सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खेल प्रशासन के राजनीतिकरण की निंदा
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय एमेच्योर कबड्डी महासंघ, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय ओलंपिक संघ, राज्य विषय, भारतीय राष्ट्रीय खेल संहिता मेन्स के लिये:खेल प्रशासन में न्यायिक निगरानी, भारतीय खेल महासंघों में राजनीतिकरण, खेल प्रशासन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने युवा मामले और खेल मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह AKFI के IKF द्वारा निलंबन के बीच भारत की एशियाई कबड्डी चैंपियनशिप 2025 में भागीदारी सुनिश्चित करे।
- यह निर्देश भारतीय एमेच्योर कबड्डी महासंघ (AKFI) को अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी महासंघ (IKF) द्वारा निलंबित किये जाने के बाद आया है, जिसमें न्यायालय ने खेल प्रशासन में राजनीतिक हस्तक्षेप और नौकरशाही नियंत्रण की आलोचना की है।
IKF द्वारा AKFI को निलंबित क्यों किया गया?
- AKFI: AKFI भारत में कबड्डी के लिये सर्वोच्च शासी निकाय है। यह राष्ट्रीय, इनडोर, बीच और सर्कल स्टाइल सहित सभी प्रकार की कबड्डी को नियंत्रित करने के साथ टूर्नामेंट आयोजित करने, टीमों का चयन करने एवं खेल के विकास की देखरेख करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- मुख्यालय: जयपुर, राजस्थान
- संबद्धता: भारतीय ओलंपिक संघ (IOA), एशियाई कबड्डी महासंघ (AKF), और अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी महासंघ (IKF)। AKFI IKF और AKF से प्राप्त दिशा-निर्देशों का पालन करता है।
- मान्यता: इसे युवा मामले और खेल मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त है।
- AKFI के संबंध में चिंताएँ: AKFI पर अपारदर्शी चुनाव, कुप्रबंधन एवं राजनेताओं द्वारा एकाधिकार के आरोप लगते हैं जिससे भाई-भतीजावाद और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- दिल्ली उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप: AKFI प्रबंधन की चिंताओं के बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस.पी. गर्ग को इसके मामलों की देखरेख के लिये प्रशासक नियुक्त किया।
- AKFI का निलंबन: IKF ने प्रशासनिक मुद्दों पर AKFI को निलंबित कर दिया, जिसमें निर्वाचित निकाय की अनुपस्थिति का हवाला दिया गया, जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय कबड्डी भागीदारी खतरे में पड़ गई।
- IKF ने आश्वासन दिया कि यदि प्रशासक के स्थान पर कोई निर्वाचित निकाय नियुक्त किया जाता है तो AKFI की संबद्धता बहाल कर दी जाएगी तथा भारत, ईरान चैंपियनशिप में भाग ले सकेगा।
नोट: वर्ष 2004 में स्थापित और जयपुर में मुख्यालय वाला IKF, कबड्डी का वैश्विक शासी निकाय है, जिसके 24 संबद्ध देश (भारत सहित) हैं।
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:
- सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एस.पी. गर्ग को दिसंबर 2023 के चुनावों से नव निर्वाचित निकाय को प्रभार सौंपने का निर्देश दिया।
- न्यायालय ने आगामी एशियाई कबड्डी चैंपियनशिप 2025 के कारण इसकी तात्कालिकता पर बल दिया तथा AKFI की शासी संस्था को तत्काल टीमों का चयन करने, प्रशिक्षण शिविरों की व्यवस्था करने तथा टूर्नामेंट में भारत की भागीदारी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि प्राधिकार हस्तांतरण का तात्पर्य AKFI चुनावों के समर्थन से नहीं है तथा इससे संबंधित मुद्दे निर्णय के लिये खुले हैं।
खेल प्रशासन के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की क्या चिंताएँ हैं?
