जैव विविधता और पर्यावरण
कार्बन फार्मिंग: कृषि का भविष्य
- 21 May 2022
- 14 min read
यह एडिटोरियल 20/05/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित "Why carbon is the ‘crop’ of the future" लेख पर आधारित है। इसमें हमारी खंडित खाद्य प्रणालियों के लिये एक व्यवहार्य समाधान के रूप में ‘कार्बन फार्मिंग’ की संभावनाओं के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
इसमें कोई संदेह नहीं है कि औद्योगिक कृषि के परिणामस्वरूप भूमि से कम खाद्य की प्राप्ति होती है, उनमें पोषक तत्त्वों की कमी होती है, वे कम कुशल एवं अधिक महँगे होते हैं और लघु एवं जैविक खेती की तुलना में अधिक पर्यावरणीय विनाश का कारण बनते हैं, और
यद्यपि वैश्विक व्यापार ने लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, इसने विभिन्न तरीकों से पृथ्वी पर एक उपनिवेशवादी छाप भी छोड़ी है। पौष्टिक खाद्य तक विभेदित पहुँच, हमारे आहार की जैव विविधता में कमी, मोनोक्रॉपिंग जैसे अविवेकपूर्ण पारिस्थितिक अभ्यासों एवं मृदा के व्यवस्थित क्षरण और प्रौद्योगिकी एवं रसायन की बढ़ती लागत (जिसने किसानों को प्रगति की उनकी न्यायसंगत हिस्सेदारी से बाहर किया है) तथा इससे भी उल्लेखनीय जलवायु परिवर्तन का गहराता संकट इसके कुछ प्रमुख परिणाम रहे हैं।
कार्बन फार्मिंग (Carbon farming) को हमारी खंडित खाद्य प्रणालियों को ठीक करने के विवेकपूर्ण तरीकों में से एक के रूप में देखा जा सकता है।
कार्बन फार्मिंग क्या है?
- कार्बन फार्मिंग, जिसे कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन (Carbon Sequestration) भी कहा जाता है, कृषि प्रबंधन की एक प्रणाली है जो भूमि को अधिक कार्बन जमा करने और वायुमंडल में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों (GHG) की मात्रा को कम करने में मदद करती है।
- इसमें वे अभ्यासों शामिल हैं जो वातावरण से CO2 को हटाने और इन्हें पादप सामग्री एवं मृदा के कार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित करने की दर में सुधार लाने के लिये जाने जाते हैं।
- कार्बन फार्मिंग तब सफल मानी जाती है जब वर्द्धित भूमि प्रबंधन या संरक्षण प्रथाओं के परिणामस्वरूप कार्बन लाभ की स्थिति कार्बन हानि से अधिक हो जाती है।
कृषि उत्सर्जन
- कृषि पृथ्वी के आधे से अधिक स्थलीय पृष्ठ को कवर करती है और वैश्विक GHG उत्सर्जन में लगभग एक तिहाई का योगदान देती है।
- वर्ष 2021 के आरंभ में भारत सरकार द्वारा UNFCCC को सौंपी गई तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट के अनुसार देश का कृषि क्षेत्र इसके कुल GHG उत्सर्जन में 14% हिस्सेदारी रखता है।
- भारत में कृषि उत्सर्जन मुख्य रूप से पशुधन क्षेत्र (54.6%) और नाइट्रोजन उर्वरकों (19%) के उपयोग से प्रेरित है।
- इनमें से वर्ष 2016 के दौरान चावल की खेती से GHG उत्सर्जन322 मिलियन टन ‘CO2 समतुल्य’ था और विश्लेषकों का अनुमान है कि यह वर्ष 2018-19 के दौरान 72.329 मिलियन टन ‘CO2 समतुल्य’ के स्तर तक पहुँच गया होगा।
- पुनर्योजी कृषि पद्धतियों (Regenerative Agriculture Practices) की ओर आगे बढ़ने से इसे कम किया जा सकता है और कार्बन फार्मिंग इस संक्रमण की गति को तीव्र कर सकती है।
कार्बन फार्मिंग एक व्यवहार्य विकल्प क्यों है?
- जलवायु के अनुकूल: कार्बन फार्मिंग एक साहसिक नए कृषि व्यवसाय मॉडल का वादा करती है जो जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला कर सकती है, नए रोज़गार अवसरों का सृजन करेगी और लाभहीन भविष्य से खेतों की रक्षा करेगी।
- संक्षेप में यह एक जलवायु समाधान है, यह आय सृजन के अवसरों में वृद्धि करती है और वृहत आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा जाल सुनिश्चित करती है।
- ‘कार्बन कैप्चर’ को इष्टतम करना: यह ‘कार्बन कैप्चर’ को इष्टतम करने के लिये एक समग्र कृषि दृष्टिकोण है जो उन अभ्यासों का अनुपालन करती है जो वातावरण से CO2 को हटाने और इन्हें पादप सामग्री एवं मृदा के कार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित करने की दर में सुधार लाने के लिये जाने जाते हैं।
- कार्बन फार्मिंग हमारे किसानों को उनकी कृषि प्रक्रियाओं में पुनर्योजी अभ्यासों का अनुपालन करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है, जहाँ वे अपना ध्यान पैदावार में सुधार लाने से कार्यशील पारिस्थितिकी तंत्र और कार्बन की जब्ती (जिन्हें फिर कार्बन बाज़ारों में बेचा जा सकता है) की ओर मोड़ सकते हैं।
- किसानों के अनुकूल: यह न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार लाता है, बल्कि हाशिये पर स्थित किसानों के लिये कार्बन क्रेडिट से प्राप्त वर्द्धित/द्वितीय आय के साथ-साथ बेहतर गुणवत्तायुक्त, जैविक और रसायन-मुक्त खाद्य (Farm-to-Fork Models) जैसे परिणाम दे सकता है।
- कार्बन बाज़ार का विकास: वर्ष 2020 में वैश्विक कार्बन बाज़ारों के कुल मूल्य में 20% की वृद्धि हुई (रिकॉर्ड वृद्धि का लगातार चौथा वर्ष) और यह अधिकाधिक निवेशकों को आकर्षित करने की राह पर है।
- वर्ष 2021 में कार्बन डाइऑक्साइड परमिट के लिये वैश्विक बाज़ारों का कारोबार 164% बढ़कर 760 बिलियन यूरो (851 बिलियन डॉलर) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
- इस प्रकार कार्बन प्रभावी रूप से किसानों के लिये भविष्य की ‘नकदी फसल’ (cash crop) साबित हो सकता है
कार्बन फार्मिंग के महत्त्व के बारे में विश्व कितना जागरूक है?
- पेरिस जलवायु सम्मेलन, 2015 में शुरू की गई ‘4 per 1000’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय पहल ने दिखाया है कि दुनिया भर में मृदा कार्बन में मात्र4% वार्षिक वृद्धि करने से जीवाश्म ईंधन से होने वाले CO2 उत्सर्जन में उस वर्ष की नई वृद्धि की भरपाई हो सकती है।
- राजनीतिक एजेंडा और जलवायु घोषणापत्र के दृष्टिकोण से भी कार्बन फार्मिंग को पसंद किया जा रहा है। अमेरिकी प्रशासन जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला करने की अपनी योजना के तहत किसानों के लिये एक कार्बन बैंक शुरू करने की योजना बना रहा है।
- अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मृदा को जलवायु परिवर्तन की लड़ाई का अगला मोर्चा घोषित किया था।
- वैश्विक निजी क्षेत्र में भी एक उत्साह देखा जा रहा है जहाँ मैकडॉनल्ड्स, टारगेट, कारगिल (Cargill) जैसे कॉर्पोरेट दिग्गज पुनर्योजी अभ्यासों का समर्थन करने के लिये धन का उपयोग करने की वचनबद्धता जता रहे हैं।
- वर्ष 2022 कार्बन कैप्चर निवेश के मामले में सबसे उल्लेखनीय वर्ष रहा है जहाँ स्ट्राइप, अल्फाबेट, मेटा और शॉपिफाई जैसी बड़ी टेक कंपनियों ने अगले आठ वर्षों में 925 मिलियन डॉलर मूल्य के कार्बन रीमूवल ऑफसेट की घोषणा की है।
- निजी क्षेत्र के इस उत्साह और तेज़ी से बढ़ती बाज़ार भावना को सार्वजनिक क्षेत्र के प्रोत्साहन की भी पूरकता प्रदान की जानी चाहिये।
- भारत में मेघालय वर्तमान में पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये संवहनीय कृषि मॉडल का एक प्रोटोटाइप बनाने के लिये एक कार्बन फार्मिंग अधिनियम का खाका तैयार कर रहा है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र ने जैविक और संवहनीय कृषि पद्धतियों को अपनाने में व्यापक प्रगति दिखाई है; वर्ष 2016 में सिक्किम विश्व का पहला राज्य बन गया जो पूर्णतः जैविक है।
कार्बन फार्मिंग को प्रोत्साहित करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- मृदा क्षमता का दोहन: मृदा जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सबसे अप्रयुक्त और कम उपयोग किये गए रक्षात्मक उपायों में से एक है तथा एक कुशल कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती है। भारत को अपने शुद्ध शून्य लक्ष्य की प्राप्ति और डीकार्बोनाइजिंग मार्ग पर आगे बढ़ने के लिये इसका लाभ उठाना चाहिये।
- अध्ययनों से पता चलता है कि मृदा हर साल दुनिया के जीवाश्म-ईंधन उत्सर्जन का लगभग 25% दूर करती है, लेकिन यह अभी तक वैश्विक स्तर पर निर्धारित कार्बन प्रबंधन अभ्यासों और आख्यानों की लापता कड़ी रही है।
- कार्बन फार्मिंग के लिये कानूनी समर्थन: एक व्यापक एवं भविष्योन्मुखी कार्बन फार्मिंग अधिनियम, एक सुदृढ़ संक्रमण योजना के साथ, कार्यशील भूमि पर कार्बन सिंक निर्माण के विचार को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित कर सकता है और जलवायु संकट का मुक़ाबला करने, पोषण में सुधार, कृषक समुदायों के अंदर असमानताओं को कम करने, भूमि उपयोग में परिवर्तन लाने के साथ ही हमारी खंडित खाद्य प्रणालियों को ठीक करने हेतु अत्यंत आवश्यक समाधान प्रदान कर सकता है।
- किसानों के लिये प्रत्यक्ष प्रोत्साहन: जलवायु-तटस्थ अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये भूमि क्षेत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह वातावरण से CO2 जब्त कर सकता है।
- हालाँकि कृषि एवं वानिकी क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिये जलवायु-अनुकूल अभ्यासों को अपनाने हेतु प्रत्यक्ष प्रोत्साहनों का सृजन आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान में कार्बन सिंक की वृद्धि और संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिये कोई लक्षित नीति उपकरण मौजूद नहीं है।
- कार्बन क्रेडिट और कार्बन बैंक: किसानों को वैश्विक स्तर पर व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट के माध्यम से पुरस्कृत किया जा सकता है। कार्बन बैंक भी बनाए जा सकते हैं जो किसानों के साथ कार्बन क्रेडिट की खरीद और बिक्री करेंगे।
- इन क्रेडिटों को उन निगमों को बेचा जा सकता है जिन्हें अपने उत्सर्जन की भरपाई करने की आवश्यकता है।
- कार्बन-रिक्त मृदा के पुनरुद्धार के लिये किसानों को भुगतान करना प्राकृतिक जलवायु समाधान के लिये और ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे स्थिर करने के लिये एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।
- सामूहिक भागीदारी: कार्बन फार्मिंग के समग्र ढाँचे की सफलता के लिये इसमें ठोस नीतियों, सार्वजनिक-निजी भागीदारियों, सटीक परिमाणीकरण पद्धतियों और इस विचार को कुशलतापूर्वक लागू करने के लिये सहायक वित्तपोषण को शामिल करना होगा।
- इस कार्य को ऐसे पैमाने पर पूरा करने की आवश्यकता है जहाँ कार्बन को अवशोषित एवं संग्रहीत करने वाली स्वस्थ मृदा को बनाए रखने के साथ-साथ मापन-योग्य कार्बन कैप्चर की प्राप्ति हो सके।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘कार्बन फार्मिंग को हमारी खंडित खाद्य प्रणालियों को ठीक करने के विवेकपूर्ण तरीकों में से एक के रूप में देखा जा सकता है।’’ टिप्पणी कीजिये।