सामाजिक न्याय
खाद्य-सुरक्षित और भुखमरी-मुक्त भारत की राह
- 16 Oct 2024
- 29 min read
यह संपादकीय 16/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित“A food-sufficient India needs to be hunger-free too” पर आधारित है। इस लेख में खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की वैश्विक चुनौती का उल्लेख किया गया है तथा बढ़ती लागत, संघर्ष एवं जलवायु परिवर्तन को प्रमुख कारणों के रूप में उजागर किया गया है। इसमें खाद्य उत्पादन में भारत की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही भुखमरी से निपटने हेतु यह सुनिश्चित करने के लिये बदलाव की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है कि सभी को उचित मूल्य पर पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो।
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन, ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI)- 2023, एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, पोषण (POSHAN) अभियान, NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट, कृषि अवसंरचना निधि, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)- 2013, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-NAM) प्लेटफॉर्म, राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), राष्ट्रीय बागवानी मिशन मेन्स के लिये:भारत में खाद्य सुरक्षा और भुखमरी से संबंधित मुद्दे, खाद्य सुरक्षा तथा भुखमरी उन्मूलन से संबंधित सरकारी पहल। |
खाद्य असुरक्षा और कुपोषण विश्व भर में व्याप्त निरंतर चुनौतियाँ बनी हुई हैं। स्वस्थ आहार की बढ़ती लागत, जो वर्ष 2022 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन औसतन 3.96 अमेरिकी डॉलर रही, ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है, जिससे लगभग 2.83 बिलियन लोग पौष्टिक भोजन का खर्च वहन करने में असमर्थ हो गए हैं।
भारत, जो कभी खाद्यान्न की कमी से संघर्षरत था, ने कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी पोषण संबंधी असमानताओं से जूझ रहा है। जबकि देश ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे प्रभावी खाद्य सुरक्षा उपायों को लागू किया है, फिर भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। इसके अलावा, केवल खाद्य पर्याप्तता से हटकर किफायती, पौष्टिक आहार तक सर्वव्यापी पहुँच सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो भुखमरी और कुपोषण दोनों को दूर करने के लिये कृषि-खाद्य प्रणाली में परिवर्तन की आवश्यकता को उजागर करता है।
भारत में खाद्य सुरक्षा और भूख की वर्तमान स्थिति क्या है?
- खाद्य सुरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन (2022-32) के अनुसार, सत्र 2022-23 में भारत में लगभग 333.5 मिलियन लोग खाद्य असुरक्षित की श्रेणी में थे।
- अनुमान है कि अगले दशक तक यह आँकड़ा उल्लेखनीय रूप से घटकर 24.7 मिलियन हो जाएगा।
- इसके अलावा, हाल के अन्वेषण से पता चलता है कि ग्रामीण आबादी का 63.3% (527.4 मिलियन लोग) भोजन पर 100% आय खर्च करने के बावजूद आवश्यक आहार (CoRD) की लागत को वहन करने में सक्षम नहीं हैं।
- भारत में भुखमरी (NSSO सांख्यिकी): जनसंख्या का 3.2% प्रतिमाह न्यूनतम 60 भोजन-आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है, 2.5% जनसंख्या (3.5 करोड़ लोग) ऐसी भी श्रेणी में आती है, जिसे दिन में दो वक्त का भोजन नहीं मिल पाता।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2023 में, भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर था, जो पाकिस्तान और सूडान से भी नीचे था।
- यद्यपि आलोचकों का तर्क है कि GHI में भारत की स्थिति खराब है, क्योंकि इसके घटक वास्तविक भूख के बजाय पोषण और कम उम्र में मृत्यु दर पर अधिक केंद्रित हैं।
भारत में खाद्य सुरक्षा से भुखमरी में कमी क्यों नहीं आई है?