- राजनीतिकरण: पूर्व राजनेता और नौकरशाह खेल निकायों पर हावी हो जाते हैं, जिससे खिलाड़ी कम प्रभावी हो जाते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि खेल संघों में सुधार तब होता है जब राजनेता या नौकरशाही द्वारा नियुक्त लोगों के बजाय खिलाड़ी ज़िम्मेदारी संभालते हैं।
- कुप्रबंधन: अपारदर्शी चुनाव प्रक्रिया, वित्तीय अनियमितताओं और कुछ व्यक्तियों द्वारा एकाधिकार के आरोप सामने आए हैं।
- AKFI जैसे संघ उचित रूप से निर्वाचित शासी निकायों के बिना कार्य करते हैं तथा खेल मानदंडों का उल्लंघन करते हैं जो भारतीय राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 के अनुरूप नहीं हैं।
- नियंत्रण और संतुलन न होना: स्पष्ट निगरानी या जवाबदेही के अभाव में, खेल निकाय पारदर्शिता के बिना कार्य करते हैं जैसा कि वर्ष 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्पष्ट हुआ, जहाँ केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने 14 परियोजनाओं में वित्तीय अनियमितताओं की रिपोर्ट की थी।
- एथलीटों पर प्रभाव: प्रशासनिक अक्षमताओं के कारण टीम चयन, प्रशिक्षण और टूर्नामेंट में भागीदारी में देरी से एथलीटों को नुकसान होता है।
- एथलीटों को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है लेकिन कमज़ोर शिकायत प्रणाली तथा देरी से की जाने वाली कार्यवाही के कारण इनको असुरक्षित महसूस होता है इसीलिये इसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
- खेल अवसंरचना: चूंकि खेल, राज्य का विषय है इसलिये पूरे भारत में इससे संबंधित अवसंरचना विकास के लिये कोई एक समान दृष्टिकोण नहीं है।
भारत की राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 क्या है?
इसे जानने के लिये यहाँ क्लिक करें: भारतीय राष्ट्रीय खेल संहिता 2011
आगे की राह
- लेखापरीक्षा: खेल महासंघों की मान्यता से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिये राजनयिक माध्यमों का प्रयोग करना तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थों को समाप्त करने के लिये केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) एवं इंटरपोल के तहत जाँच सुनिश्चित होनी चाहिये।
- सभी खेल महासंघों को संचालित करने के लिये स्पष्ट कानून और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ एक केंद्रीय नियामक निकाय की आवश्यकता है जिससे पारदर्शी शासन एवं निष्पक्ष तथा जवाबदेह प्रशासन के लिये सख्त निगरानी सुनिश्चित हो सके।
- एथलीटों को सशक्त बनाना: पारदर्शिता और जवाबदेहिता के क्रम में निर्णय लेने में एथलीटों की सक्रिय भूमिका होनी चाहिये।
- ओलंपिक चार्टर का पालन करना चाहिये जिसके तहत राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों (जैसे, भारत में IOA) में एथलीट प्रतिनिधियों को अनिवार्य बनाया गया है।
- महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना: लैंगिक समानता सुनिश्चित करने, कोटा स्थापित करने तथा खेल प्रशासन कॅरियर में महिलाओं को प्रोत्साहित करने के क्रम में सुरक्षित, समावेशी वातावरण विकसित करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारतीय खेल महासंघों में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा नौकरशाही नियंत्रण के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. खिलाड़ी ओलंपिक्स में व्यक्तिगत विजय और देश के गौरव के लिये भाग लेता है; वापसी पर विजेताओं पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नकद प्रोत्साहनों की बौछार की जाती है। प्रोत्साहन के तौर पर पुरस्कार कार्यविधि के तर्काधार के मुकाबले, राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज और उसके पोषण के गुणावगुण पर चर्चा कीजिये। (2014) |
CSS और राजकोषीय संघवाद
प्रिलिम्स के लिये:केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS), राजकोषीय संघवाद, अनुच्छेद 282, अनुच्छेद 270 और 275, वित्त आयोग, विनियोग अधिनियम, भारत की संचित निधि, योजना आयोग, नीति आयोग, सातवीं अनुसूची, अंतर-राज्य परिषद। मेन्स के लिये:केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS) और उनके कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे। |
स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
केंद्र ने पिछले हस्तांतरणों से 1.6 लाख करोड़ रुपए की अप्रयुक्त धनराशि पाए जाने के बाद, वर्ष 2025-26 के लिये राज्यों को केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के लिये व्यय में 91,000 करोड़ रुपए (योजनाओं के लिये बजट अनुमान का 18%) की कटौती की है।
- कई राज्यों ने इस निर्णय को राजकोषीय संघवाद के विपरीत बताया है और अनुच्छेद 282 की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं।
अनुच्छेद 282 क्या है?
