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डेली न्यूज़

  • 03 Feb, 2025
  • 38 min read
भारतीय राजव्यवस्था

पीजी मेडिकल कोर्स में अधिवास-आधारित आरक्षण असंवैधानिक

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, डोमिसाइल कोटा, समानता का अधिकार, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा, अनुच्छेद 5, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16अनुच्छेद 19

मेन्स के लिये:

शैक्षिक नीतियाँ, समता और आरक्षण, राष्ट्रीय एकता पर आरक्षण नीतियों का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने “तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल और अन्य, 2025” मामले में स्नातकोत्तर (PG) मेडिकल कोर्स में प्रवेश हेतु अधिवास-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक घोषित किया।

  • यह निर्णय पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस निर्णय के विरुद्ध अपील के बाद आया है, जिसमें पहले ही ऐसे आरक्षणों को समाप्त कर दिया गया था।

नोट: अधिवास कोटा एक ऐसी आरक्षण प्रणाली को संदर्भित करता है, जिसके अंतर्गत राज्य पीजी मेडिकल सीटों का एक हिस्सा उन उम्मीदवारों को आवंटित करते हैं जो उसी राज्य के निवासी हैं। 

  • पीजी मेडिकल सीटों के लिये, केंद्र कुल प्रवेश के 50% के लिये काउंसलिंग आयोजित करता है, जबकि शेष 50% सीटों में प्रवेश राज्य की काउंसलिंग निकायों द्वारा किया जाते हैं। इसी 50% के अंतर्गत, राज्य मूलनिवासी उम्मीदवारों के लिये एक कोटा निर्धारित करते हैं।

पीजी मेडिकल कोर्स में अधिवास-आधारित आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया?

  • समानता का उल्लंघन: न्यायालय ने इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिये निवास-आधारित अथवा अधिवास-आधारित आरक्षण प्रदान किया जाना संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य है, क्योंकि इससे छात्रों के बीच उनके निवास राज्य के आधार पर असमानता होगी।
    • यह समानता के अधिकार (भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14) का उल्लंघन है।
    • निर्णय के अनुसार, भारतीय नागरिकों को देश में कहीं भी निवास करने और अपना व्यवसाय करने का अधिकार है। 
      • राज्य के निवास के आधार पर पीजी प्रवेश को प्रतिबंधित करने से व्यावसायिक गतिशीलता में अनावश्यक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • योग्यता आधारित प्रवेश: न्यायालय ने निर्णय दिया कि पीजी मेडिकल प्रवेश योग्यता आधारित होना चाहिये, जिसका निर्धारण राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) द्वारा किया जाए, तथा संस्थान आधारित आरक्षण के अतिरिक्त राज्य कोटे की सीटों के लिये भी योग्यता आधारित चयन का पालन किया जाना चाहिये।
  • पूर्व के प्रवेशों पर कोई प्रभाव नहीं: इस निर्णय से उन प्रवेशों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो पहले से ही अधिवास-आधारित आरक्षण के आधार पर दिये जा चुके हैं।
  • अधिवास बनाम निवास: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "अधिवास" का तात्पर्य किसी व्यक्ति के विधिक गृह/घर से है, न कि निवास स्थान से, जैसा कि प्रायः समझा जाता है।
    • विधिक रूप से, भारत में एकल अधिवास है- "भारत का अधिवास", जैसा कि अनुच्छेद 5 के अंतर्गत परिभाषित किया गया है और सभी भारतीय इस एकल अधिवास को साझा करते हैं तथा राज्य-विशिष्ट अथवा राज्यवार अधिवास की अवधारणा भारतीय विधिक प्रणाली के तहत विधिमान्य नहीं है।
  • पूर्ववर्ती निर्णय: पीठ ने वर्ष 1984 के डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ मामले का भी उल्लेख किया, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने MBBS पाठ्यक्रमों में निवास-आधारित आरक्षण की अनुमति दी थी। 
    • इसे इस आधार पर उचित ठहराया गया था कि राज्य मेडिकल कॉलेजों के लिये बुनियादी ढाँचे और संचालन लागत में निवेश करता है, जिससे स्थानीय निवासियों के लिये कुछ सीटें आरक्षित करना उचित हो जाता है। 
    • हालाँकि, यह तर्क पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों पर लागू नहीं होता, जहाँ ऐसे आरक्षण को असंवैधानिक माना जाता है।

नोट: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 के अंतर्गत पिछड़े वर्गों या वंचित समूहों के लिये शैक्षणिक संस्थानों तथा लोक सेवाओं में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

  • हालाँकि इन अनुच्छेदों में स्पष्ट रूप से अधिवास का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इनमें सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया है, जिसे कुछ राज्य स्थानीय निवासियों को शामिल करने के रूप में व्याख्या करते हैं।

शिक्षा में अधिवास-आधारित आरक्षण के गुण और दोष क्या हैं?

