डेली न्यूज़ (03 Aug, 2022)



क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

प्रिलिम्स के लिये:

कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, पूंजी जोखिम-भारित संपत्ति अनुपात (सीआरएआर), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई)।

मेन्स के लिये:

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) में विभिन्न सुधारों पर चर्चा के लिये वित्त मंत्री और बैंक प्रमुखों के बीच बैठक हुई है।।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs):

  • परिचय:
    • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) की स्थापना 26 सितंबर, 1975 को प्रख्यापित अध्यादेश और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के प्रावधानों के तहत वर्ष 1975 में की गई थी।
    • RRB वित्तीय संस्थान हैं जो कृषि और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिये पर्याप्त ऋण सुनिश्चित करते हैं।
    • RRB ग्रामीण समस्याओं से परिचित होने के साथ सहकारी विशेषताओं और वाणिज्यिक बैंक की व्यावसायिक एवं वित्तीय संसाधनों को जुटाने की क्षमता का विस्तार करतें हैं।
    • वर्ष 1990 के दशक में सुधारों के बाद सरकार ने वर्ष 2005-06 में समेकन कार्यक्रम शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप RRB की संख्या वर्ष 2005 में 196 से घटकर वित्त वर्ष 2021 में 43 हो गई और इन 43 RRBs में से 30 ने शुद्ध लाभ प्रदान किये।
  • कार्य:
    • बैंक के बुनियादी कार्यों को संक्षेप में निम्नानुसार किया जा सकता है:
      • ग्राहकों की बचत को सुरक्षा प्रदान करने के लिये,
      • ऋण और पैसे की आपूर्ति बढ़ाने के लिये,
      • वित्तीय प्रणाली में जनता के विश्वास को प्रोत्साहित करने के लिये,
      • जनता की बचत जुटाने के लिये,
      • अपने नेटवर्क को बढ़ाने के लिये ताकि समाज के हर वर्ग तक पहुँच सके,
      • सभी ग्राहकों को उनकी आय के स्तर की परवाह किये बिना वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये,
      • समाज के हर तबके को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करके सामाजिक समानता लाना।

RRBs से संबंधित चुनौतियाँ:

  • बढ़ती लागत: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के संचालन की बढ़ती लागत।
    • सरकार चाहती है कि वे अपनी कमाई बढ़ाने की दिशा में काम करें।
  • सीमित गतिविधियाँ: कई शाखाओं के पास पर्याप्त व्यवसाय नहीं है, जिसके कारण उन्हें घाटा हो रहा है।
  • सीमित इंटरनेट बैंकिंग: वर्तमान में केवल 19 RRBs के पास इंटरनेट बैंकिंग सुविधाएँ हैं और 37 के पास मोबाइल बैंकिंग लाइसेंस हैं।

सरकार  के सुझाव:

  • सरकार ने RRBs को अपने ग्राहकों को इंटरनेट बैंकिंग सेवाओं की पेशकश करने और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को ऋण देने के माध्यम से अपने साख आधार का विस्तार करने सहित डिजिटलीकरण की ओर बढ़ने के लिये कहा है ताकि वे आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें।
  • सरकार ने प्रायोजक बैंकों से RRBs को और मज़बूत करने, महामारी के बाद आर्थिक सुधार का समर्थन करने के लिये समयबद्ध तरीके से एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करने का आग्रह किया।
    • साथ ही RRB पर एक कार्यशाला आयोजित करने और परस्पर सर्वोत्तम उपायों को साझा करने का सुझाव दिया।

सरकार द्वारा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में किये गए सुधार:

  • वर्षों से भारत की वित्तीय प्रणाली में लोगों के योगदान को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा विभिन्न कदम उठाए गए हैं।
    • वर्ष 1969 में भारत में मौजूद कई बैंकों के राष्ट्रीयकरण के रूप में बैंकिंग क्षेत्र में एक बड़ा सुधार हुआ इसी क्रम में वर्ष 1981 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड ) की स्थापना की गई थी।
      • नाबार्ड की स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्थायी और निष्पक्ष कृषि को बढ़ावा देना और प्रभावी ऋण सहायता, संबंधित सेवाओं, संस्था विकास और अन्य नवीन पहलों के माध्यम से ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा देना था।
  • इसलिये नाबार्ड, RRBs को पुनर्जीवित करने की पहल का नेतृत्व करेगा।
    • इसके अलावा, विकास बैंक पहले से ही 22 RRBs के लिये एक रोडमैप पर काम कर रहा है, जिसके इस वर्ष के अंत तक लागू होने की उम्मीद है।
    • इस योजना में RRBs की शाखाओं द्वारा व्यवसाय के एक निश्चित स्तर तक पहुँच जाने पर इन्हें प्रायोजक बैंकों के साथ विलय करने का प्रावधान भी शामिल किया गया है।
    • पिछले वर्ष भारत सरकार ने क्षेत्रीय ऋणदाताओं को सशक्त करने हेतु सलाह देने के लिये नाबार्ड और RBI के सदस्यों के साथ एक पैनल का गठन किया था।
      • सरकार ने वित्तीय-वर्ष 2021-22 में RRBs के पुनर्पूंजीकरण के लिये 4,084 करोड़ रुपये का योगदान दिया है, जिसमें से 21 उधारदाताओं को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर वित्तीय समावेशन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये 3,197 करोड़ रुपये जारी किये गए।

