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डेली न्यूज़

  • 15 Oct, 2024
  • 58 min read
इन्फोग्राफिक्स

भारत की शास्त्रीय भाषाएँ


जैव विविधता और पर्यावरण

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF), लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024,  ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन (ZSL), टिपिंग पॉइंट, ब्राज़ीलियन अटलांटिक फॉरेस्ट, सतत् विकास लक्ष्य, आर्कटिक सर्कल, प्रदूषण 

मुख्य परीक्षा के लिये:

जैवविविधता के समक्ष खतरे और धारणीय पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने हेतु सुझाव।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2024 के अनुसार, केवल 50 वर्षों (1970-2020) में निगरानी की गई वन्यजीव आबादी के औसत आकार में 73% की गिरावट आई है। 

  • सबसे अधिक गिरावट मीठे जल के पारिस्थितिकी तंत्रों (85%) में दर्ज की गई, उसके बाद स्थलीय (69%) और समुद्री (56%) पारिस्थितिकी तंत्र का स्थान रहा।

विश्व वन्यजीव प्रकृति कोष

  • यह विश्व का अग्रणी संरक्षण संगठन है और 100 से अधिक देशों में कार्यरत है।
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और इसका मुख्यालय ग्लैंड, स्विटजरलैंड में है।
  • इसका मिशन प्रकृति का संरक्षण करना और पृथ्वी पर जीवन की विविधता के समक्ष खतरों को कम करना है।
  • WWF विश्व भर के लोगों के साथ हर स्तर पर सहयोग करता है ताकि ऐसे नवोन्मेषी समाधान विकसित किये जा सकें जिससे समुदायों, वन्यजीवों एवं उनके निवास स्थानों की रक्षा हो सके।
    • वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया (जिसे सामान्यतः WWF-इंडिया के नाम से जाना जाता है) की स्थापना वर्ष 1969 में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में की गई थी। 
    • यह एक स्वायत्त संरचना के माध्यम से कार्य करता है जिसका सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है तथा इसके कार्यालय पूरे भारत में फैले हुए हैं।

लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट क्या है और इसके प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • परिचय:
    • WWF द्वारा वन्यजीव आबादी में औसत रुझानों को ट्रैक करने के लिये लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (LPI) का उपयोग किया जाता है। इसमें समय के साथ प्रजातियों की आबादी के आकार में होने वाले व्यापक बदलावों पर नज़र रखी जाती है।
      • ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन (ZSL) द्वारा जारी लिविंग प्लैनेट इंडेक्स में वर्ष 1970 से 2020 तक 5,495 प्रजातियों की लगभग 35,000 कशेरुकी आबादी की निगरानी की गई है। 
      • यह विलुप्त होने के जोखिमों के संदर्भ में प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करता है और पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य एवं दक्षता का मूल्यांकन करने में भी मदद करता है।
  • मुख्य निष्कर्ष:
    • जनसंख्या में उल्लेखनीय गिरावट: निगरानी किये गये वन्यजीवों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (95%), अफ्रीका (76%) एवं एशिया-प्रशांत (60%) तथा मीठे जल के पारिस्थितिकी तंत्रों (85%) में दर्ज की गई है।
    • वन्यजीवों के लिये प्राथमिक खतरे: आवास की हानि और क्षरण को विश्व भर में वन्यजीव आबादी के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया गया है इसके बाद अतिदोहन, आक्रामक प्रजातियों और रोग को शामिल किया गया है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक: वन्यजीव आबादी में गिरावट, विलुप्त होने के बढ़ते जोखिम और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र की हानि को प्रारंभिक चेतावनी संकेतक के रूप में देखा जा सकता है।
      • क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र काफी अधिक संवेदनशील होने के साथ अपरिवर्तनीय परिवर्तन की ओर ले जाते हैं।
      • उदाहरण के लिये, ब्राज़ील के अटलांटिक वन में किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि बड़े फल खाने वाले जानवरों की कमी के कारण बड़े बीज वाले वृक्षों के बीजों का फैलाव कम हो गया है, जिससे कार्बन भंडारण प्रभावित हुआ है।
        • WWF ने चेतावनी दी है कि इस घटना से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के वनों में 2-12% कार्बन भंडारण की हानि हो सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के बीच उनकी कार्बन भंडारण क्षमता कम हो जाएगी।
    • क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र की भेद्यता: वर्ष 2030 तक प्रकृति को पुनःस्थापित करने के लिये वैश्विक समझौते और समाधान मौज़ूद हैं, लेकिन अभी तक प्रगति सीमित रही है, तथा तत्परता का अभाव रहा।
  • आर्थिक प्रभाव: वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद का आधे से अधिक (55%) भाग मध्यम या अत्यधिक रूप से प्रकृति और उसकी सेवाओं पर निर्भर है।
    • रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यदि भारत के आहार मॉडल को विश्व भर में अपनाया गया तो वर्ष 2050 तक विश्व को खाद्यान्न उत्पादन के लिये पृथ्वी के केवल 0.84 भाग की आवश्यकता होगी।
  • जैव विविधता के लिये संकट:
    • पर्यावास क्षरण और हानि: वनोन्मूलन, शहरीकरण और कृषि विस्तार आवास विनष्ट के प्रमुख कारण हैं। ये गतिविधियाँ पारिस्थितिकी तंत्र को खंडित करती हैं, जिससे प्रजातियों के पास जीवित रहने के लिये न्यूनतम स्थान और संसाधन अधिशेष रहते हैं। 
      • सैक्रामेंटो नदी में शीतकालीन चिनूक सैल्मन की आबादी वर्ष 1950 और वर्ष 2020 के बीच 88% कम हो गई, जिसका मुख्य कारण बाँधों द्वारा उनके प्रवासी मार्गों को बाधित करना था।
    • अत्यधिक दोहन: वाणिज्यिक प्रयोजनों हेतु अत्यधिक शिकार, मत्स्याग्रह और लकड़ी काटना, वन्यजीवों की आबादी को उनकी आपूर्ति से पूर्व ही तेजी से कम कर रहा है, जिससे विभिन्न प्रजातियाँ विलुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं।
      • अफ्रीका में, हाथीदाँत के व्यापार के लिये अवैध शिकार के कारण वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक मिन्केबे राष्ट्रीय उद्यान में वन्य हाथियों की आबादी में 78-81% की कमी आई है।
    • आक्रामक प्रजातियाँ: मनुष्यों द्वारा लाई गई गैर-देशी प्रजातियाँ प्रायः संसाधनों के लिये स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र अस्थिर हो जाता है और जैवविविधता कम हो जाती है।
    • जलवायु परिवर्तन: तापमान वृद्धि, बदलते जलवायु पैटर्न और चरम मौसमी घटनाएँ पर्यावासों में बदलाव कर रही हैं, जिससे उन प्रजातियों को खतरा हो रहा है जो शीघ्र अनुकूलन नहीं कर सकती हैं।
    • प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, प्लास्टिक प्रदूषण और कृषि अपवाह ने पारिस्थितिक तंत्र को दूषित कर दिया है, वन्य जीवन को विषाक्त कर दिया है और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के संतुलन को बिगाड़ दिया है।
    • क्रिटिकल टिपिंग प्वाइंट्स: ये पारिस्थितिक तंत्रों में अपरिवर्तन को संदर्भित करते हैं, जिनके स्तर में एक बार बदलाव होने पर पारिस्थितिक तंत्रों में परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
      • प्रवाल भित्तियों का विरंजन: प्रवाल भित्तियों के बड़े पैमाने पर नष्ट होने से मत्स्य पालन और तटीय सुरक्षा नष्ट हो सकती है, जिससे लाखों लोग प्रभावित होंगे।
      • अमेज़न वर्षावन: निरंतर वनोन्मूलन से वैश्विक जलवायु पैटर्न बाधित हो सकता है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जित हो सकता है तथा जलवायु परिवर्तन तीव्र हो सकता है।
      • ग्रीनलैंड एवं अंटार्कटिक की बर्फ का पिघलना: हिम परतों के पिघलने से समुद्र का स्तर काफी बढ़ जाएगा, जिसका वैश्विक स्तर पर तटीय क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ेगा।
      • महासागरीय परिसंचरण: महासागरीय धाराओं के पतन से यूरोप और उत्तरी अमेरिका की जलवायु में परिवर्तन हो सकता है।
      • पर्माफ्रॉस्ट पिघलना: वृहद स्तर पर पिघलने से भारी मात्रा में मीथेन और कार्बन उत्सर्जित हो सकता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में तीव्रता आएगी।

