डेली न्यूज़ (04 Jun, 2024)



‘वुमन इन लीडरशिप इन कॉर्पोरेट इंडिया’

प्रिलिम्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024, बेरोज़गारी दर, मानव विकास संस्थान (IHD), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), श्रम बल भागीदारी दर (LFPR)

मेन्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म द्वारा हाल ही में जारी ‘वुमन इन लीडरशिप इन कॉर्पोरेट इंडिया’ शीर्षक रिपोर्ट में भारतीय कॉर्पोरेट जगत में नेतृत्व पदों पर महिलाओं का निरंतर कम प्रतिनिधित्व दर्शाया गया है। 

  • यह प्रतिशत काफी समय से 30% से नीचे स्थिर बना हुआ है।

लिंक्डइन (LinkedIn)

  • लिंक्डइन एक व्यवसाय-उन्मुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसे वर्ष 2003 में लॉन्च किया गया था, जो पेशेवर नेटवर्किंग पर केंद्रित है।
  • फेसबुक या ट्विटर (जो अब X नाम से जाना जाता है) जैसी सामान्य सोशल मीडिया साइट्स के विपरीत लिंक्डइन कॅरियर से संबंधित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारत में यह डेटा लिंक्डइन सदस्यों पर आधारित है, जहाँ फर्म के 100 मिलियन से अधिक लोग पंजीकृत हैं

रिपोर्ट के निष्कर्ष क्या हैं?

  •  कॉर्पोरेट्स में महिला प्रतिनिधित्व में स्थिरता:
    • कार्यबल में और वरिष्ठ नेतृत्व पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा 30% से कम रहा है और महामारी के बाद इसमें गिरावट का रुख देखा गया है।
    • इसका कारण नेतृत्वकारी भूमिकाओं के लिये महिलाओं की नई नियुक्तियों में आई मंदी को माना जा सकता है।

Female_Representation_Overall_in_India

  • नेतृत्व में महिलाओं की भूमिका निम्नतम, मध्यम और उच्चतम क्षेत्रों में:
    • निम्नतम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्र: निर्माण, तेल, गैस व खनन और उपयोगिताएँ (11%), थोक तथा विनिर्माण (12%), आवास एवं खाद्य सेवाएँ (15%)।
    • कुछ बेहतर (12%) प्रतिनिधित्व: थोक, विनिर्माण।
    • मध्यम प्रतिनिधित्व: प्रौद्योगिकी, सूचना और मीडिया, वित्तीय सेवाएँ (19%)।
    • उच्चतम प्रतिनिधित्व: शिक्षा (30%) और सरकारी प्रशासन (29%)।
  • कानून का उल्लंघन:
    • रिपोर्ट से पता चलता है कि कंपनी अधिनियम, 2013 जैसे कानून, जो कंपनी बोर्ड में महिला निदेशकों को अनिवार्य बनाता है, का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है।
    • अप्रैल 2018 से दिसंबर 2023 के बीच इस नियम का उल्लंघन करने पर 507 कंपनियों पर ज़ुर्माना लगाया गया। इनमें से 90% सूचीबद्ध कंपनियाँ थीं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024:

  • भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2024 में 24.5% रहने का अनुमान है, जो कि वर्ष 2019 के 23.3% में मामूली वृद्धि है (वैश्विक औसत 47.2% से कम)
  • भारत में महिलाओं के अनौपचारिक क्षेत्र में रोज़गार प्राप्त करने की संभावना अधिक है, जहाँ 86% महिलाएँ अनौपचारिक क्षेत्र में रोज़गार करती हैं, जबकि पुरुषों के मामले में यह आँकड़ा 82% है।
  • कोविड-19 महामारी ने महिलाओं के रोज़गार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी छूटने की संभावना 1.8 गुना अधिक है।
  • महामारी के बाद महिलाओं को श्रम बल में पुनः प्रवेश करने में भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं और लैंगिक भेदभाव में भी वृद्धि हुई है।

श्रम बल भागीदारी दर:

  • यह अर्थव्यवस्था में 16-64 आयु वर्ग की कार्यशील जनसंख्या का वह वर्ग है जो वर्तमान में कार्यरत है या रोज़गार की तलाश में है।
  • जो लोग अभी भी पढ़ाई कर रहे हैं और गृहणियाँ तथा 64 वर्ष से अधिक आयु के लोग श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं माने जाते।

कॉर्पोरेट जगत में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के लिये कौन से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • अचेतन पूर्वाग्रह: महिलाओं की क्षमताओं, नेतृत्व शैलियों और कॅरियर की महत्वाकांक्षाओं के बारे में गहराई से निहित सामाजिक पूर्वाग्रह और रूढ़िवादी धारणाएँ अनुचित मूल्यांकन एवं उन्नति के सीमित अवसरों को जन्म दे सकती हैं।
  • घर से काम करने के विकल्पों में कमी: हाइब्रिड या घर से काम करने की भूमिकाओं की उपलब्धता में कमी ने ठहराव में योगदान दिया है, क्योंकि ये व्यवस्थाएँ अक्सर कॉर्पोरेट कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को सुविधाजनक बनाती हैं।
  • कार्य-जीवन संतुलन की चुनौतियाँ: घरेलू और देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों का असंगत बोझ, जो प्रायः महिलाओं पर पड़ता है, उनके लिये अपने पुरुष समकक्षों के समान प्रतिबद्धता और उपलब्धता का प्रदर्शन करना कठिन बना देता है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: प्रवासन और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ महिलाओं की रोज़गार तक पहुँच को और सीमित कर देती हैं। अपर्याप्त शहरी बुनियादी ढाँचा, साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा संबंधी मुद्दे, महिलाओं को नौकरी की तलाश करने और उसे बनाए रखने  में खासकर शहरी क्षेत्रों में हतोत्साहित कर सकते हैं।
  • मार्गदर्शन और प्रायोजन का अभाव: महिलाओं को अक्सर प्रभावशाली सलाहकारों और प्रायोजकों तक पहुँच कम होती है जो उनके कैरियर की प्रगति के लिये वकालत कर सकें और कॉर्पोरेट परिदृश्य में उनकी मदद कर सकें।
  • नेतृत्व में सीमित प्रतिनिधित्व:वरिष्ठ नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की कमी से रोल मॉडल की कमी दिखाई देती है और महिलाओं के लिये इन पदों पर खुद की कल्पना करना कठिन हो जाता है।

