डेली न्यूज़ (13 Sep, 2023)



ईंधन के रूप में इथेनॉल


भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, प्रधानमंत्री फॉर्मलाइज़ेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइज़ेज़

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की स्थिति, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहलें

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

मुंबई में आयोजित ANUTEC - इंटरनेशनल फूडटेक इंडिया के 17वें संस्करण में उद्योग और सरकार की प्रमुख हस्तियों ने भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपार संभावनाओं पर प्रकाश डाला। भारत इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की राह पर है और यह देश की अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालकों में से एक बनने के लिये तत्पर है।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की स्थिति:

  • खाद्य प्रसंस्करण- परिचय: 
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र समग्र खाद्य आपूर्ति शृंखला का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
      • इसमें कच्चे कृषीय और पशुधन उत्पादों को उपभोग के लिये उपयुक्त प्रसंस्कृत व मूल्यवर्द्धित खाद्य उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।
    • इस क्षेत्र में गतिविधियों, प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं की एक विस्तृत शृंखला शामिल है जिसका उद्देश्य खाद्य उत्पादों को सुरक्षित, अधिक सुविधाजनक और लंबे समय तक टिकाउ बनाने के साथ-साथ उनके स्वाद एवं पोषण मूल्य में वृद्धि करना है।
  • भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: 
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है, इसका निर्यात में 13% और औद्योगिक निवेश में 6% का योगदान है।
      • इस क्षेत्र ने पर्याप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investments- FDI) को आकर्षित किया है, जिससे वर्ष 2014 से 2020 तक 4.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है, जो इस क्षेत्र की आगामी संभावनाओं का संकेत है।
    • इससे वर्ष 2024 तक 9 मिलियन रोज़गार उत्पन्न होने की उम्मीद है। इसके अलावा वर्ष 2030 तक भारत विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा खाद्य और खाद्य प्रौद्योगिकी उपभोक्ता बनने के लिये तैयार है, क्योंकि घरेलू खपत चौगुनी हो जाएगी। 
      • यह इस क्षेत्र की अपार विकास क्षमता को रेखांकित करता है।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
    • कोल्ड चेन और भंडारण की कमी: अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और परिवहन सुविधाओं के परिणामस्वरूप फसल के बाद खराब होने वाली वस्तुओं की  अत्यधिक हानि होती है। इससे न केवल भोजन की गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि किसानों की आय पर भी असर पड़ता है।
    • खंडित आपूर्ति शृंखला: भारत में आपूर्ति शृंखला अत्यधिक खंडित है, जिससे बढ़ी हुई लागत के साथ ही अपर्याप्तता की स्थिति उत्पन्न होती है। खराब सड़क और रेल बुनियादी ढाँचे के परिणामस्वरूप परिवहन में देरी और नुकसान हो सकता है।
    • जटिल नियम: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नियमों, लाइसेंस और परमिट के एक जटिल जाल के अधीन है, जिसका समाधान करना व्यवसायों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
      • नियमों के असंगत प्रवर्तन से अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आपूर्ति शृंखला में अंतराल के कारण खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। दूषित या मिलावटी खाद्य उत्पाद सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा क्षेत्र की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • अनुसंधान और विकास: अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में सीमित निवेश नवाचार और नए, मूल्य वर्द्धित उत्पादों के विकास मे बाधा उत्पन्न करता है।
      • प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का अनुसंधान और विकास (R&D) व्यय-GDP अनुपात 0.7% है जो कि बहुत कम है और विश्व औसत 1.8% से काफी नीचे है।

आगे की राह

  • स्मार्ट फूड प्रोसेसिंग हब: इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों से लैस स्मार्ट फूड प्रोसेसिंग हब की स्थापना की जानी चाहिये। ये केंद्र गुणवत्ता, अनुसंधान क्षमता और दक्षता सुनिश्चित करते हुए खेत से लेकर थाली तक/ फार्म से लेकर भोजन की टेबल तक संपूर्ण खाद्य आपूर्ति शृंखला की निगरानी कर सकते हैं।
  • न्यूट्रास्यूटिकल इनोवेशन: विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यात्मक और न्यूट्रास्यूटिकल खाद्य पदार्थों की एक शृंखला का विकास करना। इनमें भारतीय आबादी में प्रचलित स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये आवश्यक पोषक तत्त्वों, प्रोबायोटिक्स और बायोएक्टिव यौगिकों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल किये जा सकते हैं।
  • शून्य-अपशिष्ट प्रसंस्करण: शून्य-अपशिष्ट प्रसंस्करण तकनीकों को लागू करना ताकि कच्चे माल के प्रत्येक भाग का उपयोग किया जा सके। उदाहरण के लिये खाद्य अपशिष्ट को जैव ईंधन में परिवर्तित करना या जैव-प्लास्टिक या पशु चारा जैसे नए उत्पाद बनाने हेतु खाद्य उपोत्पादों का उपयोग करना।
  • समुदाय-आधारित प्रसंस्करण केंद्र: ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय-आधारित खाद्य प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। ये केंद्र स्थानीय किसानों के लिये उनकी उपज को संसाधित करने, फसल के बाद के नुकसान को कम करने और ग्रामीण रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के केंद्र के रूप में कार्य कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत सरकार मेगा फूड पार्क की अवधारणा को किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011)