आगे की राह:

  • कोर बैंकिंग समाधान (CBS) की तर्ज़ पर RRBs के लिये एक सामान्य ढाँचे की आवश्यकता है, ताकि वे सभी अपने ग्राहकों को ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएँ प्रदान कर सकें और अपनी पहुँच और लाभप्रदता को बढ़ा सकें।
  • इंटरनेट बैंकिंग जैसी अन्य सुविधाओं का भी समावेश करना चाहिये।
  • इसके अलावा उन्हें अपनी दक्षता बढ़ाने और बैंकिंग के विभिन्न अन्य आयामों तक पहुँचने की ज़रूरत है, जैसे व्यापारियों को ऋण प्रदान करना, जिससे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) अपनी लाभप्रदता बढ़ा सकें।

UPSC  सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)

  1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
  2. राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
  3. भूमि विकास बैंक

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C

व्याख्या:

  • क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs) -
    • इसकी स्थापना क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के तहत सरकार द्वारा प्रायोजित क्षेत्र आधारित ग्रामीण ऋण देने वाली संस्थाओं के रूप में की गई थी।
    • इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों को आर्थिक तंत्र से जोड़कर उनका विकास करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, कलाकारों और छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सहयोग प्रदान करना था।
    • इन बैंकों में भारत सरकार, प्रायोजक बैंकों और संबंधित राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 50%, 35% और 15% होती है। अत: कथन 1 सही है।
  • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड)
    • यह संसदीय अधिनियम-राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत वर्ष 1982 में स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
    • यह छोटे उद्योगों, कुटीर उद्योगों और ऐसे किसी भी अन्य गाँव या ग्रामीण परियोजनाओं के विकास के लिये ज़िम्मेदार है।
    • यह ग्रामीण बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये पुनर्वित्त सहायता प्रदान करता है न कि सीधे ग्रामीण परिवारों को वित्त प्रदान करता है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
    • यह लक्ष्य प्राप्त करने में बैंकिंग उद्योग को मार्गदर्शन और प्रेरित करने के लिये ज़िला स्तरीय ऋण योजना तैयार करता है।
  • भूमि विकास बैंक -
    • सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत अर्द्ध-वाणिज्यिक बैंक सीमित देयता के सिद्धांत पर आधारित उधारकर्त्ताओं के साथ-साथ गैर उधारकर्त्ताओं के संघ हैं।
    • सभी जमींदार सदस्य बनने और अपनी भूमि को गिरवी रखकर धन उधार लेने के पात्र हैं।
    • मुख्य उधारकर्त्ता को 'ए' श्रेणी के सदस्य के रूप में नामांकित किया जाता है और अन्य जिनकी गिरवी रखी गई संपत्ति में रुचि होती है, उन्हें 'बी' वर्ग के सदस्यों के रूप में शामिल किया जाता है। इस प्रकार वे ग्रामीण परिवारों को प्रत्यक्ष ऋण सहायता भी प्रदान करते हैं। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारत और उसके पड़ोसी

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और पड़ोसी देशों के साथ इसकी सीमा, विदेश नीति, गुजराल सिद्धांत

मेन्स के लिये:

अपने पड़ोसियों के साथ भारत के संबंध, पड़ोसियों के साथ भारत की पहल और समझौते, ‘नेबरहुड फर्स्ट' नीति में व्याप्त चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने मालदीव के राष्ट्रपति से मुलाकात की और कहा कि भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति और मालदीव की 'इंडिया फर्स्ट' नीति विशेष साझेदारी को आगे बढ़ाते हुए एक-दूसरे की पूरक है।

भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति:

  • परिचय:
    • अपनी 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति के तहत भारत अपने सभी पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंध विकसित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
      • भारत एक सक्रिय विकास भागीदार है और इन देशों में कई परियोजनाओं में शामिल है।
    • भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति स्थिरता और समृद्धि के लिये पारस्परिक रूप से लाभप्रद, जन-उन्मुख, क्षेत्रीय ढाँचे के निर्माण पर केंद्रित है।
    • इन देशों के साथ भारत का जुड़ाव एक परामर्शी, गैर-पारस्परिक और परिणाम-उन्मुख दृष्टिकोण पर आधारित है, जो अधिक-से-अधिक कनेक्टिविटी, बेहतर बुनियादी ढाँचे, विभिन्न क्षेत्रों में मज़बूत विकास सहयोग, सुरक्षा और व्यापक जन-समूह संपर्क जैसे लाभ प्रदान करने पर केंद्रित है।
  • उद्देश्य:
    • कनेक्टिविटी:
      • भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) के सदस्यों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • ये समझौते सीमा पार संसाधनों, ऊर्जा, माल, श्रम और सूचना के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं।
    • पड़ोसियों के साथ संबंधों में सुधार:
      • पड़ोसियों के साथ संबंधों में सुधार करना भारत की प्राथमिकताओं में शामिल है, क्योंकि विकास के एजेंडे को साकार करने के लिये दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग आवश्यक है।
    • वार्ता:
      • यह पड़ोसी देशों के साथ संबंध स्थापित कर और वार्ताओं के माध्यम से राजनीतिक संपर्क का निर्माण करके क्षेत्रीय कूटनीति पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • आर्थिक सहयोग:
      • यह पड़ोसियों के साथ व्यापार संबंधों को बढ़ाने पर केंद्रित है।
        • भारत ने इस क्षेत्र में विकास के उद्देश्य से SAARC सम्मेलनों में भाग लिया तथा इसके सदस्य देशों की ढाँचागत परियोजनाओं में निवेश किया है।
      • उदाहरण के तौर पर बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते (MVA),जल शक्ति प्रबंधन और इंटर-ग्रिड कनेक्टिविटी में भारत की भागीदारी को देखा जा सकता है।
    • आपदा प्रबंधन:
      • यह नीति आपदा प्रतिक्रिया, संसाधन प्रबंधन, मौसम पूर्वानुमान और संचार पर सहयोग करने तथा सभी दक्षिण एशियाई नागरिकों के लिये आपदा प्रबंधन में क्षमताओं और विशेषज्ञता पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
    • सैन्य और रक्षा सहयोग:
      • भारत विभिन्न रक्षा अभ्यासों के आयोजन में भाग लेकर सैन्य सहयोग के माध्यम से क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है।

