भारतीय अर्थव्यवस्था
DICGC द्वारा वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूली
प्रिलिम्स के लिये:डिपॉजिट इंश्योरेंस, डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा और कवरेज, DICGC मेन्स के लिये:डिपॉजिट इंश्योरेंस का महत्त्व एवं डिपॉजिट इंश्योरेंस और ऋण गारंटी निगम (DICGC) की आवश्यकता |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों ?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सहायक कंपनी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) अपने प्रीमियम ढाँचे के लिये जाँच के दायरे में है, जो वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूलती है, जबकि सहकारी बैंकों को अनुपातहीन रूप से लाभ पहुँचाती है।
- इससे वर्तमान प्रणाली की निष्पक्षता और दक्षता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे विभिन्न बैंकिंग संस्थानों के रिस्क प्रोफाइल के आधार पर प्रीमियम के पुनर्मूल्यांकन की मांग उठती है।
वाणिज्यिक बैंकों से डिपॉजिट इंश्योरेंस के लिये अधिक शुल्क कैसे वसूला जा रहा है?
- अनुपातहीन प्रीमियम बोझ: DICGC वाणिज्यिक बैंकों से 94% प्रीमियम एकत्र करता है, जो निवल दावों (net claims) का 1.3% है, जबकि सहकारी बैंक प्रीमियम का 6% योगदान देते हैं और निवल दावों का 98.7% दावा करते हैं।
- वर्ष 1962 से वाणिज्यिक बैंकों ने 295.85 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें कुल निवल दावे 138.31 करोड़ रुपए हैं।
- इसके विपरीत सहकारी बैंकों ने 14,735.25 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें निवल दावे 10,133 करोड़ रुपए हैं।
- इसका अर्थ है कि अच्छी तरह से प्रबंधित वाणिज्यिक बैंक सहकारी बैंकों से जुड़े उच्च जोखिमों को प्रभावी ढंग से सब्सिडी दे रहे हैं, जिसके लिये दावों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की आवश्यकता होती है।
- वर्ष 1962 से वाणिज्यिक बैंकों ने 295.85 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें कुल निवल दावे 138.31 करोड़ रुपए हैं।
- वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूलने के निहितार्थ:
- उच्च अनुपालन लागत: वाणिज्यिक बैंकों को जोखिम प्रोफाइल की परवाह किये बिना प्रति 100 रुपए बीमाकृत 12 पैसे की मानक प्रीमियम दर के कारण उच्च अनुपालन लागत का सामना करना पड़ता है। यह बैंकों की परिचालन दक्षता और लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे अंततः ऋण प्रदान करने एवं उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक सेवा प्रदान करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है।
- असमान जोखिम मूल्यांकन: वाणिज्यिक बैंक, जिनका जोखिम प्रोफाइल आम तौर पर कम होता है, उन्हें उच्च प्रीमियम के माध्यम से दंडित किया जाता है, जो जोखिम मूल्यांकन के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है, जिसे बीमा मूल्य निर्धारण का मार्गदर्शन करना चाहिए।
- वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव: उच्च प्रीमियम वाणिज्यिक बैंकों के लिये वित्तीय स्थिरता को कम कर सकता है, क्योंकि उन्हें इन लागतों को जमाकर्ताओं और उधारकर्ताओं पर डालना पड़ सकता है।
- इसके परिणामस्वरूप ऋणों के लिये उच्च ब्याज दरें और जमाकर्ताओं के लिये कम रिटर्न हो सकता है, जिससे समग्र बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
- खराब प्रबंधन पद्धतियों को प्रोत्साहन: सहकारी बैंकों की विफलताओं से जुड़ी लागतों को वाणिज्यिक बैंकों को वहन करने की आवश्यकता होने से, वर्तमान संरचना अनजाने में सहकारी बैंकों के भीतर खराब प्रबंधन पद्धतियों को प्रोत्साहित कर सकती है, क्योंकि चूक के परिणाम अधिक स्थिर संस्थानों पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
DICGC के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- यह वर्ष 1978 में संसद द्वारा डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट, 1961 के पारित होने के बाद जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
- यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
- DICGC द्वारा प्रबंधित निधियाँ:
- जमा बीमा निधि: यह निधि बैंक के जमाकर्त्ताओं को उस स्थिति में बीमा प्रदान करती है, जब बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये धन नहीं होता है तथा उसे परिसमापन की स्थिति में जाना पड़ता है।
- इसका वित्तपोषण बैंकों से प्राप्त प्रीमियम द्वारा किया जाता है।
- ऋण गारंटी निधि: यह वह गारंटी है, जो प्रायः ऋणदाता को विशिष्ट उपाय उपलब्ध कराती है, यदि देनदार उसका ऋण वापस नहीं करता है।
- सामान्य निधि: यह DICGC के परिचालन व्यय को कवर करती है, जो इसके परिचालन से प्राप्त अधिशेष से वित्तपोषित होती है।
- जमा बीमा निधि: यह निधि बैंक के जमाकर्त्ताओं को उस स्थिति में बीमा प्रदान करती है, जब बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये धन नहीं होता है तथा उसे परिसमापन की स्थिति में जाना पड़ता है।
DICGC की जमा बीमा योजना क्या है?
