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नीतिशास्त्र

मूल्यों को विकसित करने में परिवार, समाज और शैक्षिक संस्थानों की भूमिका

  • 27 Jun 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

न्याय, समानता, सांस्कृतिक परंपराएँ, सामुदायिक सेवा, पर्यावरण, संचार, विरासत, क्षमा, बंधुत्व, त्योहार, मीडिया, लोकतंत्र 

मेन्स के लिये:

मूल मूल्यों और सामाजिक मानदंडों को विकसित करने में परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाएँ।

मूल्य क्या हैं?

मूल्य मूलभूत एवं मौलिक विश्वास हैं जो दृष्टिकोण या कार्यों को निर्देशित या प्रेरित करते हैं। 

  • मूल्य वे "चीज़ें हैं जिनका स्वामी के लिये उपयोगिता या महत्त्व में अंतर्निहित मूल्य होता है" या "सिद्धांत, मानक या गुण जो सार्थक या वांछनीय माने जाते हैं।"
  • मूल्य आत्म-जागरूकता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू हैं तथा व्यक्ति के लिये मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करते हैं।

मानवीय मूल्य क्या हैं?

  • मानवीय मूल्य वे सद्गुण हैं जो हमें अन्य मनुष्यों के साथ व्यवहार करते समय मानवीय तत्त्व को ध्यान में रखने के लिये मार्गदर्शन करते हैं।
  • मानवीय मूल्य समाज में किसी भी व्यवहार्य जीवन की नींव हैं। वे एक-दूसरे के प्रति प्रेरणा, आंदोलन के लिये जगह बनाते हैं, जो शांति की ओर ले जाता है।
  • बुनियादी अंतर्निहित मानवीय मूल्यों में सत्य, ईमानदारी, निष्ठा, प्रेम, शांति आदि शामिल हैं। वे मानव और समाज की मौलिक अच्छाई को सामने लाते हैं।
  • पाँच मानवीय मूल्य जो सभी मनुष्यों से अपेक्षित हैं, वे हैं:
    • सही आचरण: इसमें स्वयं-सहायता कौशल (विनम्रता, आत्मनिर्भरता आदि), सामाजिक कौशल (अच्छा व्यवहार, पर्यावरण जागरूकता आदि) और नैतिक कौशल (साहस, दक्षता, समय की पाबंदी आदि) जैसे मूल्य शामिल हैं।
    • शांति: इसमें विनम्रता, आशावाद, धैर्य, आत्मविश्वास, आत्म-नियंत्रण, आत्म-सम्मान आदि जैसे मूल्य शामिल हैं।
    • सत्य: इसमें सटीकता, निष्पक्षता, ईमानदारी, न्याय, ज्ञान की खोज, दृढ़ संकल्प आदि जैसे मूल्य शामिल हैं।
    • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्त्व: इसमें मनोवैज्ञानिक (परोपकार, करुणा, क्षमा आदि) और सामाजिक (भ्रातृत्व, समानता, दूसरों के प्रति सम्मान आदि) जैसे मूल्य शामिल हैं।
    • अनुशासन: इसमें विनियमन, निर्देश, आदेश आदि जैसे मूल्य शामिल हैं।

मूल्यों को विकसित करने में परिवार की क्या भूमिका है?

