शासन व्यवस्था
भारत में फ्रीबीज़ कल्चर
- 28 Oct 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स:सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), मिड-डे मिल स्कीम, नीति आयोग, भारत निर्वाचन आयोग मेन्स:चुनावों में फ्रीबीज़- उनके फायदे, नुकसान और आगे की राह |
स्रोत: लाइवमिंट
चर्चा में क्यों?
चुनावी अभियानों में फ्रीबीज़ (मुफ्त वस्तु) भारतीय राजनीति में विभाजनकारी मुद्दा बनी हुई है। भारत के कई शहरों में हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण से स्पष्ट होता है कि शहरी भारतीयों में मुफ्त वस्तुओं के प्रति मिश्रित दृष्टिकोण है, खासकर राजकोषीय ज़िम्मेदारी पर बढ़ती बहस के संदर्भ में।
- वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री द्वारा "रेवड़ी संस्कृति" की आलोचना से चुनाव-प्रेरित मुफ्त वस्तुओं की स्थिरता और नैतिक निहितार्थ पर चर्चा तीव्र हो गई है।
- मुफ्त वस्तु अल्पकालिक वितरण होते हैं जिनका उद्देश्य मतदाताओं को आकर्षित करना होता है, तथा इनमें अक्सर स्थायी प्रभाव का अभाव होता है, जबकि कल्याणकारी नीतियों में स्थायी आर्थिक और सामाजिक खुशहाली को बढ़ावा दिया जाता है।
नोट:
- सर्वेक्षण में आधे से अधिक (56%) उत्तरदाताओं ने मुफ्त वस्तुओं को अनावश्यक बताया, 78% ने इन्हें मत प्राप्त करने की रणनीति बताया तथा 61% ने राष्ट्रीय वित्त पर इनके प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की।
- धनी उत्तरदाताओं (84%) ने मुफ्त वस्तुओं को आर्थिक रूप से हानिकारक माना, जबकि निम्न आय वाले उत्तरदाताओं में से केवल 46% ने इस दृष्टिकोण को साझा किया। निम्न आय वर्ग के लोग आवश्यक वस्तुओं, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा पर सब्सिडी को उचित मानते हैं, जो धनी उत्तरदाताओं के विचारों से अलग है।
मुफ्त वस्तु और कल्याणकारी नीतियों के बीच क्या अंतर है?
मुफ्त वस्तु |
कल्याणकारी नीतियाँ |
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फ्रीबीज़ से जुड़े सकारात्मक पहलू क्या हैं?
- निम्न वर्ग का उत्थान: अपेक्षाकृत निम्न विकास स्तर और उच्च गरीबी दर वाले राज्यों में, इस प्रकार की फ्रीबीज़ समाज के निम्न वर्ग को सहायता प्रदान करने और उनके उत्थान में विशेष रूप से मूल्यवान हो जाती हैं।
- कल्याणकारी योजनाओं का आधार: मुफ्त सुविधाओं में न केवल चुनाव-पूर्व वादे शामिल हैं, बल्कि कई सेवाएँ भी शामिल हैं जो सरकार नागरिकों के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों (राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों) को पूरा करने के लिये प्रदान करती है।
- मध्याह्न भोजन योजना पहली बार वर्ष 1956 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के.कामराज द्वारा शुरू की गई थी और एक दशक बाद इसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया गया था।
- आंध्र प्रदेश में एन टी रामाराव की 2 रुपये किलो चावल योजना ने आज के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम की नींव रखी।
- तेलंगाना की रायथु बंधु और ओडिशा की कालिया(KALIA) योजनाओं ने किसान सहायता के लिये प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के अग्रदूत के रूप में कार्य किया।
- उद्योगों को बढ़ावा: तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्य महिलाओं को सिलाई मशीन, साड़ियाँ और साइकिलें उपलब्ध कराते हैं, जिससे इन उद्योगों की बिक्री को बढ़ावा मिलता है, जिसे संबंधित उत्पादन के कारण अपव्यय के बजाय उत्पादक निवेश माना जा सकता है।
- उन्नत सामाजिक कल्याण: फ्रीबीज़ से वंचित और कम आय वाले लोगों को भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ और वस्तुएँ प्रदान करके सहायता मिलती है।
- महिलाओं के लिये बस पास जैसी फ्रीबीज़ सुविधाएँ महिलाओं को कार्यबल में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं, जिससे आर्थिक रूप से स्थिर परिवार बन सकते हैं और महिला सशक्तीकरण में वृद्धि हो सकती है।
- शिक्षा और कौशल विकास तक पहुँच में वृद्धि: साइकिल और लैपटॉप जैसी वस्तुओं का वितरण करके,सरकारें विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक पहुँच में सुधार करती हैं।
- उदाहरण के लिये, छात्रों के बीच लैपटॉप वितरित करने जैसी मुफ्त सुविधाएँ (जैसा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है) उनकी उत्पादकता, ज्ञान और कौशल को बढ़ा सकती हैं।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार और पश्चिम बंगाल में स्कूली छात्राओं को साइकिल वितरित करने से स्कूल छोड़ने की दर में उल्लेखनीय कमी आई है, उपस्थिति बढ़ी है और सीखने के परिणामों में सुधार हुआ है।
- राजनीतिक सहभागिता और सार्वजनिक विश्वास को मज़बूत करना: फ्रीबीज़ सरकार की जवाबदेही और नागरिकों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशीलता प्रदर्शित करके राजनीतिक जागरूकता और सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में फ्रीबीज़ से शासन के प्रति जनता की संतुष्टि में वृद्धि के साथ राजनीतिक भागीदारी और मतदान प्रतिशत में वृद्धि हुई।
फ्रीबीज़ से जुड़े नकारात्मक पहलू क्या हैं?
- सार्वजनिक वित्त पर बोझ: फ्रीबीज़ के वितरण से सार्वजनिक वित्त पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिसकी लागत विभिन्न राज्यों में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.1% से 2.7% तक होती है। आंध्र प्रदेश और पंजाब जैसे कुछ राज्य अपने राजस्व का 10% से अधिक सब्सिडी के लिये आवंटित करते हैं।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के विरुद्ध: चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से अतार्किक फ्रीबीज़ का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, समान अवसर उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को बाधित करता है तथा चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को दूषित करता है।
- यह एक अनैतिक प्रथा है जो मतदाताओं को रिश्वत देने के समान है।
- संसाधन आवंटन में विकृति: फ्रीबीज़ उत्पादक क्षेत्रों की उपेक्षा कर संसाधनों का गलत आवंटन कर सकती हैं, जिससे आर्थिक विकास और आवश्यक बुनियादी ढाँचे के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है। नीति आयोग ने उत्तर प्रदेश में लैपटॉप जैसी सब्सिडी की आलोचना करते हुए कहा कि इससे शिक्षा की तत्काल जरूरतों पर असर पड़ता है।
- निर्भरता की संस्कृति: मुफ्त चीजें निर्भरता की संस्कृति को बढ़ावा दे सकती हैं, तथा आत्मनिर्भरता और उद्यमशीलता को हतोत्साहित कर सकती हैं, जो टिकाऊ आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- जवाबदेही में कमी: वे शासन में जवाबदेही को कम कर सकते हैं, क्योंकि राजनीतिक दल प्रणालीगत मुद्दों और सार्वजनिक सेवा वितरण में विफलताओं से ध्यान हटाने के लिये मुफ्त सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं।
- पर्यावरणीय प्रभाव: मुफ़्त बिजली देने से प्राकृतिक संसाधनों, जैसे पानी और बिजली का अत्यधिक उपयोग हो सकता है, जिससे संरक्षण के लिये प्रोत्साहन कम हो सकता है और प्रदूषण बढ़ सकता है। उदाहरण के लिये, पंजाब में किसानों को मुफ़्त बिजली देने से संसाधनों का अत्यधिक उपयोग हुआ है और बिजली उपयोगिता से सेवा की गुणवत्ता में कमी आई है।
फ्रीबीज़ पर नैतिक दृष्टिकोण क्या है?
- सरकार:
- नैतिक उत्तरदायित्व: समाज के वंचित वर्गों का उत्थान करना सरकार का नैतिक दायित्व है। कल्याणकारी उपाय प्रदान करना इस कर्तव्य को पूरा करने के रूप में देखा जा सकता है, विशेषकर गरीबी और असमानता को दूर करने में।
- हालाँकि, वास्तविक कल्याण और वोट हासिल करने के उद्देश्य से की जाने वाली लोकलुभावनवादिता के बीच एक महीन रेखा है।
- जवाबदेहिता और पारदर्शिता: सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ऐसी योजनाएँ पारदर्शी, लक्षित और टिकाऊ हों तथा राजनीतिक लाभ के लिये सार्वजनिक धन का दुरुपयोग न हो।
- प्रोत्साहनों का विरूपण: फ्रीबीज़ बाजार की गतिशीलता को विकृत कर सकते हैं, जिससे काम और उत्पादकता के प्रति हतोत्साहन उत्पन्न हो सकता है।
- नैतिक शासन को निर्भरता के स्थान पर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना चाहिये तथा नागरिकों को उत्पादक आर्थिक गतिविधियों में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- नैतिक उत्तरदायित्व: समाज के वंचित वर्गों का उत्थान करना सरकार का नैतिक दायित्व है। कल्याणकारी उपाय प्रदान करना इस कर्तव्य को पूरा करने के रूप में देखा जा सकता है, विशेषकर गरीबी और असमानता को दूर करने में।
- नागरिकों का दृष्टिकोण:
- नागरिकों का उत्तरदायित्व: हालाँकि नागरिक फ्रीबीज़ से लाभान्वित हो सकते हैं, लेकिन उनसे उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार करने की भी अपेक्षा की जाती है, जैसे वित्त का बुद्धिमानीपूर्वक प्रबंधन करना और अपनी परिस्थितियों को सुधारने के लिये उत्पादक साधनों का प्रयास करना।
- सरकारी सहायता पर निर्भरता व्यक्तिगत और सामुदायिक विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
- समानता और न्याय: फ्रीबीज़ के आवंटन का विश्लेषण समानता के परिप्रेक्ष्य से किया जाना चाहिये।
- नैतिक विचारों में यह मूल्यांकन करना शामिल है कि क्या ये उपाय अन्य की तुलना में विशिष्ट समूहों को लाभ पहुँचाते हैं और क्या वे गरीबी के अंतर्निहित कारणों से प्रभावी रूप से निपटते हैं।
- सार्वजनिक धारणा और सामाजिक मूल्य: फ्रीबीज़ कल्चर सामाजिक मूल्यों को प्रभावित कर सकती है, तथा उत्तरदायित्व के बजाय अधिकार संबंधी मानसिकता को बढ़ावा दे सकती है।
- इससे नागरिक सहभागिता और सामुदायिक कल्याण पर दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- नागरिकों का उत्तरदायित्व: हालाँकि नागरिक फ्रीबीज़ से लाभान्वित हो सकते हैं, लेकिन उनसे उत्तरदायित्वपूर्ण व्यवहार करने की भी अपेक्षा की जाती है, जैसे वित्त का बुद्धिमानीपूर्वक प्रबंधन करना और अपनी परिस्थितियों को सुधारने के लिये उत्पादक साधनों का प्रयास करना।
आगे की राह
- लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ बनाना: भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) की स्वायत्तता को न केवल कागजों पर बल्कि सार रूप में भी सुद्रंढ करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, जिससे चुनावों के दौरान मुफ्त वितरण की प्रभावी निगरानी और विनियमन सुनिश्चित हो सके।
- मतदाता जागरूकता बढ़ाना: मतदाता शिक्षा और जागरूकता पहल को बढ़ावा देने से मतदाताओं को अल्पकालिक प्रोत्साहनों से प्रभावित होने के स्थान पर राजनीतिक दलों के दीर्घकालिक विकास एजेंडे के आधार पर सूचित निर्णय लेने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
- नीतिगत केंद्रण में बदलाव: राजनीतिक दलों को लोकलुभावन वादों की तुलना में टिकाऊ, दीर्घकालिक नीति नियोजन और विकास को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करने से सार्वजनिक परिचर्चा तत्काल लेकिन अस्थायी लाभों के बजाय सार्थक विकास उद्देश्यों की ओर स्थानांतरित हो सकती है।
- पारदर्शी शासन सुनिश्चित करना: कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेहिता पर बल देने से भ्रष्टाचार कम हो सकता है और यह सुनिश्चित हो सकता है कि लक्षित लाभार्थियों को सहायता मिले, जिससे सरकारी कार्यक्रमों में जनता का विश्वास बढ़ेगा।
- सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को सुदृढ़ करना: फ्रीबीज़ पर अत्यधिक निर्भरता के बजाय, सरकार को सामाजिक सुरक्षा तंत्रों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जैसे कि गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल, सुदृढ़ शिक्षा प्रणाली, रोज़गार सृजन और व्यापक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, ताकि सामाजिक-आर्थिक असमानता के मूल कारणों का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सके।
निष्कर्ष
शहरी भारतीयों में फ्रीबीज़ के प्रति जटिल दृष्टिकोण चुनावी वादों और राजकोषीय उत्तरदायित्व के बीच तनाव को रेखांकित करता है। जबकि मतदाता कल्याण प्रावधानों में संतुलन की मांग करते हैं, राजनीतिक दलों को अपने अभियानों को स्थायी आर्थिक उद्देश्यों के साथ संरेखित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है। जैसे-जैसे भारत का लोकतांत्रिक ताना-बाना विकसित होता है, फ्रीबीज़ पर चल रही बहस आने वाले राज्य और राष्ट्रीय चुनावों में कल्याण और राजकोषीय नीतियों को आकार दे सकती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिये राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज़ का उपयोग करने के नैतिक और प्रशासनिक निहितार्थ क्या हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सQ. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :(2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सQ. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (2022) |