- जमा बीमा की सीमा: वर्तमान में एक जमाकर्त्ता बीमा कवर के रूप में प्रति खाता अधिकतम 5 लाख रुपए का दावा कर सकता है। इस राशि को 'जमा बीमा' कहा जाता है। प्रति जमाकर्त्ता 5 लाख रुपए का कवर DICGC द्वारा प्रदान किया जाता है।
- यदि बैंक डूब जाता है तो खाते में 5 लाख रुपए से अधिक राशि रखने वाले जमाकर्त्ताओं के पास धन वापस पाने के लिये कोई कानूनी उपाय नहीं है।
- बीमा के लिये प्रीमियम राशि प्रति 100 रुपए जमा पर 10 पैसे से बढ़ाकर 12 पैसे कर दी गई है तथा 15 पैसे की सीमा तय की गई है।
- इस बीमा के लिये प्रीमियम का भुगतान बैंकों द्वारा DICGC को किया जाता है, तथा इसे जमाकर्त्ताओं को नहीं दिया जाता।
- बीमित बैंक प्रत्येक वित्तीय छमाही के आरंभ से 2 महीने के भीतर निगम को अग्रिम बीमा प्रीमियम का भुगतान अर्द्ध-वार्षिक आधार पर करते हैं, जो पिछली छमाही के अंत में उनकी जमाराशियों पर आधारित होता है।
- कवरेज:
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित सभी बैंकों को DICGC के साथ जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
- प्राथमिक सहकारी समितियों का DICGC द्वारा बीमा नहीं किया जाता है।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित सभी बैंकों को DICGC के साथ जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
- कवर की गई जमा राशियों के प्रकार: DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर सभी बैंक जमाओं, जैसे बचत, सावधि, चालू, आवर्ती आदि का बीमा करता है:
- विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ।
- केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ।
- अंतर-बैंक जमा।
- राज्य भूमि विकास बैंकों की राज्य सहकारी बैंकों में जमाराशियाँ।
- भारत के बाहर प्राप्त कोई भी जमा राशि।
- कोई भी राशि जिसे RBI की पिछली मंज़ूरी के साथ निगम द्वारा विशेष रूप से छूट दी गई है।
- जमा बीमा की आवश्यकता:
- हाल ही में पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी (PMC) बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे मामलों में जमाकर्त्ताओं को बैंकों में अपने धन तक तत्काल पहुँच प्राप्त करने में होने वाली परेशानियों ने जमा बीमा के विषय पर प्रकाश डाला है।
DICGC द्वारा जमा बीमा प्रीमियम का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता क्यों है?
- प्रस्ताव: वाणिज्यिक बैंकों के लिये प्रीमियम को 12 पैसे से घटाकर 3 पैसे प्रति 100 रुपए बीमाकृत करने का प्रस्ताव किया गया है, जिससे इन बैंकों को वित्त वर्ष 2025-26 में लगभग 20,000 करोड़ रुपए की राहत मिल सकती है।
- इसके विपरीत सहकारी बैंकों के लिये प्रीमियम 12 पैसे पर बना रह सकता है या 15 पैसे तक बढ़ सकता है।
- लाभ:
- जोखिम-आधारित प्रीमियम: बैंकों के जोखिम प्रोफाइल के साथ प्रीमियम को संरेखित करना एक स्पष्ट संदेश भेजता है कि बीमा लागत वास्तविक जोखिम को प्रतिबिंबित करना चाहिये।
- आर्थिक दक्षता: वाणिज्यिक बैंकों के लिये कम अनुपालन लागत उनकी परिचालन दक्षता को बढ़ा सकती है जिससे जमाकर्त्ताओं और उधारकर्त्ताओं को लाभ हो सकता है।
- अच्छे प्रबंधन को प्रोत्साहित करना: अच्छी तरह से प्रबंधित बैंकों को दंडित न करके, यह प्रणाली बेहतर बैंकिंग प्रथाओं को बढ़ावा देती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: बैंकिंग क्षेत्र में जमा बीमा के महत्त्व और भारत में DICGC के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: C प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. बैंक खाते से वंचित लोगों को संस्थागत वित्त के दायरे में लाने के लिये प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) आवश्यक है। क्या आप भारतीय समाज के गरीब वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिये इससे सहमत हैं? अपने मत की पुष्टि के लिये उचित तर्क दीजिये। (2016) |
शासन व्यवस्था
भारत में ओपन जेलें
प्रिलिम्स के लिये:ओपन जेलें, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत में जेलों के प्रकार मेन्स के लिये:ओपन जेल की अवधारणा और विशेषताएँ, जेल में भीड़भाड़ पर खुली जेलों का प्रभाव, भारतीय जेलें और संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) ने हाल ही में कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (Union Territories- UT) को अपने अधिकार क्षेत्र में ओपन जेलों की कार्यप्रणाली के संबंध में व्यापक विवरण उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
- यह निर्देश जेलों में भीड़भाड़ के बारे में जारी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए आया है, जिस मामले ने न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है।
सर्वोच्च न्यायालय ओपन जेलों पर क्यों ध्यान केंद्रित कर रहा है?
- जेलों में अत्यधिक भीड़: सर्वोच्च न्यायालय पारंपरिक जेलों में अत्यधिक भीड़ की दीर्घकालिक समस्या के समाधान के लिये ओपन जेलों को एक संभावित समाधान के रूप में देखता है।
- इस अवधारणा का उद्देश्य मनोवैज्ञानिक तनाव को कम करना है, जिसका सामना दोषियों को कारावास के बाद सामान्य जीवन में पुनः शामिल होने के दौरान करना पड़ता है।
- कुछ कैदियों को खुली हवा वाली सुविधाओं में स्थानांतरित करने से उच्च सुरक्षा वाली, बंद जेलों में कुल आबादी कम हो जाती है। कैदियों का यह पुनर्वितरण पारंपरिक जेलों पर दबाव को कम करता है, जहाँ अक्सर अत्यधिक भीड़भाड़ होती है।
- अनुपालन सुनिश्चित करने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका: ओपन जेलों के कार्यप्रणाली पर व्यापक जानकारी की आवश्यकता पर बल देकर, सर्वोच्च न्यायालय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अपने सुधारात्मक प्रणालियों के हिस्से के रूप में इस मॉडल को सक्रिय रूप से लागू कर रहे हैं।
- न्यायालय का ध्यान कैदियों के अधिकारों के संरक्षण की देख-रेख करने तथा अधिक प्रभावी जेल प्रबंधन को बढ़ावा देने के उसके व्यापक अधिदेश को भी दर्शाता है।
ओपन जेलें क्या हैं?
