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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

खेलों में आनुवंशिक परीक्षण

  • 01 Aug 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक परीक्षण, विधियाँ, आनुवंशिक जानकारी और निजता, DNA परीक्षण।

मेन्स के लिये:

आनुवंशिक परीक्षण की आवश्यकताएँ, चिंताएँ, लाभ, हानि, अनुसंधान और विकास।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

पेरिस ओलंपिक- 2024 में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के क्रम में खेलों के आयोजन से पूर्व एथलीटों द्वारा आनुवंशिक परीक्षण को महत्त्व दिये जाने से खेलों में आनुवंशिक परीक्षण की प्रासंगिकता की ओर ध्यान आकर्षित हुआ है।

  • इस प्रवृत्ति के कारण आनुवंशिक परीक्षण से संबंधित संभावित लाभों और नैतिक चिंताओं के संदर्भ में विमर्श को बढ़ावा मिला है। 

आनुवंशिक परीक्षण क्या है? 

  • परिचय: 
    • आनुवंशिक परीक्षण में किसी व्यक्ति के DNA का विश्लेषण करके ऐसे आनुवंशिक वेरिएंट की पहचान की जाती है जिससे स्वास्थ्य, शारीरिक लक्षणों और स्पोर्ट्स प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ सकता है। 
    • इसमें आनुवंशिक स्थितियों की पुष्टि करने तथा आनुवंशिक विकारों के विकास या संचरण की संभावना का आकलन करने के क्रम में गुणसूत्रों, जीन या प्रोटीन में होने वाले परिवर्तन का पता लगाया जाता है। 
    • इस परीक्षण को रक्त, बाल, त्वचा, एमनियोटिक द्रव या अन्य ऊतकों के नमूनों का उपयोग करके किया जा सकता है।
  • प्रकार:
    • साइटोजेनेटिक परीक्षण (Cytogenetic Testing): इसमें संपूर्ण गुणसूत्रों का परीक्षण करना शामिल है।
    • जैव रासायनिक परीक्षण (Biochemical Testing): इसमें जीन द्वारा उत्पादित प्रोटीन का पता लगाया जाता है।
    • आणविक परीक्षण (Molecular Testing): इसके तहत सूक्ष्म DNA उत्परिवर्तन का पता लगाया जाता है।
  • अनुप्रयोग:
    • नवजात शिशु का नैदानिक परीक्षण: जन्म के तुरंत बाद किये जाने वाले आनुवंशिक परीक्षण से शिशु के उपचार योग्य आनुवंशिक विकारों की पहचान की जा सकती है। इसका उपयोग शारीरिक संकेतों और लक्षणों के आधार पर विशिष्ट आनुवंशिक स्थितियों की पुष्टि करने के लिये किया जा सकता है।
    • वाहक परीक्षण (Carrier Testing): यह उन लोगों के परीक्षण में सहायक है जिनमें जीन उत्परिवर्तन की एक प्रति होती है जिससे आनुवंशिक विकार की स्थिति हो सकती है। यह उन लोगों के लिये उपयोगी है जिनके परिवार में आनुवंशिक विकारों का इतिहास रहा है या जो उच्च जोखिम वाले वर्गों से संबंधित हैं।
    • प्रीइम्प्लांटेशन परीक्षण (PGD): इसका उपयोग इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया के दौरान प्रत्यारोपण से पूर्व भ्रूण में आनुवंशिक परिवर्तनों का परीक्षण करने के लिये किया जा सकता है, जिससे आनुवंशिक विकारों के जोखिम कम किया जा सके।
    • फोरेंसिक परीक्षण: इसमें विधिक उद्देश्यों के लिये DNA अनुक्रमों का उपयोग किया जाता है, जैसे अपराध पीड़ितों एवं अपराध संदिग्धों की पहचान करने में या आनुवंशिक संबंध स्थापित करने में।

जीन, DNA और गुणसूत्र क्या हैं?

