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जैव विविधता और पर्यावरण

समुद्री जैव विविधता के पोषण करने वाले ‘वंडर ट्री’

  • 25 Mar 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

मैंग्रोव वन,  ब्लू फॉरेस्ट, ब्लू कार्बन, GEF, ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट, GEF- IW

मेन्स के लिये:

समुद्रीय जैव विविधता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 21 मार्च, 2020 को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस मनाया गया, जिसमें मैंग्रोव वनों के महत्त्व को स्वीकार कर तत्काल संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया गया।   

मुख्य बिंदु:

  • वन दिवस वर्ष 2020 का विषय था- ‘वन और जैव विविधता’ (Forests and Biodiversity)।
  • स्थलीय जैव विविधता में 80 प्रतिशत योगदान वनों का है, परंतु मैंग्रोव एक ऐसा वृक्ष है जो स्थलीय जैव-विविधता के साथ-साथ समुद्री जैव-विविधता को भी संरक्षण प्रदान करता है।
  • मैंग्रोव वनों द्वारा प्रकृति एवं मनुष्यों को दिये जाने वाले अमूल्य योगदान के कारण वर्तमान में उष्णकटिबंधीय देशों में सरकारों तथा तटीय समुदायों के बीच इसे लेकर जागरूकता लगातार बढ़ रही है।

मैंग्रोव वन: 

  • मैंग्रोव वन पेड़ों और झाड़ियों का एक समूह होता है जो अंत: ज्वारीय भागों में पाए जाते हैं।
  • मैंग्रोव पेड़ों की लगभग 80 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। ये सभी पेड़ कम ऑक्सीजन वाली मिट्टी के क्षेत्रों में उगते हैं, जहां धीमी गति से चलने वाले जल में तलछट जमाव पाया जाता है। 
  • मैंग्रोव वन  मुख्यत: केवल भूमध्य रेखा के पास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अक्षांशों पर मुख्यत: पाए जाते हैं, क्योंकि ये ठंड तापमान का सामना नहीं कर सकते हैं।
  • कई मैंग्रोव वनों को उनकी मूल जड़ों से पहचाना जा सकता है, जहाँ इन वृक्षों की जड़ें जल के बाहर निकली दिखाई देती हैं।  

Global-mangroves

मैंग्रोव वनों का बढ़ता महत्त्व:

  • सामुदायिक प्रबंधन:
    • मैंग्रोव वनों की ‘सामुदायिक प्रबंधन आधारित’ संरक्षण प्रणाली के माध्यम से पारिस्थितिकी संरक्षण तथा सतत प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • नौका-पर्यटन, कयाकिंग, बर्ड वॉचिंग, रात्रि में मत्स्यन पकड़ना, आदि गतिविधियों के माध्यम से पर्यटकों को मैंग्रोव जंगलों की जैव विविधता का अनुभव करने जैसे कई विकल्प हैं।
  • पारिस्थितिक संरक्षण:
    • मैंग्रोव वन का एक महत्त्वपूर्ण लाभ जैव विविधता का संरक्षण है। मेडागास्कर में ‘मैंग्रोव लेमर्स (Lemurs)’ पाए जाते हैं, जो पृथ्वी पर स्तनधारियों में सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक हैं। इन 'दलदल लीमर्स' (Swamp Lemurs) को इन क्षेत्रों में पहली बार कुछ वर्ष पूर्व पहले प्रलेखित (Documented) किया गया था।
  • पारिस्थितिकी सेवाएँ:
    • ये वन तूफान लहरों से सुरक्षा प्रदान करके, मत्स्य के लिये प्रजनन सतह उपलब्धता, सागरीय जानवरों के लिये मेजबान स्थल, प्रभावी निस्यंदन सिस्टम, खारे जल प्रवाह को रोककर कृषि के क्षेत्र की मिट्टी को लवणीयता से बचाना आदि कार्यों द्वारा तटीय समुदायों की सुरक्षा करते हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण प्रयास:

  • वर्ष 2019 में, संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक हितधारकों को निर्वनित तथा अवक्रमित भूमि के पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली के लिये आवश्यक राजनीतिक और वित्तीय सहायता जुटाने की कार्रवाई करने को आमंत्रित किया था।  
  • पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (The United Nations Decade on Ecosystem Restoration) द्वारा वर्ष 2021-2030 की अवधि में समुद्री नीले मैंग्रोव सहित गंभीर रूप से अवनयित भू-परिदृश्य (Landscapes) तथा वनों की पुनर्बहाली से संबंधित कार्यों को बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाएगा। 

ब्लू फॉरेस्ट (Blue Forests):

  • तटीय एवं समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र जिसमें, मैंग्रोव वन, समुद्री घास तथा लवणीय जल  के दलदल- जो दुनिया भर में आजीविका और भलाई (Wellbeing) का समर्थन करते हैं, को नीले वन कहा जाता है। 

ब्लू कार्बन (Blue Carbon): 

  • मैंग्रोव वन अन्य वनों की तुलना में मृदा में अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं। वैश्विक तापन से लड़ने में मैंग्रोव वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका, इन वनों को एक मूल्यवान संपत्ति बनाता है। इस अवधारणा को ब्लू कार्बन भी कहा जाता है। 

GEF ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट (GEF Blue Forests Project):

  • ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट का जनवरी 2015 में 4 वर्ष के लिये कार्यान्वयन शुरू किया गया। 
  • यह परियोजना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) की एक पहल है, जो वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) द्वारा वित्त पोषित है। भागीदार देश इसे सह-वित्तपोषित कर रहे हैं तथा ग्रिड अरेंडल (GRID-Arendal) संगठन द्वारा प्रबंधित हैं। 
  • ब्लू फॉरेस्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से सर्वप्रथम बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन की दिशा में तटीय कार्बन एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का वैश्विक पैमाने पर मूल्यांकन किया जाएगा।
  • यह प्रोजेक्ट सभी हितधारकों के बीच सहयोग बढ़ाने तथा वैश्विक उपयोगिता की दिशा में अधिक-से-अधिक वैश्विक अनुभव तथा उपकरणों को साझा करने पर बल देता है।

ग्लोबल एन्वायरनमेंट फेसिलिटी

(Global Environment Facility)

  • इसका गठन वर्ष 1991 में किया गया था। 
  • यह विकासशील व संक्रमणशील अर्थव्यवस्थाओं को जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय जल, भूमि अवमूल्यन, ओजोन क्षरण, पर्सिसटेन्ट आर्गेनिक प्रदूषकों के संदर्भ में परियोजनाएँ चलाने के लिये वित्तपोषित करता है। 
  • इससे प्राप्त धन अनुदान व रियायती फंडिंग के रूप में आता है।

GEF इंटरनेशनल वाटर्स (GEF- IW):

  • GEF के विशेष प्रोजेक्ट GEF- IW के माध्यम से परियोजनाओं में भाग लेने वाले देशों ने ताजा जल संसाधनों से लेकर समुद्री संसाधनों से संबंधित समझौतों, संधियों और प्रोटोकॉल पर बातचीत करके सहमति व्यक्त की है। IW में GEF निवेश के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं:
    • राष्ट्रीय नीली अर्थव्यवस्था के अवसरों को मजबूत करना। 
    • पारिस्थितिकी प्रबंधन की दिशा में राष्ट्रीय सीमा से आगे बढ़कर कार्य करना।
    •  ताजे जल के पारिस्थितिक तंत्र में जल सुरक्षा को बढ़ाना। 

हमें इस अमूल्य धरोहर को बचाने की दिशा में तुरंत कारगर कदम उठाने चाहिये। इसके लिये भारत को अन्य देशों के साथ मिलकर इस क्षेत्र के धारणीय विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये। इन प्रयासों से एक तरफ जहाँ स्थानीय समुदायों को गरीबी जैसी समस्याओं से उभरने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को भी कम किया जा सकेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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