- अकुशल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS): सुधारों के बावजूद, भारत की PDS को अभी भी सभी इच्छित लाभार्थियों तक पहुँच बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लीक, भ्रष्टाचार और बहिष्करण संबंधी त्रुटियाँ जारी हैं। वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) के तहत 90 मिलियन से अधिक पात्र व्यक्तियों को कथित तौर पर उनके कानूनी अधिकारों से वंचित किया गया है।
- कोविड-19 महामारी ने और भी कमियाँ उजागर कर दीं, क्योंकि कई प्रवासी अपने गृह राज्यों के बाहर खाद्य राशन प्राप्त करने में असमर्थ हो गए।
- इसके समाधान के रूप में सरकार ने “एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड” योजना शुरू की, लेकिन इसका कार्यान्वयन अभी भी अधूरा है।
- आय असमानता और गरीबी: जबकि भारत ने गरीबी कम करने में प्रगति की है (पिछले 9 वर्षों में 24.82 करोड़ भारतीय बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं), फिर भी आय में भारी असमानताएँ बनी हुई हैं, जिससे भोजन की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
- विश्व असमानता रिपोर्ट- 2022 के अनुसार भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जिसमें शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% तथा 22% हिस्सा है।
- NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट (वर्ष 2019-21) के हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि पाँच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अल्पपोषण के कारण 'स्टंटिंग' (Stunting) से ग्रस्त हैं, जो गरीबी और असमानता से जुड़ी दीर्घकालिक पोषण संबंधी कमियों को दर्शाता है।
- पोषण संबंधी चुनौतियाँ और आहार विविधता: भारत में खाद्य सुरक्षा प्रायः पोषण संबंधी पर्याप्तता के बजाय कैलोरी पर्याप्तता पर केंद्रित होती है।
- देश कुपोषण के ‘तिहरे बोझ’ का सामना कर रहा है: अल्पपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी और मोटापा।
- घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (2022-23) से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में सबसे गरीब 5% लोगों के लिये औसत प्रति व्यक्ति दैनिक कैलोरी सेवन 1,564 किलो कैलोरी है, जबकि आवश्यक 2,172 किलो कैलोरी है।
- शहरी क्षेत्रों में 2,135 किलो कैलोरी की आवश्यकता के मुकाबले सेवन 1,607 किलो कैलोरी है।
- परिणामस्वरूप, अनुमानतः 17.1% ग्रामीण तथा 14% शहरी आबादी को पर्याप्त पोषण के लिये कुल मासिक प्रति व्यक्ति व्यय सीमा के आधार पर ‘वंचित’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- सरकार ने कुपोषण को दूर करने के लिये पोषण (POSHAN) अभियान जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं, लेकिन इनकी प्रगति धीमी है।
- शहरीकरण और बदलती खाद्य प्रणालियाँ: भारत में तेज़ी से हो रहा शहरीकरण खाद्य प्रणालियों और उपभोग पैटर्न को बदल रहा है।
- शहरी क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा की समस्या बढ़ती जा रही है तथा शहरी गरीबों को पौष्टिक भोजन प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट द्वारा वर्ष 2022 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि “दिल्ली में शहरी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले 51% परिवारों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।”
- इसके समाधान के रूप में, सरकार ने निशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिये प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) का विस्तार किया, लेकिन शहरी खाद्य वितरण और पोषण में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- भोजन तक पहुँच में लैंगिक असमानताएँ: लगातार लैंगिक असमानताएँ भारत में खाद्य असुरक्षा और कुपोषण में योगदान करती हैं।
