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5 नई शास्त्रीय भाषाओं को स्वीकृति

  • 05 Oct 2024
  • 7 min read

स्रोत: एचटी

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पाँच और भाषाओं को "शास्त्रीय" भाषा का दर्जा दिये जाने को स्वीकृति दी है, जिससे देश की सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भाषाओं की सूची में विस्तार हो गया है।  

  • पाँच भाषाओं के अलावा मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को भी इस प्रतिष्ठित श्रेणी में शामिल किया गया है।

शास्त्रीय भाषा क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2004 में, भारत सरकार ने उनकी प्राचीन विरासत को स्वीकार करने और संरक्षित करने के लिये भाषाओं को "शास्त्रीय भाषा" के रूप में नामित करना शुरू किया।
    • भारत की 11 शास्त्रीय भाषाएँ देश के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास की संरक्षक हैं तथा अपने समुदायों के लिये महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धि का प्रतीक हैं।

क्रम. 

भाषा

घोषित करने का वर्ष 

1.

तमिल

    2004

2.

संस्कृत

    2005

3.

तेलुगु

    2008

4.

कन्नड़

    2008

5.

मलयालम

    2013

6.

ओड़िया

    2014

  • भारतीय शास्त्रीय भाषाएँ समृद्ध ऐतिहासिक विरासत, गहन साहित्यिक परंपराओं और विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत वाली भाषाएँ हैं।
  • महत्त्व: 
    • इन भाषाओं ने इस क्षेत्र के बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • उनके ग्रंथ साहित्य, दर्शन और धर्म जैसे विविध क्षेत्रों में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
  • मानदंड:
    • उच्च पुरातनता: प्रारंभिक ग्रंथ और ऐतिहासिक विवरणों की प्राचीनता 1,500 से 2,000 BC की है।
    • प्राचीन साहित्य: प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का संग्रह जिसे पीढ़ियों द्वारा मूल्यवान विरासत माने जाता है।
    • ज्ञान ग्रन्थ: किसी मूल साहित्यिक परंपरा की उपस्थिति जो किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार नहीं ली गई हो।  
    • विशिष्ट विकास: शास्त्रीय भाषा और साहित्य, आधुनिक भाषा से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा तथा उसके बाद के रूपों अथवा शाखाओं के बीच एक विसंगति से भी उत्पन्न हो सकती है।
  • लाभ:
    • 'शास्त्रीय' के रूप में नामित भाषाओं को उनके अध्ययन और संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न सरकारी लाभ प्राप्त होते हैं।
    • शास्त्रीय भारतीय भाषाओं के अनुसंधान, शिक्षण या संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान देने वाले विद्वानों को प्रतिवर्ष दो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिये जाते हैं।
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में शास्त्रीय भारतीय भाषाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये व्यावसायिक पीठों के निर्माण का समर्थन करता है।
    • इन भाषाई खजानों को सुरक्षित रखने और बढ़ावा देने के लिये, सरकार ने मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) में शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की।

भाषा को बढ़ावा देने के लिये अन्य प्रावधान क्या हैं?

  • आठवीं अनुसूची: भाषा का प्रगतिशील उपयोग, संवर्द्धन और उसको बढ़ावा देना। इसमें 22 भाषाएँ शामिल हैं:
    • असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
  • अनुच्छेद 344(1) संविधान के प्रारंभ से पांँच वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग के गठन का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 351 में प्रावधान है कि हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाना संघ का कर्त्तव्य होगा।
  • भाषाओं को बढ़ावा देने के अन्य प्रयास:
    • परियोजना अस्मिता: परियोजना अस्मिता का लक्ष्य पाँच वर्षों के भीतर भारतीय भाषाओं में 22,000 पुस्तकें प्रकाशित करना है। 
  • नई शिक्षा नीति (NEP): NEP नीति का उद्देश्य संस्कृत विश्वविद्यालयों को बहु-विषयक संस्थानों में परिवर्तित करना है।
    • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL): यह संस्थान चार शास्त्रीय भाषाओं: कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया को बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है। 
  • केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक, 2019: इसने तीन डीम्ड संस्कृत विश्वविद्यालयों को सेंट्रल डीम्ड का दर्ज़ा दिया है: जिसमें दिल्ली में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान और श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ और तिरुपति में राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ शामिल हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

निम्नलिखित भाषाओं पर विचार कीजिये: (2014)

  1. गुजराती 
  2. कन्नडा
  3. तेलुगू

सरकार द्वारा उपरोक्त में से किसको 'शास्त्रीय भाषा' घोषित किया गया है?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

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