जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित नैतिक मुद्दे | 17 Dec 2024

मुख्य परीक्षा के लिये: जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न तरीकों से संबंधित नैतिक चिंताएँ

जैव प्रौद्योगिकी क्या है?

जैव प्रौद्योगिकी वैज्ञानिक प्रगति के मामले में अग्रणी है, जो चिकित्सा, कृषि और पर्यावरणीय स्थिरता में परिवर्तनकारी समाधान प्रस्तुत करती है। हालाँकि, स्टेम सेल अनुसंधान , क्लोनिंग और जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसे जैव प्रौद्योगिकी विधियों का तीव्रता से विकास और अनुप्रयोग महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताओं को जन्म देता है। 

  • जैव प्रौद्योगिकी एक तीव्रता से विकसित हो रहा क्षेत्र है जिसका स्वास्थ्य सेवा, कृषि और पर्यावरण प्रबंधन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जबकि इसकी प्रगति महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है, यह महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताएँ भी उत्पन्न करती है जिनकी सावधानीपूर्वक जाँच की आवश्यकता है। 

जैव प्रौद्योगिकी से जुड़ी नैतिक चिंताएँ क्या हैं?

स्टेम सेल अनुसंधान

  • परिचय: 
    • स्टेम सेल अनुसंधान स्वास्थ्य, रोग के बारे में जाँच एवं नवीन उपचार विकसित करने के लिये जीवन के बुनियादी निर्माण खंडों का अध्ययन करता है। स्टेम सेल रक्त संबंधी स्थितियों एवं कैंसर का उपचार कर सकते हैं  और अन्य रोगों में सहायता करने की उनकी क्षमता के लिये उनका अध्ययन किया जा रहा है।
  • संबंधित नैतिक मुद्दे: 
    • भ्रूण का विनाश: स्टेम सेल अनुसंधान में सबसे विवादास्पद नैतिक मुद्दों में से एक मानव भ्रूण का विनाश है ।
      • समर्थकों का तर्क है कि भ्रूण पर शोध से महत्त्वपूर्ण चिकित्सा उपलब्धियाँ हासिल हो सकती हैं, जबकि विपक्षी भ्रूण को नष्ट करने को नैतिक रूप से जीवन समाप्त करने के बराबर मानते हैं।
      • यू.एस. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) की रिपोर्ट के अनुसार स्टेम सेल अनुसंधान में पार्किंसंस रोग, मधुमेह एवं रीढ़ की हड्डी की चोटों जैसे रोगों के उपचार की क्षमता है । हालाँकि, भ्रूण के विनाश के नैतिक निहितार्थों के कारण भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उपयोग विवादास्पद बना हुआ है।
    • सूचित सहमति एवं उपयोग: स्टेम कोशिकाएँ प्राप्त करने की प्रक्रिया में अक्सर दाताओं की सहमति की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से उन मामलों में जहाँ इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) से प्राप्त अन्य भ्रूणों का उपयोग किया जाता है। 
      • इस बात को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं कि क्या दाताओं को इस बारे में पूरी जानकारी दी जाती है कि उनके भ्रूण का उपयोग किस प्रकार किया जाएगा तथा वंचित समुदाय के शोषण की संभावनाएँ विद्यमान है।
      • बेलमोंट रिपोर्ट जैसे नैतिक ढाँचे, सूचित सहमति और व्यक्तियों के प्रति सम्मान के महत्त्व पर बल देते हैं तथा यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या वर्तमान प्रथाएँ दाता के  अधिकारों की पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करती है।
        • बेलमोंट रिपोर्ट मानव विषयों से संबंधित अनुसंधान के लिये नैतिक सिद्धांतों और दिशानिर्देशों का एक समूह है, जिसे वर्ष 1978 में  अमेरिका स्थित निकाय राष्ट्रीय जैव चिकित्सा और व्यवहारिक अनुसंधान मानव विषयों के संरक्षण आयोग द्वारा बनाया गया था।
        • रिपोर्ट के तीन बुनियादी नैतिक सिद्धांत हैं व्यक्तियों के प्रति सम्मान, परोपकार एवं न्याय इसका उद्देश्य मानव विषयों के साथ अनुसंधान से उत्पन्न होने वाले नैतिक मुद्दों को हल करने में साहयता करना है, पिछले कोड की सीमाओं को पहचानना और अनुसंधान के लिये नियम स्थापित करने का आधार प्रदान करना है।
    • समानता एवं पहुँच: स्टेम सेल थेरेपी का व्यावसायीकरण समान पहुँच के बारे में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न करता है। उन्नत चिकित्सा मुख्य रूप से संपन्न व्यक्तियों के लिये सुलभ हो सकती है, जिससे मौजूदा स्वास्थ्य असमानताएँ और बढ़ सकती हैं।
      • अमेरिका स्थित जर्नल हेल्थ अफेयर्स में प्रकाशित 2019 के एक अध्ययन से संकेत मिलता है कि उन्नत चिकित्सा उपचारों तक पहुँच प्राय: सामाजिक-आर्थिक स्थिति से जुड़ी होती है, जो जैव-प्रौद्योगिकीय नवाचारों के उचित वितरण को सुनिश्चित करने वाली नीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।