  • DNA: 
    • DNA एक लंबा बहुलक है जिसमें हमारा विशिष्ट आनुवंशिक कोड होता है। DNA दो स्ट्रैंड (जो आपस में एक दूसरे में उलझे हुए होते हैं जिससे द्विकुंडली संरचना बनती है) से मिलकर बना होता है।
    • DNA का प्रत्येक स्ट्रैंड चार आधारभूत बिल्डिंग ब्लॉक्स या 'क्षार' से बना होता है: एडेनिन (A), साइटोसीन (C), गुआनिन (G) और थाइमिन (T)।
  • जीन:
    • DNA के खंड के रूप में जीन के अंदर विशिष्ट अणु (सामान्यतः प्रोटीन) का उत्पादन करने हेतु निर्देशों का सेट होता है।
      • ये प्रोटीन विभिन्न शारीरिक गतिविधियों के लिये ज़िम्मेदार होते हैं, जैसे कि शरीर की वृद्धि एवं विकास, शरीर की कार्यप्रणाली तथा आँखों का रंग या रक्त का प्रकार।
    • प्रत्येक कोशिका में जीन के दो समूह होते हैं। 46 पार्सल के रूप में जीन समूहबद्ध होते हैं, इन्हीं 46 पार्सल को गुणसूत्र/क्रोमोसोम कहा जाता है।
  • गुणसूत्र:
    • प्रत्येक कोशिका के केंद्रक में DNA अणु गुणसूत्र नामक तंतु जैसी संरचना में व्यवस्थित होता है।
    • प्रत्येक गुणसूत्र हिस्टोन नामक प्रोटीन के चारो ओर मज़बूत कुंडलित DNA से बना होता है।
    • कोशिका के केंद्रक में गुणसूत्र दिखाई नहीं देते- यहाँ तक की माइक्रोस्कोप से भी नहीं।

एथलीट के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिये जेनेटिक परीक्षण का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है?

  • जेनेटिक मार्कर की पहचान: जेनेटिक परीक्षण द्वारा शारीरिक लक्षणों से जुड़े विशिष्ट मार्करों की पहचान से एथलेटिक प्रदर्शन में योगदान मिल सकता है।
    • उदाहरण के लिये, एंजियोटेंसिन-कनवर्टिंग एंज़ाइम (ACE) और अल्फा-एक्टिनिन 3 (ACTN3) के रूप में जीन में भिन्नता को क्रमशः धैर्य और शक्ति क्षमताओं से संबंधित किया जाता है।
  • मांसपेशियों की फाइबर संरचना का आकलन: ACTN3 जीन से फास्ट-ट्वीच मांसपेशियों का फाइबर-अनुपात प्रभावित होता है, जो शक्ति और स्प्रिंटिंग के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • इस जीन के कुछ वेरिएंट वाले एथलीट शक्ति प्रदर्शन वाले स्पोर्ट्स में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं, जबकि अन्य एथलीटों की आनुवंशिक संरचना सहनशक्ति वाली गतिविधियों हेतु अनुकूल हो सकती है।
  • रिकवरी और चोट के जोखिम का मूल्यांकन: जेनेटिक परीक्षण से चोट या रिकवरी में लगने वाले समय का पता लगाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये, कोलेजन उत्पादन से संबंधित जीन में भिन्नता से पेशी और अस्थि-रज्जु की चोटों के प्रति संवेदनशीलता का पता लग सकता है, जिससे इसके अनुरूप प्रशिक्षण एवं निवारक रणनीतियों को अपनाने में सहायता मिल सकती है।
  • पोषण संबंधी ज़रूरतें और चयापचय: ​​आनुवंशिक अंतर्दृष्टि से यह निर्धारित करने में मदद मिल सकती है कि एथलीट द्वारा पोषक तत्त्वों का चयापचय कितनी अच्छी तरह से हो पाता है।
    • उदाहरण के लिये, लैक्टोज़ असहिष्णुता या विटामिन D चयापचय में भिन्नता की पहचान से उचित आहार विकल्पों को अपनाने में सहायता मिल सकती है जिससे प्रदर्शन के साथ समग्र स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है।
  • मनोवैज्ञानिक लक्षण: कुछ आनुवंशिक भिन्नताओं से प्रेरणा, तनाव प्रतिक्रिया और पीड़ा के प्रति सहिष्णुता (जो प्रतिस्पर्द्धी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) जैसे मनोवैज्ञानिक लक्षणों पर प्रभाव पड़ सकता है।
    • इन लक्षणों को समझने से इसकी उचित तैयारी में मदद मिल सकती है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अनुकूलित बनाना: किसी एथलीट की आनुवंशिक प्रवृत्तियों को समझकर, कोच ऐसे प्रशिक्षण नियम तैयार कर सकते हैं जो उनकी मज़बूती एवं कमज़ोरियों पर केंद्रित हों

आनुवंशिक परीक्षण की सीमाएँ क्या हैं?

