शासन व्यवस्था
PMAY-G और भारत में ग्रामीण निर्धनता उन्मूलन
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, निर्धनता, जियो-टैगिंग, स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण, विश्व बैंक, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, जल जीवन मिशन, मनरेगा योजना, लखपति दीदी, मिशन इंद्रधनुष, बेरोज़गारी, गरीबी रेखा, स्वयं -सहायता समूह मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, ग्रामीण विकास, ग्रामीण निर्धनता उन्मूलन। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने PMAY-G की प्रगति पर प्रकाश डाला तथा ग्रामीण विकास योजनाओं के समय पर कार्यान्वयन के माध्यम से निर्धनता मुक्त गाँव बनाने के प्रयासों पर बल दिया।
- ग्रामीण विकास योजनाओं का समय पर एवं प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करके मंत्रालय का लक्ष्य निर्धनता मुक्त भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है।
PMAY-G के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- यह ग्रामीण गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराने के लिये वर्ष 2016 में शुरू की गई योजना है। इसमें लाभार्थियों का चयन सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना (SECC) 2011 के आँकड़ों के आधार पर किया जाता है, जिसे ग्राम सभा की मंजूरी और जियो-टैगिंग के माध्यम से मान्य किया जाता है।
- PMAY-G के अंतर्गत लाभ:
- वित्तीय सहायता: मैदानी क्षेत्रों के लाभार्थियों को 1.20 लाख रुपए तथा 2 पहाड़ी राज्यों (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड), पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में 1.30 लाख रुपए दिये जाते हैं।
- लागत साझाकरण के संदर्भ में मैदानी क्षेत्रों में 60:40 (केंद्र और राज्य के बीच) तथा पूर्वोत्तर, हिमालयी राज्यों (हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड) तथा केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में 90:10 (केंद्र और राज्य के बीच) का खर्च अनुपात शामिल है। केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में 100% केंद्र द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
- शौचालय सहायता: स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (SBM-G) के माध्यम से शौचालय निर्माण के लिये 12,000 रुपए देना शामिल है।
- खाना पकाने हेतु ईंधन: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के साथ मिलकर, प्रत्येक घर में एक LPG कनेक्शन प्रदान किया जाता है।
- रोज़गार सहायता: आवास निर्माण के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के अंतर्गत 90/95 दिवस का अकुशल कार्य दिया जाना शामिल है।
- वित्तीय सहायता: मैदानी क्षेत्रों के लाभार्थियों को 1.20 लाख रुपए तथा 2 पहाड़ी राज्यों (हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड), पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में 1.30 लाख रुपए दिये जाते हैं।
- लक्ष्यों का निर्धारण: इस योजना में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) परिवारों के लिये 60% का लक्ष्य निर्धारित है, जिसमें 59.58 लाख SC एवं 58.57 लाख ST से संबंधित आवास पूरे हो चुके हैं।
- योजना का विस्तार: इस योजना का लक्ष्य प्रारंभ में वर्ष 2023-24 तक 2.95 करोड़ घरों का निर्माण करना था, जिसे वित्त वर्ष वर्ष 2024-29 के लिये 3,06,137 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ 2 करोड़ और घरों को शामिल करने के लिये बढ़ा दिया गया है।
- PMAY-G की उपलब्धियाँ: नवंबर 2024 तक 3.21 करोड़ घरों को मंजूरी दी जा चुकी है और 2.67 करोड़ घर पूरे हो चुके हैं।
- जून और दिसंबर 2024 के बीच प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM-JANMAN) के तहत 71,000 सहित 4.19 लाख घर पूरे हो चुके हैं।
- मोबाइल एप्लिकेशन: लाभार्थी पहचान को कारगर बनाने के लिये आवास प्लस-2024 ऐप लॉन्च किया गया।
- पारदर्शिता और निगरानी बढ़ाने के लिये आवास सखी ऐप शुरू किया गया।
निर्धनता