  • परिवार वह नींव है जिस पर मूल्यों का निर्माण होता है। यह बच्चे के नैतिक मूल्यों को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण है।
  • माता-पिता और बच्चों के बीच घनिष्ठ संपर्क होता है, जो बच्चे के व्यक्तित्व को निर्धारित करता है।
  • परिवार लोगों तथा समाज के प्रति बच्चे के दृष्टिकोण को आकार देता है और साथ ही बच्चे के मानसिक विकास में भी सहायता प्रदान करता है तथा उसकी महत्त्वाकांक्षाओं एवं मूल्यों का समर्थन करता है।
  • परिवार में आनंदमय वातावरण से प्रेम, स्नेह, सहनशीलता एवं उदारता का विकास होगा। एक बच्चा अपने आस-पास जो देखता है उसका अनुकरण करके अपना व्यवहार सीखता है।
  • परिवार निम्नलिखित द्वारा मूल्यों को विकसित करने में सहायता करता है:
  • व्यवहार का अनुकरण:
    • परिवार के सदस्य, विशेषरूप से माता-पिता, रोल मॉडल के रूप में कार्य करते हैं। बच्चे अपने माता-पिता एवं भाई-बहनों के कार्यों को देखते हैं और साथ ही उनकी नकल भी करते हैं, जैसे कि जब माता-पिता नियमित रूप से दूसरों के प्रति दयालुता एवं सम्मान दिखाते हैं, तो बच्चे भी उनका अनुसरण करने के लिये इच्छुक होते हैं और दूसरों के साथ अपने व्यवहार में सहानुभूति तथा सम्मान का मूल्य सीखते हैं।
  • अनुदेशात्मक शिक्षण:
    • परिवार स्पष्ट निर्देश एवं मार्गदर्शन के माध्यम से मूल्यों का संचार करते हैं। 
    • इसमें धार्मिक प्रथाओं, सांस्कृतिक परंपराओं या ईमानदारी एवं निष्ठा जैसे नैतिक सिद्धांतों को सिखाना शामिल हो सकता है, उदाहरण के लिये, ईमानदारी को प्राथमिकता देने वाला परिवार सच बोलने के महत्त्व के बारे में जागरूक कर सकता है और बच्चों को उनके व्यवहार में ईमानदार होने के लिये प्रोत्साहित भी कर सकता है, भले ही यह चुनौतीपूर्ण हो।
  • अनुभवों को सुविधाजनक बनाना:
    • परिवार ऐसे अनुभव सृजित करते हैं जो मूल्यों को सुदृढ़ बनाते हैं। 
    • इसमें सामुदायिक सेवा में भाग लेना, धार्मिक सेवाओं के साथ-साथ पारिवारिक परंपराओं में शामिल होना शामिल हो सकता है, उदाहरण के लिये एक परिवार स्थानीय खाद्य बैंक में एक साथ स्वयंसेवा कर सकता है, बच्चों को सामुदायिक सेवा और ज़रूरतमंद लोगों के प्रति करुणा का महत्त्व सिखा सकता है।
  • सहायक वातावरण को बढ़ावा देना:
    • परिवार एक पोषणकारी वातावरण स्थापित करते हैं जहाँ व्यक्ति सुरक्षित रूप से अपने मूल्यों का पता लगा सकते हैं और उन्हें व्यक्त कर सकते हैं। 
    • यह सहयोगी वातावरण व्यक्तियों में विश्वास प्राप्त करने के साथ ही उन्हें कार्यान्वित करने का साहस प्रदान करता है। उदाहरण के लिये, एक परिवार जो खुले संचार को प्राथमिकता देता है, वह बच्चों को अपनी भावनाओं एवं विचारों को व्यक्त करने का अधिकार भी प्रदान सकता है, भले ही वे उनके विचार माता-पिता से भिन्न हों, इस प्रकार पारस्परिक सम्मान एवं समझ पर आधारित वातावरण को बढ़ावा मिलता है।
  • जातीय-धार्मिक अनुष्ठान:
    • परिवार प्राय: बच्चों को मूल्यों एवं नैतिक शिक्षाओं से युक्त सांस्कृतिक तथा धार्मिक प्रथाओं से परिचित कराते हैं।
    • इन प्रथाओं में संलग्न होने से अपनेपन की भावना, विरासत के प्रति श्रद्धा एवं नैतिक मानकों की समझ विकसित हो सकती है, उदाहरण के लिये, धार्मिक सिद्धांतों में आमतौर पर नैतिक उपदेशों के साथ नैतिक आचरण को शामिल किया जाता है, जो पारिवारिक संदर्भ में व्यक्त किये जाते हैं, जैसे सहानुभूति, क्षमा तथा उत्तरदायित्व।

मूल्यों के विकास में समाज की क्या भूमिका है?