पड़ोसियों के साथ भारत के संबंध:

  • भारत-मालदीव:
    • सुरक्षा साझेदारी:
      • हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने मालदीव की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान नेशनल कॉलेज फॉर पुलिसिंग एंड लॉ एनफोर्समेंट (NCPLE) का उद्घाटन किया था।.
    • पुनर्सुधार केंद्र:
      • ‘अड्डू रिक्लेमेशन एंड शोर प्रोटेक्शन प्रोजेक्ट’ (Addu Reclamation and Shore Protection Project) हेतु 80 मिलियन अमेंरिकी डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
      • अड्डू में एक ‘ड्रग डिटॉक्सिफिकेशन एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर’ (Drug Detoxification And Rehabilitation Centre ) का निर्माण भारत की मदद से किया गया है।
    • आर्थिक सहयोग:
      • पर्यटन, मालदीव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। वर्तमान में मालदीव कुछ भारतीयों के लिये एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और कई भारतीय वहाँ रोज़गार के लिये जाते हैं।
      • अगस्त 2021 में एक भारतीय कंपनी, ‘एफकॉन’ (Afcons) ने मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी बुनियादी अवसंरचना परियोजना- ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे।
  • भारत - भूटान:
    • भारत-भूटान शांति और मित्रता संधि, 1949:
      • यह संधि अन्य बातों के अलावा स्थायी शांति तथा मित्रता, मुक्त व्यापार तथा वाणिज्य और एक-दूसरे के नागरिकों को समान न्याय प्रदान करने पर ज़ोर देती है।
        • इस संधि को वर्ष 2007 में संशोधित किया गया, जिसमें भारत द्वारा भूटान को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति निर्धारित करने के लिये प्रेरित किया गया।
    • जलविद्युत सहयोग:
      • यह वर्ष 2006 के जलविद्युत सहयोग समझौते के अंतर्गत आता है।
        • इस समझौते के एक प्रोटोकॉल के तहत भारत ने वर्ष 2020 तक भूटान को न्यूनतम 10,000 मेगावाट जलविद्युत के विकास एवं उसी से अधिशेष बिजली आयात करने पर सहमति व्यक्त की है।
    • आर्थिक सहायता:
      • भारत, भूटान के विकास में प्रमुख भागीदार देश है।
      • वर्ष 1961 में भूटान की पहली पंचवर्षीय योजना (FYP) के शुभारंभ के बाद से भारत, भूटान की FYPs के लिये वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है।
      • भारत ने भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना (वर्ष 2018-23) के लिये 4500 करोड़ रुपये प्रदान किये हैं।
  • भारत - नेपाल:
    • उच्च स्तरीय दौरा:
      • हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी, नेपाल का दौरा किया , जहाँ उन्होंने भारतीय सहायता से बनाए जा रहे बौद्ध विहार की नेपाली प्रधानमंत्री के साथ आधारशिला रखी।
    • वर्ष 1950 की शांति और मित्रता की संधि:
      • संधि दोनों देशों में निवास, संपत्ति, व्यापार और आवाज़ाही के लिये भारतीय और नेपाली नागरिकों के पारस्परिक व्यवहार के बारे में बात करती है।
        • यह भारतीय और नेपाली दोनों व्यवसायों के लिये राष्ट्रीय व्यवहार भी स्थापित करता है (अर्थात्- एक बार आयात किये जाने के बाद विदेशी वस्तुओं को घरेलू सामानों से अलग नहीं माना जाएगा)।
    • जल विद्युत परियोजनाएँ:
      • दोनों देशों ने 490.2 मेगावाट के अरुण-4 जलविद्युत परियोजना के विकास और कार्यान्वयन के लिये सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएन) लिमिटेड और नेपाल विद्युत प्राधिकरण (एनईए) के बीच पाँच समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
        • नेपाल ने भारतीय कंपनियों को नेपाल में पश्चिम सेती जलविद्युत परियोजना में निवेश करने के लिये भी आमंत्रित किया।
  • भारत - श्रीलंका:
    • हाइब्रिड पावर:
      • भारत और श्रीलंका ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये, जिसने भारत को जाफना के तीन द्वीपों (नैनातिवु, डेल्फ़्ट या नेदुन्थीवु, और एनालाइटिवू) में हाइब्रिड विद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने की सुविधा प्रदान की।
    • समुद्री बचाव समन्वय केंद्र:
    • 'एकात्मक डिजिटल पहचान फ्रेमवर्क'
      • भारत ने श्रीलंका को 'एकात्मक डिजिटल पहचान फ्रेमवर्क' को लागू करने के लिये अनुदान प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की है, जो मुख्य तौर पर ‘आधार कार्ड’ प्रणाली पर आधारित है।
        • ‘एकात्मक डिजिटल पहचान फ्रेमवर्क’ भारत की ‘आधार’ प्रणाली के समान है और इसके तहत श्रीलंका निम्नलिखित को प्रस्तुत करेगा:
          • बायोमेट्रिक डेटा पर आधारित व्यक्तिगत पहचान सत्यापन उपकरण।
          • डिजिटल उपकरण, जो साइबर स्पेस में व्यक्तियों की पहचान करते हों।
          • ‘व्यक्तिगत पहचान’ प्रणाली, जिसे दो उपकरणों के संयोजन से डिजिटल एवं भौतिक वातावरण में सटीक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।

भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के समक्ष चुनौतियाँ :

  • चीन का बढ़ता दबाव:
    • यह एक सार्थक कदम उठा पाने में विफल रहा तथा बढ़ते चीनी दबाव ने देश को इस क्षेत्र में सहयोगी बनने से रोक दिया है।
      • समुद्री मोर्चे पर चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।
  • घरेलू मामलों में हस्तक्षेप:
    • भारत पड़ोसी देशों खासकर नेपाल के घरेलू मामलों में उनकी संप्रभुता के उल्लंघन में दखल दे रहा है।
      • भारत नेपाल के भीतर और बाहर मुक्त पारगमन और मुक्त व्यापार में भी बाधा उत्पन्न कर रहा है तथा लोगों और सरकार पर दबाव बनाता रहता है।
  • भारत की घरेलू राजनीति का प्रभाव:
    • भारत की घरेलू नीतियाँ मुस्लिम बहुल देश बांग्लादेश में समस्याएँ पैदा कर रही हैं, यह दर्शाती है कि भारत की पड़ोस पहले की नीति बांग्लादेश जैसे मित्र क्षेत्रों में भी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।
  • पश्चिमी देशों की ओर भारत के झुकाव का प्रभाव:
    • भारत विशेष रूप से क्वाड और अन्य बहुपक्षीय और लघु-पार्श्व पहलों के माध्यम से पश्चिम के करीब आता है।
      • लेकिन पश्चिम के साथ श्रीलंका के संबंध अच्छी दिशा में नहीं बढ़ रहे हैं क्योंकि देश की वर्तमान सरकार को मानवाधिकारों के मुद्दों और स्वतंत्रता पर पश्चिमी राजधानियों/देशों से बढ़ती आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

आगे की राह

  • भारत की पड़ोस नीति गुजराल सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिये।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत के कद और ताकत को उसके पड़ोसियों के साथ उसके संबंधों की गुणवत्ता से अलग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे क्षेत्रीय विकास संभव हो पाता है।
  • भारत की क्षेत्रीय आर्थिक और विदेश नीति को एकीकृत करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
    • इसलिये भारत को छोटे आर्थिक हितों के लिये पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों से समझौता करने का विरोध करना चाहिये।
  • क्षेत्रीय संपर्क को अधिक मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये जबकि सुरक्षा चिंताओं को लागत प्रभावी, कुशल और विश्वसनीय तकनीकी उपायों के माध्यम से संबोधित किया जाता है जो दुनिया के अन्य हिस्सों में उपयोग में हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)

प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर उसके पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


तटीय वनस्पति को बहाल करके कार्बन हटाने की व्यवहार्यता

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन, जलवायु परिवर्तन, तटीय पारिस्थितिकी तंत्र, कार्बन डेटिंग, ब्लू कार्बन।

मेन्स के लिये:

तटीय वनस्पति को बहाल करके कार्बन हटाने की व्यवहार्यता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया है, जिसने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये तटीय आवासों को बहाल करने की दक्षता के बारे में संदेह पैदा किया है।

निष्कर्ष:

  • तटीय स्रोतों को बहाल करना असंभव सा प्रतीत होता है और वास्तविक जोखिम भी है क्योंकि जिस पैमाने पर वे उत्सर्जन को कम करतें हैं तुलनात्मक रूप से बड़े पैमाने पर कार्बन ओवरसोल्ड भी कर रहें हैं।
  • मौजूदा परिस्थितियों में तटीय पारिस्थितिक तंत्र द्वारा कार्बन संचय के लिये विश्वसनीय आँकड़ा एकत्रित करना कठिन है।
  • भविष्य में कार्बन ऑफसेट की गणना के लिये एक बहुत ही कमज़ोर आधार है कि बहाली परियोजनाएँ अगले 50 से 100 वर्षों में प्रदान कर सकती हैं।

अनिश्चितता के कारण:

