शासन व्यवस्था
भारत में सब्सिडी के युक्तिकरण की आवश्यकता
- 15 Jan 2025
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यह एडिटोरियल 14/01/2025 को द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित "Subsidy reforms need a fresh push, open-ended sops are irrational" पर आधारित है। इस लेख में खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में स्थायी अकुशलता को रेखांकित करते हुए, लक्षित LPG सब्सिडी और ईंधन मूल्य विनियमन जैसे सुधारों पर प्रकाश डाला गया है, ताकि भारत के बदलते सब्सिडी परिदृश्य की तस्वीर पेश की जा सके। वित्त वर्ष 2024 में विहित सब्सिडी में बजट के 9.3% तक गिरावट हुई है, जिसे GDP के 1% से कम करने के लिये और अधिक युक्तिकरण की आवश्यकता है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सब्सिडी परिदृश्य, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, PM-किसान सम्मान निधि, पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, PM-कुसुम, फेम-II चरण योजना, वनबंधु कल्याण योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - “पर ड्राप मोर क्रॉप” (PDMC) योजना, आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण, जननी सुरक्षा योजना, PM-WANI योजना मेन्स के लिये:विकास और समानता को बढ़ावा देने में सरकारी सब्सिडी के प्रमुख लाभ, सरकारी सब्सिडी से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ। |
भारत के सब्सिडी परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण सुधार हुए हैं, जिसमें ईंधन मूल्य विनियमन, सुव्यवस्थित LPG सब्सिडी और प्रौद्योगिकी-संचालित वितरण प्रणाली शामिल हैं। हालाँकि, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत खाद्य सब्सिडी में अक्षमताओं को लक्षित करने और बढ़ती लागत के बावजूद स्थिर उर्वरक MRP लागू करने जैसी चुनौतियाँ भी बनी हुई हैं। विहित सब्सिडी वित्त वर्ष 2023 में बजट के 12.7% से घटकर वित्त वर्ष 24 में 9.3% हो गई है। वास्तविक लाभार्थियों के समर्थन को कम किये बिना सब्सिडी में सकल घरेलू उत्पाद के 1% से नीचे के स्तर को और अधिक तर्कसंगत बनाने के लिये लक्षित उपायों की आवश्यकता है।
सब्सिडी क्या है?
- सब्सिडी के संदर्भ में: सब्सिडी सरकार द्वारा व्यक्तियों, व्यवसायों या क्षेत्रों को सार्वजनिक कल्याण, आर्थिक विकास और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिये प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता या लाभ हैं।
- सब्सिडी का उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं की लागत को कम करना, कमज़ोर आबादी को सहायता प्रदान करना तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप गतिविधियों जैसे: कृषि उत्पादन, नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण तथा औद्योगिक विकास, को प्रोत्साहित करना है।
- ये प्रत्यक्ष (नकद भुगतान) या अप्रत्यक्ष (कर छूट या मूल्य समर्थन) हो सकते हैं।
- प्रकार:
सब्सिडी के प्रमुख प्रकार |
विवरण |
उदाहरण |
प्रत्यक्ष सब्सिडी |
वित्तीय सहायता सीधे लाभार्थियों को अंतरित की जाती है। |
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अप्रत्यक्ष सब्सिडी |
कर छूट, कम शुल्क आदि के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान की गई। |
आवास और बीमा जैसे निवेशों के लिये धारा 80C के तहत कर छूट। |
इनपुट-आधारित सब्सिडी |
उर्वरक, बीज, बिजली और सिंचाई जैसी लागतों को कम करना। |
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उपभोग-आधारित सब्सिडी |
आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को जनता के लिये सस्ती दर पर उपलब्ध कराना। |
NFSA के अंतर्गत सब्सिडी वाला अनाज (2-3 रुपए प्रति किलोग्राम), भारतीय रेलवे द्वारा वरिष्ठ नागरिकों के लिये सब्सिडी वाली रेल टिकटें। |
उत्पादन-संबंधी सब्सिडी |
आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा देने के लिये विशिष्ट क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देना। |
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निर्यात सब्सिडी |
वैश्विक बाज़ारों में निर्यात को प्रतिस्पर्द्धी बनाकर उसे प्रोत्साहित करना। |
निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों और करों में छूट (RoDTEP) योजना |
पार सब्सिडी |
एक समूह के लिये उच्च कीमतें दूसरे समूह के लिये कम कीमतों को सब्सिडी देती हैं। |
रेलवे द्वारा माल ढुलाई महंगी कर यात्री किराये पर अतिरिक्त सब्सिडी देना |
जलवायु एवं पर्यावरण सब्सिडी |
पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं और नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण के लिये समर्थन। |
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये FAME-II योजना, PM-KUSUM के अंतर्गत सौर पंपों के लिये सब्सिडी। |
खाद्य एवं पोषण सब्सिडी |
कमज़ोर आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण सुनिश्चित करना। |
मध्याह्न भोजन योजना (PM पोषण), ICDS के तहत आंगनवाड़ी पोषण कार्यक्रम। |
क्षेत्रीय सब्सिडी |
समान विकास को बढ़ावा देने के लिये पिछड़े क्षेत्रों को प्रोत्साहन। |
पूर्वोत्तर औद्योगिक और निवेश प्रोत्साहन नीति, वनबंधु कल्याण योजना के तहत जनजातीय सब्सिडी |
विकास को बढ़ावा देने और समानता सुनिश्चित करने में सरकारी सब्सिडी के प्रमुख लाभ क्या हैं?
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और भुखमरी को कम करना: विशेष रूप से खाद्य पर सरकारी सब्सिडी यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों को किफायती पोषण सुलभ हो।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से वितरित सब्सिडी वाले अनाज और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) जैसी योजनाओं ने कोविड-19 जैसे संकट के दौरान भुखमरी को काफी कम कर दिया है।
- उदाहरण के लिये, PMGKAY के तहत 810 मिलियन लाभार्थियों को निशुल्क अनाज आवंटित होता है। वित्त वर्ष 2025 में, खाद्य सब्सिडी व्यय 2.25 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है, जो वैश्विक मुद्रास्फीति और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के बीच खाद्य सुरक्षा पर सरकार के फोकस को दर्शाता है।
- किसानों को सहायता प्रदान करना और कृषि उत्पादकता बढ़ाना: उर्वरकों, सिंचाई और बिजली पर कृषि सब्सिडी किसानों के लिये किफायती इनपुट लागत सुनिश्चित करती है, जिससे वे लाभप्रदता बनाए रखने तथा उपज बढ़ाने में सक्षम होते हैं।
- वर्ष 2022 में, केंद्र ने कीमतों में उछाल के कारण उर्वरक सब्सिडी को दोगुने से अधिक बढ़ा दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि किसानों को मुद्रास्फीति के दबाव से बचाया जा सके।
- हाल ही में, केंद्र ने डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) पर 3,500 रुपए प्रति टन की विशेष सब्सिडी को एक अतिरिक्त वर्ष के लिये बढ़ा दिया है, जो 1 जनवरी, 2025 से शुरू हो गया है।
- इसी प्रकार, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - “पर ड्राप मोर क्रॉप” (PDMC) योजना के तहत सरकार इन प्रणालियों को स्थापित करने के लिये लघु और सीमांत किसानों के लिये 55% तथा अन्य के लिये 45% की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- वर्ष 2022 में, केंद्र ने कीमतों में उछाल के कारण उर्वरक सब्सिडी को दोगुने से अधिक बढ़ा दिया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि किसानों को मुद्रास्फीति के दबाव से बचाया जा सके।
- स्वच्छ ऊर्जा और संवहनीयता को बढ़ावा देना: सौर और पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में सब्सिडी, हरित ऊर्जा में परिवर्तन को गति प्रदान करती है तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करती है।
- उदाहरण के लिये, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) किसानों के लिये सौर पंपों पर सब्सिडी देता है, जिससे डीज़ल की खपत और भूजल की कमी कम होती है।
- इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है तथा ऊर्जा समानता सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिये, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) किसानों के लिये सौर पंपों पर सब्सिडी देता है, जिससे डीज़ल की खपत और भूजल की कमी कम होती है।
- किफायती स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा को सक्षम बनाना: स्वास्थ्य सेवा में सब्सिडी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करती है, जिससे जेब से होने वाले खर्च का भार कम होता है।
- उदाहरण के लिये, आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य आश्वस्ति योजना है, जो द्वितीयक और तृतीयक स्तरीय देखभाल अस्पताल में भर्ती के लिये प्रति परिवार सालाना 5,00,000 रुपए प्रदान करती है तथा भारत के निचले 40% वर्ग के 50 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को कवर करती है।
- लक्षित कल्याण के माध्यम से असमानता को कम करना: सब्सिडी सीमांत समूहों के लिये बुनियादी सेवाओं और वस्तुओं को सुनिश्चित करके असमानताओं को कम करती है, इस प्रकार सामाजिक समानता को बढ़ावा देती है।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) के अंतर्गत LPG सब्सिडी से 9.6 करोड़ से अधिक परिवारों को भोजन पकाने के स्वच्छ ईंधन की सुविधा उपलब्ध हुई, जिससे घरेलू प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम में काफी कमी आई।
- मार्च 2024 से LPG की कीमतों में हाल ही में हुए स्थिरीकरण से उज्ज्वला लाभार्थियों के लिये रिफिल दरों में सुधार हुआ है तथा यह बढ़कर प्रति वर्ष 4 रिफिल हो गई है, जिससे दीर्घकालिक रूप से इसका अंगीकरण सुनिश्चित हो गया है।
- इससे ग्रामीण भारत में महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकेगा और लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
- औद्योगिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा देना: विनिर्माण और MSME जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में सब्सिडी से उत्पादन को बढ़ावा मिलता है, रोज़गार का सृजन होता है तथा भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिये, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना ने 14 प्रमुख क्षेत्रों (जैसे, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मा) में 1.97 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये और इससे 60 लाख से अधिक नौकरियाँ उत्पन्न होने तथा GDP वृद्धि में बहुत बड़े योगदान की उम्मीद है।
- भारत के स्मार्टफोन निर्यात ने एक नया मानक स्थापित किया है, जो अक्तूबर 2024 में 2 बिलियन डॉलर के आँकड़े को पार कर गया, जिसका श्रेय PLI योजना को दिया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण को कम करना: पर्यावरणीय सब्सिडी हानिकारक प्रथाओं पर निर्भरता को कम करती है और संधारणीय विकल्पों को प्रोत्साहित करती है।
- हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण (FAME-II) योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिये सब्सिडी से वित्त वर्ष 2024 में 1.67 मिलियन यूनिट EV की बिक्री हुई है, जिससे CO₂ उत्सर्जन में कमी आई है।
- इसी प्रकार, नमामि गंगे के तहत वनरोपण और स्वच्छ जल पहल के लिये सब्सिडी से नदी के स्वास्थ्य तथा भू-जल पुनर्भरण में सुधार हुआ है, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय समानता को बढ़ावा मिला है।
- शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से मानव पूंजी को सुदृढ़ बनाना: शिक्षा सब्सिडी से वंचित छात्रों के लिये बाधाएँ कम होती हैं, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच बढ़ती है और दीर्घकालिक आर्थिक संभावनाएँ बढ़ती हैं।
- उदाहरण के लिये, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिये छात्रवृत्ति और PM पोषण (मध्याह्न भोजन) जैसी योजनाओं के अंतर्गत सब्सिडी से विशेष रूप से लड़कियों में, नामांकन एवं प्रतिधारण दर में वृद्धि हुई है।
