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भारतीय राजनीति

अंतर्राज्यीय परिषद

  • 13 Nov 2024
  • 13 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

अंतर्राज्यीय परिषद, संघवाद, राज्यपाल, वस्तु और सेवा कर, सरकारिया आयोग, क्षेत्रीय परिषदें

मुख्य परीक्षा के लिये:

अंतर्राज्यीय परिषद और मुद्दे, केंद्र-राज्य संबंध, भारत में संघवाद  

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने हाल ही में दो वर्षों के बाद अंतर्राज्यीय परिषद  (Inter-State Council- ISC) का पुनर्गठन (जिसका पूर्व में पुनर्गठन वर्ष 2022 में किया गया था) किया है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली इस परिषद में बेहतर केंद्र-राज्य संबंधों तथा सहकारी संघवाद के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित किया गया है।

अंतर्राज्यीय परिषद क्या है?

  • स्थापना: ISC का गठन भारत में केंद्र-राज्य और अंतर्राज्यीय सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये किया गया था।
    • इसकी स्थापना संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत की गई थी, जो भारत के राष्ट्रपति को राज्यों के बीच बेहतर समन्वय के लिये ISC स्थापित करने का अधिकार देता है।
    • सरकारिया आयोग (1988) ने ISC को एक स्थायी निकाय बनाने की सिफारिश की, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से इसकी औपचारिक स्थापना हुई।
  • ISC के कार्य: यह राज्यों और संघ के साझा हितों के विषयों पर चर्चा करने के साथ नीतियों एवं कार्यों के समन्वय के लिये सिफारिशें करती है।
    • ISC निर्बाध शासन सुनिश्चित करने के लिये केंद्र-राज्य और अंतर-राज्य संबंधों को प्रभावित करने वाले मुद्दों की भी जाँच करती है।
  • परिषद की संरचना: प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं। इसके सदस्यों में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री (CM), विधानसभा वाले केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और विधानसभा नहीं रखने वाले केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक शामिल हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केंद्रीय मंत्रिपरिषद में कैबिनेट रैंक के छह मंत्री भी ISC का हिस्सा होते हैं।
    • राष्ट्रपति शासन के अधीन राज्य के राज्यपाल को ISC की बैठक में भाग लेने की अनुमति देने तथा अध्यक्ष को अन्य केंद्रीय मंत्रियों में से स्थायी आमंत्रित सदस्यों को मनोनीत करने की अनुमति देने के लिये, राष्ट्रपति के आदेश को पहले वर्ष 1990 में तथा फिर 1996 में, दो बार संशोधित किया गया।
    • वर्ष 1996 में आयोजित इसकी दूसरी बैठक में निरंतर परामर्श और परिषद के विचारार्थ मामलों पर कार्रवाई के लिये एक स्थायी समिति गठित करने का निर्णय लिया। 
      • तदनुसार गृहमंत्री की अध्यक्षता में एक स्थायी समिति गठित की गई तथा परिषद के अध्यक्ष के अनुमोदन से समय-समय पर इसका पुनर्गठन किया गया।
  • सचिवालय: नई दिल्ली में अंतर्राज्यीय परिषद सचिवालय (Inter-State Council Secretariat- ISCS) की स्थापना वर्ष 1991 में की गई थी और इसका नेतृत्व भारत सरकार के सचिव करते हैं। 
  • लाभ: ISC विचार-विमर्श के माध्यम से विकसित नीतियों को अधिक सामाजिक वैधता मिलेगी, राज्यों के बीच स्वीकृति बढ़ेगी और टकराव कम होगा।
    • ISC संघ और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखती है, जिससे किसी भी पक्ष का प्रभुत्व नहीं बढ़ता। यह सुनिश्चित करती है कि संघ के निर्णय संवैधानिक ढाँचे और संघीय सिद्धांतों के अनुरूप हों, खासकर वस्तु और सेवा कर (GST) या विमुद्रीकरण जैसे सुधारों के संबंध में, जो संघ-राज्य संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।

अन्य प्रमुख अंतर्राज्यीय और केंद्र-राज्य निकाय

  • क्षेत्रीय परिषदें: ये राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत स्थापित वैधानिक निकाय हैं।
    • पाँच क्षेत्रीय परिषदें (उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी) हैं। इनका उद्देश्य अंतर्राज्यीय सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देना है, प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद का नेतृत्व केंद्रीय गृह मंत्री करते हैं तथा संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री बारी-बारी से उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
    • पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये एक अलग परिषद है, जिसे पूर्वोत्तर परिषद कहा जाता है, जिसकी स्थापना वर्ष 1972 में पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1972 के तहत की गई थी। 
  • नदी जल विवाद न्यायाधिकरण: ये न्यायाधिकरण अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत नदी जल के बँटवारे पर राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिये गठित किये गए हैं।
    • अनुच्छेद 262 में प्रावधान है कि संसद कानून द्वारा किसी अंतर्राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन के लिये उपबंध कर सकेगी।
  • वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद: इसकी स्थापना संविधान के अनुच्छेद 279A के तहत की गई थी, यह एक संवैधानिक निकाय है जो भारत में GST कार्यान्वयन से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर निर्णय लेने के लिये ज़िम्मेदार है। 
    • इसमें केंद्रीय वित्त मंत्री, केंद्रीय राजस्व मंत्री और राज्य वित्त मंत्री शामिल होते हैं तथा निर्णय सर्वसम्मति के आधार पर लिये जाते हैं।
    • वर्ष 2016 में अपनी स्थापना के बाद से परिषद ने कर दरों और छूटों पर महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये हैं, सहकारी संघवाद को बढ़ावा दिया है तथा भारत में व्यावसायिक परिचालन को सुव्यवस्थित किया है।