कार्यबल में लैंगिक अंतराल को कम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation- ILO) का ढाँचा

  • वेतन अंतर को कम करना:
    • समान मूल्य के काम के लिये समान वेतन सुनिश्चित करने वाले कानूनों को लागू करना।
    • वेतन संबंधी विसंगतियों को उजागर करने और उन्हें दूर करने के लिये वेतन पारदर्शिता उपायों को लागू करना।
    • नौकरी के मूल्यांकन के लिये वस्तुनिष्ठ मानदंडों का उपयोग करना जो लैंगिक रूढ़िवादिता से प्रभावित न हों।
  • व्यावसायिक पृथक्करण का पुनर्निर्माण:
  • सुरक्षित और समावेशी कार्य वातावरण को बढ़ावा देना:
  • कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देना:
    • प्रसव और प्रारंभिक मातृत्व के दौरान माता-पिता को सहायता प्रदान करने के लिये पर्याप्त मातृत्व और पितृत्व अवकाश नीतियाँ प्रदान करना।
    • ऐसे सामाजिक संरक्षण उपायों को डिज़ाइन करना जो कामकाजी परिवारों को सहायता प्रदान करना, जिसमें किफायती बाल देखभाल का विकल्प भी शामिल हों।
  • देखभाल कार्य को महत्त्व देना:
    • उचित वेतन और सभ्य कार्य स्थितियों के साथ गुणवत्तापूर्ण देखभाल नौकरियों को सृजित करने में निवेश किया जाना चाहिये।
    • देखभाल पेशेवरों, जिनमें मुख्यतः महिलाएँ हैं, के लिये नियमों को मज़बूत बनाया जाना चाहिये । 
      • भारत को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के घरेलू कामगार सम्मेलन (घरेलू कामगार सम्मेलन, 2011 (सं. 189) का अनुसमर्थन करने तथा तदनुसार घरेलू कानून बनाने की आवश्यकता है।
  • महिलाओं के रोजगार के लिये संकट लचीलापन:
    • आर्थिक मंदी के दौरान महिलाओं के रोज़गार की सुरक्षा के लिये लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रम या वित्तीय सहायता जैसी नीतियाँ विकसित किया जाना चाहिये।

कॉर्पोरेट नेतृत्व में लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • लचीली कार्य नीतियाँ:
    • महिलाओं के नेतृत्व को बनाए रखने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से कनिष्ठ और मध्यम प्रबंधन स्तर पर क्योंकि यही वह समय होता है जब उन्हें अक्सर कॅरियर की आकांक्षाओं तथा पारिवारिक प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।
  • नियुक्ति में 'कौशल-प्रथम' दृष्टिकोण:
    • भावी कर्मचारी की क्षमताओं के बारे में लिंग आधारित धारणा बनाने के बजाय नियुक्ति में 'कौशल-प्रथम' दृष्टिकोण अपनाने से पूर्वाग्रहों को कम करने और योग्यता को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • इसमें लिंग-आधारित रूढ़िवादिता पर निर्भर रहने के बजाय उम्मीदवार के प्रासंगिक कौशल, योग्यता और अनुभव पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
  • वरिष्ठ नेतृत्व में विविधता को बढ़ावा देना:
    • सरकार सूचीबद्ध कंपनियों को बोर्ड में विविधता लाने के बारे में जागरूकता बढ़ाने की पहल के माध्यम से वरिष्ठ नेतृत्व में विविधता को बढ़ावा दे सकती है।
      • उदाहरण के लिये जापानी अर्थव्यवस्था मंत्रालय ने टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज के साथ मिलकर "नाडेशिको ब्रांड्स" कार्यक्रम शुरू किया।
      • यह उन कंपनियों के लिये आकर्षक निवेश अवसरों के रूप में रेखांकित है जो महिला सशक्तीकरण और नेतृत्व को प्रोत्साहित करती हैं।
  • महिलाओं के लिये नेटवर्किंग और सहायता समूह स्थापित करना:
    • एक मज़बूत नेटवर्क बनाना: महिला पेशेवरों के मामले में ये समूह संबंधों और सहयोग को बढ़ावा दे सकते हैं तथा महिलाओं को नेतृत्व के मार्ग पर चलने हेतु सशक्त बना सकते हैं।
    • सहकर्मी शिक्षण और समर्थन: इनके माध्यम से महिलाएँ अनुभव साझा कर सकती हैं, एक-दूसरे की सफलताओं और चुनौतियों से सीख सकती हैं तथा एक मज़बूत समर्थन प्रणाली का निर्माण कर सकती हैं।
  • मेंटरशिप और नेटवर्किंग के अवसर:
    • महिलाओं को मार्गदर्शन और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करने से उन्हें कॉर्पोरेट जगत में अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ने में मदद मिल सकती है।
    • अनुभवी महिला नेता महत्त्वाकांक्षी महिलाओं का मार्गदर्शन और समर्थन कर सकती हैं तथा कॅरियर में उन्नति के लिये अंतर्दृष्टि और रणनीतियाँ साझा कर सकती हैं।
  • साझा अभिभावकीय अवकाश नीतियाँ:
    • इससे पुरुषों और महिलाओं के बीच देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा मिल सकता है।
    • विशेष रूप से निजी क्षेत्र में, सवेतन पितृत्व अवकाश नीति, पुरुषों और महिलाओं के बीच देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के अधिक न्यायसंगत वितरण को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है।