  1. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्तम अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु। 
  2. खराब होने वाले पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रसंस्करण करने और अपव्यय घटाने हेतु। 
  3. उद्यमियों के लिये उद्यमी और पारिस्थितिकी के अनुकूल आहार प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने हेतु।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकार्यता के क्या कारण हैं? खाद्य प्रक्रमण इकाई गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में किस प्रकार सहायक होगी? (2017)


प्रयोगशाला में विकसित मानव भ्रूण मॉडल

प्रिलिम्स के लिये:

मानव भ्रूण, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन, स्टेम सेल

मेन्स के लिये:

भ्रूण अनुसंधान से संबंधित नैतिक विचार, अनुसंधान का महत्त्व और भ्रूण मॉडल का अध्ययन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल और रसायनों का उपयोग करके प्रयोगशाला में "मानव भ्रूण" मॉडल विकसित कर एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है, जो प्रारंभिक भ्रूण विकास पर प्रकाश डालती है।

भ्रूण मॉडल निर्माण: 

  • इज़रायल के शोधकर्ताओं ने 14 दिन के मानव भ्रूण का एक मॉडल बनाने हेतु स्टेम सेल और रसायनों के संयोजन का उपयोग किया।
    • स्टेम सेल और रसायनों का यह मिश्रण भ्रूण जैसी संरचना निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण आरंभिक बिंदु था।
  • इज़रायली शोधकर्ताओं का यह मॉडल सहज रूप से विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को एकत्रित  करने में सक्षम था, जो कि भ्रूण का निर्माण करती हैं, भ्रूण को पोषक तत्त्व प्रदान करती हैं, शरीर का  विकास सुनिश्चित करती हैं और भ्रूण को सहारा देने के लिये प्लेसेंटा एवं गर्भनाल जैसी संरचनाएँ बनाती हैं।
  • यह विधि विशेष रूप से प्रभावी नहीं रही क्योंकि स्टेम कोशिकाओं के संयोजन का केवल 1% ही सहज रूप से एकत्रित हो पाया जो कि बेहतर दक्षता की आवश्यकता को दर्शाती है।

मॉडल से प्रारंभिक विकास के बारे में जानकारी: 

  • मॉडल डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) दोहराव और गुणसूत्र वितरण में त्रुटियों को उजागर करने में मदद करते हैं।
    • शोधकर्ताओं ने पाया कि DNA दोहराव की असामान्यताएँ प्रक्रिया के आरंभ में होती हैं, जो कोशिका विभाजन को प्रभावित करती हैं।
  •  ये मॉडल भ्रूण के विकास में जीन के कार्यों और उनकी भूमिकाओं का अध्ययन करने में सक्षम बनाते हैं।

भ्रूण मॉडल और अनुसंधान का महत्त्व:

  • गर्भाशय में प्रत्यारोपित होने के बाद प्रारंभिक भ्रूण विकास का अध्ययन करना नैतिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।
  •  इन प्रारंभिक चरणों के दौरान अनुसंधान महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि अधिकांश गर्भपात और जन्म दोष इसी अवधि में होते हैं।
  • सामान्य भ्रूण विकास और आनुवंशिक कारकों को समझने से इनविट्रो निषेचन परिणामों में सुधार हो सकता है।
  • यह शोधकर्ताओं को भ्रूण के विकास पर आनुवंशिक, पश्चजात (Epigenetic) और पर्यावरणीय प्रभावों को समझने में सहायता करता है।

 क्या लैब-विकसित भ्रूण का उपयोग गर्भावस्था के लिये किया जा सकता है?

