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सहकारी संघवाद: मिथक या वास्तविकता

  • 04 Sep 2024
  • 14 min read

Federalism is an Intrinsic Part of Our Constitutional Set-up.  

अर्थात् संघवाद हमारे संवैधानिक ढाँचे का एक आंतरिक हिस्सा है। 

— नवीन पटनायक

भारत का संघीय संरचना, जैसा कि संविधान में निहित है, केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण का एक अनूठा मिश्रण दर्शाता है। सहकारी संघवाद की अवधारणा इस संरचना का अभिन्न अंग है, जो प्रभावी शासन और सार्वजनिक सेवाओं की डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग का समर्थन करती है।

भारत में संघवाद की जड़ें औपनिवेशिक युग में देखी जा सकती हैं, जब भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत करके संघीय व्यवस्था की नींव रखी थी। हालाँकि, केंद्र सरकार ने महत्त्वपूर्ण शक्तियों को बरकरार रखा, जिससे केंद्र और राज्यों के बीच भविष्य के संबंधों की दिशा तय हुई।

स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान-निर्माताओं ने एक अर्द्ध-संघीय संरचना को अपनाया, जहाँ शक्ति का संतुलन केंद्र सरकार के पक्ष में था। यह निर्णय एक विविध और नए स्वतंत्र राष्ट्र में राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को बनाए रखने की आवश्यकता से प्रभावित था। हालाँकि, सहकारी संघवाद का सिद्धांत संविधान में अंतर्निहित था, जिसमें शासन के लिये एक सहयोगी दृष्टिकोण की कल्पना की गई थी।

भारतीय संविधान विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से सहकारी संघवाद के लिये एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है। सातवीं अनुसूची केंद्र और राज्य सरकारों की शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित करती है: संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। जबकि संघ सूची केंद्र सरकार को विशेष शक्तियाँ प्रदान करती है, राज्य सूची राज्य सरकारों के लिये आरक्षित है। समवर्ती सूची दोनों सरकारों को कानून बनाने की अनुमति देती है, जिसमें द्वंद्व की स्थिति में केंद्रीय कानून लागू होता है।

संविधान के अनुच्छेद 263 में राज्यों और केंद्र सरकार के बीच सहयोग एवं समन्वय को बढ़ावा देने के लिये एक अंतर-राज्य परिषद की स्थापना का प्रावधान है। यह परिषद विवादों को सुलझाने और राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों पर संवाद को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र है।

इसके अतिरिक्त, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (NITI आयोग) और वित्त आयोग संस्थागत व्यवस्थाएँ हैं जिनका गठन केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों का संतुलित वितरण सुनिश्चित करने के लिये किया गया है। ये निकाय आर्थिक और विकासात्मक मुद्दों पर संवाद एवं सहयोग को सुविधाजनक बनाकर सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

संवैधानिक ढाँचे के बावजूद, भारत में सहकारी संघवाद के अभ्यास को पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक है सत्ता का केंद्रीकरण। केंद्र सरकार ने प्रायः राज्यों की शक्तियों का अतिक्रमण किया है, विशेषकर अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के माध्यम से, जो राज्यों में राष्ट्रपति शासन की अनुमति देता है। इससे केंद्र और राज्यों के बीच तनाव उत्पन्न हुआ है, जिससे सहकारी संघवाद की भावना कमज़ोर हुई है।

एक और चुनौती केंद्र व राज्यों के बीच संसाधनों एवं राजस्व का असमान वितरण है। केंद्र सरकार राजस्व स्रोतों के एक बहुत बड़े हिस्से को नियंत्रित करती है, जिससे राजकोषीय असंतुलन होता है। राज्य प्रायः वित्तीय सहायता के लिये केंद्र पर निर्भर होते हैं, जिसका उपयोग राज्य सरकारों पर नियंत्रण करने के लिये एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है।

वर्ष 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरूआत एक ऐतिहासिक सुधार है जिसका उद्देश्य एक एकीकृत कर प्रणाली बनाना है। इसने राज्यों के बीच उनकी राजकोषीय स्वायत्तता के क्षरण के बारे में चिंता भी उत्पन्न की है। यद्यपि केंद्र सरकार के पास पर्याप्त शक्ति है और GST परिषद, जो GST के लिये नीति और दरें निर्धारित करती है, को सहकारी संघवाद को लागू करने का काम सौंपा गया है, फिर भी सहयोग के वास्तविक दायरे को लेकर चिंताएँ हैं।

हाल के वर्षों में, भारत में सहकारी संघवाद को सुदृढ़ करने के प्रयास हुए हैं। NITI आयोग, जिसने योजना आयोग की जगह ली, केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में सहायक रहा है। योजना आयोग जिसकी प्रायः अधोगामी और केंद्रीकृत होने के लिये आलोचना की जाती थी, के विपरीत NITI आयोग उर्ध्वगामी उपागम पर ज़ोर देता है, राज्यों को अपने विकास एजेंडे का स्वामित्व लेने के लिये प्रोत्साहित करता है।

NITI आयोग द्वारा परिकल्पित ‘टीम इंडिया’ की अवधारणा का उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और साझेदारी की भावना को बढ़ावा देना है। गवर्निंग काउंसिल जैसे तंत्रों के माध्यम से, जिसमें सभी मुख्यमंत्री शामिल हैं, NITI आयोग प्रमुख नीतिगत मुद्दों पर चर्चा की सुविधा प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में राज्यों की भी भागीदारी हो।