- घरों में महिलाएँ प्रायः सबसे कम और सबसे अंत में खाती हैं, जिसके कारण उनके पोषण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (2019-21) के अनुसार, महिलाओं (15-49 वर्ष) में एनीमिया की व्यापकता 57.0% है।
- गैर-मुख्य खाद्य पदार्थों पर अपर्याप्त ध्यान: भारत की खाद्य सुरक्षा नीतियों में पारंपरिक रूप से अनाज, विशेष रूप से गेहूँ और चावल पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह दृष्टिकोण विविध, पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों के महत्त्व की उपेक्षा करता है।
- भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है, जहाँ 2000 के दशक के प्रारंभ से उत्पादन में 40% की भारी वृद्धि हुई है।
- फसल-उपरांत हानियाँ और खाद्यान्न की बर्बादी: अपर्याप्त भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण अवसंरचना के कारण खाद्यान्न की बहुत बड़ी हानि होती है।
- यह अनुमान है कि भारत में लगभग 30-40% फल और सब्ज़ियाँ उचित शीत-भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण बर्बाद हो जाती हैं।
- इस समस्या से निपटने के लिये सरकार ने कृषि अवसंरचना निधि की शुरुआत की। हालाँकि 30 जून 2024 तक केवल ₹43,391 करोड़ स्वीकृत किये गए हैं, जिनमें से ₹28,171 करोड़ इस योजना के तहत वितरित किये गए हैं, जो फसल-उपरांत अवसंरचना में सुधार की धीमी प्रगति को दर्शाता है।
- स्वच्छ जल एवं स्वच्छता तक सीमित पहुँच: खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, जल, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य (WASH) की स्थिति से निकटता से जुड़ी हुई है।
- निम्नस्तरीय WASH के कारण पोषक तत्त्वों का उपभोग ठीक से नहीं हो पाता है जिससे बार-बार बीमारियाँ होती हैं और खाद्य सुरक्षा के प्रयास विफल हो जाते हैं।
- भारत ने स्वच्छ भारत मिशन के माध्यम से प्रगति की है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। भारत में अभी भी 163 मिलियन से अधिक लोगों को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है और देश में 21% संक्रामक बीमारियाँ असुरक्षित जल के कारण होती हैं।
खाद्य सुरक्षा और भुखमरी उन्मूलन से संबंधित सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाएँ हैं?
- खाद्य सुरक्षा हेतु भारत सरकार की पहलें:
- आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन
- राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (ई-NAM) प्लेटफॉर्म
- वर्ष 2023 अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (IYM) 2023 के रूप में घोषित
- मेगा फूड पार्क योजना
- भुखमरी के उन्मूलन हेतु भारत की पहलें:
भारत एक साथ खाद्य सुरक्षा कैसे प्राप्त कर सकता है और भुखमरी को किस प्रकार कम कर सकता है?
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का सुदृढ़ीकरण और विविधीकरण: PDS का विस्तार करके इसमें अनाज के अलावा विभिन्न प्रकार के पौष्टिक खाद्य पदार्थ जैसे दालें, कदन्न तथा फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थ शामिल किये जाने चाहिये।
- वितरण प्रणाली में लीकेज को कम करने और लक्ष्यीकरण में सुधार करने के लिये बायोमेट्रिक प्रामाणीकरण और GPS ट्रैकिंग जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों को लागू किये जाने चाहिये।
- प्रवासी श्रमिकों के लिये भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु जैसे राज्यों ने अपने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में दालों को सफलतापूर्वक शामिल कर लिया है, जिससे आहार विविधता में सुधार हुआ है।
- सरकार सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के साथ सभी राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कम-से-कम तीन गैर-अनाज वस्तुओं को शामिल करने का लक्ष्य निर्धारित कर सकती है।