  •  नहीं, ये मॉडल केवल प्रारंभिक भ्रूण विकास का अध्ययन करने के लिये हैं।
  •  ये सामान्यतः 14 दिनों के बाद नष्ट हो जाते हैं और प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं होती है।
    • वर्ष 1979 में यूके में 14 दिन की सीमा प्रस्तावित की गई थी, जो प्राकृतिक भ्रूण प्रत्यारोपण के समाप्त होने की अवधि के बराबर थी।
      • यह उस बिंदु को चिह्नित करता है जब कोशिकाएँ एक "एकल भ्रूण" का निर्माण शुरू कर देती हैं और युग्म में इनका विखंडन संभव नहीं हो पाता है।
    • भ्रूण के कोशिकाओं के समूहों के विकास के साथ ही इसके संबंध में नैतिक चिंताओं (Ethical Considerations) में परिवर्तन शुरू हो जाता है।
  • नैतिक चिंताएँ तब होती हैं जब यह कोशिकाओं का एक समूह होता है और जब यह भ्रूण बन जाता है तो प्रायः प्रिमिटिव स्ट्रीक के रूप में संदर्भित किया जाता है।
    • प्रिमिटिव स्ट्रीक एक रेखीय संरचना है जो भ्रूण में दिखाई देती है, यह रेडियल समरूपता (डिंब की तरह) से हमारे शरीर की द्विपक्षीय समरूपता (बाएँ एवं दाएँ हाथ और पैरों द्वारा चिह्नित) में परिवर्तन को चिह्नित करती है।

मानव भ्रूण: 

  • मानव भ्रूण निषेचन से लेकर गर्भधारण के आठवें सप्ताह के अंत तक एक विकासशील मानव होता है।
  • मानव भ्रूण के विकास के तीन मुख्य चरण होते हैं: पूर्व-प्रत्यारोपण चरण, आरोपण चरण और ऑर्गोजेनेसिस चरण।
  • मानव भ्रूण विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है जो विभिन्न ऊतकों और अंगों में विभेदित होते हैं।
  • मानव भ्रूण सामान्यतः महिला प्रजनन पथ या प्रयोगशाला में मानव शुक्राणु द्वारा मानव अंडे (Oocyte) के निषेचन द्वारा बनाया जाता है।

स्टेम सेल:

  • स्टेम सेल एक ऐसी कोशिका है जिसमें शरीर में विशेष प्रकार की कोशिकाओं में विकसित होने की अद्वितीय क्षमता होती है।
    • भविष्य में इनका उपयोग उन कोशिकाओं और ऊतकों को बदलने के लिये किया जा सकता है जो बीमारी के कारण क्षतिग्रस्त या नष्ट हो गए हैं।
  • उनके दो अद्वितीय गुण हैं जो उन्हें ऐसा करने में सक्षम बनाते हैं:
    • वे नई कोशिकाओं का निर्माण करने के लिये बार-बार विभाजित हो सकते हैं।
    • जैसे-जैसे वे विभाजित होते हैं, वे शरीर का निर्माण करने वाली अन्य प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकते हैं।

स्टेम सेल का प्रकार

      स्रोत 

स्टेम सेल की क्षमताl

भ्रूणीय टोटिपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ

ये स्टेम कोशिकाएँ निषेचित भ्रूण के शुरुआती चरणों में पाई जाती हैं, आमतौर पर निषेचन के बाद पहले कुछ दिनों के अंतर्गत।



शरीर में किसी भी कोशिका का निर्माण हो सकता है, यहाँ तक कि प्लेसेंटा (गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय में एक अंग जो बढ़ते बच्चे को ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्रदान करता है)भी बन सकता है।

भ्रूण प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ

यह थोड़े अधिक विकसित भ्रूण (निषेचन के लगभग 4-5 दिन बाद) के आंतरिक कोशिका द्रव्यमान से प्राप्त होती हैं।

