शासन व्यवस्था
न्याय प्रणाली में DNA प्रोफाइलिंग
- 12 Aug 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA), DNA प्रोफाइलिंग, मोनोज़ायगोटिक ट्विन्स, भारतीय विधि आयोग, अनुच्छेद 20(3), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 मेन्स के लिये:DNA प्रोफाइलिंग और चुनौतियाँ, न्यायिक प्रणाली में उभरती प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
जून 2024 में लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के तहत दोषसिद्धि को पलटने के मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय के कारण कानूनी मामलों में डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) प्रोफाइलिंग की विश्वसनीयता पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है।
- न्यायालय ने दोषसिद्धि के लिये केवल DNA साक्ष्य पर निर्भर न होने के महत्त्व पर ज़ोर देने के साथ ही पुष्टि करने वाले साक्ष्य की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
DNA प्रोफाइलिंग क्या है?
- रिचय: DNA प्रोफाइलिंग या DNA फिंगरप्रिंटिंग में किसी व्यक्ति के DNA के विशिष्ट क्षेत्रों का विश्लेषण करके उसकी पहचान की जाती है। जबकि मानव DNA 99.9% समान है, शेष 0.1% में शॉर्ट टेंडम रिपीट (Short Tandem Repeats- STR) नामक अद्वितीय/विशिष्ट अनुक्रम होता है, जो फोरेंसिक जाँच के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- आनुवांशिक कोड के रूप में DNA: DNA यूकेरियोटिक कोशिकाओं (जंतु और पादप) के नाभिक और प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं (बैक्टीरिया) के कोशिका द्रव्य में पाया जाने वाला आनुवंशिक पदार्थ है। इसकी संरचना एक डबल हेलिक्स के रूप में होती है।
- यह गुणसूत्रों के 23 युग्म में व्यवस्थित होता है, जो माता-पिता दोनों से समान रूप से वंशागत होते हैं, जो एडेनिन (A), गुआनिन (G), थाइमिन (T) और साइटोसिन (C) नामक चार न्यूक्लियोटाइड के अनुक्रमों में आनुवंशिक सूचना को एनकोड करते हैं।
- DNA को विभिन्न जैविक पदार्थों जैसे रक्त, लार, वीर्य और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों से निकाला जा सकता है। DNA प्रोफाइल बनाने के लिये इन नमूनों को एकत्र किया जाता है और उनका विश्लेषण किया जाता है।
- शारीरिक संपर्क के दौरान पीछे छूटे (बचे) DNA, जिसे स्पर्श DNA/टच DNA के रूप में जाना जाता है, प्रायः कम मात्रा में होते हैं और संभावित संदूषण के कारण प्रोफाइलिंग के लिये आदर्श नहीं होते हैं।
- DNA प्रोफाइलिंग में विशिष्ट क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाता है जिन्हें जेनेटिक मार्कर कहा जाता है, जिसमें मोनोज़ायगोटिक ट्विन्स (समान जुड़वाँ) को छोड़कर व्यक्तियों के बीच STR इनकी परिवर्तनशीलता के कारण अधिमान्य मार्कर होते हैं।
- DNA प्रोफाइलिंग की प्रक्रिया:
- पृथक्करण: एकत्रित जैविक नमूनों से DNA का निष्कर्षण।
- शुद्धिकरण और परिमाणीकरण: यह सुनिश्चित करना कि DNA संदूषकों से मुक्त है और इसकी सांद्रता का निर्धारण करना।
- प्रवर्द्धन: विश्लेषण के लिये पर्याप्त DNA उत्पन्न करने के लिये चयनित आनुवंशिक मार्करों का प्रतिकृतियन करना।
- विज़ुअलाइज़ेशन और जीनोटाइपिंग: DNA मार्करों के विशिष्ट अनुक्रमों की पहचान करना।
- सांख्यिकीय विश्लेषण एवं व्याख्या: DNA प्रोफाइल की तुलना करना और मिलान की संभावना की गणना करना।
- विशेष स्थितियाँ:
- खराब नमूनों के मामलों में, miniSTRs (छोटे DNA टुकड़े) का उपयोग किया जा सकता है क्योंकि वे पर्यावरणीय तनाव से बचने की अधिक संभावना रखते हैं। इसके अतिरिक्त, माइटोकॉन्ड्रियल DNA (mtDNA) मातृ वंश का पता लगाने के लिये उपयोगी है और इसका उपयोग अक्सर तब किया जाता है जब नाभिकीय DNA अपर्याप्त होता है।
कानूनी कार्यवाहियों में DNA प्रोफाइलिंग का उपयोग कैसे किया जाता है?