  • अनुमानों में व्यापक भिन्नता:
    • जिस दर पर ब्लू कार्बन स्रोत CO₂ को वातावरण से हटाते हैं, उसका अनुमान व्यापक रूप से भिन्न होता है।
      • ब्लू कार्बन तटीय, जलीय और समुद्री वनस्पतियों, समुद्री जीवों और तलछटों द्वारा आयोजित कार्बन सिंक को संदर्भित करता है।
    • कई वैज्ञानिक अध्ययनों में, लवणीय दलदल में कार्बन सिंक के उच्चतम और निम्नतम अनुमानों के बीच 600 गुना अंतर था, समुद्री घास के लिये 76 गुना और मैंग्रोव के लिये 19 गुना अंतर था।
  • डेटिंग प्रक्रिया में त्रुटियाँ:
    • ‘बुरोइंग आर्गैनिज्म' नई और पुरानी परतों को आपस में मिलाते हैं, जिससे जीवाश्म ईंधन की कार्बन डेटिंग प्रक्रिया में त्रुटियाँ आ जाती हैं, जिससे तलछट युवा लगती है, और कार्बन सिंक दर वास्तव में जितनी है उससे अधिक लगती है है।
      • कार्बन डेटिंग एक रेडियोमेट्रिक डेटिंग पद्धति है। यह लगभग 58,000 से 62,000 वर्ष पुरानी कार्बन युक्त सामग्री की आयु का अनुमान लगाने के लिये प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रेडियोआइसोटोप कार्बन-14 (14C) का उपयोग करता है।
  • आयातित कार्बन क्षय के लिये अधिक प्रतिरोधी:
    • तटीय तलछट में दबे कार्बन का अधिकांश भाग कहीं और से आता है, जैसे कि नदियों द्वारा भूमि से बहाकर लाई गई मिट्टी। इसे आयातित कार्बन कहते हैं।
    • लवणीय दलदल पर एक अध्ययन में तलछट की सतह के पास आयातित कार्बन का अनुपात 50% तथा गहरी परतों में 80% था।
      • चूँकि गहरे भूमिगत स्रोत दीर्घकालिक कार्बन संचय दर का प्रतिनिधित्व करता है, कार्बन को हटाने हेतु पुनर्स्थापित स्रोतों का प्रत्यक्ष योगदान उम्मीद से कम महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • मार्श गैस का उत्सर्जन :
    • पाम ऑइल के बागान को वापस मैंग्रोव वन में बदलना या तटीय बाढ़ क्षेत्र को साल्टमार्श बनाने से भूमि में कार्बन संचय करने में मदद मिलती है।
    • लेकिन वही भूमि अधिक मीथेन (अन्यथा मार्श गैस के रूप में जाना जाता है) और नाइट्रस ऑक्साइड (दोनों शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें) का उत्सर्जन करती है जो जलवायु को प्रभावित करती है।
  • कैल्सीफाइंग एनिमल्स कंट्रीब्यूट एमिशन:
    • इन आवासों में विशेष रूप से समुद्री घास के मैदानों में कैल्सीफाइंग जानवर और पौधे उगते हैं।
    • समुद्री घास के किनारे अक्सर प्रवाल कीड़े और कोरलाइन शैवाल की सफेद परत से कवर होते हैं।
    • जब ये जीव अपने कैल्शियम कार्बोनेट को कवर करते हैं, तो CO₂ का उत्पादन होता है।

पहल:

  • ब्लू कार्बन आवासों को संरक्षित और जहाँ संभव हो पुनर्स्थापित किया जाना चाहिये, क्योंकि ये जलवायु अनुकूलन, तटीय संरक्षण, खाद्य प्रावधान और जैव विविधता संरक्षण हेतु लाभदायक हैं।
  • जहाँ भी संभव हो, तटीय वनस्पति के विश्वव्यापी नुकसान को कम करने का प्रयास करना चाहिये। ब्लू कार्बन आवास, कार्बन सिंक से कहीं अधिक व्यापक होते हैं जो अनेक समुदायों की समुद्री चक्रवात से रक्षा करते हैं, जैव विविधता और मत्स्य पालन के लिये लक्षित प्रजातियों का पोषण करते हैं, और जल की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
  • कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को दोगुना करना चाहिये, नेट ज़ीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करने के लिये कार्बन निष्कासन के तरीकों का उपयोग करना शामिल है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रारंभिक परीक्षा:

Q. ब्लू कार्बन क्या है? (2021)

(a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा प्रगृहीत कार्बन
(b) वन जैव मात्रा (बायोमास) और कृषि मृदा में प्रच्छादित कार्बन
(c) पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में अंतर्विष्ट कार्बन
(d) वायुमंडल में विद्यमान कार्बन

उत्तर:A

स्रोत:डाउन टू अर्थ


अमेरिका-चीन तनाव

प्रिलिम्स के लिये:

ताइवान और चीन की स्थिति

मेन्स के लिये:

ताइवान मुद्दे पर यूएस-चीन प्रतिद्वंद्विता और भारत-ताइवान संबंधों को बढ़ाने की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष ने ताइवान का दौरा किया, जो वर्ष 1997 के बाद से द्वीप पर जाने वाली सर्वोच्च स्तर अमेरिकी अधिकारी हैं।।

  • इस यात्रा ने अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ा दिया है।

Taiwan

ताइवान-चीन मुद्दा:

  • परिचय:
    • ताइवान दक्षिण-पूर्वी चीन के तट से लगभग 160 किमी. दूर एक द्वीप है, जो फूज़ौ, क्वानझोउ और ज़ियामेन के चीनी शहरों के सामने है।
  • इतिहास:
    • यह शाही राजवंश द्वारा प्रशासित था, लेकिन इसका नियंत्रण वर्ष 1895 में जापानियों को दे दिया गया था।
    • माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्टों द्वारा मुख्य भूमि चीन में गृह युद्ध जीतने के बाद राष्ट्रवादी कुओमिन्तांग पार्टी के नेता च्यांग काई-शेक वर्ष 1949 में ताइवान भाग गए।
      • च्यांग काई-शेक ने द्वीप पर चीन गणराज्य की सरकार की स्थापना की और वर्ष 1975 तक राष्ट्रपति बने रहे।
    • गृहयुद्ध में चीन और ताइवान के विभाजन के बाद चीन गणराज्य की (ROC) सरकार को ताइवान में स्थानांतरित कर दिया गया था। दूसरी ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) ने मुख्य भूमि में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की स्थापना की।
      • तब से, PRC ताइवान को देशद्रोही प्रांत के रूप में देखता है और यदि संभव हो तो शांतिपूर्ण तरीकों से ताइवान के साथ पुन: एकीकरण की प्रतीक्षा कर रहा है।
  • वर्तमान स्थिति:
    • चीन ने यह तर्क देते हुए कि ताइवान हमेशा एक चीनी प्रांत रहा है, कभी भी इसके अस्तित्व को एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई के रूप में मान्यता नहीं दी है।
      • लेकिन चीन और ताइवान के बीच आर्थिक संबंध रहे हैं।
      • ताइवान के कई प्रवासी चीन में काम करते हैं और चीन ने ताइवान में निवेश किया है।

ताइवान के प्रति अमेरीकी नीति:

  • परिचय:
    • इसने 1970 के दशक से 'वन चाइना' नीति को जारी रखा है, जिसके तहत यह ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में देखता है।
      • 'वन चाइना' नीति का अर्थ है कि जो राष्ट्र चीन के जनवादी गणराज्य (PRC) के साथ राजनयिक संबंध रखना चाहते हैं, उन्हें चीन गणराज्य (ROC) के साथ संबंध तोड़ते हुए चीन के रूप में PRC को नहीं बल्कि ROC को चीन के रूप में मान्यता देनी होगी।
      • इस नीति के अंतर्गत मुख्य भूमि चीन में कम्युनिस्ट सरकार वैध प्रतिनिधि थी और ताइवान इसका एक अलग हिस्सा था।
      • लेकिन ताइवान के साथ भी उसके अनौपचारिक संबंध हैं।
        • लेकिन ताइवान के साथ इसके अनौपचारिक संबंध भी हैं तथा सैन्य-उपकरण और खुफिया जानकारी प्रदान करके द्वीप को बाहरी आक्रमण से बचाने के क्रम में यह ताइवान की सहायता करता है।
  • यात्रा से संबंधित चीन की चिंताएँ:
    • जैसा कि चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, उसने दावा किया कि यह यात्रा चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को गंभीर रूप से कमज़ोर करेगी।
      • यह चीन-अमेरिका संबंधों की नींव को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है और ताइवान के स्वतंत्रता बलों को गंभीर रूप से गलत संकेत भेजती है।
      • चीन के अनुसार, ताइवान में एक वरिष्ठ अमेरिकी व्यक्ति की उपस्थिति ताइवान की स्वतंत्रता के लिये अमेरिकी समर्थन का संकेत देगी।

ताइवान के प्रति भारतीय नीति:

  • भारत भी एक चीन नीति का पालन करता है और ताइवान के साथ उसके औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। लेकिन राजनयिक कार्यों के लिये ताइपे (Taipei) में इसका एक कार्यालय है।
    • भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) का नेतृत्व एक वरिष्ठ राजनयिक करते हैं।
    • जबकि ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC) है।
  • भारत-ताइवान के संबंध मूल रूप से व्यापार, वाणिज्य, संस्कृति और शिक्षा पर केंद्रित थे।
  • हाल के दिनों में गलवान में चीन की जुबानी जंग के बाद भारत ने ताइवान के साथ अपने रिश्ते और मज़बूत कर लिये हैं।
    • भारत सरकार ने ताइपे में अपना दूत बनाने के लिये राजनयिक (Diplomat) को चुना था।
    • साथ ही सत्ताधारी पार्टी के दो सांसद ताइवान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में वर्चुअल मोड के जरिये शामिल हुए।

ताइवान का महत्त्व:

  • अर्द्धचालक एक ऐसा महत्त्वपूर्ण घटक हैं जो कंप्यूटर और स्मार्टफोन से लेकर कारों में ब्रेक सेंसर तक इलेक्ट्रॉनिक्स को पावर देने हेतु उपयोगी है।
    • चिप्स के उत्पादन में फर्मों का एक जटिल नेटवर्क शामिल होता है जो उन्हें डिज़ाइन करते या बनाते हैं, साथ ही वे जो प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करते हैं।
  • अधिकांश अर्द्धचालक ताइवान में उत्पादित होते हैं और यह अर्धचालक निर्माण की आउटसोर्सिंग पर हावी है।
  • इसके अलावा इसके अनुबंध निर्माताओं ने पिछले वर्ष कुल वैश्विक अर्द्धचालक राजस्व का 60% से अधिक हिस्सा प्राप्त किया।

