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पार्किंसंस रोग

  • 20 Apr 2024
  • 5 min read

स्रोत: द हिंदू 

वैज्ञानिकों ने पार्किंसंस रोग से जुड़ा एक नया आनुवंशिक संस्करण खोजा है, जो पार्किंसनिज़्म फैमिली के विभिन्न रूपों की उद्विकासी जड़ों (Evolutionary Roots) में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जो स्थिति की बेहतर समझ और उपचार का मार्ग प्रशस्त करता है।

पार्किंसंस रोग क्या है?

  • परिचय: पार्किंसंस रोग एक प्रगतिशील न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जो चलने-फिरने में बाधा उत्पन्न  करता है और समय के साथ गतिहीनता एवं मनोभ्रंश का कारण बन सकता है।
    • यह बीमारी आमतौर पर वृद्ध लोगों में होती है, लेकिन युवा लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं।
    • विगत 25 वर्षों में इस रोग का प्रचलन दोगुना हो गया है। पार्किंसंस रोग से ग्रसित लोगों में वैश्विक स्तर की तुलना में भारत का हिस्सा लगभग 10% है।
  • कारण: पार्किंसंस रोग का सटीक कारण अभी तक पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसमें आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन शामिल है।
    • इसकी विशेषता मुख्य रूप से मस्तिष्क में डोपामाइन-उत्पादक न्यूरॉन्स का नुकसान है, जिससे संचारी तंत्रिका संबंधी तथा गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी लक्षण उत्पन्न होते हैं।
  • लक्षण: संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों में धीमी गति, कंपकंपी के साथ चलने में कठिनाई आदि शामिल हैं।
    • गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों में संज्ञानात्मकता, मानसिक स्वास्थ्य विकार, नींद की गड़बड़ी, दर्द तथा संवेदी समस्याएँ आदि शामिल हैं।
  • उपचार: पार्किंसंस रोग का कोई उपचार नहीं है, किंतु दवाओं, सर्जरी तथा पुनर्वास से विकारों  के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
    • लेवोडोपा अथवा कार्बिडोपा, एक संयोजन औषधि जो मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाती है, यह इसके उपचार की सबसे आम औषधि है।
  • विश्व पार्किंसंस दिवस: प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल को विश्व पार्किंसंस दिवस के रूप में मनाया जाता है।
    • इस दिन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पार्किंसंस रोग के बारे में जागरूकता तथा समझ को बढ़ाना है।

पार्किंसंस रोग को समझने में वर्तमान प्रमुख प्रगति क्या है?

  • पार्किंसंस को बेहतर ढंग से समझने के लिये आनुवंशिकीविद् एवं तंत्रिका विज्ञानी आनुवंशिक विविधताओं की खोज कर रहे हैं। जिसके अंर्तगत दो प्राथमिक दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है: लिंकेज विश्लेषण तथा जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS)।
    • लिंकेज विश्लेषण: वंशानुगत पार्किंसनिज़्म वाले दुर्लभ परिवारों पर ध्यान केंद्रित करता है, रोग से जुड़े जीन उत्परिवर्तन की पहचान करता है।
      • हाल के शोध ने विश्व स्तर पर कई परिवारों में पार्किंसंस से जुड़े RAB32 Ser71Arg नामक एक नए आनुवंशिक संस्करण की पहचान की है।
    • जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS): इसके तहत पार्किंसंस के रोगियों के साथ ही स्वस्थ व्यक्तियों के आनुवंशिक डेटा की तुलना की गई, जिसमें 92 से अधिक जीनोमिक स्थानों एवं संभावित रूप से पार्किंसंस के जोखिम से संबंधित 350 जीनों की पहचान की गई।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भावी माता-पिता के अंडे या शुक्राणु उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं में आनुवंशिक परिवर्तन लाया जा सकता है।
  2. किसी व्यक्ति के जीनोम को जन्म से पहले प्रारंभिक भ्रूण अवस्था में संपादित किया जा सकता है।
  3. मानव प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं को सुअर के भ्रूण में इंजेक्ट किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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