जैवविविधता के संरक्षण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • परस्पर विरोधी प्राथमिकताएँ: आर्थिक विकास के साथ संरक्षण को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेष रूप से विकासशील देशों में जहाँ अल्पकालिक आर्थिक लाभ दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता पर प्राथमिकता अधिग्रहीत कर लेते हैं।
  • संसाधन आवंटन: सीमित वित्तीय संसाधन और प्रतिस्पर्द्धी बज़ट संबंधी प्राथमिकताओं के कारण सरकारों के लिये सामाजिक आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए बड़े पैमाने पर जैवविविधता संरक्षण प्रयासों में निवेश करना कठिन हो जाता है।
  • कृषि विस्तार: खाद्य सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करना पर्यावास संरक्षण के विपरीत हो सकता है, क्योंकि कृषि से जैवविविधता हॉटस्पॉट वाले क्षेत्र में अतिक्रमण हो सकता है
  • ऊर्जा परिवर्तन में समस्या: नवकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव से भूमि-उपयोग में परिवर्तन (जैसे, सौर फार्म, पवन टर्बाइन) के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा आवश्यकताओं के बीच संतुलन बिगड़ सकता है।
  • नीति और प्रवर्तन में अंतराल: वैश्विक और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कमज़ोर संस्थागत ढाँचे और पर्यावरणीय नियमों का असंगत प्रवर्तन प्रभावी जैवविविधता संरक्षण में बाधा डालता है, जिससे अस्थिर प्रथाओं को अनियंत्रित रूप से जारी रहने का मौका मिलता है।

आगे की राह

  • संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना: संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करना, क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना और संरक्षण प्रयासों में स्वदेशी लोगों का समर्थन करके संरक्षण पहलों की प्रभावशीलता को बढ़ाना और उसमें सुधार करना।
  • खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन: सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाना, खाद्य अपशिष्ट को कम करना, तथा जैवविविधता पर खाद्य उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये पौध-आधारित आहार को बढ़ावा देना।
  • ऊर्जा संक्रमण: पारिस्थितिकी तंत्र की न्यूनतम क्षति सुनिश्चित करते हुए, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करते हुए नवकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बदलाव को तेज करना।
  • वित्त प्रणाली में सुधार: वित्तीय निवेश को हानिकारक उद्योगों से हटाकर प्रकृति-सकारात्मक और संधारणीय गतिविधियों की ओर पुनर्निर्देशित करना, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय लाभ सुनिश्चित हो सके।
  • वैश्विक सहयोग: वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये जलवायु, प्रकृति और विकास नीतियों को संरेखित करते हुए जैवविविधता संरक्षण पर मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: जैवविविधता के लिये प्रमुख संकटों पर चर्चा कीजिये और भावी पीढ़ियों के लिये सतत् पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने के लिये परिवर्तनकारी समाधान सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. "संकटपूर्ण वन्यजीव पर्यावास (क्रिटिकल वाइल्डलाइफ हैबिटाट)" की परिभाषा वन अधिकार अधिनियम, 2006 में समाविष्ट है।
  2. भारत में पहली बार बैगा जनजाति को पर्यावास (हैबिटाट) अधिकार दिये गए हैं।
  3. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत के किसी भाग में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों के लिये पर्यावास अधिकार पर आधिकारिक रूप से निर्णय लेता है और उसकी घोषणा करता है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मुख्य:

प्रश्न. अवैध खनन के क्या परिणाम होते हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के 'हाँ’ या नहीं' की अवधारणा की विवेचना कीजिये। (2013)