  • गुण:  
    • स्थानीय अवसर: यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय छात्रों को शैक्षणिक संस्थानों, विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व और अवसर प्राप्त हों। 
      • यह वंचित समुदायों के लिये सकारात्मक कार्रवाई के रूप में कार्य करता है।
    • आर्थिक सशक्तीकरण: इससे स्थानीय समुदायों को उच्च शिक्षा की बेहतर पहुँच प्रदान करते हुए उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद मिलती है।
    • स्थानीय विकास को बढ़ावा: आरक्षण संबंधी विधियाँ एक ऐसे शिक्षित कार्यबल के सृजन में योगदान दे सकती हैं जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा और क्षेत्र के विकास में भी सहायता मिलेगी।
  • दोष: 
    • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: इससे संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त देश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से आवागमन करने और शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
    • राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव: अधिवास-आधारित कोटा राष्ट्र को विभाजित कर सकता है और एक ऐसे एकीकृत शैक्षिक और व्यावसायिक परिवेश के सर्जन में बाधा उत्पन्न कर सकता है, जहाँ सभी नागरिकों को समान अवसर प्राप्त हों।
    • आर्थिक अकुशलता: चूँकि आरक्षण संबंधी इन कानूनों से शीर्ष प्रतिभाओं तक पहुँच सीमित होती है, नवाचार में बाधा उत्पन्न होती है और निवेश प्रभावित होता है इसलिये ये कानून निजी क्षेत्र के लिये अहितकारी हो सकते हैं।
    • मूल कारणों का समाधान: इन कानूनों में महत्त्वपूर्ण मुद्दों जैसे- अपर्याप्त शिक्षा बुनियादी ढाँचा, NEET और संयुक्त प्रवेश परीक्षा परीक्षाओं के लिये अपर्याप्त मार्गदर्शन तथा शैक्षणिक पाठ्यक्रम एवं उद्योग कौशल आवश्यकताओं के बीच बेमेल पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।

आगे की राह

  • योग्यता आधारित प्रवेश: योग्यता आधारित प्रवेश पर ज़ोर दिया जाना, विशेष रूप से स्नातकोत्तर स्तर पर, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय पृष्ठभूमि के स्थान पर कौशल और योग्यता को बढ़ावा देने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
    • पिछड़े समुदायों के लिये एक अस्थायी सहायता प्रणाली आवश्यक है, लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्य यह होना चाहिये कि क्षेत्रीय कोटा पर निर्भर हुए बिना उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार: स्थानीय छात्रों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, शिक्षक प्रशिक्षण और कौशल विकास में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • सहायता प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण: गरीबी और प्रवासन के निवारण हेतु पहलों सहित सामाजिक सहायता को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित किया जाना चाहिये, ताकि समग्र देश में सुभेद्य समूह की उच्च शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच सुनिश्चित हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. शिक्षा में अधिवास-आधारित आरक्षण से संबंधित सांविधानिक और विधिक चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये? 

लीगल इनसाइट: सभी भारतीयों के लिये एकल अधिवास 

https://www.drishtijudiciary.com/hin


भारतीय अर्थव्यवस्था

नियामक निकायों को मज़बूत बनाना

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI), बैंकिंग, बीमा, पूंजी बाज़ार, FSSAI, TRAI, RBI, CCI, IRDAI, PFRDA, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS), PNGRB, भारत की समेकित निधि, संसद की स्थायी समिति, बॉण्ड, डेरिवेटिव्स, प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT), राष्ट्रीय प्रतिभूति बाज़ार संस्थान

मेन्स के लिये:

नियामक निकाय, उनसे जुड़ी चिंताएँ और आगे की राह।

स्रोत: लाइव मिंट

चर्चा में क्यों?

