भारतीय अर्थव्यवस्था
चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंता
- 14 Aug 2023
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने बताया कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में जुलाई 2023 में एक वर्ष पहले की तुलना में 0.3% की गिरावट आई, जिससे देश में अपस्फीति (Deflation) की स्थिति उत्पन्न हुई।
अपस्फीति:
- परिचय:
- अपस्फीति मुद्रास्फीति के विपरीत स्थिति है। यह अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के समग्र मूल्य स्तर में निरंतर और सामान्य कमी को संदर्भित करती है।
- अपस्फीति के माहौल में उपभोक्ता समय के साथ समान राशि के लिये अधिक वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीद सकते हैं।
- हालाँकि अपस्फीति विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे- उपभोक्ता मांग में कमी, माल की अधिक आपूर्ति, तकनीकी प्रगति जो उत्पादन लागत को कम करती है या केंद्रीय बैंकों द्वारा सख्त मौद्रिक नीतियाँ।
- चीन के मामले में उपभोक्ता मांग में कमी और आर्थिक मंदी इसका कारण है।
- प्रभाव:
- सकारात्मक:
- कम ब्याज दर: अपस्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक उधार लेने तथा व्यय के लिये प्रोत्साहित करने हेतु ब्याज दरें कम कर सकते हैं। कम ब्याज दरों से व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिये उधार लेने की लागत कम हो सकती है, संभावित रूप से निवेश, उपभोग तथा आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है।
- बेहतर बचत प्रोत्साहन: अपस्फीति बचत को प्रोत्साहित कर सकती है क्योंकि समय के साथ पैसे का मूल्य बढ़ता है। बचतकर्ताओं के पैसे के मूल्य में वृद्धि की अधिक संभावना होती है, जो उन्हें भविष्य के लिये और अधिक बचत करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है तथा दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता में योगदान कर सकता है।
- आर्थिक दक्षता: अपस्फीति व्यवसायों को अधिक कुशल बनने और उनके संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रेरित कर सकती है। गिरती कीमतें कंपनियों को लाभप्रदता को बनाए रखने के लिये लागत कम करने, नवाचार करने और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। दक्षता के चलते उत्पादकता में लाभ और दीर्घकालिक आर्थिक विकास हो सकता है।
- निश्चित-आय लाभार्थियों के लिये अनुकूल: जो लोग निश्चित-आय हेतु निवेश पर भरोसा करते हैं, जैसे कि पेंशन योजना या निश्चित वार्षिकी वाले सेवानिवृत्त लोग, अपस्फीति से लाभान्वित हो सकते हैं। चूँकि पैसे का मूल्य बढ़ता है, जिससे उनकी निश्चित आय में अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि होती है, जिससे उन्हें आय का एक स्थिर और विश्वसनीय स्रोत मिलता है।
- नकारात्मक:
- आर्थिक संकुचन का नीचे की ओर बढ़ना: जब उपभोक्ताओं को कीमतों में और गिरावट की आशंका होती है, तो वे खरीदारी में देरी करते हैं, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है। मांग में कमी से उत्पादन में गिरावट की स्थिति देखी जा सकती है, व्यापार राजस्व कम हो सकता है और यहाँ तक कि कर्मियों की छंटनी भी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है।
- यह चक्र आर्थिक संकुचन, नौकरी छूटने और वित्तीय अस्थिरता का एक निचला चक्र (Downward Spiral) उत्पन्न कर सकता है।
- व्यावसायिक राजस्व में कमी लाना: कम कीमतें व्यवसाय के राजस्व को कम कर देती हैं, जिससे मुनाफा और निवेश कम हो जाता है तथा संभावित रूप से अधिक बेरोज़गारी होती है क्योंकि मांग में कमी के कारण कंपनियाँ उत्पादन कम कर देती हैं।
- महँगा सेवा ऋण: अपस्फीति से ऋण का वास्तविक बोझ बढ़ सकता है। जैसे-जैसे कीमतें गिरती हैं, ऋण का मूल्य स्थिर रहता है या वास्तविक रूप से बढ़ भी जाता है। इससे व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिये अपने ऋण दायित्वों का प्रबंधन करना अधिक कठिन हो सकता है।
- अपस्फीति के समय ऋण चुकौती पर खर्च किये गए प्रत्येक डॉलर की सापेक्ष क्रय शक्ति कीमतों में गिरावट के पहले की तुलना में अधिक होती है।
- आर्थिक संकुचन का नीचे की ओर बढ़ना: जब उपभोक्ताओं को कीमतों में और गिरावट की आशंका होती है, तो वे खरीदारी में देरी करते हैं, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है। मांग में कमी से उत्पादन में गिरावट की स्थिति देखी जा सकती है, व्यापार राजस्व कम हो सकता है और यहाँ तक कि कर्मियों की छंटनी भी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है।