शरीर में कई अलग-अलग प्रकार की कोशिकाएँ बन सकती हैं लेकिन प्लेसेंटा नहीं बन सकता।

वयस्क मल्टीपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ

मानव शरीर में विभिन्न ऊतकों में पाया जाता है, जैसे: अस्थि मज्जा या त्वचा।

मल्टीपोटेंट स्टेम कोशिकाएँ अधिक विशिष्ट होती हैं। ये केवल ऊतकों के अनुसार विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं में ही विकसित हो सकती हैं जिनमें वे पाई जाती हैं। उदाहरण के लिये, अस्थि मज्जा स्टेम कोशिकाएँ विभिन्न रक्त कोशिका प्रकारों में विकसित हो सकती हैं, लेकिन त्वचा कोशिकाओं में नहीं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अक्सर सुर्खियों में रहने वाली 'स्टेम कोशिकाओं' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. स्टेम कोशिकाएँ केवल स्तनपायी जीवों से ही प्राप्त की जा सकती हैं।
  2. स्टेम कोशिकाएँ नई औषधियों को परखने के लिये प्रयोग की जा सकती हैं।
  3. स्टेम कोशिकाएँ चिकित्सा थेरेपी के लिये प्रयोग की जा सकती हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • क्षतिग्रस्त अंगों या ऊतकों के प्रत्यारोपण के लिये प्रयोगशाला में नई कोशिकाएँ विकसित करना।
  • अंगों के ठीक से काम न करने वाले भाग को ठीक करना।
  • कोशिकाओं में आनुवंशिक दोष के कारणों पर शोध करना कि रोग कैसे उत्पन्न होते हैं या कुछ कोशिकाएँ कैंसर कोशिकाओं के रूप में क्यों विकसित होती हैं।
  • सुरक्षा और प्रभावशीलता के लिये नई दवाओं का परीक्षण करना। अतः कथन 2 सही है।
  • चिकित्सा उपचार की व्यवस्था करना। अतः कथन 3 सही है।
  • स्टेम कोशिकाएँ अविभाजित अथवा "रिक्त" कोशिकाएँ हैं जो नई कोशिकाओं के रूप में विकसित होने में सक्षम होती हैं तथा शरीर के विभिन्न भागों में कई कार्य करती हैं। शरीर में अधिकांश कोशिकाएँ विभेदित कोशिकाएँ हैं। ये कोशिकाएँ किसी विशेष अंग में केवल एक विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति कर सकती हैं। उदाहरण के लिये लाल रक्त कोशिकाएँ विशेष रूप से रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन ले जाने के लिये होती हैं।
  • स्टेम कोशिकाएँ न केवल स्तनधारियों में पाई जाती हैं, बल्कि पौधों और अन्य जीवों में भी पाई जाती हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • चूँकि स्टेम कोशिकाओं में कई अन्य प्रकार की कोशिकाओं में परिवर्तित होने की क्षमता होती है, वैज्ञानिकों का मानना है कि वे बीमारियों के इलाज और रोग को समझने के लिये उपयोगी हो सकती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, स्टेम कोशिकाओं का उपयोग निम्नलिखित में किया जा सकता है:
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

20वाँ आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और 18वाँ पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, भारत का डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा

मेन्स के लिये:

सामान्य हित और चिंता के क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने में EAS की भूमिका, भारत के लिये आसियान का महत्त्व, भारत-आसियान सहयोग के क्षेत्र

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने जकार्ता, इंडोनेशिया में आयोजित 20वें दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN)-भारत शिखर सम्मेलन और 18वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) में भाग लिया।

  • दोनों शिखर सम्मेलन भारत के लिये आसियान (ASEAN) देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने और स्वतंत्र, खुले एवं नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के अवसर थे।

20वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:

  • भारत के प्रधानमंत्री ने भारत-आसियान सहयोग को मज़बूत करने के लिये 12-सूत्रीय प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें कनेक्टिविटी, डिजिटल परिवर्तन, व्यापार और आर्थिक जुड़ाव, समकालीन चुनौतियों का समाधान, जन-जन के बीच संपर्क तथा रणनीतिक जुड़ाव को मज़बूत करना शामिल है।
  • 12 सूत्रीय प्रस्ताव में निम्नलिखित को शामिल किया गया है:
    • मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी और आर्थिक गलियारा स्थापित करना जो दक्षिण-पूर्व एशिया-भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप को जोड़ता है।
    • भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक को आसियान साझेदारों के साथ साझा करने की पेशकश की गई।
    • हमारी सहभागिता को बढ़ाने के लिये एक ज्ञान भागीदार के रूप में कार्य करने तथा आसियान और पूर्वी एशिया के आर्थिक और अनुसंधान संस्थान (ERIA) को समर्थन के नवीनीकरण की घोषणा की गई।
    • बहुपक्षीय मंचों पर ग्लोबल साउथ के समक्ष आने वाले मुद्दों को सामूहिक रूप से उठाने का आह्वान किया गया।
    • WHO द्वारा भारत में स्थापित किये जा रहे ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन में शामिल होने के लिये आसियान देशों को आमंत्रित करना।
    • मिशन LiFE (पर्यावरण के लिये जीवनशैली) पर एक साथ कार्य करने का आह्वान किया गया।
    • जन-औषधि केंद्रों के माध्यम से व्यक्तियों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएँ उपलब्ध कराने में भारत के अनुभव को साझा करने की पेशकश की।
    • आतंकवाद, आतंकी वित्तपोषण और साइबर-दुष्प्रचार के खिलाफ सामूहिक लड़ाई का आह्वान किया गया।
    • आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे हेतु गठबंधन में शामिल होने के लिये आसियान देशों को आमंत्रित कर आपदा प्रबंधन में सहयोग का आह्वान किया गया।
    • समुद्री सुरक्षा, रक्षा और डोमेन जागरूकता पर सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया गया।

दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्र संघ:

