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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    आंध्र प्रदेश की एक 74 वर्षीय महिला द्वारा पात्रे निषेचन/इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन के माध्यम से जुड़वाँ बच्चों को जन्म देना नैतिक चिकित्सा की दृष्टि से कितना उचित है? टिप्पणी कीजिये।

    26 Sep, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • पात्रे निषेचन/इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन के बारे में बताइये।

    • अधिक उम्र में IVF द्वारा बच्चे को जन्म देने से संबंधित नैतिक और चिकित्सीय मुद्दों को संबोधित कीजिये।

    • अंततः सारगर्भित निष्कर्ष लिखिये।

    पात्रे निषेचन/इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन निषेचन की एक कृत्रिम प्रक्रिया है। इसमें किसी मादा के अंडाशय से अंडे निकालकर उसका संपर्क द्रव माध्यम में शुक्राणुओं से कराया जाता है। इस प्रकार का निषेचन शरीर के बाहर किसी अन्य पात्र में कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडे को मादा के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है।

    हाल ही में आंध्र प्रदेश की एक 74 वर्षीय महिला ने IVF के माध्यम से जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया तथा IVF के माध्यम से बच्चों को जन्म देने वाली सबसे बुजुर्ग महिला बनी। चिकित्सक समुदाय ने इस उम्र में गर्भाधान पर नैतिक और चिकित्सीय चिंताओं को व्यक्त किया है।

    अधिक उम्र में गर्भाधान से जुड़े नैतिक और चिकित्सीय मुद्दे-

    • एक भारतीय महिला की औसत जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष और पुरुष की 69 वर्ष होती है। ऐसे में चिकित्सा समुदाय ने इस तरह के बुजुर्ग दंपति से पैदा होने वाले बच्चों के भविष्य पर चिंता व्यक्त की है।
    • वृद्धावस्था में गर्भधारण अन्य कई जोखिमों को जन्म दे सकता है जैसे- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, शरीर में ऐंठन, रक्तस्राव और हृदय संबंधी अन्य समस्याएँ।
    • एक वृद्ध महिला के गर्भ में नौ महीने तक भ्रूण को विकसित करने के लिये हार्मोन का इंजेक्शन लगाना पड़ता है, इसके अलावा इस उम्र की महिला स्तनपान भी नहीं करा सकती है।
    • कई लोग बेटियों के होने के बावजूद भी सिर्फ बेटे की चाह में अधिक उम्र में IVF के माध्यम से गर्भाधान पर बल देते हैं, जो कि समाज में पितृसत्ता को और अधिक मज़बूत करता है।

    हालाँकि बच्चे पैदा करने का सामाजिक दबाव, बुढ़ापे में बिना सहारे के जीने का डर और इकलौते बच्चे का खो जाना आदि अक्सर दंपतियों को इसके लिये प्रोत्साहित करता है। किंतु इस कदम से माँ और होने वाले बच्चे दोनों को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उठाना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त माँ-बाप की जल्दी मृत्यु से बच्चे के पालन-पोषण संबंधी समस्याएँ भी आ सकती हैं जो कि एक अबोध बालक के मूल अधिकारों का हनन होगा।

    निष्कर्षतः सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक, 2010 में IVF प्रक्रिया के संबंध में निर्धारित आयु सीमा का पालन किया जाना चाहिये। इसके साथ ही सरकार द्वारा वृद्धों की सुरक्षा हेतु मज़बूत कदम उठाए जाने चाहिये ताकि उनका बुढ़ापे में बिना सहारे के जीने का डर समाप्त हो सके तथा लोगों को भी लैंगिक समानता पर बल देते हुए पुत्र की चाह जैसे विचार त्यागने की ज़रूरत है।

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