- परिचय: यह संघ और राज्यों दोनों को किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिये अनुदान देने की अनुमति देता है, भले ही वह उद्देश्य उनके विधायी क्षेत्राधिकार से बाहर हो।
- कर हस्तांतरण (अनुच्छेद 270 और 275) के विपरीत, अनुच्छेद 282 के तहत अनुदान विवेकाधीन है और वित्त आयोग (FC) की सिफारिशों से बाध्य नहीं है।
- प्रारंभ में अप्रत्याशित आकस्मिकताओं के लिये इसका उपयोग किया गया था, तथा बाद की केंद्र सरकारों ने इसका उपयोग CSS को लागू करने के लिये किया।
- अनुच्छेद 270 और 275 के अनुसार वित्त आयोग संघीय कर राजस्व में राज्यों का हिस्सा निर्धारित करेगा।
- न्यायिक दृष्टिकोण: भीम सिंह मामले, 2010 में, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने FC सिफारिशों (अनुच्छेद 275) से परे भी, अनुच्छेद 282 के तहत विवेकाधीन अनुदान प्रदान करने की केंद्र की शक्ति को बरकरार रखा।
- संसद की विधायी क्षमता से परे विषयों के लिये भी अनुदान दिया जा सकता है, बशर्ते कि वे सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति करते हों।
- राम जवाया कपूर मामले, 1955 का हवाला देते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि भारत की संचित निधि (CFI) से व्यय को अधिकृत करने वाले विनियोग अधिनियम, अनुच्छेद 282 के तहत अनुदान को कानूनी रूप से उचित ठहराते हैं।
CSS राजकोषीय संघवाद को कैसे चुनौती देता है?
- विवेकाधीन CSS वित्तपोषण: अनुच्छेद 282 के तहत संघ या राज्य किसी भी सार्वजनिक उद्देश्य के लिये धन दे सकते हैं, भले ही उनके पास इस पर विधायी अधिकार न हो।
- नीति आयोग 2015 (पूर्ववर्ती योजना आयोग की तरह , जो संवैधानिक दर्जा न होने के बावजूद अनुदानों का मार्गदर्शन करता था), CSS डिजाइन को प्रभावित करना जारी रखता है।
- राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता का क्षरण: CSS में निधि उपयोग की शर्तें सख्त हैं, जिससे राज्यों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें अपनाने में लचीलापन सीमित हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, पोषण अभियान के अंतर्गत राज्य लक्ष्य समूहों या प्रमुख पोषण संकेतकों में परिवर्तन नहीं कर सकते।
- संसाधन-व्यय विषमता: 15वें वित्त आयोग (2021-26) में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि केंद्र के पास 63% संसाधन हैं लेकिन इसके द्वारा 38% व्यय किया जाता है, जबकि राज्यों के पास शेष 37% है लेकिन वे 62% व्यय वहन करते हैं।
- इससे राज्यों की CSS निधियों पर निर्भरता बढ़ जाती है तथा राज्य-विशिष्ट पहलें सीमित हो जाती हैं।
- प्राथमिकता संबंधी मुद्दे: CSS निधियों के लिये राज्यों को समतुल्य अनुदान उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है, जिससे इनके सनसाधनों का राज्य-प्राथमिकता वाले क्षेत्रों से इतर अन्य क्षेत्रों में व्यव हो जाता है।
- सहकारी संघवाद के लिये खतरा: संविधान सभा बहस के दौरान, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संघ और राज्यों के बीच समान भागीदारी पर ज़ोर दिया था लेकिन विवेकाधीन CSS अनुदान पर अत्यधिक निर्भरता से सहकारी संघवाद का संवैधानिक अभिप्राय प्रभावित होता है।