- हालिया आँकड़े बताते हैं कि उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात 28.3% तक पहुँच गया है।
- महिलाओं और सीमांत समुदायों को सशक्त बनाना: महिलाओं और सीमांत समूहों पर लक्षित सब्सिडी योजनाएँ समावेशिता एवं सशक्तीकरण को बढ़ावा देती हैं।
- उदाहरण के लिये, स्टैंड-अप इंडिया सब्सिडी ने 1.8 लाख से अधिक महिला उद्यमियों को सहायता प्रदान की है, जिससे उन्हें किफायती ऋण तक पहुँच तथा क्षमता निर्माण में मदद मिली है।
- इसी प्रकार, जननी सुरक्षा योजना जैसी योजनाओं के तहत मातृ स्वास्थ्य देखभाल के कारण मातृ मृत्यु दर वर्ष 2014 में प्रति लाख जीवित जन्मों पर 130 से घटकर वर्ष 2018-20 में 97 हो गई, जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिला है।
- समावेशी डिजिटल परिवर्तन को सुविधाजनक बनाना: डिजिटल क्षेत्र में सब्सिडी, वंचित क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी और कनेक्टिविटी तक पहुँच सुनिश्चित करती है, जिससे डिजिटल विभाजन को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये, PM-WANI योजना वाई-फाई हॉटस्पॉट पर सब्सिडी देती है, जिससे ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँच सुनिश्चित होती है।
- भारत का डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र, जिसमें दिसंबर 2024 तक UPI लेनदेन 23.25 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, छोटे व्यापारियों के लिये सब्सिडी और प्रोत्साहन से मजबूत हुआ है, जिससे वित्तीय समावेशन एवं डिजिटल सशक्तीकरण को बढ़ावा मिला है।
सरकारी सब्सिडी से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- राजकोषीय तनाव और संसाधनों का अनुचित आवंटन: सरकारी सब्सिडी सार्वजनिक वित्त पर भारी बोझ डालती है, जिससे प्रायः स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी अवसंरचना जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से संसाधन कम कर दिये जाते हैं।
- सरकार वित्त वर्ष 2025 में प्रमुख सब्सिडी पर लगभग 4.1-4.2 लाख करोड़ रुपए खर्च करेगी, जिसमें खाद्य सब्सिडी सबसे प्रमुख होगी।
- जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 1.84% पर स्थिर बना हुआ है, जो वैश्विक औसत 6% से काफी नीचे है।
- अनुचित लक्ष्य निर्धारण और फर्ज़ी लाभार्थी: प्रायः अकुशलता के कारण सब्सिडी इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाती, जिसके परिणामस्वरूप समावेशन त्रुटियाँ और लीकेज होती हैं।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA) का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्र की 75% और शहरी क्षेत्र की 50% आबादी को कवर करना है; हालाँकि, अयोग्य लाभार्थियों को शामिल करने के संबंध में चिंताएँ बनी हुई हैं।
- उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के माध्यम से परिवारों को वितरण के लिये निर्धारित कुल सब्सिडी वाले चावल और गेहूँ का 40% से अधिक हिस्सा खुले बाज़ारों में भेज दिया जाता है तथा उज्ज्वला योजना के तहत LPG सब्सिडी में भी सीमांत समूह तक अपर्याप्त वितरण के कारण ऐसी ही चुनौतियाँ मौजूद हैं।
- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि “सरकार द्वारा कल्याण और गरीबी उन्मूलन पर व्यय किये गए प्रत्येक रुपए में से केवल 15 पैसे ही वांछित लाभार्थियों तक पहुँच पाते हैं।”
- अति प्रयोग और संसाधनों के ह्रास को बढ़ावा: सब्सिडी वाली बिजली और उर्वरक अति प्रयोग को बढ़ावा देते हैं, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास होता है तथा पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।
- सिंचाई के लिये मुफ्त बिजली के प्रावधान ने भू-जल के अत्यधिक दोहन में योगदान दिया है।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, कृषि सिंचाई के लिये प्रतिवर्ष लगभग 230 बिलियन क्यूबिक मीटर भू-जल निष्कर्षण किया जाता है, जिसके कारण भारत के कई क्षेत्रों में भू-जल का स्तर तेज़ी से कम हो रहा है।