भारतीय इतिहास

फ्राँसीसी और पुर्तगाली क्षेत्रों का विलय

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

फ्राँसीसी और पुर्तगाली क्षेत्र, ब्राज़ाविल सम्मेलन, फ्रेंच कांगो, अफ्रीका, अनुच्छेद 27, गोवा, सालाज़ार, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO), ट्रिस्टाओ डी ब्रागांका कुन्हा, ऑपरेशन विजय, आज़ाद गोमांतक दल (AGD), स्टूडेंट कॉन्ग्रेस ऑफ फ्रेंच इंडिया, फ्रेंच इंडियन नेशनल कॉन्ग्रेस।

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत की स्वतंत्रता के बाद भारत में अपने क्षेत्रों को बनाए रखने के क्रम में फ्राँसीसी और पुर्तगाली औपनिवेशिक शक्तियों के विपरीत दृष्टिकोण।

चर्चा में क्यों? 

1 नवम्बर 1954 को भारत में फ्राँसीसी कब्जे वाले क्षेत्र भारतीय संघ को हस्तांतरित कर दिये गए तथा पुदुचेरी एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया। 

  • 19 दिसंबर को भारत, वर्ष 1961 में पुर्तगाली शासन से गोवा राज्य को मिली स्वतंत्रता के स्मरण में गोवा मुक्ति दिवस मनाएगा।
  • लंबी बातचीत, राष्ट्रवादी आंदोलनों और सैन्य कार्रवाई से भारत फ्राँसीसी और पुर्तगाली क्षेत्रों को भारत में एकीकृत करने में सफल रहा।

फ्राँस ने भारत में अपने उपनिवेश बनाए रखने पर क्यों ज़ोर दिया?

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुनर्निर्माण: फ्राँसीसी सरकार का मानना ​​था कि साम्राज्य औपनिवेशिक संसाधनों का उपयोग करके राष्ट्र के युद्ध-पश्चात पुनर्निर्माण को पुनर्जीवित करने और अपने वैश्विक प्रभाव को मज़बूत करने में मदद करेगा।
  • ब्राज़ाविल सम्मेलन (1944): वर्ष 1944 में फ्रेंच कांगो में आयोजित ब्राज़ाविल सम्मेलन से फ्राँसीसी संघ की अवधारणा सामने आई।
    • इससे उपनिवेशों को फ्राँसीसी राजनीतिक प्रणाली में अधिक प्रत्यक्ष रूप से एकीकृत किया जा सकेगा, जिससे उन्हें पुनः परिभाषित संबंधों के तहत फ्राँस का हिस्सा बने रहने की अनुमति मिल सकेगी।
  • लोकतांत्रिक अधिकार: फ्राँसीसी संघ के संविधान के अनुच्छेद 27 में उसके उपनिवेशों को या तो फ्राँस के साथ रहने या स्वतंत्र होने का विकल्प दिया गया था।
    • अपने उपनिवेशों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिये फ्राँस को एक उदार और प्रगतिशील औपनिवेशिक प्राधिकरण के रूप में प्रस्तुत किया गया।
  • सांस्कृतिक और भाषाई प्रभाव: फ्राँसीसी भारत में कई निवासी अंग्रेज़ी नहीं, बल्कि फ्रेंच बोलते थे, वे सांस्कृतिक रूप से नए, अंग्रेज़ी बोलने वाले स्वतंत्र भारत के बजाय फ्राँस के साथ जुड़ाव महसूस करते थे। 
  • रणनीतिक और राजनीतिक गणना: फ्राँसीसी सरकार के लिये, भारत में जो कुछ भी हुआ, उसका प्रभाव इंडोचीन और अफ्रीका में उनके अन्य उपनिवेशों पर पड़ना तय था। परिणामस्वरूप उनका उद्देश्य संवाद की प्रक्रिया को यथासंभव लंबा खींचना था। 

नोट: भारत में, फ्राँसीसी उपनिवेशों में पुदुचेरी, माहे, चंद्रनगर, कराईकल और यानोन (यानम) शामिल थे।

पुर्तगाल ने भारत में अपने उपनिवेश बनाए रखने पर क्यों ज़ोर दिया?

  • ऐतिहासिक दावा: पुर्तगाल ने गोवा में अपनी सदियों पुरानी उपस्थिति पर ज़ोर दिया, तथा 16वीं शताब्दी के आरंभ से ही इस क्षेत्र पर शासन किया, हाल ही में ब्रिटिश या फ्राँसीसी उपनिवेश स्थापित हुए।
    • गोवा के लोग 19वीं सदी से पुर्तगाली संसद में अपने प्रतिनिधियों के लिये मतदान करते आ रहे हैं।
  • सालाजार का तानाशाही रुख: पुर्तगाली तानाशाह सालाजार ने पुर्तगाल के उपनिवेशों को अस्थायी संपत्ति के रूप में नहीं बल्कि पुर्तगाली राज्य के अभिन्न अंग के रूप में देखा और गोवा तथा अन्य भारतीय क्षेत्रों को विदेशी प्रांत घोषित कर दिया। 
    • उनके विचार में इस रुख ने उपनिवेशवाद को अकल्पनीय बना दिया, क्योंकि उनका यह मानना था कि यह पुर्तगाल की क्षेत्रीय अखंडता के विघटन के समान होगा।
  • भू-राजनीतिक लाभ: उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में पुर्तगाल की सदस्यता ने गोवा की मुक्ति के लिये बल प्रयोग करने के भारत के प्रयासों के विरुद्ध एक निवारक प्रदान किया।
  • गोवा का सामरिक महत्त्व: भारत के पश्चिमी तट पर गोवा की रणनीतिक स्थिति ने पुर्तगाल को दक्षिण एशिया में पैर जमाने का मौका दिया और इसे क्षेत्र में पुर्तगाली प्रभाव बनाए रखने के लिये एक मूल्यवान परिसंपत्ति के रूप में देखा गया।
  • कैथोलिक जनसंख्या: पुर्तगाल ने तर्क दिया कि गोवा की कैथोलिक जनसंख्या मुख्यतः हिंदू-प्रधान स्वतंत्र भारत में सुरक्षित नहीं रहेगी।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय सहानुभूति प्राप्त करने का एक रणनीतिक कदम था, जिसका आशय यह था कि पुर्तगालियों के हटने से धार्मिक अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा।

नोट: भारत में पुर्तगाली उपनिवेशों में दमन, दीव, गोवा, इल्हा-डि-एंजडिवा, नगर हवेली और पानीकोठा शामिल थे।

फ्राँसीसी और पुर्तगाली क्षेत्रों का भारत में विलय किस प्रकार भिन्न रूप से हुआ?

