शासन व्यवस्था
महिला कृषक और जलवायु चुनौतियाँ
- 17 Aug 2023
- 19 min read
यह एडिटोरियल 15/08/2023 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Climate change and women in agriculture: Navigating challenges and fostering resilience” लेख पर आधारित है। इसमें कृषि क्षेत्र में महिलाओं के महत्त्व और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण उनके समक्ष उभर सकने वाली चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना, DAY-NRLM, UN FAO, पुनर्योजी कृषि, कृषि वानिकी । मेन्स के लिये:कृषि में महिलाओं की भूमिका, महिला किसानों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव। |
बढ़ते तापमान, बदलते मौसम पैटर्न और चरम घटनाओं की बढ़ती तीव्रता से चिह्नित जलवायु परिवर्तन विभिन्न क्षेत्रों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा उत्पन्न कर रहा है, जहाँ कृषि सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। जैसे-जैसे ये प्रभाव तीव्र होते जा रहे हैं, यह विश्लेषण करना आवश्यक हो गया है कि इससे हाशिये पर स्थित समूह कैसे प्रभावित हो रहे हैं, विशेष रूप से कृषि से संलग्न महिलाओं पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन और कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिकाओं, उत्तरदायित्वों एवं आजीविका के बीच एक जटिल संबंध पाया जाता है, जहाँ इस समस्या से उल्लेखनीय आर्थिक एवं सामाजिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।
इस लेख में बदलते मौसम पैटर्न एवं चरम मौसमी घटनाओं से उत्पन्न इन चुनौतियों का परीक्षण करने, लैंगिक भूमिकाओं पर सांस्कृतिक प्रभावों की चर्चा करने, अनुकूली रणनीतियों पर विचार करने और कृषि अनुकूलन प्रयासों के भीतर लिंग-विशिष्ट नतीजों को संबोधित करने की तात्कालिकता को रेखांकित किया गया है।
कृषि में महिलाओं की भूमिका की महत्ता:
- कृषि श्रमिकों का प्रतिशत और भूमिका: वैश्विक कृषि में महिलाएँ एक महत्त्वपूर्ण शक्ति हैं, जो कुल कृषि श्रमिकों के लगभग 43% भाग का निर्माण करती हैं। भारत जैसे देश में, जहाँ निर्वाह खेती (subsistence farming) की प्रमुखता है, महिलाएँ 33% कार्यबल का निर्माण करती हैं और स्वतंत्र या स्वरोज़गार किसानों की कुल संख्या में लगभग आधे भाग की हिस्सेदारी रखती हैं।
- NSSO की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 18% कृषक परिवारों में महिलाएँ ही मुखिया होने की स्थिति रखती हैं।
- कृषि का बढ़ता नारीकरण: बेहतर रोज़गार अवसरों की तलाश में ग्रामीण पुरुषों के बढ़ते प्रवासन/पलायन के कारण कृषि क्षेत्र का नारीकरण (Feminisation of Agriculture) हो रहा है, जहाँ कृषि और संबद्ध गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है।
- महिलाएँ रोपण और देखभाल से लेकर कटाई और कटाई बाद की गतिविधियों (जैसे थ्रेसिंग, फसलों की सफाई, प्रसंस्करण एवं भंडारण) तक सक्रिय रूप से फसल उत्पादन से संलग्न हैं।
- उनकी भूमिका फसलों की खेती और पशुधन पालन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि खाद्य प्रसंस्करण और विपणन तक विस्तृत है।
- महिलाएँ और पारंपरिक ज्ञान: महिलाएँ पारंपरिक कृषि ज्ञान और अभ्यासों का जीवंत भंडार होने की स्थिति भी रखती हैं। वे प्रायः आगे की पीढ़ियों में खेती, हर्बल चिकित्सा और संसाधन प्रबंधन से संबंधित कौशल का प्रसार करने में अहम् भूमिका निभाती हैं।
- वे प्रायः स्थानीय फसल किस्मों और कृषि अभ्यासों का पारंपरिक ज्ञान रखती हैं तथा कटाई के बाद के नुकसान को न्यूनतम करने और प्राप्त उपज की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- नवाचार और संवहनीयता की प्रेरक: महिलाएँ अभिनव कृषि तकनीकों एवं रणनीतियों के विकास और अंगीकरण में योगदान देती हैं, जो भूमि से उनके घनिष्ठ संबंध और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की उनकी निहित क्षमता से प्रेरित होती है।
- कृषि में महिलाओं की भूमिका प्रायः संवहनीय एवं पुनर्योजी अभ्यासों के साथ संरेखित होती है, क्योंकि वे अपने परिवारों और समुदायों की दीर्घकालिक भलाई को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति रखती हैं।