कुछ विशेषज्ञों ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) जैसी नियामक संस्थाओं के प्रभाव का अध्ययन करने का आह्वान किया है, ताकि निर्णय लेने में इसे शामिल किया जा सके।

  • उन्होंने तर्क दिया कि नियामक निकायों को अपने निर्णयों को स्पष्ट रूप से समझाना चाहिये ताकि हितधारकों को न केवल वास्तविकता में बल्कि धारणा में भी संतुष्टि प्राप्त हो।

नियामक निकाय क्या हैं?

  • परिचय: नियामक निकाय वे संगठन हैं जो अर्थव्यवस्था के विशिष्ट क्षेत्रों की निगरानी और विनियमन करने, निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने और सार्वजनिक हितों की रक्षा करने के लिये स्थापित किये जाते हैं।
  • प्रकार: मुख्य रूप से दो प्रकार के नियामक निकाय हैं, अर्थात्, वैधानिक नियामक निकाय (जैसे, SEBI) और स्व-नियामक निकाय (जैसे, बार काउंसिल ऑफ इंडिया)।

 कार्य:

Functions

  • आवश्यकता: 
    • उपभोक्ता हितों की रक्षा करना: मानकों को लागू करना और निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करना (उदाहरण के लिये, खाद्य सुरक्षा के लिये FSSAI, दूरसंचार मूल्य निर्धारण के लिये TRAI)।
      • स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानक निर्धारित करना (उदाहरणार्थ, पर्यावरण के लिये CPCB)
    • बाज़ार स्थिरता: धोखाधड़ी को रोकना और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना (उदाहरण के लिये, वित्तीय बाज़ारों के लिये SEBI, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के लिये CCI)।
    • आर्थिक विकास: क्षेत्रीय विकास को समर्थन देना (जैसे, वित्तीय स्वास्थ्य के लिये RBI, बीमा के लिये IRDAI) तथा निवेश आकर्षित करना।
    • विधिक अनुपालन: कानून और पारदर्शिता को कायम रखना (उदाहरण के लिये, कानूनी अनुपालन के लिये CVC, ED)।
    • नैतिक मानक: व्यावसायिक नैतिकता को विनियमित करना (उदाहरण के लिये, विधिक पेशेवरों के लिये बार काउंसिल ऑफ इंडिया)।
  • उदाहरण: 30 से अधिक नियामक निकाय हैं। इनमें से कुछ प्राधिकरण इस प्रकार हैं: 
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI): ऋण आपूर्ति, बैंकिंग परिचालन की देखरेख करता है और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करता है।
    • SEBI: प्रतिभूति बाज़ार को विनियमित करता है, निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करता है और निवेशकों की सुरक्षा करता है।
    • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI): IRDAI बीमा क्षेत्र को विनियमित करता है, तथा निष्पक्षता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करता है।
    • कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय (MCA): कॉर्पोरेट प्रशासन को विनियमित करता है और हितधारकों के हितों की रक्षा करता है।
    • पेंशन निधि विनियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA): PFRDA राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) और पेंशन उद्योग विकास की देखरेख करता है।
    • पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (PNGRB): PNGRB की स्थापना PNGRB अधिनियम, 2006 के तहत की गई थी, जो पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों, प्राकृतिक गैस और संबंधित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं  के लिये तकनीकी और सुरक्षा मानक निर्धारित करता है।
    • केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग: यह केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली विद्युत उत्पादन कंपनियों के टैरिफ का विनियमन करता है और उनके अंतर-राज्यीय पारेषण की देखरेख करता है।
  • समस्याएँ:
    • स्वतंत्रता का अभाव: TRAI जैसे भारतीय विनियामकों को मंत्रालयों के हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी स्वायत्तता तथा निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ता है।
    • वित्तीय स्वायत्तता का अभाव: वे बजट के लिये मंत्रालय की स्वीकृति पर निर्भर रहते हैं तथा अधिशेष धनराशि भारत की समेकित निधि में वापस कर दी जाती है, जिससे वित्तीय स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।
    • अप्रभावी नियुक्ति प्रक्रियाएँ: शीर्ष अधिकारियों के पदों पर सामान्यतः सेवानिवृत्त सिविल सेवकों की नियुक्ति कर दी जाती है, जिनमें विनियामक विशेषज्ञता का अभाव होता है, जिससे विश्वसनीयता और दक्षता प्रभावित होती है।
    • संसदीय जवाबदेही का अभाव: इन विनियामक निकायों पर संसद की पर्याप्त अन्वेक्षा का अभाव है, जिससे उनके निर्णयों में सार्वजनिक उत्तरदायित्व का अभाव बढ़ता जा रहा है और पारदर्शिता प्रभावित हो रही है।
    • हितधारकों के साथ अपर्याप्त सहभागिता: भारतीय विनियामक निकाय प्रायः हितधारकों के साथ सहभागिता करने में विफल रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे निर्णय लिये जाते हैं जिनमें लोक अथवा उद्योग की आवश्यकताओं का पर्याप्त समावेशन नहीं होता है।
      • उदाहरण हेतु, विनियामक निर्णयों के संबंध में SEBI के अस्पष्ट संचार से बाज़ार सहभागियों के बीच अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
    • खंडित विनियामक ढाँचा: विभिन्न वित्तीय खंडों (बीमा, बॉण्ड, डेरिवेटिव) की निगरानी अलग-अलग विनियामक निकायों द्वारा की जाती है, जिससे बाज़ार की दक्षता में बाधा उत्पन्न होती है।
      • उदाहरण हेतु, बीमा और बॉण्ड के लिये अलग-अलग विनियामक निकायों से क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (ऋण चूक पर बीमा) और कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार की वृद्धि में बाधा उत्पन्न होती है।