- उदाहरण के लिये, CSS दिशा-निर्देशों में केंद्रीय नेतृत्व को उजागर करने और केंद्रीय नियंत्रण को मज़बूत करने के लिये “ब्रांडिंग” को अनिवार्य किया गया हैं।
- संघ की नीतियों का विस्तार: राज्यों को नियंत्रित करने के लिये राजनीतिक साधन के रूप में CSS का उपयोग बढ़ता जा रहा है ।
- उदाहरण के लिये, वित्त मंत्रालय के वर्ष 2022 के दिशा-निर्देशों में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में विनिवेश के इच्छुक राज्यों के लिये 50,000 करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त ऋण शामिल था, जिसका कई राज्यों ने विरोध किया था।
- CSS फंडिंग का प्रसार: CSS फंड रिलीज़ वर्ष 2014-15 में कुल अंतरण के 7.5% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 47% हो गया, जिससे वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित हस्तांतरण में कमी आई।
- संविधान की सातवीं अनुसूची के विपरीत, कई CSS का कार्यक्षेत्र राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में विस्तारित है, जिससे राज्य के अधिकार क्षेत्र में केंद्र का अतिक्रमण होता है।
केन्द्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS) क्या हैं?
- परिचय: CSS को केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित किया जाता है, राज्यों द्वारा कार्यान्वित किया जाता है और इसके तहत संविधान की राज्य और समवर्ती सूचियों के अंतर्गत क्षेत्रों को कवर किया जाता है।
- चूँकि केंद्र सरकार के पास अधिक वित्तीय संसाधन हैं इसलिये इन योजनाओं से राज्य सरकारों के प्रयासों को अतिरिक्त सहायता मिलती है।
- राज्यों को केंद्रीय सहायता योजनाओं के लिये सभी अंतरण राज्य की समेकित निधि के माध्यम से किये जाते हैं।
- प्रकार: CSS को तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है :
- कोर ऑफ द कोर स्कीम: ये योजनाएँ सामाजिक समावेशन और संरक्षण के लिये सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिये, मनरेगा।
- कोर स्कीम: ये योजनाएँ कृषि, बुनियादी ढाँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे विभिन्न विकासात्मक क्षेत्रों पर केंद्रित हैं।
- उदाहरणार्थ, मध्यान्ह भोजन योजना (स्कूल पोषण कार्यक्रम), प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (ग्रामीण सड़कें) आदि।
- ऑप्शनल स्कीम: इसके अंतर्गत राज्य अपनी इच्छानुसार योजनाओं का चयन कर सकते हैं।
- उदाहरण: सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम आदि।
- वित्तपोषण स्वरूप: केंद्र अपने बजट का लगभग 12% CSS को आवंटित करता है, जिसमें विभिन्न केंद्र-राज्य अनुपातों में वित्तपोषण साझा किया जाता है:
- 60:40 (अधिकांश योजनाएँ)
- 80:20 (विशेष योजनाएँ)
- 90:10 (पूर्वोत्तर एवं विशेष श्रेणी राज्यों के लिये)
- केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्रक योजनाओं के बीच अंतर:
विशेषता |
केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (CSS) |
केंद्रीय क्षेत्रक योजनाएँ |
कार्यान्वयन |
राज्य सरकारों द्वारा |
केंद्र सरकार द्वारा |
वित्तपोषण स्रोत |
साझा वित्तपोषण (केंद्र एवं राज्य) |