- मिलान प्रक्रिया: फोरेंसिक मामलों में साक्ष्य से प्राप्त DNA प्रोफाइल की तुलना ज्ञात या संदर्भ नमूनों से की जाती है। इस तुलना के परिणाम तीन संभावित परिणाम दे सकते हैं:
- मिलान: DNA प्रोफाइल में कोई अंतर नहीं है, जो एक सामान्य स्रोत का संकेत देता है।
- बहिष्करण: प्रोफाइल अलग-अलग हैं, जो अलग-अलग स्रोतों का संकेत देते हैं।
- अनिर्णायक: डेटा स्पष्ट परिणाम प्रदान नहीं करता है।
- सांख्यिकीय समर्थन: यदि प्रोफाइल सुमेलित होती हैं तो भी यह निर्णायक रूप से पहचान साबित नहीं करता है; इसके बजाय विशेषज्ञ एक "यादृच्छिक घटना अनुपात" प्रदान करते हैं, जो यह दर्शाता है कि जनसंख्या में कितनी बार समान प्रोफाइल दिखाई दे सकते हैं।
- कानूनी व्याख्या: मद्रास उच्च न्यायालय और भारत का विधि आयोग ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि DNA मिलान निर्णायक रूप से पहचान साबित नहीं करता है।
- "यादृच्छिक घटना अनुपात" यह इंगित करता है कि जनसंख्या में एक विशेष DNA प्रोफाइल कितनी बार दिखाई दे सकती है, जो उचित संदेह से परे अपराध स्थापित करने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकता है।
भारत में DNA प्रोफाइलिंग के संबंध में कानूनी प्रावधान क्या हैं?
- कानूनी ढाँचा:
- भारतीय संविधान: अनुच्छेद 20(3) व्यक्तियों को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिये मजबूर किये जाने से बचाता है तथा आत्म-दोषी ठहराए जाने के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है तथा अनाधिकृत हस्तक्षेप पर रोक लगाता है।
- दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC): धारा 53 जाँच एजेंसी के अनुरोध पर संदिग्धों की DNA प्रोफाइलिंग को अधिकृत करती है। धारा 53A विशेष रूप से बलात्कार के संदिग्धों के लिये DNA प्रोफाइलिंग की अनुमति देती है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 ने 1973 की आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) को प्रतिस्थापित कर दिया।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872: धारा 45-51 न्यायालय में DNA साक्ष्य सहित विशेषज्ञ साक्ष्य की स्वीकार्यता से संबंधित हैं।
- भारतीय संविधान: अनुच्छेद 20(3) व्यक्तियों को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिये मजबूर किये जाने से बचाता है तथा आत्म-दोषी ठहराए जाने के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- न्यायिक उदाहरण:
- पट्टू राजन बनाम टी.एन. राज्य 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि DNA साक्ष्य का सत्यापनात्मक मूल्य मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा रिकॉर्ड पर उपलब्ध अन्य साक्ष्यों को दिये गए महत्त्व, चाहे वे विपरीत हों या पुष्टिकारक, के आधार पर भिन्न-भिन्न होता है।
- उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि DNA साक्ष्य, यद्यपि अधिकाधिक सटीक और विश्वसनीय होते जा रहे हैं, लेकिन वे अचूक नहीं हैं तथा ऐसे साक्ष्य के अभाव में किसी पक्ष के विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिये, विशेषकर तब जब अन्य ठोस एवं विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद हों।
- शारदा बनाम धर्मपाल, 2003: सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किये बिना DNA प्रोफाइलिंग सहित चिकित्सा परीक्षाओं को अनिवार्य बनाने के वैवाहिक न्यायालयों के अधिकार को बरकरार रखा।
- दास @ अनु बनाम केरल राज्य, 2022: केरल उच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 20(3) के तहत आत्म-दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अधिकार केवल साक्ष्य पर लागू होता है और आपराधिक मामले विशेषकर यौन अपराध में DNA नमूने लेना इस अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि CrPC की धारा 53A पुलिस को नमूने एकत्र करने के लिये आरोपी को चिकित्सक के पास भेजने का अधिकार देती है।
- पट्टू राजन बनाम टी.एन. राज्य 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि DNA साक्ष्य का सत्यापनात्मक मूल्य मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा रिकॉर्ड पर उपलब्ध अन्य साक्ष्यों को दिये गए महत्त्व, चाहे वे विपरीत हों या पुष्टिकारक, के आधार पर भिन्न-भिन्न होता है।
- विधि आयोग की सिफारिशें:
- भारतीय विधि आयोग की 271वीं रिपोर्ट (2017) में DNA प्रोफाइलिंग के लिये व्यापक कानून का प्रस्ताव दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप DNA प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 तैयार हुआ। दुरुपयोग को रोकने और DNA प्रोफाइलिंग को केवल कानूनी उपयोग तक सीमित रखने हेतु एक अद्वितीय नियामक ढाँचे का आग्रह किया गया।
DNA प्रोफाइलिंग की सीमाएँ क्या हैं?