- जलवायु-अनुकूल कृषि में निवेश: अनावृष्टि-प्रतिरोधी फसल किस्मों, कुशल जल सिंचाई प्रणालियों और संधारणीय कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- किसानों को जलवायु संबंधी हानियों से बचाने के लिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) जैसी फसल बीमा योजनाओं का दायरा बढ़ाया जाना चाहिये।
- जलवायु अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान और विकास में निवेश किये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने चावल की Swarna-Sub1 जैसी बाढ़-सहिष्णु किस्में विकसित की हैं, जिसकी फसलें दो सप्ताह तक जलमग्न रह सकती हैं।
- पोषण शिक्षा और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा: स्कूली बच्चों, गर्भवती महिलाओं और सामुदायिक अभिकर्त्ताओं सहित विविध जनांकिकी को लक्षित करते हुए व्यापक पोषण शिक्षा अभियान शुरू किये जाने चाहिये।
- व्यापक पहुँच के लिये प्रौद्योगिकी और जनसंचार माध्यमों का लाभ उठाए जाएँ। पोषण शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम और आँगनवाड़ी सेवाओं में एकीकृत किये जाने चाहिये।
- उदाहरण के लिये, पोषण अभियान के जन आंदोलन ने पोषण जागरूकता बढ़ाने में आशाजनक परिणाम दिये हैं।
- इस मॉडल का विस्तार करते हुए तीन वर्षों के भीतर प्रत्येक ग्रामीण परिवार तक अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से व्यक्तिगत पोषण परामर्श उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।
- शहरी खाद्य सुरक्षा उपायों का सुदृढ़ीकरण: सामुदायिक रसोई, शहरी कृषि पहल और खाद्य बैंकों सहित शहरी गरीबों के लिये लक्षित खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम विकसित किये जाने चाहिये।
- कमज़ोर शहरी आबादी की पहचान और मैपिंग में सुधार की आवश्यकता है। बेहतर पहुँच के लिये नागरिक समाज संगठनों के साथ सहयोग किये जाने चाहिये।
- उदाहरण के लिये अक्षय पात्र फाउंडेशन के केंद्रीकृत रसोई मॉडल को नगर निगमों के साथ साझेदारी में बढ़ाया जा सकता है।
- आहार विविधीकरण और स्वदेशी खाद्य पदार्थों को बढ़ावा: स्थानीय रूप से अनुकूलित, पोषक तत्त्वों से भरपूर फसलों जैसे कदन्न, दालें और स्थानीय सब्ज़ियों के उत्पादन तथा उपभोग को प्रोत्साहित करना।
- विविध, रेडी-टू-इट पौष्टिक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता बढ़ाने के लिये लघु-स्तरीय खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को समर्थन प्रदान किये जाने चाहिये।
- पारंपरिक खाद्य पदार्थों के पोषण संबंधी लाभों को बढ़ावा देने के लिये जागरूकता अभियान शुरू किये जाने चाहिये। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (IYM) घोषित करने का प्रस्ताव इसी दिशा में एक कदम है।
- कृषि और पोषण में महिलाओं का सशक्तीकरण: महिलाओं की भूमि-स्वामित्व और कृषि इनपुट तक पहुँच बढ़ाने के लिये नीतियों को लागू किये जाने चाहिये।
- महिला किसानों के लिये लक्षित कृषि विस्तार सेवाएँ और वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम प्रदान किये जाने चाहिये।
- महिला स्वयं सहायता समूहों को सुदृढ़ कर स्थानीय खाद्य प्रणालियों में उनकी भूमिका को बढ़ाना चाहिये। उदाहरण के लिये, महिला कृषक सशक्तीकरण परियोजना ने महिला किसानों को सशक्त बनाने में सफलता दिखाई है।
- कृषक उत्पादक संगठनों में नेतृत्व पदों का एक निश्चित प्रतिशत महिलाओं के लिये आरक्षित करने जैसी पहलों के माध्यम से कृषि संबंधी निर्णायक भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है।
- फसल-उपरांत प्रबंधन में सुधार कर खाद्य अपशिष्ट का न्यूनीकरण: विकेंद्रीकृत भंडारण सुविधाओं, शीत भंडारण शृंखलाओं और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- बेहतर इन्वेंट्री प्रबंधन के लिये हर्मेटिक स्टोरेज बैग और मोबाइल ऐप जैसी प्रौद्योगिकियों को लागू किये जाने चाहिये।