- परिचय: विश्व बैंक के अनुसार, निर्धनता बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त आय या संसाधनों की कमी है। यह आवास, भोजन या स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में अभाव के रूप में प्रकट हो सकती है।
- निर्धनता का व्यापक दृष्टिकोण व्यक्ति की समाज में कार्य करने की क्षमता पर केंद्रित है, जिसमें आय, शिक्षा, स्वास्थ्य, शक्ति और राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव शामिल है।
- विश्व बैंक ने वर्ष 2017 क्रय शक्ति समता (PPP) का उपयोग करते हुए अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा के रूप में 2.15 अमेरिकी डॉलर को अपनाया, जो वर्ष 2011 PPP का उपयोग करते हुए वर्ष 2015 के अद्यतन में निर्धारित 1.90 अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- पूर्ण निर्धनता: ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति के पास भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये संसाधनों का अभाव होता है, जिसे आमतौर पर गरीबी रेखा से मापा जाता है।
- सापेक्ष निर्धनता: समाज में अन्य लोगों की तुलना में किसी व्यक्ति के जीवन स्तर के आधार पर परिभाषित निर्धनता, जो आर्थिक असमानता को उज़ागर करती है।
- भारत में निर्धनता के आँकड़े: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत की 14.96% आबादी बहुआयामी निर्धन है, जो NFHS-4 (2015-16) में 24.85% से कम है, जिसमें 135 मिलियन लोग निर्धनता से बच गए हैं।
- बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) वर्ष 2013-14 में 29.17% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.28% हो गया है, जो 17.89% अंकों की कमी दर्शाता है।
- घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) से पता चलता है कि ग्रामीण निर्धनता वर्ष 2011-12 में 25.7% से घटकर वर्ष 2022-23 में 7.2% हो गई, जबकि शहरी निर्धनता इसी अवधि में 13.7% से घटकर 4.6% हो गई।
गाँवों में निर्धनता उन्मूलन में योगदान देने वाली अन्य योजनाएँ क्या हैं?
- आधारभूत संरचना:
- सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ:
- आजीविका संवर्द्धन योजनाएँ:
- स्वास्थ्य:
ग्रामीण भारत में निर्धनता हटाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- कृषि पर निर्भरता: ग्रामीण आबादी का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर है, जिसे जलवायु परिवर्तन, अनियमित मानसून और खराब सिंचाई जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- न्यूनतम कृषि उत्पादकता और पारंपरिक तरीकों पर निर्भरता आय सृजन को और सीमित कर देती है।
- बेरोज़गारी और अल्परोज़गार: कृषि के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में रोज़गार के सीमित अवसर हैं, जिसके कारण बेरोज़गारी और अल्परोज़गार की दरें बहुत अधिक हैं। कौशल और शिक्षा की कमी के कारण यह और भी जटिल हो जाता है।
- सेवाओं तक सीमित पहुँच: शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और बुनियादी ढाँचे जैसी बुनियादी सेवाएँ प्रायः अपर्याप्त होती हैं।
- भूमि स्वामित्व: कई ग्रामीण परिवारों के पास भूमि स्वामित्व या सुरक्षित भूमि अधिकार का अभाव है, जिससे आजीविका में निवेश में बाधा आती है।
- सामाजिक असमानता: महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों समेत हाशिये पर पड़े समुदायों को भेदभाव और संसाधनों तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है। इससे निर्धनता का चक्र चलता रहता है।
- प्रवासन: कई युवा, शिक्षित व्यक्ति बेहतर अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में "प्रतिभा पलायन" होता है।
- शासन संबंधी चुनौतियाँ: ऑपरेशन ग्रीन्स योजना जैसी नीतियों का कमज़ोर कार्यान्वयन या भ्रष्टाचार, अपर्याप्त आँकड़े एवं सीमित सार्वजनिक जागरूकता ग्रामीण भारत में प्रभावी निर्धनता निवारण में बाधा डालते हैं।
- दीर्घकालिक समाधानों के बजाय अल्पकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रित करने से भी प्रगति में बाधा आती है।
ग्रामीण भारत को निर्धनता मुक्त कैसे बनाया जा सकता है?
