जैव विविधता और पर्यावरण
भूजल प्रदूषण पर CGWB की रिपोर्ट
- 02 Jan 2025
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय भूजल बोर्ड, फ्लोराइड, यूरेनियम, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, जल जनित रोग, ब्लू बेबी सिंड्रोम, जल शक्ति अभियान (JSA), राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM), अटल भूजल योजना (ABHY)। मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन, जल गुणवत्ता |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के शोध के अनुसार, पूरे भारत में भूजल प्रदूषण चिंताजनक रूप से बढ़ गया है, जहाँ अधिकतर क्षेत्रों में नाइट्रेट का स्तर बहुत अधिक है।
- यह रासायनिक प्रदूषक पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न करता है तथा विशेष रूप से छोटे बच्चों के लिये गंभीर स्वास्थ्य खतरा उत्पन्न करता है।
CGWB रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- नाइट्रेट संदूषण में वृद्धि: वर्ष 2017 में 359 ज़िलों से बढ़कर वर्ष 2023 तक 440 ज़िलों में भूजल में अत्यधिक नाइट्रेट का स्तर दर्ज किया गया।
- भारत के 56% ज़िलों में नाइट्रेट की सांद्रता 45 मिलीग्राम प्रति लीटर की सुरक्षित सीमा से अधिक है।
- क्षेत्रीय हॉटस्पॉट: राजस्थान (49%), कर्नाटक (48%), और तमिलनाडु (37%) में नाइट्रेट संदूषण का उच्चतम स्तर दर्ज किया गया।
- महाराष्ट्र , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में नाइट्रेट संदूषण का स्तर उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा है, जिसके साथ मध्य एवं दक्षिणी भारत में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- मानसून का प्रभाव: मानसून के बाद नाइट्रेट प्रदूषण में वृद्धि हो जाती है, मानसून के मौसम में 32.66% नमूने सुरक्षित स्तर को पार कर गए, जबकि मानसून से पहले यह स्तर 30.77% था।
- अन्य भूजल प्रदूषक: फ्लोराइड संदूषण राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
- राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में यूरेनियम संदूषण सुरक्षित स्तर से अधिक है , विशेष रूप से अति-शोषित भूजल क्षेत्रों में।
- भूजल निष्कर्षण: वर्ष 2009 से भारत में भूजल निष्कर्षण की दर 60.4% पर स्थिर रही है।
- हालाँकि, भूजल की उपलब्धता में सुधार हुआ है, 73% ब्लॉकों को 'सुरक्षित' क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो वर्ष 2022 में 67.4% से उल्लेखनीय वृद्धि है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB)
- जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार के तहत CGWB भारत में भूजल संसाधनों के प्रबंधन, अन्वेषण, निगरानी, मूल्याँकन और विनियमन के लिये सर्वोच्च निकाय है।
- वर्ष 1970 में स्थापित, CGWB का गठन आरंभ में अन्वेषणात्मक नलकूप संगठन का नाम बदलकर किया गया था और बाद में वर्ष 1972 में इसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूजल विंग के साथ विलय कर दिया गया।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत गठित केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) भूजल विकास को विनियमित करता है ताकि इसकी स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
- प्रमुख कार्य और ज़िम्मेदारियाँ: CGWB भूजल प्रबंधन के लिये वैज्ञानिक विशेषज्ञता प्रदान करता है, जिसमें अन्वेषण, निगरानी और जल गुणवत्ता आकलन शामिल हैं।
- यह भूजल स्तर को बढ़ाने के लिये कृत्रिम पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन की योजनाओं को भी क्रियान्वित करता है।
- वैज्ञानिक रिपोर्ट: CGWB राज्य और ज़िला जल-भूवैज्ञानिक रिपोर्ट, भूजल वर्ष पुस्तकें और एटलस जारी करता है।
भूजल प्रदूषण के स्रोत क्या हैं?