  • परिचय:
    • आसियान (ASEAN) की स्थापना 8 अगस्त, 1967 को बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापक सदस्यों इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई थी।
    • संगठन का लक्ष्य इन देशों में स्थिरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
    • सदस्य राज्यों के अंग्रेज़ी नामों के वर्णमाला क्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता प्रतिवर्ष बदलती रहती है।
    • यह क्षेत्र विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और ऐसा माना जाता है कि वर्ष 2050 तक यह विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा।
  • सदस्य: 
    • आसियान दस दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का एक संगठन है, ये राष्ट्र हैं- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम।

18वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:

  • पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के प्रति प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि:
    • भारत के प्रधानमंत्री ने EAS तंत्र के महत्त्व पर बल दिया तथा इसे और मज़बूत करने के लिये भारत के समर्थन की पुष्टि की।
    • आसियान की केंद्रीयता के लिये भारत ने मज़बूत समर्थन और एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक सुनिश्चित करने का आह्वान किया।
  • क्वाड का दूरगामी लक्ष्य और वैश्विक चुनौतियाँ: 
    • प्रधानमंत्री की चर्चाओं, क्वाड के दूरगामी लक्ष्य और सहयोगात्मक दृष्टिकोण में आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन एवं लचीली आपूर्ति शृंखला जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये किये जाने वाले प्रयास परिलक्षित होते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु भारत की पहल:

पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन

  • परिचय:
    • EAS की स्थापना वर्ष 2005 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के नेतृत्व वाली पहल के रूप में की गई थी।
    • EAS हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एकमात्र नेतृत्वकर्ता मंच है जो रणनीतिक महत्त्व के राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने हेतु सभी प्रमुख भागीदारों को एक साथ लाता है।
    • EAS स्पष्टता, समावेशिता, अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान, आसियान केंद्रीयता और प्रेरक शक्ति के रूप में आसियान की भूमिका जैसे सिद्धांतों पर काम करता है।
    • पूर्वी एशिया समूह का विचार पहली बार वर्ष 1991 में तत्कालीन मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने प्रस्तावित किया था। 
      • पहला शिखर सम्मेलन 14 दिसंबर, 2005 को कुआलालंपुर, मलेशिया में आयोजित किया गया था।
  • सदस्य:
    • EAS में 18 सदस्य शामिल हैं: 10 आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) तथा आठ संवाद भागीदार (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस एवं संयुक्त राज्य अमेरिका)।
  • सहयोग के छह प्राथमिकता वाले क्षेत्र:
    • पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दे तथा महामारी रोग, प्राकृतिक आपदा प्रबंधन एवं आसियान कनेक्टिविटी।
  • भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन:
    • भारत वर्ष 2005 से पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का संस्थापक सदस्य है और इसकी सभी बैठकों व गतिविधियों में सक्रिय रूप से भागीदार रहा है।
    • भारत EAS को अपनी एक्ट ईस्ट पाॅलिसी को आगे बढ़ाने और आसियान तथा अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में देखता है।
    • नवंबर 2019 में बैंकॉक में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत ने हिंद-प्रशांत महासागर पहल (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) की शुरुआत की थी, इसका उद्देश्य एक सुरक्षित व धारणीय समुद्री क्षेत्र के निर्माण के लिये साझेदारी सुनिश्चित करना है।
    • भारत ने आपदा प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, कनेक्टिविटी, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद का विरोध जैसे विभिन्न क्षेत्रों में EAS के सहयोग में योगदान दिया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है? (2015)  

  1. एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन) 
  2. दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संगठन (एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशन्स) 
  3. पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2  
(b) केवल 3  
(c) 1, 2 और 3  
(d) भारत इनमें से किसी का भी सदस्य नहीं है  

उत्तर: (b) 


प्रश्न . निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया  
  2. कनाडा  
  3. चीन 
  4. भारत  
  5. जापान 
  6. यू.एस.ए.

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के ‘मुक्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?

(a) केवल 1, 2, 4 और 5    
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5   
(d) केवल 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'रीजनल काम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016)

(a) G20
(b) ASEAN
(c) SCO
(d) SAARC

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के दस सदस्य देशों और पाँच देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड) के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है जिसके साथ वर्तमान में आसियान का FTA है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

प्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, का निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)

  1. बांग्लादेश
  2.  कंबोडिया
  3.  चीन 
  4. म्यांँमार 
  5. थाईलैंड

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 5

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक  आयामों का मूल्यांकन कीजिये।(2016)


हिमाचल त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय आपदा टैग, मानसून, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि (NCCF), गंभीर आपदा

मेन्स के लिये:

हिमाचल त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हिमाचल प्रदेश ने प्रधानमंत्री से राज्य में भारी बारिश से हुई त्रासदी को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का अनुरोध किया है।