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG) प्राप्त करना:
- निर्धनता उन्मूलन (SDG-1) सामाजिक सुरक्षा और रोज़गार।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कृषि योजनाओं के माध्यम से शून्य भूख (SDG-2) खाद्य सुरक्षा।
- आयुष्मान भारत के अंतर्गत अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण (SDG-3) के लिये सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज़।
- असमानताओं में कमी (SDG-10) वित्तीय समावेशन और संसाधनों तक समान पहुँच में सुधार करती है।
- सामाजिक संरक्षण और कल्याण: वृद्धावस्था, विधवा और विकलांगता पेंशन के अंतर्गत व्यापक कवरेज़, 100% स्वास्थ्य देखभाल पहुँच और गरीबी रेखा से नीचे (BPL) परिवारों के लिये सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना ताकि निर्धनता को फिर से बढ़ने से रोका जा सके।
- रोज़गार सृजन और आजीविका: आवश्यकतानुसार मनरेगा के तहत रोज़गार उपलब्ध कराना, वार्ड और महिला सभाओं के माध्यम से कौशल संवर्द्धन आवश्यकताओं की पहचान करना तथा ज़िला कौशल केंद्रों के माध्यम से कौशल मानचित्रण और प्रशिक्षण आयोजित करना।
- स्वयं सहायता समूहों और किसान समूहों को जोड़ना: आय स्तर में सुधार के लिये स्वयं सहायता समूहों (SHG) और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को उद्यम योजनाओं के साथ एकीकृत करना।
- किसानों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये पशु मित्रों और किसान मित्रों को सशक्त बनाना।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: विकास और सेवाओं तक बेहतर पहुँच को सक्षम करने के लिये सड़कों, स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों का विकास करना।
- डिजिटल समावेशन के एक भाग के रूप में, ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों (जैसे, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ENAM)) पर किसानों का 100% पंजीकरण सुनिश्चित करना ताकि उन्हें योजनाओं तक वास्तविक समय पर पहुँच प्रदान की जा सके।
- व्यवहारिक और सामाजिक परिवर्तन: शोषणकारी शर्तों पर अनौपचारिक ऋण को सक्रिय रूप से हतोत्साहित करना। समुदाय के भीतर मादक द्रव्यों के सेवन के दुरुपयोग को संबोधित करना।
- निर्णय लेने और आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
- आपदा तैयारी और जलवायु कार्रवाई: आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के लिये एक कार्यबल की स्थापना करना और ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) में गतिविधियों को एकीकृत करना।
- कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) के माध्यम से सतत् कृषि और जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
ग्रामीण भारत में निर्धनता उन्मूलन के लिये आवास, वित्तीय सहायता, रोज़गार और बुनियादी ढाँचे के विकास को मिलाकर एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सतत् विकास, कौशल वृद्धि और वित्तीय समावेशन के माध्यम से निर्धनता मुक्त गाँवों को प्राप्त करने के लिये कृषि पर निर्भरता, बेरोज़गारी और सामाजिक असमानता जैसी चुनौतियों का समाधान करना महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: निर्धनता उन्मूलन में ग्रामीण भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों तथा इन चुनौतियों पर काबू पाने में सरकारी पहल की भूमिका का आकलन करना। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उत्तर: (b) प्रश्न. UNDP के समर्थन से ‘ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व’ द्वारा विकसित ‘बहुआयामी निर्धनता सूचकांक’ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. हालाँकि भारत में गरीबी के कई अलग-अलग अनुमान हैं, लेकिन सभी समय के साथ गरीबी के स्तर में कमी दर्शाते हैं। क्या आप सहमत हैं? शहरी एवं ग्रामीण गरीबी संकेतकों के संदर्भ में आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये (2015) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा उत्पादन
प्रिलिम्स के लिये:थोरियम, दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR), तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम, भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य, आग्नेय चट्टानें, भारी खनिज रेत, प्लूटोनियम, गामा विकिरण, मोनाजाइट, भारी जल, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR), थोरियम-आधारित रिएक्टर। मेन्स के लिये:भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन में थोरियम की आवश्यकता है। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
भारत के सबसे बड़े विद्युत् उत्पादक, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (NTPC) लिमिटेड ने समृद्ध जीवन (ANEEL) थोरियम आधारित ईंधन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा के विकास और तैनाती का पता लगाने के लिये अमेरिका स्थित क्लीन कोर थोरियम एनर्जी (CCTE) के साथ एक रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- CCTE द्वारा विकसित ANEEL दबावयुक्त भारी जल रिएक्टरों (PHWR) के लिये थोरियम आधारित ईंधन है।
- परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) एक दीर्घकालिक रणनीति के रूप में भारत के प्रचुर थोरियम भंडार को अपने त्रि-स्तरीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में उपयोग करने की योजना बना रहा है।
समृद्ध जीवन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा (ANEEL) क्या है?