विनियामक निकायों में सुधार हेतु कदम

  • द्वितीय ARC की 12वीं रिपोर्ट में सुझाव दिया गया:
    • भ्रष्टाचार को कम करने के लिये विनियामक प्रक्रियाओं को सरल, कारगर और पारदर्शी, नागरिक-अनुकूल बनाना चाहिये तथा इसकी विवेकाधीन शक्तियाँ निर्धारित की जानी चाहिये।
    • विनियामक अभिकरणों के आंतरिक पर्यवेक्षण और स्वतंत्र मूल्यांकन में सुधार करना
    • प्रवर्तन को सरल बनाने के लिये कराधान और लोक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में स्व-नियमन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • द्वितीय ARC की 13वीं रिपोर्ट की अनुशंसाएँ:
    • मंत्रालयों को विनियामक निकायों के उद्देश्यों और भूमिकाओं को रेखांकित करते हुए एक 'प्रबंधन वक्तव्य' तैयार करना चाहिये।
    • स्थिरता और स्वतंत्रता के लिये विनियामक प्राधिकारियों की नियुक्ति, पदावधि और निष्कासन में एकरूपता सुनिश्चित जानी चाहिये।
    • उत्तरदायित्व के लिये स्थायी समितियों के माध्यम से विनियामक निकायों की संसदीय निगरानी को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।

SEBI

  • परिचय: SEBI एक सांविधिक निकाय (एक असांविधानिक निकाय) है जिसकी स्थापना SEBI अधिनियम, 1992 के तहत की गई है।
    • इसका गठन 12 अप्रैल 1988 को भारत सरकार के एक प्रस्ताव के माध्यम से एक असांविधिक निकाय के रूप में किया गया था।
    • SEBI से पहले, पूंजी निर्गम नियंत्रक, जो पूंजी निर्गमन (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के तहत विनियमित था, पूंजी बाज़ारों का विनियामक प्राधिकरण था।
  • उद्देश्य: SEBI का मुख्य कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा भारत में प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना तथा इसे विनियमित करना है।
  • संरचना: SEBI के बोर्ड में एक अध्यक्ष तथा अन्य पूर्णकालिक एवं अंशकालिक सदस्य शामिल होते हैं।
    • प्रतिभूति अपील अधिकरण (SAT) में SEBI के निर्णयों के विरुद्ध की गई अपीलों की सुनवाई की जाती है तथा इसकी शक्तियाँ सिविल न्यायालय के समान होती हैं।
  • प्रमुख उत्तरदायित्व: यह जारीकर्त्ताओं को वित्त जुटाने में सक्षम बनाता है, निवेशकों के लिये सुरक्षा और सटीक जानकारी सुनिश्चित करता है, तथा मध्यस्थों के लिये प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार को बढ़ावा देता है।