  • मानसून 2023 में बारिश से संबंधित घटनाओं के कारण हिमाचल प्रदेश को 10,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और लगभग 418 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई।
  • गंभीर प्रकृति की आपदा की स्थिति में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष से अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राज्यों की सहायता:

  •  "राष्ट्रीय आपदाओं" की कोई आधिकारिक या परिभाषित श्रेणी नहीं है।.  
  • इस प्रकृति की आपदाएँ आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आती हैं, जो ‘आपदा’ को ‘किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से, या दुर्घटना या लापरवाही से उत्पन्न होने वाली आपदा, दुर्घटना, विपत्ति या गंभीर घटना के रूप में परिभाषित करती है जिसके परिणामस्वरूप जीवन की हानि या मानव पीड़ा या क्षति तथा संपत्ति का विनाश या पर्यावरण की क्षति होती है जो प्रभावित क्षेत्र के समुदाय की मुकाबला करने की क्षमता से परे है’।
  • इस अधिनियम के तहत प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और संबंधित मुख्यमंत्रियों की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) का गठन किया गया।
    • इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल का भी गठन किया गया। इसकी कई बटालियन या टीम हैं, जो कई राज्यों में ज़मीनी स्तर पर राहत और बचाव कार्य के लिये ज़िम्मेदार हैं।

राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (SDRF) 

  • राष्ट्रीय आपदा राहत कोष:
    • NDRF का उल्लेख वर्ष 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम में किया गया है।
    • गंभीर प्राकृतिक आपदा की स्थिति में NDRF किसी राज्य के SDRF के पूरक के रूप में कार्य करता है, बशर्ते SDRF में पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न हो।
  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष:
    • SDRF का गठन आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया है।
    • SDRF अधिसूचित आपदाओं की प्रतिक्रिया हेतु राज्य सरकारों के लिये उपलब्ध प्राथमिक धनराशि के रूप में राज्यों के पास मौजूद होता है।
    • केंद्र सरकार सामान्य राज्यों के मामले में SDRF में 75% और पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों के संदर्भ में 90% का योगदान देती है।
    • नवंबर 2019 के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक प्रकाशन के अनुसार, "आपदा की स्थिति में बचाव, राहत और पुनर्वास उपायों के लिये मुख्य रूप से राज्य सरकार ज़िम्मेदार है," लेकिन इन्हें केंद्रीय सहायता से पूरा किया जा सकता है।
    • SDRF का उपयोग केवल चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटने, कीटों का हमला और शीत लहर जैसी अधिसूचित आपदाओं के पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने हेतु किया जाता है। 

गंभीर आपदा:

  • परिचय:
    • गंभीर आपदा से तात्पर्य महत्त्वपूर्ण परिमाण और तीव्रता की एक भयावह घटना या आपदा से है जो व्यापक क्षति, जीवन की हानि और सामान्य जीवन में व्यवधान का कारण बनती है।
    • जब किसी आपदा को ‘गंभीर’ घोषित किया जाता है, तो इस आपदा में राहत और वित्तीय सहायता के लिये एक विशिष्ट प्रक्रिया शुरू की जाती है।
  • भारत में आपदा राहत की प्रक्रिया: 
    • घोषणा: राज्य सरकार ने एक ज्ञापन प्रस्तुत किया है जिसमें आपदा से हुए नुकसान की सीमा और राहत कार्यों के लिये निधि की आवश्यकताओं का विवरण दिया गया है।
    • आकलन: एक अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम राहत प्रयासों के लिये ऑन द स्पॉट क्षति और धन की आवश्यकताओं का आकलन करेगी।
    • समिति द्वारा मूल्यांकन: समितियों को मूल्यांकन रिपोर्टों की जाँच करने के साथ ही एक उच्च-स्तरीय समिति को NDRF से जारी की जाने वाली तत्काल राहत की राशि को मंज़ूरी देनी होगी।
      • इसमें गृह मंत्रालय का आपदा प्रबंधन प्रभाग सहायता प्रदान करेगा और धन के उपयोग की निगरानी करेगा।
    • वित्तीय सहायता: SDRF अधिसूचित आपदाओं की प्रतिक्रिया के लिये राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है। 
    • अतिरिक्त सहायता: यदि SDRF पर्याप्त नहीं है, तो NDRF से अतिरिक्त सहायता पर विचार किया जा सकता है जो पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्तपोषित है।
      • NDRF और SDRF के लिये धनराशि सरकार द्वारा बजटीय आवंटन के हिस्से के रूप में आवंटित की जाएगी।
    • ऋण राहत: राहत उपायों के तहत ऋणों के पुनर्भुगतान में राहत या प्रभावित व्यक्तियों को रियायती शर्तों पर नए ऋण का प्रावधान शामिल हो सकता है।
    • वित्त आयोग: वित्त आयोग द्वारा तत्काल राहत के लिये धनराशि की सिफारिश की जाएगी। 15वें वित्त आयोग (2021-22 से 2025-26 के लिये) ने पिछले व्यय, जोखिम (क्षेत्र और जनसंख्या) के खतरे तथा राज्यों की भेद्यता जैसे कारकों के आधार पर राज्य-वार आवंटन के लिये एक नई पद्धति अपनाई है।
    • धनराशि जारी करना: आपदा राहत के लिये केंद्रीय योगदान दो समान किश्तों में जारी किया जाएगा, जो उपयोग प्रमाण पत्र और राज्य सरकारों द्वारा की गई गतिविधियों पर रिपोर्ट के अधीन होता है।