केंद्र द्वारा पूर्णतः वित्तपोषित |
उदाहरण |
MGNREGA, PMAY, स्वच्छ भारत मिशन |
आगे की राह
- अनुच्छेद 282 पर न्यायिक स्पष्टता: सर्वोच्च न्यायालय को यह मूल्यांकन करना चाहिये कि क्या CSS से संघीय संतुलन पर प्रभाव पड़ता है तथा उन विशेष परिस्थितियों को स्थापित करना चाहिये जिनके अंतर्गत विवेकाधीन अनुदानों का उपयोग किया जा सकता है।
- CSS का युक्तिकरण: समान CSS को प्रभावी अम्ब्रेला योजनाओं में विलय करने के साथ अप्रभावी योजनाओं को समाप्त करने के क्रम में नियमित प्रभाव आकलन करना चाहिये।
- वित्तपोषण तंत्र की समीक्षा: राज्यों के वित्तीय बोझ को कम करने के क्रम में निधि-साझाकरण पैटर्न को संशोधित (विशेष रूप से सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिये) करना चाहिये और पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि (BRGF) बंद होने के बाद पिछड़े क्षेत्रों के लिये समर्थन को बहाल करना चाहिये।
- सहकारी संघवाद को मज़बूत करना: अंतर-राज्य परिषद और नीति आयोग के माध्यम से नियमित केंद्र-राज्य परामर्श पर ध्यान देना चाहिये तथा राज्यों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार CSS को अनुकूलित करने में अधिक लचीलापन प्रदान करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में राजकोषीय संघवाद पर केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के प्रभाव की चर्चा कीजिये। अनुच्छेद 282 के तहत विवेकाधीन अनुदान, राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: स्मार्ट इंडिया हैकथॉन, 2017 के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: B मेन्सप्रश्न: भारत के 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों ने राज्यों को अपनी राजकोषीय स्थिति में सुधार करने में किस प्रकार सक्षम बनाया है? (2021) प्रश्न: हाल के वर्षों में सहकारी परिसंघवाद की संकल्पना पर अधिकाधिक बल दिया जाता रहा है। विद्यमान संरचना में मौजूद असुविधाओं के बारे में बताते हुए सहकारी परिसंघवाद किस सीमा तक इन असुविधाओं का हल निकाल लेगा, इस पर प्रकाश डालें। (2015) |
फ्रीबीज़ और कल्याण के बीच संतुलन
प्रिलिम्स के लिये:सब्सिडी, RBI, स्वास्थ्य बीमा, क्रय शक्ति, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSP), राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003, ऑफ-बजट देयताएँ। मेन्स के लिये:फ्रीबीज़ और कल्याणकारी योजनाओं पर बहस तथा अर्थव्यवस्था पर उनका प्रभाव। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राजनीतिक दलों के बीच मतदाताओं को लुभाने के लिये फ्रीबीज़ या सब्सिडी का वादा करने का प्रचलन (जैसा कि 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में देखा गया है) बढ़ रहा है।
- फ्रीबीज़ या "रेवड़ी संस्कृति" पर बहस होती रहती है - कुछ लोग इन्हें विकास के लिये हानिकारक मानते हैं जबकि अन्य इन्हें सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिये आवश्यक मानते हैं।
- RBI द्वारा 'फ्रीबीज़' को "निःशुल्क प्रदान किये जाने वाले सार्वजनिक कल्याणकारी उपाय" के रूप में परिभाषित किया गया है।
फ्रीबीज़ सामाजिक-आर्थिक प्रगति में किस प्रकार सहायक है?
- महिला सशक्तीकरण: महिलाओं को नकद हस्तांतरण से वित्तीय स्वतंत्रता, निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि के साथ तत्काल आवश्यकताओं के लिये परिवार के सदस्यों पर निर्भरता कम होती है।
- मानव क्षमताओं में वृद्धि: निःशुल्क भोजन एवं स्वास्थ्य बीमा जैसी कल्याणकारी योजनाएँ अमर्त्य सेन के "क्षमता दृष्टिकोण" के अनुरूप हैं जिससे गरिमा, प्रतिरक्षा में वृद्धि होने के साथ स्वास्थ्य देखभाल का बोझ कम होता है।
- उपभोक्ता व्यय को बढ़ावा मिलना: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से मांग को बढ़ावा मिलता है तथा क्रय शक्ति में वृद्धि होती है और व्यय में वृद्धि के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
- गरीबी उन्मूलन: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और मध्याह्न भोजन जैसी खाद्य सुरक्षा योजनाएँ बुनियादी जीविका सुनिश्चित करने के साथ गरीबी को कम करने में भूमिका निभाती हैं।
- लक्षित कल्याणकारी उपाय अमीर और गरीब के बीच अंतराल को कम करने के साथ समावेशी विकास को बढ़ावा देते हैं।
- दीर्घकालिक लाभ: खराब स्वास्थ्य, व्यक्तिगत पीड़ा का कारण बनता है एवं स्वास्थ्य सेवा की मांग में वृद्धि से लोक संसाधनों पर दबाव पड़ता है। पोषण में शुरुआती निवेश से व्यक्तियों तथा समाज को दीर्घकालिक लाभ होता है।
फ्रीबीज़ विकास के लिये किस प्रकार अहितकर हो सकती हैं?
- राजस्व घाटे में उतरोत्तर बढ़ोतरी: फ्रीबीज़ अथवा नि:शुल्क सुविधाओं पर आधारित व्यय से राजकोषीय बोझ बढ़ता है, जिससे राज्यों के राजस्व अधिशेष में कमी आती है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2022-23 और वर्ष 2024-25 की अवधि में दिल्ली का राजस्व अधिशेष 35% कम हो गया।
- उच्च सब्सिडी व्यय: RBI ने चेतावनी दी है कि अनियंत्रित सब्सिडी के कारण बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की निधि अन्य क्षेत्रों में उपयोजित होती है तथा नई नि:शुल्क सुविधाओं के कारण वार्षिक लागत में 10,000 से 12,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होती है।
- कर का बढ़ता बोझ: सरकारें बढ़ते सरकारी व्यय को पूरा करने के लिये करों में वृद्धि कर सकती हैं, जिससे संभावित रूप से प्रयोज्य आय कम हो सकती है और मध्यम वर्ग की खपत प्रभावित हो सकती है।
- निवेश में कमी: नि:शुल्क सुविधाओं पर अत्यधिक व्यय से उपलब्ध संसाधन प्रभावित हो सकते हैं तथा राज्यों की महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना के निर्माण की क्षमता में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- संभाव्य ऋण चूक जोखिम: प्रभावित राजकोषीय स्थिति से राज्यों की उधार लेने की क्षमता प्रभावित होती है तथा ऋण चुकौती की उच्च लागत से ऋण चूक जोखिम बढ़ सकता है।
- इससे मांग में वृद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि लोग इस आशय के साथ वर्तमान में अधिक बचत करते हैं भविष्य के करों से सरकारी उधारी की लागत की भरपाई हो जाएगी (रिकार्डियन समतुल्यता)।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया का विकृत होना: कुछ व्यक्ति का यह तर्क है कि नि:शुल्क सुविधाएँ रिश्वतखोरी के समान होती हैं और मतदाताओं को उचित निर्णय लेने से हतोत्साहित करती हैं।
फ्रीबीज़ से संबंधित न्यायिक निर्णय क्या है?
- एस. सुब्रमण्यम बालाजी केस, 2013: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि निःशुल्क सुविधाएँ विधायी नीति के अंतर्गत आती हैं और न्यायिक जाँच से बाहर हैं। इसमें इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि कुछ निःशुल्क वस्तुएँ/सुविधाएँ राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों (DPSP) के अनुरूप हैं।
- निःशुल्क सुविधाओं पर विशेषज्ञ पैनल: वर्ष 2022 में, एक लोकहित वाद में दावा किया गया कि निःशुल्क सुविधाओं से स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन प्रभावित होते हैं तथा हितधारकों की सिफारिशें एकत्र करने हेतु एक विशेषज्ञ पैनल का प्रस्ताव रखा गया।
निःशुल्क सुविधाएँ कल्याणकारी योजनाओं से किस प्रकार भिन्न हैं?