आगे की राह

  • जवाबदेही: नियामक निकायों को संसद की स्थायी समिति के प्रति जवाबदेह होना चाहिये, जो निगरानी, पारदर्शिता और जनता का विश्वास सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
    • नियामक के वार्षिक व्यय का लेखा-परीक्षण नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा किया जाना चाहिये और उसकी रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिये।
    • इसमें विशेषज्ञों, विद्वानों और विश्लेषकों से नियमित समीक्षाएँ उनके कार्यों और प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
  • स्वतंत्र मूल्यांकन: गहन शोध, बाज़ार निगरानी और सूचित निर्णय लेने के लिये राष्ट्रीय प्रतिभूति बाज़ार संस्थान (SEBI द्वारा वर्ष 2006 में स्थापित सार्वजनिक ट्रस्ट) जैसे अनुसंधान संस्थानों और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) जैसे प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करना।
  • अंतःविषयक सहयोग: SEBI, RBI, IRDAI और अन्य नियामक निकायों को एक समन्वित नियामक ढाँचा तैयार करना चाहिये, जो बाज़ार की स्थिरता को बढ़ाए और ऐसे परस्पर विरोधी नियमों को रोके जो नवाचार को बाधित करते हैं।
  • अनुसंधान क्षमता का निर्माण: बेहतर निर्णय-निर्धारण और हस्तक्षेप के लिये इन्हें अर्थशास्त्र, वित्त और विधि क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक सलाहकार परिषद गठित करके विशेषज्ञता का व्यापक आधार विकसित करना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का लाभ उठाना:  नियामक निकाय UK की रेगुलेटरी पॉलिसी कमिटी और ऑस्ट्रेलिया का प्रोडक्टिविटी कमीशन जैसी सफल केस स्टडीज़ (case studies) से सीख सकते हैं, जो नियामक समरसता (regulatory coherence) को प्रोत्साहित करती हैं और बाज़ार दक्षता (market efficiency) को बढ़ाती हैं।
    • ब्राज़ील का दूरसंचार नियामक स्वतंत्र है, जिसके सदस्य राष्ट्रपति द्वारा चयनित किये जाते हैं और संसद द्वारा अनुमोदित होते हैं।
  • स्वतंत्र छत्र निकाय: पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने एक स्वतंत्र शीर्ष निकाय की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जो CBI, SFIO और ED जैसी एजेंसियों को एक छत के नीचे लाए। यह निकाय एक विधेयक के तहत स्थापित हो, जिसमें स्पष्ट रूप से परिभाषित शक्तियाँ, कार्य और क्षेत्राधिकार हों।
  • इन नियामक निकायों के नियमन हेतु एक समान निकाय की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय नियामक निकायों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और निर्णय लेने में इनकी जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड [पेट्रोलियम ऐंड नेचुरल गैस रेग्युलेटरि बोर्ड (PNGRB)] भारत सरकार द्वारा स्थापित प्रथम नियामक निकाय है।
  2. PNGRB का एक कार्य गैस के लिये प्रतियोगी बाज़ारों को सुनिश्चित करना है।
  3. PNGRB के निर्णयों के विरुद्ध अपील, विद्युत् अपील अधिकरण के समक्ष की जाती है।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में अग्रेषण बाज़ार आयोग ने निम्नलिखित में से किसे विनियमित किया है? (2010)

(a) मुद्रा फ्यूचर्स ट्रेडिंग
(b) कमोडिटीज फ्यूचर्स ट्रेडिंग
(c) इक्विटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग
(d) दोनों कमोडिटीज फ्यूचर्स और वित्तीय फ्यूचर्स ट्रेडिंग

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: अर्द्ध न्यायिक (न्यायिकवत्) निकाय से क्या तात्पर्य है? ठोस उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट कीजिये। (2016)

प्रश्न: वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने SEBI और IRDA नामक दो नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013)


शासन व्यवस्था

जेंडर बजट 2025-26

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

जेंडर बजट डायरेक्ट्री, जेंडर गैप रिपोर्ट, SDG -5, मिशन शक्ति, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत में लैंगिक बजट, बजट के माध्यम से लैंगिक समानता, महिला संविधान

स्रोत: पी.आई.बी.