- सेमी-ओपन या ओपन जेलें सुधारात्मक सुविधाएँ हैं, जिन्हें पारंपरिक ऊँची दीवारों, काँटेदार तारों और सशस्त्र गार्डों के बिना बनाया गया है। पारंपरिक बंद जेलों के विपरीत ये जेलें कैदियों के आत्म-अनुशासन और सामुदायिक सहभागिता पर आधारित होती हैं। न्याय के सुधारात्मक सिद्धांत पर आधारित ओपन जेलें, कैदियों को केवल दंडित करने के अतिरिक्त उनके पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करती हैं। यह दृष्टिकोण आत्म-अनुशासन और सामुदायिक एकीकरण के माध्यम से कैदियों को कानून का पालन करने वाले नागरिकों में परिवर्तित करने पर ज़ोर देता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में पहली ओपन जेल वर्ष 1905 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी में स्थापित की गई थी, जिसमें शुरू में कैदियों को सार्वजनिक कार्यों के लिये अवैतनिक श्रमिक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।
- समय के साथ यह अवधारणा विकसित हुई, जिसमें निवारण से ज़्यादा सुधार पर ज़ोर दिया गया। आज़ादी के बाद वर्ष 1949 में लखनऊ में पहली ओपन जेल एनेक्सी स्थापित की गई, जिसके बाद वर्ष 1953 में एक पूर्ण सुविधा वाली जेल बनाई गई, जहाँ कैदियों ने चंद्रप्रभा बाँध बनाने में मदद की।
- स्वतंत्रता के बाद जेलों की अमानवीय स्थितियों के संबंध में संवैधानिक न्यायालय के फैसलों ने जेल प्रबंधन में बदलाव को प्रेरित किया तथा सुधार और पुनर्वास पर ज़ोर दिया।
- न्यायालयों ने राज्यों से उचित वेतन सुनिश्चित करने और पुनः एकीकरण का समर्थन करने का आग्रह किया, जिसके परिणामस्वरूप सुधारात्मक दृष्टिकोण के रूप में ओपन जेलों का उदय हुआ।
- विशेषताएँ: कैदियों को कुछ घंटों के दौरान जेल से बाहर जाने की स्वतंत्रता होती है और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे काम के माध्यम से अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करेंगे।
- राजस्थान ओपन एयर कैंप नियम, 1972 में ओपन जेलों को "बिना दीवारों, सलाखों और तालों वाली जेल" के रूप में परिभाषित किया गया है। कैदियों को जेल से बाहर निकलने के बाद दूसरी हाजिरी से पहले लौटना होता है।
- ओपन जेलों के प्रकार: मॉडल जेल मैनुअल भारत में ओपन जेल संस्थाओं को तीन प्रकारों में वर्गीकृत करता है:
- सेमी-ओपन प्रशिक्षण संस्थान: ये संस्थान मध्यम सुरक्षा के साथ बंद जेलों से जुड़े होते हैं।
- ओपन प्रशिक्षण संस्थान/कार्य शिविर: सार्वजनिक कार्यों और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना।
- ओपन कॉलोनियाँ: परिवार के सदस्यों को रोज़गार और आत्मनिर्भरता के अवसर प्रदान करते हुए कैदियों के साथ रहने की अनुमति देती हैं।
- पात्रता: प्रत्येक राज्य का कानून उन कैदियों की पात्रता मानदंड को परिभाषित करता है, जिन्हें ओपन जेल में रखा जा सकता है।
- मुख्य नियम यह है कि खुली हवा वाली जेल के लिये पात्र कैदी को दोषी करार दिया जाना चाहिये। जेल में अच्छा आचरण और नियंत्रित जेल में कम-से-कम पाँच वर्ष गुजारना राजस्थान की ओपन जेलों के नियमों का पालन करता है।
- पश्चिम बंगाल में जेल और पुलिस अधिकारियों की एक समिति अच्छे आचरण वाले कैदियों का चयन करती है, ताकि उन्हें ओपन जेलों में स्थानांतरित किया जा सके।
- कानूनी ढाँचा: जेलों और कैदियों का उल्लेख भारत के संविधान की 7वीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि संख्या 4 में किया गया है। अतः यह राज्य का विषय है।
- भारत में जेलों का संचालन कारागार अधिनियम, 1894 और बंदी अधिनियम, 1900 द्वारा होता है तथा प्रत्येक राज्य अपने जेल नियमों और नियमावलियों का पालन करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: ओपन जेलें सदियों से वैश्विक सुधार व्यवस्था का हिस्सा रही हैं। शुरुआती उदाहरणों में स्विटज़रलैंड का विट्ज़विल (1891) और यूके का न्यू हॉल कैंप (1936) शामिल हैं।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के नेल्सन मंडेला नियम 2015 पुनर्वास में सहायता के लिये ओपन जेल प्रणाली का समर्थन करते हैं, तथा कैदियों के रोज़गार और बाहरी संपर्क के अधिकार पर ज़ोर देते हैं।
- संस्तुतियाँ: सर्वोच्च न्यायालय ने 1996 में राममूर्ति बनाम कर्नाटक राज्य मामले में ओपन जेलों के विस्तार का समर्थन किया था। 1980 में अखिल भारतीय जेल सुधार समिति सहित विभिन्न समितियों ने राज्यों में ओपन जेलों की स्थापना की संस्तुति की है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) ने वर्ष 1994-95 और 2000-01 की अपनी कई वार्षिक रिपोर्टों में ओपन जेलों की आवश्यकता तथा जेलों में भीड़भाड़ की समस्या को हल करने के लिये इनके उपयोग का समर्थन किया था।
ओपन जेलों के क्या लाभ और हानि हैं?
