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प्रश्न :
नैतिक दुविधा से आप क्या समझते हैं? इसके समाधान के लिये उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख करें।
06 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा
- प्रभावी भूमिका में नैतिक दुविधा को स्पष्ट करें।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में इसके समाधान के लिये उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख करें।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
नैतिक दुविधा ऐसी परिस्थिति है, जिसमें निर्णयन में दो या अधिक नैतिक सिद्धांतों में टकराव होता है। इस परिस्थिति में नैतिक निर्णयकर्त्ता अपने आप को असमंजस की स्थिति में पाता है क्योंकि उसे दो या अधिक नैतिक मानदंडों में से एक को चुनना होता है और दोनों बराबर की स्थिति में होते हैं।
अतः तीन कारक हैं, जो नैतिक दुविधा के सफल समाधान की सुविधा प्रदान करते हैं :
- सभी लागू कोड, मानक, कानून, नीतियों और व्यक्तिगत मूल्यों का जागरूक नैतिक निर्णयकर्त्ता नैतिक कोड या मानकों के कई सेटों के तहत अभ्यास करते हैं। ऐसे में इन्हें उनकी स्पष्ट जानकारी होनी चाहिये। इसके अलावा, एक नैतिककर्त्ता को अपने स्वयं के मूल्यों तथा विश्वासों के बारे में एक ईमानदार और स्पष्ट जानकारी रखनी चाहिये।
- एक नैतिककर्त्ता को समय रहते नैतिक दुविधा की पहचान की क्षमता का विकास करना चाहिये। एक सिविल सेवक कई भूमिकाओं में कार्य संपादित करता है, उसका सामना हित के लिये संघर्ष, आत्मनिर्णय और निष्पक्षता से संबंधित मुद्दों से होता है। यदि वह समय रहते इन दुविधाओं को पहचान कर इनका प्रबंधन नहीं करता है तो परिणाम अनैतिक हो सकते हैं।
- निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुस्पष्ट और स्वीकृत मानकों का पालन करना आवश्यक है। एक नैतिक निर्णयकर्त्ता को अपने द्वारा लिये जाने वाले निर्णय का तर्क के आधार पर विश्लेषण करना चाहिये कि कोई पेशेवर उस स्थिति में क्या करता? और क्या उसके निर्णय को उसके सहयोगी एवं अन्य स्वीकार या उसका समर्थन करेंगे?
उपर्युक्त के अलावा उस दुविधा के संदर्भ में दार्शनिक और सांस्कृतिक विचारकों का क्या दृष्टिकोण रहा है, के आधार पर भी निर्णय किया जा सकता है।
निष्कर्षतः कह सकते है कि नैतिक दुविधा में निर्णयन एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कुछ पहलुओं को टालना ही होता है। ऐसे में संगठनात्मक मापदंडों की जागरूकता और एक व्यवस्थित निर्णय लेने की विधि लागू करने से निर्णयन प्रक्रिया सरल हो जाती है। प्रशासन और राजनीति में नैतिक दुविधा का प्रबंधन लोक कल्याण को बढ़ावा देता है जो सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय प्राप्त करने में सहयोग करता है।
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