- परिचय: ANEEL एक पेटेंट प्राप्त परमाणु ईंधन है जो थोरियम और उच्च परख निम्न समृद्ध यूरेनियम (HALEU) का मिश्रण है।
- इस ईंधन का नाम भारत के अग्रणी परमाणु वैज्ञानिकों में से एक डॉ. अनिल काकोडकर के सम्मान में रखा गया है।
- HALEU 5% से 20% तक संवर्धित यूरेनियम है, जो कई उन्नत परमाणु रिएक्टर डिजाइनों के लिये आवश्यक है।
- वर्तमान में इसका उत्पादन केवल रूस और चीन में ही किया जाता है, तथा अमेरिका में इसका उत्पादन सीमित है।
- PHWR के साथ अनुकूलता: ANEEL ईंधन का उपयोग मौजूदा PHWR में किया जा सकता है, जो भारत के परमाणु ऊर्जा का स्रोत हैं।
- वर्तमान में भारत में 22 रिएक्टर कार्यरत हैं, जिनकी स्थापित क्षमता 6780 मेगावाट है। इनमें से 18 रिएक्टर PHWR और 4 भारी जल रिएक्टर (LWR) हैं।
- भारत 10 और PHWR का निर्माण कर रहा है, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 700 मेगावाट होगी।
- थोरियम परिनियोजन में आसानी: आयातित HALEU का उपयोग करते हुए, ANEEL थोरियम परिनियोजन के लिये एक सरल और तेज़ विकल्प प्रदान करता है।
- यूरेनियम-233 के उत्पादन की भारत की पारंपरिक विधि श्रम-केंद्रित है और इसमें यूरेनियम या प्लूटोनियम रिएक्टरों के चारों ओर थोरियम का उपयोग शामिल है।
- लाभ:
- दक्षता: ANEEL ईंधन की बर्न-अप दक्षता 60,000 मेगावाट-दिन प्रति टन है, जबकि पारंपरिक प्राकृतिक यूरेनियम के लिये यह 7,000 मेगावाट-दिन प्रति टन है।
- एक सामान्य 220 मेगावाट PHWR में ईंधन बंडलों के आवश्यक जीवनकाल को 1,75,000 से घटाकर 22,000 करने से, ANEEL ईंधन अपशिष्ट की मात्रा और परिचालन व्यय को काफी हद तक कम कर देता है।
- अप्रसार: थोरियम और व्ययित ANEEL ईंधन गैर-हथियारीकरण योग्य है, जिससे विदेशी यूरेनियम आपूर्तिकर्त्ताओं और रिएक्टर ऑपरेटरों के लिये प्रसार संबंधी चिंताएँ कम हो जाती हैं।
- आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव: ANEEL ईंधन अपनी उच्च दक्षता और लंबे समय तक चलने वाले ईंधन बंडलों के कारण रिएक्टरों की परिचालन लागत को कम करता है।
- यह भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों और परमाणु क्षमता को तीन गुना करने की वैश्विक प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जैसा कि दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में COP28 के दौरान उजागर किया गया था।
- वैश्विक सहयोग: जब से कनाडाई परमाणु प्रयोगशालाओं और CCTE ने ANEEL ईंधन विकास और लाइसेंसिंग को बढ़ावा देने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं, तब से ANEEL में HALEU-थोरियम मिश्रण ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया है।
- दक्षता: ANEEL ईंधन की बर्न-अप दक्षता 60,000 मेगावाट-दिन प्रति टन है, जबकि पारंपरिक प्राकृतिक यूरेनियम के लिये यह 7,000 मेगावाट-दिन प्रति टन है।
थोरियम:
- परिचय: थोरियम चांदी जैसा, एक रेडियोधर्मी धातु है। यह आमतौर पर आग्नेय चट्टानों और हैवी मिनरल सैंड में पाया जाता है।
- प्रचुरता: पृथ्वी की सतह पर थोरियम, यूरेनियम की तुलना में तीन गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, थोरियम की औसत सांद्रता 10.5 भाग प्रति मिलियन (PPM) है, जबकि यूरेनियम की लगभग 3 PPM है।
- फ़िज़नेबल (Fissionable) परंतु फिज़ाइल (Fissile) नहीं: थोरियम का एकमात्र प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला समस्थानिक थोरियम-232 है, जो फ़िज़नेबल (विखंडन हो सकता है) परंतु फिज़ाइल नहीं है (बाह्य न्यूट्रॉन के बिना शृंखला अभिक्रिया को जारी नहीं रख सकता)।
- थोरियम-232 को विखंडन के लिये उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रॉन की आवश्यकता होती है।
थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर क्या है?
- थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर: इसमें यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 के स्थान पर प्राथमिक ईंधन के रूप में थोरियम-232 का उपयोग किया जाता है।
- थोरियम फिज़ाइल पदार्थ नहीं है, बल्कि फर्टाइल (Fertile) पदार्थ है, जिसका अर्थ है कि इसे परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिये यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 के साथ युग्मित करना आवश्यक है।
- नाभिकीय अभिक्रिया को आरंभ करने और बनाए रखने के लिये थोरियम का उपयोग विखंडनीय पदार्थ जैसे 233U, 235U या 239Pu के साथ किया जाना आवश्यक है।
- ईंधन चक्र की रणनीतियाँ:
- निम्न संवर्द्धित यूरेनियम (LEU) के साथ थोरियम: LEU में 19.75% का 235U संवर्द्धन होता है, इसे थोरियम के साथ मिलाकर थोरियम-LEU मिश्रित ऑक्साइड (M.O.X.) ईंधन बनाया जाता है।
- प्लूटोनियम (Pu) के साथ थोरियम: यह विन्यास प्लूटोनियम को बाह्य विखंडनीय भण्डार के रूप में उपयोग करता है।
- लाभ:
- परमाणु अपशिष्ट में कमी: थोरियम आधारित रिएक्टर यूरेनियम-प्लूटोनियम ईंधन चक्रों की तुलना में काफी कम दीर्घकालिक लघु एक्टिनाइड्स (आयनीकरण विकिरण उत्सर्जित करने वाले तत्व) उत्पन्न करते हैं।
- सुरक्षा: व्यय ईंधन में 232U की उपस्थिति कठोर गामा विकिरण उत्पन्न करती है, जो शस्त्रीकरण को रोकती है।
- पुनर्चक्रण क्षमता: 233U में कम गैर-विखंडनीय अवशोषण, बहु पुनर्चक्रण चक्रों की सुविधा प्रदान करता है, जिससे ईंधन दक्षता में सुधार होता है।
- उन्नत ईंधन उपयोग: थोरियम जल-शीतित या विगलित-लवण रिएक्टरों में खपत की तुलना में अधिक विखंडनीय यूरेनियम-233 उत्पन्न कर सकता है, जिससे ईंधन का कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है।
- चुनौतियाँ:
- निष्कर्षण लागत: थोरियम निष्कर्षण महंगा होता है, क्योंकि यह दुर्लभ मृदा की मांग से प्रेरित मोनेज़ाईट खनन का उप-उत्पाद है, जिससे समर्पित खनन गैर-लाभकारी हो जाता है।
- विखंडनीय चालकों पर निर्भरता: थोरियम एक उपजाऊ खनिज है। इसे शृंखला अभिक्रिया आरंभ करने और बनाए रखने के लिये यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 जैसी बाह्य विखंडनीय सामग्री की आवश्यकता होती है।
- सीमित अनुभव: अधिकांश परमाणु ऊर्जा प्रणालियाँ ऐतिहासिक रूप से यूरेनियम के लिये अनुकूलित हैं, जिसके कारण थोरियम के संबंध में अनुसंधान, विकास एवं परिचालन अनुभव सीमित है।
भारत का तीन चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम क्या है?
- परिचय: यह परमाणु ऊर्जा विकसित करने की एक रणनीति है, जो देश में उपलब्ध सीमित यूरेनियम संसाधनों और विशाल थोरियम भंडार के विवेकपूर्ण उपयोग पर केंद्रित है।
- इसे भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिये डॉ. होमी भाभा द्वारा तैयार किया गया था।
- 3-चरण: 3-चरण की रणनीति विभिन्न प्रकार के रिएक्टरों को एकीकृत करके धीरे-धीरे थोरियम-आधारित विद्युत उत्पादन में परिवर्तित करती है।
- चरण-I: इसमें PHWR की स्थापना शामिल है और इसमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम (U-238) और शीतलक एवं मॉडरेटर के रूप में भारी जल (ड्यूटेरियम ऑक्साइड) का उपयोग किया जाता है।
- इन रिएक्टरों से निष्कर्षित ईंधन को प्लूटोनियम प्राप्त करने के लिये पुनः संसाधित किया जाता है।
- चरण-II: इसमें चरण-I के रिएक्टरों में उत्पादित प्लूटोनियम द्वारा संचालित फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (FBRs) के उपयोग की परिकल्पना की गई है।
- प्लूटोनियम के उपयोग के अतिरिक्त, FBR थोरियम से यूरेनियम-233 (U-233) का उत्पादन भी करते हैं।
- चरण-III: इसमें ईंधन के रूप में यूरेनियम-233 (U-233) और थोरियम का उपयोग करके थोरियम-आधारित रिएक्टरों के उपयोग की परिकल्पना की गई है।
- चरण-III का उद्देश्य थोरियम से उत्पन्न U-233 को भारत के प्राथमिक परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करना है।