अंतर्राज्यीय परिषद के संबंध में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अनियमित बैठकें: अपने उद्देश्य के बावजूद ISC की अनियमित बैठकों के लिये आलोचना की जाती रही है, वर्ष 1990 में इसकी स्थापना के बाद से इसकी केवल 11 बार ही बैठकें हुई हैं। 
    • प्रक्रिया के अनुसार वर्ष में कम-से-कम तीन बार बैठक होनी चाहिये, लेकिन अंतिम बैठक जुलाई 2016 में हुई थी।
  • गैर-बाध्यकारी सिफारिशें: ISC को अपनी सलाहकारी और गैर-बाध्यकारी प्रकृति के कारण प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे विवादों को सुलझाने में इसका प्रभाव सीमित होने के साथ प्रभावी संघ-राज्य समन्वय में बाधा आती है
    • इसके व्यापक अधिदेश में प्रवर्तन प्राधिकार का अभाव है, जिससे यह निर्णय लेने वाली संस्था के बजाय एक चर्चा मंच अधिक बन गई है। 
    • इसके अतिरिक्त यह सुनिश्चित करने के लिये कि सिफारिशों पर नज़र रखी जाए और उनका कार्यान्वयन किया जाए, अक्सर मज़बूत अनुवर्ती तंत्रों का अभाव होता है, जिससे सार्थक परिणामों के लिये अधिक संरचित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
  • राजनीतिक गतिशीलता: राजनीतिक परिदृश्य ISC के कामकाज को प्रभावित कर सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक विचारधाराओं में मतभेद विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति तक पहुँचने की परिषद की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।

ISC को प्रभावी ढंग से कार्य करने हेतु किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • अनुच्छेद 263 में संशोधन: पुंछी आयोग (2010) ने अंतर-सरकारी संबंधों और संघीय चुनौतियों से निपटने के लिये ISC को एक विशेष निकाय बनाने पर जोर दिया।
    • अंतर्राज्यीय और संघ-राज्य दोनों मुद्दों के समाधान के लिये ISC के अधिदेश को मज़बूत करने के लिये अनुच्छेद 263 में संशोधन करने से परामर्शक तथा निर्णय लेने वाले मंच के रूप में इसकी भूमिका बढ़ सकती है।
  • नियमित एवं समय पर बैठकें: नियमित बैठकों के लिये अनिवार्यता को पुनर्जीवित करने से चर्चाओं में निरंतरता को बढ़ावा मिलेगा तथा राज्यों को नीतिगत सुझावों के लिये एक नियमित मंच उपलब्ध होगा।
  • स्पष्ट एजेंडा और प्राथमिकताएँ: प्रत्येक बैठक के लिये स्पष्ट एजेंडा और प्राथमिकताएँ निर्धारित हों, जिसमें जल विवाद, बुनियादी ढाँचे के विकास तथा आर्थिक सहयोग जैसे अंतर्राज्यीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: ISC के भीतर संचार, डेटा साझाकरण और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने के लिये डिजिटल उपकरणों और प्लेटफाॅर्मों का उपयोग करना चाहिये, जिससे इसे अधिक कुशल और उत्तरदायी बनाया जा सके।

निष्कर्ष

भारत के संघीय ढाँचे को सही मायने में मज़बूत करने के लिये, अंतर्राज्यीय परिषद को एक बड़े पैमाने पर सलाहकार निकाय से एक अधिक सक्रिय और सशक्त संस्था में विकसित करने की आवश्यकता है। इसके अधिदेश को बढ़ाने और नियमित, परिणाम-संचालित बैठकें सुनिश्चित करने जैसे सुधार गहन सहयोग को बढ़ावा देने और केंद्र-राज्य संबंधों की जटिलताओं को हल करने में महत्त्वपूर्ण होंगे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में सहकारी संघवाद को बनाए रखने में अंतर्राज्यीय परिषद की भूमिका और महत्त्व पर चर्चा कीजिये। केंद्र-राज्य मुद्दों के समाधान में यह कितना प्रभावी रहा है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. भारतीय राज्य-व्यवस्था में, निम्नलिखित में से कौन-सी अनिवार्य विशेषता है, जो यह दर्शाती है कि उसका स्वरूप संघीय है? (2021)

(a) न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित है।
(b) संघ की विधायिका में संघटक इकाइयों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं।
(c) केन्द्रीय मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय पार्टियों के निर्वाचित प्रतिनिधि हो सकते हैं।
(d) मूल अधिकार न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं।

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं  है? (2017)

(a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है।
(b) केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है।
(c)  संघबद्ध होने वाली इकाइयों को राज्य सभा में असमान प्रतिनिधित्व दिया गया है।
(d) यह संघबद्ध होने वाली इकाइयों के बीच एक सहमति का परिणाम है।

उत्तरः (d)

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