नोट: कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने हर साल 15 अक्टूबर को ‘महिला किसान दिवस’ (Women Farmer’s Day) के रूप में घोषित किया है।
महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP):
- MKSP ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन’ (DAY-NRLM) का एक उप-घटक है, जिसका उद्देश्य कृषि में महिलाओं की वर्तमान स्थिति में सुधार करना और उन्हें सशक्त बनाने के लिये उपलब्ध अवसरों की वृद्धि करना है।
- MKSP ‘महिला’ की ‘किसान’ के रूप में पहचान को चिह्नित करता है और कृषि संबंधी पारिस्थितिकी संवहनीय अभ्यासों के क्षेत्र में महिलाओं की क्षमता का निर्माण करने का प्रयास करता है।
- इसका उद्देश्य निर्धनतम परिवारों तक पहुँच बनाना और वर्तमान में ‘महिला किसान’ द्वारा संचालित गतिविधियों के दायरे का विस्तार करना है।
जलवायु परिवर्तन का महिला किसानों पर प्रभाव:
- चरम मौसमी घटनाओं से खेती कार्यों में बाधा: बदलते मौसम पैटर्न और चरम घटनाएँ कृषि में महिलाओं की भूमिकाओं पर गहरा प्रभाव डालती हैं। परिवर्तनशील वर्षा और दीर्घकालिक सूखे के कारण फसल की पैदावार कम हो जाती है, जिससे खेती पर निर्भर परिवारों के लिये खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
- महिलाएँ परंपरागत रूप से खेत में होने वाले कार्य (on-farm operations) में अभिन्न भूमिका निभाती रही हैं और वे ही प्रायः फसलों की देखभाल एवं घरेलू खाद्य आपूर्ति के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार होती हैं और परिणामस्वरूप इन व्यवधानों का खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है।
- आर्थिक निहितार्थ: कृषि से संलग्न महिलाओं के लिये जलवायु परिवर्तन के आर्थिक निहितार्थ विपुल हैं।
- बाढ़ और चरम मौसमी घटनाएँ फसलों एवं अवसंरचना को तबाह कर सकती हैं, जिससे महिलाओं को परिवार की देखभाल और वैकल्पिक आय सृजन को प्राथमिकता देने के लिये विवश होना पड़ता है।
- चरम मौसमी घटनाओं के कारण फसल की पैदावार में कमी से आय में कमी आती है, जिससे मौजूदा लैंगिक असमानताएँ और बढ़ जाती हैं।
- संसाधनों की कमी के कारण अधिक असुरक्षित: सांस्कृतिक मानदंड और भेदभावपूर्ण प्रथाएँ महिलाओं की भूमि स्वामित्व तक पहुँच में बाधा डालती हैं, जो कृषि में एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति होती है।
- संपत्ति पर महिलाओं के नियंत्रण की कमी के कारण साख, ऋण और बीमा तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है, जिससे वे जलवायु-प्रेरित हानियों के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं।
- UN FAO के अनुसार, यदि महिलाओं को पुरुषों के समान उत्पादक संसाधनों तक पहुँच प्राप्त हो तो वे अपने खेतों में पैदावार को 20-30% तक बढ़ा सकती हैं।
- जल की कमी और पहुँच: कई समुदायों में महिलाएँ घरेलू उद्देश्यों और सिंचाई के लिये जल की प्राथमिक उपयोगकर्ता होती हैं। जल की कमी, जो कि जलवायु परिवर्तन का परिणाम है, उन महिलाओं को असंगत रूप से प्रभावित करती है जो प्रायः जल संग्रहण की ज़िम्मेदारी उठाती हैं।
- इसके अलावा, जल की सीमित उपलब्धता कृषि उत्पादकता को कम कर सकती है, जिससे खाद्य सुरक्षा और आय दोनों पर असर पड़ सकता है।
- स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता: चरम मौसमी घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन से संबद्ध रोगों के बदलते पैटर्न कृषि से संलग्न महिलाओं के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं।
- खेती संबंधी गतिविधियों के दौरान चरम मौसम के संपर्क में आने से ‘हीट स्ट्रेस’ या मौसम-संबंधी अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- स्वास्थ्य जोखिम में वृद्धि गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, जिनके लिये प्रायः महिलाएँ ही प्राथमिक देखभालकर्ता होती हैं।
जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में महिला किसानों की सहायता के लिये क्या किया जा सकता है?