- पर्यावरणीय तनाव और नमूने का क्षरण: पर्यावरणीय कारकों के कारण DNA को नुकसान पहुँच सकता है, जिसके परिणामस्वरूप नमूने अधूरे या क्षीण हो सकते हैं।
- इन मामलों में miniSTRs और mtDNA विश्लेषण जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है, लेकिन फिर भी उनमें सीमाएँ हैं।
- जटिलता और विश्वसनीयता: DNA प्रोफाइलिंग एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिये सटीक तकनीकों और स्थितियों की आवश्यकता होती है। संदूषण, अनुचित हैंडलिंग या परीक्षण में देरी जैसे मुद्दे परिणामों की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकते हैं।
- लागत: DNA विश्लेषण महंगा हो सकता है, जिससे कुछ मामलों में इसकी पहुँच सीमित हो सकती है।
- कानूनी व्याख्या: जबकि DNA साक्ष्य एक शक्तिशाली उपकरण है, इसे अचूक (हमेशा प्रभावी) के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। न्यायालयों को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण निर्णय सुनिश्चित करने के लिये अन्य पुष्टि या विरोधाभासी साक्ष्य के साथ DNA साक्ष्य पर विचार करना चाहिये।
- मौजूदा कानूनी ढाँचा DNA साक्ष्य को मान्यता देता है, लेकिन इसमें व्यापक विनियामक संरचना का अभाव है।
- DNA प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 का उद्देश्य इन कमियों को दूर करना है। संसद में कई बार पेश किये गए DNA विधेयक को DNA प्रौद्योगिकी की सटीकता, व्यक्तिगत गोपनीयता के लिये संभावित खतरों और दुरुपयोग की संभावना के आधार पर विरोध का सामना करना पड़ा।
आगे की राह
- सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ाना: DNA प्रोफाइलिंग तकनीकों को बेहतर बनाने और नमूने के क्षरण एवं संदूषण से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिये अनुसंधान तथा विकास में निवेश करना। प्रक्रियाओं को मानकीकृत करना और फोरेंसिक प्रयोगशालाओं में गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करना।
- निष्पक्ष कानूनी व्यवहार सुनिश्चित करना: दोषसिद्धि में साक्ष्य की पुष्टि करने के महत्त्व पर ज़ोर देना। न्यायपूर्ण और निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित करने हेतु न्यायालय में DNA साक्ष्य की स्वीकार्यता और महत्त्व के लिये दिशा-निर्देश विकसित करना।
- DNA प्रौद्योगिकी विधेयक: DNA प्रौद्योगिकी विधेयक, 2019 का उद्देश्य दुरुपयोग को रोकने और DNA प्रोफाइलिंग का उचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिये एक विनियामक ढाँचा तैयार करना है। गोपनीयता संबंधी चिंताओं को दूर करने और मज़बूत सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के लिये इस विधेयक पर पुनः विचार करने तथा संभावित रूप से संशोधन करने की आवश्यकता है।
- कानूनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता: जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये DNA साक्ष्य को एकत्रित करने, उसका विश्लेषण करने और न्यायालय में प्रस्तुत करने में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: दोषसिद्धि के लिये केवल DNA प्रोफाइलिंग पर निर्भर रहने से संभावित समस्याएँ क्या हैं और न्यायिक प्रक्रिया में न्याय सुनिश्चित करने हेतु इन मुद्दों को कैसे कम किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: DNA बारकोडिंग किसका उपसाधन हो सकता है?
उपर्युक्त कथनों में कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 प्रश्न: विज्ञान में हुए अभिनव विकासों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही नहीं है? (2019) (a) विभिन्न जातियों की कोशिकाओं से लिये गए DNA के खंडों को जोड़कर प्रकार्यात्मक गुणसूत्र रचे जा सकते हैं। उत्तर: (a) |