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शासन व्यवस्था

कॉर्पोरेट गवर्नेंस

  • 06 Feb 2024
  • 39 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सुशासन, कॉर्पोरेट गवर्नेंस, कंपनी अधिनियम, 2013, सेबी लिस्टिंग दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ (LODR), व्हिसलब्लोअर संरक्षण, सत्यम घोटाला मामला, वित्त पर स्थायी समिति, कंपनी कानून समिति, इंफोसिस, टाटा समूह, इनसाइडर ट्रेडिंग, अल्पसंख्यक शेयरधारक, निदेशक मंडल, बोर्ड समितियाँ, गैर-वित्तीय प्रकटीकरण, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA), IL एंड FS संकट, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT), कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG)

मेन्स के लिये:

कॉर्पोरेट क्षेत्र में नैतिक प्रथाओं तथा पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देने में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का महत्त्व।

संदर्भ क्या है?

कॉर्पोरेट गवर्नेंस एवं नैतिकता दो परस्पर संबंधित अवधारणाएँ हैं जो संगठनों में व्यवहार और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पारदर्शिता, जवाबदेही और टिकाऊ व्यावसायिक प्रथाएँ कॉर्पोरेट गवर्नेंस तथा नैतिकता के बीच संबंध पर निर्भर हैं।

  • नैतिकता पारदर्शिता और जवाबदेही से निकटता से जुड़ी हुई है, जो अच्छे कॉर्पोरेट प्रशासन के दो स्तंभ हैं। नैतिक रूप से शासित संगठन हितधारकों को सटीक तथा पारदर्शी जानकारी प्रदान करने की अधिक संभावना रखता है।

कॉर्पोरेट गवर्नेंस क्या है?

  •  परिचय: 
    • कॉर्पोरेट गवर्नेंस नियमों, प्रथाओं और प्रक्रियाओं की प्रणाली को संदर्भित करता है, इसके द्वारा एक कंपनी को निर्देशित तथा नियंत्रित किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि व्यवसाय नैतिक रूप से तथा उनके हितधारकों के सर्वोत्तम हित में चलाए जाते हैं। कॉर्पोरेट गवर्नेंस की प्रमुख ज़िम्मेदारियों में से एक कॉर्पोरेट लालच को रोकना तथा यह सुनिश्चित करना है कि व्यवसायों को उत्तरदायी और पारदर्शी तरीके से संचालित किया जाए।
    • मज़बूत नैतिक मानकों को लागू करके तथा व्यक्तियों को उनके कार्यों के लिये उत्तरदायी बनाकर, कॉर्पोरेट गवर्नेंस लालच को रोकने और शेयरधारकों, ग्राहकों एवं व्यापक समुदाय के हितों की रक्षा करने में मदद कर सकता है।
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांत:
    • निष्पक्षता: निदेशक मंडल को शेयरधारकों, कर्मचारियों, विक्रेताओं और समुदायों के साथ उचित एवं समान विचार से व्यवहार करना चाहिये।
    • पारदर्शिता: बोर्ड को वित्तीय प्रदर्शन, हित संबंधी मतभेद और शेयरधारकों एवं अन्य हितधारकों को जोखिम जैसी स्थिति के बारे में समय पर सटीक तथा स्पष्ट जानकारी प्रदान करनी चाहिये।
    • जोखिम प्रबंधन: बोर्ड और प्रबंधन को सभी प्रकार के जोखिमों का निर्धारण तथा उन्हें नियंत्रित करना चाहिये। उन्हें प्रबंधित करने के लिये संबद्ध सिफारिशों पर कार्रवाई करनी चाहिये। उन्हें सभी संबंधित पक्षों को जोखिमों की मौजूदगी तथा स्थिति के बारे में सूचित करना चाहिये।
    • ज़िम्मेदारी: बोर्ड कॉर्पोरेट मामलों और प्रबंधन गतिविधियों की निगरानी के लिये ज़िम्मेदार है।
      • इसे कंपनी की प्रगति और प्रदर्शन के बारे में पता होना चाहिये, साथ ही उसका समर्थन करना चाहिये। इसकी ज़िम्मेदारी में CEO की भर्ती और नियुक्ति करना भी शामिल है। इसे किसी कंपनी एवं उसके निवेशकों के सर्वोत्तम हित में कार्य करना चाहिये।
    • जवाबदेही: बोर्ड को कंपनी की गतिविधियों के उद्देश्य और उसके आचरण के परिणामों की व्याख्या करनी चाहिये। बोर्ड एवं कंपनी का नेतृत्व कंपनी की क्षमता एवं प्रदर्शन के आकलन के लिये जवाबदेह है। इसे शेयरधारकों के महत्त्व के मुद्दों को संप्रेषित करना चाहिये। 

  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस के चार P: 
    • पीपल/लोग: यह 'P' निदेशक मंडल, अधिकारियों और कर्मचारियों सहित कॉर्पोरेट प्रशासन में शामिल व्यक्तियों के महत्त्व पर ज़ोर देता है। बोर्ड की संरचना, उनके कौशल, स्वतंत्रता और विविधता महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
    • उद्देश्य: यह कंपनी के व्यापक मिशन और लक्ष्यों को संदर्भित करता है कॉर्पोरेट गवर्नेंस यह सुनिश्चित करता है कि कंपनी का उद्देश्य नैतिक मानकों के अनुरूप हो तथा शेयरधारकों एवं हितधारकों के लिये दीर्घकालिक मूल्य बनाने पर केंद्रित हो।
    • प्रक्रियाएँ: इस 'P' में कंपनी की देखरेख और प्रबंधन के लिये स्थापित सिस्टम तथा प्रक्रियाएँ शामिल हैं। गवर्नेंस प्रक्रियाओं में यह शामिल है कि निर्णय कैसे लिये जाते हैं, जोखिम का मूल्यांकन एवं प्रबंधन कैसे किया जाता है व जवाबदेही कैसे बनाए रखी जाती है।
    • अभ्यास: कॉर्पोरेट गवर्नेंस में प्रदर्शन नैतिक मानकों का पालन करते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कंपनी की समग्र सफलता से संबंधित है। गवर्नेंस फ्रेमवर्क स्थापित मानकों के विरुद्ध कंपनी के प्रदर्शन की निगरानी और मूल्यांकन करता है।

 कॉर्पोरेट गवर्नेंस के प्रमुख घटक 

  • निदेशक मंडल:
    • संरचना और स्वतंत्रता:
      • निदेशकों की संख्या कंपनी के आकार के आधार पर भिन्न हो सकती है। यदि यह एक सार्वजनिक कंपनी है तो निदेशक मंडल में कम-से-कम तीन निदेशक होने चाहिये, यदि यह एक निजी कंपनी है तो दो निदेशक और एक व्यक्ति वाली कंपनी में एक निदेशक होना चाहिये। कोई कंपनी निदेशक के रूप में सदस्यों की अधिकतम संख्या पंद्रह रख सकती है।
      • प्रत्येक कंपनी के बोर्ड द्वारा कम-से-कम एक निदेशक नियुक्त किया जाएगा, जो पिछले वर्ष के न्यूनतम 182 दिनों के लिये भारत में रहा हो, यह एक अनिवार्य नियम है।
      • कंपनी द्वारा कम-से-कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति अवश्य की जानी चाहिये। सभी सूचीबद्ध कंपनियों के निदेशक मंडल का कम-से-कम एक तिहाई हिस्सा स्वतंत्र निदेशकों के रूप में होना चाहिये
    • बोर्ड समितियाँ:
      • बोर्ड समितियाँ निदेशक मंडल के उप-समूह हैं जो ज़िम्मेदारी के विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये बनाई जाती हैं। प्रत्येक निदेशक मंडल में समितियाँ नहीं होती हैं, लेकिन वे बड़े संगठनों में आम हैं।
        • कुछ सबसे सामान्य बोर्ड समितियों में लेखापरीक्षा समितियाँ, क्षतिपूर्ति समितियाँ और नामांकन समितियाँ शामिल हैं।  
  • शेयरधारक और हितधारक: 
    • अधिकार एवं उत्तरदायित्व: 
      • शेयरधारकों को कंपनी के महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर वोट देने का अधिकार है, जैसे निदेशक मंडल का चुनाव करना, विलय और अधिग्रहण को मंज़ूरी देना तथा कंपनी के निगमन के लेखों में बदलाव करना।
      • उन्हें लाभांश प्राप्त करने और कंपनी की पुस्तकों तथा रिकॉर्डों का निरीक्षण करने का भी अधिकार है।
    • अल्पसंख्यक शेयरधारक संरक्षण: 
      • अल्पसंख्यक शेयरधारक ऐसे शेयरधारक होते हैं जिनके पास कंपनी के 50% से कम शेयर होते हैं और निगम पर उनका पूर्ण नियंत्रण नहीं होता है।
      • हालाँकि उनके पास अभी भी वोट देने का अधिकार है और वे निदेशकों और अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहरा सकते हैं, जिससे अंततः अधिक दक्षता आती है और वित्तीय रिटर्न बढ़ता है।
  • प्रकटीकरण और पारदर्शिता:
    • वित्तीय जानकारी साझा करना:
      • यह हितधारकों को वित्तीय जानकारी प्रकट करने की प्रक्रिया है। इसमें वित्तीय विवरण जैसे बैलेंस शीट आय विवरण और नकदी प्रवाह विवरण तैयार करना शामिल है।
        • वित्तीय जानकारी विभिन्न लेखांकन मानकों जैसे आम तौर पर स्वीकृत लेखांकन सिद्धांतों (Generally Accepted Accounting Principles - GAAP) और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों (International Financial Reporting Standards - IFRS) द्वारा शासित होती है।
    • गैर-वित्तीय प्रकटीकरण:
      • गैर-वित्तीय प्रकटीकरण (disclosure) से तात्पर्य उस जानकारी के प्रकटीकरण से है जो सीधे तौर पर किसी कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन से संबंधित नहीं है। इसमें किसी कंपनी की पर्यावरण, सामाजिक और शासन  (Environmental, Social, and Governance - ESG) प्रथाओं के बारे में जानकारी शामिल हो सकती है।

पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) लक्ष्य क्या हैं?

  • ESG लक्ष्य कंपनी के संचालन के लिये मानकों का एक समूह है जो कंपनियों को बेहतर शासन, नैतिक प्रथाओं, पर्यावरण के अनुकूल उपायों और सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन करने के लिये मजबूर करता है।
    • पर्यावरणीय मानदंड इस बात पर विचार करते हैं कि एक कंपनी प्रकृति के प्रबंधक के रूप में कैसा प्रदर्शन करती है।
    • सामाजिक मानदंड जाँच करते हैं कि यह कर्मचारियों, आपूर्तिकर्त्ताओं, ग्राहकों और उन समुदायों के साथ संबंधों का प्रबंधन कैसे करता है जहाँ ये क्रियान्वित हैं।
    • शासन एक कंपनी के नेतृत्व, कार्यकारी वेतन, लेखापरीक्षा, आंतरिक नियंत्रण  और शेयरधारक अधिकारों से संबंधित है। 
  • यह गैर-वित्तीय कारकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जो निवेश निर्णयों के मार्गदर्शन के लिये एक पैमाने के रूप में है, जिसमें वित्तीय प्रतिलाभ में वृद्धि अब निवेशकों का एकमात्र उद्देश्य नहीं है। 
  • वर्ष 2006 में ‘यूनाइटेड नेशंस प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट’ (United Nations Principles for Responsible Investment - UNPRI) की शुरुआत के बाद से ESG ढाँचे को आधुनिक व्यवसायों की एक अटूट कड़ी के रूप में मान्यता दी गई है।
  • भारत में एक मज़बूत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR) नीति है जो यह अनिवार्य करती है कि निगम समाज के कल्याण में योगदान देने वाली पहलों में शामिल हों।
    • भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में CSR को कॉर्पोरेट लोक-कल्याण की भावना के रूप में देखा जाता है जिसमें निगम सरकार की पहल का समर्थन करने के लिये सामाजिक विकास को बढ़ाते हैं और यह कॉर्पोरेट प्रशासन के साथ सुशासन की अवधारणा को भी सिंक्रनाइज़ करते हैं।

भारत में कॉरपोरेट गवर्नेंस के लिये नियामक ढाँचा

  •  नियामक  ढाँचे का विकास: 
    • कॉरपोरेट गवर्नेंस के लिये नियामक प्राधिकरण:
    • कॉर्पोरेट गवर्नेंस विनियमन:
      • 1990 के दशक में विनियामक विकास के समय के दौरान, सेबी ने डिपॉजिटरी अधिनियम,1996, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम,1992 तथा  सुरक्षा अनुबंध (विनियमन) अधिनियम, 1956 सहित महत्त्वपूर्ण कानून बनाकर कॉर्पोरेट प्रशासन को विनियमित करने की ज़िम्मेदारी संभाली।
    • औपचारिक नियामक ढाँचे का परिचय:
      • वर्ष 2000 में, सेबी ने कुमार मंगलम बिड़ला समिति, 1999 की सिफारिशों के जवाब में कॉर्पोरेट प्रशासन के लिये पहला औपचारिक नियामक ढाँचा स्थापित किया।
      • इस पहल का उद्देश्य भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन मानकों को बढ़ाना और पारदर्शी तथा जवाबदेह व्यावसायिक पहलों के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित करना था।
    • गवर्नेंस की पहल:
  • कंपनी अधिनियम, 2013:
    •  कॉर्पोरेट गवर्नेंस से संबंधित प्रावधान:
      • इन प्रावधानों में प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक (KMP) की नियुक्ति, ऑडिट समितियों की भूमिका, स्वतंत्र ऑडिट, संबंधित पार्टी लेन-देन के सख्त विनियमन और कंपनियों  पर प्रतिबंध के माध्यम से कंपनियों पर अधिक जवाबदेही शामिल है।
      • यह सुनिश्चित करने के लिये कि सभी प्रासंगिक जानकारी निवेशकों और नियामक एजेंसियों के लिये उपलब्ध है, बोर्ड की रिपोर्ट, वित्तीय विवरण तथा कंपनी रजिस्ट्रार के साथ फाइलिंग सहित प्रकटीकरण अनिवार्य हैं।
    • संशोधन और अद्यतन: 
  • राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण:

निगमित शासन से संबंधित नैतिक चुनौतियाँ क्या हैं?

  • चयन प्रक्रिया तथा बोर्ड का कार्यकाल: भारतीय निगमित शासन में बोर्ड के सदस्यों के चयन तथा उनके कार्यकाल का अत्यधिक दुरुपयोग किया जाता है। स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये बोर्ड के सदस्यों की पदावधि पर्याप्त होनी चाहिये किंतु इस पदावधि का विस्तार इतना नहीं होना चाहिये कि उनके कार्य उनकी आत्मसंतुष्टि से प्रभावित हो जाएँ।
  • निदेशकों का प्रदर्शन मूल्यांकन: कंपनी के निदेशकों का प्रदर्शन मूल्यांकन निगमित शासन का एक चुनौतीपूर्ण पहलू है। यह सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने तथा बोर्ड के प्रभावी ढंग से कार्य करने की सुनिश्चितता में मदद करता है। हालाँकि मूल्यांकन प्रक्रिया पारदर्शी तथा वस्तुनिष्ठ होनी चाहिये।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में SEBI ने सूचीबद्ध कंपनियों को स्वतंत्र निदेशकों के प्रदर्शन के मूल्यांकन के मानदंडों का ब्यौरा प्रदान करने का निर्देश दिया।
  • निदेशकों की स्वतंत्रता का अभाव: कई मामलों में प्रवर्तकों (Promoters) अथवा प्रबंधन के संबंधों में घनिष्ठता के परिणामस्वरूप निदेशकों की स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में ICICI बैंक के CEO द्वारा उसके पति के लिये एक व्यापार के हिस्से के रूप में वीडियोकॉन कंपनी के ऋण को स्वीकृति दी गई जिससे विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई।
  • स्वतंत्र निदेशकों को हटाना: निगमित शासन में स्वतंत्र निदेशकों को हटाना एक गंभीर मुद्दा है। यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि स्वतंत्र निदेशकों को संबंधित मुद्दों के लिये आवाज़ उठाने तथा असहमतिपूर्ण राय प्रस्तुत करने के आधार पर नहीं हटाया जाए।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में फोर्टिस हेल्थकेयर के स्वतंत्र निदेशक ने IHH हेल्थकेयर द्वारा कंपनी के अधिग्रहण पर चिंता जताई जिसके परिणामस्वरूप उसे कंपनी के बोर्ड द्वारा हटा दिया गया
  • हितधारकों के प्रति दायित्व: कई मामलों में कंपनियाँ अपने हितधारकों के हितों के स्थान पर अपने प्रवर्तकों अथवा प्रबंधन के हितों को प्राथमिकता देती हैं।
  • संस्थापक/प्रवर्तक की व्यापक भूमिका: कंपनी के अभिशासन में संस्थापक अथवा प्रवर्तक की भूमिका में संतुलन स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालाँकि उनका दृष्टिकोण तथा नेतृत्व कंपनी के लिये लाभकारी हो सकता है किंतु उनकी व्यापक भूमिका से हितों का टकराव एवं पारदर्शिता प्रभावित हो सकती है।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2019 में SEBI ने कंपनियों को बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में संस्थापक अथवा प्रवर्तक की नियुक्ति के कारणों का ब्यौरा प्रदान करने का निर्देश दिया।
  • पारदर्शिता तथा डेटा सुरक्षा: पारदर्शिता की कमी तथा अपर्याप्त डेटा सुरक्षा हानिकारक निगमित प्रथाएँ हैं। उन्हें संवेदनशील डेटा तथा सूचना की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों को अपने ग्राहकों के डेटा तथा जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
  • व्यावसायिक संरचना तथा आंतरिक संघर्ष: निगमत क्षेत्र में व्यावसायिक संरचना तथा आंतरिक संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। हितों के टकराव से बचने के लिये कंपनियों के पास एक सुस्पष्ट तथा सुव्यवस्थित रूप से परिभाषित व्यावसायिक संरचना होनी चाहिये। उनके पास आंतरिक संघर्षों का समाधान करने के लिये एक समर्पित तंत्र की भी आवश्यकता है।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2019 में इंडिगो एयरलाइंस के बोर्ड में अपने CEO की नियुक्ति को लेकर सार्वजनिक विवाद हुआ, जिसके कारण कंपनी के निगमित शासन के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
  • हितों का टकराव: शेयरधारकों की परवाह किये बिना प्रबंधकों द्वारा संभावित रूप से स्वयं को समृद्ध बनाने की चुनौती निगमित शासन में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में SEBI ने कंपनियों को संबंधित पार्टी लेन-देन के विवरण का खुलासा करने का निर्देश दिया।
  • कमज़ोर प्रबंधन बोर्ड: बोर्ड के सदस्यों में अनुभव और पृष्ठभूमि की विविधता की कमी, बोर्डों के लिये कमज़ोर कारक के रूप में कार्य करती है। कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रभावी निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिये उनके बोर्ड के सदस्यों की पृष्ठभूमि तथा अनुभव विविध हों।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2018 में SEBI ने कंपनियों को अपने बोर्ड में कम-से-कम एक महिला निदेशक की नियुक्ति का निर्देश दिया।
  • इनसाइडर ट्रेडिंग:
    • इनसाइडर ट्रेडिंग का आशय कंपनी के अंदरूनी सूत्र, जैसे- अधिकारी, निदेशक आदि द्वारा गोपनीय जानकारी के माध्यम से वैयक्तिक लाभ अर्जित करना है। SEBI के अंतर्गत एक सुदृढ़ अन्वेषण तंत्र तथा सतर्क दृष्टिकोण के अभाव  के परिणामस्वरूप ये समस्या वर्तमान में प्रचलन में है जिससे अपराधी स्वयं को कानून से बचाने में सक्षम हो जाते हैं।

निगमित शासन में किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • बोर्ड की स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना:
    • पर्याप्त संख्या में स्वतंत्र निदेशकों के साथ एक संतुलित बोर्ड संरचना सुनिश्चित करना जो निष्पक्ष दृष्टिकोण प्रदान करने में सहायक की भूमिका निभाए।
    • बोर्ड के प्रदर्शन तथा निदेशक के वैयक्तिक प्रभावशीलता का समय-समय पर मूल्यांकन करना।
      • इंफोसिस को अमूमन भारत में निगमित शासन के लिये एक बेंचमार्क के रूप में उद्धृत किया जाता है। उक्त कंपनी के पास एक सुदृढ़ बोर्ड संरचना है जिसमें अधिकांश रूप से स्वतंत्र निदेशक मौजूद हैं।
  • पारदर्शिता तथा प्रकटीकरण में वृद्धि:
    • हितधारकों को सटीक तथा समय पर जानकारी प्रदान करने के लिये सुव्यवस्थित वित्तीय रिपोर्टिंग प्रथाओं का कार्यान्वन करना।
    • कंपनी के प्रदर्शन का समग्र दृष्टिकोण देने के लिये गैर-वित्तीय जानकारी जैसे ESG कारकों का प्रकटीकरण करना।
      • टाटा ग्रुप की धारक कंपनी टाटा संस का पारदर्शिता तथा शासन मानदंडों के अनुपालन का इतिहास रहा है। वर्ष 2016 में साइरस मिस्त्री को अध्यक्ष पद से हटाने तथा उसके बाद की कानूनी लड़ाइयों ने शासन सिद्धांतों के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता को उजागर किया।
  • शेयरधारकों को सशक्त बनाना:
    • विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण मत प्रदान करने के दौरान शेयरधारकों को सुदृढ़ निर्णय लेने में मदद प्रदान करने हेतु परोक्षी/प्रॉक्सी परामर्श सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करना
    • बोर्ड तथा प्रबंधन को उनके कार्यों के लिये उत्तरदायी बनाने के लिये सक्रिय शेयरधारक आचरण को बढ़ावा देना।
  • प्रभावी जोखिम प्रबंधन:
    • व्यवसाय के संभावित खतरों का सक्रिय रूप से समाधान सुनिश्चित करते हुए जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन तथा प्रबंधन के लिये एक समर्पित समिति की स्थापना करना।
    • उभरते जोखिमों तथा कमज़ोरियों का निवारण करने के लिये नियमित रूप से जोखिमों का मूल्यांकन करना।
  • नैतिक आचरण तथा अनुपालन:
    • सभी कर्मचारियों तथा हितधारकों के लिये अपेक्षित व्यवहार एवं नैतिक मानकों की रूपरेखा तैयार करने हेतु एक व्यापक आचार संहिता की रूपरेखा तैयार कर उसे कार्यान्वित करना।
    • प्रतिशोध की चिंता से मुक्त होकर कंपनी के अनैतिक प्रथाओं की रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के लिये एक सुदृढ़ व्हिसलब्लोअर (पर्दाफाश करना) तंत्र कार्यान्वित करना।
  • कार्यकारी मुआवज़ा नीतियाँ:
    • कंपनी के प्रदर्शन के आधार पर कार्यकारी मुआवज़े को संरेखित करना ताकि अधिकारियों को सतत् विकास के लिये प्रेरित किया जा सके।
    • उत्तरदायित्व को बढ़ावा देते हुए शेयरधारकों को कार्यकारी क्षतिपूर्ति संरचनाओं के बारे में स्पष्ट रूप से बताना।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR):
    • व्यवसाय संचालन में सामाजिक रूप से उत्तरदायी प्रथाओं को एकीकृत करना तथा व्यापक सामाजिक कल्याण के लिये कंपनी की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने के लिये CSR गतिविधियों का खुलासा करना।
  • बोर्ड प्रशिक्षण एवं विकास:
    • बोर्ड के सदस्यों को उद्योग के रुझानों, नियामक परिवर्तनों तथा शासन की सर्वोत्तम प्रथाओं के संबंध में अद्यतन रखने के लिये नियमित रूप से प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • निरंतरता तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये कंपनी के प्रमुख पदों पर नियुक्ति हेतु एक सुदृढ़ उत्तराधिकार योजना विकसित करना।
  • विनियामक अनुपालन:
    • सभी प्रासंगिक कानूनों तथा विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये नियमित अंकेक्षण करना।
    • नियामक अधिकारियों द्वारा निर्धारित कंपनी के स्थापित निगमित शासन कूट तथा दिशा-निर्देशों का अनुपालन करना।
  • हितधारकों के साथ जुड़ाव:
    • विश्वास तथा पारदर्शिता बनाने के लिये शेयरधारकों, कर्मचारियों एवं ग्राहकों सहित हितधारकों के साथ मुक्त संचार प्रथाओं को बढ़ावा देना।
    • हितधारकों की चिंताओं तथा अपेक्षाओं का समाधान करने के लिये सक्रिय रूप से उनका फीडबैक प्राप्त कर उन पर विचार करना।
      • महिंद्रा एंड महिंद्रा को नैतिक व्यावसायिक आचरण तथा स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिये जाना जाता है। कंपनी की शासन पद्धतियाँ हितधारक सहभागिता और जोखिम प्रबंधन पर केंद्रित हैं।

निगमित शासन से संबंधित समिति की रिपोर्ट तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय क्या हैं?

  • कोटक पैनल रिपोर्ट: उदय कोटक की अध्यक्षता में SEBI द्वारा गठित पैनल ने वर्ष 2017 में कंपनियों के निगमित शासन मानकों में सुधार के लिये कई परिवर्तनों का सुझाव दिया जो निम्नलिखित हैं:
    • बोर्ड का अध्यक्ष कंपनी के प्रबंध निदेशक/CEO का पद ग्रहण नहीं कर सकता है।
    • बोर्ड में निदेशकों की न्यूनतम संख्या छह होनी चाहिये। इनमें से 50% स्वतंत्र निदेशक होने चाहिये जिनमें स्वतंत्र निदेशक के रूप में न्यूनतम एक महिला भी शामिल हो।
    • स्वतंत्र निदेशकों के लिये न्यूनतम अर्हता अनिवार्य करना तथा उनके प्रासंगिक कौशल का प्रकटीकरण करना।
    • कंपनी तथा संबंधित प्रवर्तकों के बीच जानकारी साझा करने के लिये एक औपचारिक मंच विकसित करना।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का संचालन नोडल मंत्रालयों के स्थान पर सूचीबद्धता नियमों द्वारा शासित किया जाना चाहिये।
    • खामियाँ पाए जाने पर लेखापरीक्षकों को दंडित किया जाना चाहिये।
    • SEBI के पास व्हिसलब्लोअर्स (सूचना प्रदाता/सचेतक) को उन्मुक्ति प्रदान करने अधिकार होना चाहिये। कंपनियों को वार्षिक रिपोर्ट में मध्यम से दीर्घकालिक व्यापार रणनीति का खुलासा करना चाहिये।
  • टी.के. विश्वनाथन समिति: निष्पक्ष बाज़ार आचरण के संबंध में टी.के. विश्वनाथन समिति की अनुशंसाएँ, जिसने वर्ष 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें निम्नलिखित अनुशंसाएँ की गई:
    • इनसाइडर ट्रेडिंग के संबंध में की गई अनुशंसाओं के बीच, दो पृथक आचार संहिता की स्थापना पहला सुझाव था।
      • सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा आंतरिक जानकारी की सुरक्षा के लिये न्यूनतम मानक।
      • मूल्य-संवेदनशील जानकारी से संबद्ध बाज़ार, मध्यस्थों और अन्य के लिये मानक।
    • कंपनियों को नामित व्यक्तियों के ऐसे नातेदारों का विवरण रखना चाहिये जिनके साथ वह कंपनी की संवेदनशील जानकारी या वित्तीय लेन-देन संबंधी जानकारी को साझा कर सकता है।
    • ऐसी सभी जानकारियों को कंपनी द्वारा इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में सुरक्षित रखा जा सकता है और इन्हें किसी भी मामले से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिये SEBI के साथ भी साझा किया जा सकता है।
    • समिति ने टेलीफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरणों को टैप करने के लिये SEBI को प्रत्यक्ष अधिकार देने की सिफारिश की जिसका उद्देश्य इनसाइडर ट्रेडिंग तथा अन्य धोखाधड़ी की जाँच करना है।
      • वर्तमान में SEBI को केवल मोबाइल या टेलीफोन नंबर और कॉल अवधि सहित कॉल रिकॉर्ड मांगने का ही अधिकार है।
  • कुमार मंगलम बिड़ला समिति रिपोर्ट, 2000:
    • रिपोर्ट की कुछ प्रमुख अनुशंसाएँ इस प्रकार हैं:
      • अध्यक्ष और CEO की पृथक भूमिकाओं का स्पष्टीकरण करना।
      • निदेशक मंडल में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति करना। 
      • वित्तीय रिपोर्टिंग के अनुवीक्षण हेतु एक लेखापरीक्षा समिति की स्थापना करना।
      • कंपनियों को अपने वित्तीय तथा गैर-वित्तीय प्रदर्शन की जानकारी साझा करने की आवश्यकता।
      • निदेशकों तथा वरिष्ठ प्रबंधकों के लिये आचार संहिता की स्थापना।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
    • सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज़ लिमिटेड धोखाधड़ी (2009):
      • सत्यम के संस्थापक और अध्यक्ष, रामलिंग राजू ने कंपनी के वित्तीय विवरणों में फेर बदल कर प्रस्तुत करने तथा लेखांकन धोखाधड़ी में शामिल होने की बात स्वीकार की।
      • सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से सत्यम के बोर्ड और प्रबंधन का पुनर्गठन हुआ तथा सुदृढ़ निगमित शासन तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
    • SEBI बनाम सहारा (2012):
      • सहारा मामले में वैकल्पिक रूप से पूर्ण संपरिवर्तनीय डिबेंचर (Optionally Fully Convertible Debentures- OFCD) जारी करने को लेकर SEBI तथा सहारा ग्रुप के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा था।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने निवेशकों के हितों की रक्षा तथा प्रतिभूति कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया। इस निर्णय के परिणामस्वरूप कंपनी की धन जुटाने की प्रथाएँ प्रभावित हुईं।

आगे की राह

भारत में निगमित शासन के बहुमुखी पहलुओं को संबोधित करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कानूनी सुधार, नियामक संवर्द्धन तथा नैतिक व्यावसायिक प्रथाओं के प्रति सांस्कृतिक बदलाव शामिल है। निवेशकों के विश्वास को बनाए रखने तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये उभरते वैश्विक मानकों का निरंतर अनुवीक्षण एवं उनका अंगीकरण आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. सत्याम् कलंकपूर्ण कार्य (2009) के प्रकाश में कॉर्पोरेट शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिये किये गए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. 'शासन', 'सुशासन' और 'नैतिक शासन' शब्दों से आप क्या समझते हैं? (2016)

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