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सामाजिक न्याय

SMILE के माध्यम से एक समावेशी समाज का निर्माण

  • 12 Feb 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2019, NALSA निर्णय 2014, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020, गरिमा गृह

मेन्स के लिये:

भारतीय समाज और ट्रांसजेंडरों के सामने आने वाली चुनौतियाँ, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये सुधार, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल - प्रावधान और संबंधित चिंताएँ

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

2021 में आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन" (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE) योजना शुरू की गई, जिसका उद्देश्य विकसित भारत के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना है। इसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण तथा व्यापक पुनर्वास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना का शुभारंभ शामिल था।

ट्रांसजेंडर कौन हैं?

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2019 के अनुसार, ट्रांसजेंडर का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जिसका लिंग उस व्यक्ति के जन्म के समय दिये गए लिंग से मेल नहीं खाता है।
  • इसमें ट्रांस-मेन (परा-पुरुष) और ट्रांस-वूमेन (परा-स्त्री), इंटरसेक्स भिन्नताओं एवं जेंडर क्वीर (Queer) आते हैं।
  • भारत की 2011 की जनगणना अपने इतिहास में देश की 'किन्नर/ट्रांस' आबादी को शामिल करने वाली पहली जनगणना थी। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 4.8 मिलियन भारतीयों की पहचान ट्रांसजेंडर के रूप में की गई है।

SMILE योजना क्या है?

  • परिचय:
    • यह भिखारियों और ट्रांसजेंडर्स के लिये मौजूदा योजनाओं के विलय के बाद एक नई योजना है।
      • SMILE की दो उप-योजनाएँ  - एक 'ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण हेतु व्यापक पुनर्वास हेतु केंद्रीय क्षेत्र योजना' तथा दूसरी 'भिक्षावृत्ति के कार्य में लगे लोगों के व्यापक पुनर्वास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना' ट्रांसजेंडर समुदाय और भिक्षावृत्ति में लगे लोगों के लिये व्यापक कल्याण एवं पुनर्वास उपाय प्रदान करना।
        • यह योजना ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पुनर्वास के लिये राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों और शहरी स्थानीय निकायों के पास उपलब्ध मौजूदा आश्रय घरों के उपयोग का प्रावधान करती है।
        • मौजूदा आश्रय गृहों की अनुपलब्धता की स्थिति में, कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा नए समर्पित आश्रय गृह स्थापित किये जाने हैं।
  • मुख्य बिंदु:
    • इस योजना के केंद्र में बड़े पैमाने पर पुनर्वास, चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान, परामर्श, बुनियादी दस्तावेज़, शिक्षा, कौशल विकास आदि हैं।
    • अनुमान है कि इस योजना के तहत लगभग 60,000 सबसे निर्धन व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन जीने हेतु लाभान्वित किया जाएगा।
      • यह कक्षा 9वीं और उससे ऊपर की कक्षाओं में पढ़ने वाले ट्रांसजेंडर छात्रों को स्नातकोत्तर तक छात्रवृत्ति प्रदान करता है ताकि वे अपनी शिक्षा पूर्ण कर सकें।
      • इसमें PM-DAKSH योजना के तहत कौशल विकास और आजीविका के प्रावधान हैं।
      • समग्र चिकित्सा स्वास्थ्य के माध्यम से यह चयनित अस्पतालों के माध्यम से लिंग-पुनर्पुष्टि सर्ज़री का समर्थन करने वाले प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Aarogya Yojana - PM-JAY) के साथ मिलकर एक व्यापक पैकेज प्रदान करता है।
      • 'गरिमा गृह' के रूप में आवास सुविधा ट्रांसजेंडर समुदाय और भीख मांगने के कार्य में लगे लोगों को भोजन, कपड़े, मनोरंजन सुविधाएँ, कौशल विकास के अवसर, मनोरंजक गतिविधियाँ एवं चिकित्सा सहायता आदि सुनिश्चित करती है।
  • कार्यान्वयन:
    • इसे राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की सरकारों/स्थानीय शहरी निकायों, स्वैच्छिक संगठनों, समुदाय आधारित संगठनों (CBOs), संस्थानों और अन्य के सहयोग से लागू किया जाएगा।
    • प्रत्येक राज्य में ट्रांसजेंडर संरक्षण सेल का प्रावधान अपराधों के मामलों की निगरानी करेगा और अपराधों का समय पर पंजीकरण, जाँच एवं अभियोजन सुनिश्चित करेगा।
    • राष्ट्रीय पोर्टल और हेल्पलाइन ट्रांसजेंडर समुदाय तथा इस कार्य में लगे लोगों को ज़रूरत पड़ने पर आवश्यक जानकारी एवं समाधान प्रदान करेगा।
  • ट्रांसजेंडर के व्यापक पुनर्वास के लिये योजना:
    • यह योजना पायलट आधार पर उन चयनित शहरों में लागू की गई है, जहाँ भिक्षावृत्ति और ट्रांसजेंडर समुदाय की बड़ी आबादी है।
    • वर्ष 2019-20 के दौरान इस मंत्रालय ने भिखारियों के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों हेतु राष्ट्रीय सामाजिक रक्षा संस्थान (NISD) को 1 करोड़ रुपए और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त एवं विकास निगम (NBCFDC) को 70 लाख रुपए की राशि जारी की थी।

