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शासन व्यवस्था

विचलन बाद राजस्व घाटा

  • 11 May 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 के लिये 17 राज्यों को 9,871 करोड़ रुपए के विचलन बाद राजस्व घाटा (Post Devolution Revenue Deficit- PDRD) अनुदान की दूसरी मासिक किस्त जारी की है।

प्रमुख बिंदु

विचलन बाद राजस्व घाटा:

  • केंद्र सरकार, संविधान के अनुच्छेद-275 के तहत राज्यों को विचलन बाद राजस्व घाटा अनुदान प्रदान करती है।
  • ये अनुदान राज्यों के विचलन के अंतर को पूरा करने के लिये मासिक किस्तों में वित्त आयोग (Finance Commission) की सिफारिशों के अनुसार जारी किये जाते हैं।
  • 15वें वित्त आयोग ने पाँच वर्ष (वित्तीय वर्ष 2026 तक) की अवधि के लिये लगभग 3 ट्रिलियन की राशि के अनुदान की सिफारिश की है।
    • वित्त वर्ष 2022 में राजस्व घाटा अनुदान के लिये अर्हता प्राप्त करने वाले राज्यों की संख्या 17 है, लेकिन वित्त वर्ष 2026 तक इसमें केवल 6 राज्य ही शेष बचेंगे।
    • इस अनुदान को प्राप्त करने की राज्यों की पात्रता और अनुदान की मात्रा का निर्धारण आयोग द्वारा राज्य के राजस्व तथा व्यय के मूल्यांकन के अंतर के आधार पर किया गया था।
  • PDRD अनुदान के लिये अनुशंसित राज्य:
    • पाँच वर्ष की अवधि के लिये आंध्र प्रदेश, असम, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल को अनुदान दिये जाने इ सिफारिश की गई है, जिसे वित्त मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है।

संविधान का अनुच्छेद-275:

  • यह अनुच्छेद संसद को इस बात का अधिकार प्रदान करता है कि वह ऐसे राज्यों को उपयुक्त सहायक अनुदान देने का उपबंध कर सकती है, जिन्हें संसद की दृष्टि में सहायता की आवश्यकता है।
  • इस अनुदान को प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से भुगतान किया जाता है और विभिन्न राज्यों के लिये अलग-अलग रकम तय की जा सकती है।
  • ये अनुदान पूंजी और आवर्ती रकम के रूप में हो सकते हैं।
  • इन अनुदानों का उद्देश्य उस राज्य की विकास संबंधी ऐसी योजनाओं की लागतों को पूरा करना है, जो राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण या अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार की सहायता से लागू हैं।
  • ये अनुदान मुख्य रूप से वित्तीय संसाधनों में अंतर-राज्य की असमानताओं को समाप्त करने और राष्ट्रीय स्तर पर राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं के एक समान रखरखाव तथा विस्तार के समन्वय हेतु दिये जाते हैं।

राजस्व खाता और पूंजी खाता

  • राजस्व खाते (Revenue Account) में सभी राजस्व प्राप्तियाँ शामिल होती हैं, जिन्हें सरकार की वर्तमान प्राप्तियों के रूप में भी जाना जाता है। इन प्राप्तियों में कर राजस्व और सरकार के अन्य राजस्व शामिल होते हैं।
  • पूंजी खाते (Capital Account) में पूंजीगत प्राप्तियाँ और भुगतान को शामिल किया जाता है। इसमें मूल रूप से संपत्ति के साथ-साथ सरकार की देनदारियाँ भी शामिल होती हैं। पूंजीगत प्राप्तियों में विभिन्न माध्यमों से सरकारों द्वारा लिये गए ऋण या पूंजी शामिल होते हैं।

केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान में गैर-कर राजस्व के साथ-साथ करों के वितरण और ऋण लेने की शक्ति से संबंधित विस्तृत प्रावधान किये गए हैं, इसके अलावा संघ द्वारा राज्यों को अनुदान सहायता प्रदान करने से संबंधित पूरक प्रावधान भी किये गए हैं।
  • संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 तक केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों पर चर्चा की गई है।