जेंडर-रिस्पॉन्सिव बजटिंग (GBS) 2025-26 जेंडर-रिस्पॉन्सिव बजटिंग (GRB) की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसमें आवंटनों में वृद्धि और मंत्रालयों की व्यापक भागीदारी शामिल है।

GBS 2025-26 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • बजट में वृद्धि: वित्त वर्ष 2025-26 के लिये लैंगिक बजट 4.49 लाख करोड़ रुपए (कुल केंद्रीय बजट 2025-26 का 8.86%) है, जो वित्त वर्ष 2024-25 के लिये 3.27 लाख करोड़ रुपए से 37.5% अधिक है। 
    • GBS 2025-26 भारत का अब तक का सबसे बड़ा लैंगिक बजट है, जिसमें महिला कल्याण, शिक्षा और आर्थिक साक्षरता को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसमें 49 मंत्रालयों को लैंगिक-विशिष्ट विवरण की जानकारी दी गई है।
  • GBS 2025-26 के प्रभाग: जेंडर बजट को तीन प्रभागों में वर्गीकृत किया गया है।

Parts_of_GBS

नोट: लैंगिकता उन विशेषताओं को दर्शाती है जो महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों और लड़कों से संबंधित होती हैं और सामाजिक रूप से निर्मित होती हैं। जबकि लैंगिक भेद (Sex) जैविक विशेषता है, जो गुणसूत्रों और प्रजनन अंगों से जुड़ी होती है।

भारत में जेंडर बजटिंग क्या है?

  • जेंडर बजट: जेंडर बजट एक विशिष्ट उपकरण है, जिसका उपयोग विभिन्न लैंगिक विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता है। 
    • यह सुनिश्चित करता है कि नीतियाँ और संसाधनों का आवंटन लैंगिक संवेदनशील हो और मौज़ूदा ढाँचों के भीतर विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करे।
  • पृष्ठभूमि: भारत की लैंगिक समता प्रतिबद्धता, महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर सम्मेलन (CEDAW), 1979 के 1993 में अनुसमर्थन से प्रारंभ होकर वर्ष 2005-06 में प्रथम जेंडर बजट स्टेटमेंट का कारण बनी, और तब से इसे प्रतिवर्ष शामिल किया जाता रहा है, जो लैंगिक-संवेदनशील नीतियों पर निरंतर ध्यान को दर्शाता है।
    • जेंडर बजटिंग मिशन शक्ति की सामर्थ्य उप-योजना के अंतर्गत आती है
  • आवश्यकता: लैंगिक बजट केवल एक वित्तीय साधन नहीं है, बल्कि लैंगिक असमानता के चक्र को तोड़ने के लिये एक नैतिक आवश्यकता है
    • वर्ष 2024 जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत 146 देशों में से 129 वें स्थान पर है, जो लैंगिक समानता में सुधार की महत्त्वपूर्ण गुंजाइश दर्शाता है।
    • सशक्त महिलाएँ अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करके भावी पीढ़ियों के लिये योगदान देती हैं, जिससे विकास का एक सकारात्मक चक्र बनता है।
  • कार्यान्वयन: 
    • केंद्रीय स्तर: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD)।
    • राज्य स्तर: महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण, वित्त और योजना विभाग राज्य स्तर पर जेंडर बजट के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • ज़िला स्तर: महिला सशक्तिकरण केंद्र (HEW) ज़िला स्तर पर जेंडर बजट का समन्वय करता है, और प्रत्येक केंद्र में कम से कम एक जेंडर विशेषज्ञ होना चाहिये।
  • महत्त्व: भेदभाव और शोषण को संबोधित करके लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है और सतत् विकास लक्ष्य 5 (वैश्विक लैंगिक समानता) प्रयासों का समर्थन करता है।
  • यह आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 जैसे महिला-विशिष्ट कानूनी ढाँचे के कार्यान्वयन का समर्थन करता है।

नोट: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत वर्ष 2021 में मिशन शक्ति पहल भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये एक व्यापक कार्यक्रम है। 

  • इसमें दो उप-योजनाएँ शामिल हैं: संबल (महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा पर केंद्रित) और सामर्थ्य (विभिन्न कौशल निर्माण और क्षमता विकास कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने का लक्ष्य)।