  • वैज्ञानिक अनिश्चितता: आनुवंशिकी और एथलेटिक प्रदर्शन के बीच संबंध जटिल होने के साथ इन्हें पूरी तरह से समझा नहीं गया है।
    • कई अध्ययनों से परस्पर विरोधी परिणाम सामने आते हैं, जिससे निश्चित निष्कर्ष निकाल पाना जटिल हो जाता है।
  • सैंपल का सीमित होना: कई आनुवंशिक अध्ययनों में सीमित सैंपल होने से विभिन्न वर्गों एवं खेलों की विश्वसनीयता प्रभावित होने के साथ इनका सामान्यीकरण हो सकता है।
  • आनुवंशिकी पर अत्यधिक बल: आनुवंशिक कारकों पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से प्रशिक्षण, अभ्यास, पोषण और मनोवैज्ञानिक पहलुओं (जो एथलेटिक सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं) का महत्त्व समाप्त हो सकता है।
  • नैतिक चिंताएँ: इससे निजता के हनन एवं संभावित भेदभाव के साथ आनुवंशिक सूचना के दुरुपयोग से संबंधित मुद्दों से एथलीटों के संदर्भ में नैतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत होती हैं।
  • डेटा की गलत व्याख्या: आनुवंशिक डेटा जटिल होने के साथ विशेषज्ञ मार्गदर्शन के बिना इसकी गलत व्याख्या की जा सकती है, जिससे किसी एथलीट की क्षमता के बारे में गलत निष्कर्ष निकल सकता है।
  • वाणिज्यिक शोषण: डायरेक्ट टू कंज़्यूमर आनुवंशिक परीक्षण में प्रायः वैज्ञानिक वैधता की तुलना में लाभ को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे परिणामों की सटीकता एवं परीक्षण के उद्देश्य के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

आगे की राह

  • स्वतंत्र अनुसंधान: आनुवंशिक प्रभावों से संबंधित निष्कर्षों को मान्य करने और जीन अंतःक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिये स्वतंत्र वैज्ञानिक निकायों द्वारा व्यापक अध्ययन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण: प्रशिक्षकों और विशेषज्ञों को आनुवंशिक डेटा की सटीक व्याख्या करने तथा प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिये।
  • नैतिक दिशा-निर्देश: खिलाड़ियों की गोपनीयता की रक्षा करने और आनुवंशिक जानकारी के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिये स्पष्ट नैतिक दिशा-निर्देश विकसित करने के साथ ही डेटा का ज़िम्मेदार उपयोग सुनिश्चित करना चाहिये।
  • समग्र दृष्टिकोण: आनुवंशिक अंतर्दृष्टि को पारंपरिक प्रशिक्षण, पोषण और मनोवैज्ञानिक सहायता के साथ एकीकृत करने वाले एक संतुलित दृष्टिकोण पर बल देने की आवश्यकता है।
  • विनियामक निकायों के साथ सहयोग: आनुवंशिक परीक्षण के उपयोग को नियंत्रित करने वाली नीतियों को बनाने के क्रम में खेल संगठनों के साथ समन्वय करने एवं निष्पक्षता तथा मानकीकरण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • जन जागरूकता अभियान: आनुवंशिक परीक्षण के लाभों और सीमाओं के बारे में एथलीटों तथा जनता को शिक्षित करने के लिये अभियान चलाने चाहिये।

निष्कर्ष

यद्यपि आनुवंशिक परीक्षण से एथलेटिक क्षमता के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिल सकती है, लेकिन एथलीट की क्षमताओं को पूरी तरह से जानने के लिये इन निष्कर्षों को पर्यावरणीय कारकों, प्रशिक्षण और व्यक्तिगत समर्पण के साथ जोड़ना भी निर्णायक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रायः समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आणविक कैंची
(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक-ठाक पहचान के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक 
(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाता है
(d) आनुवंशिकतः रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में, प्रायः समाचारों में आने वाले ‘जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सिक्वेंसिग)’ तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है। 
  2. यह तकनीक फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी-रोगाणु संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3,
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. अनुप्रयुक्त जैव-प्रौद्योगिकी में शोध और विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी? (2021)

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