- महिला किसानों के लिये अनुकूली रणनीतियाँ:
- जलवायु संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये महिला किसानों को आय विविधीकरण और जलवायु-प्रयास्थी फसलों की खेती सहित अनुकूली रणनीतियों (adaptive strategies) को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- महिलाओं को उभरते आर्थिक अवसरों के अनुरूप नए कौशल विकसित करने में मदद करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पेशकश से उभरते कृषि परिदृश्य के सामने उनकी प्रत्यास्थता में वृद्धि होगी।
- प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और मौसम की सूचना:
- कृषि वानिकी, फसल विविधीकरण, जल-कुशल सिंचाई और मृदा संरक्षण अभ्यासों जैसी जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि तकनीकों में प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
- इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि महिला किसानों को बुवाई एवं कटाई के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय लेने में मदद करने के लिये समयबद्ध और सटीक मौसम पूर्वानुमान तक पहुँच प्राप्त हो।
- वित्तीय समावेशन:
- एक अन्य विवेकपूर्ण दृष्टिकोण यह होगा कि महिलाओं को सूक्ष्म-वित्त सेवाओं और बीमा उत्पादों तक पहुँच प्रदान की जाए जो जलवायु संबंधी जोखिमों को कवर करें, जहाँ यह सुनिश्चित होगा कि उनके पास जलवायु आघातों के प्रति अनुकूलन और उनसे उबरने की वित्तीय क्षमता मौजूद है।
- महिला बचत समूहों की स्थापना की जानी चाहिये जो फसल विफलता या आर्थिक तनाव के समय सुरक्षा जाल के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- संसाधनों तक पहुँच:
- पारंपरिक और स्वदेशी ज्ञान पर जोर देते हुए बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल जलवायु-प्रत्यास्थी फसल किस्मों तक महिलाओं की पहुँच को सुविधाजनक बनाया जाए।
- जलवायु परिवर्तन से प्रेरित जल की कमी से निपटने के लिये जल-बचत प्रौद्योगिकियों और कुशल सिंचाई विधियों तक महिलाओं की पहुँच बढ़ाई जाए।
- संसाधन उपलब्धता में नीति निर्माताओं की भूमिका:
- सरकारों और विभिन्न संगठनों द्वारा महिलाओं के लिये समान संसाधन पहुँच, ऋण उपलब्धता और निर्णय लेने की शक्ति सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- महिलाओं के अधिकारों को प्राथमिकता देने वाले भूमि स्वामित्व सुधार और महिलाओं की आवश्यकताओं के अनुरूप बीमा तंत्र जलवायु-प्रेरित जोखिमों के विरुद्ध उनकी प्रत्यास्थता को बढ़ा सकते हैं।
- सामाजिक सुरक्षा:
- कृषि से संलग्न सभी महिलाओं के लिये पर्याप्त सामाजिक कवर सुनिश्चित करना आधुनिक संवहनीय खेती में एक अन्य अपरिहार्य कारक है।
- एक सामाजिक सुरक्षा आवरण का होना यह सुनिश्चित करेगा कि महिलाओं के पास कार्य का प्रबंधन करने के साथ-साथ घरेलू ज़िम्मेदारियों, बच्चों के पालन-पोषण और वित्तीय बोझ को संभालने के लिये एक सुदृढ़ सहायता प्रणाली मौजूद है।
निष्कर्ष:
- कृषि से संलग्न महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लैंगिक रूप से उत्तरदायी रणनीतियों (gender-responsive strategies) को अपनाना अनिवार्य है। इसमें साख, प्रशिक्षण एवं प्रौद्योगिकी जैसे संसाधनों तक पहुँच सुनिश्चित करना, निर्णयन प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना और ऐसी नीतियाँ विकसित करना शामिल हैं जो समतामूलक अनुकूलन और प्रत्यास्थता-निर्माण प्रयासों को बढ़ावा दें।
- कृषि क्षेत्र से संलग्न महिलाओं पर जलवायु परिवर्तन के विभिन्न प्रभावों को चिह्नित करना और उनका समाधान करना अधिक संवहनीय एवं प्रत्यास्थी कृषि प्रणालियों के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
अभ्यास प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण कृषि क्षेत्र से संलग्न महिलाओं के संदर्भ में सहयोगात्मक कार्रवाई एवं लैंगिक रूप से उत्तरदायी नीतियों की आवश्यकता उत्पन्न हुई है। चर्चा कीजिये।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्र. भारतीय कृषि की परिस्थितियों के संदर्भ में "संरक्षण कृषि" का महत्त्व बढ़ जाता है। निम्नलिखित में से कौन-कौन से संरक्षण कृषि के अंतर्गत आते हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1, 3 और 4 उत्तर: D Q. जलवायु अनुकूली कृषि के लिये वैश्विक सहसंबंध ('ग्लोबल अलायंस फॉर क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर- GACSA)' के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: B मेन्स:प्र. उन विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिये जिनसे भारत में कृषि में महिलाकरण को बढ़ावा मिल रहा है। (2014) |