भारत में जेंडर बजटिंग के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • आवंटन में अस्पष्टताएँ: लैंगिक-संवेदनशील योजनाओं को धनराशि आवंटित करने की अस्पष्ट कार्यप्रणाली के कारण प्रायः विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) में महिला कार्यबल की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बावजूद भाग B में कम रिपोर्ट किया गया है।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G), जो घरों में महिलाओं के स्वामित्व को प्राथमिकता देती है, के अनुसार केवल 23% घर ही महिलाओं को आवंटित किये गए हैं, जबकि इसे GBS के भाग A में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें महिलाओं के लिये 100% आवंटन का दावा किया गया है।
  • निधियों का संकेंद्रण: लगभग 90% जेंडर बजट केवल कुछ मंत्रालयों में ही केंद्रित है, जिनमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY), MGNREGS और PMAY-G जैसी योजनाएँ शामिल हैं, जो अन्य क्षेत्रों में इसके प्रभाव को सीमित करती हैं।
  • दीर्घकालिक योजनाएँ: आयुष्मान भारत और आवास योजना जैसी दीर्घकालिक योजनाओं को जेंडर बजटिंग में शामिल करने से मिशन शक्ति और महिला शिक्षा जैसे तत्काल प्रभाव वाले कार्यक्रमों से धन का विचलन होता है, जिससे वास्तविक समय में महिला सशक्तिकरण और कौशल विकास में बाधा आती है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: अपर्याप्त ट्रैकिंग तंत्र, जेंडर प्रभाव आकलन की खराब गुणवत्ता और जेंडर-पृथक डेटा के अभाव से आवश्यकताओं और परिणामों का सटीक आकलन करने में बाधा उत्पन्न होती है।
    • संयुक्त राष्ट्र ने जेंडर बजट विवरण की अभिकल्पना और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा वित्त मंत्रालय के बीच मज़बूत क्षेत्रवार निगरानी और सहयोग का आह्वान किया है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति: जेंडर आधारित बजट हमेशा राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं होता, जिसके परिणामस्वरूप समर्थन अपर्याप्त रह जाता है।

आगे की राह

  • एकीकरण: बुनियादी ढाँचे और ग्रामीण विकास सहित सभी मंत्रालयों में जेंडर आधारित बजट को एकीकृत किया जाना चाहिये, ताकि प्रत्येक सरकारी पहल में जेंडर-सेंसेटिव आवंटन सुनिश्चित किया जा सके।
    • महिलाओं की आवश्यकताओं और नीतियों के प्रभाव को बेहतर रूप से समझने के लिये लिंग-विशिष्ट डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने में निवेश करने की आवश्यकता है।
  • राज्य का जेंडर बजट: राज्य सरकारों को जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करना, ताकि नियोजन प्रक्रिया में जनजातीय समूहों सहित सुभेद्य वर्ग की महिलाओं का समावेशन सुनिश्चित किया जा सके।
  • सूचना पद्धतियों का स्पष्टीकरण: आवंटन और सूचना प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की आवश्यकता है। 
    • धन आवंटन के लिये प्रयुक्त पद्धतियों और उनसे संबंधित तर्कों का सार्वजनिक प्रकटीकरण करने से जवाबदेही बढ़ेगी।
    • आवंटित धनराशि की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिये सभी मंत्रालयों में नियमित रूप से जेंडर ऑडिट आयोजित किया जाना चाहिये।
  • क्षमता निर्माण: सरकारी अधिकारियों और हितधारकों को जेंडर आधारित बजट पर प्रशिक्षण देने से बजट उपयोग और आकलन में जेंडर संबंधी दृष्टिकोण को शामिल करने की दृष्टि से आवश्यक विशेषज्ञता विकसित करने में मदद मिलेगी।

और पढ़ें: केंद्रीय बजट 2025-26

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में जेंडर बजटिंग का क्या महत्त्व है और इसका महिला सशक्तीकरण में किस प्रकार योगदान है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौमिक लैंगिक अंतराल सूचकांक' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(c) संयुक्त राष्ट्र महिला
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. “महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।” चर्चा कीजिये। (2019) 

प्रश्न. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2015) 

प्रश्न. "महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये।" टिप्पणी कीजिये। (2013)


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