पहलू

फ्राँसीसी उपनिवेश

पुर्तगाली उपनिवेश

औपनिवेशि शक्ति का रुख

प्रारंभ में वार्ता के लिये तैयार, सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखने पर केंद्रित

क्षेत्र को प्रदान करने से इनकार कर दिया, साथ ही यह बल दिया कि गोवा पुर्तगाल का भाग है

स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया

कुछ लोग फ्राँस के साथ बने रहने के पक्ष में थे, जबकि अन्य भारत के साथ एकीकरण के पक्षधर थे। 

प्रबल राष्ट्रवादी भावना और पुर्तगाली शासन के प्रति दीर्घकालिक विरोध। उदाहरण के लिये वर्ष 1787 में गोवा में पुर्तगाली शासन के विरुद्ध पिंटो विद्रोह

राष्ट्रवादी आंदोलनों की भूमिका

विभिन्न राष्ट्रवादी समूहों ने भारत के साथ एकीकरण का समर्थन किया। 

  • फ्राँसीसी भारतीय छात्र कॉन्ग्रेस, फ्राँसीसी भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस, फ्राँसीसी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने भारतीय संघ में विलय की मांग की।
  • चंद्रनगर में राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चा (NDF) ने धमकी दी कि यदि फ्राँस भारत के साथ विलय की योजना प्रस्तावित करने में विफल रहा तो वे सत्याग्रह करेंगे।
  • माहे में राष्ट्रवादी महाजन सभा ने समानांतर सरकार स्थापित करने की धमकी दी। 

18वीं शताब्दी से चली आ रही सशक्त स्वतंत्रता संग्राम की कहानी। 

  • 19वीं सदी के गोवा के राष्ट्रवादी नेता फ्राँसिस्को लुइस गोम्स ने लगातार पुर्तगाली शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
  • गोवा राष्ट्रवाद के जनक ट्रिस्टा-डी-ब्रगांका कुन्हा ने 1928 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गोवा राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का गठन किया था।   
  • राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (गोवा) ने गोवा, दमन और दीव की पूर्ण स्वतंत्रता और भारतीय संघ में इसके एकीकरण का समर्थन किया।
  • एक क्रांतिकारी संगठन, आज़ाद गोमांतक दल (AGD) ने भूमिगत विरोध आरंभ किया।

प्रमुख घटनाएँ

प्रमुख कार्यक्रम निम्न हैं:

  • जून 1948 में फ्राँसीसी सरकार ने चंद्रनगर (पश्चिम बंगाल) में जनमत संग्रह आयोजित किया, जिसमें भारत में विलय के पक्ष में मतदान हुआ।
  • वर्ष 1951 में फ्राँसीसी भारतीय क्षेत्रों को फ्राँसीसी और भारतीय क्षेत्रों से अलग करने वाली सीमाओं पर हिंसक मुठभेड़ों के कारण नुकसान हुआ।
  • वर्ष 1954 में विलय; वर्ष 1962 में अनुसमर्थन

प्रमुख कार्यक्रम निम्न हैं:

  • 15 अगस्त 1954 को गोवा राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस द्वारा एक जन सत्याग्रह आयोजित किया गया, जिसे पुर्तगाली अधिकारियों ने क्रूरतापूर्वक दबा दिया।
  • वर्ष 1955 में, तिरंगा झंडा उठाने वाले सत्याग्रहियों के जत्थों पर गोलियाँ चलाई गईं, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग मारे गए और गिरफ्तार कर लिये गए।
  • जुलाई 1954 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने कुछ क्रांतिकारी समूहों के साथ मिलकर पुर्तगालियों को दादर एवं नगर हवेली से बाहर कर दिया
  • वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा चलाए गए ऑपरेशन विजय के परिणामस्वरूप गोवा, दमन और दीव पर सैन्य अधिग्रहण कर लिया गया।

स्थानांतरण का तरीका

भारत के साथ वार्ता से समाधान और राजनीतिक एकीकरण

सैन्य हस्तक्षेप (ऑपरेशन विजय) और जबरन विलय

अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव

फ्राँसीसी संघ की अवधारणा ने इस प्रक्रिया को प्रभावित किया; अफ्रीका और इंडोचीन में फ्राँसीसी उपनिवेशों पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता

पुर्तगाल में सालाजार तानाशाही; नाटो गठबंधन ने भारत की प्रतिक्रिया को जटिल बना दिया

भारत सरकार की भूमिका

कूटनीतिक दबाव, आर्थिक प्रतिबंध और शांतिपूर्ण एकीकरण के लिये वार्ता

कूटनीतिक प्रयास विफल; लम्बे कूटनीतिक विरोध के बाद सैन्य बल का प्रयोग किया गया।

निष्कर्ष

भारत में फ्राँसीसी और पुर्तगाली क्षेत्रों के विऔपनिवेशीकरण ने विपरीत दृष्टिकोणों को उज़ागर किया - कूटनीतिक सूझबूझ बनाम सशस्त्र संघर्ष। फ्राँसीसी भारत ने शांतिपूर्ण परिवर्तन देखा, पुर्तगाल द्वारा गोवा को सौंपने से इनकार करने के कारण सैन्य कार्रवाई हुई। दोनों प्रक्रियाएँ भारत की स्वतंत्रता के बाद की क्षेत्रीय एकता को आकार देने में महत्त्वपूर्ण थीं और वैश्विक विऔपनिवेशीकरण को अधिक प्रेरित किया।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत की स्वतंत्रता के बाद अपने भारतीय क्षेत्रों को बनाए रखने में फ्राँसीसी और पुर्तगाली औपनिवेशिक शक्तियों के विपरीत दृष्टिकोणों का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्र.निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (2021)