निष्कर्ष

भारत में कॉर्पोरेट नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में ठहराव एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, जिसे संबोधित करने के लिये ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने और कॉर्पोरेट क्षेत्र में महिलाओं की पूरी क्षमता को विकसित करने हेतु नीतिगत परिवर्तन, संगठनात्मक सुधार तथा सांस्कृतिक बदलावों सहित बहुआयामी दृष्टिकोण को लागू करना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

अनेक प्रयासों और नीतियों के बावजूद भारत में कार्यबल में महिलाओं का अनुपात स्थिर बना हुआ है। इस स्थिरता के कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा उठाए जा सकने वाले कदमों का प्रस्ताव कीजिये। (250 शब्द)

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि: (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता निम्न है

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति की परीक्षण कीजिये और सुधार हेतु सुझाव दीजिये। (2023)


काज़ा शिखर सम्मेलन 2024 और वन्यजीव उत्पाद व्यापार

प्रिलिम्स के लिये:

कावांगो-ज़ाम्बेजी ट्रांस-फ्रंटियर संरक्षण क्षेत्र (KAZA-TFCA), वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES), हाथी व्यापार सूचना प्रणाली ( Elephant Trade Information System- ETIS), वन्यजीव अपराध के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय सहायक संघ (International Consortium on Combating Wildlife Crime- ICCWC), ट्रैफिक (वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क)

मेन्स के लिये:

हाथीदाँत व्यापार और समाधान, वन्यजीव संरक्षण, मानव-वन्यजीव संघर्ष, सतत् संरक्षण, वन्यजीव प्रबंधन, अंतर्राष्ट्रीय समझौते।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कावांगो-ज़ाम्बेजी ट्रांस-फ्रंटियर संरक्षण क्षेत्र (KAZA-TFCA) के लिये वर्ष 2024 का राष्ट्राध्यक्ष शिखर सम्मेलन, लिविंगस्टोन, ज़ाम्बिया में हुआ, जहाँ सदस्य राज्यों ने वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) से बाहर होने के अपने आह्वान को दोहराया।

  • यह आह्वान उनके प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हाथीदाँत और अन्य वन्यजीव उत्पादों को बेचने की अनुमति न दिये जाने की पृष्ठभूमि में किया गया है।

वर्ष 2024 के शिखर सम्मेलन में किन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा हुई?

  • KAZA-TFCA पहल: 
    • KAZA-TFCA पाँच दक्षिणी अफ्रीकी देशों अर्थात् अंगोला, बोत्सवाना, नामीबिया, ज़ाम्बिया और ज़िम्बाब्वे के ओकावांगो और ज़ाम्बेज़ी नदी घाटियों तक फैला हुआ है।
      • काज़ा (KAZA) की लगभग 70% भूमि संरक्षण के अधीन है, जिसमें 103 वन्यजीव प्रबंधन क्षेत्र और 85 वन आरक्षित क्षेत्र शामिल हैं।
    • इस क्षेत्र में अफ्रीका की दो-तिहाई से अधिक हाथी आबादी (लगभग 450,000) पाई जाती है, जबकि बोत्सवाना (132,000) और ज़िम्बाब्वे (100,000) में अकेले इस आबादी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मौजूद है।
  • CITES को लेकर ऐतिहासिक विवाद:
    • इस शिखर सम्मेलन की तरह पनामा में वर्ष 2022 में होने वाले पार्टियों के सम्मेलन में दक्षिणी अफ्रीकी देशों ने संरक्षण के लिये धन जुटाने और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिये हाथीदाँत व्यापार को वैध बनाने की वकालत की।
    • हाथियों की बड़ी आबादी और उससे संबंधित चुनौतियों के बावजूद उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया, क्योंकि इन देशों ने उस पर वैज्ञानिक संरक्षण विधियों की तुलना में व्यापार-विरोधी विचारधाराओं को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया।
  • 2024 के शिखर सम्मेलन के प्रमुख मुद्दे:
    • लिविंगस्टोन शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने मौजूदा CITES प्रतिबंधों के आर्थिक नुकसान पर ध्यान केंद्रित किया, वन्यजीव उत्पाद बिक्री अधिकारों की वकालत की, जबकि हाथियों की मृत्यु दर और हाथीदाँत के भंडार से होने वाली आर्थिक क्षमता के नुकसान पर प्रकाश डाला गया।
    • हाथीदाँत और वन्यजीव उत्पाद व्यापार को लेकर प्रतिबंध से संरक्षण निधि पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बिक्री से प्राप्त राजस्व से वन्यजीव प्रबंधन में सहायता मिल सकती है।
    • प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि निर्णय वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित नहीं हैं, बल्कि लोकलुभावनवाद और राजनीतिक एजेंडे पर आधारित हैं, जो सतत् संरक्षण को बढ़ावा देने में CITES की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रहे हैं।
    • शिखर सम्मेलन में CITES से बाहर निकलने के लिये नए सिरे से अपील की गई तथा समर्थकों ने सुझाव दिया कि इससे CITES को पुनर्विचार करने या काज़ा राज्यों को अपने वन्यजीव संसाधनों को स्वायत्त रूप से संभालने के लिये सशक्त बनाने हेतु प्रेरित किया जा सकता है।
    • पश्चिमी देशों द्वारा ट्रॉफी हंटिंग (Trophy Hunting) के आयात पर बढ़ते प्रतिबंधों के जवाब में ज़िम्बाब्वे और अन्य काज़ा राज्य  विशेष रूप से पूर्व में वैकल्पिक बाज़ारों की खोज कर रहे हैं।
      • ट्रॉफी हंटिंग  में जंगली जानवरों, अक्सर बड़े स्तनधारियों का चुनिंदा शिकार किया जाता है, ताकि उनके सींग या सींग जैसे शरीर के अंग प्राप्त किये जा सकें, जो उपलब्धि के प्रतीक के रूप में या प्रदर्शन के लिये उपयोग किये जाते हैं।

हाथीदाँत क्या है?