- इसी प्रकार, सब्सिडी द्वारा समर्थित अत्यधिक उर्वरक प्रयोग के कारण मृदा में पोषक तत्त्वों के असंतुलित होने से पर्यावरण को और भी नुकसान पहुँचा है। भारत का कृषि क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 18% का योगदान देता है।
- सिंचाई के लिये मुफ्त बिजली के प्रावधान ने भू-जल के अत्यधिक दोहन में योगदान दिया है।
- बाज़ार विकृतियाँ और निजी क्षेत्र की हतोत्साहन: सब्सिडी कृत्रिम रूप से लागत कम करके, प्रतिस्पर्द्धा, नवाचार और निजी निवेश को हतोत्साहित करके बाज़ार को विकृत करती है।
- उदाहरण के लिये, 1.75 लाख करोड़ रुपए की उर्वरक सब्सिडी (बजट 2024-25) ने जैविक और जैव उर्वरकों के उपयोग को हतोत्साहित किया है।
- इसी प्रकार, उज्ज्वला योजना के तहत LPG पर भारी सब्सिडी से बायोगैस जैसे विकल्पों की आर्थिक व्यवहार्यता कम हो जाती है, जिससे बाज़ार विविधीकरण में बाधा उत्पन्न होती है।
- पारदर्शिता का अभाव और विलंबित भुगतान: सब्सिडी में प्रायः पारदर्शिता और उचित लेखांकन का अभाव होता है, जिसके कारण धन अंतरण में विलंब होता है तथा राजकोषीय देयताओं का संचय होता है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने खाद्य सब्सिडी भुगतान के लिये राष्ट्रीय लघु बचत निधि (NSSF) के पास 1.18 लाख करोड़ रुपए का ऋण अर्जित (हालाँकि इसे वर्ष 2021 में चुकाया गया) किया।
- ऐसी प्रथाएँ राजकोषीय अनुशासन को कमज़ोर करती हैं और सरकार पर ब्याज का बोझ बढ़ाती हैं।
- वैश्विक व्यापार चुनौतियाँ और विश्व व्यापार संगठन की आलोचना: सब्सिडी वैश्विक व्यापार मंचों पर आलोचना को आकर्षित करती है, जिससे विवाद और प्रतिष्ठा संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- सत्र 2022-23 में भारत की 48 बिलियन डॉलर की कृषि इनपुट सब्सिडी की अमेरिका, यूरोपीय संघ और कनाडा जैसे विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने कथित रूप से व्यापार को विकृत करने के लिये आलोचना की।
- इन देशों का तर्क है कि भारत की सब्सिडी विश्व व्यापार संगठन के समग्र समर्थन मापन (AMS) मानदंडों का उल्लंघन करती है, जिससे भारतीय किसानों को वैश्विक बाज़ारों में अनुचित प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ मिलता है।
- लोकलुभावनवाद और चुनावी प्रेरणा: सब्सिडी का उपयोग प्रायः चुनावी लाभ के लिये लोकलुभावन साधन के रूप में किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप अस्थाई नीतियाँ बनती हैं तथा आवश्यक सुधारों में विलंब होता है।
- निशुल्क बिजली और अन्य संसाधनों के वादे जैसी निशुल्क संस्कृति की बढ़ती प्रवृत्ति, दीर्घकालिक राजकोषीय संवहनीयता तथा शासन की विश्वसनीयता को कमज़ोर करती है।
- उदाहरण के लिये, कृषि क्षेत्र को निशुल्क बिजली उपलब्ध कराने का वार्षिक बिजली बिल 6,500 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है, फिर भी राजनीतिक मज़बूरियों के कारण यह बरकरार है।
- इसके अलावा, सब्सिडी प्रायः लाभार्थियों को आत्मनिर्भरता या उत्पादकता में सुधार लाने में सक्षम बनाने के बजाय निर्भरता को बढ़ावा देती है।
- नवप्रवर्तन के लिये अपर्याप्त प्रोत्साहन: सब्सिडी प्रायः नवप्रवर्तन और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करने में विफल रहती है, जिससे अकुशलताएँ बढ़ती हैं।
- यद्यपि नैनो यूरिया को एक संधारणीय विकल्प के रूप में पेश किया गया है, परंतु परंपरागत यूरिया पर अभी भी भारी सब्सिडी दी जाती है, जिससे किसानों में नये विकल्प के अंगीकरण की प्रेरणा कम हो जाती है।
- इसी प्रकार, उर्वरक DBT लागू करने में विलंब और उन्नत सिंचाई तकनीकों के बारे में जागरूकता की कमी कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित सुधार में बाधा डालती है।
अधिक दक्षता के लिये भारत अपनी सब्सिडी प्रणाली को किस प्रकार युक्तिसंगत बना सकता है?
