की। 

  • UNFCCC COP 28 (दुबई)- 2023 ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का वादा करते हुए जीवाश्म ईंधन से संक्रमण पर ध्यान केंद्रित किया।
  • जैसे-जैसे बाकू में COP29 की तैयारी तेज़ होती जा रही है, ध्यान अब वित्त संबंधी चर्चाओं, विशेष रूप से नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) पर केंद्रित किया जा रहा है।

नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य क्या है?

  • NCQG एक नया वार्षिक वित्तीय लक्ष्य है जिसे विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये वर्ष 2025 से पूरा करना होगा।
  • नवंबर 2024 में बाकू, अज़रबैजान में COP29 शिखर सम्मेलन में अंतिम NCQG राशि वार्ता का केंद्रीय बिंदु होने की उम्मीद है।
    • NCQG वार्ता का उद्देश्य एक उच्च सामूहिक राशि निर्धारित करना है जिसे विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील गरीब देशों में शमन, अनुकूलन एवं अन्य जलवायु कार्रवाई प्रयासों के लिये सालाना जुटाने की आवश्यकता होगी।
  • विकासशील देशों के लिये पर्याप्त NCQG आँकड़ा सुरक्षित करना बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पर्याप्त जलवायु वित्त की कमी प्रभावी जलवायु योजनाओं को लागू करने एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के विरुद्ध आघातसह बनाने में एक बड़ी बाधा रही है।

प्रभावी जलवायु कार्रवाई के लिये कितने धन की आवश्यकता है?

  • विशेषकर विकासशील देशों में अपर्याप्त वित्तपोषण के कारण, वैश्विक जलवायु कार्रवाई में एक महत्त्वपूर्ण बाधा का सामना करना पड़ रहा है।
  • वार्षिक जलवायु वित्त प्रवाह वर्ष 2020 के बाद से विकसित देशों द्वारा 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने के वादे से काफी कम है।
  • यदि वह राशि उपलब्ध भी होती, तो यह विश्व को वर्ष 2030 तक 1.5°C मार्ग पर रखने के लिये आवश्यक धनराशि का केवल एक छोटा-सा अंश होगा।
  • वर्तमान आकलन से पता चलता है कि वार्षिक वित्तीय आवश्यकताएँ कई खरबों डॉलर की हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट- 2021 में अनुमान लगाया गया है कि विकासशील देशों को अपनी जलवायु कार्य योजनाओं को लागू करने के लिये वर्ष 2030 तक सालाना लगभग 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी। अद्यतन रिपोर्टों से यह आँकड़ा बहुत हद तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • शर्म अल-शेख में अंतिम समझौते में यह रेखांकित किया गया कि कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिये वर्ष 2050 तक वार्षिक 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता हो सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा संघ के अनुसार, दुबई में सहमति के अनुसार नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने पर वर्ष 2030 तक 30 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत आने का अनुमान है।
  • इन अनुमानों को मिलाकर 5-7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वार्षिक आवश्यकता का पता चलता है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 5-7% के बराबर है, जो निष्क्रियता की बढ़ती लागत को उजागर करता है।

एक यथार्थवादी नए वार्षिक जलवायु वित्त लक्ष्य की संभावनाएँ

  • परिचर्चा के तहत सटीक मात्रा वर्तमान में जनता के लिये गोपनीय है। पिछले प्रदर्शन को देखते हुए, यह अपेक्षा कि विकसित देश काफी अधिक मात्रा में निवेश हेतु प्रतिबद्ध हैं, अवास्तविक मानी जाती है।
  • भारत ने NCQG को मुख्य रूप से अनुदान और रियायती वित्त में प्रतिवर्ष कम-से-कम 1 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर निवेश करने हेतु कहा है।
    • हालाँकि यह संभावना नहीं है कि विकसित देश मूल्यांकन की गई आवश्यकताओं के करीब राशि के लिये प्रतिबद्ध होंगे, क्योंकि वे वार्षिक 100 बिलियन अमरीकी डॉलर भी जुटाने में विफल रहे हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के कार्यकारी सचिव ने विकसित देशों से जलवायु वित्त को "बड़ा और बेहतर" बनाने का आग्रह किया है, जिसमें "अरबों नहीं बल्कि खरबों" की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।

जलवायु वित्त के संबंध में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अपर्याप्त कोष:
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु आवश्यक धनराशि और जलवायु-संबंधित परियोजनाओं तथा पहलों के लिये उपलब्ध वास्तविक संसाधनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर है।
    • कई विकासशील देशों और कमज़ोर समुदायों के पास जलवायु वित्त तक सीमित पहुँच है, जिससे अनुकूलन तथा शमन उपायों को लागू करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
    • UNFCCC जैसे कई संगठन वर्तमान में आधे से भी कम वित्त पोषित बजट के साथ गंभीर वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
  • महत्त्वाकांक्षा का अभाव:
    • विकसित देश जलवायु संकट से निपटने के लिये, विशेष रूप से विकासशील देशों को अनुदान और रियायती वित्त प्रदान करने हेतु, आवश्यक वित्त पोषण के पैमाने पर प्रतिबद्ध होने के लिये अनिच्छुक रहे हैं।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • जलवायु वित्त प्रतिबद्धताओं की वितरण की निगरानी और माप के लिये पारदर्शी तथा समावेशी प्रक्रियाओं की आवश्यकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि धन समान रूप से वितरित किया जाए एवं प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।
  • समानता और न्याय सुनिश्चित करना:
    • जलवायु वित्त के वितरण और उपयोग में सबसे कमज़ोर समुदायों तथा हाशिए पर रहने वाले समूहों की ज़रूरतों एवं प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए समानता व न्याय को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जो जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित हैं।
  • निजी वित्त जुटाना:
    • जबकि विकसित देशों से सार्वजनिक वित्त महत्त्वपूर्ण है, निजी क्षेत्र के निवेश को जुटाना और नवीन वित्तीय साधनों का लाभ उठाना जलवायु वित्त को बढ़ाने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
  • क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: 
    • विकासशील देशों द्वारा जलवायु कार्रवाई को प्रभावी ढंग से लागू करने और निम्न-कार्बन उत्सर्जन वाले देशों के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सक्षम बनाने के लिये जलवायु वित्तपोषण में न केवल मौद्रिक समर्थन अपितु क्षमता निर्माण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • ऋण का बोझ:
    • जलवायु वित्त आवश्यकताओं के कारण कई विकासशील देशों का ऋण बोझ और अधिक बढ़ जाता है जिससे जलवायु कार्रवाई के लिये आवश्यक निधि प्राप्त करने तथा उसे चुकाने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • वैश्विक आर्थिक मंदी और प्रतिस्पर्द्धी प्राथमिकताएँ विकसित देशों के लिये जलवायु वित्त के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधन आवंटित करना चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC की बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये थे और यह वर्ष 2017 में प्रभावी होगा।
  2. समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो। 
  3. विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिये वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष $1000 बिलियन दान करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

प्रश्न. नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में सी.ओ.पी. 26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरंभ की गई हारित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आई.एस.ए.) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021)