GDP से परे आर्थिक अंतर्दृष्टि: ICOR

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात, हैरोड-डोमर मॉडल, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI), भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम, मुद्रास्फीति, अनौपचारिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत में ICOR में गिरावट के कारक, आर्थिक संकेतक के रूप में ICOR का उपयोग करने की सीमाएँ

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत का नवीनतम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) डेटा, वर्ष 2023 की अप्रैल से जून तिमाही के दौरान 7.8% की उल्लेखनीय वृद्धि के साथ सुर्खियों में है, जिसने विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है।

GDP और ICOR:

  • GDP आर्थिक प्रदर्शन और विकास के सबसे व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले संकेतकों में से एक है। यह किसी निश्चित समयावधि में किसी देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य का मापन है।
    • हालाँकि GDP की अपनी खूबियाँ हैं, लेकिन यह आर्थिक कल्याण का संपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं करती है। यह दक्षता, आय वितरण और संस्थागत गुणवत्ता जैसे कारकों की अनदेखी करती है, जो सतत् विकास के लिये आवश्यक हैं।
    • निवेश बढ़ाने से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो सकती है, लेकिन वास्तविक सतत् विकास उत्पादकता में वृद्धि पर निर्भर करता है।
    • इसलिये अर्थशास्त्री और नीति निर्माता प्रायः आर्थिक विकास की दक्षता, स्थिरता एवं गुणवत्ता का आकलन करने के लिये अन्य पूरक संकेतकों का उपयोग करते हैं।
  • ऐसा ही एक संकेतक ICOR है; यह हैरोड-डोमर ग्रोथ थ्योरी से विकसित हुआ है और नए निवेश एवं आर्थिक विकास के बीच संबंधों की जाँच करता है, यह दर्शाता है कि 1% अधिक उत्पादन के लिये कितनी अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता है।
    • कम ICOR पूंजी की अधिक दक्षता और उत्पादक उपयोग का प्रतीक है।
    • SBI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बचत और निवेश में बढ़ोतरी का रुझान देखा जा रहा है, जिसके साथ-साथ ICOR में भी कमी आ रही है
      • भारत में वर्तमान ICOR- 4.4 है, जो पूंजी के कुशल उपयोग का संकेत देता है।

नोट: अर्थशास्त्री रॉय हैरोड और एवसी डोमर द्वारा बनाया गया हैरोड-डोमर मॉडल दावा करता है कि आर्थिक विकास निवेश के लिये पूंजी की उपलब्धता पर निर्भर करता है और पूंजी संचय की दर सीधे बचत की दर से जुड़ी होती है।

भारत में ICOR में गिरावट के कारण:

  • आर्थिक और तकनीकी नवाचार: भारत लागत-सचेत नवाचार का केंद्र रहा है, जहाँ कंपनियाँ लागत प्रभावी समाधान विकसित करती हैं जिनके लिये न्यूनतम पूंजी निवेश और न्यूनतम टूट-फूट प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिये टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों ने नैनो कार विकसित की, जो मध्यम वर्ग की आबादी के लिये एक कम लागत वाला विकल्प है, यह दर्शाता है कि कैसे मितव्ययी नवाचार से ICOR कम हो सकता है।
  • आर्थिक विविधीकरण: भारत का अधिक सेवा-उन्मुख और प्रौद्योगिकी-गहन अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव आर्थिक गतिविधियों की पूंजी तीव्रता को कम करता है।
    • IT और सॉफ्टवेयर विकास जैसी सेवाओं के लिये आमतौर पर पारंपरिक विनिर्माण की तुलना में आउटपुट की प्रति यूनिट कम पूंजी की आवश्यकता होती है।
    • हालाँकि सावधानी बरतना और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देकर संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना आवश्यक है।
  • विकेंद्रीकृत विनिर्माण: 3D प्रिंटिंग और अन्य प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके विकेंद्रीकृत एवं वितरित विनिर्माण के बढ़ने से केंद्रीकृत कारखानों तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन सुविधाओं में भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • भारत के पहले 3D-प्रिंटेड डाकघर का उद्घाटन बंगलूरू में किया गया है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग इंटीग्रेशन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ाकर भारत में ICOR को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये स्वास्थ्य सेवा में AI-संचालित डायग्नोस्टिक्स महँगे उपकरणों पर निर्भरता को कम करता है, जिससे स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का ICOR कम होता है।
    • विनिर्माण में ML-आधारित पूर्वानुमानित रखरखाव डाउनटाइम को कम करता है और मशीनरी के जीवन को बढ़ाता है, जिससे बार-बार पूंजी प्रतिस्थापन की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • इसके अलावा कृषि में AI-सक्षम परिशुद्ध खेती संसाधनों के उपयोग को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप कम पूंजीगत व्यय के साथ अधिक फसल की पैदावार होती है।

आर्थिक संकेतक के रूप में ICOR के उपयोग की सीमाएँ:

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था विशाल और गतिशील है, लेकिन यह काफी हद तक औपचारिक डेटा संग्रह के दायरे से बाहर संचालित होती है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र की औपचारिक क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया जटिल और चुनौतीपूर्ण हो सकती है, जिसे ICOR गणना में सटीक रूप से शामिल किया जा सकता है।
    • परिणामस्वरूप ICOR आर्थिक विकास और पूंजी दक्षता में पूरी तरह से अनौपचारिक क्षेत्र के योगदान की भूमिका नहीं हो सकती है।
  • मूल्य विकृतियाँ: ICOR निवेश और आउटपुट के नाममात्र/नॉमिनल मूल्यों पर आधारित है, जो समय के साथ मूल्य परिवर्तन से प्रभावित होते हैं।
    • इसलिये मुद्रास्फीति या अपस्फीति निवेश और आउटपुट के बीच वास्तविक संबंध को विकृत कर सकती है, जिससे ICOR के भ्रामक परिणाम सामने आ सकते हैं।
    • अतः विश्वसनीय ICOR आँकड़े प्राप्त करना डेटा की उपलब्धता और सटीकता के कारण प्रभावित हो सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: ICOR में गिरावट के बावजूद भारत बुनियादी ढाँचे की बाधाओं से जूझ रहा है।
    • इसका अर्थ यह हो सकता है कि जहाँ नए पूंजी निवेश अपेक्षाकृत कुशल हैं, वहीं मौजूदा बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ समग्र आर्थिक दक्षता और उत्पादकता में बाधा बन सकती हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: भारत में क्षेत्रीय विविधताएँ ICOR की व्याख्या को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। घटती राष्ट्रीय ICOR असमानताओं को छिपा सकती हैं जहाँ कुछ क्षेत्र अधिक कुशल पूंजी उपयोग से लाभान्वित होते हैं, जबकि अन्य पीछे रह जाते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों की कमी: निम्न ICOR में प्राकृतिक संसाधनों की कमी को प्रतिबिंबित करने की क्षमता नहीं है, यह दीर्घकालिक धारणीयता संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
    • प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने वाले पूंजी-प्रधान उद्योग पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हुए ICOR में गिरावट दिखा सकते हैं।

वृद्धिशील पूंजी आउटपुट अनुपात (ICOR) में सुधार:

  • क्षेत्रीय और अनुभाग आधारित विश्लेषण: मात्र राष्ट्रीय स्तर के विश्लेषण के बजाय ICOR का क्षेत्रीय और अनुभाग आधारित मूल्यांकन किये जाने की आवश्यकता है।
    • इससे एक अधिक विस्तृत समझ प्राप्त होती है कि पूंजी निवेश कहाँ सबसे अधिक कुशल है और कहाँ इसमें सुधार की आवश्यकता है। इसके बाद लक्षित नीतियों को तदनुसार डिज़ाइन किया जा सकता है।
  • पारदर्शी डेटा रिकॉर्डिंग के लिये ब्लॉकचेन: आर्थिक डेटा की पारदर्शी और छेड़छाड़-रोधी रिकॉर्डिंग सुनिश्चित करने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करने से डेटा हेर-फेर अथवा अशुद्धियों के जोखिम को कम किया जा सकता है। इससे ICOR गणना की विश्वसनीयता में वृद्धि हो सकती है।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: पूंजी आवंटन अक्षमताओं का संयुक्त रूप से समाधान करने के लिये सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी की मदद से बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकता है।


UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।

(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)

प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।

(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।

(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)

मेन्स:
प्रश्न. संभाव्य सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) को परिभाषित कीजिये और उसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन से कारक हैं जो भारत को अपनी संभाव्य जी.डी.पी. को साकार करने से रोकते हैं? (2020)

प्रश्न. भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के वर्ष 2015 के पूर्व तथा वर्ष 2015 के बाद परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021)