- हालाँकि आर्थिक परिस्थितियाँ जटिल हो सकती हैं और अपस्फीति के वास्तविक प्रभाव किसी अर्थव्यवस्था की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।
- सकारात्मक:
चीन में अपस्फीति के कारण:
- ज़ीरो-कोविड पॉलिसी :
- चीनी अर्थव्यवस्था एक साल से अधिक समय से संघर्ष कर रही है। सबसे प्रमुख कारण उसकी भारी-भरकम ज़ीरो-कोविड पॉलिसी थी, जिसमें कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में पूरे शहरों को कभी-कभी हफ्तों के लिये बंद कर दिया गया था।
- प्रॉपर्टी और बैंकिंग सेक्टर में मंदी:
- संपत्ति क्षेत्र, जिसका हाल के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 20% से 30% के बीच योगदान रहा है, को गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा है, कई प्रमुख डेवलपर्स अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हैं और कई परियोजनाएँ अधूरी रह गई हैं।
- बैंकिंग क्षेत्र पर कई स्थानीय सरकारी एजेंसियों (जिनके राजस्व में भारी गिरावट आई) को दिये गए बुरे ऋणों के कारण भी काफी दबाव है।
- बेरोज़गारी:
- युवा श्रमिकों के बीच बढ़ती बेरोज़गारी भी एक अन्य समस्या है, 16 से 24 वर्ष की आयु के लोगों के लिये आधिकारिक बेरोज़गारी दर 21% है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि वास्तविक आँकड़ा इससे काफी अधिक है।
चीन की अवस्फीति का भारत और विश्व पर प्रभाव:
- भारत:
- सकारात्मक प्रभाव: यदि चीनी अर्थव्यवस्था की धीमी दर (जिसे वर्तमान में अपस्फीति माना जा रहा है) के कारण उसकी अर्थव्यवस्था में निवेश में कमी आती है, तो भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिये संभावित विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर सकता है।
- यदि भारत के आर्थिक सुधारों में तेज़ी लाई जाए तो आने वाले समय में भारत एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र बन सकता है।
- नकारात्मक प्रभाव: चीन, भारत से लौह अयस्क के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। पूर्वी एशियाई देश लगभग 70% लौह-अयस्क भारत से आयात करते हैं।
- अतः चीन की अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने का मतलब होगा कि चीन के आयात की मात्रा घटने से इसका प्रभाव कुछ हद तक भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
- विश्व स्तर पर:
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला:
- कई वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ चीन के साथ जटिल रूप से जुड़ी हुई हैं। यदि अपस्फीति और कमज़ोर मांग के कारण चीन के निर्यात क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो आपूर्ति शृंखला में उत्पन्न होने वाला व्यवधान विश्व भर के उद्योगों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें भारत (चीन से मध्यवर्ती वस्तुओं पर निर्भर) भी शामिल है।
- वैश्विक विकास:
- चीन, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा इसकी आर्थिक स्थिति का वैश्विक विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- अपस्फीति के कारण चीन की आर्थिक गतिविधियों में भारी गिरावट से विश्व में वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो सकती है, जो वैश्विक आर्थिक विकास की मंदी में योगदान कर सकती है।
- केंद्रीय बैंक एवं मौद्रिक नीति:
- चीन की अपस्फीति के जवाब में विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को मौद्रिक नीति के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- वैश्विक मांग कम होने से मुद्रास्फीति का दबाव कम हो सकता है, साथ ही यह ब्याज दर नीतियों को प्रभावित कर सकती है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखला:
आगे की राह
- भारत सहित दुनिया भर के नीति निर्माताओं को इन विकासों पर अति-सूक्ष्म दृष्टि रखने तथा संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये रणनीति बनाने की आवश्यकता होगी।
- अपस्फीति के प्रभावों में बढ़ा हुआ ऋण बोझ, परिवर्तित उपभोक्ता व्यवहार, कम व्यावसायिक निवेश तथा मौद्रिक नीति के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
- अपस्फीति को संबोधित करने के लिये मांग को बढ़ावा देने तथा आर्थिक विकास को फिर से गति प्रदान करने के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन एवं मौद्रिक नीति उपायों के संयोजन की आवश्यकता होगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन अपस्फीति का उचित वर्णन करता है? (2010) (a) यह किसी मुद्रा के मूल्य में अन्य मुद्राओं की तुलना में अचानक गिरावट है। उत्तर: (c) |