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शासन व्यवस्था

स्वास्थ्य हेतु बुनियादी ढाँचा

  • 10 Feb 2022
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 महामारी के कारण ज़्यादातर लोगों ने अन्य चीज़ो की तुलना में अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। इस महामारी ने, विशेष रूप से डेल्टा लहर के दौरान भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और बुनियादी ढाँचे में कई कमियों को उजागर किया।

भारत और हेल्थकेयर

  • स्वास्थ्य देखभाल की निवारक और प्रोत्साहक अवधारणा: भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है, जिन्होंने स्वास्थ्य देखभाल के लिये निवारक और प्रोत्साहक तंत्र स्थापित किया है।
    • पाँच रोगों- मधुमेह, उच्च रक्तचाप और तीन प्रकार के कैंसर- ओरल, गर्भाशय ग्रीवा और स्तन कैंसर के लिये हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में फिट इंडिया मूवमेंट, ईट राइट कैंपेन तथा गैर-संचारी रोग (NCD) स्क्रीनिंग की एकीकृत अवधारणा भी है।
  • सार्वजनिक-निजी सहयोग: कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी सहयोग में ज़बरदस्त सुधार हुआ है।
    • दूसरी लहर के दौरान कई राज्य सरकारों ने सरकारी अस्पतालों में क्षमता की कमी को दूर करने के लिये निजी अस्पतालों के साथ भागीदारी की।
  • स्वास्थ्य अवसंरचना के लिये सरकार की पहल: वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में 2,23,846 करोड़ रुपए 'स्वास्थ्य और कल्याण क्षेत्र' पर व्यय के लिये आवंटित किये गए थे।  यह कुल बजट प्रावधान का लगभग 6.43% था।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में समयबद्ध तरीके से सरकारी स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5% तक बढ़ाने की भी परिकल्पना की गई है।
    • स्वास्थ्य सेवा उद्योग क्षेत्र के लिये केंद्र के बजटीय आवंटन में वृद्धि और आवश्यक उपकरणों के स्वदेशी निर्माण को मज़बूत करने, साथ ही यह ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करने के लिये और अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी की उम्मीद कर रहा है।
    • विभिन्न चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API) और राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत घरेलू निर्माण के लिये PLI योजना की घोषणा की।
  • आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन: हाल ही में भारत के पीएम ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अलावा आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन की शुरुआत की।
    • इसका उद्देश्य 10 'उच्च फोकस' राज्यों में 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को सहायता प्रदान करना तथा देश भर में 11,024 शहरी स्वास्थ्य व कल्याण केंद्र स्थापित करना है।
    • योजना के तहत वन हेल्थ के लिये एक राष्ट्रीय संस्थान, वायरोलॉजी के लिये चार नए राष्ट्रीय संस्थान, WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के लिये एक क्षेत्रीय अनुसंधान मंच, नौ जैव सुरक्षा स्तर- III प्रयोगशालाएँ और रोग नियंत्रण के लिये पाँच नए क्षेत्रीय राष्ट्रीय केंद्र स्थापित किये जाएंगे।
    • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य में बढ़े हुए निवेश, भविष्य की महामारियों के लिये भारत को तैयार करने के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे, उपचार एवं व्यापक क्षमता निर्माण हेतु सभी ज़िलों को आत्मनिर्भर बनाने के मामले में व्यापक स्वास्थ्य हस्तक्षेप कर मंच तैयार करता है।

संबंधित मुद्दे

  • स्वास्थ्य बीमा के मुद्दे: नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कम-से-कम 30% आबादी या 40 करोड़ व्यक्ति [इस रिपोर्ट में 'लापता मध्यवर्गीय' (Missing Middle') के रूप में संदर्भित] स्वास्थ्य के लिये किसी भी वित्तीय सुरक्षा से रहित हैं।
    • इसके अतिरिक्त बीमा प्रीमियम पर उच्च GST (18%) लोगों को स्वास्थ्य बीमा चुनने से हतोत्साहित करता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी का अभाव: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र ऐसा नहीं है जिससे अधिक लाभ होगा बल्कि यह बुनियादी स्तर की स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है। यही कारण है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये दुनिया भर में बोझ काफी हद तक सरकारों पर है; यह निजी डोमेन के बजाय सार्वजनिक डोमेन में अधिक है।
  • मूल आणविक विकास (Original Molecular Development) का अभाव: भारत दुनिया के लिये फार्मेसी है क्योंकि भारत में दवा निर्माण की स्थिति काफी मज़बूत है।  हालाँकि वित्तपोषण की कमी के कारण दवा निर्माण में इनपुट के रूप में आवश्यक मूल आणविक विकास (Original Molecular Development) नहीं हुआ है या बहुत कम है।
    • इस क्षेत्र को सरकार से प्रोत्साहन की आवश्यकता है ताकि भारत के उत्पादन को केवल जेनेरिक दवाओं के बजाय सीमांत दवाओं के साथ भी अद्यतन किया जा सके।

आगे की राह

  • ब्राउनफील्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कार्य करना: ब्राउनफील्ड परियोजनाओं पर कार्य करना एक बेहतर विकल्प है क्योंकि ग्रीनफील्ड इंफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग को मुख्य धारा में आने में तीन से चार साल लगेंगे और महामारी के साथ मौजूदा स्थिति में ऐसा करने के लिये उचित समय नहीं है।
    • भारत में दो प्रकार की स्वास्थ्य अवसंरचना और सुविधाएँ हैं जो जनता के लिये उपलब्ध हैं और जिनमें सुधार की आवश्यकता है:
      •  पहला है बुनियादी ढाँचा जिसे उपयोग के लिये पर्याप्त कुशल बनाने की ज़रूरत है।
      •  दूसरा वह, जो पुरातन है एवं इसे उन्नत किया जाना चाहिये।
  • रोग का पता लगाने और निदान में दक्षता बढ़ाना: जब दुनिया संचारी और गैर-संचारी रोगों के दोहरे बोझ से पीड़ित है तो पहली प्राथमिकता बीमारियों की जल्द पहचान प्रक्रिया और बीमारी के बोझ को कम करने की होनी चाहिये।
    • इस क्षेत्र में 1,50,000 आयुष्मान भारत वेलनेस सेंटरों की स्थापना व संचालन शुरू होने के पश्चात् इसे एक प्रमुख भूमिका निभानी होगी।
    • तत्काल भविष्य में जिस चीज़ की ज़रूरत है, वह है स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के लिये पर्याप्त बजट और सरकारी नीतियों का उचित क्रियान्वयन।
  • स्वास्थ हेतु वित्तपोषण तंत्र का सार्वभौमीकरण: लगभग 350 से 400 मिलियन भारतीय ऐसे हैं जिनके पास स्वास्थ्य हेतु कोई वित्तपोषण नहीं है चाहे वह स्वास्थ्य बीमा हो या सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम, इसलिये स्वास्थ्य हेतु वित्तपोषण तंत्र के सार्वभौमीकरण को सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • स्वास्थ्य बीमा को और अधिक किफायती बनाकर वित्तपोषण तंत्र का सार्वभौमीकरण सुनिश्चित किया जा सकता है - स्वास्थ्य बीमा पर 18% GST के कारण क्षमता से अधिक खर्च (Out of Pocket) होता है। 
  • हेल्थकेयर सेक्टर में भारत की क्षमता को पहचानना:  जैसा कि कहावत है-  “परहेज इलाज से बेहतर है", भारत अपनी स्वास्थ्य प्रणाली में इसका पालन करेगा और इन सभी चार पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • भारत में सबसे बेहतर बुद्धिमत्ता और सबसे अच्छा कौशल है, भारत के यूके में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) में 30% डॉक्टर और अमेरिका में 17% सुपर विशेषज्ञ रहे हैं। इसलिये अत्यधिक कुशल मानव पूंजी उपलब्ध होने के कारण भारत में इस क्षेत्र में और अधिक कार्य करने की क्षमता है।
  • जागरूकता और प्रोत्साहन प्रदान करना: विभिन्न सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों, विशेष रूप से आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से लोगों को प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के संदर्भ में जागरूकता में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
    • अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों में कर लाभों के ज़रिये प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है।
    • व्यावहारिक अर्थशास्त्र यह सुझाव देता है कि इस तरह के प्रोत्साहन लोगों को स्वास्थ्य बीमा चुनने की तरफ अग्रसर कर सकते है।
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