  1. संत फ्राँसिस ज़ेवियर, जेसुइट संघ (ऑर्डर) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।
  2. संत फ्राँसिस ज़ेवियर की मृत्यु गोवा में हुई तथा यहाँ उन्हें समर्पित एक गिरजाघर है।
  3. गोवा में प्रति वर्ष संत फ्राँसिस ज़ेवियर के भोज का अनुष्ठान किया जाता है।

उपर्युक्त कथर्नो में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c) 


प्रश्न: निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारत के किसी राज्य में सर्वप्रथम लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई साम्यवादी दल की सरकार।
  2. भारत का उस समय का सबसे बड़ा बैंक 'इम्पीरियल बैंक ऑफ़ इंडिया' जिसका नाम बदलकर 'भारतीय स्टेट बैंक' रखा गया।
  3. एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया और यह राष्ट्रीय वाहक बन गया।
  4. गोवा स्वतंत्र भारत का अंग बन गया।

निम्नलिखित में से कौन-सा उपर्युक्त घटनाओं का सही कालानुक्रम है?

(a) 4 – 1 – 2 – 3
(b) 3 – 2 – 1 – 4
(c) 4 – 2 – 1 – 3
(d) 3 – 1 – 2 – 4

उत्तर: (b)


जैव विविधता और पर्यावरण

CBD के अंतर्गत भारत का जैवविविधता लक्ष्य

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्य, जैवविविधता पर अभिसमय, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क, आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, निष्पक्ष और न्यायसंगत साझाकरण, सतत् विकास लक्ष्य, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय पारिस्थितिकी तंत्र, आईची जैवविविधता लक्ष्य (2011-2020), समुद्री घास के मैदान, अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय (OECM)

मेन्स के लिये:

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव-विविधता फ्रेमवर्क का महत्त्व, भारत के जैवविविधता लक्ष्य। 

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) के साथ संरेखित करते हुए जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CBF) में अपने राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्य प्रस्तुत करने की योजना बनाई है।

  • CBD का अनुच्छेद 6 सभी पक्षकारों से जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये राष्ट्रीय रणनीति, योजना या कार्यक्रम तैयार करने का आह्वान करता है।
  • भारत द्वारा कोलंबिया के कैली में आयोजित होने वाले CBD के पक्षकारों के 16वें सम्मेलन (CBD-COP 16) में अपने 23 जैवविविधता लक्ष्य प्रस्तुत किये जाने की संभावना है।

CBD के अंतर्गत भारत का जैवविविधता लक्ष्य क्या है?

  • संरक्षण क्षेत्र: जैवविविधता को बढ़ाने के लिये 30% क्षेत्रों को प्रभावी रूप से संरक्षित करने का लक्ष्य।
  • आक्रामक प्रजातियों का प्रबंधन: आक्रामक विदेशज प्रजातियों के प्रवेश और स्थापना में 50% की कमी का लक्ष्य।
  • अधिकार और भागीदारी: जैवविविधता संरक्षण प्रयासों में स्वदेशी लोगों, स्थानीय समुदायों, महिलाओं और युवाओं की भागीदारी और अधिकारों को सुनिश्चित करना।
  • सतत् उपभोग: सतत् उपभोग विकल्पों को सक्षम बनाना और खाद्य अपशिष्ट को आधे से कम करना।
  • लाभ साझाकरण: आनुवंशिक संसाधनों, डिजिटल अनुक्रम की जानकारी और संबंधित पारंपरिक ज्ञान से लाभ के निष्पक्ष और न्यायसंगत साझाकरण को बढ़ावा देना।
  • प्रदूषण में कमी: प्रदूषण को कम करने, पोषक तत्वों की हानि और कीटनाशक जोखिम को आधा करने के लिये प्रतिबद्ध।
  • जैवविविधता नियोजन: यह सुनिश्चित करना कि उच्च जैवविविधता महत्त्व वाले क्षेत्रों की हानि को कम करने के लिये सभी क्षेत्रों का प्रबंधन किया जाए।

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) क्या है?

  • परिचय: यह एक बहुपक्षीय संधि है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर जैवविविधता की हानि को रोकना है।
    • इसे दिसंबर 2022 में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (CoP) की 15वीं बैठक के दौरान अपनाया गया था।
    • यह सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का समर्थन करता है, जो जैवविविधता के लिये रणनीतिक योजना वर्ष 2011-2020 से प्राप्त उपलब्धियों और सबक पर आधारित है ।
  • उद्देश्य और लक्ष्य: यह सुनिश्चित करता है कि वर्ष 2030 तक क्षीण हो चुके स्थलीय, अंतर्देशीय जल, तथा समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र के कम-से-कम 30% क्षेत्रों का प्रभावी पुनर्स्थापन हो जाए।
    • इसमें वर्ष 2030 तक के दशक में तत्काल कार्रवाई के लिये 23 क्रिया-उन्मुख वैश्विक लक्ष्य शामिल हैं, जो वर्ष 2050 तक परिणाम-उन्मुख लक्ष्यों की प्राप्ति में सक्षम बनाएँगे।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह लक्ष्य सामूहिक वैश्विक प्रयासों को संदर्भित करता है न कि प्रत्येक देश द्वारा अपने भूमि और जल क्षेत्र का 30% आवंटित करने की आवश्यकता को।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: इस रूपरेखा में यह परिकल्पना की गई है कि वर्ष 2050 तक प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिये सामूहिक प्रतिबद्धता होगी, जो जैवविविधता संरक्षण और सतत् उपयोग पर वर्तमान कार्यों और नीतियों के लिये एक आधारभूत मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करेगी।

राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्यों (NBT) का विकास:

  • आईची जैवविविधता लक्ष्य: CBD दायित्वों के तत्त्वाधान में, भारत ने 12 राष्ट्रीय जैवविविधता लक्ष्य (NBT) विकसित किये हैं जो पिछले आईची जैवविविधता लक्ष्य (2011-2020) के अनुरूप हैं।
  • राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना (NBAP): इनकी शुरूआत मूल रूप से वर्ष 2008 में की गई थी तथा आईची जैवविविधता लक्ष्यों को शामिल करने के लिये वर्ष 2014 में संशोधन किया गया था।
  • निगरानी: NBT को प्राप्त करने के लिये रोडमैप प्रदान करने हेतु भारत द्वारा  संबद्ध संकेतक और निगरानी ढाँचा भी विकसित किया गया है।

भारत नए जैवविविधता लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकता है?