  • हाथीदाँत, वास्तव में विशाल दाँत होते हैं जो हाथियों के मुँह से काफी आगे तक फैले होते हैं। इन दाँतों  का अधिकांश भाग डेंटाइन (एक कठोर, घना, हड्डीदार ऊतक) से बना होता है।
  • ये  दाँत  नर और मादा अफ्रीकी हाथियों दोनों में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ नर एशियाई हाथियों में भी पाए जाते हैं।
  • विश्व वन्यजीव कोष (World Wildlife Fund- WWF) ने हाथीदाँत के अवैध शिकार के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि "हाथीदाँत" में मैस्टोडॉन (Mastodons), मैमथ (Mammoths), दरियाई घोड़े (Hippos), नरव्हेल (Narwhals) और वालरस (Walruses) जैसी विभिन्न प्रजातियों की सामग्रियाँ शामिल हैं, जो अमेरिकी द्वारा हाथीदाँत पर प्रतिबंध में शामिल नहीं हैं, लेकिन CITES जैसे अन्य कानूनों द्वारा विनियमित हो सकती हैं।
  • हाथीदाँत से बनी हर वस्तु, दाँत से लेकर गहने तक, शिकारियों द्वारा मारे गए हाथी के दाँतों से बनती हैं। हाथीदाँत की मुख्य रूप से एशियाई मांग को पूर्ण करने हेतु प्रतिवर्ष लगभग 20,000 हाथियों को मार दिया जाता है।

वन्यजीव उत्पादों के व्यापार के क्या कारण हैं?

  • संगठित वाणिज्यिक अवैध सोर्सिंग: संगठित अपराध दूरस्थ कार्यों के रूप में संलग्न होते हैं, जिनमें हाथी और बाघ का अवैध शिकार शामिल है, जो अक्सर अन्य आपराधिक नेटवर्कों के साथ मिलकर सत्ता की गतिशीलता, अवैध हथियारों और धन शोधन जैसे मार्गों का फायदा उठाते हैं।
  • काला बाज़ार नई मांग उत्पन्न करता है: जब वैध बिक्री निम्न हो जाती है, तो अवैध व्यापारी उत्पाद को बेचने के लिये नए तरीके खोज लेते हैं, जैसे दुर्लभ पशु या लुप्तप्राय प्रजातियों की ट्राफियाँ (Endangered Species Trophies), जहाँ कमी के कारण अवैध बाज़ार खरीदारों के लिये अधिक आकर्षक हो सकते हैं।
  • पूरक आजीविका और अवसरवादिता: हालाँकि कुछ मानव तस्करी के पीछे बड़े आपराधिक समूह हो सकते हैं, लेकिन कई गरीब लोग केवल अपनी आजीविका चलाने का प्रयास कर रहे हैं।
  • भ्रष्टाचार: यह वन्यजीव तस्करी को रोकने और बाधित करने के प्रयासों को कमज़ोर करता है, जिसमें निरीक्षण स्थलों पर रिश्वतखोरी से लेकर परमिट जारी करने और कानूनी निर्णयों पर उच्च-स्तरीय प्रभाव शामिल है।
  • अवैध शिकार की सांस्कृतिक जड़ें: वन्यजीवों का अवैध शिकार केवल वित्तीय उद्देश्यों से प्रेरित नहीं होता, बल्कि सांस्कृतिक भी हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये मध्य अफ्रीकी गणराज्य के चिंको रिज़र्व में हाथी का शिकार सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता है, जो साहस और पुरुषत्व का प्रतीक है।
  • वन्यजीव उत्पाद हेतु कानूनी बाज़ार का अस्तित्त्व: वन्यजीव उत्पाद हेतु कानूनी बाज़ार [उदाहरण के लिये लाओ पीडीआर (Lao PDR) बियर बायल के व्यापार की अनुमति देता है] के कारण यह पहचानना कठिन हो जाता है कि उत्पाद वन द्वारा एकत्र किया गया है या अवैध शिकार से उत्पन्न हुआ है।
    • जापान विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण कानूनी हाथीदाँत बाज़ार है।

वन्यजीव अपराध से निपटने हेतु क्या उपाय आवश्यक हैं?