- चरण-I: इसमें PHWR की स्थापना शामिल है और इसमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम (U-238) और शीतलक एवं मॉडरेटर के रूप में भारी जल (ड्यूटेरियम ऑक्साइड) का उपयोग किया जाता है।
नोट: प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) का परिचालन भारत के तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत का प्रतीक है।
- PFBR संयंत्र द्वारा अपनी खपत से अधिक परमाणु ईंधन का उत्पादन होता है।
- तमिलनाडु के कलपक्कम स्थित मद्रास परमाणु विद्युत संयंत्र में स्थानीय PFBR का परिचालन शुरू कर दिया गया है।
निष्कर्ष
भारत की परमाणु रणनीति (जो 3-चरणीय कार्यक्रम पर आधारित है) संधारणीय ऊर्जा हेतु प्रचुर मात्रा में थोरियम भंडार का दोहन करने पर केंद्रित है। उन्नत थोरियम ईंधन (ANEEL) हेतु CCTE के साथ सहयोग से कुशल तथा कम अपशिष्ट वाली परमाणु ऊर्जा के क्रम में एक आशाजनक भविष्य पर प्रकाश पड़ता है। इससे संबंधित चुनौतियों के बावजूद, भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में थोरियम की क्षमता महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत की ऊर्जा रणनीति में थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टरों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। 3-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम इस उद्देश्य के साथ किस प्रकार संरेखित है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई. ए. ई. ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संदर्भ में 'अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई. ए. ई. ए.)' के 'अतिरिक्त नयाचार (एडीशनल प्रोटोकॉल)' का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (2018) (a) असैनिक परमाणु रिएक्टर आई. ए. ई. ए. के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं। उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से जुड़े तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018) |
कृषि
MSP को वैधानिक बनाने की किसानों की मांग
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, न्यूनतम समर्थन मूल्य, आर्थिक उदारीकरण, विश्व व्यापार संगठन, खाद्य मुद्रास्फीति, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मेन्स के लिये:भारत में कृषि नीतियाँ, कृषि से संबंधित आर्थिक चुनौतियाँ, किसानों का विरोध, कृषि विविधीकरण एवं स्थिरता |
स्रोत: लाइवमिंट
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत न करने एवं उनकी शिकायतों का समाधान न करने के लिये केंद्र सरकार की आलोचना की गई।
- न्यायालय ने केंद्र से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिये विधिक गारंटी की मांग वाली नई याचिका पर जवाब देते हुए किसानों की मांगों पर विचार करने का आग्रह किया।
- यह घटनाक्रम पंजाब-हरियाणा सीमा पर किसान समूहों द्वारा लंबे समय से चल रहे विरोध प्रदर्शन से संबंधित है।
MSP गारंटी से संबंधित याचिका क्या है?
- याचिका: इसमें कृषि कानूनों को निरस्त करने के बाद वर्ष 2021 के किसान विरोध प्रदर्शन के दौरान किए गए वादों के आधार पर फसलों पर MSP हेतु विधिक गारंटी की मांग की गई।
- इस याचिका में मांग की गई है कि कृषि उत्पादकों के लिये स्थिर आय सुनिश्चित करने के क्रम में MSP को विधिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: सर्वोच्च न्यायालय ने कोई प्रत्यक्ष आदेश जारी न करते हुए, इस मुद्दे को सुलझाने के लिये उच्चाधिकार प्राप्त समिति का उपयोग करने का सुझाव दिया तथा इस संदर्भ में केंद्र से तुरंत जवाब देने को कहा।
- इसमें सर्वोच्च न्यायालय की भागीदारी से चल रहे विरोध प्रदर्शनों को विधिक बल मिलने के साथ अधिक व्यवस्थित तथा विधिक समाधान की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन का क्या कारण है?
- किसानों के विरोध प्रदर्शन का कारण: यह विरोध प्रदर्शन भारत के वर्ष 1991 के आर्थिक उदारीकरण से संबंधित लंबे समय से चली आ रही शिकायतों से प्रेरित है, जिसमें कृषि की तुलना में औद्योगीकरण को प्राथमिकता दी गई थी।
- इससे ग्रामीण क्षेत्रों (जहाँ किसान कम फसल लाभ एवं बढ़ती लागत का सामना कर रहे हैं) में संकट बढ़ रहा है।
- यद्यपि सरकार कई फसलों के लिये MSP निर्धारित करती है लेकिन इसका क्रियान्वयन सीमित है तथा इसके तहत खरीद ज्यादातर चावल एवं गेहूँ की ही होती है।
- किसान (विशेषकर गैर-प्रमुख फसल क्षेत्रों के संदर्भ में)अक्सर उत्पादन लागत से कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर होते हैं।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के समझौते (जिन्हें प्रायः मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने वाले समझौतों के रूप में देखा जाता है), व्यापार प्रतिबंध लगाने या किसानों को सब्सिडी प्रदान करने की भारत की क्षमता को सीमित करते हैं।
- प्रदर्शनकारियों के अनुसार, इससे किसानों के लिये खरीद नीतियों एवं सब्सिडी को नियंत्रित करने की भारत की क्षमता में बाधा उत्पन्न हुई है।
- यद्यपि सरकार कई फसलों के लिये MSP निर्धारित करती है लेकिन इसका क्रियान्वयन सीमित है तथा इसके तहत खरीद ज्यादातर चावल एवं गेहूँ की ही होती है।
- किसानों की प्रमुख मांगें: प्राथमिक मांग एक ऐसे कानून की है जो सभी फसलों के लिये MSP की गारंटी देता है।
- यह स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें 'C2+50%' फार्मूले का उपयोग करते हुए उत्पादन लागत पर 50% लाभ मार्जिन की सिफारिश की गई है।
- व्यापक लागत (C2) में सभी भुगतान किये गए व्यय, अवैतनिक पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य, किराया, तथा स्वामित्व वाली भूमि और स्थायी पूंजी पर छोड़ा गया ब्याज शामिल है।
- जबकि MSP वर्तमान में A2+FL से 50% अधिक निर्धारित है, जिसमें भुगतान किये गए व्यय और अवैतनिक पारिवारिक श्रम शामिल हैं।
- अन्य प्रमुख मांगें: किसानों और मजदूरों के लिये पूर्ण ऋण माफी। किसानों के लिये मुआवज़ा और पेंशन, विशेष रूप से विरोध प्रदर्शन या कृषि संकट से प्रभावित किसानों के लिये।
- कृषि श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य स्थितियाँ और मज़दूरी।
- भूमि और जल पर स्वदेशी लोगों के अधिकारों का संरक्षण।
- यह स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें 'C2+50%' फार्मूले का उपयोग करते हुए उत्पादन लागत पर 50% लाभ मार्जिन की सिफारिश की गई है।
- सरकार का दृष्टिकोण: केंद्र सरकार ने बार-बार कहा है कि MSP के लिये कानूनी गारंटी देना अव्यवहारिक होगा, क्योंकि इसमें लॉजिस्टिक चुनौतियाँ और खरीद की उच्च लागत शामिल है।
- सरकार ऐसी नीति के आर्थिक प्रभावों को लेकर भी चिंतित है, जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति और बजटीय बाधाएँ शामिल हैं।
MSP के वैधता के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?
- MSP के वैधता के पक्ष में तर्क:
- किसानों की परेशानी का समाधान: MSP को वैध बनाने से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों को उनकी फसलों के लिये उचित मूल्य मिले, बाज़ार में उतार-चढ़ाव से होने वाले कम लाभ की समस्या दूर होगी तथा उत्पादन लागत को कवर करके और किसानों के लिये उचित लाभ की गारंटी देकर वित्तीय सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा 15% से नीचे गिर गया है, तथा औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में वृद्धि के बावजूद किसानों की आय में न्यूनतम वृद्धि हुई है।
- MSP को वैधानिक बनाने से उचित मूल्य सुनिश्चित करने और कृषि विकास को समर्थन देकर इस अंतर को कम किया जा सकता है।
- भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का हिस्सा 15% से नीचे गिर गया है, तथा औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में वृद्धि के बावजूद किसानों की आय में न्यूनतम वृद्धि हुई है।
- औपचारिक बाज़ारों को बढ़ावा देना: MSP को वैध बनाने से औपचारिक बाज़ार लेनदेन को बढ़ावा मिलेगा, अनौपचारिक बाज़ारों पर निर्भरता कम होगी, तथा डिजिटल कृषि के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ाने के सरकार के लक्ष्य के साथ तालमेल हो सकेगा।
- स्थिर बाज़ार मूल्य: MSP को वैध बनाने से कृषि बाज़ार में मूल्य अस्थिरता कम हो सकती है, जिससे कृषि आय और उपभोक्ता मूल्य दोनों स्थिर हो सकते हैं।
- लागत गणना विधियाँ: लागत गणना की वर्तमान विधियाँ प्रायः कृषि की वास्तविक लागत को दर्शाने में विफल रहती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें किसानों के व्यय से भी कम हो जाती हैं।
- अधिक सटीक मूल्य निर्धारण मॉडल, जैसे कि C2+50% पद्धति, कृषि मूल्यों को अन्य क्षेत्रों के साथ बेहतर ढंग से संरेखित कर सकती है।
- किसानों की परेशानी का समाधान: MSP को वैध बनाने से यह सुनिश्चित होगा कि किसानों को उनकी फसलों के लिये उचित मूल्य मिले, बाज़ार में उतार-चढ़ाव से होने वाले कम लाभ की समस्या दूर होगी तथा उत्पादन लागत को कवर करके और किसानों के लिये उचित लाभ की गारंटी देकर वित्तीय सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
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- कृषि निवेश: MSP को वैध बनाने से किसानों को पूर्वानुमानित आय प्राप्त होगी, कृषि में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा तथा सतत् पद्धतियों और हरित प्रौद्योगिकियों के माध्यम से उत्पादकता में सुधार होगा।
- MSP के वैधता के विपक्ष तर्क:
- तार्किक चुनौतियाँ: देश भर में सभी फसलों पर MSP लागू करना अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण कठिन है, जैसे कि मंडी प्रणाली, जो कई राज्यों में क्रियाशील नहीं है।
- सरकार के लिये उच्च लागत: सभी फसलों को MSP पर खरीदने के लिये अत्यधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिससे बजटीय बाधाएँ और संभावित आर्थिक तनाव बढ़ेगा।
- खाद्य मुद्रास्फीति: MSP के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ता प्रभावित होंगे, विशेषकर यदि सरकार को सभी फसलों को MSP पर खरीदने के लिये बाध्य किया जाए।
- बाज़ार में बाधाएँ: MSP का सांविधिकरण कृषि बाज़ारों में आपूर्ति और मांग की वर्तमान गतिशीलता को बाधित कर सकता है, जिससे अकुशलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- विश्व व्यापार संगठन की बाधाएँ: विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते सरकार की सब्सिडी प्रदान करने या कृषि व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की क्षमता को सीमित करते हैं, जिससे MSP के सांविधिकरण की प्रभावशीलता कमज़ोर हो सकती है।
देश भर में MSP को वैध बनाने के विकल्प क्या हो सकते हैं?
- लक्षित दृष्टिकोण: फसलों के एक छोटे प्रतिशत के लिये MSP के सांविधिकरण से खरीद प्रणाली को प्रभावित किये बिना कीमतों को स्थिर किया जा सकता है।
- इसे प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) द्वारा समर्थित किया जा सकता है, जो MSP और मूल्य न्यूनता भुगतान के माध्यम से किसानों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करता है।
- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों ने खरीद प्रणालियों का सफलतापूर्वक विस्तार किया है।
- क्षेत्रीय कृषि चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये, राष्ट्रव्यापी स्तर पर MSP को वैध बनाने के बजाय, स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप राज्य-विशिष्ट कानून बनाने पर विचार किया जा सकता है।
- सहकारिता की भूमिका: एक विकल्प के रूप में सहकारी समितियों और FPO को बढ़ावा देना, जो दूध उत्पादन जैसे कुछ क्षेत्रों में सफल रहे हैं।
- सहायक बुनियादी ढाँचा: सहकारी समितियों और FPO के लिये एक मज़बूत कानूनी ढाँचा, आधुनिक भंडारण सुविधाएँ एवं बेहतर बुनियादी ढाँचा आवश्यक है।
- प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (PMKSY) बुनियादी ढाँचे को बढ़ाकर तथा फसल-उपरान्त होने वाले नुकसान को कम करके इसकी पूर्ति कर सकती है।
- अनुबंध खेती: किसानों और निगमों या सहकारी समितियों के बीच अनुबंधों को प्रोत्साहित करना, जहाँ किसान अपनी उपज के लिये गारंटीकृत मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।
- फसल बीमा योजनाएँ: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) जैसी पहलों के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं या बाज़ार में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाले नुकसान से किसानों को बचाने के लिये फसल बीमा का विस्तार और सुधार करना।
- विविधीकरण: किसानों को अपनी फसलों और आय स्रोतों में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे कुछ फसलों पर उनकी निर्भरता कम हो सके, जिससे बाज़ार में अस्थिरता आती हो।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में सभी फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैध बनाने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। क्या इसे कृषि संकट को दूर करने का एक स्थायी समाधान माना जाना चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. खाद्यान्न वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये सरकार द्वारा कौन-से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं? (2019) |