जैव विविधता और पर्यावरण
मानव-वन्यजीव संघर्ष
- 10 Jul 2021
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर मेन्स के लिये:भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति और उसे रोकने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर (World Wildlife Fund for Nature- WWF) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा 'ए फ्यूचर फॉर ऑल- ए नीड फॉर ह्यूमन- वाइल्डलाइफ कोएग्जिस्टेंस' (A Future for All–A Need for Human-Wildlife Coexistence) रिपोर्ट जारी की गई।
- इसमें बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict- HWC) प्रकाश डाला गया है।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष से संबंधित मौतों में विश्व की जंगली बिल्ली प्रजातियों की 75% से अधिक तथा कई अन्य स्थलीय एवं समुद्री मांसाहारी प्रजातियाँ जैसे- ध्रुवीय भालू, भूमध्यसागरीय मोंक सील एवं हाथी आदि बड़े शाकाहारी जीव प्रभावित होते हैं।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) उन संघर्षों को संदर्भित करता है जो उस स्थिति में उत्पन्न होते हैं जब वन्यजीवों की उपस्थिति या व्यवहार मानव हितों या ज़रूरतों के लिये वास्तव में या प्रत्यक्ष आवर्ती खतरों का कारण बनता है जिसके कारण लोगों, जानवरों, संसाधनों तथा आवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण:
- संरक्षित क्षेत्र का अभाव: समुद्री और स्थलीय संरक्षित क्षेत्र विश्व स्तर पर केवल 9.67% हिस्से को कवर करते हैं। अफ्रीकी शेर के लगभग 40% और अफ्रीकी एवं एशियाई हाथी रेंज के 70% क्षेत्र संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं।
- वर्तमान में भारत के 35% टाइगर रेंज संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं।
- वन्यजीव जनित संक्रमण: एक जूनोटिक बीमारी से उत्पन्न कोविड-19 महामारी लोगों, के पशुओं और वन्यजीवों के साथ घनिष्ठ जुड़ाव तथा जंगली जानवरों के अनियंत्रित उपभोग से प्रेरित है।
- जानवरों और लोगों के बीच घनिष्ठ, लगातार तथा विविध संपर्क के चलते पशु रोगाणुओं के लोगों में स्थानांतरित होने की संभावना बढ़ जाती है।
- अन्य कारण:
- शहरीकरण: आधुनिक समय में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण ने वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों वाली भूमि में परिवर्तित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवास क्षेत्र में कमी आ रही है।
- परिवहन नेटवर्क: वन शृंखलाओं के माध्यम से सड़क और रेल नेटवर्क के विस्तार के परिणामस्वरूप सड़कों या रेल पटरियों पर दुर्घटनाओं में अनेक पशु मारे जाते है या वे घायल हो जाते हैं।
- बढ़ती मानव जनसंख्या: संरक्षित क्षेत्रों की परिधि के पास कई मानव बस्तियाँ स्थित हैं और स्थानीय लोगों द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण तथा भोजन एवं चारा आदि के संग्रह के लिये वनों के सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
प्रभाव:
- वन्यजीवन तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर मानव-पशु संघर्ष का प्रभाव हानिकारक एवं स्थायी हो सकता है। लोग आत्मरक्षा हेतु या हमले का शिकार होने से पूर्व ही हमला करने या प्रतिशोध में हत्या के उद्देश्य से जानवरों को मार सकते हैं, जिसके चलते संघर्ष में शामिल प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकती हैं।
- स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: वन्यजीवों का लोगों पर सबसे स्पष्ट और प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव उनके द्वारा किया गया हमला तथा पशुओं द्वारा फसलों या अन्य संपत्ति को हानि पहुँचाया जाना है।
- समानता पर प्रभाव: वन्यजीवों के साथ रहने की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक लागत उस वन्यजीव के आस-पास रहने वालों को असमान रूप से चुकानी पड़ती है, जबकि एक प्रजाति के जीवित रहने का लाभ अन्य समुदायों तक वितरित होता है।
- सामाजिक गतिशीलता पर प्रभाव: जब कोई मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटना किसी किसान को प्रभावित करती है, तो वह किसान फसल को नुकसान पहुँचाने वाले वन्यजीव से रक्षा के लिये सरकार को दोषी ठहरा सकता है, जबकि एक संरक्षणवादी ऐसी घटनाओं के लिये किसानों (जो जंगली आवासों को साफ करते हैं) तथा उद्योगों को प्रमुख रूप से दोषी मानते हैं।
- सतत् विकास पर प्रभाव: ‘संरक्षण’ के संदर्भ में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक ऐसा विषय है जो सतत् विकास लक्ष्यों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है क्योंकि विकास को बनाए रखने के लिये जैव विविधता प्राथमिक घटक है, यद्यपि इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
समाधान:
- संघर्ष से सह-अस्तित्व की ओर बढ़ना: मानव-पशु संघर्ष प्रबंधन का लक्ष्य लोगों और वन्यजीवों की सुरक्षा को बढ़ाना तथा सह-अस्तित्व का पारस्परिक लाभ अर्जित करना होना चाहिये।
- एकीकृत और समग्र कार्य: समग्र मानव-पशु संघर्ष प्रबंधन दृष्टिकोण प्रजातियों को उन्हीं क्षेत्रों में बनाए रखने (जीवित रखने) की अनुमति देता है जहाँ उनकी संख्या या तो कम हो चुकी होती है या वे विलुप्त हो चुके हैं।
- हमारे ग्रह पर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और क्रियाविधि को बनाए रखने के लिये सभी प्रजातियों का होना आवश्यक है।
- सहभागिता: स्थानीय समुदायों की पूर्ण भागीदारी मानव-पशु संघर्ष को कम करने और मनुष्यों एवं वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
भारतीय परिदृश्य:
- भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चुनौती का सामना कर रहा है जो विकास के दबावों व बढ़ती आबादी, भूमि एवं प्राकृतिक संसाधनों की उच्च मांग से प्रेरित है जिसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवासों का नुकसान, विखंडन और क्षरण होता है।
- यह दबाव लोगों और वन्यजीवों के बीच संपर्क को तेज़ करता है क्योंकि वे प्रायः सीमाओं के स्पष्ट सीमांकन के बिना आवास स्थान साझा करते हैं।
- भारत में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2014-15 और वर्ष 2018-19 के बीच 500 से अधिक हाथियों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर मानव-हाथी संघर्ष (Human-Elephant Conflict) से संबंधित हैं।
- इसी अवधि में 2,361 लोग हाथियों के हमले में मारे गए।
कुछ पहलें:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन हेतु परामर्श: यह राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की स्थायी समिति (Standing Committee) द्वारा जारी किया गया है।
- सशक्त ग्राम पंचायत: परामर्श में वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अनुसार, संकटग्रस्त वन्यजीवों के संरक्षण हेतु ग्राम पंचायतों को मज़बूत बनाने की परिकल्पना की गई है।
- बीमा राहत: मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण फसलों का नुकसान होने पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojna) के तहत क्षतिपूर्ति का प्रावधान शामिल है।
- पशु चारा: इसके तहत वन क्षेत्रों के भीतर चारे और पानी के स्रोतों को बढ़ाने जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण कदम शामिल हैं।
- अग्रणीय उपाय: परामर्श में स्थानीय/राज्य स्तर पर अंतर-विभागीय समितियों के निर्धारण, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को अपनाने, जंगली पशुओं से बचाव हेतु अवरोधों/घेराबंदी का निर्माण, 24X7 आधार पर संचालित निःशुल्क हॉटलाइन नंबरों के साथ समर्पित क्षेत्रीय नियंत्रण कक्ष, हॉटस्पॉट की पहचान और पशुओं के लिये उन्नत स्टाल-फेड फार्म (Stall-Fed Farm) आदि हेतु विशेष योजनाएँ बनाने तथा उनके कार्यान्वयन की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
- त्वरित राहत: संघर्ष की स्थिति में पीड़ित परिवार को अंतरिम राहत के रूप में अनुग्रह राशि के एक हिस्से का भुगतान 24 घंटे की भीतर किया जाए।
- राज्य-विशिष्ट:
- उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में ऐसी घटनाओं के दौरान बेहतर समन्वय और राहत सुनिश्चित करने हेतु राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund) में सूचीबद्ध आपदाओं के तहत मानव-पशु संघर्ष को शामिल करने हेतु सैद्धांतिक रूप से मंज़ूरी दे दी है।
- उत्तराखंड सरकार (2019) ने क्षेत्रों में विभिन्न प्रजातियों के पौधों को उगाकर बायो फेंसिंग लगाने का कार्य किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने नीलगिरि हाथी कॉरिडोर (Nilgiris Elephant Corridor), हाथियों से संबंधित 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) और क्षेत्र में होटल/रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि की है।
- ओडिशा के अथागढ़ वन प्रभाग ने मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये जंगली हाथियों हेतु खाद्य भंडार को समृद्ध करने के लिये विभिन्न आरक्षित वन क्षेत्रों के अंदर सीड्स बम या बॉल (Seed Bombs) (या बम) का प्रयोग शुरू कर दिया है।