- उन्नत लक्ष्यीकरण के लिये DBT का व्यापक कार्यान्वयन: DBT में पूर्ण परिवर्तन से यह सुनिश्चित होता है कि सब्सिडी लक्षित लाभार्थियों तक पहुँचे, जिससे लीकेज और अकुशलताएँ कम होंगी।
- पहल के अंतर्गत LPG में DBT का सफल कार्यान्वयन इसकी क्षमता को दर्शाता है।
- DBT को उर्वरक सब्सिडी तक विस्तारित करने से दुरुपयोग को रोका जा सकता है तथा यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सब्सिडी वास्तविक किसानों तक पहुँचे।
- पारदर्शिता बढ़ाने के लिये DBT को आधार से जोड़ना और रियल टाइम डिजिटल मॉनिटरिंग आवश्यक है।
- शांता कुमार समिति ने अनाज आधारित वितरण के स्थान पर नकद अंतरण की ओर रुख करने, दक्षता में सुधार लाने तथा लीकेज को कम करने के महत्त्व पर भी ज़ोर दिया।
- गरीबी और उपभोग के आँकड़ों पर आधारित गतिशील लक्ष्य निर्धारण: सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) एवं घरेलू उपभोग सर्वेक्षण जैसे गरीबी आँकड़ों का उपयोग करके लाभार्थी सूचियों का आवधिक संशोधन, अधिक सटीक लक्ष्य निर्धारण सुनिश्चित कर सकता है।
- उन्नत विश्लेषण और AI-आधारित डेटा सत्यापन के एकीकरण से सब्सिडी पूल को परिष्कृत किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि केवल सबसे अधिक पात्र आबादी ही सहायता से लाभान्वित हो।
- ये परिशोधन व्यय प्रबंधन आयोग (वर्ष 2014) के लक्षित आवश्यकताओं के आधार पर सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाने के आह्वान के अनुरूप हैं।
- अति निर्भरता को कम करने के लिये संधारणीय विकल्पों को बढ़ावा देना: नैनो यूरिया और जैविक उर्वरकों जैसी प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करने से पारंपरिक सब्सिडी की मांग में काफी कमी आ सकती है।
- नैनो यूरिया पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करते हुए सरकार को सालाना ₹10,000-₹15,000 करोड़ की बचत करा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, NITI आयोग ने सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों में उर्वरीकरण को बढ़ावा देने के लिये तरल उर्वरकों के लिये लक्षित सब्सिडी की अनुशंसा की है, जिससे संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग सुनिश्चित हो सके।
- PM-KUSUM के तहत सौर ऊर्जा चालित सिंचाई प्रणालियों को उर्वरक DBT योजनाओं से जोड़ने से बिजली सब्सिडी को कम करने और कृषि में स्वच्छ, अधिक कुशल ऊर्जा उपयोग को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकती है।
- केलकर समिति (वर्ष 2012) ने अनावश्यक सार्वजनिक व्यय पर अंकुश लगाने के लिये ईंधन, खाद्य और उर्वरकों पर सब्सिडी कम करने का सुझाव दिया था।
- बेहतर निगरानी और उत्तरदायित्व के लिये प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना: सब्सिडी वितरण की दक्षता एवं पारदर्शिता में सुधार के लिये GIS और ब्लॉकचेन जैसी प्रौद्योगिकियों को तैनात किया जा सकता है।
- GIS मैपिंग यह सुनिश्चित करती है कि उर्वरक जैसी सब्सिडी केवल वास्तविक किसानों को ही दी जाए, ताकि उसका दुरुपयोग न हो।
- ब्लॉकचेन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में पारदर्शिता बढ़ा सकता है, तथा यह सुनिश्चित कर सकता है कि सब्सिडी सही लाभार्थियों तक पहुँचे।