  • पर्यावास संपर्क: भारत को घास के मैदानों, आर्द्रभूमियों और समुद्री घास के मैदानों जैसे उपेक्षित पारिस्थितिक तंत्रों के संरक्षण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • व्यापक परिदृश्यों और समुद्री परिदृश्यों से एकीकृत बेहतरीन संरक्षित क्षेत्रीय प्रजातियों के आवागमन को सुविधाजनक बना सकते हैं जिससे जैवविविधता में वृद्धि हो सकती है।
  • वित्तीय संसाधन जुटाना: भारत को अपनी राष्ट्रीय जैवविविधता संबंधी कार्य योजनाओं को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिये विकसित देशों से  वित्तीय सहायता का समर्थन जारी रखनी चाहिये।
    • GBF ने विकसित देशों से आह्वान किया है, कि वे विकासशील देशों में जैवविविधता संबंधी पहल के लिये वर्ष 2025 तक कम-से-कम 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष तथा वर्ष 2030 तक 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष एकत्रित करें।
  • सह-प्रबंधन मॉडल: संरक्षण प्रक्रिया में स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों को शामिल करने वाले सह-प्रबंधन ढाँचे का विकास करने से सामुदायिक आजीविका को बनाए रखते हुए संरक्षित क्षेत्रों की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है।
  • OECM को केंद्रित होना: पारंपरिक संरक्षित क्षेत्रों से ध्यान हटाकर अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपायों (OECM) पर ध्यान केंद्रित करने से मानव गतिविधि पर कम प्रतिबंध वाले क्षेत्रों में जैवविविधता के संरक्षण की अनुमति मिलती है।
    • इसमें पारंपरिक कृषि प्रणालियों और निज़ी स्वामित्व वाली भूमि को समर्थन देना शामिल है, जो संरक्षण लक्ष्यों में योगदान देती हैं।
  • कृषि सब्सिडी में सुधार: भारत को कीटनाशकों के उपयोग जैसी हानिकारक प्रथाओं से समर्थन हटाकर ऐसे स्थायी विकल्पों की ओर ध्यान देना चाहिये, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा दें।
  • पिछले लक्ष्यों के साथ संरेखण: मौज़ूदा राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना (NBAP) पर निर्माण और इसे GBF के नए 23 लक्ष्यों के साथ संरेखित करने से भारत में जैवविविधता संरक्षण के लिये एक सुसंगत रणनीति तैयार होगी।

निष्कर्ष

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता ढाँचे के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, इसके 23 जैवविविधता लक्ष्यों के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाने के लिये एक रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाती है। उपेक्षित पर्यावासों को प्राथमिकता देने, संसाधनों को जुटाने और सब्सिडी में सुधार करने, हेतु भारत वर्ष 2030 तक अपने जैवविविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रभावी ढंग से कार्य कर सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक जैवविविधता संरक्षण के लिये कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (KMGBF) के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न. 'वैश्विक पर्यावरण सुविधा' के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है/हैं? 

(a) यह 'कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी' और 'क्लाइमेट चेंज पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन' के लिए वित्तीय तंत्र के रूप में कार्य करता है।
(b) यह वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के मुद्दों पर वैज्ञानिक अनुसंधान करता है
(c) यह OECD के तहत एक संस्था है जो अपने पर्यावरण की रक्षा करने के लिए विशिष्ट उद्देश्य के साथ अविकसित देशों को प्रौद्योगिकी और धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है
(d) (a) और (b) दोनों

उत्तर: (a)


प्रश्न: “मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” यह पहल किसके द्वारा प्रवर्तित की गई है? (2018) 

(A) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(B) UNEP सचिवालय
(C) UNFCCC सचिवालय
(D) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: (c)


मुख्य परीक्षा

Q. भारत सरकार दवा कंपनियों द्वारा दवा के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से कैसे बचाव कर रही है?  (वर्ष 2019)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मध्य पूर्व में आतंकवादी समूह

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

हिज़बुल्लाह, मध्य पूर्व, ईरान-इराक युद्ध, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (ISIL), कुर्द।

मुख्य परीक्षा के लिये:

मध्य पूर्व में उग्रवादी समूह, इन समूहों के संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण, प्रमुख मध्य पूर्वी देशों के प्रति भारत की विदेश नीति।

स्रोत: डेक्कन हेराल्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़रायल ने मध्य पूर्व के आतंकवादी समूहों में से एक, हिज़बुल्लाह पर हमला किया। इस हमले से मध्य पूर्व के कई आतंकवादी समूह चर्चा का विषय बन गए हैं।

मध्य पूर्व के विभिन्न आतंकवादी समूह कौन-कौन से हैं?

हिज़बुल्लाह

  • परिचय:
    • यह लेबनान में स्थित एक शिया मुस्लिम राजनीतिक पार्टी एवं आतंकवादी संगठन है जिसे “राज्य के अंदर एक राज्य” संचालित करने के लिये जाना जाता है। इसकी अर्द्ध-सैनिक शाखा (जिहाद काउंसिल) द्वारा लेबनान में सबसे शक्तिशाली सशस्त्र बल का संचालन किया जाता है।
    • हिज़बुल्लाह का इस्लामिक जिहाद संगठन (IZO), जिसे बाह्य सुरक्षा संगठन या यूनिट 910 भी कहा जाता है, एक अत्यधिक विभाजित इकाई है जो विदेशों में आतंकवादी कार्रवाइयों (विशेष रूप से पश्चिमी लक्ष्यों के विरुद्ध) के संचालन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • इज़रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका को हिज़्बुल्लाह अपना प्रमुख शत्रु मानता है।

Terror Groups linked with Iran

  • उद्देश्य: 
    • अपनी स्थापना के समय से ही इसका उद्देश्य इज़रायल को ख़त्म करना रहा है।
    • हिज़्बुल्लाह के पास राज्य जैसी सैन्य क्षमताएँ हैं जिनमें वायु रक्षा प्रणाली, मिसाइल, निर्देशित मिसाइल, रॉकेट और मानव रहित विमान प्रणाली शामिल हैं।
    • यह समूह ईरान के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने, सीरियाई शासन का समर्थन करने तथा लेबनान के भीतर अपनी शक्ति को मज़बूत करने पर केंद्रित है। इसके साथ ही यह इज़रायल के हितों का विरोध कर रहा है तथा मध्य पूर्व से अमेरिकी सेनाओं को बाहर निकालने का प्रयास कर रहा है।
  • प्रभाव क्षेत्र:
    • इसका प्रभाव पूरे लेबनान में है।
    • यह इराक, सीरिया और यमन में शिया आतंकवादियों को प्रशिक्षण और अन्य सैन्य सहायता प्रदान करने के लिये ईरानी अधिकारियों के साथ कार्य करता है।

Hizballah territory of Influence

  • संयुक्त राष्ट्र का रुख:
    • हिज़बुल्लाह को संयुक्त राष्ट्र एक आतंकवादी संगठन मानता है तथा इसकी सैन्य क्षमताओं के साथ क्षेत्रीय संघर्षों तथा वैश्विक आतंकवाद में संलिप्तता के कारण इसे एक बड़ा खतरा मानता है।

बद्र संगठन

  • परिचय: 
    • यह एक इराकी शिया इस्लामवादी और खोमेनीवादी राजनीतिक दल और अर्द्धसैनिक समूह है।
    • मूल रूप से बद्र ब्रिगेड या बद्र कोर के नाम से जाना जाने वाला यह संगठन वर्ष 1982 में इराक में इस्लामी क्रांति के लिये सर्वोच्च परिषद (SCIRI) की सैन्य शाखा के रूप में निर्मित किया गया था, जो ईरान स्थित एक शिया इस्लामी पार्टी थी।
  • उद्देश्य:
    • बद्र ब्रिगेड की स्थापना ईरानी खुफिया एजेंसी और शिया धर्मगुरु मोहम्मद बाकिर अल-हकीम के सहयोग से की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य ईरान-इराक युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन के बाथिस्ट शासन का विरोध करना था।
    • वर्ष 2003 में इराक पर अमेरिका के नेतृत्व में आक्रमण के पश्चात्, बद्र ब्रिगेड के लड़ाकों का एक बड़ा हिस्सा इराकी सेना और पुलिस बलों में शामिल हो गया, और इराक के सुरक्षा तंत्र का एक अभिन्न अंग बन गया।
    • बद्र संगठन को वर्ष 2014 में पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज (PMF) के एक भाग के रूप में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट (ISIL) से लड़ने में सक्रिय भागीदारी के कारण पुनः प्रसिद्धि मिली।
    • इराक के अर्द्धसैनिक ढाँचे के भीतर इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान दिया है, विशेष रूप से PMF के साथ अपने सहयोग के माध्यम से, जो इराकी सरकार की निगरानी में कार्य करता है।
  • प्रभाव क्षेत्र:
    • बगदाद और दक्षिणी इराक।
  • संयुक्त राष्ट्र का रुख:
    • संयुक्त राष्ट्र बद्र संगठन को उसके ईरान से संबंधों, सांप्रदायिक हिंसा तथा इराक के शासन और क्षेत्रीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव के कारण अस्थिरता उत्पन्न करने वाला संगठन मानता है।

इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड ऐश-शाम (ISIS)

  • परिचय: 
    • ISIS एक सलाफी-जिहादी समूह है, जो विश्व भर में विभिन्न आतंकवादी हमलों के लिये ज़िम्मेदार है, जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों लोग मारे गए और घायल हुए हैं।
    • वर्ष 2004 में अबू मुसाब अल-जरकावी के नेतृत्व में एक इराकी चरमपंथी नेटवर्क ने अल-कायदा के साथ विलय कर इराक में अल-कायदा (AQI) का गठन किया, जिसका नेतृत्व जरकावी ने वर्ष 2006 में अपनी मृत्यु तक किया।
    • वर्ष 2010 में अबू बक्र अल-बगदादी ने इस समूह पर कब्ज़ा कर लिया और वर्ष 2011 तक पूर्वी सीरिया में इसके संचालन का विस्तार कर दिया।
    • वर्ष 2013 में AQI ने अपना नाम बदलकर ISIS कर लिया, और वर्ष 2014 में, इस समूह ने अल-कायदा से संबंध तोड़ लिये, तथा स्वयं को खिलाफत घोषित कर दिया तथा इराक और सीरिया में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया।
    • वर्ष 2019 में एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन ने सीरिया में अपने अंतिम गढ़ से ISIS को खदेड़ दिया, हालाँकि यह समूह सीरिया और इराक दोनों में गुप्त रूप से काम करना जारी रखता है।
  • उद्देश्य:
    • ISIS विभिन्न प्रकार की रणनीति अपनाता है, जिसमें इराक और सीरिया में लक्षित हत्याएँ, IED हमले, घात लगाकर हमला, सैन्य शैली के हमले, अपहरण और आत्मघाती बम विस्फोट शामिल हैं।
    • यह समूह विश्व भर में अपने अनुयायियों को आसानी से उपलब्ध हथियारों का उपयोग करके अपने देशों में अभियान चलाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • यह संगठन मुख्य रूप से इराक और सीरिया में सैन्य बलों और नागरिक रक्षा समूहों को निशाना बनाता है।
    • ISIS प्रायः सरकारी कर्मियों और बुनियादी ढाँचे पर हमला करता है, साथ ही विदेशी सहायता कर्मियों और नागरिकों पर भी हमला करता है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे इसकी विचारधारा या इस्लामी कानून की व्याख्या का विरोध कर रहे हैं।
  • प्रभाव क्षेत्र: 
    • मुख्यतः उत्तरी और पूर्वी सीरिया तथा उत्तरी इराक

ISIS territory of Influence

  • संयुक्त राष्ट्र का रुख:
    • संयुक्त राष्ट्र ने ISIS को एक आतंकवादी संगठन और वैश्विक खतरा करार दिया है तथा इसकी क्रूर हिंसा और बड़ी संख्या में हुई मौतों की निंदा की है।
  • भारत का रुख:
    • भारत ISIS और उससे संबद्ध संगठनों की कड़ी निंदा करता है और उन पर प्रतिबंध लगाता है। 

बोको हरम

  • परिचय:
    • बोको हरम पश्चिमी प्रभाव को समाप्त करने तथा अपने कार्यक्षेत्र में सलाफी-इस्लामवादी राज्य की स्थापना करना चाहता है।
    • वर्ष 2002 में अपनी स्थापना के पश्चात् से बोको हरम अनुमानतः 50,000 मौतों और 2.5 मिलियन से अधिक लोगों के विस्थापन के लिये ज़िम्मेदार रहा है।
    • यह समूह पहले अल-कायदा और ISIS से संबद्ध था, लेकिन वर्तमान में दोनों से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है।
    • वर्ष 2021 के पश्चात् विभिन्न सदस्य ISIS- पश्चिम अफ्रीका में चले गए या स्थानीय अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
  • उद्देश्य:
    • बोको हरम प्रायः नागरिकों और क्षेत्रीय सुरक्षा बलों के विरुद्ध हमले करने के लिये छोटे हथियारों का इस्तेमाल करता है।
    • यह समूह फिरौती प्राप्त करने और चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच प्राप्त करने के लिये अपहरण करता है।
    • इसने महिलाओं और बच्चों समेत अप्रशिक्षित अपहरण पीड़ितों को आत्मघाती हमलावरों के रूप में इस्तेमाल किया है।
  • प्रभाव क्षेत्र:
    • पूर्वोत्तर नाइज़ीरिया और दक्षिण-पूर्व नाइज़र के अतिरिक्त कैमरून और चाड में भी परिचालन करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र का रुख:
    • बोको हरम को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में मान्यता दी गई है। 

कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK)

  • परिचय: 
    • कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK), जिसे कोंगरा-गेल के नाम से भी जाना जाता है, एक उग्रवादी मार्क्सवादी-लेनिनवादी कुर्द अलगाववादी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1978 में एकीकृत, स्वतंत्र कुर्दिस्तान की स्थापना के उद्देश्य से की गई थी।
    • PKK कुर्द अधिकारों और मान्यता को बढ़ावा देने के लिये ईरान, इराक, सीरिया और तुर्की में कुर्द क्षेत्रों पर नियंत्रण करना चाहता है।
      • समूह का उद्देश्य अर्द्ध स्वायत्त कुर्द क्षेत्रों का एक संघ बनाना है।
    • ऐतिहासिक रूप से PKK ने अपना मुख्यालय इराक में स्थापित किया है तथा मुख्य रूप से तुर्की के कुर्द-बहुल दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में तुर्की हितों को लक्ष्य बनाया है।
    • दक्षिण-पूर्वी तुर्की में तुर्की सुरक्षा बलों ने PKK की अधिकांश गतिविधियों को इराक और सीरिया की ओर हस्तांतरित कर दिया है।
  • उद्देश्य:
    • PKK अपने अभियानों में गुरिल्ला युद्ध और आतंकवादी रणनीति का संयोजन अपनाता है।
    • यह समूह विभिन्न प्रकार के शस्त्रों और विधियों का उपयोग करता है, जिनमें IED, कार बम, ग्रेनेड, छोटे हथियार, मोर्टार, आत्मघाती बम विस्फोट और अपहरण संबंधी गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • PKK मुख्य रूप से उत्तरी इराक और सीरिया में तुर्की और तुर्की समर्थित बलों के साथ-साथ दक्षिण-पूर्वी तुर्की में तुर्की कर्मियों और बुनियादी ढाँचे पर हमले करता है।
    • यह समूह अपने हमलों में मानव रहित हवाई वाहनों और ह्यूमन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम का भी उपयोग करता है।
  • प्रभाव क्षेत्र:
    • उत्तरी इराक और दक्षिण-पूर्वी तुर्की।
    • संबद्ध समूह उत्तरी सीरिया, उत्तरी इराक और पश्चिमी ईरान में सक्रिय हैं।

Kurdistan territory of Influence

  • संयुक्त राष्ट्र का रुख:
    • संयुक्त राष्ट्र ने PKK की कार्रवाइयों को व्यापक आतंकवाद-रोधी चर्चाओं के भाग के रूप में देखा है, तथा इसकी आतंकवादी गतिविधियों को मुख्य रूप से तुर्की के हितों के विपरीत माना है।
    • इस समूह को प्रायः क्षेत्रीय अस्थिरता और तुर्की की सुरक्षा नीतियों पर इसके प्रभाव के संदर्भ में देखा जाता है।
  • भारत का रुख:
    • भारत के पास PKK को लक्षित करने के लिये कोई विशेष नीति नहीं है। हालाँकि वह अलगाववादी आंदोलनों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों को परिचित है। 

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: मध्य पूर्व में आतंकवादी संगठन किस प्रकार क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिये खतरा हैं? चर्चा कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक:

प्रश्न. 'हैंड-इन-हैंड 2007' एक संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (वर्ष 2008)

(a) चीन 
(b) जापान
(c) रूस 
(d) यू एस ए

उत्तर: (a)


मुख्य:

Q. आतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो कर सकती हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)


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