  • समाज मूल्यों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे साथियों के साथ बातचीत करते हैं, विचारों और अनुभवों को साझा करते हैं।
  • समाज विशिष्ट परंपराओं और रीति-रिवाज़ों का पालन करके व्यक्ति के चरित्र को भी आकार देता है, जिसका हम हिस्सा बन जाते हैं।
  • ये परंपराएँ, वफ़ादारी, साहस, प्रेम और भाईचारे जैसे मूल्यों पर आधारित हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं।
  • विभिन्न त्योहारों को एक साथ मनाना सौहार्दपूर्ण सद्भाव को बढ़ावा देता है।
  • इसके अलावा, विभिन्न परंपराओं और धर्मों के त्योहारों में हमारी भागीदारी समाज में व्यक्तियों के आपसी सम्मान तथा स्वीकृति को प्रदर्शित करती है।
  • समाज निम्नलिखित तरीकों से मूल्यों को विकसित करने में मदद करता है:
    • समाजीकरण: 
      • परिवार, साथियों, स्कूलों, धार्मिक संस्थाओं और मीडिया के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से व्यक्ति ऐसे मूल्य अर्जित करते हैं जो जीवन भर उनके व्यवहार तथा निर्णयों को निर्देशित करते हैं।
    • मॉडलिंग और अवलोकन: 
      • व्यक्ति समाज में दूसरों के व्यवहारों का अवलोकन और उनका अनुकरण करते हैं, विशेष रूप से माता-पिता, शिक्षक, सामुदायिक नेता तथा मशहूर हस्तियों, जैसे- प्रभावशाली व्यक्तियों के व्यवहारों का।
      • ये रोल मॉडल अपने कार्यों, शब्दों और बातचीत के माध्यम से मूल्यों का प्रदर्शन करते हैं जो व्यक्तियों द्वारा अपनाए गए मूल्यों को आकार दे सकते हैं।
    • मानदंड और अपेक्षाएँ: 
      • समाज स्वीकार्य और अस्वीकार्य व्यवहार के बारे में मानदंड तथा अपेक्षाएँ स्थापित करता है, जो अक्सर साझा मूल्यों में निहित होते हैं।
      • ये मानदंड सामाजिक आचरण के लिये दिशा-निर्देश के रूप में काम करते हैं और समुदाय के भीतर विशिष्ट मूल्यों के महत्त्व को सुदृढ़ करने में मदद करते हैं।
    • सामाजिक समर्थन और प्रवर्तन: 
      • समाज सामाजिक स्वीकृति, पुरस्कार और प्रतिबंधों के माध्यम से मूल्यों को लागू करने के लिये समर्थन तंत्र प्रदान करता है।
      • सामाजिक मूल्यों के साथ जुड़े व्यवहारों के लिये सकारात्मक सुदृढ़ीकरण व्यक्तियों को उन मूल्यों को बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित करता है, जबकि सामाजिक अस्वीकृति या मानदंडों का उल्लंघन करने के परिणाम निवारक के रूप में काम करते हैं।
    • सांस्कृतिक परंपराएँ और अनुष्ठान: 
      • समाज सांस्कृतिक परंपराओं, अनुष्ठानों, समारोहों और उत्सवों के माध्यम से मूल्यों को संरक्षित तथा प्रसारित करता है।
      • ये सामूहिक अनुभव व्यक्तियों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने, साझा मूल्यों को सुदृढ़ करने और समुदाय के भीतर अपनत्व तथा पहचान की भावना को बढ़ावा देने के अवसर प्रदान करते हैं।

मूल्यों को विकसित करने में शैक्षिक संस्थानों की क्या भूमिका है?

  • स्कूल में बच्चे एक छोटे से समाज के सदस्य होते हैं जो उनके नैतिक विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव डालता है।
  • परिवार के बाद दूसरे स्थान पर शैक्षिक संस्थान हैं, जो बच्चे के व्यक्तित्व को आकार देने में काफी प्रभाव डालते हैं क्योंकि वे अपना अधिकांश समय वहीं बिताते हैं।
  • शिक्षक स्कूल में छात्रों के लिये रोल मॉडल के रूप में काम करते हैं और उनके नैतिक व्यवहार को विकसित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  • शैक्षिक संस्थान निम्नलिखित तरीकों से मूल्यों को विकसित करने में मदद करते हैं:
  • पाठ्यक्रम योजना:
    • शैक्षिक संस्थान अपने पाठ्यक्रम को सावधानीपूर्वक तैयार करते हैं, जिसमें ऐसे विषय और मुद्दे शामिल होते हैं जो ईमानदारी, सम्मान, ज़िम्मेदारी तथा सहानुभूति जैसे मूल्यों को स्थापित करते हैं। उदाहरण के लिये, सामाजिक अध्ययन या नैतिकता जैसे पाठ्यक्रम विशेष रूप से नैतिक मूल्यों और नैतिक दुविधाओं को संबोधित करते हैं तथा छात्रों को उनके विश्वासों एवं व्यवहारों पर चिंतन करने के लिये प्रेरित करते हैं।
  • संवर्द्धन गतिविधियाँ:
    • क्लब, खेलों और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने से छात्रों को टीम वर्क, निष्पक्षता, नेतृत्व तथा दृढ़ता जैसे कौशल विकसित करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिये, टीम स्पोर्ट्स में भाग लेने से सहयोग, विपक्षी टीम के प्रति खेल भावना तथा परिश्रम व प्रयास के प्रति प्रशंसा की भावना विकसित होती है।
  • सार्वजानिक सेवा एवं लोकोपकार:
    • कई स्कूल और कॉलेजों में छात्रों को सार्वजानिक सेवा पहलों में भाग लेने के लिये बाध्य किया जाता है।
    • इससे प्राप्त अनुभव छात्रों को विभिन्न समाज की आवश्यकताओं से परिचित कराते हैं और सामाजिक उत्तरदायित्व तथा समानुभूति के मूल्यों को विकसित करते हैं। उदाहरण के लिये, स्थानीय खाद्य बैंक में कार्य करने से छात्रों को करुणा और कठिनाई का सामना कर रहे व्यक्तियों की सहायता करने का महत्त्व सिखाया जा सकता है।
  • उदाहरण के साथ नेतृत्व करना:
    • शिक्षक और कर्मचारी छात्रों के लिये आदर्श के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य, उनका दृष्टिकोण और छात्रों एवं सहकर्मियों के साथ उनकी वार्ता का छात्रों द्वारा आत्मसात किये जाने वाले मूल्यों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
    • जब कोई शिक्षक स्वयं से कक्षा में सम्मान और निष्पक्षता का उदाहरण प्रस्तुत करता है तो यह छात्रों के लिये अनुसरण करने के लिये एक प्रभावशाली उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  • छात्र नेतृत्व भूमिकाएँ:
    • छात्र नेतृत्व के अवसर, जैसे कि छात्र परिषदों या सहकर्मी परामर्श कार्यक्रमों में शामिल होना, छात्रों को ज़िम्मेदारियाँ संभालने और अपने समुदाय के भीतर लिये जाने वाले निर्णयों में उनकी भूमिका बढ़ाने में सक्षम बनाता है।
    • यह लोकतंत्र, उत्तरदायित्व और नेतृत्व जैसे मूल्यों के विकास को प्रोत्साहित करता है, उदाहरण के लिये, एक छात्र परिषद द्वारा रीसाइक्लिंग कार्यक्रम की शुरुआत करना छात्रों में पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करता है।

निष्कर्ष

परिवार एक प्रारंभिक नींव की भूमिका निभाते हुए सत्यनिष्ठा, आदर और ज़िम्मेदारी जैसे बुनियादी मूल्यों को सिखाता है। इसके पश्चात् समाज गहन अंतः क्रिया और आदर्शों के माध्यम से इन मूल्यों को परिष्कृत कर इन्हें विस्तारित करता है। मूल्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करके और वास्तविक दुनिया में इसके अनुप्रयोग के लिये संदर्भ स्थापित करके शैक्षणिक संस्थानों में औपचारिक रूप दिया जाता है। जब संयुक्त किया जाता है, तो उक्त तीन स्तंभ एक पूर्ण समर्थन संरचना प्रदान करते हैं जो लोगों को न्यायसंगत और नैतिक दिशा प्रदान करते हैं जो उन्हें समुदाय में सार्थक योगदान करने के लिये आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. "भ्रष्टाचार समाज में बुनियादी मूल्यों की असफलता की अभिव्यक्ति है।" आपके विचार में समाज में बुनियादी मूल्यों के उत्थान के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? (2023)

प्रश्न. “शिक्षा एक निषेधाज्ञा नहीं है, यह व्यक्ति के समग्र विकास और सामाजिक बदलाव के लिये एक प्रभावी और व्यापक साधन है”। उपर्युक्त कथन के आलोक में नई शिक्षा नीति, 2020 (एन.ई.पी., 2020) का परीक्षण कीजिये। (2020)

प्रश्न. सामयिक इंटरनेट विस्तारण ने सांस्कृतिक मूल्यों का एक भिन्न समूह को मनासीन किया है, जो प्रायः परंपरागत मूल्यों से संघर्षशील रहते हैं। विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न. जीवन, कार्य, अन्य व्यक्तियों एवं समाज के प्रति हमारी अभिवृत्तियाँ आमतौर पर अनजाने में परिवार और उस सामाजिक परिवेश के द्वारा रूपित हो जाती हैं, जिसमें हम बड़े होते हैं। अनजाने में प्राप्त इनमें से कुछ अभिवृत्तियाँ एवं मूल्य अक्सर आधुनिक लोकतांत्रिक और समतावादी समाज के नागरिकों के लिये अवांछनीय होते हैं। (2016)

(a) आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान ऐसे अवांछनीय मूल्यों की विवेचना कीजिये। 

(b) ऐसे अवांछनीय अभिवृत्तियों को कैसे बदला जा सकता है और लोक सेवाओं के लिये आवश्यक समझे जाने वाले सामाजिक-नैतिक मूल्यों को आकांक्षी तथा कार्यरत लोक सेवकों में किस प्रकार संवर्द्धित किया जा सकता है? 

प्रश्न. सामाजिक समस्याओं के प्रति व्यक्ति की अभिवृत्ति के निर्माण में कौन-से कारक प्रभाव डालते हैं? हमारे समाज में अनेक सामाजिक समस्याओं के प्रति विषम अभिवृत्तियाँ व्याप्त हैं। हमारे समाज में जाति प्रथा के बारे में क्या-क्या विषम अभिवृत्तियाँ आपको दिखाई देती हैं? इन विषम अभिवृत्तियों को आप किस प्रकार स्पष्ट करते हैं? (2014)

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