- सब्सिडी को पर्यावरणीय संवहनीयता के साथ संरेखित करना: सब्सिडी को संधारणीय कृषि प्रथाओं और पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
- सिंचाई के लिये निशुल्क बिजली के स्थान पर समयबद्ध, मीटरयुक्त बिजली उपलब्ध कराने से भूजल में कमी को कम करने में मदद मिल सकती है, जो असंवहनीय सिंचाई पद्धतियों के कारण और भी बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त, जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को नवीकरणीय ऊर्जा पहलों की ओर पुनर्निर्देशित करने से भारत के स्वच्छ ऊर्जा भविष्य की ओर संक्रमण में योगदान मिल सकता है।
- सब्सिडी को व्यवहार परिवर्तन अभियानों से जोड़ना: संधारणीय प्रथाओं का दीर्घकालिक रूप से अंगीकरण सुनिश्चित करने के लिये सब्सिडी को व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रमों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।
- उज्ज्वला को PM पोषण (मध्याह्न भोजन योजना) जैसे कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के लिये भोजन पकाने के स्वच्छ ईंधन को प्राथमिकता देने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इसी प्रकार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के साथ उर्वरकों के लिये सब्सिडी को एकीकृत करने से पोषक तत्त्वों के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा तथा पर्यावरणीय क्षरण को कम किया जा सकेगा।
- दक्षता के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना: सब्सिडी प्रदान करने में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता और वित्तपोषण का लाभ उठाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये, उर्वरक कंपनियाँ नैनो उर्वरकों को बढ़ावा देने और वितरण नेटवर्क में सुधार करने के लिये सरकार के साथ सहयोग कर सकती हैं।
- PPP से ग्रामीण क्षेत्रों में e-PoS प्रणालियों के लिये बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाया जा सकता है, जिससे खाद्य और LPG सब्सिडी का बेहतर वितरण सुनिश्चित हो सकेगा।
- फसल विविधीकरण के साथ कृषि सब्सिडी में सुधार: कृषि सब्सिडी को संधारणीय कृषि पद्धतियों से जोड़कर फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये, किसानों को अधिक जल की खपत वाले चावल और गेहूँ की बजाय MSP सब्सिडी के माध्यम से दलहन और तिलहनों की कृषि के लिये प्रोत्साहित करने से संसाधनों का संरक्षण हो सकता है तथा बफर स्टॉक अधिशेष को कम किया जा सकता है।
- हालिया खरीद आँकड़ों से पता चलता है कि चावल का स्टॉक आवश्यक बफर मानदंडों से 4 गुना अधिक है, जिसके कारण बर्बादी हो रही है तथा राजकोषीय तनाव बढ़ रहा है।
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के तहत सब्सिडी के साथ विविधीकरण प्रोत्साहन को एकीकृत करने से बागवानी को बढ़ावा मिल सकता है, किसानों की आय में सुधार हो सकता है तथा पर्यावरणीय तनाव कम हो सकता है।
- लाभार्थी के प्रदर्शन से जुड़े सब्सिडी "क्रेडिट प्वाइंट": एक सब्सिडी क्रेडिट प्रणाली शुरू किये जाने की आवश्यकता है, जहाँ लाभार्थी जिम्मेदार उपयोग और संधारणीय प्रथाओं में प्रदर्शन के आधार पर सब्सिडी अर्जित करें।
- उदाहरण के लिये, जो किसान सूक्ष्म सिंचाई पद्धति अपनाते हैं या उर्वरक के अत्यधिक उपयोग को कम करते हैं (मृदा स्वास्थ्य डेटा द्वारा सत्यापित) उन्हें अतिरिक्त उर्वरक सब्सिडी मिलती है।
- LPG सब्सिडी की पात्रता उज्ज्वला रिफिल के निरंतर उपयोग पर निर्भर हो सकती है। इससे संधारणीय व्यवहार के लिये प्रोत्साहन मिलेगा तथा बर्बादी कम होगी।
- इन बिंदुओं को एकीकृत सब्सिडी वॉलेट (आधार से जुड़ा) से जोड़ने से प्रक्रिया सहज हो जाएगी।
- लाभार्थियों के लिये "क्रमिक निकास योजनाएँ" प्रस्तुत करना: एक क्रमिक निकास रणनीति बनाए जाने की आवश्यकता है, जहाँ लाभार्थियों के आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर सब्सिडी चरणबद्ध तरीके से समाप्त हो जाए।
- उदाहरण के लिये, सिंचाई के लिये निशुल्क बिजली प्राप्त करने वाले किसान अपनी आय बढ़ने पर धीरे-धीरे मीटर आधारित बिजली दरों की ओर स्थानांतरित हो सकते हैं।
- आधार से जुड़े आय आँकड़ों द्वारा सत्यापित घरेलू आय वृद्धि के आधार पर उज्ज्वला LPG लाभार्थी 3-5 वर्षों में पूर्ण सब्सिडी से आंशिक सब्सिडी में परिवर्तित हो सकते हैं।
- इससे यह सुनिश्चित होता है कि सब्सिडी दीर्घकालिक निर्भरता के बजाय अस्थायी सहायता है।
- सब्सिडी के स्थान पर नवाचार लाने के लिये कृषि-स्टार्टअप को प्रोत्साहित करना: प्रत्यक्ष सब्सिडी के स्थान पर ऐसे कृषि-स्टार्टअप को वित्तपोषित करने की ओर कदम बढ़ाए जाने की आवश्यकता है, जो किफायती लागत पर संधारणीय कृषि समाधान प्रदान करते हैं।
- ड्रोन आधारित सटीक कृषि या जैविक कीट नियंत्रण की पेशकश करने वाले स्टार्टअप को बढ़ावा देकर उर्वरकों और कीटनाशकों के लिये सब्सिडी को कम किया जा सकता है।
- कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के तहत, AI-आधारित मृदा परीक्षण या सिंचाई समाधान प्रदान करने वाले स्टार्टअप को व्यापक सब्सिडी के बजाय वित्तीय प्रोत्साहन प्राप्त हो सकता है।
- इससे उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलता है तथा प्रत्यक्ष सब्सिडी पर निर्भरता कम होती है।
निष्कर्ष:
भारत की सब्सिडी प्रणाली सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन प्रणाली की अकुशलता और इस पर राजकोषीय बोझ महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करते हैं। इसकी प्रभावशीलता में सुधार करने के लिये, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) को एकीकृत करने वाला अधिक लक्षित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि लाभ सही लाभार्थियों तक पहुँचे। इसके अतिरिक्त, दीर्घकालिक निर्भरता को कम करने के लिये अक्षय ऊर्जा और कृषि सुधार जैसे सब्सिडी के लिये स्थायी विकल्पों को बढ़ावा देना आवश्यक है। प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से लाभ वितरण को और अधिक सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सामाजिक कल्याण के साथ राजकोषीय अनुशासन को संतुलित करने के लिये सब्सिडी का युक्तिकरण आवश्यक है। भारत में हाल ही में सब्सिडी सुधारों की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये तथा न्यायसंगत और कुशल सब्सिडी वितरण सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं ? लघु और सीमांत कृषकों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है ? (2017) प्रश्न 2. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न 3. राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013) |