इसके अतिरिक्त, 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिये कर राजस्व के बड़े हिस्से की सिफारिश करके कुछ राजकोषीय असंतुलन को दूर करने का प्रयास किया है। यह राज्यों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाकर और केंद्र पर उनकी निर्भरता को कम करके सहकारी संघवाद को सुदृढ़ करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

कोविड-19 महामारी ने भी सहकारी संघवाद के महत्त्व को उजागर किया है। महामारी के प्रबंधन के लिये केंद्र और राज्य सरकारों के बीच घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता थी। यद्यपि, विशेषकर वैक्सीन वितरण और लॉकडाउन प्रक्रियाओं जैसे मामलों पर कई बार असहमति हुई, संकट ने यह स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रीय महत्त्व की समस्याओं के समाधान के लिये एक सहयोगी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

भारत में सहकारी संघवाद के अभ्यास को आकार देने में राजनीतिक गतिशीलता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। केंद्र-राज्य संबंधों की प्रकृति प्रायः केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के राजनीतिक संरेखण पर निर्भर करती है। जब एक ही पार्टी या पार्टियों का गठबंधन केंद्र और राज्यों दोनों पर शासन करता है, तो आमतौर पर अधिक सहयोग होता है। हालाँकि, जब अलग-अलग पार्टियाँ सत्ता में होती हैं, विशेषकर अगर वे वैचारिक प्रतिद्वंद्वी हों, तो तनाव उत्पन्न हो सकता है, जिससे संबंध अधिक तनावपूर्ण बन जाते हैं।

उदाहरण के लिये आपातकाल की अवधि (वर्ष 1975-1977) के दौरान, काॅन्ग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों पर अत्यधिक नियंत्रण किया, जिनमें से कई को अनुच्छेद 356 का प्रयोग करके बर्खास्त कर दिया गया था। इस अवधि को प्रायः सहकारी संघवाद के विघटन के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है।

दूसरी ओर, केंद्र में गठबंधन सरकारों की अवधि के दौरान, जैसे कि 1990 और 2000 के दशक की शुरुआत में, राज्य सरकारों के साथ परामर्श एवं सहयोग पर अधिक जोर दिया गया था। गठबंधन में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के हितों को समायोजित करने की आवश्यकता ने प्रायः संघवाद के प्रति अधिक संतुलित दृष्टिकोण को जन्म दिया।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य, जिसमें केंद्र में एक पार्टी का प्रभुत्व है और विभिन्न राज्यों में उसका प्रभाव बढ़ रहा है, सहकारी संघवाद के लिये अपनी चुनौतियों और अवसरों का एक समूह है। जबकि केंद्र सरकार ने GST और श्रम कानून सुधारों के कार्यान्वयन जैसे सुधारों के लिये राज्य के सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है, वहीं विपक्षी शासित राज्यों के साथ तनाव के उदाहरण भी हैं, विशेषकर महामारी तथा कृषि कानूनों से निपटने जैसे मुद्दों पर।

न्यायपालिका ने भारत में सहकारी संघवाद की अवधारणा की व्याख्या और उसे आयाम देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

एस.आर. बोम्मई मामले (वर्ष 1994) में, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिये सख्त दिशा-निर्देश निर्धारित किये जिससे केंद्र सरकार द्वारा इस प्रावधान के मनमाने प्रयोग पर अंकुश लगा। इस निर्णय को भारत में संघवाद की सुरक्षा में एक महत्त्वपूर्ण क्षण माना जाता है।

इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ (1962) के मामले  में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों की स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए कहा कि संविधान राज्यों को केवल प्रशासनिक इकाइयों के रूप में नहीं बल्कि अपनी शक्तियों और जिम्मेदारियों वाली संस्थाओं के रूप में मान्यता देता है। इस निर्णय ने राज्य की स्वायत्तता के महत्त्व को स्वीकार करके सहकारी संघवाद के विचार को सुदृढ़ किया। 

न्यायपालिका ने राज्यों व केंद्र के बीच और साथ ही राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिकरण जैसे तंत्रों की स्थापना संवाद और संघर्षों के समाधान के लिये एक मंच प्रदान करके सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने में न्यायपालिका की भूमिका का एक उदाहरण है।

भारत में सहकारी संघवाद की यात्रा एक गतिशील और विकासशील प्रक्रिया है, जो ऐतिहासिक संदर्भों, संवैधानिक रूपरेखाओं, राजनीतिक गतिशीलता एवं न्यायिक व्याख्याओं द्वारा आकार लेती है। यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग के सार को दर्शाता है, जो भारत के राज्यों की विविध आकांक्षाओं के साथ राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता को संतुलित करता है। जैसा कि भारत अपने जटिल संघीय ढाँचे को और भी विकसित कर रहा है, सहकारी संघवाद की सफलता केंद्र और राज्यों दोनों की एक साथ काम करने, सामूहिक भलाई को प्राथमिकता देने तथा राष्ट्र की बदलती आवश्यकताओं के अनुकूल होने की निरंतर प्रतिबद्धता पर निर्भर करेगी। साझेदारी और आपसी सम्मान की इस भावना के माध्यम से ही भारत समावेशी विकास सुनिश्चित कर सकता है तथा केंद्रीय प्राधिकरण एवं राज्य स्वायत्तता के बीच संवदेनशील संतुलन बनाए रख सकता है।

Competitive Cooperative Federalism is the Key to India's Rising Investments.

अर्थात् प्रतिस्पर्द्धात्मक सहकारी संघवाद भारत के बढ़ते निवेश की कुंजी है।

— नरेंद्र मोदी

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