कराधान शक्तियाँ: संविधान ने  केंद्र व राज्यों के बीच कराधान शक्तियों का आवंटन निम्न प्रकार से किया है: 

  • संघ सूची में सूचीबद्ध विषयों के बारे में कर निर्धारण का अधिकार संसद के पास है, जबकि राज्य सूची के संदर्भ में कर निर्धारण का विशेष अधिकार राज्य विधानमंडल के पास है।
  • समवर्ती सूची के संदर्भ में कर निर्धारण का अधिकार संसद व राज्य विधानमंडल दोनों के पास है, लेकिन कर निर्धारण की अवशिष्ट शक्ति केवल संसद में निहित है।

कर राजस्व का वितरण:

  • केंद्र द्वारा उद्वगृहीत और राज्यों द्वारा संगृहीत एवं विनियोजित कर (अनुच्छेद 268): 
    • इसमें विनमय पत्रों, चेकों आदि पर लगने वाला स्टाम्प शुल्क शामिल है।
  • केंद्र द्वारा उद्गृहीत एवं संगृहीत किंतु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर (अनुच्छेद 269)
    • इसमें अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य में वस्तुओं के क्रय-विक्रय से संबंधित कर (समाचार-पत्र को छोड़कर) तथा माल या सामान के अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के पारेषण से संबंधित कर शामिल हैं।
  • अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के पारेषण में माल और सेवाओं पर कर का आरोपण तथा  संग्रहण (अनुच्छेद 269-A): 
    • अंतर-राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के दौरान पूर्ति पर लगने वाला वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत एवं संग्रहीत किये जाएंगे।
    • लेकिन केंद्र तथा राज्यों के बीच इस कर का विभाजन GST परिषद की सिफारिशों के आधार पर संसद द्वारा निर्धारित रीति से किया जाएगा।
  • केंद्र द्वारा उद्गृहीत एवं संगृहीत किंतु संघ तथा राज्यों के बीच वितरण वाले कर (अनुच्छेद 270)
    • इस श्रेणी में संघ सूची में उल्लिखित सभी कर और शुल्क आते हैं:
      • संविधान के अनुच्छेद 268, 269 तथा 269-A में उल्लिखित कर।
      • संविधान के अनुच्छेद 271 में उल्लिखित कर पर अधिभार (यह विशेष रूप से केंद्र के पास जाता है)।
      • किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिये लगाया गया कोई उपकर (Cess)।

सहायतार्थ अनुदान (Grants-in-Aid): केंद्र व राज्यों के बीच करों के साझाकरण के अलावा संविधान में राज्यों को केंद्र से सहायतार्थ अनुदान का भी प्रावधान किया गया है। अनुदान दो प्रकार के होते हैं:

  • विधिक अनुदान (Statutory Grants) (अनुच्छेद 275): संसद द्वारा भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से यह अनुदान उन राज्यों को दिया जाता है, जिन्हें सहायता की आवश्यकता होती है। अलग-अलग राज्यों के लिये सहायता राशि भी भिन्न-भिन्न निर्धारित की जा सकती है। 
    • राज्यों में जनजातियों के उत्थान एवं कल्याण तथा अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासनिक विकास के लिये विशेष अनुदान भी दिये जाते हैं।
  • विवेकाधीन अनुदान (Discretionary Grants) (अनुच्छेद 282): यह संघ एवं राज्य दोनों को इस बात का अधिकार देता है कि वे किसी भी लोक प्रयोजन के लिये अनुदान आवंटित कर सकते हैं भले ही यह उनकी संबंधित विधायी क्षमता तहत न आता हो।
    • इस प्रावधान के तहत केंद्र राज्यों को अनुदान प्रदान करता है। इन अनुदानों को विवेकाधीन अनुदान कहा जाता है, क्योंकि केंद्र राज्यों को इस प्रकार का अनुदान देने के लिये बाध्य नहीं है और यह पूर्णतया उसके स्वविवेक पर निर्भर करता है।
    • इन अनुदानों के दो उद्देश्य होते हैं- योजनागत लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु राज्यों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना तथा राष्ट्रीय योजना के लिये राज्यों को प्रभावित करना। 

स्रोत: द हिंदू

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