श्रेणी |
लाभ |
हानि |
लागत दक्षता |
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अधिक भीड़भाड़ |
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मनोवैज्ञानिक प्रभाव |
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नियुक्तिकरण |
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पुनर्वास |
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पुनरावृत्ति |
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रोज़गार |
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सामाजिककरण |
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सुधारात्मक क्षमता |
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सामुदायिक प्रभाव |
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भारत में अन्य प्रकार की जेलें
- भारत में जेलों के तीन स्तर हैं: तालुका, ज़िला और केंद्रीय (क्षेत्रीय/रेंज) स्तर। इन स्तरों पर स्थित जेलों को क्रमशः उप-जेल, ज़िला जेल और केंद्रीय जेल के रूप में जाना जाता है।
- अन्य प्रकार की जेलें भी हैं जैसे महिला जेल, बोर्स्टल स्कूल और विशेष जेलें।
- केंद्रीय जेल: केंद्रीय जेलों के लिये मानदंड विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हैं, लेकिन उनमें सामान्यतः लंबी अवधि के कारावास की सजा पाए कैदियों को रखा जाता है, जिनमें अक्सर दो वर्ष से अधिक की सजा वाले कैदी शामिल हैं, जिनमें आजीवन कारावास की सजा वाले कैदी और जघन्य अपराध करने वाले कैदी भी शामिल हैं।
- इन जेलों में कैदियों की नैतिकता और निष्ठा को पुनः स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- ज़िला जेल: ज़िला जेल उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये मुख्य जेल हैं, जहाँ कोई केंद्रीय जेल नहीं है।
- उप जेल: ज़िला जेलों से छोटी, उप-मंडल स्तर पर अच्छी तरह से संगठित और बेहतर ढंग से स्थापित जेलें।
- विशेष जेल: ये जेल अत्यधिक सुरक्षा वाली जेलें हैं, जिनमें आतंकवाद, हिंसक अपराध, आदतन अपराधी और जेल अनुशासन के गंभीर उल्लंघन के दोषी विशेष वर्ग के कैदियों के लिये विशेष व्यवस्थाएँ हैं। ये जेलें हिंसक और आक्रामक कैदियों को रखने के लिये जानी जाती हैं।
- महिला जेल: ये जेलें विशेष रूप से महिला कैदियों के लिये, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु स्थापित की गई हैं और इनमें महिला कर्मचारी होती हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के जेल सांख्यिकी, 2022 के अनुसार भारत की 1,330 जेलों में से केवल 34 को महिला जेल के रूप में नामित किया गया है।
- सीमित क्षमता के कारण कई महिला कैदियों को अन्य प्रकार की जेलों में रखा जाता है।
- बोर्स्टल स्कूल: यह एक प्रकार का युवा निरोध केंद्र है। इसका उपयोग विशेष रूप से नाबालिगों या किशोरों को रखने के लिये किया जाता है।
- इन विद्यालयों का प्राथमिक उद्देश्य युवा अपराधियों की देखभाल, कल्याण और पुनर्वास सुनिश्चित करना है, जो बच्चों के लिये उपयुक्त वातावरण में हो तथा उन्हें जेल के संक्रामक वातावरण से दूर रखे।
- अन्य जेल: जो जेलें ऊपर बताई गई श्रेणियों में नहीं आती हैं, वे अन्य जेलों की श्रेणी में आती हैं। केवल तीन राज्यों में अन्य जेल हैं।
- इन राज्यों के नाम कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र हैं तथा प्रत्येक राज्य में एक अन्य जेल है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारतीय जेल प्रणाली में ओपन जेलों की भूमिका पर चर्चा कीजिये। वे जेलों में भीड़भाड़ और कैदियों के पुनर्वास के मुद्दों को कैसे संबोधित करती हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न. मृत्यु दंडादेशों के लघुकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिये एक समय सीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये? विश्लेषण कीजिये। (2014) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
OPEC+ ने उत्पादन में कटौती की योजना बनाई
प्रिलिम्स के लिये:पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, ओपेक+, नवीकरणीय ऊर्जा मेन्स के लिये:भारत के ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत के ऊर्जा परिवर्तन को आकार देने वाली पहल |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC)+ देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती की हाल की घोषणा से वैश्विक तेल बाज़ार और भारत की ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- भारत की ईंधन खपत जो वर्ष 2024 में लगभग 4.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन है, वर्ष 2028 तक 6.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँचने की उम्मीद है, ये कटौतियाँ भारतीय रिफाइनरों को अमेरिका से अधिक कच्चा तेल खरीदने के लिये प्रेरित कर सकती हैं, जो वैश्विक तेल व्यापार में बदलाव को उजागर करती हैं।
पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) क्या है?
- परिचय:
- पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला द्वारा की गई थी।
- इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में स्थित है।
- उद्देश्य:
- इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना है तथा उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक एवं नियमित आपूर्ति, उत्पादकों को स्थिर आय व पेट्रोलियम उद्योग में निवेश करने वालों के लिये पूंजी पर उचित रिटर्न सुनिश्चित करने हेतु तेल बाज़ारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है।
- सदस्य:
- वर्तमान में संगठन के कुल 12 सदस्य देश हैं: अल्जीरिया, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला।
- कतर ने 1 जनवरी, 2019 को अपनी सदस्यता समाप्त कर दी। अंगोला ने 1 जनवरी, 2024 से अपनी सदस्यता वापस ले ली।
- ओपेक देश विश्व के लगभग 30% कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं।
- सऊदी अरब इस समूह में सबसे बड़ा एकल तेल आपूर्तिकर्त्ता है, जो प्रतिदिन 10 मिलियन बैरल से अधिक तेल का उत्पादन करता है।
- ओपेक की रिपोर्ट के अनुसार इसके सदस्य देश वैश्विक कच्चे तेल निर्यात का लगभग 49% प्रतिनिधित्व करते हैं तथा विश्व के प्रमाणित तेल भंडार का लगभग 80% हिस्सा उनके पास है।
- वर्तमान में संगठन के कुल 12 सदस्य देश हैं: अल्जीरिया, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला।
- ओपेक+:
- वर्ष 2016 में अमेरिकी शेल तेल उत्पादन में वृद्धि के कारण तेल की कीमतों में गिरावट आई, जिसकी प्रतिक्रिया में ओपेक ने 10 अतिरिक्त तेल उत्पादक देशों के साथ गठबंधन बनाया, जिसके परिणामस्वरूप ओपेक+ की स्थापना हुई।
- ओपेक+ में अब अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान के साथ 12 ओपेक सदस्य देश शामिल हैं।
- ओपेक+ देश विश्व के कुल कच्चे तेल का लगभग 40% उत्पादन करते हैं।
- वर्ष 2016 में अमेरिकी शेल तेल उत्पादन में वृद्धि के कारण तेल की कीमतों में गिरावट आई, जिसकी प्रतिक्रिया में ओपेक ने 10 अतिरिक्त तेल उत्पादक देशों के साथ गठबंधन बनाया, जिसके परिणामस्वरूप ओपेक+ की स्थापना हुई।
ओपेक+ तेल उत्पादन में कटौती की योजना क्यों बना रहा है?
- बाज़ार स्थिरीकरण: ओपेक+ का लक्ष्य अस्थिर मांग और अधिक आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए उत्पादन में कटौती करके तेल की कीमतों को संयत करना तथा साथ ही कीमतों में वृद्धि करना है।
- इस रणनीति का उद्देश्य आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों के बीच तेल उत्पादक देशों के लिये राजस्व बढ़ाना है।
- गैर-ओपेक आपूर्ति वृद्धि पर प्रतिक्रिया: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने गैर-ओपेक+ कच्चे तेल की आपूर्ति में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान लगाया है, विशेष रूप से अमेरिका, कनाडा, ब्राज़ील और गुयाना से।
- यह अंतर्वाह ओपेक की बाज़ार हिस्सेदारी को चुनौती देता है, जिससे समूह को मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है।
- भू-राजनीतिक तनावों पर प्रतिक्रिया: मध्य पूर्व में संघर्ष, शिपिंग मार्गों में व्यवधान तथा रूसी कच्चे तेल निर्यात पर जारी प्रतिबंधों जैसे बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों ने तेल की आपूर्ति और कीमतों को प्रभावित किया है।
- ओपेक+ का लक्ष्य समन्वित उत्पादन कटौती के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करना है।
- दीर्घकालिक रणनीति: ओपेक+ का लक्ष्य उत्पादन के स्थायी स्तर को सुनिश्चित करना और बाज़ार में होने वाली गिरावट को रोकना है, जो आपूर्ति के मांग से अधिक होने पर हो सकती है। उत्पादन को नियंत्रित करके वे अधिक पूर्वानुमानित और स्थिर बाज़ार वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
ओपेक+ तेल उत्पादन में कटौती के क्या निहितार्थ हैं?
- तेल की वैश्विक कीमतें:
- ओपेक+ के उत्पादन में कमी से वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने की संभावना है। इसके परिणामस्वरूप आयात करने वाले देशों की लागत बढ़ सकती है, जिसका असर मुद्रास्फीति दरों और आर्थिक विकास पर पड़ सकता है।
- भारत के लिये निहितार्थ:
- आपूर्ति गतिशीलता में बदलाव: ओपेक+ द्वारा उत्पादन कम करने के कारण भारत अमेरिका, कनाडा, ब्राज़ील और गुयाना जैसे गैर-ओपेक+ देशों से कच्चे तेल का आयात बढ़ा सकता है। यह बदलाव भारत के आयात स्रोतों में विविधता ला सकता है, जिससे पश्चिम एशियाई कच्चे तेल पर निर्भरता कम हो सकती है।
- यह विविधीकरण रणनीति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिम एशियाई आयात पहले ही वर्ष 2022 में 2.6 mb/d से घटकर वर्ष 2023 में 2 mb/d हो गया है।
- मूल्य अस्थिरता की संभावना: भारत के लिये आपूर्तिकर्त्ताओं की श्रेणी में विविधता लाने से ऊर्जा सुरक्षा बढ़ सकती है, लेकिन गैर-ओपेक स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता से भारत को इन बाज़ारों में मूल्य में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से आयात बिल बढ़ सकता है और व्यापार संतुलन प्रभावित हो सकता है।
- भारत विश्व में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है (अमेरिका व चीन के बाद) और इसकी आयात निर्भरता का स्तर 85% से अधिक है।
- आर्थिक विकास: तेल की ऊँची कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकती हैं, विशेषकर तेल पर निर्भर क्षेत्रों पर। इससे परिवहन लागत और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे समग्र आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
- आपूर्ति गतिशीलता में बदलाव: ओपेक+ द्वारा उत्पादन कम करने के कारण भारत अमेरिका, कनाडा, ब्राज़ील और गुयाना जैसे गैर-ओपेक+ देशों से कच्चे तेल का आयात बढ़ा सकता है। यह बदलाव भारत के आयात स्रोतों में विविधता ला सकता है, जिससे पश्चिम एशियाई कच्चे तेल पर निर्भरता कम हो सकती है।
भारत में तरल ईंधन की खपत और क्षमता विस्तार में अनुमानित प्रवृत्ति क्या हैं?
- बढ़ती ईंधन खपत: भारत में तरल ईंधन की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। अनुमानों के अनुसार तरल ईंधन की खपत वर्ष 2023 में 5.3 mb/d से बढ़कर वर्ष 2028 तक 6.6 mb/d हो जाएगी, जो पाँच वर्षों में 26% की वृद्धि है।
- इस वृद्धि का श्रेय विभिन्न आर्थिक कारकों को दिया जाता है, जिसमें जनसंख्या वृद्धि, GDP वृद्धि और प्रति व्यक्ति GDP में वृद्धि शामिल है।
- EIA का अनुमान है कि वर्ष 2037 तक तरल ईंधन की खपत में वार्षिक वृद्धि औसतन 4% से 5% के बीच होगी।
- क्षमता विस्तार: भारत ने वर्ष 2011 और 2023 के दौरान अपनी रिफाइनिंग क्षमता में 1.3 mb/d का विस्तार किया है तथा बढ़ती घरेलू ईंधन मांग को पूरा करने के लिये आगे के विस्तार की योजना बना रहा है।
- वर्ष 2028 तक 1.2 mb/d रत्नागिरी मेगा परियोजना सहित 11 नई कच्चे तेल क्षमता परियोजनाओं की उम्मीद है।
भारत के ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- ऊर्जा सुरक्षा और आयात निर्भरता तथा भूराजनीति: भारत अपनी तेल ज़रूरतों के 75% से अधिक के लिये आयात पर निर्भर है, जिसके वर्ष 2040 तक 90% से अधिक हो जाने का अनुमान है। अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों पर यह बढ़ती निर्भरता बहुत बड़ा जोखिम उत्पन्न करती है।
- आयातित तेल पर बढ़ती निर्भरता ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को गंभीर संकट में डाल दिया है, साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध तथा रूस पर अमेरिका, ब्रिटेन एवं यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों जैसे भू-राजनीतिक व्यवधानों ने समस्या को और भी बढ़ा दिया है। वित्त वर्ष 2024 में भारत के तेल आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा लगभग 36% था।
- भारत को नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन के लिये चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों और संबंधित कच्चे माल के लिये चीन पर निर्भरता शामिल है।
- घरेलू उत्पादन में गिरावट: अन्वेषण और पुराने तेल क्षेत्रों में अपर्याप्त निवेश के कारण वर्ष 2011-12 से भारत के कच्चे तेल के उत्पादन में गिरावट आई है।
- सरकारी आँकड़ों के अनुसार यह वर्ष 2019-20 में 32.2 मिलियन टन से घटकर वर्ष 2022-23 में 29.2 मिलियन टन रह गया।
- अवसंरचनात्मक अड़चनें: सीमित पाइपलाइन अवसंरचना और भंडारण सुविधाएँ भारत में कच्चे तेल के कुशल परिवहन एवं वितरण में बाधा डालती हैं।
- इसमें भूमि अधिग्रहण की अड़चन, विनिवेश, मांग में उछाल, प्रबंधन कौशल की कमी, नियामक मंजूरी में देरी, जलवायु परिवर्तन, कम निवेश की अड़चन आदि जैसे मुद्दे भी शामिल हैं।
- बढ़ता आयात बिल: भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक तेल मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है, जिसके परिणामस्वरूप आयात बिल बढ़ रहे हैं जो राजकोषीय स्थिरता को खतरे में डालते हैं।
- भारत का शुद्ध तेल आयात बिल वित्त वर्ष 2025 में 101-104 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2024 में 96.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जो वर्तमान खाता घाटे (CAD) को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और यदि उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो संभावित रूप से उच्च मुद्रास्फीति एवं राजकोषीय घाटे का कारण बन सकता है।
आगे की राह
- द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना: भारत को स्थिर और अनुकूल आपूर्ति समझौते प्राप्त करने के लिये अमेरिका में तेल उत्पादक देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- घरेलू रिफाइनरी क्षमता में निवेश: रिफाइनिंग क्षमता में निरंतर निवेश आवश्यक है। वर्ष 2028 तक 11 नई परियोजनाओं की योजना के साथ भारत को आत्मनिर्भरता बढ़ाने और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये इन विकास परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- रणनीतिक भंडार: रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों का निर्माण आपूर्ति व्यवधानों और मूल्य झटकों(price shocks) के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान कर सकता है, जिससे अस्थिर बाज़ार स्थितियों के दौरान ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है।
- ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: क्रूड आयल के अलावा भारत को जीवाश्म ईंधन पर समग्र निर्भरता को कम करने और ऊर्जा लचीलापन बढ़ाने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा सहित वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- वैश्विक प्रवृत्ति की निगरानी: वैश्विक तेल बाज़ार की प्रवृत्ति और ओपेक+ निर्णयों पर कड़ी निगरानी रखने से भारत अपनी ऊर्जा रणनीति को सक्रिय रूप से अनुकूलित करने में सक्षम होगा, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में सतत् विकास एवं स्थिरता सुनिश्चित होगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: ओपेक क्या है? विश्लेषण कीजिये कि वैश्विक तेल आपूर्ति गतिशीलता में परिवर्तन, विशेष रूप से गैर-ओपेक+ देशों से, आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न. वेनेज़ुएला के अलावा दक्षिण अमेरिका से निम्नलिखित में से कौन ओपेक का सदस्य है? (2009) (a) अर्जेंटीना उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)। |
UPSC
LGBTQIA+ समुदाय के लिये सरकारी उपाय
स्रोत: पी. आई. बी
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग (Department of Social Justice and Empowerment- DoSJE) ने LGBTQIA+ समुदाय के लिये नीतियों में समावेशिता बढ़ाने हेतु हितधारकों और आम जनता से सुझाव मांगे हैं।
- यह प्रयास समलैंगिक अधिकारों की रक्षा और उनके अधिकारों को स्पष्ट करने के लिये वर्ष 2023 में दिये गए सर्वोच्च न्यायालय (SC) के निर्देशों के जवाब में भारत सरकार द्वारा की गई प्रमुख कार्रवाइयों के बाद किया गया है।
नोट: LGBTQIA+ एक संक्षिप्त नाम है जो लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल का प्रतिनिधित्व करता है। "+" कई अन्य पहचानों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें अभी भी खोजा और समझा जा रहा है।
LGBTQIA+ अधिकारों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश क्या थे?
- समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के संबंध में अपने फैसले में जारी किये गए सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश (सुप्रियो@सुप्रिया बनाम यूनियन, 2023), LGBTQIA+ व्यक्तियों के लिये अधिकारों और पात्रताओं के विस्तार पर केंद्रित थे, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया, लेकिन LGBTQIA+ लोगों और समलैंगिक रिश्तों में रहने वाले जोड़ों के अधिकारों की जाँच के लिये एक समिति बनाने की सरकार की योजना पर ध्यान दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के जवाब में सरकार ने सामाजिक कल्याण, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक सेवाओं और पुलिस व्यवस्था में भेदभाव से निपटने के लिये अप्रैल 2024 में कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
- इन उपायों की निगरानी और कार्यान्वयन के लिये गृह सचिव के अधीन एक उप-समिति भी स्थापित की गई।
सरकार द्वारा क्या अंतरिम कार्रवाई की गई है?
- राशन कार्ड संबंधी परामर्श: खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सलाह दी है कि वे राशन कार्ड के प्रयोजनों के लिये समलैंगिक रिश्तों में रहने वाले भागीदारों को उसी घर का सदस्य मानें।
- इसके अतिरिक्त राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक उपाय करने को कहा गया है कि समलैंगिक रिश्तों में रहने वाले भागीदारों को राशन कार्ड जारी करने में किसी भी प्रकार का भेदभाव न झेलना पड़े।
- बैंकिंग अधिकार: वित्तीय सेवा विभाग ने पुष्टि की है कि समलैंगिक समुदाय के व्यक्तियों के लिये संयुक्त बैंक खाता खोलने तथा खाताधारक की मृत्यु की स्थिति में खाते में शेष राशि प्राप्त करने हेतु समलैंगिक संबंध वाले किसी व्यक्ति को नामित करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
- स्वास्थ्य देखभाल पहल: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कई पहल की हैं, जिनमें धर्मांतरण चिकित्सा पर प्रतिबंध, जागरूकता गतिविधियों की योजना बनाना, लिंग परिवर्तन सर्जरी की उपलब्धता सुनिश्चित करना तथा समलैंगिकता से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों को शामिल करने के लिये चिकित्सा पाठ्यक्रम को संशोधित करना शामिल है।
- स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने LGBTQI+ समुदाय के लिये भेदभाव को कम करने और सुलभ स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने हेतु राज्य स्वास्थ्य विभागों को पत्र जारी किये हैं।
- चिकित्सकीय रूप से सामान्य जीवन सुनिश्चित करने के लिये इंटरसेक्स स्थितियों वाले शिशुओं/बच्चों में चिकित्सा हस्तक्षेप हेतु दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।
- इसके अतिरिक्त मंत्रालय समलैंगिक समुदाय के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिये दिशा-निर्देशों पर भी काम कर रहा है।
- जेल मुलाकात और कानून एवं व्यवस्था संबंधी परामर्श: गृह मंत्रालय ने समलैंगिक समुदाय के लिये जेल मुलाकात के अधिकारों तथा हिंसा, उत्पीड़न या जबरदस्ती से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कानून एवं व्यवस्था संबंधी उपायों के संबंध में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को परामर्श जारी किया।
LGBTQIA+ समुदाय के संबंध में अन्य क्या उपाय किये गए?
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय पोर्टल
- गरिमा गृह
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020
- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन (SMILE) योजना
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय परिषद
- स्वच्छ भारत मिशन (शहरी): इसने अपने नीति दिशानिर्देशों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये समर्पित शौचालयों को शामिल किया है।
- आयुष्मान भारत TG प्लस कार्ड: यह SMILE योजना को आयुष्मान भारत योजना से जोड़कर ट्रांसजेंडर समुदाय को 50 से अधिक निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करता है।
- नोट: सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया: नवतेज सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ मामले, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच जजों की बेंच ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया, जिससे वयस्कों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया। LGBT व्यक्तियों को अब कानूनी रूप से सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: LGBTQI+ समुदाय की सहायता के लिये भारत सरकार ने क्या उपाय लागू किये हैं? उनके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
और पढ़ें: भारत में LGBTQIA+ अधिकारों की मान्यता
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्स:प्रश्न. प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों और निर्णय विधियों की मदद से लैंगिक न्याय के संवैधानिक परिप्रेक्ष्य की व्याख्या कीजिये। (2023) |
शासन व्यवस्था
शिक्षा मंत्रालय द्वारा NILP के तहत साक्षरता की परिभाषा
प्रिलिम्स के लिये:न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम (NILP), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, सतत् विकास लक्ष्य, PARAKH, NIPUN, साक्षर भारत कार्यक्रम, जनगणना- 2011, आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मक मूल्यांकन परीक्षण (FLNAT)। मेन्स के लिये:NILP के तहत साक्षरता और पूर्ण साक्षरता की परिभाषा, भारत में साक्षरता से संबंधित चुनौतियाँ, शिक्षा में सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में शिक्षा मंत्रालय (MoE) ने नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (New India Literacy Programme- NILP) के तहत वयस्क साक्षरता पर अपने नए केंद्र बिंदु रूप में ‘साक्षरता’ और ‘पूर्ण साक्षरता प्राप्त करने का क्या मतलब है’, को परिभाषित किया है।
नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (NILP) क्या है?
- परिचय:
- नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (NILP) एक केंद्र प्रायोजित पहल है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के साथ संरेखित है।
- इसे समाज में सभी के लिये आजीवन सीखने की समझ (ULLAS) नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (पहले वयस्क शिक्षा के रूप में जाना जाता था) के रूप में भी जाना जाता है।
- विज़न/दृष्टि:
- इस योजना का विज़न भारत को ‘जन जन साक्षर’ बनाना है और यह ‘कर्त्तव्य बोध’ (कर्त्तव्य) की भावना पर आधारित है तथा इसे स्वैच्छिकता के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य ऑनलाइन शिक्षण, अधिगम और मूल्यांकन प्रणाली (OTLAS) के माध्यम से प्रति वर्ष 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 1 करोड़ निरक्षरों को शिक्षित करना है।
- OTLAS एक कंप्यूटर एप्लीकेशन है जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा विकसित ULLAS के तहत वेब पोर्टल/मोबाइल ऐप में सन्निहित किया गया है।
- इसे 1037.90 करोड़ रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ वित्त वर्ष 2022-23 से 2026-27 तक 5 वर्षों के दौरान कार्यान्वयन के लिये लॉन्च किया गया था।
- इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास (UNSDG) लक्ष्य 4.6 (यह सुनिश्चित करना कि सभी युवा और वयस्क वर्ष 2030 तक आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता प्राप्त करें) को प्राप्त करना है।
- इसका उद्देश्य ऑनलाइन शिक्षण, अधिगम और मूल्यांकन प्रणाली (OTLAS) के माध्यम से प्रति वर्ष 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 1 करोड़ निरक्षरों को शिक्षित करना है।
- योजना के प्रमुख घटक:
- आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता मूल्यांकन परीक्षण (FLNAT)
- महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल
- व्यावसायिक कौशल विकास
- बुनियादी शिक्षा
- सतत् शिक्षा
- लाभार्थी पहचान:
- लाभार्थियों की पहचान मोबाइल ऐप के माध्यम से डोर-टू-डोर सर्वेक्षण के माध्यम से की जाती है और गैर-साक्षर लोग भी ऐप के माध्यम से स्वयं पंजीकरण कर सकते हैं।
- अन्य प्रमुख पहलू:
- यह योजना शिक्षण और अधिगम के लिये स्वयंसेवा पर बहुत अधिक निर्भर करती है तथा स्वयंसेवक इस कार्यक्रम के तहत मोबाइल ऐप के माध्यम से पंजीकरण करा सकते हैं।
- NILP का क्रियान्वयन मुख्यतः ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाता है तथा इसमें प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता है।
- शैक्षिक सामग्री और संसाधन NCERT के दीक्षा प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराए गए हैं, जिन्हें मोबाइल ऐप के माध्यम से सुलभ बनाया गया है।
- बुनियादी साक्षरता और अंकगणित कौशल के प्रसार के लिये टीवी, रेडियो एवं सामाजिक चेतना केंद्र सहित विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया जाता है।
NILP के अंतर्गत साक्षरता की परिभाषा क्या है?
- साक्षरता की परिभाषा: शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, साक्षरता को अब इस प्रकार परिभाषित किया जाएगा, "पढ़ने, लिखने और समझ के साथ गणना करने की क्षमता, यानी पहचान करने, समझने, व्याख्या करने तथा बनाने की क्षमता, साथ ही डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता आदि जैसे महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल आदि।"
- पूर्ण साक्षरता: किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (UT) को पूर्ण साक्षर तब माना जाता है जब वह 95% साक्षरता दर प्राप्त कर लेता है।
- साक्षरता प्रमाणन हेतु मानदंड: NILP के तहत यदि कोई गैर-साक्षर व्यक्ति FLNAT उत्तीर्ण कर लेता है तो उसे साक्षर माना जाता है।
- बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक मूल्यांकन परीक्षा (FLNAT):
- यह बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल का मूल्यांकन करने के लिये तीन विषयों- पढ़ना, लिखना तथा संख्यात्मकता का मूल्यांकन करता है।
- यह परीक्षा प्रत्येक भाग लेने वाले राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों में ज़िला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों (DIET) तथा सरकारी/सहायता प्राप्त स्कूलों में आयोजित की जाएगी।
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप गैर-साक्षर शिक्षार्थियों को प्रामाणित करना और क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा आयोजित करके बहुभाषावाद को बढ़ावा देना है।
- FLNAT सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद किसी व्यक्ति को साक्षर घोषित किया जाता है।
- वर्ष 2023 में FLNAT में भाग लेने वाले 39,94,563 वयस्क शिक्षार्थियों में से 36,17,303 को साक्षर के रूप में प्रमाणित किया गया। हालाँकि वर्ष 2024 में FLNAT में केवल 85.27% को ही साक्षर के रूप में प्रमाणित किया गया।
भारत में साक्षरता से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- निम्न साक्षरता स्तर: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के 25.76 करोड़ निरक्षर व्यक्ति थे (9.08 करोड़ पुरुष और 16.68 करोड़ महिलाएँ)।
- साक्षर भारत कार्यक्रम (2009-10 से 2017-18) के माध्यम से हुई प्रगति के बावजूद, जिसके तहत 7.64 करोड़ लोगों को साक्षर प्रमाणित किया गया, अनुमानतः देश में 18.12 करोड़ वयस्क निरक्षर हैं, जो NILP की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- कम बजट आवंटन: न्यू इंडिया लिटरेसी प्रोग्राम (NILP) के लिये बजट आवंटन को वर्ष 2023-24 में 157 करोड़ रुपए से घटाकर संशोधित बजट अनुमान में 100 करोड़ रुपए कर दिया गया, जो वित्तीय बाधाओं को दर्शाता है।
- लैंगिक असमानता: साक्षरता दर में लैंगिक असमानता बहुत ज़्यादा है और महिलाओं को अक्सर शिक्षा तक कम पहुँच मिलती है। पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ, सांस्कृतिक मानदंड और आर्थिक कारक इस असमानता में योगदान करते हैं। कई क्षेत्रों में लड़कियों से अपेक्षा की जाती है कि वे शिक्षा की तुलना में घर के कार्यों को प्राथमिकता दें, जिसके कारण महिला छात्रों के नामांकन में कमी आती है और स्कूल छोड़ने की दर अधिक होती है।
- यह लैंगिक अंतर समाज में महिलाओं के समग्र विकास और सशक्तीकरण में बाधा डालता है।
- शिक्षा की गुणवत्ता: कई भारतीय स्कूलों में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षा की गुणवत्ता अक्सर खराब होती है। शिक्षक प्रशिक्षण की अपर्याप्ता, पुराना पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री की कमी सभी खराब शैक्षिक परिणामों की ओर ले जाती है। यहाँ तक कि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले छात्रों में भी अक्सर बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक कौशल की कमी होती है, जो शिक्षा तक पहुँच और वास्तविक सीखने के बीच के अंतर को उजागर करती है।
- उच्च ड्रॉपआउट दरें: भारत में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और आर्थिक रूप से वंचित समूहों में उच्च ड्रॉपआउट दर का सामना करना पड़ता है। आर्थिक दबाव कई बच्चों को परिवार की आय में योगदान देने हेतु जल्दी स्कूल छोड़ने के लिये मज़बूर करता है।
- यह समस्या विशेष रूप से लड़कियों में अधिक पाई जाती है, जो कम उम्र में विवाह, घरेलू ज़िम्मेदारियों या स्कूल में सुरक्षा और पहुँच की चिंता के कारण स्कूल छोड़ देती हैं।
- आर्थिक बाधाएँ: भारत में साक्षरता के लिये गरीबी एक बड़ी बाधा है। कई परिवार अपने बच्चों को स्कूल भेजने में असमर्थ हैं, इसलिये वे शिक्षा के स्थान पर कार्य को प्राथमिकता देते हैं। यदि कुछ बच्चे स्कूल में प्रवेश ले भी लें तो यूनिफॉर्म, किताबों और परिवहन पर होने वाला खर्च बहुत अधिक होता है।
- आर्थिक बाधाएँ भी शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं क्योंकि अल्प वित्तपोषित स्कूल छात्रों को पर्याप्त संसाधन और सहायता प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।
शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकार की पहल क्या हैं?
आगे की राह
- समुदाय-केंद्रित साझेदारियाँ: हाशिये पर पड़ी आबादी की प्रभावी पहचान करने और उन्हें शामिल करने के लिये स्थानीय समुदायों, गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के साथ सहयोग करना चाहिये।
- लचीले शिक्षण मॉडल: विभिन्न कार्यक्रमों और प्राथमिकताओं को समायोजित करने के लिये शाम की कक्षाएँ, सप्ताहांत कार्यशालाएँ (Weekend Workshops) तथा ऑनलाइन पाठ्यक्रम जैसे विविध शिक्षण प्रारूपों को लागू करना चाहिये, जिससे पहुँच का विस्तार हो सके।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण को एकीकृत करना, व्यक्तिगत निर्देश हेतु अनुकूली शिक्षण प्लेटफार्मों का उपयोग करना तथा पहुँच और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये मोबाइल शिक्षण अनुप्रयोगों का विकास करना चाहिये।
- प्रोत्साहन और सहकर्मी शिक्षण: सहभागिता को बढ़ाने और सहायता प्रदान करने के लिये सहकर्मी से सहकर्मी सीखने (peer-to-peer learning) को बढ़ावा दें, साथ ही शिक्षार्थियों को प्रेरित करने के लिये कौशल प्रमाणपत्र एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसर जैसे प्रोत्साहन प्रदान करना।
- जीवन कौशल प्रशिक्षण को एकीकृत करना: वित्तीय साक्षरता, स्वास्थ्य और कल्याण शिक्षा, एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल करना ताकि शिक्षार्थियों को बेहतर रोज़गार व निर्णय लेने के लिये आवश्यक जीवन कौशल प्रदान किया जा सके।
- भागीदारी को मज़बूत करना: संसाधनों का लाभ उठाने, विशेषज्ञता साझा करने और सर्वोत्तम पद्धतियों को लागू करने हेतु सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र के संगठनों एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के बीच प्रभावी सहयोग स्थापित करना।
- निगरानी और मूल्यांकन: कार्यक्रम की प्रभावशीलता में निरंतर सुधार सुनिश्चित करने हेतु नियमित मूल्यांकन और डेटा-संचालित निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक प्रभावी निगरानी एवं मूल्यांकन ढाँचा लागू करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में स्कूली शिक्षा प्रणाली में क्या समस्याएँ हैं? भारत में वर्तमान प्रणाली इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकती है और समावेशी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकती है? |
प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें: (a)केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |