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बाढ़: एक वार्षिक आपदा

  • 04 Jul 2022
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 02/07/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Keeping head above water in Silchar” पर आधारित है। इसमें असम में आई बाढ़, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर इसके प्रभाव और इससे निपटने के उपाय के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

देश के उत्तर-पूर्वी भाग में बहने वाली ब्रह्मपुत्र घाटी में लगभग हर साल ही बाढ़ आती है, जो अपने पीछे मौत और तबाही की एक कहानी छोड़ जाती है।

  • इस वर्ष मानसून के आगमन से पहले ही असम में लगातार जारी वर्षा ने अपना कहर बरपाया है जिससे असम का अधिकांश भाग जलमग्न हो गया है, फसलें नष्ट हो गई हैं और लाखों लोग विस्थापन के शिकार हुए हैं।
  • ब्रह्मपुत्र काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के लिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह एक तरफ से ब्रह्मपुत्र नदी से घिरा है। हाल के वर्षों में बाढ़ के कारण तबाही के स्तर में व्यापक वृद्धि हुई है।
  • इस परिदृश्य में प्रासंगिक है कि असम में हर साल आने वाली बाढ़ की स्थिति और इसके पीछे के कारकों पर हम विचार करें।

बाढ़ से क्या तात्पर्य है?

  • बाढ़ (Flood) जल का अतिप्रवाह है जो आमतौर पर शुष्क रहते स्थल क्षेत्र को जलमग्न कर देती है।
  • ‘बहते पानी’ (Flowing Water) के अर्थ में ज्वार के प्रवाह के लिये भी ‘बाढ़’ शब्द का प्रयोग किया जा सकता है।
  • बाढ़ के तीन सामान्य प्रकार हैं:
    • ‘फ्लैश फ्लड’ (Flash Floods) या अचानक आई बाढ़:
      • तीव्र और व्यापक वर्षा के कारण।
    • नदी की बाढ़ (River Floods):
      • जब लगातार बारिश या बर्फ पिघलने से नदी में जल की मात्रा उसकी क्षमता से अधिक हो जाती है।
    • तटीय बाढ़ (Coastal Floods):
      • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और सूनामी से संबद्ध तूफानों के कारण।
  • वर्ष 1998 से 2017 के बीच दुनिया भर में 2 बिलियन लोग बाढ़ की घटनाओं से प्रभावित हुए।

असम में हर साल बाढ़ के पीछे के प्रमुख कारक:

  • ब्रह्मपुत्र की भूमिका:
    • असम हिमालय की तलहटी में स्थित है और यह ब्रह्मपुत्र एवं बराक नामक दो नदी घाटियों की भूमि से निर्मित है।
    • विशाल ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले अरुणाचल प्रदेश से होकर भारत में प्रवेश करती है।
      • यह असम में लगभग 650 किमी की दूरी तय करती है और इसकी औसत चौड़ाई 5.46 किमी है। यह असम के बाढ़ मैदानों से आड़े-तिरछे बहने वाली सबसे प्रमुख नदी है।
    • कैलाश श्रेणी (उच्च ऊँचाई) से बहकर आती हुई यह नदी असम (निम्न ऊँचाई) में अत्यधिक अवसाद/तलछटी (sediments) लिये प्रवेश करती है।
      • असम के मैदानी इलाके में ढलान के समतल होते ही नदी के वेग में अचानक गिरावट आती है और बहाकर लाए गये अवसाद एवं अन्य मलबे नदी तल में जमा हो जाते हैं, जिससे इसका जल स्तर बढ़ जाता है।
      • ग्रीष्मकाल में हिमनदों के पिघलने से मृदा का क्षरण अधिक होने से अवसादन बढ़ जाता है।
  • मानसून:
    • उत्तर-पूर्व भारत में मानसून तीव्र होता है।
      • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार असम में जून-जुलाई में अधिकतम वर्षा के साथ वार्षिक वर्षा औसतन 2900 मिमी होती है।
    • असम के जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार ब्रह्मपुत्र घाटी में वार्षिक वर्षा का 85% मानसून के महीनों के दौरान घटित होता है।
    • इसके अलावा, घाटी में अप्रैल और मई माह में आंधी-तूफान की गतिविधियों के कारण अच्छी मात्रा में वर्षा होती है, जो जून माह में भारी बारिश के दौरान बाढ़ का कारण बनती है (क्योंकि मृदा पहले से ही संतृप्त होती है)।
  • नदी तट में कटाव:
    • सहायक नदियों के साथ बहती हुई अवसादयुक्त नदियाँ अपने तटों से मृदा और तलछट साथ लिये आगे बढ़ती हैं।
    • मृदा के इस कटाव के साथ नदियों का विस्तार होता जाता है क्योंकि इसे अधिक क्षेत्र प्राप्त होता है और इसके परिणामस्वरूप बाढ़ आती है। नदियों की तटवर्ती भूमि का यह कटाव असम के लिये एक गंभीर समस्या बनकर उभरा है:
      • ग्राम्य भूमि का बह जाना लोगों के आंतरिक विस्थापन का एक प्रमुख कारण है।
      • असम में कुछ स्थानों पर तटों के कटाव के कारण ब्रह्मपुत्र की चौड़ाई 15 किमी तक बढ़ गई है।

flood

  • मानव हस्तक्षेप
    • तटबंधों का निर्माण:
      • किसी नदी के मार्ग को नियंत्रित करने के लिये तटबंधों का निर्माण किया जाता है। हालाँकि यह समाधान असम में समय के साथ एक अतिरिक्त चुनौती के रूप में विकसित हुआ है।
      • असम में बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये सबसे पहले 1960 के दशक में तटबंधों का निर्माण शुरू हुआ था।
        • छह दशक बाद इनमें से अधिकांश तटबंध या तो अब उपयोगी नहीं रह गए हैं या अत्यंत जीर्ण स्थिति में हैं। इनमें से कई को नदी अपने साथ बहा ले गई।
        • हर साल मानसून के बाद बाढ़ के आते ही नदी का जल इन बाधाओं को तोड़ देता है और घरों तथा स्थलों में जल भर जाता है।
        • पिछले छह दशकों में असम में क्रमिक सरकारों ने तटबंधों के निर्माण पर लगभग 30,000 करोड़ रुपए खर्च किये हैं।
        • अपने इलाके से जल निकालने के लिये लोग तटबंधों को काट भी देते हैं। ऐसी ही एक घटना हाल में सिलचर के महिष बील में देखने को मिली जहाँ लोगों ने बेथुकंडी में तटबंध को काट दिया ताकि अतिरिक्त जल बराक नदी की ओर बह सके जो मणिपुर से बहकर आती हुई असम में प्रवेश करती है, फिर विसर्प बनाती हुई बांग्लादेश में बहती है।
          • सिलचर क्षेत्र में बाढ़ का एक प्रमुख कारण इसे ही माना जा रहा है।
        • तटबंधों के कारण नदी के किनारे अतिक्रमण की स्थिति बनी है जहाँ अधिकाधिक लोग नदी के निकट घर और प्रतिष्ठान स्थापित कर रहे हैं।
    • जनसंख्या की तीव्र वृद्धि:
      • राज्य में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि ने राज्य की पारिस्थितिकी पर दबाव बढ़ाया है।
        • ब्रह्मपुत्र बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रह्मपुत्र घाटी का जनसंख्या घनत्व असम के मैदानी इलाकों में वर्ष 1940-41 में 9-29 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से बढ़कर 2011 की जनगणना में 398 प्रति वर्ग किमी तक पहुँच गया है।
        • जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित यह बोर्ड ब्रह्मपुत्र और बराक घाटी की निगरानी करता है और ब्रह्मपुत्र घाटी के अंतर्गत आने वाले राज्यों को कवर करता है।
    • अन्य कारक:
      • वनों की कटाई, पहाड़ की कटाई, अतिक्रमण और आर्द्रभूमि के विनाश जैसे अन्य मानवजनित कारकों ने भी बाढ़ की स्थिति को और बदतर किया है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • राज्य सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 38% की वृद्धि होगी।
    • बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के पिघलने के साथ ही मानसून के दौरान लगातार कम या सामान्य वर्षा की जगह भारी वर्षा का अर्थ होगा—
      • हिमालय की नदियाँ असम में प्रवेश करने से पहले ही अत्यधिक जल और अवसाद लेकर आ रही होंगी जहाँ छोटी नदियाँ लगातार वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करती हैं।
      • इससे निचले इलाकों में बार-बार फ्लैश फ्लड आने की संभावना बढ़ जाती है।
  • अन्य कारक:
    • राज्य में अपवाह तंत्र का अभाव।
    • अनियोजित शहरी विकास।
    • बांधों, जल परियोजनाओं, सिंचाई परियोजनाओं आदि का निर्माण।

बाढ़ असम को किस प्रकार प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है?

  • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान:
    • एक आधिकारिक वक्तव्य में कहा गया है कि ब्रह्मपुत्र के खतरे के निशान से ऊपर बहने से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का 15% से अधिक हिस्सा जलमग्न हो गया है।
      • राष्ट्रीय उद्यान में आई बाढ़ से इस साल अब तक में एक तेंदुए सहित कम से कम पाँच वन्य जीवों की मौत हो चुकी है।
    • हालाँकि अधिक जल को उद्यान के लिये लाभप्रद माना जाता है क्योंकि यह:
      • काजीरंगा के जल निकायों के संभरण और इसके भूदृश्य को बनाए रखने में मदद करता है।
      • मछली के प्रजनन स्थल के रूप में कार्य करता है।
      • जलकुंभी जैसे अवांछित पौधों से छुटकारा पाने में मदद करता है।
    • लेकिन बार-बार भारी बाढ़ ने राष्ट्रीय उद्यान के लिये समस्याएँ उत्पन्न करना शुरू कर दिया है।
      • NH-37:
        • जब बाढ़ का जल एक निश्चित स्तर पर पहुँचता है तो वन्य पशु कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों के सुरक्षित, उच्च स्थल भूमि की ओर आगे बढ़ने लगते हैं। लेकिन इस क्रम में उन्हें उद्यान से गुज़रते NH- 37 को पार करना पड़ता है, जिससे वे सड़क दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं।
        • उनकी भेद्यता का शिकारियों द्वारा भी लाभ उठाया जाता है।
      • मानव-वन्यजीव संघर्ष:
        • बाढ़ में ये वन्यजीव ग्रामों की ओर भी भी आगे बढ़ते हैं जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति बनती है।
  • अवसंरचना पर प्रभाव:
    • रेल पटरियों पर जल भर जाने से रेल सेवा बाधित हुई है।
    • नौका परिवहन के अतिरिक्त परिवहन के सभी साधन बंद हो गए हैं जहाँ कुछ भागों में नाव चालक 100 मीटर की दूरी के लिये 100 रुपए तक वसूल रहे हैं। मछली पकड़ने या नदी पार कराने जैसी उनकी आजीविका प्रभावित हुई है तो वे इस प्रकार भरपाई का प्रयास कर रहे हैं।
    • खाद्य पदार्थ और पेयजल आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
    • बाढ़ से सड़कों और पुलों को गंभीर नुकसान पहुँचा है।
    • बिजली स्टेशन प्रायः नदियों के पास स्थित होते हैं क्योंकि उपकरण को ठंडा करने के लिये वे नदी से पानी खींचते हैं और गर्म पानी को नदी में वापस पंप करते हैं।
      • बाढ़ के कारण कई ज़िलों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई है।
  • आम जनजीवन पर प्रभाव:
    • लगातार बारिश के कारण ब्रह्मपुत्र नदी के तटबंधों के टूटने से 5,000 से अधिक ग्राम और फसल भूमि जलमग्न हो गई है।
    • कछार, दीमा-हसाओ, गोलपारा, हैलाकांडी, कामरूप (मेट्रो) और करीमगंज ज़िलों में भूस्खलन की घटनाओं से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
    • बाढ़ का विनाश केवल मानव आबादी तक ही सीमित नहीं है। ASDMA की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ की मौजूदा लहर में लगभग 60,000 पशु बह गए और लगभग 36 लाख प्रभावित हुए हैं।

भविष्य में बाढ़ की घटनाओं पर नियंत्रण के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • सूचना संचार:
    • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि अधिक विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराई जाए ताकि पूर्व तैयारियों में सुधार किया जा सके और निवासियों को समय पर सतर्क किया जा सके।
    • विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि विश्वसनीय और द्रुत चेतावनी प्रणालियों के प्रभावी कार्यकरण के लिये इस भूभाग को अधिक संस्थागत और तकनीकी रूप से उन्नत प्रणालियों की आवश्यकता है।
  • काजीरंगा की रक्षा:
    • वन्यजीव गलियारों को सुरक्षित करने और कार्बी पहाड़ियों तक सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने पर बल देने की ज़रूरत है।
      • एक ‘लैंडस्केप-स्केल कंज़र्वेशन’ दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जो कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों के महत्त्व को चिह्नित करे।
        • बाढ़ के दौरान पशु शरणगाह के रूप में कार्बी आंगलोंग उच्चभूमि उद्यान की जीवन रेखा की भूमिका निभाती है।
  • जलद्वार या स्लूस गेट्स का निर्माण:
    • ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों और बराक आदि अन्य नदियों पर स्लूस गेट (Sluice Gates) का निर्माण किया जाना चाहिये । यह एक प्रभावी कदम साबित होगा।
      • स्लूस गेट के वाल्व एक दिशा में सील करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं और आमतौर पर नदियों और नहरों में जल स्तर और प्रवाह दर को नियंत्रित करने के लिये उपयोग किये जाते हैं। उनका उपयोग अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों में भी किया जाता है।
  • अन्य उपाय:
    • विभिन्न उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये अध्ययन हेतु असम में एक आपदा प्रबंधन केंद्र की (Centre for Disaster Management) स्थापना की जानी चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: असम की अनूठी स्थलाकृति, जलवायु और सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ इसे बाढ़ जैसी आपदाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती हैं। टिप्पणी कीजिये।

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