- कृषि-लॉजिस्टिक्स अवसंरचना के विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिसमें प्रत्येक ब्लॉक में एक बहु-वस्तु भंडारण सुविधा की स्थापना और फार्म-गेट प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा देने जैसी पहलों का समर्थन किया जाना चाहिये।
- अनौपचारिक श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा को बढ़ाना: अनौपचारिक श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार और सरलीकरण करना, जिसमें पोर्टेबल लाभ एवं आसान पंजीकरण प्रक्रिया शामिल है।
- शहरी रोज़गार गारंटी योजनाओं को लागू किया जाना चाहिये।
- सामाजिक सुरक्षा और पोषण कार्यक्रमों के बीच संबंधों को सुदृढ़ किये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी के दौरान ओडिशा की ‘शहरी वेतन रोजगार पहल’ तथा राजस्थान की ‘शहरी रोजगार गारंटी योजना’ मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है।
- पोषण के लिये जीवन-चक्र दृष्टिकोण का क्रियान्वयन: पोषण इंटरवेंशन को डिज़ाइन और क्रियान्वित किया जाना चाहिये जो गर्भावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक विभिन्न जीवन चरणों में विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
- एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) जैसे मौजूदा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये तथा किशोरों और बुजुर्गों के लिये नई पहल शुरू की जानी चाहिये।
- उदाहरण के लिये, कर्नाटक की ‘मातृपूर्णा’ योजना गर्भवती महिलाओं को एक बार पूरा भोजन उपलब्ध कराती है। ऐसे कार्यक्रमों का देश भर में विस्तार किया जाना चाहिये तथा तीन वर्षों के भीतर व्यापक पोषण सहायता के साथ अधिकतम संख्या में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं तक उपलब्धता का लक्ष्य रखा जाना चाहिये।
- बेहतर लक्ष्यीकरण और मॉनिटरिंग के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: खाद्य सुरक्षा संकेतकों की रियल टाइम मॉनिटरिंग और संभावित हंगर हॉटस्पॉट हेतु प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के लिये AI तथा बिग डेटा एनालिटिक्स को लागू किये जाने चाहिये।
- फसल उपज पूर्वानुमान और जलवायु जोखिम आकलन के लिये उपग्रह इमेजरी एवं रिमोट सेंसिंग का उपयोग किये जाने चाहिये।
- लाभार्थियों को पात्रता सुनिश्चित करने और फीडबैक देने के लिये उपयोगकर्त्ता-अनुकूल मोबाइल ऐप विकसित किये जाने चाहिये। उदाहरण के लिये, ‘मेरा राशन’ मोबाइल ऐप ने PDS उपलब्धता में सुधार किया है।
निष्कर्ष:
भारत में खाद्य सुरक्षा और भुखमरी को नियंत्रित करना न केवल राष्ट्रीय विकास के लिये बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से SDG-2, जिसका उद्देश्य भुखमरी का उन्मूलन करना और सभी के लिये सुरक्षित, पौष्टिक भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करना है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुदृढ़ कर, जलवायु-अनुकूल कृषि में निवेश करके और आहार विविधता को बढ़ावा देकर भारत अपनी कृषि-खाद्य प्रणालियों को बदल सकता है। ये प्रयास न केवल भुखमरी को कम करेंगे बल्कि वर्ष 2030 तक भुखमरी का उन्मूलन करने की वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ संतुलन बनाते हुए, अपनी आबादी के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में भी योगदान देंगे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों और भुखमरी के स्तर पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। भारत भुखमरी के उन्मूलन के लिये किस प्रकार स्थायी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं, जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. खाद्य सुरक्षा बिल से भारत में भूख व कुपोषण के विलोपन की आशा है। उसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं की समालोचनात्मक विवेचना कीजिये। साथ ही यह भी बताइये कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) में इससे कौन-सी चिंताएँ उत्पन्न हो गई हैं? (2013) |