मानदंड |
निःशुल्क सुविधाएँ |
कल्याणकारी योजनाएँ |
संकल्पनात्मक भेद |
प्रायः राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से निःशुल्क प्रदान की जाने वाली वस्तुएँ या सेवाएँ। |
सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिये सरकारी पहल। |
मेरिट बनाम नॉन-मेरिट गुड्स |
नॉन-मेरिट गुड्स जैसे टीवी, लैपटॉप, मिक्सर ग्राइंडर और नकद सहायता। |
शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण रोज़गार जैसी मेरिट गुड्स। |
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव |
इससे अल्पावधि लाभ मिलता है, लेकिन संरचनात्मक आर्थिक सुधार का अभाव होता है। |
गरीबी कम होती है, जीवन स्तर में सुधार होता है, और उत्पादकता बढ़ती है। |
राजकोषीय स्थिरता |
इससे अत्यधिक उधारी और राजस्व घाटा हो सकता है। |
आर्थिक समावेशन के लिये नीतिगत समर्थन के साथ बजट तैयार किया गया। |
राजनीतिक प्रेरणाएँ |
प्रायः मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये चुनाव से पहले वितरित किया जाता है। |
दीर्घकालिक नीति नियोजन के साथ संरचनात्मक विकास पर लक्ष्य। |
कार्यान्वयन चुनौतियाँ |
अविवेकपूर्ण तरीके से वितरित किया जाता है, जिससे कभी-कभी गैर-जरूरतमंद वर्ग को भी लाभ पहुँचता है। |
असमानताओं को दूर करने के लिये आवश्यक। |
जवाबदेही और शासन |
पारदर्शिता का अभाव, जिसके कारण वित्तीय कुप्रबंधन होता है। |
राजकोषीय योजना, समन्वय और निरीक्षण के अधीन। |
नोट:
- मेरिट गुड्स वे वस्तुएँ और सेवाएँ हैं जिनके सकारात्मक बाह्यताएँ होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे न केवल व्यक्तियों को बल्कि पूरे समाज को लाभ पहुँचाती हैं। जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, खाद्य सुरक्षा आदि।
- डिमेरिट गुड्स वे वस्तुएँ और सेवाएँ हैं जिनके उपभोग से उपभोक्ता और समाज के अन्य लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ, शराब।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: फ्रीबीज़ वस्तुओं पर नैतिक परिप्रेक्ष्य क्या है?
आगे की राह
- राजकोषीय सुधार: अनियंत्रित राजकोषीय व्यय को रोकने के लिये राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 को मज़बूत बनाया जाएगा।
- स्थायी सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने के लिये समयबद्ध एवं लक्षित सब्सिडी लागू करना।
- कल्याण और फ्रीबीज़ सुविधाओं को परिभाषित करना: सामाजिक उपयोगिता, दीर्घकालिक प्रभाव और राजकोषीय स्थिरता को मानदंड के रूप में उपयोग करते हुए, आवश्यक कल्याण को चुनावी फ्रीबीज़ सुविधाओं से अलग करने के लिये नीतिगत दिशा-निर्देशों को परिभाषित करना।
- संस्थागत तंत्र को मज़बूत करना: सार्वजनिक व्यय की निगरानी के लिये वित्तीय नियामकों को मज़बूत करना तथा ऑफ-बजट उधारी और प्रच्छन्न सब्सिडी (जैसे, विद्युत् की कम कीमत) पर नज़र रखना।
- कल्याण और राजकोषीय विवेक में संतुलन: आर्थिक स्थिरता के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना, यह सुनिश्चित करना कि सब्सिडी और सामाजिक योजनाएँ निर्भरता के बजाय क्षमता निर्माण को बढ़ावा दें।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में चुनावी फ्रीबीज़ योजनाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर चर्चा कीजिये। वे कल्याणकारी योजनाओं से किस प्रकार भिन्न हैं? |