ट्रांसजेंडरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

  • सामाजिक कलंक:
    • सामाजिक बहिष्कार: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अक्सर अलगाव और हाशिये का सामना करना पड़ता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ, मादक द्रव्यों का सेवन तथा जीवन की गुणवत्ता में कमी आती है।
    • रूढ़िवादिता और मिथ्या प्रस्तुति: समाज ट्रांसजेंडर लोगों को रूढ़िबद्ध मानता है, जिससे उनके रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के अवसर सीमित हो जाते हैं।
    • पारिवारिक अस्वीकृति: कई ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को उनके परिवारों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, जिससे वे पारिवारिक समर्थन और आर्थिक स्थिरता से वंचित हो जाते हैं।
  • भेदभाव:
    • हिंसा और घृणा अपराध: घृणा अपराध, शारीरिक और मौखिक दुर्व्यवहार तथा यौन उत्पीड़न ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की सुरक्षा एवं भलाई के लिये महत्त्वपूर्ण खतरे हैं।
    • शैक्षिक बाधाएँ: शैक्षिक संस्थानों में भेदभाव गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और भविष्य के कॅरियर के अवसरों तक पहुँच में बाधा डालता है।
    • रोज़गार भेदभाव: ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अक्सर नौकरी में भेदभाव का अनुभव होता है, जिससे बेरोज़गारी या अल्परोज़गार होता है, जिससे उनकी आर्थिक कमज़ोरी बनी रहती है।
    • स्वास्थ्य देखभाल असमानताएँ: स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा भेदभाव अक्सर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लिंग-पुष्टि प्रक्रियाओं सहित आवश्यक चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने से रोकता है।
  • कानूनी मान्यता का अभाव:
    • कानूनी अस्पष्टता: जबकि भारत ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के साथ प्रगति की है, फिर भी कानूनी अस्पष्टताएँ और कमियाँ हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है।
      • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है और अधिनियम में लिंग के स्व-निर्णय के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
    • व्यापक नीतियों का अभाव: लिंग पहचान, गैर-बाइनरी लिंग और ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिये एक स्पष्ट कानूनी ढाँचे पर व्यापक नीतियों का अभाव एक चुनौती बनी हुई है।
    • कार्यान्वयन में अंतराल: अधिकारियों की ओर से जागरूकता की कमी, पूर्वाग्रह और अनिच्छा के कारण मौजूदा कानूनों का कार्यान्वयन अक्सर अप्रभावी होता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये विभिन्न पहल क्या हैं?

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के उत्थान हेतु और क्या किया जा सकता है?

  • ट्रांसजेंडर-समावेशी नीतियाँ: ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित मुद्दों पर विधिक तथा विधि प्रवर्तन प्रणालियों को सशक्त एवं संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
    • सरकार और समाजिक संगठनों द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये समावेशी दृष्टिकोण की योजना बना कर उसका अंगीकरण किया जाना चाहिये।
    • नीतियों के निर्माण अथवा निर्णय लेने में शामिल न किये जाने की उनकी शिकायत को दूर करने की ज़रूरत है तथा उनकी सार्वजनिक भागीदारी की संभावना को बढ़ाना चाहिये।
  • सामाजिक चिंताओं का समाधान करना: NALSA निर्णय के सुझाव के अनुसार ज़मीनी स्तर पर ट्रांसजेंडर समुदाय के लिये निःशुल्क विधिक सहायता, सहायक शिक्षा और सामाजिक अधिकार का प्रावधान सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • सभी निजी और सार्वजनिक अस्पतालों तथा क्लीनिकों में स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित अलग-अलग नीतियाँ बनाकार उन्हें संप्रेषित किया जाना चाहिये।
    • ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति जागरूकता बढ़ाने और सम्मान एवं स्वीकार्यता की भावना बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • वित्तीय सुरक्षा: SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रमों की तर्ज़ पर एक उद्यमी अथवा व्यवसायी के रूप में अपना कॅरियर शुरू करने के लिये उदार ऋण सुविधाएँ और वित्तीय सहायता सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • जेलों में ट्रांसजेंडर: अल्पसंख्यकों, विशेषकर ट्रांसजेंडर कैदियों के संदर्भ में सुधारों को संबोधित करने के लिये जागरूकता और दस्तावेज़ीकरण दो महत्त्वपूर्ण माध्यम हैं।
    • कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) द्वरा अनुसमर्थित ट्रांसजेंडर कैदियों के इलाज के लिये लैंगिकता का आधार अपनाने की आवश्यकता है।
    • NALSA निर्णय के आदेश का नुपालन करते हुए ट्रांस समुदाय के सदस्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से, ट्रांस कैदियों की विशेष आवश्यकताओं पर एक 'मॉडल नीति' विकसित करने के लिये केंद्र सरकार को CHRI की सिफारिशों पर विचार करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में विधिक सेवा प्रदान करने वाले प्राधिकरण, निम्नलिखित में से किस प्रकार के नागरिकों को निः शुल्क  विधिक सेवाएँ प्रदान करते हैं? (2020)

  1. ₹ 1,00,000 से कम वार्षिक आय वाला व्यक्ति को। 
  2. ₹ 2,00,000 से कम वार्षिक आय वाले ट्रांसजेंडर को। 
  3. ₹ 3,0 0,000 से कम वार्षिक आय वाले अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के सदस्य को। 
  4. सभी वरिष्ठ नागरिकों को। 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)

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