- कृषि पद्धतियाँ: कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से नाइट्रेट और फॉस्फेट मृदा में रिस जाते हैं, जिससे भूजल दूषित हो जाता है।
- अनुचित सिंचाई और जल का अत्यधिक दोहन इस समस्या को और भी गंभीर बना देता है।
- भंडारण टैंक: संक्षारक टैंकों से भूजल में गैसोलीन, तेल या रसायन का रिसाव हो सकता है।
- खतरनाक अपशिष्ट स्थल: रिसाव वाले परित्यक्त स्थल भूजल के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
- लैंडफिल: यदि सुरक्षात्मक परतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो लैंडफिल से प्रदूषक भूजल में रिस सकते हैं।
- सेप्टिक सिस्टम: खराब रखरखाव वाली प्रणालियों से अपशिष्ट और रसायनों का रिसाव हो सकता है, जिससे भूजल प्रदूषित हो सकता है।
- वायुमंडलीय प्रदूषक: वायुमंडल या सतही जल से प्रदूषक अंततः भूजल तक पहुँच सकते हैं।
- वनोन्मूलन: मृदा में प्राकृतिक निस्पंदन की प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे अपवाह बढ़ जाता है और प्रदूषक भूजल प्रणालियों में प्रवेश कर जाते है।
भूजल प्रदूषण के निहितार्थ क्या हैं?
- स्वास्थ्य जोखिम: फ्लोराइड, नाइट्रेट और भारी धातु जैसे प्रदूषक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं और जलजनित रोगों का कारण बनते हैं।
- अत्यधिक नाइट्रेट संदूषण, विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों के लिये, मेथेमोग्लोबिनेमिया का कारण बन सकता है, जिसे "ब्लू बेबी सिंड्रोम" भी कहा जाता है।
- खाद्य उत्पादन: सिंचाई के लिये प्रयुक्त भारी धातुओं और प्रदूषकों से भूजल संदूषित होने से फसलों में विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: नाइट्रेट प्रदूषण स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकता है, तथा पौधों और जलीय जीवन पर प्रभाव डाल सकता है।
- भूजल में प्रदूषक मृदा संदूषण और लवणीकरण का कारण बन सकते हैं।
- लागत में वृद्धि: दूषित भूजल को उपभोग हेतु सुरक्षित बनाने के लिये महंगी उपचार प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
- भूजल संदूषण सतही जल तक फैल सकता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब हो सकती है। लगातार संदूषण से स्वच्छ जल की उपलब्धता कम हो जाती है, जिससे जल की कमी और संभावित सामाजिक आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है।
भूजल प्रदूषण को रोकने के लिये क्या उपाय किए गए हैं?
- जल शक्ति अभियान (JSA)
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM)
- अटल भूजल योजना (ABHY)
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प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रम: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जल (रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू किया जाता है।
- परिवेश में छोड़े जाने से पहले जल को उपचारित करने के लिये सीवेज उपचार संयंत्र (STP) और अपशिष्ट उपचार संयंत्र (ETP) का निर्माण किया गया है।
- जन जागरूकता अभियान: राजीव गांधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (RGNGT&RI) जैसे संस्थानों के माध्यम से हितधारकों को प्रशिक्षण देना।
- “कैच द रेन” और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रयास समुदायों को भूजल संरक्षण के बारे में शिक्षित करते हैं।
आगे की राह
- उर्वरक उपयोग को विनियमित करना: कृषि में नाइट्रोजन उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। धारणीय कृषि के तरीकों को लागू करने से इस समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है।
- वर्षा जल संचयन: वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करने एवं प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से भूजल की पुनःपूर्ति से अतिशोषित जलभृतों पर निर्भरता को कम करने में मदद मिल सकती है।
- बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन: शहरी क्षेत्रों में कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को अपनाने से भूजल प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- बेहतर निगरानी और नीतियाँ: भूजल की गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाने एवं रासायनिक प्रदूषकों के संबंध में सख्त नियम बनाने से प्रदूषण को रोकने में मदद मिल सकती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में भूजल प्रदूषण के क्या प्रभाव हैं? भूजल का बेहतर प्रबंधन किस प्रकार किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न. 'वॉटर क्रेडिट' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020) |