क्लोनिंग

परिचय:

  • क्लोनिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति के आनुवंशिक ब्लूप्रिंट की प्रतिकृति बनाकर किसी जीव की आनुवंशिक रूप से समान प्रतियाँ बनाई जाती हैं । 
  • ये क्लोन अलैंगिक रूप से उत्पन्न होते हैं तथा शारीरिक और आनुवंशिक संरचना दोनों में अपने जनक के समान होते हैं।

प्रकार:

  • प्रजनन क्लोनिंग:
    • यह एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग एक ऐसे जीव को विकास के लिये किया जाता है जो आनुवंशिक रूप से दाता जीव के समान होता है। इसमें एक 
    • कायिक कोशिका के नाभिक को एक नाभिक रहित अंड कोशिका में स्थानांतरित करना शामिल है, जिसे फिर एक सरोगेट माँ में प्रत्यारोपित किया जाता है।
    • उदाहरण: सबसे प्रसिद्ध उदाहरण डॉली द शीप है, जो सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (SCNT) का उपयोग करके क्लोन किया गया पहला स्तनपायी जीव है।
  • चिकित्सीय क्लोनिंग:
    • इसका उद्देश्य क्लोन भ्रूण तैयार करके और उससे स्टेम कोशिकाओं को एकत्रित करके अनुसंधान या चिकित्सा उपचार के लिये भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उत्पादन करना है।
    • इसका उद्देश्य पार्किंसंस , अल्जाइमर और मधुमेह जैसी अपक्षयी रोग के लिये उपचार विकसित करना या क्षतिग्रस्त ऊतकों को पुनर्जीवित करना है।
    • उदाहरण: क्लोन भ्रूण से प्राप्त स्टेम कोशिकाओं का पुनर्योजी चिकित्सा में उनकी क्षमता के लिये अध्ययन किया गया है, जैसे कि रोगी की विशिष्ट स्टेम कोशिकाओं का विकास।
  • जीन क्लोनिंग (आणविक क्लोनिंग):
    • यह एक विशिष्ट जीन या डीएनए खंड की कई प्रतियाँ बनाने की प्रक्रिया है । इसमें वांछित डीएनए को एक वेक्टर (जैसे प्लाज़्मिड) में स्थापित कर इसे मेजबान कोशिकाओं, प्राय: बैक्टीरिया में डालना शामिल है, जहाँ यह प्रतिकृति निर्मित करता है।
    • इसका उपयोग आनुवंशिक अनुसंधान, जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में प्रोटीन उत्पादन, जीन का अध्ययन करने या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के निर्माण के लिये व्यापक रूप से किया जाता है।
    • उदाहरण : इंसुलिन उत्पादन एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ मधुमेह रोगियों के लिये बड़े पैमाने पर इंसुलिन का उत्पादन करने के लिये मानव इंसुलिन जीन को ई. कोलाई बैक्टीरिया में क्लोन किया जाता है ।
  • भ्रूण क्लोनिंग (कृत्रिम जुड़वाँ):
    • यह एक आरंभिक अवस्था वाले भ्रूण (ब्लास्टोसिस्ट) को दो या अधिक समान भ्रूणों में विभाजित करने की प्रक्रिया है। प्रजनन क्लोनिंग के विपरीत, यह कृत्रिम जुड़वाँ पैदा करने की प्राकृतिक प्रक्रिया की नकल करता है ।
    • इसका उपयोग अधिकांश कृषि एवं पशुधन प्रजनन में वांछनीय गुणों वाले पशुओं के जन्म  के लिये किया जाता है।
    • उदाहरण: कृत्रिम जुड़वाँ का उपयोग मवेशियों के क्लोन बनाने के लिये किया गया है, जैसे दुग्ध उत्पादन या रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिये बेहतर आनुवंशिक गुणों वाले समान संतति के जन्म के लिये किया जाता है।

संबद्ध नैतिक मुद्दे:

  • पहचान एवं वैयक्तिकता:
    • क्लोनिंग, विशेष रूप में  प्रजनन क्लोनिंग, पहचान के बारे में गंभीर नैतिक प्रश्न उत्पन्न  करती है। यदि  कोई क्लोन आनुवंशिक रूप से किसी दूसरे व्यक्ति के समान है, तो व्यक्तिगत पहचान, व्यक्तित्त्व और अधिकारों से जुड़े मुद्दे गंभीर हो जाते हैं।
    • डेविड ह्यूम जैसे दार्शनिकों ने तर्क दिया है कि व्यक्तित्त्व केवल आनुवंशिकी से ही नहीं बल्कि अनुभवों और व्यक्तिगत विकास से भी परिभाषित होता है। क्लोनिंग किसी व्यक्ति की विशिष्टता को कमज़ोर कर सकती है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: 
    • क्लोनिंग से न केवल क्लोन किये गए व्यक्ति को बल्कि सरोगेट माँ को भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम होता है। क्लोन किए गए जानवरों में अक्सर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ देखने को मिलती हैं और क्लोनिंग की सफलता दर कम होती है।
    • उदाहरण के लिये, डॉली भेड़, पहली क्लोन स्तनपायी, सामान्य भेड़ों की तुलना में कम उम्र तक जीवित रही, अपनी मृत्यु से पहले उसे कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। ऐसे परिणाम क्लोनों के लिये में नैतिक प्रश्न उठाते हैं।
  • पशुओं का शोषण:
    • कृषि प्रयोजनों के लिये क्लोनिंग के उपयोग से पशुओं का शोषण हो सकता है, जिससे उनके उपचार और कल्याण के बारे में नैतिक चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, क्लोनिंग प्रक्रियाओं में सरोगेट जानवरों को अक्सर कई आक्रामक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिससे महत्त्वपूर्ण तनाव और स्वास्थ्य ज़ोखिम उत्पन्न होते हैं। उदाहरण के लिये, पुरस्कार विजेता घोड़ों की क्लोनिंग में, भ्रूण प्रत्यारोपण के लिये सरोगेट घोड़ों का बार-बार उपयोग किया जाता है,जिससे उनकी शारीरिक एवं भावनात्मक संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • क्लोनिंग के कारण अक्सर पशुओं में विफलता, गर्भपात और मृत जन्म की दर बहुत अधिक होती है । उदाहरण के लिये, डॉली नामक भेड़ की क्लोनिंग की प्रक्रिया में 277 प्रयास किये गए, जिसके परिणामस्वरूप 29 व्यवहार्य भ्रूण प्राप्त हुए, जिनमें से केवल एक ही स्वस्थ मेमने के रूप में विकसित हुआ, जो इस प्रक्रिया में शामिल सरोगेट जानवरों और भ्रूणों पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है।
    • पशु कल्याण संगठनों ने यह भी तर्क दिया है कि क्लोनिंग से कृषि दक्षता की खोज में पीड़ा और शोषण बढ़ सकता है, जिससे ऐसी प्रथाओं के नैतिक औचित्य को चुनौती मिलती है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग

  • परिचय:
    • आनुवंशिक इंजीनियरिंग एक जीव की आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन प्राय: वांछित लक्षणों या विशेषताओं को प्राप्त करने के लिये विशिष्ट जीन को सम्मिलित कर या हटाने की प्रक्रिया है। 
    • इसमें कृषि, चिकित्सा और पर्यावरण संरक्षण के लिये अपार संभावनाएँ हैं ।

आनुवंशिक इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियाँ:

    • CRISPR/Cas9 प्रौद्योगिकी
      • CRISPR-Cas9  एक जीन-संपादन तकनीक है जो जीवित जीवों के डीएनए में सटीक संशोधन करने में सक्षम बनाता है।
      • इसमें दो प्रमुख घटक शामिल हैं:
        • CRISPR : एक मार्गदर्शक RNA जो Cas9 एंजाइम को एक विशिष्ट DNA अनुक्रम की ओर निर्देशित करता है।
        • Cas9: एक आणविक "कैंची" जो लक्षित स्थान पर डीएनए को काटती है।
  • अनुप्रयोग:
    • कृषि: कीट प्रतिरोधी फसलों का विकास करना तथा फसल उपज को बढ़ाना।
      • उदाहरण: जीवाणुजनित रोगों से बचाव के लिये CRISPR का उपयोग करके चावल को संपादित किया गया ।
    • चिकित्सा : आनुवंशिक विकारों और संक्रामक रोगों का उपचार।
    • संरक्षण: विलुप्त प्रजातियों को पुनर्जीवित करना या संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाना।
      • उदाहरण : वुली मैमथ  के समान गुणों के लिये हाथी के डीएनए को संपादित करने के लिये CRISPR का उपयोग करने का प्रयास।
  • नैतिक चिंताएँ:
    • अनपेक्षित उत्परिवर्तन (ऑफ-टारगेट प्रभाव) का ज़ोखिम।
    • जर्मलाइन संपादन और डिज़ाइनर बेबी पर चिंताएँ ।
  • जीन साइलेंसिंग/ जीन नॉकडाउन
    • जीन साइलेंसिंग या नॉकडाउन से तात्पर्य ऐसी तकनीकों से है जिनका उपयोग किसी विशिष्ट जीन की अभिव्यक्ति में अवरोध या कम करने के लिये किया जाता है
    • इसे आरएनए इंटरफेरेंस (आरएनएआई), एंटीसेन्स ऑलिगोन्युक्लियोटाइड्स या क्रिस्पर इंटरफेरेंस CRISPRi) जैसे तंत्रों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
  • अनुप्रयोग:
    • रोग उपचार: रोग प्रक्रियाओं में योगदान देने वाले जीन को उपचारित करना।
      • उदाहरण : पैटिसिरन जैसी आरएनएआई-आधारित दवाएँ, जो वंशानुगत ट्रांसथायरेटिन-मध्यस्थता एमिलॉयडोसिस के उपचार के लिये अनुमोदित हैं, दोषपूर्ण प्रोटीन के उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार जीन का उपचार करना।
    • अनुसंधान: जीन अभिव्यक्ति के प्रभावों का अवलोकन करके जीन संपादन को समझना।
      • उदाहरण: यह जाँचने के लिये कि ट्यूमर सप्रेसर जीन कैंसर में किस प्रकार योगदान करते हैं, जीन नॉकडाउन के लिये चूहों का उपयोग किया गया।
    • कृषि : कीटों और रोगाणुओं के प्रति प्रतिरोधी फसलें तैयार करना
  • नैतिक एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • अनपेक्षित जीन अंतःक्रिया की संभावना।
    • पर्यावरणीय ज़ोखिम जैसे कि कृषि में परिवर्तित पारिस्थितिक संतुलन।
  •  संबद्ध नैतिक चिंताएँ:
    • भगवान की भूमिका निभाना: 
      • जेनेटिक इंजीनियरिंग जीवन रूपों को बदलने में मानवता की भूमिका के बारे में चिंताएँ बढ़ाती है। जीन में परिवर्तन करने की क्षमता को प्राकृतिक सीमाओं का अतिक्रमण माना जा सकता है।
      • आनुवंशिक संशोधन के माध्यम से "डिजाइनर बेबी" पैदा करने की संभावना से युजनिक्स और सामाजिक असमानता से संबंधित नैतिक चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। विशिष्ट लक्षणों का चयन करने की क्षमता सामाजिक असमानताओं को मजबूत कर सकती है, जिससे उन लोगों के बीच विभाजन उत्पन्न हो सकता है जो आनुवंशिक संवर्द्धन का खर्च उठा सकते हैं एवं जो नहीं उठा सकते।
      • इससे जैविक प्रक्रियाओं में वैज्ञानिक हस्तक्षेप की सीमाओं के साथ-साथ प्रकृति की नैतिक सत्ता पर भी प्रश्नचिह्न लग जाता है।
      • अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस की 2020 की रिपोर्ट आनुवंशिक संशोधन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के प्रति संकेतित करती है, तथा आनुवंशिक रूप से स्तरीकृत समाज के निर्माण के ज़ोखिम पर बल देती है।
  • सूचित सहमति:
    • आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों की जटिलता, आनुवंशिक संशोधनों के निहितार्थों के बारे में व्यक्तियों की समझ में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
    • अतः सूचित सहमति सुनिश्चित करना, विशेष रूप से आनुवंशिक परीक्षण और उपचारों में महत्त्वपूर्ण है। व्यक्तियों को इसमें शामिल ज़ोखिमों और लाभों को पूर्ण रूप से समझना चाहिये।
  • जैवविविधता एवं पारिस्थितिक प्रभाव:
    • कृषि में जेनेटिक इंजीनियरिंग, खास तौर पर का इस्तेमाल पर्यावरण से जुड़े नैतिक मुद्दों को जन्म देता है। पारिस्थितिकी तंत्र में GMO के छोड़े जाने से अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, जिसमें जैवविविधता का संकट और प्रतिरोधी कीटों का उभरना शामिल है।
    • कृषि में आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा पर्यावरणीय नैतिक चिंताएँ सामने आती हैं, विशेषकर जब आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) के उपयोग की बात आती है। पारिस्थितिकी तंत्र में जीएमओ के प्रवेश के अनपेक्षित परिणामों में प्रतिरोधी कीटों की स्थापना एवं जैवविविधता की क्षति शामिल हो सकती है।
    • पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण करना तथा आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) के दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना एक नैतिक जिम्मेदारी है।
    • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) के दीर्घकालिक पारिस्थितिक प्रभावों के संबंध में चिंता प्रकट की है तथा इनके व्यापक रूप से अपनाए जाने से पहले गहन ज़ोखिम आकलन की सिफारिश की है।
  • समानता एवं पहुँच:
    • आनुवंशिक इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकियाँ मौजूदा असमानताओं में वृद्धि कर सकती हैं, क्योंकि इन उन्नतियों तक पहुँच केवल धनी व्यक्तियों या राष्ट्रों तक ही सीमित हो सकती है।
    • आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों तक न्यायसंगत पहुँच सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है, ताकि उन लोगों के बीच विभाजन को रोका जा सके जो संवर्द्धन का खर्च उठा सकते हैं और जो नहीं उठा सकते।
    • आनुवंशिक जानकारी के दुरुपयोग की संभावना रोज़गार, बीमा और सामाजिक सेवाओं में भेदभाव की चिंता को जन्म देती है।

आगे की राह

  • नैतिक दिशानिर्देश स्थापित करना: व्यापक नैतिक ढाँचे में मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान, सूचित सहमति और जैव प्रौद्योगिकी नवाचारों तक न्यायसंगत पहुँच पर जोर दिया जाना चाहिये।
    • वर्ष 2010 में अपनाए गए नागोया प्रोटोकॉल का उद्देश्य आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों के निष्पक्ष और न्यायसंगत बंटवारे को बढ़ावा देना है।
  • स्वतंत्र अनुसंधान में निवेश : स्वतंत्र अनुसंधान दीर्घकालिक प्रभावों और अनपेक्षित परिणामों का मूल्यांकन करने में सहायता कर करता है, जिससे जिम्मेदार प्रगति सुनिश्चित होती है। पारदर्शी अनुसंधान अभ्यास जनता के विश्वास को बढ़ावा देते हैं और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाते हैं
  • कड़े सुरक्षा उपायों का कार्यान्वयन : जोखिमों को न्यूनतम करने और हानिकारक परिणामों को रोकने के लिये मजबूत सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किये जाने चाहिये। 
    • मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा के लिये आनुवंशिक इंजीनियरिंग में जिम्मेदार कार्यप्रणालियाँ आवश्यक हैं।
  • भेदभाव को रोकना: विनियमों में आनुवंशिक भेदभाव सहित भेदभावपूर्ण उद्देश्यों के लिये जैव प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग पर रोक लगाई जानी चाहिये। 
    • सख्त भेदभाव-विरोधी नीतियाँ आनुवंशिक इंजीनियरिंग के नैतिक और न्यायसंगत अनुप्रयोग को सुनिश्चित कर सकती हैं।
  • समतामूलक पहुँच सुनिश्चित करना: असमानताओं से बचने और सामाजिक लाभ को अधिकतम करने के लिये जैव-प्रौद्योगिकीय नवाचार सभी के लिये सुलभ होने चाहिये, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो ।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: जैव प्रौद्योगिकी चुनौतियों की वैश्विक प्रकृति को देखते हुए, सामंजस्यपूर्ण नैतिक मानक महत्त्वपूर्ण हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे संगठनों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सीमा पार के मुद्दों को संबोधित कर सकता है और जैव प्रौद्योगिकी तक समान पहुँच को बढ़ावा दे सकता है ।
  • सतत विकास सुनिश्चित करना : जैव प्रौद्योगिकी सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में योगदान दे, यह सुनिश्चित करने में नैतिक विचार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नैतिक दुविधाओं को संबोधित करके, जैव प्रौद्योगिकी खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य संकट और पर्यावरणीय स्थिरता जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में सहायता कर सकती है ।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स 

Q. डॉ. श्रीनिवासन एक प्रतिष्ठित जैव प्रौद्योगिकी कंपनी के लिये काम करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, जो फार्मास्यूटिकल्स में अपने अत्याधुनिक शोध के लिये जानी जाती है। डॉ. श्रीनिवासन एक नई दवा पर काम करने वाली एक शोध टीम का नेतृत्त्व कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य एक नए वायरल संक्रामक रोग के तीव्रता से फैलने वाले संस्करण का उपचार करना है। यह रोग वैश्विक स्तर पर तीव्रता से प्रसारित कर रही है और देश में रिपोर्ट किये गए मामले बढ़ रहे हैं। डॉ. श्रीनिवासन की टीम पर दवा के लिये परीक्षणों में तीव्रता लाने अत्यधिक दबाव है क्योंकि इसके लिये एक महत्त्वपूर्ण बाजार है और कंपनी बाजार में पहले-प्रवर्तक के रूप में लाभ उठाना चाहती है। एक टीम मीटिंग के दौरान, कुछ वरिष्ठ टीम के सदस्य दवा के लिये नैदानिक ​​परीक्षणों में तीव्रता लाने और अपेक्षित अनुमोदन प्राप्त करने के लिये कुछ शॉर्टकट सुझाते हैं। इनमें कुछ नकारात्मक परिणामों को बाहर करने के लिये डेटा में हेरफेर करना और सूचित सहमति की प्रक्रिया को छोड़कर चुनिंदा सकारात्मक परिणामों की रिपोर्ट करना और अपने स्वयं के घटक विकसित करने के बजाय प्रतिद्वंद्वी कंपनी द्वारा पहले से पेटेंट किये गए यौगिकों का उपयोग करना शामिल है। डॉ. श्रीनिवासन ऐसे शॉर्टकट लेने में सहज नहीं हैं, साथ ही उन्हें एहसास है कि इन साधनों का उपयोग किये बिना लक्ष्यों को पूर्ण करना असंभव है। (2024)

(क) ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
(ख) इसमें शामिल नैतिक प्रश्नों के आलोक में अपने विकल्पों और परिणामों की जाँच कीजिये। 
(ग) ऐसे परिदृश्य में डेटा संबंधी नैतिकता और औषधि संबंधी नैतिकता किस प्रकार मानवता को बचा सकती है?