  • अवैध वन्यजीव उत्पादों पर प्रतिबंध लगाना: इस दृष्टिकोण का उद्देश्य अनुचित रूप से वन्यजीवों से प्राप्त वस्तुओं को रखने या उनका व्यापार करने को अवैध बनाना है
  • वन्यजीव संरक्षण हेतु  प्रभावी वित्तपोषण: यह वित्तपोषण सहायता सीधे तौर पर उन एजेंसियों को प्रदान की जानी चाहिये जो वन्यजीवों का संरक्षण करती हैं, जैसे पार्क रेंज़र्स और शिकार विरोधी टीम।
  • जन जागरूकता और सशक्तीकरण: लोगों को वन्यजीव तस्करी के परिणामों के बारे में शिक्षित करना और उन्हें वन्यजीवों के महत्त्व के संबंध में बताना, जो अवैध उत्पादों की मांग को कम कर सकता है।
  • हाथीदाँत हेतु विशिष्ट उपाय:
    • दोनों पक्ष काज़ा देशों से संभावित हाथीदाँत व्यापार की स्थिरता का आकलन करने हेतु एक स्वतंत्र वैज्ञानिक समीक्षा पर सहमत हो सकते हैं।
    • CITES और काज़ा देश संरक्षण हेतु  आय के वैकल्पिक स्रोतों की खोज में सहयोग कर सकते हैं, जैसे कि काज़ा क्षेत्र में इकोटूरिज़्म उपक्रमों और कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
    • सर्वश्रेष्ठ प्रणालियाँ:
      • TRAFFIC की तकनीकी विशेषज्ञता ने थाईलैंड में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature- WWF) अभियान का समर्थन किया, जिससे थाई कानून में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ और घरेलू हाथीदाँत बाज़ार लगभग समाप्त हो गया।
        • चीन में WWF के कार्यालय ने अन्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर घरेलू हाथीदाँत प्रतिबंध को लागू करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • गैबॉन, कांगो और संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में ज़ब्त किये गए हाथीदाँत के भंडार को नष्ट कर दिया है, ताकि इसे काले बाज़ार में वापस जाने से रोका जा सके और हाथीदाँत के व्यापार तथा अवैध शिकार की सार्वजनिक रूप से निंदा की जा सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वन्यजीवों के संरक्षण के साथ व्यापार विनियमन को संतुलित करने में चुनौतियों और संभावित दृष्टिकोणों का पता लगाइये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात और वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)

  1. IUCN संयुक्त राष्ट्र का एक अंग है तथा CITES सरकारों के बीच अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  2. IUCN, प्राकृतिक पर्यावरण के बेहतर प्रबंधन के लिये दुनिया भर में हज़ारों क्षेत्र-परियोजनाएँ चलाता है।
  3. CITES उन राज्यों पर वैध रूप से आबद्धकर है जो इसमें शामिल हुए हैं, लेकिन यह कन्वेंशन राष्ट्रीय विधियों का स्थान नहीं लेता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (TRAFFIC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. TRAFFIC, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत एक ब्यूरो है। 
  2. TRAFFIC का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पादपों और जंतुओं के व्यापार से प्रकृति के संरक्षण को खतरा न हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


अमृत ​​(अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन) योजना

प्रिलिम्स के लिये:

अमृत, पेयजल सर्वेक्षण, जल के लिये प्रौद्योगिकी उप-मिशन, राष्ट्रीय जल नीति, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG), रिवर सिटीज़ अलायंस (RCA), स्वच्छ भारत मिशन, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), कोविड-19, आयुष्मान भारत

मेन्स के लिये:

कार्यान्वयन में चुनौतियाँ, अमृत योजना को नया रूप देने हेतु कदम, प्रकृति-आधारित समाधान, जन-केंद्रित दृष्टिकोण, स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमृत योजना ने जल की गतिशीलता और प्रदूषण से संबंधित बुनियादी ढाँचे के मुद्दों के समाधान में आने वाली चुनौतियों को लेकर ध्यान आकर्षित किया है।

अमृत ​​योजना क्या है?

  • परिचय:
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) 25 जून, 2015 को देश भर के 500 चयनित शहरों में शुरू किया गया था, जिसमें लगभग 60% शहरी आबादी को कवर किया गया।
    • मिशन का लक्ष्य बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना और चयनित शहरों क्षेत्र में सुधारों को लागू करना है, जिसमें जलापूर्ति, सीवरेज, जल निकासी, हरित स्थान, गैर-मोटर चालित परिवहन तथा क्षमता निर्माण शामिल हैं।
  • अमृत ​​2.0 योजना:
    • यह योजना 1 अक्तूबर, 2021 को शुरू की गई थी, जिसमें 5 वर्ष की अवधि यानी वित्तीय वर्ष 2021-22 से वित्तीय वर्ष 2025-26 तक के लिये अमृत 1.0 को शामिल किया गया है।
    • इसका उद्देश्य देश के 500 शहरों से लगभग 4,900 वैधानिक कस्बों तक जलापूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज और अमृत योजना के पहले चरण में शामिल 500 शहरों में सीवरेज/सेप्टेज प्रबंधन की कवरेज है।
    • अमृत ​​2.0 का उद्देश्य उपचारित सीवेज के पुनर्चक्रण/पुनः उपयोग, जल निकायों के पुनरुद्धार और जल संरक्षण द्वारा शहर जल संतुलन योजना (City Water Balance Plan- CWBP) के विकास के माध्यम से जल की चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
    • मिशन में शहरी नियोजन, शहरी वित्त को मज़बूत करने आदि के माध्यम से नागरिकों के जीवन को आसान बनाने के लिये सुधार एजेंडा भी शामिल है।
    • अमृत ​​2.0 के अन्य घटक:
      • जल के न्यायसंगत वितरण, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग, जल निकायों के मानचित्रण और शहरों/कस्बों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के लिये पेयजल सर्वेक्षण
      • जल वाले क्षेत्र में नवीनतम वैश्विक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने के लिये जल हेतु प्रौद्योगिकी उप-मिशन।
      • जल संरक्षण के बारे में जनता में जागरूकता फैलाने के लिये सूचना, शिक्षा और संचार (Education and Communication- IEC) अभियान चलाना।

अमृत ​​2.0 योजना की स्थिति क्या है?

  • निधि आवंटन:
    • मार्च 2023 तक चल रही परियोजनाओं के लिये अमृत 2.0 का कुल परिव्यय 2,99,000 करोड़ रुपए है।
  • प्रभाव: 
    • AMRUT ​​ने महिलाओं के जीवन पर कई सकारात्मक प्रभाव डाले हैं। पानी लाने में लगने वाले प्रयासों में कमी आने के कारण अब महिलाएँ अपने समय का अधिक उत्पादक तरीके (Productive Way) से उपयोग कर सकती हैं।
    • इससे सुरक्षित पेयजल की उपलब्धता के कारण बीमारियों के भार में भी कमी आई है।
  • चुनौतियाँ:
    • योजना के कार्यान्वयन के बावजूद अपर्याप्त जल, सफाई और स्वच्छता के कारण प्रतिवर्ष लगभग 200,000 लोग मर जाते हैं।
    • वर्ष 2016 में भारत में असुरक्षित जल और स्वच्छता के कारण होने वाली बीमारियों का भार  प्रति व्यक्ति चीन की तुलना में 40 गुना अधिक है तथा इसमें बहुत कम सुधार हुआ है।
    • नीति आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2030 तक लगभग 21 प्रमुख शहरों में भूजल स्तर समाप्त हो जाएगा, जिससे भारत की 40% आबादी को पेयजल उपलब्ध नहीं हो सकेगा।
      • लगभग 31% शहरी भारतीय घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति नहीं होती है, जबकि 67.3% आवासों में पाइप से सीवरेज प्रणाली नहीं जुड़ी हुई है।

अन्य नई पहलें

AMRUT ​​योजना के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • राज्य परियोजना कार्यान्वयन: नियमित रूप से धनराशि जारी किये जाने के बावजूद बिहार और असम जैसे राज्यों ने अभी तक परियोजनाएँ पूर्ण नहीं की हैं या PPP मॉडल का उपयोग नहीं किया है, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश राज्यों में कार्यान्वयन 50% से भी कम पूरा हुआ है।
  • AMRUT ​​कार्यक्रम का दायरा: इस योजना में समग्र दृष्टिकोण के बजाय परियोजना-केंद्रित दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया है।
  • संभावित ओवरलैप और अभिसरण चुनौतियाँ: AMRUT और स्वच्छ भारत मिशन जैसी अन्य योजनाओं के बीच ओवरलैप के परिणामस्वरूप वित्तपोषण आवंटन चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं और विशिष्ट शहरी मुद्दों को संबोधित करने में कार्यभार बढ़ सकता है।
  • वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम इसलिये शुरू किया गया क्योंकि AMRUT 2.0 के बाद से वायु की गुणवत्ता में गिरावट जारी रही है, क्योंकि AMRUT 1.0 में केवल पानी और सीवरेज पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याएँ अनसुलझी रह गईं।
  • गैर-समावेशी शासन संरचना: निर्वाचित नगर सरकारों की जैविक भागीदारी के बिना यांत्रिक रूप से तैयार की गई योजना, इसे शहरी लोगों के लिये कम समावेशी योजना बनाती है।

AMRUT ​​योजना को पुनर्जीवित करने हेतु  क्या कदम उठाने की आवश्यकता है? 

  • वित्तीय चुनौतियाँ और समाधान: स्थानीय शहरी निकायों को स्थानीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु  शीर्ष-निम्न वित्तपोषण दृष्टिकोण पर निर्भर रहने के बजाय वित्तीय संसाधनों में विविधता लाने की आवश्यकता है।
  • समग्र दृष्टिकोण: जलवायु परिवर्तन, वर्षा प्रतिरूप और मौजूदा बुनियादी ढाँचे को ध्यान में रखते हुए शहरी जल प्रबंधन को उभरती चुनौतियों का समाधान करना चाहिये।
    • इस योजना के लिये प्रकृति आधारित समाधान और जन-केंद्रित दृष्टिकोण तथा स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने वाली व्यापक कार्यप्रणाली की आवश्यकता है।
  • सामुदायिक व्यस्तता: गैर-सरकारी संगठनों और निवासी संघों सहित सामुदायिक समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से ज़मीनी स्तर से विचार और फीडबैक प्राप्त करके आवास योजनाओं की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है।
  • सफलता की कहानियों से सीखना: ऐसे सफल केस का अध्ययन करना, जहाँ स्वच्छता और सफाई में उल्लेखनीय सुधार हुआ, आवास संबंधी पहलों में समान चुनौतियों का समाधान करने के लिये बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिये दहानु तालुका में “सभी के लिये जल उपलब्धता” पहल का उद्देश्य स्थानीय जनजातीय समुदायों को पीने योग्य जल उपलब्ध कराना था।
  • नवाचार और अनुसंधान: स्वास्थ्य और आवास संबंधी मुद्दों से संबंधित उद्योग-विशिष्ट अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये नवाचार केंद्रों की स्थापना से नवीन समाधानों और प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा मिल सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) योजना के कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये संभावित रणनीतियों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. निजी और सरकारी अस्पतालों द्वारा इसे अपनाना होगा। 
  2. जैसा कि इसका उद्देश्य सार्वभौमिक, स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना है, भारत के प्रत्येक नागरिक को अंततः इसका हिस्सा होना चाहिये। 
  3. इसकी देश भर में निर्बाध पोर्टेबिलिटी है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये : (2011)

भारत में महानगर योजना समिति:

  1. भारतीय संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत गठित होती है।
  2. उस महानगरीय क्षेत्र के लिये विकास योजना प्रारूप तैयार करती है।
  3. उस महानगरीय क्षेत्र में सरकार की प्रयोजित योजनाओं को लागू करने का पूर्ण दायित्व पूरा करती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं ?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. भारत में नगरीय जीवन की गुणवत्ता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ ‘स्मार्ट नगर कार्यक्रम’ के उद्देश्य और रणनीति बताइये।(2016)


फिलीपींस ने GM फसलों का उत्पादन रोका

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (Genetically Modified Organism- GMO), DNA, पुनः संयोजक DNA प्रौद्योगिकी, आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) फसलें, बीटी कपास, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC), धारा सरसों हाइब्रिड-11 (DMH -11), 'अर्ली हीरा-2' सरसों, बैसिलस एमाइलोलिकेफेशियंस,

मेन्स के लिये:

मानव स्वास्थ्य पर आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) का प्रभाव, सतत् विकास लक्ष्य 2: शून्य भूख लक्ष्य को प्राप्त करने में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों का महत्त्व।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फिलीपींस की एक न्यायालय ने देश में आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified- GM) फसलें गोल्डन राइस और बीटी बैंगन की व्यावसायिक खेती के लिये दिये गए परमिट को रद्द कर दिया है।

  • आलोचकों का तर्क है कि इस निर्णय से विटामिन A की कमी वाले बच्चों को नुकसान हो सकता है, लेकिन सुरक्षा उल्लंघनों के बारे में न्यायालय की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

नोट

  • वर्ष 2013 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने विटामिन A की कमी को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पहचाना था, जो 6 से 59 महीने की आयु के लगभग एक-तिहाई बच्चों को प्रभावित करती है, तथा उप-सहारा अफ्रीका (48%) और दक्षिण एशिया (44%) में इसका प्रचलन सबसे अधिक है।

GM गोल्डन राइस और बीटी बैंगन क्या है?

  • GM गोल्डन राइस: 
    • इसे पहली बार 1990 के दशक के अंत में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान ( International Rice Research Institute- IRRI) के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित किया गया था।
    • गोल्डन राइस एक प्रकार का चावल है जिसे आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है ताकि इसमें अधिक मात्रा में आयरन और जिंक के साथ-साथ बीटा-कैरोटीन भी हो, जिसे शरीर विटामिन A में बदल सकता है।
    • इस राइस को यह नाम इसके विशिष्ट पीले रंग के कारण मिला है।
    • इसका विकास विटामिन A की कमी को दूर करने के लिये किया गया था, जो कई विकासशील देशों में एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। 
      • विटामिन A की कमी अंधेपन का एक प्रमुख कारण है और विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बचपन की सामान्य बीमारियों से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
    • गोल्डन राइस में विटामिन A की अनुशंसित दैनिक खुराक का 50% तक प्रदान करने की क्षमता है, जिससे इस महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या का समाधान करने में मदद मिलती है।
  • बीटी बैंगन: 
    • इसे भारतीय बीज कंपनी माहिको (महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी) ने कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड़ के सहयोग से विकसित किया है।
    • बीटी बैंगन, बैंगन (Brijal) की एक आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म है, जिसे बैसिलस थुरिंजिएंसिस (बीटी) बैक्टीरिया से प्रोटीन उत्पन्न करने के लिये तैयार किया गया है, जो कुछ कीटों के लिये विषैला होता है। 
      • इससे कीटनाशक के प्रयोग की आवश्यकता कम हो जाती है।
    • वर्ष 2013 में बांग्लादेश में इसकी कृषि को मंज़ूरी दी गई, जिससे यह दक्षिण एशिया में स्वीकृत होने वाली पहली GM खाद्य फसल बन गई।
    • भारत में पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं और कुछ राज्य सरकारों द्वारा उठाई गई चिंताओं के कारण वर्ष 2010 में बीटी बैंगन का व्यावसायिक विमोचन रोक दिया गया था।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें क्या हैं?

  • परिचय: 

GM_CROPS_IN_INDIA

  • कृषि: वैश्विक परिदृश्य और भारत:
    • कृषि-जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के अधिग्रहण हेतु अंतर्राष्ट्रीय सेवा (International Service for the Acquisition of Agri-biotech Applications- ISAAA) के अनुसार, वर्ष 2020 में GM फसलों के अंतर्गत वैश्विक क्षेत्र 191.7 मिलियन हेक्टेयर तक पहुँच गया। 
    • भारत ने पहली और एकमात्र बार वर्ष 2002 में GM फसल बीटी कपास की कृषि को व्यावसायिक रूप से मंज़ूरी दी थी।
    • तब से बीटी कपास के अंतर्गत क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2020 में 11.6 मिलियन हेक्टेयर तक पहुँच  गया, जो देश के कुल कपास क्षेत्र का 94% है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) बनाम ट्रांसजेनिक जीव:
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (Genetically Modified Organism- GMO) और ट्रांसजेनिक जीव दो ऐसे शब्द हैं जिनका परस्पर उपयोग किया जाता है।
    • हालाँकि GMO और ट्रांसजेनिक जीव के बीच कुछ अंतर है। ट्रांसजेनिक जीव एक GMO है जिसमें DNA अनुक्रम या एक अलग प्रजाति का जीन होता है। 
      • जबकि GMO एक जीव, पौधा या सूक्ष्म जीव है, जिसका DNA जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके बदल दिया गया है।
    • इस प्रकार सभी ट्रांसजेनिक जीव GMO हैं, लेकिन सभी GMO ट्रांसजेनिक नहीं हैं। 
  • GM फसलों के संभावित लाभ:
    • उपज में वृद्धि होना: GM फसलों को अधिक उपज, कीटों और रोगों के प्रति बेहतर प्रतिरोध तथा सूखा, लवणता या अत्यधिक तापमान जैसे पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने हेतु डिज़ाइन किया जाता है।
    • पोषक तत्त्वों में वृद्धि होना: GM खाद्य पदार्थों में विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सिडेंट या अन्य लाभकारी यौगिकों की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार हो सकता है।
    • कीटनाशकों पर निर्भरता में कमी: GM खाद्य पदार्थों में कीटों एवं बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जा सकती है, जिससे फसलों में रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता में कमी आ सकती है।
  • संभावित चिंताएँ:
    • पर्यावरणीय जोखिम: GM फसलों के कारण अनपेक्षित पारिस्थितिक परिणाम होने की संभावना के बारे में चिंताएँ हैं, जैसे कि शाकनाशी-प्रतिरोधी खरपतवारों का विकास या गैर-लक्ष्यित जीवों पर प्रभाव।
    • मानव स्वास्थ्य जोखिम: GM खाद्य पदार्थों के सेवन से मानव स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, तथा संभावित एलर्जी या विषाक्तता के बारे में चिंताएँ हैं।
    • गैर-लक्षित जीवों पर प्रभाव: GM फसलों के कारण पारिस्थितिकी तंत्र में लाभकारी कीटों और अन्य जीवों पर अनपेक्षित परिणामों की संभावना का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
    • नैतिक और सामाजिक-आर्थिक विचार: GM प्रौद्योगिकियों के स्वामित्व तथा नियंत्रण के संकेंद्रण के साथ-साथ छोटे पैमाने के किसानों एवं पारंपरिक कृषि पद्धतियों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर बहस चल रही है।
      • GM प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादित स्व-समाप्त बीज (पौधे की कटाई के बाद बंध्य बीज) किसानों के लिये अगले फसल मौसम में रोपण के लिये अपनी फसल के बीज को बचाने के अपने पारंपरिक अधिकार का उपयोग करना असंभव बना देंगे।

Genetically_Modificd_Crops

फूड फोर्टिफिकेशन:

  • फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट का आशय चावल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में प्रमुख विटामिन्स और खनिजों (जैसे आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D) को संलग्न करने की प्रक्रिया से है, ताकि पोषण सामग्री में सुधार लाया जा सके।
    • उदाहरणतः नमक में आयोडीन मिलाना थायरॉइड संबंधी विकारों की रोकथाम के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रसंस्करण से पहले ये पोषक तत्त्व मूल रूप से भोजन में मौजूद हो भी सकते हैं और नहीं भी।
  • इसका उपयोग भारत में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण के उच्च स्तर की समस्या से निपटने के लिये किया जा सकता है।
    • भारत में हर दूसरी महिला एनीमिया से ग्रस्त है तथा हर तीसरा बच्चा अविकसित है।
  • राइस फोर्टिफिकेशन:
    • राइस फोर्टिफिकेशन, इसमें मौजूद विटामिन और खनिज जैसे आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन B-12 और जिंक जैसे अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को बढ़ाने का एक लागत प्रभावी तरीका है।
  • पहल:
    • राष्ट्रव्यापी फोर्टिफिकेशन विनियम: वर्ष 2016 में, FSSAI ने गेहूँ के आटे, चावल, दूध और खाद्य तेल जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों को फोर्टिफाइड करने के लिये विनियम लागू किये। इससे आमतौर पर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों में आयरन, विटामिन B12, फोलिक एसिड, विटामिन A और D और आयोडीन जैसे आवश्यक पोषक तत्त्व शामिल हो जाते हैं।
    • पायलट कार्यक्रम: मिल्क फोर्टिफिकेशन परियोजना

 भारत में GM फसलों के लिये विनियामक ढाँचा क्या है?

आगे की राह:

  • विनियामक आच्छादन को मज़बूत करना: वर्तमान विनियामक प्रणाली को बेहतर पारदर्शिता, मज़बूत वैज्ञानिक मूल्यांकन प्रक्रियाओं एवं हितधारकों के साथ स्पष्ट संचार के साथ मज़बूत किया जाना चाहिये। इससे जनता का विश्वास में वृद्धि होगी और साथ ही जीएम प्रौद्योगिकी को जिम्मेदारी से अपनाना सुनिश्चित होगा।
  • नवाचार के लिये स्वीकृतियों को सुव्यवस्थित करना: भारत को वैज्ञानिक अनुसंधान से समझौता किये बिना प्रौद्योगिकी अनुमोदन प्रक्रियाओं में तेज़ी लाने की ओर ध्यान देना चाहिये। मज़बूत वैज्ञानिक आँकड़ों के आधार पर समयबद्ध मूल्यांकन सुरक्षा मानकों को बनाए रखते हुए लाभकारी GM फसलों की शुरूआत में तेज़ी ला सकता है।
  • विज्ञान प्रेरित निर्णय: GM फसलों के संबंध में नीतिगत निर्णय दृढ़ता से वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित होने चाहिये। स्वतंत्र, पारदर्शी वैज्ञानिक आकलन नियामक प्रक्रियाओं एवं सार्वजनिक चर्चा के माध्यम से  मार्गदर्शन कर सकते हैं, विश्वास को बढ़ावा दे सकते हैं और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ा सकते हैं।
  • कठोर निगरानी एवं प्रवर्तन: GM फसल की कृषि के पूरे चक्र में सुरक्षा प्रोटोकॉल का कठोरता से पालन सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत निगरानी प्रणाली आवश्यक है। 
    • अस्वीकृत अथवा अवैध GM फसलों के प्रसार को रोकने तथा कृषि क्षेत्र की रक्षा करने के लिये कठोर प्रवर्तन तंत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष:

GM फसलों के बारे में विमर्श अभी भी जटिल बना हुआ है, जहाँ इसके समर्थक संभावित लाभों पर प्रकाश डाल रहे हैं, वहीं आलोचक वैध चिंताएँ भी व्यक्त कर रहे हैं। निरंतर अनुसंधान, पारदर्शी विनियमन एवं समावेशी हितधारक संवाद, सतत् कृषि विकास सुनिश्चित करने के लिये इस प्रौद्योगिकी के अवसरों एवं चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक होंगे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

जी.एम. फसलों से जुड़ी चिंताओं का विश्लेषण कीजिये। भारत इस प्रौद्योगिकी को ज़िम्मेदारीपूर्वक अपनाने को सुनिश्चित करने के लिये इन चिंताओं से कैसे निपट सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012) 

  1. सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना   
  2. उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना  
  3. अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना 
  4. उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)

प्रश्न.अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021)

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)

प्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि-विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019)