आगे की राह

  • यह भारत के लिये अपनी एक चीन नीति पर पुनर्विचार करने और मुख्य भूमि चीन के साथ अपने संबंधों को ताइवान से अलग करने का समय है।
  • साथ ही, ताइवान के साथ अपनी सुरक्षा और आर्थिक संबंधों को उसी तरह से आगे बढ़ाएं जैसे चीन अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के माध्यम से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में अपनी भागीदारी का विस्तार कर रहा है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


वित्तीय समावेशन सूचकांक: आरबीआई

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय समावेशन, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने की पहल, आरबीआई।

मेन्स के लिये:

वित्तीय समावेशन सूचकांक का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष के लिये समग्र वित्तीय समावेशन सूचकांक (FI-सूचकांक) जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत का वित्तीय समावेशन सूचकांक का स्कोर पिछले वर्ष 2021 में9 से बढ़कर 56.4 हो गया है।
  • इसके सभी उप-सूचकांकों (वित्तीय सेवाओं तक पहुँच, उपयोग और गुणवत्ता ) में सुधार देखा गया है

वित्तीय समावेशन सूचकांक

  • परिचय:
    • वित्तीय समावेशन सूचकांक की अवधारणा एक व्यापक सूचकांक के रूप में की गई है जिसमें सरकार और क्षेत्रीय नियामकों के परामर्श से बैंकिंग, बीमा, निवेश, डाक तथा पेंशन क्षेत्र का विवरण शामिल है।
    • इसे RBI द्वारा वर्ष 2021 में बिना किसी 'आधार वर्ष' के विकसित किया गया था और प्रत्येक वर्ष जुलाई में प्रकाशित किया जाता है।
  • लक्ष्य:
    • देश भर में वित्तीय समावेशन की सीमा को मापने के लिये एक समग्र वित्तीय समावेशन सूचकांक का निर्माण करना।
    • यह सूचकांक सेवाओं की पहुँच, उपलब्धता एवं उपयोग तथा सेवाओं की गुणवत्ता मापने में आसानी के लिये अनुक्रियाशील है, जिसमें सभी 97 संकेतक शामिल हैं।
  • मापदंड:
    • यह सूचकांक 0 और 100 के बीच की एकल संख्या में वित्तीय समावेशन के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी प्राप्त करता है, जहाँ 0 पूर्ण वित्तीय अपवर्जन का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं 100 पूर्ण वित्तीय समावेशन को दर्शाता है।
    • इसमें तीन व्यापक पैरामीटर (भार कोष्ठक में दर्शाए गए हैं) अर्थात् एक्सेस (35%), उपयोग (45%) और गुणवत्ता (20%) शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक में विभिन्न आयाम शामिल हैं, जिनकी गणना कुछ संकेतकों के आधार पर की जाती है।

वित्तीय समावेशन सूचकांक का महत्त्व:

  • समावेशन का आकलन:
    • यह सूचकांक वित्तीय समावेशन के स्तर के बारे में जानकारी प्रदान करता है और आंतरिक नीति निर्माण में उपयोग के लिये वित्तीय सेवाओं का आकलन प्रस्तुत करता है।
  • विकास संकेतक:
    • इसका उपयोग प्रत्यक्ष विकास संकेतकों में एक समग्र उपाय के रूप में किया जा सकता है।
  • G20 संकेतकों को पूरा करता है:
    • यह G20 वित्तीय समावेशन संकेतक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।
    • G20 संकेतक राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर वित्तीय समावेशन एवं डिजिटल वित्तीय सेवाओं की स्थिति का आकलन करते हैं।
  • शोधकर्त्ताओं के लिये महत्त्वपूर्ण:
    • यह शोधकर्त्ताओं को वित्तीय समावेशन और अन्य व्यापक आर्थिक चरों के प्रभाव का अध्ययन करने की सुविधा प्रदान करता है।

वित्तीय समावेशन:

  • वित्तीय समावेशन कम आय वाले लोग और समाज के वंचित वर्ग को वहनीय कीमत पर भुगतान, बचत, ऋण आदि वित्तीय सेवाएँ पहुँचाने का प्रयास है। इसे ‘समावेशी वित्तपोषण’ भी कहा जाता है
  • भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में वित्तीय समावेशन विकास प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। आज़ादी के बाद से सरकारों, नियामक संस्थानों और नागरिक समाज के संयुक्त प्रयासों ने देश में वित्तीय समावेशन तंत्र को मज़बूत करने में मदद की है ।
  • बैंक खाते तक पहुँच प्राप्त करना व्यापक वित्तीय समावेशन की दिशा में पहला कदम है क्योंकि एक लेनदेन खाता लोगों को पैसे जमा करने, भुगतान करने और धन प्राप्त करने की अनुमति देता है। एक लेनदेन खाता अन्य वित्तीय सेवाओं के लिये प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।

भारत में वित्तीय समावेशन बढ़ावा देने वाली पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शिक्षा में डिजिटल अंतराल

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल अंतराल, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, शिक्षा का अधिकार, अनुच्छेद 21 ए।

मेन्स के लिये:

शिक्षा में डिजिटल अंतराल, इसका प्रभाव और आगे का रास्ता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिक्षा मंत्री ने लोकसभा को सूचित किया कि भारत के कम- से- कम 10 राज्यों में 10% से कम स्कूल सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उपकरण या डिजिटल उपकरण से लैस हैं।

Digital-Gap

आईसीटी उपकरण:

  • शिक्षण और सीखने के लिये आईसीटी उपकरण में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, जैसे- प्रिंटर, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट आदि से लेकर गूगल मीट, गूगल स्प्रेडशीट आदि जैसे सॉफ्टवेयर उपकरण तक शामिल हैं।
  • यह उन सभी संचार तकनीकों को संदर्भित करता है जो डिजिटल रूप से सूचना तक पहुँचने, पुनः प्राप्त करने, संग्रहीत करने, संचारित करने और संशोधित करने के उपकरण हैं।
  • आईसीटी का उपयोग केबलिंग की एक एकीकृत प्रणाली (सिग्नल वितरण और प्रबंधन सहित) या लिंक सिस्टम के माध्यम से मीडिया प्रौद्योगिकी जैसे ऑडियो-विज़ुअल और कंप्यूटर नेटवर्क के साथ टेलीफोन नेटवर्क के अभिसरण को संदर्भित करने के लिये भी किया जाता है।
  • हालाँकि यह देखते हुए कि आईसीटी में शामिल अवधारणाएँ, तरीके और उपकरण लगभग दैनिक आधार पर लगातार विकसित हो रहे हैं,आईसीटी की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है।

डिजिटल अंतराल:

  • परिचय:
    • यह जनसांख्यिकी और आधुनिक सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुँच वाले क्षेत्रों और उन तक पहुँच नहीं होने के बीच का अंतर है।
    • यह विकसित और विकासशील देशों, शहरी तथा ग्रामीण आबादी, युवा एवं शिक्षित बनाम वृद्ध और कम शिक्षित व्यक्तियों, पुरुषों और महिलाओं के बीच मौज़ूद है।
    • भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन डिजिटल अंतराल का सबसे बड़ा कारक है।
  • स्थिति:
    • अजीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा 2021 में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में लगभग 60% स्कूली बच्चे ऑनलाइन सीखने के अवसरों का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
    • ऑक्सफैम इंडिया के एक अध्ययन में पाया गया कि शहरी निजी स्कूलों के छात्रों के माता-पिता ने इंटरनेट सिग्नल और स्पीड के साथ समस्याओं की सूचना दी।
  • प्रभाव:
    • ड्रॉपआउट और बाल श्रम के कारण:
      • ‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों’ [EWS]/वंचित समूहों [DG] से संबंधित बच्चों को अपनी शिक्षा पूरी नहीं करने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है, साथ ही इस दौरान इंटरनेट और कंप्यूटर तक पहुँच की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है
      • वे बच्चे बाल श्रम अथवा बाल तस्करी के प्रति भी सुभेद्य हो गए हैं।
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव:
      • यह लोगों को उच्च/गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण से वंचित करेगा जो उन्हें अर्थव्यवस्था में योगदान करने और वैश्विक स्तर पर मार्गदर्शक नेता में मदद कर सकता है।
    • अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा:
      • शिक्षा के संबंध में ऑनलाइन प्रस्तुत की गई महत्त्वपूर्ण जानकारी से वंचित बने रहेंगे और इस प्रकार वे हमेशा पिछड़े ही रहेंगे, जिसे खराब प्रदर्शन के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है।
      • इस प्रकार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम छात्र और कम विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
    • सीखने की असमानता:
      • निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग वंचित हैं और पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये उन्हें लंबे समय तक बोझिल अध्ययन से गुजरना पड़ता है।
      • जबकि अमीर आसानी से स्कूली शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन एक्सेस कर सकते हैं और अपने कार्यक्रमों पर तुरंत काम कर सकते हैं।

 शिक्षा के अधिकार हेतु संवैधानिक प्रावधान

  • मूल भारतीय संविधान के भाग- IV (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत -DPSP) के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्तपोषित समान और सुलभ शिक्षा का प्रावधान किया गया।
  • वर्ष 2002 में 86वें संवैधानिक संशोधन से शिक्षा के अधिकार को संविधान के भाग- III में एक मौलिक अधिकार के तहत शामिल किया गया।

संबंधित पहल

आगे की राह:

  • आर्थिक रूप से वहनीय, उपयोग में आसान प्रौद्योगिकियों को सुनिश्चित करके सरकार डिजिटल अंतराल को प्रभावी रूप से कम कर सकती हैं। इंटरनेट कनेक्टिविटी की उच्च लागत, तकनीकी उपकरणों की कीमत, विद्युत् शुल्क व कर शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिये डिजिटल अंतराल को बढ़ाने में प्रमुख कारक की भूमिका निभाते हैं।
  • इंटरनेट और आधुनिक तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये शिक्षकों और छात्रों को समग्र रूप से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। जितने कम छात्र इन उपकरणों का उपयोग करेंगे डिजिटल अंतराल उतना ही बढ़ता जाएगा।
  • शैक्षिक ऑनलाइन सामग्री निर्माताओं को अधिक-से-अधिक भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखना चाहिये। जब उपयोगकर्ताओं को विश्वास होता है कि वे अपनी मूल या स्थानीय भाषाओं में सामग्री देख सकते हैं, तो वे समान डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने के लिये प्रेरित होते हैं ।
  • लैंगिक आधार पर डिजिटल अंतराल को कम करने की विशेष ज़रूरत है। इंटरनेट तक पहुँच में विद्यमान बाधाएँ महिलाओं और बालिकाओं द्वारा  समुदायों और देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में पूर्ण भागीदारी प्रदान करने में बाधा डालती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस