लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री घास के मैदान

  • 31 Jul 2023
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समुद्री घास, कार्बन पृथक्करण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, ग्लोबल वार्मिंग, महासागरीय धाराएँ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, महासागरों का अम्लीकरण, मन्नार की खाड़ी, बाल्टिक राष्ट्र

मेन्स के लिये:

समुद्री घास का महत्त्व और उससे संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

उत्तरी जर्मनी में स्कूबा गोताखोर जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा इन समुद्री कार्बन सिंक को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से बंजर क्षेत्रों में दोबारा रोपण के लिये समुद्री घास को एकत्र कर रहे हैं।

समुद्री घास के मैदान:

  • परिचय:
    • समुद्री घास के मैदान पुष्पीय पादपों से बने होते हैं जो उथले तटीय जल में उगते हैं, जिससे सघन जलमग्न सतह का निर्माण होता है जो बड़े क्षेत्रों को कवर कर सकते हैं।
    • वे उन क्षेत्रों में पनपते हैं जहाँ सूर्य का प्रकाश जल में प्रवेश कर सकता है, जिससे उन्हें विकास के लिये प्रकाश संश्लेषण से गुज़रने की अनुमति मिलती है।
      • इसके अलावा वे आमतौर पर रेतीले या कीचड़युक्त सब्सट्रेट्स (Substrates) में उगते हैं, जहाँ उनकी जड़ें पौधे को पकड़ सकती हैं और स्थिर कर सकती हैं।
  • महत्त्व:
    • कार्बन पृथक्करण: हालाँकि वे समुद्र तल का केवल 0.1% कवर करते हैं, ये घास के मैदान अत्यधिक कुशल कार्बन सिंक हैं, जो विश्व के 18% तक समुद्री कार्बन का भंडारण करते हैं।
    • जल गुणवत्ता में सुधार: ये जल से प्रदूषकों को फिल्टर/निस्यंदन करते हैं, आच्छादन, अपरदन को रोकते हैं, जिससे जल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
      • इससे सागरीय जीवन, मत्स्यग्रहण, पर्यटन और मनोरंजन जैसी मानवीय गतिविधियों में लाभ होता है।
    • पर्यावास एवं जैव विविधता: ये पृथ्वी पर सबसे अधिक उत्पादक और विविध पारिस्थितिक तंत्रों से संबंधित होते हैं, जो मछली, कछुए, डुगोंग, केकड़े और समुद्री घोड़ों सहित कई सागरीय जीवों को आवास एवं भोजन प्रदान करते हैं।
    • तटीय सुरक्षा: समुद्री घास के मैदान प्राकृतिक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, जो लहरों एवं ज्वारीय तरंगों के कारण होने वाले अपरदन से तटरेखाओं की रक्षा करते हैं।

  • चिंताएँ:
    • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की "आउट ऑफ द ब्लू: द वैल्यू ऑफ सीग्रास टू द एन्वायरनमेंट एंड टू पीपुल" रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में प्रत्येक वर्ष अनुमानित 7% समुद्री घास का निवास स्थान नष्ट हो रहा है।
      • 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से विश्व भर में समुद्री घास के क्षेत्र का लगभग 30% भाग नष्ट हो गया है।
    • समुद्री घास के नुकसान के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
      • तटीय विकास: बंदरगाहों के निर्माण के परिणामस्वरूप समुद्री घास का पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकता है, जिससे प्रकाश की उपलब्धता भी कम हो सकती है।
      • प्रदूषण: कृषि, उद्योग और शहरी क्षेत्रों से पोषक तत्त्वों, रसायनों तथा तलछट के अपवाह के कारण यूट्रोफिकेशन, शैवालीय प्रस्फुटन हो सकता है, जो समुद्री घास के पौधों को दबा सकता है या उन्हें नष्ट कर सकता है।
      • जलवायु परिवर्तन: समुद्र के तापमान में वृद्धि, समुद्र के स्तर में वृद्धि, समुद्र का अम्लीकरण एवं चरम मौसम की घटनाएँ समुद्री घास के पौधों पर दबाव डाल सकती हैं या उन्हें नुकसान पहुँचा सकती हैं और उनके वितरण तथा विकास को बदल सकती हैं।
  • भारत में समुद्री घास:
    • भारत में प्रमुख समुद्री घास के मैदान पूर्वी तट पर मन्नार की खाड़ी तथा पाक खाड़ी क्षेत्रों के समुद्र तट, पश्चिमी तट पर कच्छ क्षेत्र की खाड़ी, अरब सागर में लक्षद्वीप में द्वीपों के लैगून, बंगाल की खाड़ी एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में मौजूद हैं।
  • पुनरुद्धार के प्रयास:
    • जर्मनी में बाल्टिक सागर, संयुक्त राज्य अमेरिका में चेसापीक खाड़ी और भारत में मन्नार की खाड़ी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में समुद्री घास की बहाली का प्रयास किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2